Indian Customer दर्शन का सामान्य परिचय And विशेषताएँ

Indian Customer दर्शन का सामान्य परिचय And विशेषताएँ

By Bandey

अनुक्रम

दर्शन Word संस्कृत की दृश् धातु में ल्युट् प्रत्यय लगने से निष्पन्न होता है, जिसका Means होता है (कोशो में जानना, समझना, प्रत्यक्ष देखना, निरीक्षण करना, सम्मान सहित देखना आदि। दर्शन के द्वारा आत्मा का साक्षात्कार होता है। मनु ने भी दर्शन को सम्यक् दर्शन मानते हुए उसे आत्मसाक्षात्कार से समीकृत Reseller है- Meansात् ‘सम्यक्-दर्शन’ से युक्त होने पर कर्म मनुष्य को बन्धन में नही डालते, जिनकों यह सम्यक् दृष्टि नहीं है, वे ही संसार के जाल में फंस जाते है। Indian Customer धर्म And दर्शन दोनों का लक्ष्य मोक्ष है, दार्शनिक सिद्धांतों का मूल्यांकन जीवन की कसौटी पर ही Reseller गया है। अत: Indian Customer दर्शन धार्मिक होते हुए भी बौद्धिक है इसी कारण Indian Customer दर्शन में लोककल्याण का ध्यान रखा गया है। अत: वास्तविकता यह है कि Indian Customer दर्शनों का Only लक्ष्य Human का व्यक्तिगत मोक्ष ही नहीं अपितु आध्यात्मिक नैतिक व्यवस्था तथा सामाजिक व्यवस्था को सुचारू Reseller से चलाने के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। Indian Customer दार्शनिक क्षेत्र में जब-जब किसी सिद्धांत का अत्यधिक प्रचार हुआ है। तब-तब उसके प्रतिवादी पक्ष की भी स्थापना हुई है। परिणामस्वReseller अध्यात्मवाद, द्वैत-अद्वैत, विशिष्टाद्वेतवाद आदि भिन्न-भिन्न दार्शनिक सिद्धांतो की प्रतिक्रिया हेतु नए-नए दर्शनिक विचार सामने आए।

Indian Customer दर्शन के काल का वर्गीकरण

वैदिक काल

इस काल में ऋग्वेद्, यजुर्वेद, अथर्ववेद इत्यादि में संकेत के Reseller दार्शनिक तत्त्व कई गं्रथो जैसे ब्राह्मणग्रंथो, आरण्यकग्रंथों से होते हुए उपनिषदों तक पहुँच कर पूर्ण विकसित हुए है। गुरू-शिष्य के मध्य हुए दार्शनिक संवाद ही दार्शनिक तत्त्व के Reseller में विवेचित हुए है।


उत्तर वैदिक काल

इस काल में धीरे-धीरे वैदिक धर्म का विरोध प्रारंभ हो गया। चार्वाक, जैन, बौद्ध आदि नास्तिक दर्शनों का प्रभाव अपना पाँव जमाने लगा। अत: इस काल में ही वेद विरोधी मत उभरने लगे थे, इनमें ‘चार्वाक’, ‘जैन’, ‘बौद्ध’ आदि दर्शन प्रचलन में आए।

दर्शनकाल

इस काल के दो भेद किये गये हैं- (अ) सूत्रकाल (ब) वृत्तिकाल।

  1. सूत्रकाल – इस काल में न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग मीमांसा तथा वेदान्तदर्शनों के सूत्रों की Creation हुई। इन All सूत्रों में Single Second के सिद्धांतों की व्याख्या हुई है। उदाहरणार्थ मीमांसा का वर्णन न्याय-सूत्र (3. 2) से परिचित है तथा वेदान्त-सूत्र (3.4.28) में है। अन्य दर्शन के सूत्रों का History सांख्य-सूत्र के पंचम अध्याय में भी मिलता है। इन सूत्रो का Backup Server सामान्यत: 400 विक्रम पूर्व से 200 विक्रम पूर्व तक स्वीकार Reseller गया है।
  2. वृित्तकाल – सूत्रो के गूढ Wordावली के Meansो को समझने के लिए वृित्त या व्याख्या की Need होती है। वृित्तकार या टीकाकार या भाष्यकार अपने विचारों को नितांत मौलिकता से प्रकट करने में समर्थ हुए है। इस युग का समय 300 विक्रमी से लेकर 1500 विक्रमी तक माना जाता है।

Indian Customer दर्शन का वर्गीकरण

इसे दो वर्गो में विभाजित Reseller गया है। (अ) आस्तिक दर्शन (ब) नास्तिक दर्शनवेदों पर विश्वास करने वाला आस्तिक है। तथा वेदों की निंदा करने वाला नास्तिक है। धर्म का ज्ञान जिसको प्राप्त है। वह वेद है। आस्तिक दर्शन के अंतर्गत सामान्यत: छ: दर्शन आते है- 1. न्यायदर्शन, 2. वैशेषिकदर्शन, 3. सांख्यदर्शन, 4. योंगदर्शन, 5.मीमांसादर्शन, 6. वेदांतदर्शन। नास्तिक दर्शन के अंतर्गत तीन दर्शन आते है- 1. चार्वाकदर्शन, 2. जैनदर्शन, 3. बौद्धदर्शन।

दर्शन का क्षेत्र And सीमाएँ

Indian Customer दर्शन का क्षेत्र बहुत ही व्यापक And विस्तृत है। इसके कई उपयोगी विभाग है ये विभाग आपस में Single-Second के पूरक माने जाते है। Indian Customer दर्शन में भी पाश्चात्य दर्शन के विषय सम्मिलित होते है। Indian Customer दर्शन में मोक्ष का स्वReseller् व मोक्ष प्राप्ति के साधन को अत्यधिक मान्यता मिली है। Indian Customer दर्शन में अध्यात्म के साथ-साथ बुद्धिवाद की प्रवृित्त भी है। Indian Customer दर्शन में Single साथ कई धाराएँ पनपती रही है तथा Single-Second को प्रभावित भी करती रही है। यही कारण है कि समन्वयवाद यहां के दर्शन और संस्कृति की बडी विशेषता रही है। यहाँ दर्शन के क्षेत्रों का अध्ययन अलग-अलग न करके समन्वित Reseller से Reseller गया है। Indian Customer दर्शन में क्षेत्र Meansात् अंग है-

तत्वविज्ञान- इसके अंतर्गत भौतिकवादी व प्रव्यवादी का अध्ययन Reseller जाता हैं जो दार्शनिक भौतिक पदार्थ की सत्ता को स्वतंत्र मानते हैं तथा मानसिक अवस्थाओं को मात्र कल्पना या आभास मानते हैं उन्हे भौतिकवादी कहते हैं। भौतिक पदार्थो में जो प्रकृतिगत है और मनुष्य के अध्यात्म And ईश्वर संबंधीअध्ययन Reseller जाता है। प्रत्ययवादी सुख-दु:खादि मानसिक अवस्थाओं को स्वतंत्र सत्ता के Reseller में स्वीकारते है और भौतिक पदार्थो को केवल प्रतीतिमात्र Meansात् Single कल्पना के Reseller में स्वीकारते है।

प्रमाणविज्ञान या ज्ञानशास्त्र- इसके अंतर्गत Humanीय ज्ञान की प्रकृति का अध्ययन Reseller जाता है। यहाँ पर Human यथार्थ ज्ञान को ग्रहण किस प्रकार से करता है, वह कहाँ तक ज्ञान को ग्रहण करने में सक्षम है, ज्ञान का विकास किस प्रकार होता है? इत्यादि तथ्यों पर अध्ययन Reseller जाता है। वास्तव में All दर्शनों का प्रमाण विचार भिन्न-भिन्न प्रकार का होता है। यह Human की जिज्ञासा And बुद्धि की कसौटी पर होता है। जैसे कि सांख्य-दर्शन में परोक्ष ज्ञान की प्रधानता होने के कारण चित्तवृित्त ही प्रमाण है। अत: चित्त की All वृित्तयों से प्रमाण स्वीकृत किए गयें है। प्रमाण से ही वास्तविक स्थिति को समझा जा सकता है व निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। वास्तव में देखा जाय तो दर्शन ही नही अपितु जगत् भी प्रमाण पर आधारित है।

तर्कविज्ञान- इसके अंतर्गत Human के व्यावहारिक पक्ष पर अत्यधिक बल दिया जाता है Meansात् इसका उपयोग Human ज्ञान की व्यावहारिक प्रक्रिया की विवेचना करने में Reseller जाता है। तर्क के विशिष्टि नियम सत्य व प्रमाण के आधार पर सिद्ध होते हैं। तर्कविज्ञान के माध्यम से Human सामान्य से विशिष्ट सिद्धांतों व दृष्टांतों का अध्ययन कर सामान्य सिद्धांतों तक पहुँचता भी है। तर्क के माध्यम से शंका का समाधान होता है व मन में उठी जिज्ञासाओं की शांति भी होती है।

आचारविज्ञान या आचारशास्त्र- इस विज्ञान के अंतर्गत Human को सुखी कैसे होना है? तथा सुख कहाँ से प्राप्त हो? इन सबका ज्ञान होता है। यह Humanमात्र के कल्याण का विषय है। इस विज्ञान में ही कर्त्त्ाव्याकर्त्त्ाव्य का निर्णय तथा Humanों के लक्ष्य कानिर्धारण Reseller जाता है। संक्षेप में हम यह कहते हैं कि इस विभाग के अंतर्गत आचार या कर्त्तव्य की Meansात् जिज्ञासा होती है। अत: यहाँ Humanीय कर्मो व क्रियाकलापों का अध्ययन Reseller जाता है।

सौंदर्यविज्ञान या सौंदर्यमीमांसा- इस विज्ञान के अंतर्गत सुंदरता का अध्ययन Reseller जाता है। यहाँ पर सौंदर्य का निणय तथा व्यावहारिक सौंदर्य का वर्ण प्राप्त होता है। किसी वस्तु को सुन्दर कैसे बनाया जाय। किसी वस्तु को सुन्दर बनाने का क्या कारण है? सुंदरता की वास्तविक व साित्त्वक स्वReseller की व्याख्या का वर्णन भी इसी विज्ञान में होता है। अत: ये सौंदर्य निर्णय की प्रक्रिया है। यह व्यवहारिक सौंदर्य की व्याख्या भी प्राप्त होती है जैसे सुंदरता Meansात् सौंदर्य को कला के Reseller में परिवर्तित करना उसकला का वर्णन करना आदि। स्मणीय तथा चित्रणीय वस्तु तथा चित्र का कौन-सा सम्बन्ध होता है? कलाकार में प्रक्रति, कल्पना, स्मृति आदि कौन-कौन से गुणों की सत्त्ाा होने से सामान्य वस्तु कला के Reseller में परिवर्तित हो जाती है? इन सबका निर्णय तथा वर्णन इसी विभाग के अंतर्गत प्राप्त होता है।

मनोविज्ञान- इसके अंतर्गत Human मन का वैज्ञानिक विश्लेषण तथा मन के विभिन्न आयामों का वर्णन प्राप्त होता है। मानसिक स्थिरता के लिए मनोविज्ञान को described Reseller जाता है। मनोविज्ञान की Need मानसिक स्थिरता व मानसिक शांति के लिए होती है। प्रत्येक दर्शन का अपना Single विशिष्ट मनोविज्ञान होता है जो Human जीवन में विशिष्टता को अभिव्यक्त करता है। आधुनिक युग में मनोविज्ञान अत्याधिक प्रचलित है। Indian Customer दर्श्न में मनोविज्ञान पर पृथक् गं्रथ नहीं लिखे गये है। मन की चंचलता व Singleाग्रता से ही यह सृष्टि समाहित रहती है। मनोविज्ञान का विश्लेषण भी ज्ञान के माध्यम से ही सम्भव होता है। मन शरीर में तो होता ही है पर दर्शन में इसे किसी पदार्थ के Reseller में नही माना गया है। मन तथा मस्तिष्क की साधारण तथा असाधारण (विकृत) अवस्था का वर्णन मनोविज्ञान में होता है। प्रयोगशालाओं में कई प्रयोगों 34 द्वारा मानािसक अवस्थाओं का अध्ययन Reseller जाता है। फ्रायड ने भी मानसिक विश्लेषणवाद से इस विभाग में नवीन कार्य की शुरूआत कर दी है।

Indian Customer दर्शन की उपयोगिता

Indian Customer दर्शन का उपयोग ‘जीवन के उस मार्ग’ को खोजना, जो सत्, प्रकाश और अमरत्व दिलवा सके- Indian Customer दर्शन की प्रत्येक शाखा में भी यही विषय वस्तु महत्वपूर्ण है। बुद्ध के दर्शन, का वास्तविक स्वReseller Meansात् लक्ष्य निर्वाह प्राप्त करना है। जैन-दर्शन का लक्ष्य भी सर्व कर्म का नाश करके मोक्ष्ज्ञ प्राप्त करना है। न्याय: वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा तथा वेदांत All आस्तिक दर्शनों का परम लक्ष्य भी मोक्ष ही है। अत: Indian Customer दर्शन मोक्ष प्राप्ति के साधन के लिए Single सर्वश्रेष्ठ महत्व का स्थान रखते हैं।

मोक्ष प्राप्त करना ही दर्शन का प्राण है। दर्शन के अध्ययन से मनुष्य वहाँ खड़ा होता है जहाँ उसमें नकारात्मक प्रतृित्तयाँ (राग, द्वेष, ईर्ष्या, क्रोधादि) लेश मात्र भी न रहे। मनुष्य सम्पूर्ण विश्व को अपना समझकर उससे तादात्म्य स्थापित करें। दर्शन धर्म, कर्म, अध्यात्म के साथ-साथ शारीरिक, मानसिक पक्ष पर भी बल दिया गया है।

दर्शन की सबसे बड़ी उपयोगिता ‘प्रणिमात्र‘ की दु:खनिवृित्त है। प्रत्येक प्राणियों को कैसा ही दु:ख क्यों न हों? छोटें से छोटें कीट से लेकर बडे से बडे सम्राट तक प्रतिक्षण तीनों प्रकार के आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक दु:खो में से किसी न किसी दु:ख की निवृित्त का ही यत्न करते रहते है; फिर भी दु:खो से छुटकारा नही मिलता। मृगतृष्णा के सदृश जिन विषयों के पीछे मनुष्य सुख समझकर दौडता है, प्राप्त होने पर वे दु:ख ही सिद्ध होते है। तत्वज्ञानियों के लिए चार प्रश्न उपस्थित होते है-

  1. हेय- दु:ख का वास्तविक स्वReseller क्या है जो ‘हेय’ Meansात् त्याज्य है?
  2. हेयहेतु-दु:ख कहाँ से उत्पन्न होता है, इसका वास्तविक कारण क्या है, जो ‘हेय’ Meansात् त्याज्य दु:ख का वास्तविक ‘हेतु’ है?
  3. हान- दु:ख का मितान्त अभाव क्या है Meansात् ‘हान’ किस अवस्था का नाम है?
  4. हानोपाय- हानोपाय Meansात् नितान्त दु:खनिवृित्त का साधन क्या है?

इन दु:खो की निवृित्त के लिए मुख्य तीन बातों पर ध्यान देना आवश्यक है-

दु:ख किसको होता है? आत्मा, पुरूष (जीव) किसे? जिसको दु:ख होता है, उसका वास्तविक स्वReseller क्या है? यदि उसका दु:ख स्वाभाविक धर्म होता तो वह उससे बचने का प्रयत्न ही न करता Meansात् ऐसा तत्त्व जिसे दु:ख व जड़ता का कोई प्रभाव नहीं पड़ता जिसे पूर्ण ज्ञान हो Meansात् चेतनतत्त्व (पुरूष) जिसे आत्मा के यथार्थ Reseller का साक्षात्कार हो मुका हो- ‘स्वResellerस्थिति’ से दु:ख का नितांत अभाव हो जाता है।

जिसका धर्म दु:ख है, जहाँ से दु:ख की उत्पित्त होती है जो कि चेतनतत्त्व (पुरूष) से विपरीत धर्मवाला हो वह जड़तत्त्व (प्रकृति) है। इसका यथार्थ Reseller समझने से हेय व हेयहेतु वाले प्रश्न सुलझ जाते है। दु:ख इसी जड़तत्त्व का स्वाभाविक गुण है न कि आत्मा का। अविवेकपूर्ण संयोग ही ‘हेय’ Meansात् त्याज्य दु:ख का वास्तविक स्वReseller है और चेतन तथा जड़तत्त्व का अविवेक Meansात् मिथ्या ज्ञान या अविद्या ‘हेयहेतु’ Meansात् व्याज्य दु:ख का कारण हे। चेतन और जड़तत्त्व का विवेकपूर्ण ज्ञान ‘हानोपाय’ दु:खीनिवृित्त का मुख्य साधन है।

Single चेतनतत्व विशेष Meansात् परमात्मा (ईश्वर, ब्रह्म)- इन दोनों जड़तत्त्व व चेतनत्व को मानने के साथ-साथ Single Third तत्व को भी मानना आवश्यक हो जाता है, जो कि जडतत्त्व के विपरीत हो तथा चेतनतत्त्व के सर्वांश अनुकूल होता है। यह पूर्ण ज्ञान वाला, सर्वज्ञ, सर्वव्यापक व सर्वशक्तिमान् होता है। यहाँ पर आत्मा ही अंतिक ध्येय है, जो ज्ञान का पूर्ण भण्डार हो, जहाँ से ज्ञान पाकर आत्मा जड़-चेतन का विवेक प्राप्त कर सके और अविद्या के बन्धनों को तोडकर ‘हेय’ दु:ख से सर्वथा मुक्ति पा सके। इस तर्क के द्वारा हमें Third व Fourth प्रश्न का उत्तर मिलता है और ‘हान’ व ‘हानोपाय’ हो सकता है।

वास्तव में प्रत्येक मनुष्य किसी न किसी दर्शन से प्रभावित होकर अपने आचरण की शुद्धि व विशिष्टता को अभिव्यक्त करता है। मनुष्य की उस दर्शन के According जिनसे वह प्रभावित होता है वैसी ही गतिविधियों व कार्य-विधानों की आधारशिला को रखते हुए वैसी ही स्वाभाविक प्रवृित्त्ायों के वशीभूत होकर जीवन के प्रत्येक संघर्ष, अनुष्ठान में अपनी विचारशक्ति का प्रयोग करता है। जैसे-जैसे दर्शन में विविध आयाम होते हैं वैसे-वैसे Human जीवन में उस दर्शन के According विविध रंग भी होते है जो Human जीवन के सिद्धांत व रूचि का परिचय देते है।

प्रत्येक मनुष्य का Single अस्तित्त्व होता है अपने अस्तित्त्व की रक्षा का प्रयास प्रत्येक मनुष्य अपनी स्वाभाविक प्रवृित्तयों के According करता है। परन्तु यही अस्तित्त्व की रक्षा दर्शन के According की जाय तब मृत्योपरांत भी Human अस्तित्त्व बना रहेगा जिसे अमरता कहते है, जो अदृश्य होकर भी दृश्य से अधिक महत्वपूर्ण होता है, जो युगों-युगों तक All के हृदय, विचारो, तर्को बुद्धि आदि में जीवित रहता है अत: यह कथन उचित ही है कि मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो, अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो, मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो।

मनुष्य का स्वभाव है कि वह अन्य जीवधारियों की तरह मात्र ‘आहानिद्राभयमैथुन’ जैसी नैसर्गिक प्रवृित्तयों का समाधान करके ही संतुष्ट नही होता अपितु वह बुद्धि व विवेक से कार्य करता है। जीवन में जैसे विविध रंग है वैसे दर्शन में भी विविध आयाम है। जीवन-पद्धति को निश्चित कर उसी के अनुकूल आचरण करना यहीं दर्शन की सबसे बड़ी उपयोगिता है। Indian Customer दर्शन की उपयोगिता कर्म सिद्धांत को मानती है कर्म के सिद्धांत के According धर्माधर्म आदि कर्मफल संस्कार के Reseller में सदैव Windows Hosting रहते हैं और हमारे जीवन की घटनाओ को परिचालित करते है। दर्शन की उपयोगिता मात्र जिज्ञासा ही नहीं अपितु आध्यात्मिक संतोष प्राप्तकरने की भी है। अत: इसी खोज में All Indian Customer दर्शन ‘आत्म-दर्शन’ ‘आत्म-साक्षात्कार’ की ओर मुड़ते हैं। यही सत्य-दर्शन है जिससे अज्ञान मिटता है और अज्ञान मिट जाने पर ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। Indian Customer दर्शन मात्र सिद्धांत नहीं है, उसका जीवन में भी पूर्ण उपयोग है। यह Human को कर्मठता प्रदान तो करता ही है साथ ही इसमें Human की विचारशक्ति भी दृढ़ होती है व श्रद्धापूर्वक जीवन व्यतीत होता है।

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