भारत के संविधान की प्रमुख विशेषताएँ

भारत का संविधान अपने व्यापक आकार, Singleात्मक-संघवाद, लचक और कठोरता के मिश्रण तथा विभिन्न संकटकालीन स्थिति का समाधान करने के लिए विशेष प्रावधानों सहित Single अनुपम संविधान है जोकि 1950 से लेकर आज तक सफलता से कार्य कर रहा है। संविधान के निर्माताओं का यह प्रयास था कि राष्ट्र को Single नया व्यवहार-कुशल संविधान प्रदान Reseller जाए जोकि राष्ट्र की Singleता और अखण्डता तथा विकास प्राप्त करने में समर्थ हो और राष्ट्र-निर्माण और सामाजिक-आर्थिक पुनर्निर्माण को सुनिश्चित करने के लिए आधार दे सके। इसीलिए उन्होंने अन्य संविधानों की उन विशेषताएँ जोकि Indian Customer दृष्टिकोण तथा राष्ट्रीय Needओं के लिए उपयुक्त और आवश्यक थीं, Indian Customer संविधान में शामिल करने का प्रयास Reseller और वे काफी सीमा तक अपने इस उद्देश्य में सफल भी रहे। संविधान निर्माण सभा में बोलते हुए डा. अम्बेडकर ने कहा था कि मैं समझता हूँ कि यह (संविधान) व्यवहार-कुशल है, यह लचकीला है और यह अमन और युद्व दोनों समय पर देश को Singleजुट रखने के लिए काफी शक्तिशाली है। सत्य ही मैं यह कह सकता हूं, यदि संविधान के अधीन परिस्थितियां दूषित हो जाती हैं तो इसका कारण यह नहीं होगा कि हमारा संविधान कमजोर है, बल्कि हमें यह कहना पड़ेगा कि इसका कारण Humanीय त्रुटि है।

भारत के संविधान की प्रमुख विशेषताएँ

लिखित और विस्तृत संविधान

भारत का संविधान Single लिखित और विस्तृत दस्तावेज़ है। इसमें 444 अनुच्छेद हैं जो 22 भागों में विभाजित हैं इसमें 12 अनुसूचियां शामिल हैं और इसमें 103 संवैधानिक संशोधन भी शामिल किए जा चुके हैं। जैनिंगष (Jennings) इसको फ्विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधानय् घोषित करते हैं। यह अमरीकी संविधान, जिसके 7 अनुच्छेद और 27 संशोधन हैं, जापानी संविधान, जिसके 103 अनुच्छेद हैं और प्रफांसीसी संविधान, जिसके 92 अनुच्छेद हैं, से कहीं बड़ा है। संविधान के निर्माता किसी भी विषय के प्रति उपेक्षा का अवसर नहीं देना चाहते थे क्योंकि वे स्वतन्त्रता के बाद देश में विद्यमान सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक समस्याओं के प्रति पूर्णतया सचेत थे। अनेकों अनुपम विशेषताएँ शामिल करने जैसे राज्य नीति के निर्देशक सिद्वान्त, संकटकाल स्थिति की व्यवस्थाएँ, भाषायी व्यवस्थाएँ, अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अन्य पिछड़ी श्रेणियों से सम्बन्धित व्यवस्थाएँ, निर्वाचन आयोग, संघीय लोक सेवा आयोग और राज्य लोक सेवा आयोगों आदि जैसी संवैधानिक संस्थाओं की व्यवस्थाओं ने संविधान को काफी लम्बा कर दिया। केन्द्र और राज्यों के लिए साझा संविधान बनाने के निर्णय ने भी इसकी लम्बाई बढ़ाई। इसके साथ ही मौलिक अधिकारों, संघ राज्य सम्बन्धों, संविधान की अनुसूचियों आदि जैसी व्यवस्थाओं को विस्तार में लिखने के कारण भी इसका विस्तार हुआ। इन्हीं कारणों से संविधान लगभग 400 पृष्ठों की Single पुस्तक बन गया। पिफर समय-समय पर पास हुए संवैधानिक संशोधन ने इसके आकार को और अधिक विस्तृत कर दिया।


संविधान के व्यापक आकार के कारण ही इसकी वकीलों का स्वर्ग कह कर आलोचना की गई और अधिक Wordों के प्रयोग ने इसको अधिक जटिल और कठोर बना दिया। परन्तु, जैसा कि First ही लिखा जा चुका है, संविधान के विशाल आकार का कारण था जहां तक संभव हो सके प्रत्येक विषय को स्पष्ट Reseller में लिखने और समाधान करने का निर्णय। 1950 से संविधान के लागू होने पर इसके कार्य-व्यवहार से पता लगता है कि इसके बहुत बड़े आकार ने बाधा नहीं डाली। कुछ व्यवस्थाएँ जैसे कि धारा 31 के अधीन सम्पत्ति का अधिकार (जिसको अब भाग iii में से निकाल दिया गया है) को छोड़ कर संविधान के बड़े ने इसकी व्याख्या करने में कोई विशेष समस्या खड़ी नहीं की। बल्कि शान्ति और युद्व दोनों अवसरों पर देश को उत्तम व्यवस्था और आवश्यक स्थायित्व प्रदान करने का कार्य Reseller है।

स्वनिर्मित और पारित हुआ संविधान

भारत का संविधान Single ऐसा संविधान है जो भारत के लोगों की अपनी निर्वाचित प्रभुसत्तापूर्ण प्रतिनिधि संस्था संविधान निर्माण सभा के द्वारा तैयार Reseller गया है। यह सभा दिसम्बर, 1946 में केबिनेट मिशन योजना के अधीन गठित की गई थी। इसने अपना First अधिवेशन 9 दिसम्बर, 1946 को Reseller और 22 जनवरी 1947 को अपना उद्देश्य प्रस्ताव पास Reseller था। इसके बाद इसने संविधान निर्माण का कार्य ठीक दिशा में तीव्रता से आरम्भ Reseller और यह अन्तत: 26 नवम्बर, 1949 को संविधान पारित करने और अपनाने की स्थिति में पहुंची। इस प्रकार Indian Customer संविधान स्वनिर्मित है और इसे उचित Reseller में पारित Reseller गया है। कुछ आलोचक इस आधार पर इस विचार को स्वीकार नहीं करते कि संविधान निर्माण सभा बहुत थोड़े-से मतदाताओं ने ही निर्वाचित की थी जोकि जनसंख्या के 20 प्रतिशत भाग से भी कम थे और यह भी साम्प्रदायिक चुनाव मण्डलों के आधार पर निर्वाचित की गई थी। परन्तु बहुत बड़ी संख्या में विद्वान् इस आलोचना को स्वीकार नहीं करते। उनका कहना है कि संविधान निर्माण सभा पूर्णतया प्रतिनिधि संस्था थी और इसको लागों के द्वारा दिए प्रभुसत्ता सम्पन्न अधिकारों का प्रयोग करते हुए इसने संविधान का निर्माण Reseller था।

संविधान की प्रस्तावना

भारत के संविधान की प्रस्तावना Single अच्छी तरह तैयार Reseller दस्तावेष है जोकि संविधान के दर्शन और उद्देश्यों का वर्णन करती है। यह घोषणा करती है कि भारत Single ऐसा प्रभुसत्ता सम्पन्न, समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष, लोकतन्त्रीय-गणराज्य जिसमें लोगों की न्याय, स्वतन्त्रता और समानता प्रदान करने और भाईचारिक सांझ, व्यक्तिगत आदर, राष्ट्र की Singleता और अखण्डता को उत्साहित करने और स्थापित रखने का वचन दिया गया है। प्रस्तावना के आरम्भ में प्रस्तावना को Indian Customer संविधान का भाग नहीं माना गया था परन्तु सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा केशवानंद भारती केस में दिए गए निर्णय के बाद इसको संविधान का Single भाग मान लिया गया है। इसमें 42वां संशोधन (1976) के द्वारा संशोध्न Reseller गया और Word ‘समाजवाद’, ‘धर्म-निरपेक्ष’ और ‘अखण्डता’ इसमें शामिल किए गए।

भारत Single प्रभुसत्ता सम्पन्न, समाजवादी, धर्म

निरपेक्ष लोकतन्त्रीय, गणराज्य है जैसे कि प्रस्तावना में घोषणा की गई है, भारत Single प्रभुसत्ता सम्पन्न, समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष, लोकतन्त्रीय गणराज्य है। ये विशेषताएँ Indian Customer राज्य के पांच प्रमुख लक्षणों को प्रकट करती हैं:

  1. भारत Single प्रभुसत्ता-सम्पन्न राज्य है – प्रस्तावना घोषित करती है कि भारत Single प्रभुसत्ता सम्पन्न राज्य है। यह इसलिए आवश्यक था कि भारत पर ब्रिटिश शासन समाप्त हो चुका था और भारत ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन नहीं रहा था। इसने 15 अगस्त, 1947 को ब्रिटिश शासन की समाप्ति के बाद भारत को तकनीकी Reseller में मिले औपनिवेशिक स्तर के समाप्त होने की भी पुष्टि भी इसमें की गई। संविधान निर्माण सभा के द्वारा संविधान को अपनाने से यह औपनिवेशिक स्थिति समाप्त हो गई और भारत पूर्णतया स्वतन्त्र देश के Reseller में विश्व मानचित्र पर उभर कर सामने आया। इसने स्वतन्त्रता के संघर्ष के परिणाम की घोषणा की और इस बात की पुष्टि की कि भारत आंतरिक और बाह्य Reseller में अपने निर्णय स्वयं लेने और इनको अपने लोगों और क्षेत्रों के लिए लागू करने के लिए स्वतन्त्र है।
  2. भारत Single समाजवादी राज्य है – चाहे कि आरम्भ से ही Indian Customer संविधान में समाजवाद की भावना शामिल थी, परन्तु इसे स्पष्ट करने के लिए प्रस्तावना में समाजवाद का Word शामिल करने के लिए इसमें 1976 में संशोधन Reseller गया। इससे इस तथ्य का पता लगता है कि भारत All प्रकार के शोषण की समाप्ति करके और आय, स्त्रोतों की सम्पत्ति की उचित बांट करके अपने लोगों के लिए सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्व है। परन्तु यह मार्क्स/क्रान्तिकारी ढंगों से नहीं बल्कि शान्तिपूर्वक, संवैधानिक और लोकतन्त्रीय ढंगों के द्वारा प्राप्त किए जाने के प्रति बचनबद्व है। यह Word, कि भारत Single समाजवादी देश है, का वास्तव में Means यह है कि भारत Single लोकतन्त्रीय समाजवादी देश है। इससे सामाजिक आर्थिक न्याय के प्रति वचनबद्व ता का पता लगता है जोकि देश के द्वारा लोकतन्त्रीय व्यवहार और संगठित नियोजन के द्वारा प्राप्त की जानी है। किन्तु 1991 में उदारीकरण निजीकरण और विश्विकरण की नई आर्थिक नीति अपनाए जाने के बाद इस पर प्रश्न चिन्ह लगाया गया है।
  3. भारत Single धर्म-निरपेक्ष राज्य है – 42वें संशोधन के द्वारा भारत राज्य की अन्य विशेषताओं के साथ-साथ Word फ्धर्म-निरपेक्षताय् भी प्रस्तावना में शामिल Reseller गया। इसके शामिल करने का सामान्य तौर पर Means यह है कि यह Indian Customer संविधान के धर्म-निरपेक्ष स्वReseller को और अधिक स्पष्ट करता है Single राज्य (देश) होने के नाते भारत किसी भी धर्म को कोई विशेष दर्जा नहीं देता। भारत का कोई सरकारी धर्म नहीं है। इससे यह मौलिकवादी या धर्म आधारित राज्यों, जैसा कि पाकिस्तान और अन्य मुस्लिम देशों के राज्यों से अलग बन जाता है। हाँ, सकारात्मक पहलू यह है कि भारत में All धर्मों को Single-समान अधिकार और स्वतन्त्रता देकर धर्म-निरपेक्षता की नीति अपनाई गई है। अनुच्छेदों 25 से 28 तक संविधान अपने All नागरिकों को धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार देता है। यह बिना किसी पक्षपात के अपने All नागरिकों को समान अधिकार देता है, अल्प-संख्यकों की विशेष Reseller में Safty देने का प्रयास करता है। राज्य नागरिकों की धार्मिक स्वतन्त्रता में हस्तक्षेप नहीं करता और धार्मिक उद्देश्यों के लिए किसी भी प्रकार का कोई कर नहीं लगा सकता।
  4. भारत Single लोकतन्त्रीय राज्य है – संविधान की प्रस्तावना भारत को Single लोकतन्त्रीय राज्य घोषित करती है। भारत का संविधान Single लोकतन्त्रीय प्रणाली स्थापित करता है- सरकार की सत्ता लोगों की प्रभुसत्ता पर निर्भर है। लोगों को समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त है। जैसे कि सार्वजनिक वयस्क मताधिकार, चुनाव लड़ने का अधिकार, सरकारी पद प्राप्त करने का अधिकार, संगठन स्थापित करने का अधिकार और सरकार की नीतियों की आलोचना और उनका विरोध करने का अधिकार। इन अधिकारों के आधर पर ही लोग राजनीति की प्रक्रिया में भाग लेते हैं। वे अपनी सरकार का निर्वाचन स्वयं करते हैं। चुनाव निर्धारित अन्तराल के बाद या पिफर जब भी इनकी Need हो, तब करवाए जाते हैं। यह चुनाव स्वतन्त्र, उचित और निष्पक्ष होते हैं सरकार अपनी All कार्यवाहियों के लिए लोगों के प्रति उत्तरदायी होती है। लोग चुनावों के द्वारा सरकार बदल सकते हैं। कोई भी वह सरकार सत्ता में नहीं रह सकती जिसमें लोगों के प्रतिनिधियों का विश्वास न हो। अप्रैल, 1997 में प्रधानमन्त्री एच. डी. देवगौड़ा की सरकार को त्याग-पत्र देना पड़ा था क्योंकि यह लोकसभा में विश्वास का प्रस्ताव प्राप्त करने में असफल रही थी। अप्रैल, 1998 में श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बी. जे. पी. गठबंधन सरकार ने शासन-भार संभाला परन्तु यह सरकार भी अप्रैल, 1999 में Single वोट की कमी के कारण लोकसभा से अपना विश्वास मत प्राप्त न कर सकी। इसने अपना त्याग-पत्र दे दिया और 12वीं लोकसभा भंग कर दी गई तथा Single बार पिफर लोगों को अपनी सरकार चुनने का अवसर दिया गया। सितम्बर-अक्तूबर 1999 के चुनावों में लोगों ने राष्ट्रीय लोकतन्त्रीय गठबंधन को बहुमत दिया और 13 अक्तूबर 1999 को इस गठबंधन ने भारत में Single नई लोकतन्त्रीय सरकार का गठन Reseller जोकि अप्रैल 2004 तक सत्तारूढ़ रही। पिफर 14वीं लोकसभा के चुनाव परिणामों के आधार पर कांग्रेस के नेतृत्व में यू. पी. ए. सरकार का गठन मई 2004 में हुआ। 2009 के चुनाव में यह दोबारा सत्ता में आई और यह आज तक सत्तारूढ़ है। इस प्रकार में Single गतिमान लोकतन्त्रीय प्रणाली है। इसमें सरकार बदलने का कार्य शान्तिपूर्ण And व्यवस्थित ढंग से Reseller जाता है। सरकार जनता और जनमत का प्रतिनिधत्व करती है और अपने प्रत्येक कार्य के लिए जनता के समक्ष उत्तरदायी होती है। Indian Customer लोकतन्त्र को विश्व का सबसे बड़ा लोकतन्त्र होने का सम्मान प्राप्त है इसके पीछे Indian Customer संविधान का अभूतपूर्व योगदान है।
  5. भारत Single गणराज्य है – संविधान की प्रस्तावना भारत को Single गणराज्य घोषित करती है। भारत पर किसी King यह उसके द्वारा मनोनीत मुखिया के द्वारा शासन नहीं चलाया जाता। भारत के राष्ट्रपति को संसद के तथा राज्यों की विधान सभाओं के सदस्यों से बने निर्वाचन मण्डल के द्वारा चुना जाता है और वह पाँच साल के कार्यकाल के लिए कार्य करता है। भारत के Single गणराज्य होने की स्थिति का राष्ट्रमण्डल की Indian Customer सदस्यता का किसी भी ढंग से कोई टकराव नहीं है।

भारत राज्यों का Single संघ है

संविधान का अनुच्छेद 1 घोषित करता है: भारत राज्यों का Single मिलन है। यह भारत को न तो Single संघात्मक राज्य और न ही Single Singleात्मक राज्य घोषित करता है। इस विचार से दो महत्त्वपूर्ण पक्ष सामने आते हैं। फ्पहला यह कि भारत Single ऐसा संघ नहीं जो प्रभुसत्ता सम्पन्न राज्यों के द्वारा परस्पर Agreeि के परिणाम के Reseller में अस्तित्व में आया हो, जैसे कि संयुक्त राज्य अमरीका और दूसरी बात यह है कि भारत की भागीदार इकाइयों (प्रदेशों) को इससे अलग होने का कोई अधिकार नहीं है। संविधान के द्वारा भारत को 29 भाग ए, भाग बी, भाग सी और भाग डी में बांटा गया था। 1956 में पुनर्गठन के बाद भारत का 16 राज्यों और 3 केन्द्र प्रशासित क्षेत्रों में पुनर्गठन Reseller गया। धीरे-धीरे कई परिवर्तनों के द्वारा और सिक्कम के Indian Customer संघ में शामिल हो जाने पर राज्यों की संख्या बदलती रही है। भारत में अब 28 राज्य और 7 केन्द्र प्रशासित क्षेत्र हैं।

संघीय ढांचा और Singleात्मक भावना

भारत का संविधान Singleात्मक भावना वाली संघीय संCreation ही स्थापित करता है। विद्वान् भारत को Single अर्ध-फेडरेशन (Quasi-Federation) (के. सी. बीयर) या Singleात्मक आधर वाली पैफडरेशन या Singleीकृत संघात्मक कह देते हैं। Single संघात्मक राज्य के समान भारत का संविधान ये व्यवस्थाएँ स्थापित करता है: (i) केन्द्र और राज्यों में शक्तियों का विभाजन (ii) Single लिखित और कठोर संविधान (iii) संविधान की सर्वोच्चता (iv) स्वतन्त्र न्यायपालिका जिसको कि शक्तियों के विभाजन के बारे मे केन्द्र-राज्य झगड़ों के निर्णय का भी अधिकार है, और (v) दो-सदनीय संसद। परन्तु बहुत ही शक्तिशाली केन्द्र, साझा संविधान, Singleल नागरिकता, संकटकाल स्थिति की व्यवस्था, साझा चुनाव कमीशन, साझी अखिल Indian Customer सेवाओं की व्यवस्था करके संविधान स्पष्ट Reseller में Singleात्मक भावना को प्रकट करता है। संघवाद और Singleात्मकवाद का मिश्रण Indian Customer समाज के बहुलवादी स्वReseller और क्षेत्रीय विभिन्नताओं को ध्यान में रख कर और राष्ट्र की Singleता और अखण्डता की Need के कारण Reseller गया है। First ने संघवाद के पक्ष में निर्णय लेने के लिए विवश Reseller और दूसरी ने Singleात्मकता की भावना को अपनाना आवश्यक बना दिया। इस प्रकार भारत का संविधान न तो पूर्णतयासंघीय है और न हीं Singleात्मक बल्कि यह दोनों का मिश्रण है। यह आंशिक Reseller में संघीय और आंशिक Reseller में Singleात्मक राज्य है।

कठोरता और लचकशीलता का मिश्रण

भारत का संविधान कई विषयों पर संशोधन के लिए Single कठोर संविधान है। इसकी कुछ व्यवस्थाएँ बहुत कठिन ढंग से संशोधित की जा सकती हैं जबकि Second कुछ प्रावधानों में बड़ी आसानी से संशोधन Reseller जा सकता है। कुछ मामलों में संसद संविधान के कुछ भाग को केवल Single कानून पारित करके ही संशोधित कर सकती है। उदाहरण के Reseller में नए राज्य बनाने, किसी राज्य के क्षेत्र बढ़ाये या घटाने, नागरिकता से सम्बन्धित नियम, किसी राज्य की विधान परिषद् को स्थापित करने या समप्त करने से सम्बन्धित संशोधन आसानी से पारित किए जा सकते हैं। यहाँ अनुच्छेद 249 के अधीन यह किसी राज्य विषय को राज्य सभा दो तिहाई बहुमत से Single राष्ट्रीय महत्त्व का विषय घोषित कर सकती है और उसे Single वर्ष के लिए केन्द्रीय संसद के कानून निर्माण के अधिकार क्षेत्र में ला सकती है। इसी प्रकार अनुच्छेद 312 के अधीन इसी ढंग के द्वारा वह कोई भी अखिल Indian Customer सेवा संगठित कर सकती है या समाप्त कर सकती है। यह विशेषता संविधान की लचकशीलता को दर्शाती है।

परन्तु अनुच्छेद 368 के अधीन संविधान में संशोधन के लिए व्यवस्था की गई है:

  1. अधिकतर संवैधानिक व्यवस्थाओं में संशोधन संसद के द्वारा कुल सदस्यों की बहुसंख्या से और विद्यमान सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से दोनों सदनों द्वारा Single संशोधन बिल पास कर के Reseller जा सकता है।
  2. कुछ विशेष संवैधानिक व्यवस्थाओं में संशोधन के लिए Single अत्यंत कठोर व्यवस्था की गई है। First कुछ विषयों के सम्बन्ध में Single संशोधन प्रस्ताव संसद के कुल सदस्यता के बहुमत और उपस्थित सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से और दोनों सदनों में अलग-अलग प्रस्तावों का पास होना आवश्यक है और उसके बाद इसकी पुष्टि के कम-से-कम आर्ध राज्यों की राज्य विधान सभाओं से होना आवश्यक है। इस ढंग के द्वारा संशोधन निम्न विषयों पर Reseller जाता है: (i) राष्ट्रपति के चुनाव का ढंग (ii) संघीय की कार्यपालिका की शक्तियों की क्षेत्र सीमा (iii) राज्य कार्यपालिकाओं की शक्ति की क्षेत्र-सीमा (iv) संघीय न्यायपालिका से सम्बन्धित प्रावधन (v) राज्यों के उच्च न्यायालयों से सम्बन्धित प्रावधान (vi) वैधानिक शक्तियों का विभाजन (vii) संसद में राज्यों का प्रतिनििध्त्व (viii) संविधान में संशोधन का ढंग और (ix) संविधान की Sevenवीं अनुसूची।

परन्तु वास्तव में संविधान लचकीला सिद्व हुआ है। इस बात का प्रमाण यह है कि 1950 से 2005 तक संविधान में 92 संशोधन किए गए। कांग्रेस की प्रभावी स्थिति (1950-77), (1980-89) के कारण संविधान में वातावरण के According परिवर्तन किए गए और कई संकटकाल स्थितियों जैसा कि पंजाब और जम्मू और कश्मीर में केन्द्रीय शासन की अवधि बढ़ाने के लिए भी कुछ संशोधन किए गए। यहाँ तक कि 1989 में बनी साझे मोर्चे की सरकार, को भी अपने शासन के Single वर्ष में 4 संशोधन करने पड़े। अब तक संविधान में 103 संशोधन पास हो चुके हैं। और 86 संशोधन बिल पास किए जाने की प्रक्रिया में हैं।

मौलिक अधिकार

भाग III में अनुच्छेद 12-35 के अधीन भारत का संविधान अपने नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान करता है। आरम्भ में 7 मौलिक अधिकार दिए गए थे परन्तु बाद में मौलिक अधिकारों की श्रेणी में से (42वीं संवैधानिक संशोधन 1976 द्वारा) सम्पत्ति का अधिकार समाप्त कर दिया गया और इस प्रकार मौलिक अधिकारों की संख्या घट कर 6 रह गई है। परन्तु प्रत्येक मौलिक अधिकार में बहुत-से अधिकार और स्वतन्त्रताएँ शामिल हैं। नागरिकों के 6 मौलिक अधिकार हैं:

  1. समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18) – इसके According, कानून के सामने All नागरिक समान हैं, इसमें किसी भी प्रकार का भेदभाव न किए जाने की व्यवस्था की गई है। All को समान अवसर प्रदान करने, छूत-छात की कुप्रथा समाप्त करने और उपाधियां समाप्त करने की व्यवस्था भी की गई है।
  2. स्वतन्त्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22) – अनुच्छेद 19 में 6 मौलिक स्वतन्त्रताएँ शामिल हैं-भाषण देने और अपने विचारों को प्रकट करने की स्वतन्त्रता, संगठन/संस्थाएँ स्थापित करने की स्वतन्त्रता, बिना शस्त्र लिए शान्तिपूर्वक सभाएँ करने की स्वतन्त्रता, भारत में All स्थानों पर घूमने की स्वतन्त्रता, किसी भी क्षेत्र में जाकर बसने की स्वतन्त्रता और कोई भी व्यवसाय, व्यापार या रोषगार अपनाने की स्वतन्त्रता। अनुच्छेद 20 व्यक्तिगत स्वतन्त्रता और अभियुक्तों के अधिकारों को Safty प्रदान करता है। अनुच्छेद 21 व्यवस्था करता है कि कानून के According की जाने वाली किसी कार्यवाही के बिना किसी भी व्यक्ति को जीवित रहने और स्वतन्त्रता के अधिकार से विहीन नहीं रखा जा सकता। अब 86वें संवैधानिक संशोधन में 21-। धारा शामिल की गई जिसके द्वारा 6 से 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों को शिक्षा का अधिकार प्रदान Reseller गया है। अनुच्छेद 22 के अधीन राज्य द्वारा किसी व्यक्ति की गिरफ्रतारी के सम्बन्ध में प्रावधान दर्ज किए गए हैं ताकि किसी भी नागरिक की स्वतन्त्रता को स्वेच्छाचारी ढंग से पुलिस सीमित न कर सके।
  3. शोषण के विरुद् अधिकार (अनुच्छेद 23-24) – यह मौलिक अधिकार औरतों को खरीद-बेच, बेगार (बंधुआश्रम) और खतरे वाले स्थानों पर बाल मषदूरी की मनाही करता है।
  4. धर्म की स्वतन्त्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28)- इस अधिकार में चेतना, धर्म और पाठ-पूजा की स्वतन्त्रता शामिल है। यह All धर्मों को अपने-अपने धार्मिक स्थानों का निर्माण करने और इनको चलाने की स्वतन्त्रता देता है। अनुच्छेद 27 में यह व्यवस्था की गई है कि किसी भी व्यक्ति को किसी धर्म के प्रचार के लिए पैसा Singleत्रित करने के लिए कोई कर देने के लिए विवश नहीं Reseller जा सकता। राज्य किसी भी धर्म के लिए कोई कर नहीं लगा सकता और अनुदान देते समय राज्य धर्म के आधार पर कोई पक्षपात नहीं कर सकता। अनुच्छेद 28 सरकारी और सरकारी सह्यता लेने वाले स्कूलों और कॉलजों में धार्मिक शिक्षा देने की मनाही करता है।
  5. सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार (अनुच्छेद 29-30) – इस के अधीन संविधान में अल्पसंख्यकों के अधिकारों, उनकी भाषाओं और संस्कृतियों को Windows Hosting रखने और विकसित करने की व्यवस्था है। यह उनको अपनी शिक्षा संस्थाएँ स्थापित करने, बनाए रखने और चलाने का अधिकार भी देता है।
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32) – यह मौलिक अधिकार पूर्ण अधिकार पत्र की आत्मा है। यह न्यायालयों के द्वारा मौलिक अधिकारों को लागू करने और उनकी Safty करने की व्यवस्था करता है। यह सर्वोच्च न्यायालय को मौलिक अधिकार लागू करने के लिए आवश्यक निर्देश और आदेश जारी करने का अधिकार देता है।

Indian Customer नागरिकों के अब छ: मौलिक अधिकार हैं। सम्पत्ति का अधिकार अब मौलिक अधिकारों की सूची से निकाला हुआ है और यह अब अनुच्छेद 300-ए के अधीन Single कानूनी अधिकार है।

मौलिक अधिकार प्रदान करते और इनकी गारंटी देते हुए, संविधान ने इन पर कई अपवाद भी लागू किए हैं। यह प्रतिबन्ध सार्वजनिक शान्ति और कानून व्यवस्था, नैतिकता, राज्य की Safty और भारत की प्रभुसत्ता और भू-क्षेत्रीय अखण्डता स्थापित रखने के हित में लागू किए गए हैं। इससे भी अधिक इन अधिकारों में अनुच्छेद 368 के अधीन बताए गए ढंग के According संशोधन Reseller जा सकता है और अनुच्छेद 352 के अधीन राष्ट्रीय संकटकाल स्थिति के समय ये स्थगित भी किए जा सकते हैं।

राष्ट्रीय Human अधिकार आयोग और Human अधिकारों की Safty

भारत के लोगों के All लोकतन्त्रीय और Human अधिकारों को अधिक अच्छी तरह से Safty प्रदान करने के लिए केन्द्रीय संसद ने 1993 में Human अधिकारों की Safty के बारे अधिनियम पास Reseller। इसके अधीन भारत के Single सेवा-मुक्त न्यायाधीश के नेतृत्व में Human अधिकारों की Safty के लिए राष्ट्रीय Human अधिकार आयोग स्थापित Reseller गया। यह Single स्वतन्त्र आयोग है इसे लोगों के Human अधिकारों के उल्लंघन को रोकने के लिए और Human अधिकारों का उल्लंघन सिद्व हो जाने पर पीड़ित लोगों के लिए क्षतिपूर्ति करने का आदेश देने के लिए Single नागरिक न्यायालय का दर्जा प्राप्त है। आम लोगों के Human-अधिकारों और हितों की प्राप्ति और Safty के लिए सार्वजनिक हित मुकदमा व्यवस्था (Public Interest Litigation-PIL) भी महत्त्वपूर्ण साधन बनी हुई है।

नागरिकों के मौलिक कर्त्तव्य

संविधान अपने भाग IV-ए अनुच्छेद 51-ए (1976 में 42वें संवैधानिक संशोधन के द्वारा शामिल किए गए) के अधीन नागरिकों के निम्नलिखित 10 मौलिक कर्त्तव्य निर्धारित करता है: (1) संविधान, राष्ट्रीय झंडे और राष्ट्र गान का आदर करना (2) स्वतन्त्रता के संग्राम के उच्च आदर्शों पर चलना, (3) भारत की प्रभुसत्ता, Singleता और अखण्डता को बनाए रखना (4) देश की Safty करना और जब भी Need पड़े राष्ट्र के लिए अपनी सेवा अर्पित करना (5) भारत के All लागों को साझे भ्रातृत्व को बढ़ावा देने और औरतों के मान सम्मान को चोट पहुँचाने वाली प्रत्येक कार्यवाही की निंदा करना, (6) राष्ट्र की साझी सांस्कृतिक विरासत की Safty करना, (7) प्राकृतिक वातावरण की Safty करना और जीव जन्तुओं के प्रति दया रखना, (8) वैज्ञानिक सोच Humanवाद और ज्ञान और शोध की भावना को विकसित करना, (9) सार्वजनिक सम्पत्ति की रक्षा करना और हिंसा से दूर रहना, और (10) All व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों में शानदार प्राप्तियों के लिए उत्सुक रहने का प्रयास करना।

संविधान की 86वें संशोधन के द्वारा माता-पिता का यह कर्त्तव्य बनाया गया है कि वे अपने बच्चों को आवश्यक Reseller में शिक्षा प्रदान करवाएँ।

परन्तु यह मौलिक कर्त्तव्य न्यायालयों के द्वारा लागू नहीं किए जा सकते। निर्देशक सिद्वान्त के समान ये मौलिक कर्त्तव्य भी संवैधानिक नैतिकता का Single भाग हैं।

राज्य-नीति के निर्देशक सिद्वान्त

संविधान का भाग I (अनुच्छेद 36-51) राज्य नीति के निर्देशक सिद्वान्तों का वर्णन करता है। यह Indian Customer संविधान की सबसे आदर्शात्मक विशेषताओं में से Single है। संविधान में यह भाग शामिल करते समय संविधान निर्माता आयरलैंड के संविधान और गांधीवाद और पेफबियन समाजवाद की विचारधाराओं से प्रभावित हुए।

निर्देशक सिद्वान्त राज्य प्रशासन के लिए यह निर्देश जारी करते हैं कि वह अपनी नीतियों के द्वारा सामाजिक-आर्थिक विकास का उद्देश्य प्राप्त करे। निर्देशक सिद्वान्त राज्य को यह आदेश देते हैं कि यह लोगों के जीवन निर्वाह के लिए उचित साधन प्रदान करे, सम्पत्ति की न्यायपूर्ण बांट सुनिश्चित करे, समान कार्य के लिए समान वेतन, बच्चों, औरतों, श्रमिकों और युवकों के हितों की Safty करे, बुढ़ापा पैंशन, सामाजिक समानता, स्वशासी संस्थाओं की स्थापना करे, समाज के कमजोर वर्गों के हितों की Safty करे और घरेलू उद्योग, ग्रामीण विकास, अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति, Second देशों से मित्रता और सहयोग को प्रोत्साहित करे। जे. एन. जोशी (J. N. Joshi) के Wordों में, निर्देशक सिद्वान्तों में आधुनिक लोकतन्त्रीय राज्य के लिए Single बहुत ही व्यापक, राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक कार्यक्रम शामिल Reseller गया है।

यदि संविधान के भाग III में शामिल मौलिक अधिकार भारत में राजनीतिक लोकतन्त्र की नींव रखते हैं तो, निर्देशक सिद्वान्त (भाग IV) भारत में सामाजिक और आर्थिक लोकतन्त्र की स्थापना का आह्वान करते हैं। निर्देशक सिद्वान्त किसी भी न्यायालय के द्वारा कानूनी Reseller में लागू नहीं किए जा सकते। तो भी, संविधान यह घोषणा करता है कि वे देश के प्रशासन के लिए मौलिक सिद्वान्त हैं और यह राज्य का कर्त्तव्य है कि वह कानून निर्माण करते समय इन को लागू करे।

द्वि-सदनीय संघीय संसद

संविधान संघीय स्तर पर द्वि-सदनीय संसद की व्यवस्था करता है और इसको संघीय संसद का नाम देता है। इसके दो सदन हैं: लोकसभा और राज्यसभा। लोकसभा संसद का निम्न और लोगों के द्वारा प्रत्यक्ष Reseller में निर्वाचित सदन है। यह भारत के लोगों का प्रतिनिधित्व करता है। इसके सदस्यों की अधिक-से-अधिक संख्या 545 निर्धारित की गई है। प्रत्येक राज्य के लोग अपनी जनसंख्या के अनुपात में अपने प्रतिनिधि निर्वाचित करते हैं। यू. पी. की लोकसभा में 80 और पंजाब की 13 सीटें हैं। लोकसभा के लिए चुनाव इन सिद्वान्तों के According करवाए जाते हैं: (1) प्रत्यक्ष चुनाव (2) गुप्त मतदान (3) Single मतदाता Single मत (4) साधारण बहुमत जीत प्रणाली (5) सार्वजनिक वयस्क-मताधिकार (पुरुषों और स्त्रियों की मतदाता बनने की कम-से-कम आयु 18 वर्ष की है-First यह 21 वर्ष की होती थी)। 25 वर्ष या इससे अध्कि आयु के All मतदाता, लोकसभा का चुनाव लड़ने के योग्य हैं इसका कार्यकाल 5 वर्ष है परन्तु राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री की सिफारिश पर इसको कार्य काल पूर्ण होने से पूर्व भी भंग कर सकता है।

राज्य सभा संसद का उपरि तथा अप्रत्यक्ष Reseller में निर्वाचित सदन है। यह सदस्य संघ के राज्यों का प्रतिनििध्त्व करता है। इसकी कुल सदस्यता संख्या 250 है। इसमें से 238 सदस्य राज्य विधान सभाओं के द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली के द्वारा चुने जाते हैं और 12 सदस्य राष्ट्रपति के द्वारा कला, विज्ञान और साहित्य के क्षेत्रों के प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से मनोनीत किए जाते हैं। वर्तमान राज्यसभा के 240 सदस्य हैं। राज्यसभा संसद का Single स्थायी सदन है। किन्तु इसके Single-तिहाई सदस्य प्रत्येक दो वर्ष बाद सेवा निवृत्त हो जाते हैं। प्रत्येक सदस्य के पद का कार्यकाल 6 वर्ष है।

दोनों सदनों में से लोकसभा अधिक शक्तिशाली है। इसके पास ही वास्तविक वित्तीय शक्तियाँ हैं और केवल यही मन्त्रिमण्डल को हटा सकता है। मन्त्रिमण्डल सामूहिक Reseller में लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होता है। परन्तु, राज्यसभा उतनी शक्तिहीन भी नहीं जितना कि ब्रिटिश लार्ड सदन है और न ही लोकसभा उतनी शक्तिशाली है जितना कि ब्रिटिश कॉमन सदन। संघीय संसद Single प्रभुसत्ता सम्पन्न संसद नहीं है। यह संविधान के अधीन गठित की जाती है और यह केवल उन्हीं श्क्तियों का प्रयोग कर सकती है जोकि इसको संविधान ने दी हैं।

संसदीय प्रणाली

भारत का संविधान केन्द्र और राज्यों में संसदीय प्रणाली की व्यवस्था करता है। यह ब्रिटिश संसदीय प्रणाली पर आधारित है। भारत का राष्ट्रपति देश का संवैधानिक मुखिया है जिसके पास नाममात्र की शक्तियाँ हैं। प्रधानमन्त्री के नेतृत्व में मन्त्रिमण्डल वास्तविक कार्यपालिका है। मन्त्रियों का संसद के सदस्य होना आवश्यक है। मन्त्रिमण्डल के सदस्य अपने All कार्यों के लिए लोकसभा के समक्ष सामूहिक Reseller में उत्तरदायी होते हैं। लोकसभा के द्वारा अविश्वास प्रस्ताव पास किए जाने पर मन्त्रिपरिषद् प्रणाली मन्त्रिपषिद् को यह अधिकार है कि यह राष्ट्रपति को लोकसभा भंग करने की सिफारिश कर सकती है। त्यागपत्र देना पड़ता है इसी प्रकार प्रत्येक राज्य में इन्हीं नियमों के According सरकार कार्य करती है। इस प्रकार संसदीय प्रणाली की All विशेषताएँ Indian Customer संविधान में शामिल हैं। परन्तु आजकल इस विषय पर Discussion भी चल रही है कि संसदीय प्रणाली के स्थान पर भारत में अध्यक्षात्मक स्वReseller की प्रणाली लायी जानी चाहिए कि नहीं। त्रिशंकु संसदों के अस्तित्व में आने के युग और Indian Customer दल प्रणाली की तरलता ने कुछ विद्वानों पर यह प्रभाव डाला है कि वे अध्यक्षात्मक सरकार की वकालत करने लगे हैं जिससे कुछ निश्चित समय के लिए Single स्थिर सरकार अस्तित्व में आ सके। मई-जून, 1996_ अप्रैल, 1997 मार्च, 1998_ अप्रैल, 1999 तथा मई 2004 में राष्ट्र सरकार बनाने में प्रस्तुत आई कठिनाइयों ने Single बार पिफर वर्तमान संसदीय प्रणाली में अध्यक्षता प्रणाली के कम से कम कुछ तत्त्व अपनाने की मांग को दृढ़ Reseller है। परन्तु इस विचार को राष्ट्रीय स्वीकृति मिलनी अभी शेष है।

वयस्क मताधिकार

भारत का संविधान All वयस्कों को वोट का अधिकार प्रदान करना है। प्रो. श्रीनिवासन लिखते हैं, किसी भी योग्यता की शर्त रखे बिना All वयस्कों को मत का अधिकार देना संविधान निर्माण सभा के द्वारा उठाए गए सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण कदमों में से Single है और यह Single विश्वास की कार्यवाही है। भारत सरकार के अधिनियम 1935 के अधीन कुल जनसंख्या के केवल 14 प्रतिशत लोगों को ही मत देने का अधिकार था और स्त्रियों का कुल मतों में भाग नाममात्र का ही था। अब Indian Customer संविधान के अधीन स्त्रियों और पुरुष दोनों को मत का Single समान अधिकार है। अब मत के अधिकार के लिए आयु सीमा 21 वर्ष से घटा कर 18 वर्ष की जा चुकी है। 18 वर्ष से उफपर की आयु के All Indian Customerों को चुनावों में मतदान करने का अधिकार प्राप्त हैं।

Single अखण्डता राज्य के साथ Singleल नागरिकता के साथ Singleीकृत राज्य

Indian Customer संविधान All राज्यों को समान Reseller में Indian Customer संघ का भाग बनाता है। हमारा गणतंत्र सल्तनतों का गठबन्धन नहीं है बल्कि यह Single वास्तविक संघ है जिसको भारत के लोगों ने भारत के All नागरिकों को समान रख कर प्रभुसत्ता के मौलिक संकल्प के आधार पर स्थापित Reseller है। All नागरिकों को Single समान नागरिकता प्रदान की गई है जोकि उनको Single समान अधिकार और स्वतन्त्रताएँ और राज्य प्रशासन की Single जैसी Safty प्रदान करती है। अब Indian Customer मूल के विदेशी नागरिकों, जोकि 26 जनवरी, 1950 के बाद विदेशों में जाकर बस गए हैं तथा जिन्होंने Second देशों की नागरिकताएँ प्राप्त कर ली हैं, को भी भारत की नागरिकता देने का निर्णय लिया गया है। अब वे दोहरी नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं। उन्हें अपनी वर्तमान नागरिकताओं के साथ-साथ Indian Customer नागरिकता भी प्राप्त हो जाएगी। वे दोहरी नागरिकता की प्राप्ति के अधिकारी हो जाएँगे। उन्हें भारत में नागरिक और आर्थिक अधिकार प्राप्त हो जाएँगे, परन्तु उन्हें राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं होंगे।

Singleल Singleीकृत न्यायपालिका

जहाँ अमरीकी संविधान, केवल संघीय न्यायपालिका स्थापित करता है और राज्य न्यायपालिका प्रणाली को प्रत्येक राज्य के संविधान पर छोड़ देता है, वहीं विपरीत भारत का संविधान Single इकहरी न्यायपालिका की व्यवस्था करता है जिसमें सर्वोच्च न्यायालय शीर्ष स्तर का न्यायालय है, उच्च न्यायालय राज्य स्तरों पर है और शेष न्यायालय उच्च न्यायालय के अधीन कार्य करते हैं। सर्वोच्च न्यायालय देश में न्याय का अन्तिम न्यायालय है। यह भारत में न्यायिक प्रशासन चलाता है और इस पर नियंत्रण रखता है।

न्यायपालिका की स्वतन्त्रता

Indian Customer संविधान न्यायपालिका को पूर्णतया स्वतन्त्र बनाता है। यह इन तथ्यों से स्पष्ट हो जाता है: (क) न्यायाधीशों की Appointment राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है। (ख) उच्च कानूनी योग्यताओं और अनुभव वाले व्यक्तियों को ही न्यायाधीश नियुक्त Reseller जाता है। (ग) सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को बहुत ही कठिन प्रक्रिया के द्वारा ही उनके पद से हटाया जा सकता है। (घ) न्यायाधीशों और न्यायिक कर्मचारियों का वेतन भारत की संचित निधि में से दिया जाता हैं और इनके लिए विधानपालिका की वोट आवश्यक नहीं होती। (घ) सर्वोच्च न्यायालय को यह अधिकार है कि वह अपनी स्वतन्त्रता बनाए रखने के लिए अपना न्यायिक प्रशासन स्वयं संचालित करे। (च) सर्वोच्च न्यायालय के All अधिकारियों और कर्मचारियों की Appointment मुख्य न्यायाधीश अधिकारण या किसी अन्य न्यायाधीश या अधिकार द्वारा, जिसको कि इसे उद्देश्य बनाया गया है, के द्वारा की जाती है। Indian Customer न्यायपालिका ने सदैव ही Single स्वतन्त्र न्यायपालिका की तरह कार्य Reseller है।

न्यायिक पुनर्निरीक्षण

संविधान देश का सर्वोच्च कानून है। सर्वोच्च न्यायालय, इसकी Safty और व्याख्या करता है। यह लोगों के मौलिक अधिकारों के प्रहरी के Reseller में भी कार्य करता है। इस उद्देश्य के लिए वह न्यायिक पुनर्निरीक्षण की शक्ति का प्रयोग करता है। इसके द्वारा सर्वोच्च न्यायालय विधानपालिका और कार्यपालिका के All कार्यों के संवैधानिक Reseller में उचित होने के बारे में निर्णय करता है। यदि संसद के कानून या कार्यपालिका के कार्यों को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जाए और इसको यह ग़्ौर-संवैधानिक पाये तो वह उनको रद्द कर सकता है। पिछले समय से सर्वेच्च न्यायालय इस अधिकार का सक्रिय कुशलता से प्रयोग करता आ रहा है और इसने अलग-अलग संवैधनिक मामलों-गोलक नाथ केस, केशवानंद भारती केस, मिनर्वा मिलष केस, गोपालन केस और कई अन्य केसों में ऐतिहासिक निर्णय दिए हैं। राज्यों के उच्च न्यायालयों राज्य कानूनों से सम्बन्धित ऐसी शक्तियों का प्रयोग करते हैं।

संविधान अपने किसी भी अनुच्छेद के अधीन न्यायिक पुनर्निरीक्षण का अधिकार प्रत्यक्ष Reseller में नहीं देता। पिफर भी, यह संविधान के कई अनुच्छेदों विशेष Reseller में अनुच्छेदों 13, 32, और 226 पर आधारित है। संविधान की यह विशेषता अमरीकी संविधान में विशेषता जैसी है।

न्यायिक सक्रियता

इस समय Indian Customer न्यायपालिका अपने सामाजिक उत्तरदायित्वों के प्रति अधिक-से-अधिक सक्रिय हो रही है। सार्वजनिक हित मुकद्दमा प्रणाली (PIL) के द्वारा और इसके साथ ही अपनी शक्तियों और उत्तरदायित्वों के अधिक-से-अधिक प्रयोग के द्वारा अब सार्वजनिक हितों की प्राप्ति के लिए अधिक सक्रिय हो रही है। सार्वजनिक हित मुकद्दमा (PIL) के अन्तर्गत न्यायाधीश सार्वजनिक हितों की प्राप्ति के लिए अपने आप (Suo moto) कार्यवाही कर सकते हैं। मई, 1995 में और पिफर जुलाई 2003 में Indian Customer सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य को कहा कि वह समूचे भारत के लिए और All Indian Customerों के लिए Single समान नागरिक संहिता लागू करने का प्रयास करे जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 44 में करने के लिए कहा गया है। न्यायिक सक्रियता Indian Customer न्याय प्रणाली की Single उत्तम विशेषता है।

संकटकाल स्थिति से सम्बन्धित व्यवस्थाएँ

वेमर गणराज्य (जर्मनी) के संविधान के समान ही Indian Customer संविधान में भी संकटकाल स्थिति से निपटने के लिए व्यवस्थाएँ की गई हैं। यह तीन प्रकार की संकटकाल स्थितियों को पहचानता है और भारत के राष्ट्रपति को इनका सामना करने की शक्ति सौंपता है। इसीलिए इनको राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियों के Reseller में जाना जाता है। संविधान तीन प्रकार की संकटकालीन स्थितियों का वर्णन करता है:

  1. राष्ट्रीय संकटकालीन स्थिति अनुच्छेद 352 Meansात् युद्व या विदेशी आक्रमण या भारत के विरुद्व विदेशी आक्रमण के खतरे या भारत में या इसके किसी भाग में सशस्त्र विद्रोह के परिणाम के Reseller में पैदा हुई संकटकालीन स्थिति।
  2. किसी राज्य में संकटकाल की स्थिति अनुच्छेद 356 Meansात् किसी भी राज्य में संवैधानिक मशीनरी पेफल हो जाने के परिणामस्वReseller उत्पन्न संकटकाल की स्थिति, और
  3. वित्तीय संकटकाल स्थिति (अनुच्छेद 360) Meansात् भारत की वित्तीय स्थिरता में खतरे की स्थिति स्वReseller उत्पन्न हुई संकटकालीन स्थिति।

भारत के राष्ट्रपति को इन संकटकाल की स्थितियों से निपटने के लिए उचित कदम उठाने के अधिकार हैं। किन्तु वास्तव में राष्ट्रपति के ये अधिकार प्रधानमन्त्री और मन्त्रिमण्डल के अधिकार है।

राष्ट्रीय संकटकाल की स्थिति में वास्तविक Reseller में समस्त शासन प्रणाली Singleात्मक बन जाती है और राष्ट्रपति अनुच्छेद 19 में शामिल मौलिक अधिकारों और संविधानों के अनुच्छेदों 32 और 226 के अधीन उनको लागू करने की व्यवस्था को स्थगित कर सकता है। परन्तु संकटकालीन स्थिति में शक्ति प्रयोग करने के सम्बन्ध में कुछ विशेष निर्धारित नियम और कई सीमाएँ लगाई गई हैं। राष्ट्रपति, केवल प्रधानमन्त्री और मन्त्रिमण्डल की लिखित सिफारिश पर ही संकटकालीन स्थिति की घोषणा कर सकता है। राष्ट्रीय संकटकाल की स्थिति में, (यह व्यवस्था 44वें संशोधन के द्वारा की गई है।) प्रत्येक संकटकालीन स्थिति के लागू करने की घोषणा को Single निर्धारित समय में संसद से स्वीकृति लेनी आवश्यक होती है। 1952 से लेकर राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय संकटकालीन शक्तियों (राष्ट्रीय संकटकाल स्थिति और संवैधानिक संकटकाल स्थिति) का प्रयोग कई बार Reseller जा चुका है।

संकटकालीन शक्तियों का उद्देश्य लोगों और राज्य के हितों की रक्षा करना है और इसलिए इनका विरोध नहीं Reseller जा सकता। परन्तु यह संभावना बनी रहती है कि केन्द्रीय कार्यपालिका (सरकार) राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इनका दुरुपयोग कर सकती है, विशेष Reseller में अनुच्छेद 356 का केन्द्र दुरुपयोग Reseller जा सकता है। 1975 में आंतरिक कारणों से संकटकाल स्थिति लागू करना श्रीमती इन्दिरा गांधी के द्वारा की गई Single सत्तावादी कार्यवाही ही थी और इस कार्यवाही के लिए लोगों ने उनको और उनकी कांग्रेस पार्टी को 1977 की चुनावों में बुरी तरह हरा कर दण्ड दिया। इसी प्रकार केन्द्र सरकार के द्वारा संवैधानिक संकटकालीन स्थिति की व्यवस्था का प्रयोग कुछ परिस्थितियों में निश्चय ही स्वेच्छाचारी Reseller में Reseller जाता रहा है। अत: संवैधानिक प्रतिबन्धों के बावजूद संकटकालीन शक्तियों की व्यवस्थाओं का दुरुपयोग Reseller जा सकता है। परन्तु, संकटकाल से सम्बन्धित व्यवस्था को संविधान में शामिल करने को किसी भी तरह संविधान निर्माण सभा की अनावश्यक और लोकतन्त्र विरोधी कार्यवाही नहीं कहा जा सकता। यह राष्ट्रीय Safty, शान्ति और स्थिरता के हित में संविधान में शामिल की गर्इं है। Need इनको समाप्त करने की नहीं बल्कि इसका ठीक-ठीक करने की है। उपयुक्त अमर नंदी ठीक ही कहते हैं फ्राष्ट्रीय संकटकालीन स्थिति से निपटने के लिए केन्द्रीय कार्यपालिका को दिए गए अधिकार, Single ढंग से सौंपे गई कारतूसों की भरी हुई वह बंदूक है जिसका प्रयोग नागरिकों की स्वतन्त्रता की Safty और इनकी समाप्ति दोनों के लिए Reseller जा सकता है। इसलिए, इस बंदूक का प्रयोग बड़ी ही सावधानी से करना चाहिए। इसके साथ हम यह जोड़ना चाहेंगे कि विशेष Reseller में केन्द्र के द्वारा अनुच्छेद 356 का प्रयोग उचित और कभी-कभार और सोच समझ कर ही Reseller जाना चाहिए। किसी भी स्थिति में इसका राजनीतिक दुरुपयोग नहीं Reseller जाना चाहिए।

अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए विशेष व्यवस्थाएँ

अनुसूचित जातियों और अनुसूचित कबीलों से सम्बन्धित लागों के हितों की Safty के उद्देश्य से, संविधान अपने भाग XVI में कुछ विशेष व्यवस्थाएँ करता है। अनुच्छेद 330 उनके लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात (जहाँ तक संभव हो सके) में लोकसभा की कुछ स्थान आरक्षित रखने की व्यवस्था करता है। साथ ही यदि राष्ट्रपति यह अनुभव करे कि एंग्लो-इंडियन समुदाय को सदन में उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला तो वह इस समुदाय के दो सदस्य लोकसभा में मनोनीत कर सकता है। (अनुच्छेद 331)

राज्य विधान सभाओं में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और एंग्लो-इंडियन समुदाय के लिए सीटें आरक्षित रखने की व्यवस्था क्रमवार धारा 331 और 332 के अधीन की गई है। 84वें संवैधानिक संशोधन के द्वारा आरक्षण का कार्यकाल अब 2010 तक बढ़ा दिया गया है। अब आरक्षण का लाभ अन्य पिछड़ी श्रेणियों (OBCs) को भी दे दिया गया है परन्तु सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया है कि नौकरियों में कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए।

संसद तथा विधानपालिकाओं में आरक्षण की व्यवस्था के साथ-साथ सरकारी नौकरियों और अलग-अलग विश्वविद्यालयों और व्यावसायिक संस्थाओं में भी अनुसूचित जातियों और अनुसूचित कबीलों के लिए नौकरियाँ आरक्षित रखी जाती हैं। संविधान अनुसूचित जातियों, अनुसूचित कबीलों और पिछड़ी श्रेिण्यों की स्थिति का लगातार आकलन करने के लिए Single आयोग स्थापित करने की भी व्यवस्था का प्रावधान करता है। मई, 1990 में Single संवैधनिक संशोधन के द्वारा इस उद्देश्य के लिए Single आयोग स्थापित Reseller गया। अब Human अधिकारों के बारे राष्ट्रीय आयोग भी अनुसूचित जातियों और जनजातियों से सम्बन्धित लोगों के अधिकारों के उल्लंघन से सम्बन्धित शिकायतों की जांच कर सकता है।

भाषा से सम्बन्धित व्यवस्थाएँ

संविधान केन्द्र (संघ), भाषायी क्षेत्रों, सर्वोच्च न्यायालयों और उच्च न्यायालयों की भाषा परिभाषित करता है। अनुच्छेद 343 में लिखा गया है कि देश की सरकारी भाषा देवनागरी लिपि में हिन्दी होगी। परन्तु इसके साथ ही यह अंग्रेजी भाषा जारी रखने की भी व्यवस्था करता है। हर Single राज्य की विधानसभा अपने राज्य की भाषा को सरकारी भाषा के Reseller में स्वीकार कर सकती है। सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय की भाषा अभी भी अंग्रेजी बनी हुई है। अनुच्छेद 351 के अधीन संविधान केन्द्र (संघ) को यह आदेश देता है कि वह हिन्दी को विकसित करे और इसका प्रयोग लोकप्रिय बनाए। संविधान की Sevenवीं अनुसूची में संविधान अब 22 प्रमुख Indian Customer भाषाओं को मान्यता देता है-आसामी, बंगाली, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, मलयालम, मराठी, उड़िया, पंजाबी, नेपाली, मणिपुरी, कोंकनी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगू और उर्दू, डोगरी, सन्थाली, मैथिली आदि।

अनेक स्त्रोतों से तैयार Reseller गया संविधान

भारत का संविधान तैयार करते समय इसके निर्माताओं ने अनेक स्त्रोतों का प्रयोग Reseller। स्वतन्त्रता आन्दोलन ने उन पर धर्म-निरपेक्षता, स्वतन्त्रता तथा समानता को अपनाने के लिए प्रभाव डाला। उन्होंने भारत सरकार अधिनियम 1935 की कुछ व्यवस्थाओं का प्रयोग Reseller और विदेशी संविधान की कई विशेषताएँ को भी उन्होंने अपनाया। संसदीय प्रणाली और द्वि-सदनीय प्रणाली अपनाने के लिए उनको ब्रिटिश संविधान ने प्रभावित Reseller। अमरीकी संविधान ने उनको गणराज्यवाद, न्यायपालिका की स्वतन्त्रता, न्यायिक पुनर्निरीक्षण और अधिकार-पत्र अपनाने के पक्ष में प्रभावित Reseller। 1917 की समाजवादी क्रान्ति के बाद (भूतपूर्व) सोवियत संघ की प्रगति ने उनको अपना लक्ष्य समाजवाद निश्चित करने के लिए प्रभावित Reseller। इसी प्रकार उनको केनेडा, आस्ट्रेलिया, वेमर गणराज्य (जर्मनी) और आयरलैंड के संविधानों ने भी प्रभावित Reseller।

26 जनवरी, 1950 में लागू होने के बाद, भारत का संविधान कई स्त्रोतों से विकसित होता रहा है- संसदीय कानून, न्यायिक निर्णय, परम्पराएँ, वैज्ञानिक व्याख्याएँ और संविधान निर्माण सभा के रिकार्ड भी इसके स्रोत बने हैं। Indian Customer संविधान न तो उधारों का थैला है, न कोई आयात Reseller गया संविधान और न ही यह भारत सरकार अधिनियम 1935 का श्रंगारित और विस्तृत स्वReseller है। संविधान निर्माताओं ने विदेशी संविधानों या भारत सरकार अधिनियम 1935 के प्रभाव अधीन संवैधानिक विशेषताएँ और व्यवस्थाएँ अपनाते समय सदैव ही इनको Indian Customer Needओं और इच्छाओं अनुकूल ढाला। इन विशेषताओं के कारण ही भारत का संविधान Indian Customer वातावरण के लिए सबसे उपयुक्त तथा व्यवहार-कुशल संविधान बना गया है। यहाँ तक कि इसके विशाल आकार ने भारत का अपनी सरकार और प्रशासन को गठित करने और चलाने में शान्ति और युद्व या संकटकालीन स्थिति में प्रभावशाली ढंग से नेतृत्व Reseller है। इसकी प्रमुख विशेषताओं को इस प्रकार परिभाषित Reseller जा सकता है: प्रस्तावना, मौलिक अधिकार, निर्देशक सिद्वान्त, धर्म-निरपेक्षता, संघवाद, गणराज्यवाद, न्यायपालिका की स्वतन्त्रता और नि:सन्देह उदार संसदीय लोकतन्त्र।

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