बाजार विभक्तिकरण क्या है ?

भूमण्डलीकरण के वर्तमान दौर में सम्पूर्ण विश्व Single बड़ा बाजार बन गया है। पूरे विश्व में विभिन्न प्रकार के उपभोक्ता रहते है जिनमें आयु, आय, लिंग, शिक्षा, व्यवसाय And पैशा आदि के आधार पर अनेक अन्तर है। किसी भी संस्था के लिए यह लगभग असम्भव है कि वह इन All प्रकार के ग्राहको पर ध्यान केन्द्रित कर सके। अत: Single संस्था कुछ विशेष प्रकार के बाजारों And ग्राहकों का चयन कर लेती है और उन्ही पर अपना पूरा ध्यान केन्द्रित कर लेती है इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को बाजार विभक्तिकरण का नाम दे सकते है। उदाहरण के लिए Single संस्था सम्पूर्ण भारत में अपना माल नहीं बेच सकती है तो वह संस्था राजस्थान पर अपना ध्यान केन्द्रित कर सकती है। राजस्थान Single बड़ा प्रदेश है इसे भी बाजार के हिसाब से चार भागों में विभाजित कर किसी Single भाग पर ध्यान केन्द्रित Reseller जा सकता है।

बाजार विभक्तिकरण का Means And परिभाषा

सामान्यतया बाजार विभक्तिकरण का आशय Single बड़े बाजार को कर्इ छोटे-छोटे भागों में बांटना है ताकि प्रत्येक भाग के लिए Single समुचित विपणन कार्यक्रम And व्यूहCreation बनार्इ जा सके। इसके लिए बाजार के ग्राहकों की विशेषताओं, Needओं, व्यवहार आदि के According समूह बनाये जाते है तथा प्रत्येक समूह की विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए अलग विपणन कार्यक्रम And व्यूहCreation तैयार की जाती है। बाजार विभक्तिकरण की अनेक विद्वानों द्वारा परिभाषाएँ दी गर्इ
:-

  1. फिलिप कोटलर के Wordों में –”बाजार विभक्तिकरण Single बाजार के सामान प्रकार के ग्राहको को उप समूहों में उपविभाजित करना है ताकि किसी उप समूह का काल्पनिक Reseller से ऐसे लक्ष्य बाजार के Reseller में चयन Reseller जा सके जिसमें विशिष्ट विपणन मिश्रण के साथ प्रवेश Reseller जा सके।”
  2. स्टेन्टन के According – “बाजार विभक्तिकरण किसी उत्पाद के सम्पूर्ण विजातीय बाजार को अनेक उप-बाजार या खण्डों में विभाजित करने की वह प्रक्रिया है ताकि प्रत्येक खण्ड के All महत्वपूर्ण पहलुओं में समजातीयता हो जाय”। 
  3. कण्डिफ And स्टिल – “उपभोक्ताओं का उनकी आय, आयु, नगरीकरण की स्थिति, जाति या जातीय वर्गीकरण, भौगोलिक स्थिति या शिक्षा आदि विशेषताओं के According समूहीकरण करना ही बाजार विभक्तिकरण है।” 
  4. अमेरिकन विपणन संघ के According – “बाजार विभक्तिकरण असमान या विजातीय बाजार को ऐसे छोटे ग्राहक समूहों में विभाजित करना है जिनमें कुछ ऐसी Single समान विशेषताएँ पार्इ जाती हैं जिन्हें उस संस्था द्वारा सन्तुष्ट Reseller जा सकता है।”

निष्कर्ष Reseller में यह कहा जा सकता है कि बाजार विभक्तिकरण के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के ग्राहकों को उनकी Needओं के According समूहों में विभाजित Reseller जाता है ताकि समान विशेषताओं वाले ग्राहकों के लिए Single समान विपणन कार्यक्रम तैयार कर विपणन कार्य में सफलता प्राप्त की जा सके।

बाजार विभक्तिकरण की विशेषताएँ

  1. बाजार विभक्तिकरण Single नवीन अवधारणा है। 
  2. विभिन्न प्रकार के ग्राहकों की Needओं को ध्यान में रखते हुए विभिन्न आकृति And किस्म की वस्तुओं का उत्पादन Reseller जाता है। 
  3. बाजार विभक्तिकरण किसी बाजार को छोटे-छोटे भागों में बांटने की रीति-नीति है। 
  4. बाजार विभक्तिकरण विभिन्न आधारों पर Reseller जाता है, जैसे – ग्राहकों की आयु, आय, शिक्षा, लिंग आदि।
  5. बाजार विभक्तिकरण में वर्तमान And भावी ग्राहकों को उनकी Needओं, रूचियों And पसन्द के आधार पर समजातीय समूहों में विभाजित Reseller जाता है। 
  6. बाजार विभक्तिकरण Single प्रक्रिया है जिसके द्वारा बाजार को विभिन्न भागों में बांटा जाता है।

बाजार विभक्तिकरण की मान्यताएँ

  1. बाजार विभक्तिकरण की First मान्यता यह है कि बाजार में विभिन्न प्रकार के या विषम ग्राहक विद्यमान होते है।
  2. इन विभिन्न प्रकार के ग्राहकों के पृथक-पृथक समूह बनाये जा सकते है। 
  3. विभिन्न प्रकार के अलग-अलग ग्राहकों के लिए पृथक-पृथक विपणन मिश्रण And व्यूह Creationओं का निर्माण Reseller जा सकता है।

बाजार विभक्तिकरण के उदेश्य

  1. समान प्रकार के ग्राहक जिनकी विशेषताएँ And Needएँ Single प्रकार की है, समूह बनाना।
  2.  प्रत्येक समूह के ग्राहक की रूचि, पसन्द And Need की जानकारी करना। 
  3. संस्था के लिए सर्वश्रेष्ठ ग्राहक वर्ग की जानकारी करना। 
  4. संभावित ग्राहकों को वास्तविकता में बदलना। 
  5. संस्था की विपणन नीतियों, कार्यक्रमों को ग्राहकोन्मुखी बनाना। 
  6. असन्तुष्ट ग्राहक वर्ग की जानकारी कर उन्हें सन्तुष्ट करना। 
  7. प्रत्येक बाजार खण्ड के लिए अलग विपणन व्यूहCreation तैयार करना। 
  8. विपणन अवधारणा को व्यवहार में लाना। 
  9. सर्वोतम बाजार क्षैत्रों का चयन करना And उनका विकास करना।

बाजार विभक्तिकरण का महत्व

बाजार विभक्तिकरण Single संस्था की कार्य प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। बाजार विभक्तिकरण से Single संस्था अच्छे उत्पाद प्रस्तुत कर सकती है तथा सर्वोतम वितरण And संचार की व्यवस्था कर सकती है। फिलिप कोटलर के According – “बाजार विभक्तिकरण से संस्था अधिक अच्छे उत्पाद या अच्छी सेवा उपलब्ध करा सकती है तथा लक्ष्य बाजार के लिए उसका समुचित मूल्य निर्धारित कर सकती है। संस्था सर्वोत्तम वितरण And संचार माध्यमों का चयन कर सकती है तथा अपने प्रतिस्पर्धियों की तस्वीर को अधिक स्पष्ट Reseller से देख सकती है।” बाजार विभक्तिकरण के महत्व को इन बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट Reseller में समझा जा सकता है :-

  1. बाजार खण्डों का तुलनात्मक अध्ययन – बाजार विभक्तिकरण द्वारा विपणन प्रबन्धन सर्वोत्तम विपणन अवसरों की जानकारी कर सकता है ऐसा बाजार खण्डों के तुलनात्मक अध्ययन द्वारा Reseller जा सकता है। जिस बाजार खण्ड में तुलनात्मक Reseller से अच्छे विपणन अवसर विद्यमान होते हैं, उस खण्ड में विपणन प्रबन्धक अपना विपणन कार्य प्रभावी तरीके से कर सकता है। 
  2. सर्वोत्तम लक्ष्य बाजार का चयन – जब बाजार खण्डों का तुलनात्मक अध्ययन कर लिया जाता है तो विपणनकर्त्ता के सामने All बाजारों की स्थिति स्पष्ट Reseller से आ जाती है ओर इनमें से सर्वोत्तम लक्ष्य बाजार का चयन कोर्इ कठिन कार्य नहीं होता है। इस प्रकार Single विपणन प्रबन्धक सर्वोत्तम लक्ष्य बाजार का चयन कर उस बाजार के अनुReseller अपना विपणन कार्यक्रम तैयार कर सकता है। 
  3. ग्राहकों की Need And रूचि की जानकारी – बाजार विभक्तिकरण द्वारा ग्राहकों की पसन्द And Need की जानकारी आसानी से हो जाती है। विपणनकर्त्ता ग्राहकों की पसंद And Need को ध्यान में रखते हुए विपणन कार्यक्रम And व्यूह Creationओं का निर्धारण कर सकता है। ग्राहकों की Need And रूचि को ध्यान में रखकर बनाये गये विपणन कार्यक्रम अधिक सफल होते हैं। 
  4. मध्यस्थों के चयन में सुविधा – बाजार खण्डो का निर्धारण हो जाने के बाद मध्यस्थों के चयन में सुविधा होती है। किस बाजार खण्ड के लिए किस प्रकार के मध्यस्थ उपयुक्त रहेंगे इस बात का पता लगाकर मध्यस्थों का चयन Reseller जा सकता है। इस प्रकार बाजार विभक्तिकरण से विशेष Need वाले मध्यस्थों का चयन संभव है। 
  5. मूल्य निर्धारण में सहायक – बाजार विभक्तिकरण मूल्य निर्धारण में महत्वपूर्ण योगदान देता है। ग्राहकों की आय, जीवन-स्तर, व्यवसाय आदि के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है तथा इस जानकारी के आधार पर उत्पाद का मूल्य निर्धारण Reseller जा सकता है। उपभोक्ताओं की आय को ध्यान में रखते हुए बाजार विभक्तिकरण द्वारा विभेदकारी मूल्य निर्धारण भी Reseller जा सकता है। 
  6. लाभकारी विपणन खण्डों पर ध्यान – बाजार विभक्तिकरण के माध्यम से विपणनकर्त्ता लाभकारी And अलाभकारी विपणन खण्डों की जानकारी कर सकता है तथा उन विपणन खण्डों पर ज्यादा ध्यान दे सकता है जो उसके लिए लाभप्रद हो। इस प्रकार सम्पूर्ण विपणन प्रयास लाभकारी विपणन खण्डों पर केन्द्रित किये जा सकते हैं। 
  7. प्रतिस्र्पधा में विजय प्राप्त करना – बाजार विभक्तिकरण द्वारा प्रत्येक बाजार खण्ड में स्थित प्रतियोगी संस्था के उत्पादों के बारे में जानकारी प्राप्त हो जाती है। प्रतियोगी संस्था के उत्पाद की किस्म मूल्य, विपणन माध्यम आदि की जानकारी कर प्रभावकारी विपणन व्यूह Creationएँ बनार्इ जा सकती है जो प्रतिस्र्पधा में विजय दिलाने में सहायक होगी। 
  8. समय की मांग – बाजार विभक्तिकरण वर्तमान समय की Single मांग है क्योंकि कोर्इ भी उत्पादक सम्पूर्ण बाजार में विपणन कार्य का संचालन नहीं कर सकता है। अत: कुछ उपयुक्त बाजार खण्डों का चयन कर लिया जाता है, तथा उन बाजार खण्डों में अधिक प्रभावी तरीके से विपणन कार्यों का संचालन Reseller जा सकता है। फिलिप कोटलर के According – “कर्इ संस्थाएँ अपने विपणन प्रयासों को फैलाने की अपेक्षा उन्हें उन ग्राहकों पर केन्द्रित करना पसन्द करती है जिनको सन्तुष्ट करने की अधिक संभावना होती है।’’ विलियम जे. स्टेन्टन ने लिखा है कि अमेरिका की कर्इ बहुराष्ट्रीय संस्थाएँ जो सम्पूर्ण बाजार के All ग्राहकों में विपणन कार्य करती थी वे आज बाजार विभक्तिकरण कर छोटे-छोटे बाजार खण्डों में अपनी पहुंच बना रही है। 
  9. ग्राहक के स्तर के अनुReseller संवर्द्धनात्मक प्रयास – विभिन्न बाजार खण्डों में विभिन्न प्रकार के ग्राहक उपस्थित होते है। इन ग्राहकों की आय, आयु, जीवनस्तर, व्यवसाय And पैशा आदि में प्रयाप्त अन्तर होता है। इस अन्तर को ध्यान में रखते हुए ग्राहक के स्तर के अनुReseller संवर्द्वनात्मक प्रयास किये जा सकते हैं। विलियम जे. स्टेन्टन आदि लेखकों के According – “बाजार विभक्तिकरण के कारण विपणन भी अधिक प्रभावी हो सकता है क्योंकि संवर्द्धनात्मक सन्देश तथा उसको प्रस्तुत करने हेतु माध्यमों का चयन बाजार खण्ड को केन्द्र बिन्दु मान कर Reseller जा सकता है।”
  10. असन्तुष्ट बाजार खण्डों पर ध्यान केन्द्रित करना – बाजार विभक्तिकरण के द्वारा विपणनकर्त्ता किसी विशेष बाजार खण्ड में असन्तुष्ट ग्राहकों की जानकारी कर सकता है और यह पता लगा सकता है कि ग्राहक किन कारणों से असन्तुष्ट हैं। ग्रहको की असन्तुष्टि के कारणों का पता लगाने के बाद उनको सन्तुष्ट करने के प्रयास किये जा सकते है।

बाजार विभक्तिकरण के आधार

बाजार विभक्तिकरण विभिन्न आधारों पर Reseller जा सकता है तथा इन आधारों में समय के साथ-साथ परिवर्तन होते रहते है और बाजार विभाजन के नये आधार तैयार होते रहते है। विभिन्न विद्वानों की राय को ध्यान में रखते हुए बाजार विभक्तिकरण के आधार बताये जा सकते है :-

1. भौगोलिक आधार –

भौगोलिक आधार पर विभक्तिकरण से आशय बाजार क्षेत्र को भौगोलिक इकाइयों जैसे देश, राज्य, नगर या गाँव में विभजित करना है। भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर भी यह विभाजन Reseller जा सकता है। जैसे कि गर्म And ठण्डे प्रदेश, जलवायु, पहाड़, मैदानी इलाके, पठार आदि। भारत के विभिन्न राज्यों में जलवायु में काफी अन्तर पाया जाता है। जो स्थान समुद्र के किनारे बसे है जैसे कि मुम्बर्इ यहाँ ठण्डे पेय पदार्थ पूरे साल बेचे जा सकते हैं जबकि उत्तरी भारत के शहरों में सिर्फ ग्रीष्म ऋतु में ही ठण्डे पेय पदार्थों की मांग रहती है। ग्रामीण And शहरी बाजारों की विशेषाओं में काफी अन्तर रहता है। विपणन प्रबन्धन को इन बातों को ध्यान में रखते हुए विपणन कार्य करना चाहिए क्योंकि शहरी क्षैत्रों में जिन उत्पादों का विपणन Reseller जाता है यह जरूरी नही है कि ग्रामीण क्षैत्रो में भी उन उत्पादों की बिक्री हो।

2. जनांकिकी आधार –

जब किसी बाजार को जनसंख्याा के विभिन्न घटकों के आधार पर विभाजित Reseller जाता है तो उसे जनांकिकी आधार पर विभाजन करना कहते हैं। प्रमुख जनसंख्या सम्बंधी घटक  है

  1. आयु वर्ग – किसी उत्पाद के प्रति उपभोक्ता की पसन्दगी And नापसन्दगी उम्र के According बदलती रहती है। बचपन में जो उत्पाद पसन्द होते हैं बड़े होने पर उनका महत्व समाप्त हो जाता है। विपणन प्रबंधक को आयु वर्ग को ध्यान रखते हुए विपणन कार्य करना चाहिए।
  2. आय – Single व्यक्ति की आय उसकी क्रय करने की शक्ति को निर्धारित करती है आय के According उपभोक्ता का विभाजन उच्च आय वर्ग, मध्यम आय वर्ग तथा निम्न आय वर्ग में Reseller जा सकता है।
  3. शिक्षा – शिक्षा के आधार पर अलग अलग उपभोक्ता के वर्ग बनाये जा सकते है। उदाहरण के लिए शिक्षित, अशिक्षित And कमपढ़े लिखे व्यक्ति। 
  4. लिंग – बाजार विभक्तिकरण ग्राहकों के लिंग के आधार पर भी Reseller जा सकता है। महिलाओं And पुरूषों के लिए अलग अलग प्रकार के उत्पादों की Need होती है अत: विपणन प्रयास भी अलग-अलग प्रकार के करने की Need होती है। 
  5. व्यवसाय – बाजार में विभक्तिकरण ग्राहकों के व्यवसाय धन्धे के आधार पर भी Reseller जा सकता है। इनको पैशेवर व्यक्ति, नौकरीपेशा, व्यवसायी आदि आधारों में बांटकर इनके लिए अलग विपणन कार्यक्रम निर्धारित किये जा सकते है।
  6. जीवन-चक्र अवस्था – Single समान आयुवर्ग के व्यक्तियों की जीवन-चक्र अवस्था अलग-अलग हो सकती है। Single समान आयु वर्ग के ग्राहक कुंवारे, शादीशुदा, विधुर, तलाकशुदा आदि हो सकते है। यह भिन्नता उनकी क्रय वरीयता And उनकी Needओं में अन्तर पैदा करती है।

3. मनोवैज्ञानिक आधार –

ग्राहकों की मनोदशा या उनकी मनोवैज्ञानिक विशेषताएं ग्राहकों में अंतर उत्पन्न करती है। ग्राहक की ये विशेषताएं उनके व्यक्तिव के कारण होती है। कुछ लोग बहुत खर्चीले होते है जबकि कुछ लोग धन खर्च करना पसंद नही करते है, कुछ स्वभाव से साहसी होते है तो कुछ लोग भीरू प्रवृति के होते है। ग्राहकों की जीवन-शैली या उनके जीवन जीने का ढंग उनकी Needओं, क्रय वरीयताओं को निर्धारित करती है। अत: विपणनकर्ता जीवन-शैली के आधार पर भी उपभोक्ताओं का विभाजन करते हैं। इसके अलावा ग्राहकों का व्यक्तित्व भी उनकी पसन्द, नापसन्द And क्रय वरीयताओं का निर्धारित करता है। प्रत्येक व्यक्ति का जीवन मूल्य उसकी Needओं And क्रय वरीयताओं का निर्धारण करता है। Single व्यक्ति के अनेक जीवन मूल्य हो सकते है जैसे जीवन में आनन्द, अपनत्व, संतोष, मधुर सम्बंध बनाना, Safty की भावना आदि। ग्राहकों में विद्यमान ये All जीवन मूल्य उसकी Needओं का निर्धारण करते हैं।

4. लाभ आधार –

जब क्रेता किसी उत्पाद को इस आशा से क्रय करता है कि इस उत्पाद के प्रयोग से उसे लाभ होगा तो इसे लाभ आधार पर बाजार पर विभक्तिकरण कहेंगे। विपणन प्रबंधक को इसके आधार पर विपणन निर्णय लेने चाहिए। जैसे Single उपभोक्ता किसी विशेष ब्रान्ड की चाय के साथ दिये जाने वाले उपहार की वजह से उस ब्रान्ड को पसन्द करता है। इस प्रकार विपणन प्रबंधक को उपभोक्ता के किसी लाभ के प्रति विशेष झुकाव को ध्यान में रखते हुए विपणन कार्य करना चाहिए।

5. विपणन आधार –

विपणन आधार पर भी बाजार का विभक्तिकरण Reseller जा सकता है कुछ ग्राहक अधिक मूल्य वाले उत्पादों की और आंख उठा कर भी नही देखते जबकि कुछ ग्राहक अधिक मूल्य का ब्रान्डेड उत्पाद पसन्द खरीदना करते हैं। कुछ उपभोक्ता वस्तु की किस्म पर ज्यादा ध्यान देने वाले होते है। अत: Single उत्पादक/विपणनकर्त्ता को इन बातों का ध्यान रखते हुए विपणन प्रयास करने चाहिए ताकि उसे अधिक सफलता प्राप्त हो सके।

6. क्रय अवसर –

कुछ उपभोक्ता इस प्रकार के होते है जो विभिन्न अवसरों पर उत्पादों का क्रय करते है उदाहरण के लिए जन्मदिन, शादी की वर्षगांठ, वेलैन्टाइन्स डे, आदि अवसरो पर ही कुछ उपभोक्ता द्वारा क्रय निर्णय लिये जाते हैं। कुछ लोगों दीपावली, धनतेरस, आदि दिनों पर किसी उत्पाद को क्रय करने का निर्णय लेते है।

7. ब्रान्डनिष्ठा –

बाजार विभक्तिरण ग्राहकों की ब्रान्डनिष्ठा के आधार पर भी Reseller जा सकता है। कुछ लोग किसी विशेष ब्रान्ड के लिए पूर्ण सर्मपित होते है जबकि कुछ उपभोक्ताओं की निष्ठा बदलती रहती है। कुछ लोग ऐसे भी होते है जिनकी किसी भी ब्रान्ड के प्रति कोर्इ निष्ठा नही होती है।

प्रभावी बाजार विभक्तिकरण के आवश्यक तत्व

बाजार विभक्तिकरण All संस्थाओं द्वारा किये जा सकते है किन्तु All बाजार विभक्तिकरण प्रभावी नही हो पाते है। अत: बाजार विभक्तिकरण को प्रभावी बनाने के लिए कुछ विशेष बातों पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है जो है:-

  1. मापनयोग्य – बाजार विभक्तिरण के All घटक मापन योग्य नहीं हो सकते है लेकिन प्रभावी बाजार विभक्तिकरण के लिए घटकों का मापन योग्य होना चाहिए। उदाहरण के लिए उपभोक्ता की आय का मापन Reseller जा सकता है लेकिन उसके मनोवैज्ञानिक घटकों का मापन संभव नहीं है।
  2. बाजार खण्डों तक सुगम पहुंच – प्रभावी बाजार विभक्तिकरण के लिए आवश्यक है कि विपणनकर्ता न्यूनतम खर्च पर बाजार खण्डों तक पहुंच सके। वितरण माध्यमों तथा विज्ञापन And विक्रय संवर्द्धन के साधनों की पहुंच भी बाजार खण्डो तक सुगमता पूर्वक हो जानी चाहिए। 
  3. बाजार खण्डों का उचित आकार – प्रत्येक बाजार खण्ड का आकार न तो इतना बड़ा हो कि उस पर ध्यान न दिया जा सके न इतना छोटा होना चाहिए कि विपणन प्रयास संस्था के लिए लाभ का सौदा न हो। अत: बाजार खण्डों का आकार उचित होना चाहिए। 
  4. विभेद योग्यता – बाजार खण्ड में विभेद योग्यता होनी चाहिए Meansात बाजार का प्रत्येक खण्ड Second खण्ड से अलग And पहचानने योग्य होना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होगा तो बाजार विभक्तिकरण प्रभावशील नहीं हो पायेगे तथा बाजार विभक्तिकरण का कोर्इ Means भी नहीं रहेगा। 
  5. व्यवहारिक – बाजार खण्डों का व्यवहारिक होना इस बात पर निर्भर करता है कि बाजार खण्डों के लिए विपणन कार्यक्रम बनाना और उसकों क्रियान्वित करना संभव होना चाहिए। यदि किसी कारणवश विपणन कार्यक्रम को क्रियान्वित करना संभव नही हो तो बाजार विभक्तिकरण का कोर्इ Means नही होगा। 
  6. बाजार खण्डों का स्थायी अस्तित्व – बाजार खण्ड ऐसे होने चाहिए जो स्थायी हो यदि बाजार खण्ड अल्पकालीन है तो इनके लिए बनाया गया विपणन कार्यक्रम भी अल्पकालिक होने के कारण अधिक खर्चीला होगा। अत: बाजार खण्ड ऐसे होने चाहिए कि उनके लिए लम्बे समय तक प्रभावी रहने वाला विपणन कार्यक्रम बनाया जा सके। 
  7. मितव्ययी – विपणन प्रबंधकों द्वारा ऐसे बाजार खण्डों का निर्माण Reseller जाना चाहिए जिनमें विपणन कार्यक्रम मितव्ययतापूर्ण तरीके से संचालित Reseller जा सके। बाजार खण्डों का निर्माण करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि बाजार खण्ड न बहुत बडे़ हो और न ही बहुत छोटे हो अन्यथा बाजार खण्ड का मितव्ययतापूर्ण तरीके से संचालन संभव नहीं होगा।
  8. लाभदायी – बाजार खण्डो का बहुत बड़ा होना या छोटा होना इतना महत्व नही रखता है जितना कि बाजार खण्डों का लाभदायी होना। अत: विपणन प्रबंधक द्वारा इस प्रकार के बाजार खण्डो का निर्माण Reseller जाना चाहिए जो लाभदायी हो।

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