प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के उपाय

प्रतिरोधक क्षमता का Means –

शरीर में ऐसी संचालित प्रणाली है जो बिना किसी चिकित्सक की सहायता के रोगो से लड़ने के लिए हमेशा तत्पर रहे उसको शरीर की प्रतिरोधक क्षमता के Reseller में जाना जाता है। इसे प्रतिरक्षा प्रणाली भी कहा जाता है । इसी को शरीर की स्वंयम् की हीलिंग तथा मुरम्मत करने वाली शक्ति के नाम से पुकारते है। क्योकि शरीर को हानि पहुंचाने वाले मुख्य तत्वों से रक्षा एवम् बचाव हेतु सक्रीय रहती है। क्षीण कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता व्यक्ति को दीन-हीन एवम् आरोग्य विहीन कर देती है। इस लिए मनुष्य के आरोग्य एवम् दीर्घ आयु में प्रतिरोधक क्षमता पर्यावरण तथा विरासत में मिलने वाले जीशं पर अत्यधिक निर्भर करता है क्योकि परमात्मा ने प्रकृति से सृजित इस शरीर को इस प्रकार बनाया है कि प्रतिदिन व्यायाम भ्रमण अच्छी नींद व सन्तुलित भोजन जीविका उपार्जन तथा ध्यान व राम नाम करना आवश्यक है। कोशिकाओं के सूक्ष्म आश्विक जैनेटिक धरातल पर होने वाले परिवर्तन के सम्बन्ध में बहुत कुछ जानने के पश्चात भी अभी बहुत कुछ जानना बाकी है। बुढ़ापा तथा पैतृक रोगो में प्रतिरोधक क्षमता का सुदृढ़ अथवा कमजोर होना Single महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। प्रतिरोधक क्षमता को विभिन्न प्रकार के कीटाणु प्रभावित करते है। हमारे शरीर में लगभग 1000 खरब बैक्टीरिया पाये जाते है। जिनमें से कुछ बीमारी पैदा करने वाले तथा अन्य हमारे शरीर को विभिन्न प्रकार की सहायता के साथ विटामिन आदि के निर्माण में सहायता करते है। Single शोध के According कोर्इ भी व्यक्ति कितना ही साफ सुधरा व स्नान करता रहें फिर भी बैक्टीरिया उसके शरीर में पाये जाते है। जुकाम, खासी, दस्त, एलर्जी आदि शरीर की रक्षा प्रणाली एवम् प्रबल प्रतिरोधक क्षमता को प्रदर्शित करती है। विश्व में विभिन्न सौध अध्ययनों के विश्लेषण से यह सिद्ध हो चुका है कि तीव्र रोग एवम् एलर्जी आदि शरीर द्वारा स्वत: स्वस्थ होने का Single प्राकृतिक प्रयास होता है। परन्तु इनको रोक देने शरीर में विजातीय द्रव्य Singleत्र हो जाते है जिनसें विभिन्न प्रकार के रोग जीर्ण रोग में परिवर्तित होकर हमारे शरीर को रोगी बना देते है। प्रतिरोधक क्षमता जितनी शक्तिशाली होगी उतनी ही रोगों से अधिक बचाव करेगी। शरीर में Singleत्र हुये विजातीय द्रव्यों एवम् बाहरी हानिकारक तत्वों से निपटने के लिए कुछ प्रक्रियायें शरीर में होती है। जिनका संचालन का कार्य जो शक्ति करती है। उसे प्रतिरोधक क्षमता कहते है। जो गलत जीवनशैली के कारण कमजोर हो जाती है तथा सन्तुलित आहार नियमित योग, व्यायाम, अच्छी नींद सकारात्मक सोच शुद्ध पर्यावरण आदि से यह प्रबल हो जाती है। प्राकृतिक चिकित्सा की उपचार करने की मुख्य प्रणाली का आधार रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा देना होता है। जिससे रोगो के मूल घटक विजातीय द्रव्य को शरीर से बाहर निकालकर शरीर को रोग मुक्त करके आरोग्य प्राप्त होता है। इसका अन्त्र इस बात से समझा जा सकता है कि कुछ लोग 14-15 घण्टे काम करके भी चुस्त व तरोताजा नजर आत है।

वहीं पर कुछ लोग 4-5 घण्टे काम करते ही थके एवम् मुरझायें दिखार्इ पड़ते है। यह अन्त्र दिखार्इ पढ़ने के पीछे प्रतिरोधक क्षमता का सुदृढ़ एवम् कमजोर होना कहलाता है। प्रचलित मतों के According शरीर की कुछ चया पचाया से सम्बन्धित क्रियाओं के परिणाम स्वReseller शरीर में जो ऊष्णता पैदा होती है वहीं Human शरीर को प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करती है। आइयें इसी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने हेतु कुछ सूत्र एवम् उपायों की Discussion आगे करते है।

प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के उपाय –

प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए हमें दैनिक जीवन शैली को सुदृढ़ बनान होगा जिसके लिए निम्न कुछ बिन्दुओं पर ध्यान देकर अपने को उसके अनुReseller ढालने की Need है।

1. जीवन शैली द्वारा

  1. प्रात: काल Ultra siteोदय से First उठना ।
  2. नियमित आहार व्यायाम व योगासन से दिमागे में वीटा ‘‘एर्डोफिन’’ तथा खून में पायरोजिन का रिसाव बढ़ जाता है इसलिए श्वेत रक्त कोशिकाओं की संख्या भी बढ़ जाती है। इससे शरीर में आक्सीजन की मात्रा अधिक हो जाती है। जिससे कैलोरी घटाने में सहायता मिलती है। 
  3. आहार :- प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में हमे आहार के द्वारा आवला, नीबू, सन्तरा, टमाटर, ताजे फल व सब्जियां अन्कुरित अनाज शुद्ध व ताजा भोजन ही ग्रहण करना चाहिए इनसे हमें विटामिन सी, बी, बी-1, बी-6 एवम् बी-12 इत्यादि प्राप्त होते है जिनसे शरीर में ‘एन्टीवॉडीज’ के निर्माण की प्रक्रिया बढ़ जाती है। जिससे खून का निर्माण होता रहता है। विटामिन बी-2 जो सौसन, दिमाग, गुर्दे, दिल व लीवर को प्रभावित करता है। खान-पान से ही प्रभावित होता है। इसके लिए छिलके वाली दाल, चना, गेहूॅ, मूंगफली, दूध, दही, छाछ, तिल, आलू, प्याज, चुकन्दर, लैहसुन तथा पत्ते वाली हरी सब्जियों का सेवन अधिक करना चाहिए। विटामिन बी-6 के लिए भी उपरोक्त का सेवन करना आवश्यक है। विटामिन बी-12 हेतु उपरोक्त खान-पान के अतिरिक्त प्रदूषण रहित झरनों कुओं से भी इसमें लाभ मिलता है।
  4. अच्छी गहरी नींद :- प्राकृतिक जीवन शैली हेतु गहरी नींद द्वारा नर्इ ऊर्जा आरोग्य एवम् शक्ति प्राप्त होती है। सोते समय दिमाग की संचार प्रणाली को ठीक रखने हेतु All श्राव व न्यूरॉग इत्यादि सन्तुलित होकर हमें अच्छी नींद लेने में सहायक होते है। नींद के लिए सेरोटोनिन का स्राव बढ़ना आवश्यक होता है। नींद के द्वारा ही शरीर की थकान मिटकर शरीर में नर्इ ऊर्जा का संचार होता है। हमारे शरीर की थकी हुर्इ मांसपेशियां शरीर के विभिन्न अंग तथा स्नायु कोशिकायें ऊर्जावान होती है, नींद हमारे शरीर के लिए संजीवनी का काम करती है। 
  5. भरपूर जल सेवन :- प्रतिदिन 10 से 15 गिलास पानी जिसमें सवेरे खाली पेट शौच से First Single या दो गिलास पानी-पीना शरीर के लिए लाभदायक है। इससे अमाशय की धुलार्इ हो जाती है। पाचन क्रिया सुधरती है। आंतो की गति नियमित व नियंत्रित हो जाने से पेट में कब्ज इत्यादि नहीं होती। इससे खून में पानी की मात्रा ठीक रहने से खून पतला रहता है। पसीना आता है, पेशाब बढ़ता है तथा इन सबके बढ़ने से शरीर में Singleत्र विजातीय पदार्थ बाहर निकलते रहते है और विजातीय पदार्थ यदि शरीर में नहीं होंगे तो अवश्य ही शरीर में प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होगी। 
  6. वातावरण एवम् पर्यावरण :- हम जहां पर रहते है, काम करते है अथवा प्रात: कालीन भ्रमण, व्यायाम इत्यादि जहां करते है वहां का वातावरण प्रदूषण, धूल, धुन्ध इत्यादि से मुक्त होना आवश्यक है क्योकि प्रदूषित वातावरण अथवा कार्बन डार्इ आक्साइड एवम् हाइड्रो कार्बन, ठार इत्यादि से जहरीले रसायन निकलकर हमारे रक्त में न धुल सकें इसलिए स्वच्छ वातावरण आवश्यक हो जाता है। 
  7. ध्यान एवम प्रार्थना :- आज की तनाव भरी जीवन शैली में प्राणायाम एवम् ध्यान की Need बहुत अधिक है। हम दिन भर के तनाव से अथवा किसी कारण व क्रोध इत्यादि से नकारात्मक सोच से तथा अनावश्यक चिन्ता से शरीर में कैल्शियम, मैगनीशियम, फौलिक एसिड, विटामिन्स इत्यादि को कम कर देते है तथा कोलोस्ट्रोल इत्यादि बढ़ जाता है। ध्यान के प्रभाव से शरीर में त्वचा, मस्तिश्क तन तथा मन में उथल पुथल का सन्तुलन तथा साम-जस स्थापित होता है। इसके द्वारा अनिन्द्रा उच्च रक्त चाप एल0डी0एल, वी0एल0डी0एल0 तथा खराब कोलोस्ट्रॉल की मात्रा कम हो जाती है। ध्यान अथवा चिन्तन में गायत्री मन्त्र का जाप ऊँ का जाप अथवा प्राणायाम के द्वारा विचार मन और चित्त में शान्ति पैदा होती है।
  8. नशीले पदार्थो से दूरी :- किसी भी प्रकार के मादक एवम् नशीले पदार्थो का सेवन हमें बिल्कुल नहीं करना चाहिए। शराब, तम्बाकू व अन्य नशीले पदार्थ शरीर में जाकर हमारे विभिन्न अंगो पर बुरा प्रभाव डालते है। इसलिए प्रतिरोधक क्षमता पर भी प्रभाव पड़ता है। 
  9. प्रसन्नता एवम् मुस्कुराहट :- मुस्कुराहट के द्वारा रक्त रासायन अमृत में बन जाता है। साथ ही शरीर के अंग प्रतिअंग भी प्रफुल्लित होते जाते है। इसलिए प्राय: उठते ही मुस्कुराहट के साथ दिन की शुरूआत करें, इसी मुस्कुराहट से तनाव घट जाता है। दुर्भावनायें मिट जाती है तथा घृणा, कुन्ठा, क्रोध, र्इश्र्या के स्थान पर प्रेम, करूणा, त्याग व सेवा का भाव जागृत होता है। जिससे चित्त में प्रसन्नता के साथ-साथ सकारात्मक विचार धारा पनपती है। मुस्कुराहट Single ऐसा धन है जो जीवन भर बाटने के बाद भी कभी घटता नहीं है। अपितु मानसिक हताशा एवम् निराशा को आशा एवम् उत्साह में बदल देता है। 
  10. अहिंसा एवम् निर्भयता का पालन :- भय एवम् हिंसा की प्रवृत्ति से हमारे विचार प्रभावित होते है। जो हमारी सोच को नकारात्मक एवम् करूणा रहित बना देते है। जिससे उनमाद पैदा होने का खतरा रहता है। अत: इस तरह के रोग से बचाव हेतु तथा प्रतिरक्षा प्रणाली को सुदृढ़ बनाने हेतु इसका पालन करना आवश्यक है।

2. योग एवम् चक्रों द्वारा-

प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में योग के आठो अंगो का पालन करना Meansात् यम नियम, आसन, प्राणायाम, प्रतिहार, धारणा, ध्यान, समाधि All का ज्ञान एवम् व्यवहारिक जीवन में क्रियानवयन आवश्यक है। साथ ही हमारे शरीर में स्थित Sevenो चक्रो पर विशेष ध्यान देने की Need है। ये चक्र निम्न प्रकार है।

  1. मूलाधार चक्र :- रक्त वर्ण के चार पंखुडी वाले इस चक्र के सन्तुलन से हमें बुरी वृत्ति एवम् वायु रोगों में लाभ के साथ-साथ आरोग्य एवम् आनन्द की अनुभूति होती है तथा इसी चक्र द्वारा कुण्डलनी एवम् सुशुम्मना नाड़ी जागृति होकर उर्दगामी चक्रो तक ली जाती है। 
  2. स्वाधिष्ठान चक्र :- यह चक्र मूलाधार चक्र से दो अंगुल ऊपर सिन्दूरी रंग के साथ छ: पंखुण्डी वाले कमल पर स्थित होता है। जो व्यान वायु को सन्तुलित करता है। 
  3. मणिपुर चक्र :- यह चक्र नाभि मूल के दस पंखुण्डी वाले कमल पर स्थिति है इसे जागृत करने से पाचन संस्थान की उदर सम्बन्धित एवम् गर्भस्त शिशु को ऊर्जा प्रदान करता है। इससे पेट सम्बन्धित All रोग एवम् अर्जीणता दूर होकर प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायक सिद्ध होता है। 
  4. अनाहत चक्र :- यह चक्र हृदय के पास 12 पंखुडी के साथ कमल पर स्थिति इसके जागृत एवम् सन्तुलित होने से फेफड़े, हृदय की रक्षा हेतु रक्त संचार प्रक्रिया को नियंत्रित व नियमित करता है।
  5. पिच्युट्री चक्र :- यह चक्र गले के कन्ठ प्रदेश के समीप 16 पंखुडी वाला कमल पर स्थिति है। इसके सन्तुलित एवम् जागृत होने से थाइराइड स्वर यंत्र पेराथाइराइड सुनने की शक्ति एवम् भूख प्यास को नियंत्रित एवम् नियोजित करता है। यह मन को शान्त बनाकर भय क्रोध से मुक्त करता हैै। 
  6. आज्ञा चक्र :- यह चक्र भ्रकुटी के मध्य स्थित है। इसके द्वारा मन की चंचलता एवम् चिति वृत्तियों को प्रभावित करता है। यह Ultra site द्वारा संचालित है। जिसके द्वारा सेरोटोनिन का स्राव बढ़ता है। यह शरीर के समस्त अंगो के सजगता एवम् क्रिया शीलता को बढ़ा देता है। 
  7. सहस्त्र चक्र :- सहस्त्र चक्र को सिर के ऊपरी भाग में धड़कने वाली जगह पर स्थित माना गया है इसके जागृत होने से आत्मानुशासन धैर्य साहस ज्ञान तथा समाधि की उपलब्धि प्राप्त होना बताया है। जो हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को उन्नति बनाने हेतु Single अचूक चक्र है।

3. पंचमहाभूत के प्रयोग द्वारा

1. जल तत्व :- जल तत्व में प्रयोग होने वाले विभिन्न उपचार विधियों से हम शीघ्र ही आने वाली किसी भी बीमारी को उपचार करके प्रतिरोधक क्षमता के कम होने से बचाकर उसे सुदृढ़ बनाया जाता सकता है। ठंडे कटि स्नान से कब्ज, पेट तथा जांघ का मोटापा, अनिद्रा, स्त्री रोग, एवम् स्वप्न दोश आदि बीमारियों से शरीर की रक्षा करता है तथा गर्म कटि स्नान साइटिका, सूजन, गर्भाशय एवम् पौरूष ग्रन्थि की सूजन गर्दन का दर्द इत्यादि में लाभ करता है। गर्म-ठंडा कटिन स्नान तीन मिनट गर्म 2 मिनट ठंडा या 5 मिनट गर्म 3 मिनट ठंडा की तीन से चार बार पुर्नवृत्ति करें। इससे लिवर, गुर्दे, प्लीहा, एवम् अग्नाशय की सूजन तथा स्त्री रोग उदर रोगों में लाभदायक है। 

गर्म पैर का स्नान :- कपी कपी के साथ बुखार आने पर उच्च रक्त चाप, अनिद्रा व तनाव, गठिया व पिन्डली का दर्द, नजला, जुकाम, खासी, दमा, तलवे का दर्द, फैफड़े व कमर में रक्त संचय एवम् दर्द तथा पक्षाघात में लाभदायक है। इस स्नान में सिर पर ठण्डे पानी का तोलिया अवश्य रखना चाहिए।

ठण्डा पैर स्नान, पैर की मोच, थकान, सिर दर्द को ठीक करते हुये दिल और दिमाग को शक्तिशाली बनाता है।

गर्म पाद एवम् हस्त स्नान करवाते समय सिर पर ठण्डे पानी का तोलिया रखते हुये Single-दो गिलास पानी पिलाना चाहिए। इसमें पसीना आने तक उपचार देते है। इससे सिर दर्द, जुकाम, दमा तथा खूनी बवासीर आदि का उपचार Reseller जा सकता है। रीढ़ स्नान के द्वारा अवसाद, अनिद्रा, उच्च रक्त चाप, मूर्छा, नपुसंकता इत्यादि रोगो में प्रभावकारी है। मेहन स्नान द्वारा उनमाद मस्तिष्क व रीढ़ सम्बन्धी रोग, वीर्य पात, शुक्राणु कम होना इत्यादि में लाभ प्राप्त होता है। भाप स्नान द्वारा स्नायु तन्त्र श्वास कश्ट अथवा दमा, गठिया, पीलिया यूरिक एसिड, लीवर का बढ़ना इत्यादि में अति लाभकारी है।

स्थानीय गर्म लपेट अथवा भाप द्वारा टोन्सिल, थाइराइड आहार नली की सूजन कन्ठ में खराश इत्यादि में लाभ मिलता है। जी0एच0 पैक द्वारा पेट की गैस, अलसर, एसीडिटी, अल्सरेटिव, कोलाइटिस, अतिसार, पेचिश, हर्निया, पेट का मोटापा, गुर्दे तथा अग्नाशय व पित्ताशय इत्यादि उदर रोगों में लाभदायक है।

छाती की लपेट एवम् फैफड़े की लपेट से दमा, खासी, जुकाम व निमोनियां में भाप स्नान देकर पैक लगाना लाभदायक है।

जोड़ो की लपेट घुटना, कमर, टखना, कोहनी, कलार्इ, कन्धा, उंगुली का दर्द आदि में लाभदायक सिद्ध हुआ है।

सिर की लपेट द्वारा माइग्रेन, सिर दर्द, साइन्स रोगो में सिर की मालिश व भाप के साथ-साथ लपेट लाभ प्रदान करती है।

इसके अतिरिक्त भी जल के आधुनिक प्रयोग एवम् लपेट द्वारा उपचार करने पर हम दवाओं के सेवन से (जो प्रतिरोधक क्षमता को हानि पहुंचाते है) बच सकते है।

2. मिट्टी तत्व :- प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मिट्टी द्वारा चिकित्सा का Single विशेष स्थान है। क्योकि विभिन्न प्रकार की मिट्टी की पट्टियां चाहे वह माथे की पट्टी हो, पेट की पट्टी हो या मिट्टी का स्विंगपूल का स्नान हो या फिर मिट्टी पर नंगे बदन सोने का अभ्यास करें इनसे रोगो से बचाव में सहायता मिलती है। सिर व आंख की मिट्टी पट्टी से सिर दर्द, आंख के रोग, उच्च रक्त चाप, एवम् तनाव में विशेष लाभ प्राप्त होता है।

मिट्टी के चेहरे व कान के विभिन्न रोगों में लेप के Reseller में प्रयोग की जाती है तथा रीढ़ की हड्डी व शरीर के अन्य जोड़ो पर भी इसका प्रयोग करके दर्द, सूजन अथवा मोच में विशेष लाभ प्राप्त कर सकते है। मिट्टी के स्विंगपूल में सम्पूर्ण शरीर की मिट्टी लेप द्वारा 2 से 3 घण्टे उसमें रहकर उसके बाद मिट्टी साफ करके धूप में 8 से 10 मिनट तेल की मालिश करने के बाद सोना बाथ द्वारा मोटापा, खुजली, सफेद दाग, अवसाद आदि में यह त्वचा की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर स्वास्थ प्रदान करता है। मिट्टी पर नंगे बदन लेटने या सोने या नंगे पैर चलने से स्नायु की कमजोरी, अनिद्रा, डिप्रेशन रक्त चाप, कमजोर श्रम शक्ति व अन्य शारीरिक एवम् मानसिक कमजोरियों में लाभ पहुंचाता है।

3. अग्नि तत्व :- अथवा Ultra site किरण चिकित्सा द्वारा प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने हेतु Ultra site की ऊर्जा का उपयोग विभिन्न Resellerों में करते है। आज के जीवन शैली में Ultra site से शहरी लोग विशेषकर शहरी महिलायें दूर रहकर मोटापा, आस्टियों पोरोसिस तथा कैल्शियम व विटामिन डी की कमी से ग्रहसित है। धूप स्नान अथवा धूप से प्रतिरोधक क्षमता को बचाये रखने हेतु सारे शरीर में तेल की मालिश करें तथा नंगे शरीर को केले अथवा नीम के पत्तों से ढककर अथवा सारे शरीर पर मिट्टी का लेप करके ही धूप स्नान लें। धूप स्नान लेते समय गीली चादर की लपेट भी लगा सकते है। स्ूर्य किरण में उपलब्ध विभिन्न रंगो द्वारा चिकित्सा से प्रतिरोधक क्षमता निम्न प्रकार बढ़ा सकते है।

  1. लाल रंग गर्मी पैदा करने वाला होता है। इसके द्वारा खून का प्रवाह तथा स्नायु प्रवाह को बढ़ाते हुये दर्द व सूजन को कम Reseller जाता है। लाल रंग द्वारा केवल तेल को अविश्ट (धूप में तेल को चार्ज करना) Reseller जाता है। 
  2. नारंगी तथा पीला ये दोनो रंग लक्वा, सन्धिवात, गठिया, सर्दी तथा जुकाम खासी, मोटापा, पोलियों एवम् स्नायु की कमजोरी में या तो इस रंग के द्वारा चार्ज किये गये पानी की पट्टी लगाकर के अथवा इस पानी को पीने से लाभ प्राप्त होता है। 
  3. हरा रंग मूत्र संसथान, खुजली, आंखो के रोग, अतिसार, पेशाब रूकना, कान बहना, खूनी बवासीर, घाव आदि में पीने से अथवा पट्टी करने से फायदा पहुंचाता है। 
  4. आसमानी रंग के द्वारा चार्ज पानी से अनिद्रा, बेहोशी, उल्टी, हैजा, पीलिया रोग, कुश्ठ रोग, यकृत व अधिक मानसिक स्राव में लाभ प्राप्त होता है। 
  5. नीला रंग का पानी पेट की गर्मी All प्रकार के बुखार, दांतो का दर्द, फोड़े फुन्सी, मुंह के छाले तथा अनियमित महामारी में प्रभावशाली है। 
  6. बैगनी रंग के पानी से All प्रकार के चर्म रोग, उच्च रक्त चाप, क्षय, मधुमेह, गैंगरीन तथा स्नायु सम्बन्धी विकारों में लाभप्रद है। लाल रंग के विकिरण वल्व द्वारा सेक करने से गठिया, सर्दी, जुकाम, पसली का दर्द, मोच या सूजन पर पांच मिनट में ही लाभ मिलता है।

4. आकाश तत्व द्वारा प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के उपाय :- 

आकाश से अभिप्राय उपवास चिकित्सा है। उपवास प्राकृतिक चिकित्सा की महत्वपूर्ण चिकित्सा प्रणाली है। प्राय: दो से पांच दिन तक का उपवास प्राकृतिक चिकित्सा में लम्बी बीमारियों के उपचार में कराया जाता है। इससे शरीर की कोशिकाओं को नया जीवन प्राप्त होता है। उपवास विभिन्न प्रकार का जैसे फलोपवास, जलापवास, रसोपवास, नीबू शहद पर आंशिक उपवास आदि का होता है। विश्व में किये गये विभिन्न शोधों के According शरीर में भोजन के पाचन से लेकर उसके उत्सर्जन एवम् उपाचय का काम लगातार चलता रहता है। शरीर की स्वंय हीलिंग शक्ति तथा टूट-फूट को मरम्मत करने की प्रणाली उपवास के बाद गतिशील हो जाती है। उपवास काल में हीमोिग्लोविन बढ़ जाता है। कैल्शियम तथा लोहा हड्डियों को मजबूत करता है तथा इन्सुलिन सहन शक्ति ठीक होती है। उपवास में उम्र को लम्बा करने वाले शक्तिशाली इन्जाइम्स का निर्माण होता है। उपवास के दैरान कैंसरकारी कुछ कोशिकायें नियंत्रित हो जाती है तथा विभाजन दर भी कम हो जाती है। इसके द्वारा पाचन संस्थान के All अंगो के साथ छोटी व बड़ी आंत को आराम मिल जाता है। उपवास काल में शारीरिक मानसिक व आध्यात्मिक Reseller से विश्राम मिल जाता है। लेकिन यह ध्यान रहे कि Single ओर उपवास हमारी पाचन शक्ति को मजबूत करके शरीर में चुस्ती एवम् फुर्ती प्रदान करता है। वहीं दूसरी ओर अत्यधिक कमजोरी गर्भावस्था, पेट व आंत का अल्सर नसे के आदि होने की अवस्था में, मधुमेह में उपवास निषेध है। अथवा किसी विशेषज्ञ के निर्देशन में करने का प्रयास करें। आकाश तत्व में मौन का बड़ा महत्व है। इसमें केवल भाषा का ही बोलने का मौन नहीं होता अपितु मन का नहीं होना भी आवश्यक है। क्योकि बोलने के पीछे मन की चंचलता छिनी रहती है। इसलिए संगीत अथवा शोर से दूर रहना भी उतना ही आवश्यक है। मौन से सकारात्मक शक्ति का विकास होता है, तनाव बढ़ाने वाले हार्मोन जिसको काटिसोल नाम से जाना जाता है। उसका स्तर भी घट जाता है। जिससे दिल की धड़कन नियमित होकर शान्ति मिलती है।

5. वायु तत्व द्वारा प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के उपाय :- 

वायु का सेवन हम दो प्रकार से करते है। Single श्वास द्वारा शरीर के अन्दर भरते है। दूसरा शरीर के रोम छिद्रो द्वारा बिना कपड़ो या कम कपड़ो से वायु तत्व ग्रहण करते है। आन्तरिक वायु स्नान की दृष्टि से प्राणायाम Single अद्भुत प्रयोग है। इसके द्वारा हम शरीर की खरबों कोशिकाओं को आक्सीजन प्रदान करके रोग मुक्त व चुस्त बनाते है। इससे खून के शुद्धिकरण तथा निर्माण की प्रक्रिया बढ़ जाती है। प्राणायाम के द्वारा मस्तिष्क को अत्यधिक आक्सीजन प्राप्त होने से दीमाग, फेफड़े का लचीला पन तथा वाइटल कैविस्टी के बढ़ जाने से दमा ब्रोकाइटिस जैसी अनेको बीमारियों से छुटकारा प्राप्त होता है तथा यादाश्त बढ़ जाती है। इसके द्वारा मेघा शक्ति, बुद्धि व यादाश्त बढ़ने के साथ ही शरीर सुन्दर व सुडौल बनता है। चेहरे की ओर रक्त संचार से आक्सीजन की आपूर्ति आत्मा मण्डल को विकसित करती है।

ऋतुओं में क्या करें और क्या ना करें द्वारा प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाए :- हमें कुछ ऐसी खाद्य वस्तुऐं है जिनका सेवन Single साथ नहीं कर सकते है परन्तु कुछ ऐसे भी है जो आवश्यक है :-

  1. दूध के साथ दही, प्याज, अचार, सिरका, मूली व मांस-मछली का सेवन ना करें । 
  2. खाने से Single दम First, खाने के बीच में व खाने के तुरन्त बाद कभी भी ज्यादा पानी पाचन बिगाड़ देता है। 
  3. शहद व घी की बराबर मात्रा में सेवन करना खतरनाक है। क्योकि बराबर की मात्रा से विष बन जाता है। 
  4. मिर्च-मसाले-ज्यादा सेवन करने से विभिन्न स्राव असन्तुलित हो जाते है। 
  5. ज्यादा गर्म And ज्यादा ठण्डे अथवा बासी भोजन ग्रहण ना करें। 
  6. स्नान से First व खाने के बाद पेशाब अवश्य करें। 
  7. भोजन देर रात्रि में ना करें – सोने से 2 घण्टे First करें तथा खाने के आधे घण्टे बाद व सोने से First Single या दो बार पानी का सेवन करने से पाचन ठीक होता है।
  8. सोने से First चाय-काफी का सेवन ना करें तथा पैर धोकर सोने जायें।
  9. खाने को कम से कम Single टुकड़ा 32 बार चबाकर ही खायें। 
  10. क्या, कितना, कब और क्यों खायें का ज्ञान रखते हुये भोजन की मात्रा, गुण व ताजा देखकर खायें। 
  11. हेमन्त ऋतु में ठण्ड होने के कारण पाचन अच्छा होता है इसलिए चिकने, दूध के पदार्थ, गुड़ चीनी मिश्री इत्यादि का सेवन करें तथा सत्तु या वात प्रधान भोजन नहीं करना चाहिए।  
  12. शिशिर ऋतु में कटु-तिक्त-कसाय, वात वर्धक व शीतल भोजन त्याग देना चाहिए तथा दिन में नही सोना चाहिए। पंचकर्म करना चाहिए, मीठा/मधुर कम लेना चाहिए। 
  13. ग्रीष्म ऋतु में मधुर-घी-दूध चावल का सेवन करना चाहिए। अम्ल, कटु, ऊष्ण व लवण आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। व्यायाम अधिक नहीं करना चाहिए। शीतल पानी मात्रा बढ़ा देनी चाहिए। 
  14. वर्शा ऋतु में जठराग्नि कमजोर हो जाती है तथा वात कुपित हो जाता है। अम्ल, लवण व चिकने पदार्थो का सेवन करना चाहिए। पानी उबालकर ठण्डा करके पीना चाहिए व सूती कपड़े व ठीक से ढीले वस्त्र धारण करने चाहिए। वर्षा ऋतु में ओस में सोना, जौ का सत्तु पीना, धूप में बैठना छोड़ देना चाहिए। 
  15. शरद ऋतु में पित्त कुपित हो जाता है। इसलिए पित्त शांत करने वाले शीतल, तिक्त, रसयुक्त आहार अधिक लेना चाहिए। तथा Ultra site मांस-मछली, घी-दही, तेल, क्षार व दिन का शमन ना करें। 
  16. शिशिर के बाद बसन्त ऋतु में शारीरिक बल मध्यम होता है। Ultra site द्वारा कफ कुपित होकर कष्ट कारक बनता है। गर्म मीठे व चिकने आहार नहीं लेना चाहिए ना दिन में सोना चाहिए। गेहूॅ का सेवन, मधु तथा ताजा भोजन का सेवन करना चाहिए।

उपरोक्त ऋृतुओं के According क्या करें, क्या न करें द्वारा हम अपनी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा सकते है। शरीर की मालिश द्वारा भी हम अपनी प्रतिरोधक क्षमता को उन्नत कर सकते है। साथ ही Single्युप्रैशर बिन्दुओं तथा चुम्बुक चिकित्सा And चुम्बुकीय चार्ज पानी पीकर भी स्वास्थ्य प्राप्त Reseller जा सकता है।

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