पाचन तंत्र के कार्य And प्रमुख अंग

व्यक्ति साधारण Reseller में जो भी भोजन हम ग्रहण करते हैं वह वास्तव में भी तभी हमारे लिए उपयोगी होता है जब हम इस लायक हो जाये कि शरीर के अन्तर्गत रक्त कोशिकाओ And अन्य कोशिकाओं तक पहुॅच कर शक्ति व ऊर्जा उत्पन्न कर सके। यह कार्य पाचन प्रणाली के विभिन्न अंग मिलकर करते हैं। पाचन का कार्य पेशियो की गतियों , रासायनिक स्त्राव के माध्यम से होता है। पाचन वह रासायनिक व यान्त्रिक क्रिया है , जिसमें ग्रहण Reseller गया भोजन अत्यन्त सूक्ष्म कणों में विभक्त होकर विभिन्न एन्जाइम्ज व पाचन रसों की क्रिया के फलस्वReseller परिवर्तित होकर , रक्त कणो द्वारा अवशोषित होने योग्य होकर कोशिकाओं के उपयोग मे आता है। पाचन की यह सम्पूर्ण क्रिया पाचन अंगो के द्वारा सम्पन्न होती है। वास्तव में पाचन की प्रक्रिया Single रासायनिक And यान्त्रिक प्रक्रिया है। जिसमें भोजन के दीर्घ अणु टूटकर विविध एन्जाइम्स की सहायता से सूक्ष्म अणुओं में विभक्त हो जाते है। सूक्ष्म अणुओं का अवशोषण ऑतो मे होकर वह शरीर में खपने योग्य बनता है तथा शरीर की कोशिकाओं को ऊर्जा प्रदासन करता है। हम भोजन को जिस Reseller में लेतें हैं वह उसी Reseller में शरीर की कोशिकाओं द्वारा ग्रहण नही होता है वरन् भोजन में सम्मिलित तत्व जब अपने सरल Reseller में आते हैं तभी वह ग्रहण हो पाता है। नीचे Single सारणी दी जा रही है जो कि भोजन के Reseller में ग्रहण की गर्इ वस्तु की है And वह जिस Reseller में परिवर्तित होती है उसके प्रदर्शित है।

क्रम संख्या भोज्य पदार्थो के नाम परिवर्तित पदार्थ
कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrate) ग्लूकोज, फ्रक्टोज, गैलेक्टोज, सुक्रोज
आदि सरल शर्करा में। 
प्रोटीन (Proteins) पेप्टोन्स तथा अमीनो अम्ल में।
3  वसा (Fat) वसीय अम्ल में तथा ग्लिसरॉल में।
4 ज्ल  अपनी वास्तविक स्थिति में अवशोषित
हो जाते है।
खनिज लवण अ पनी वास्तविक स्थिति में अवशोषित
हो जाते है।
विटामिन  टपनी वास्तविक स्थिती में अवशोषित
हो जाते है।

पाचन तंत्र के प्रमुख अंग

1. मुख (Mouth) . 

मुॅह पाचन तन्त्र का प्रमुख अंग है। मुॅह को दो भागो में विभक्त Reseller जाता है पहला भाग मुख गुहा (Buccal Cavity) जो बाºय Reseller से होठ गाल तथा अन्दर से दॉत तथा मसूड़ो में विभक्त रहता है। दूसरा भाग दॉत व मसूड़ो से पीछे की ओर ग्रसनी में खुलता है। मॅुह का भीतरी भाग श्लेश्मिक झिल्लियों द्वारा निर्मित है। ये भी त्वचा जैसी होती है, तथा इसका रंग लाली लिए रहता है। इसमें रसस्त्रावी ग्रन्थियॉ (Secreting glands) होती हैं और इसमें पास आने वाले पदार्थ का शोषण करने की क्षमता भी रहती है। जीभ, तालुमूल, तालु तथा दॉत – ये सब मुख के भीतर ही रहने वाले अवयव हैं।

2. ग्रसनी (Pharynx) 

मुख गुहा पश्चभाग की ओर जहॉ खुलती है उस भाग को ग्रसनी कहते है। ग्रसनी से श्वास तथा पाचन संस्थान का मार्ग शुरू होता है। श्वास प्रणाली के मार्ग को (Trachea) तथा पाचन संस्थान के मार्ग को ग्रासनली (Oesophagus) कहते है। ध्यान रहे हम जो भी भोजन को चबाते है वह ग्रसनी के द्वारा ही ग्रासनली मे पहुॅचता है। इसकी लम्बार्इ 4 से 6 इंच तक होती है। ग्रसनी के मुख्य Reseller से जीन विभाग होते है।

S.No  Part Of Pharynx Position 
नासाग्रसनी (Nasopharynx)  नासिंका के पीछे वाला भाग जहॉ
से रबर नेति को पकड़कर खीचा
जाता है। 
2 मुख ग्रसनी (Oropharynx)  जहॉ पर जीभ की मूल है। इसके
पाश्र्वीय भितियों में टॉन्सिल रहते है।
स्वरग्रसनी (Laryngopharynx )  यह वह भाग है जो आहार नाल
में खुलता है।


ग्रसनी के बीच का अस्तर तन्तुमय ऊतक तथा वाºय अस्तर पेशीय होता है जिसे संकुचन पेशियॉ कहते है।

3. ग्रासनली (Oesophagus) 

जिन नली के द्वारा भोजन अमाशय में पहुॅचता है , उसे अन्न प्रणाली अथवा अन्न मार्ग (Alimentary canal) कहते हैं। ग्रासनली सर्वाइकल क्षेत्र के 6 वें कशेरूक से शुरू होती है और नीचे की ओर होती हुर्इ थोरेसिक क्षेत्र के 10 वें कशेरूक तक होती है। ग्रासनली की भित्ति की निम्न परतें होती है।

  1. श्लेश्मिक कला (Mucosa)
  2. अवश्लेश्मिक परत (Submucosa)
  3. पेशीय परत (Muscularis Externaa)

ग्रासनली गले (pharynx) से आरम्भ होती है। इसके नीचे की गलनली अथवा ग्रासनली (Gullet) है, जो लगभग 10-15 इंच तक लंबी होती है तथा भोजन को मुॅह से आमाशय तक पहॅुचाने का कार्य करती है। इसमें कोर्इ हड्डी नही होती। यह मॉशपेशियॉ तथा झिल्लियों से बनी होती है।

4. आमाशय (Stomuch) 

यह नाशपती के आकार का Single खोखली थैली जैसा अवयव है जो बांर्इ ओर के उदर – गहनर के ऊपरी भाग में तथा उदर वक्ष (महाप्राचीरा) के ठीक नीचे की ओर स्थित है। हृत्पिण्ड इसी पर स्थित है। यह गलनली के द्वारा मुॅह से संबधित रहता है।

आमाशय पाचन संस्थान का सबसे चौड़ा भाग है इसका Single भाग ग्रासनली तथा Single भाग छोटी ऑत के First भाग ग्रहणी पर खुलता है। आमाशय को पाकस्थली भी कीा जाता है। पाकस्थली का भीतरी भाग श्लैश्मिक झिल्ली से भरा रहता है। जब पेट खाली होता है , तब इसकी श्लैश्मिक झिल्ली की तह जैसी बन जाती है। श्लैश्मिक झिल्ली का अधिकाश भाग पाकस्थली के भीतरी भाग को तर बनाये रखने के लिए श्लैश्मिक स्त्राव करता है, जिससे कितने ही भागो में रसस्त्रावी ग्रन्थियॉ भर जाती हैं। इन ग्रन्थियों से पेप्सिन तथा हाइड्रोक्लोरिक एसिड के स्त्राव होते हैं। इन ग्रन्थियों को पेप्सिन ग्रंथियॉ कहा जाता है। पानी तथा नमक पर आमाशयिक यस की कोर्इ क्रिया नही पाती। पाकस्थली के जीन स्त होते है। इसका बाहरी तथा ऊपर वाला स्तर उदरक (Perotoneum or Serous Coat) कहा जाता है। इसे पाकस्थली का Single ढक्कन कहना अधिक उपयुक्त रहेगा। यह स्तर Single प्रकार की रस -स्त्रावी झिल्ली है जो उदर प्राचीर (Abdominal Wall) के भीतरी ओर रहती है। पाकस्थली का मध्यस्तर (Middle or Muscular portion) मॉसपेशी द्वारा निर्मित होता है। खाये हुए पदार्थ के मांशपेशी मे पहॅचते ही इसकी सब पेशियॉ Single-के-बाद-Single संकुचित होने लगती हैं, जिसके कारण लहरें भी उठकर पाकस्थली की Single छोर से दूसरी छोर तक हिलाती हैं। इस क्रिया के कारण खाया हुआ पदार्थ चूर-चूर होकर लेर्इ जैसा Reseller ग्रहण कर लेता है।

पाकस्थली का अन्तिम तीसरा स्तर (Mucous Coat) मधुमक्खी के छत्ते जैसा होता है। इसमें श्लैश्मिक झिल्ली के बहुत से छोटे- छोटे छिद्र रहते हैं। इस झिल्ली की ग्रन्थियॉ में उत्तेजना होते रस स्त्राव होने लगता है। ये ग्रन्थियॉ दानेदार सी होती हैं। इन्हें लसिका ग्रंथियॉ कहा जाता है।

आमाशय 24 घंटे में लगभग 5-6 लीटर रस निकालता है। इसमें भोजन प्राय: 4 घंटे तक रहता है तथा इसके लगभग 1.5 किलोग्राम भोजन समा सकता है। परन्तु कर्इ लोगों में इसकी क्षमता बहुत अधिक पायी जाती है।

5. छोटी ऑत (Small Intestine)

छोटी ऑत लगभग 6-7 मीटर लम्बी बड़ी ऑत से ढकी रहती है। छोटी ऑत के तीन विभाग होते है।

  1. ग्रहणी (Duodenum) 
  2. मध्यान्त्र (Jejunum)
  3. शेषान्त्र (Illeum)

(A) ग्रहणी (Duodenum). आमाशय के पाइलोरिक छोर के आरम्भ होने वाले अंत के भाग को पक्वाशय कहते हैं। यह अर्द्ध-गोलाकार में मुड़ कर अग्नयाशय ग्रंथि के गोल सिर को तीन दिशाओं में लपेटे रहता हैं यह लगभग 19 इंच लम्बा तथा आकार में घोड़े की नाल अथवा अंग्रेजी के (C) अक्षर जैसा होता है। यह आमाशय के पाइलोरिक से आरंभ होता है। इसका पहला भाग ऊपर दार्इं ओर पित्ताशय के कण्ठ तक जाता है तथा वहॉ से दूसरा भाग नाचे की ओर बढ़ता है।

पक्वाशय के भीतर पित्त वाहिनी तथा अग्न्याशय के मुॅह Single ही स्थान पर खुलते है जिनसे निकले स्त्राव Single ही छिद्र द्वारा पक्वाशय में गिरते हैं। पक्वाशय का ऊपरी भाग पैरीटोनियम से ढॅका रहता है तथा अन्तिम भाग जेजूनम (Jajunum) से मिला रहता है। पक्वाशय में आमाशय से जो आहार रस आता है, उसके ऊपर पित्त रस (Bill juice) तथा क्लोम रस (Pancreatic Juice) की क्रिया होती है। क्लोम रस पानी जैसा पतला, स्वच्छ, रंगहीन, स्वादरहित तथा क्षारीय – प्रतिक्रिया वाला होता है। इसका आपेक्षित गुरूत्व लगभग 1.007 होता है। इसमें चार विशेष पाचक तत्व -(1) ट्रिप्सीन (Trypsin) , (2) एमिलौप्सीन ( Amylopsin ) , (3) स्टीप्सीन (Steapsin) तथा (4) दुग्ध परिवर्तक पाये जाते हैं। ये आहार रस पर अपनी क्रिया करके प्रोटीनों को पेप्टोन्स में श्वेतसार को वसा को ग्लीसरीन तथा अम्ल And दूध को दही में परिवर्तित कर देते हैं।

(A) जेजुनम (Jejunum). ग्रहणी को छोडकर यह छोटी ऑत का 2/5 भाग होता है लगभग 2.5 से 3 मीटर (लगभग 8-10 फीट ) लम्बा होता है। इस भाग पर छोटे छोटे रसांकुर होते है जो भोजन का अवशोषण करते है।

(B) जेजुनम इलियम (Illeum).यह छोटी ऑत का सबसे अन्तिम भाग है जो बड़ी ऑत के First भाग (Ascending Colon)से चिपका रहता है। यह लगभग 3 मीटर लम्बा होता हैं जो भाग बड़ी ऑत के शुरूवाद सीकम पर जुड़ता है वहॉ पर इलियोसीकम वालवद होते है जो संकुचित होते हुए भोज्य पदार्थो वापस आने से रोकता है।

पाचन तंत्र

6. बड़ी ऑत (Large Intesine) 

छोटी ऑत जहा समाप्त है, वहॉ से Single बड़ी ऑत आरंभ होती है। जिससे अन्न – पुट (Intestinal Caccum) मिली होती है, से निकलती है। यह छोटी ऑत से अधिक चौड़ी तथा लगभग 5-6 फुट लंबी होती है। इसका अन्तिम डेढ़ अथवा 2 इंच का भाग ही मलद्वार अथवा गुदा कहा जाता है। गुदा के ऊपर वाले 4 इंच लम्बे भाग को मलाशय कहते हैं। यह बड़ी ऑत , छोटी ऑत के चारों ओर घेरा डाले पड़ी रहती है। छोटी ऑत की तरह ही बड़ी ऑत में भी कृमिवत् आकुंचन होता रहता है। इस गति के कारण छोटी ऑत से आये हुए आहार रस (Chyme)के जल भाग का शोषण होता है। छोटी ऑत से बचा हुआ आहार रस जब बड़ी ऑत में आता है, तब उसमें 95 प्रतिशत जल रहता है। इसके अतिरिक्त कुछ भाग प्रोटीन , कार्बोहाइड्रेट तथा वसा का भी होता है। बड़ी ऑत में इन सबका ऑक्सीकरण होता है तथा जल के बहुत बड़े भाग को सोख लिया जाता है। अनुमानत: 24 घण्टे में बड़ी ऑत में 400 C.C पानी का शोषण होता है। यहॉ से भोजन रस का जलीय भाग रक्त में चला जाता है तथा गाढ़ा भाग विजातीय द्रव्य के Reseller में मलाशय में होता हुआ मलद्वार से बाहर निकल जाता है।

वस्तुत: बड़ी ऑत के निम्न Seven भाग होते है।

  1. सीकम (Cascum)
  2. आरोही कोलन (Ascending) 
  3. अनुप्रस्थ कोलन (Transfer Colon)
  4. अवरोही कोलन (Decending Colon)
  5. सिग्मॉयड कोलन (Sigmoid)
  6. मलाशय (Rectum)
  7. गुदा द््वार (Anus)

7. मलाशय (Rectum)

यह बड़ी ऑत के सबसे नीचे थोड़ा फैला हुआ लगभग 12 से 18 से0 मी0 लम्बा होता है। इसकी पेशीय परत मोटी होती है। मलाशय के म्यूकोशा में शिराओं का Single जाल होता है जब ये फुल जाती है तो इनमें से रक्त निकलने लगता है जिसे अर्श या बवासीर कहा जाता है

8. गुदा (Anus)

गुदा पाचन संस्थान अन्तिम भाग है। इसी भाग से मल का निश्कासन होता है। गुदीय नली श्लैशिक परत Single प्रकार के शल्की उपकला की बनी होती है जो ऊपर की ओर मलाशय की म्यूकोसा में विलीन हो जाती है।

पाचन तंत्र के सहायक अंग

  1. दॉत – दॉत मुख गुहा में ऊपरी जबड़े And निचले जबड़े के अस्थिल पर्तों में स्थिर रहते है। Single व्यस्क व्यक्ति में इनकी संख्या 32 होती है। दॉतो की सहायता से भोजन को चबाया जाता है। 
  2. जिºवा – जिºवा हॉयड अस्थि से जुड़ी हुर्इ मुख के तल में स्थित Single पेशीय Creation होती है। जिºवा में छोटे – छोटे उभार होते है जिन्हे (Papillae) कहते है। Papillae में स्वाद कलिकाएॅ (Taste buds) होती है। हम जब भोजन करते है तो हमें स्वाद का अनुभव होता है यह अनुभव हमें स्वाद कलिकाओं (Taste buds) के कारण ही होता है। 
  3. गाल –गाल हमारे दोनों ऑखो के नीचे स्थित होता है। गाल में (Buccinator Muscles) बक्सीनेटर नामक मॉसपेशीय पायी जाती है। गाल में अन्दर की ओर बहुत छोटी श्लेश्मा का स्त्रावण करने वाली ग्रन्थियॉ पायी जाती है जो श्लेश्मा का स्त्रावण कर पाचन में बहुत बड़ी मदद करती है।
  4. लार ग्रन्थियॉ – Human शरीर में तीन जोडी लार ग्रन्थियॉ पायी जाती है। जो इस प्रकार से है। 
    1. Parotid Gland- कर्ण मूल ग्रन्थियॉ – कानों के भीतरी भाग में नीचे की ओर 1-1 ग्रन्थि स्थित होती है। इन लवण, जल And टायलिन का स्त्रावण होता है। 
    2. Submandibular Gland – अब अधोहनुज ग्रन्थियॉ मुख के निचले जबड़े की ओर 1-1 ग्रन्थि स्थिर होती है। इन ग्रन्थियों से लवण , जल And म्यूसीन का स्त्रावण होता है 
    3. Sublingual Gland – अवजिàी ग्रन्थियॉ मुख के तल में जिºवा के थोड़ी नीचे की ओर स्थित होती है। आकार में ये ग्रन्थियॉ छोटी होती है। इन ग्रन्थियॉ से भी लवण , जल And म्यूसीन का स्त्रावण होता है। 
  5. अग्न्याशय (Pancreas). यह भी Single बड़ी ग्रन्थि है , परन्तु आकार में यकृत से छोटी होती है। प्लीहा के पास रहती है। इसमें से क्लोम रस (pancreatic juice) निकल कर ऑतो में जाता है। क्लोम रस Single प्रकार का क्षाराीय द्रव होता है क्लोम रस में तीन प्रकार के पाचक पदार्थ पाये जाते है-(1) प्रोटीन विश्लेशक, (2) कार्बोहाइडे्रट विश्लेशक तथा (3) वसा विश्लेशक। प्रोटीन विश्लेशक की सहायता से प्रोटीन का विश्लेशण होता है। श्वेतसार विश्लेशक की सहायता से श्वेतसार से शर्करा का निर्माण होता है तथा वसा विश्लेशक की सहायता से वसा (चर्बी) से ग्लिसरीन अम्ल तैयार होता है। पित्त से मिलकर क्लोम रस की क्रिया अत्यन्त प्रबल हो जाती है। चर्बी वाले पदार्थों को पचाने के लिए इसकी Need होती है। ऑतो में पित्त के रहने से सइने की क्रिया कम होती है तथा न रहने पर अधिक होती है अग्न्याशय के निम्न तीन भाग होते है। 
    1. Head – शीर्श – यह अग्न्याशय का सबसे चौड़ा भाग होता है।
    2. Body nsg – यह अग्न्याशय का सबसे महत्वपूर्ण भाग होता है। इसका अन्तिम हिस्सा पुच्छ से Added रहता है। 
    3. Tail iqPN – यह अग्न्याशय का सबसे अन्तिम भाग है। जो बॉये किडनी के सामने से प्लीहा तक फैला रहता है। 
  6. यकृत (Liver) यह मनुश्य शरीर की सबसे बड़ी ग्रन्थि (Gland) है। यह उदर में दायीं ओर वक्षोदरमध्यस्थ – पेशी (Diaphragm)के नीचे स्थित है। यकृत की लम्बार्इ लगभग 9 इंच , चौड़ार्इ 10.12 इंच तथा भार लगभग 50 औंस होता है। इसका भार Human शरीर के सम्पूर्ण भाग का 1.40 प्रतिशत होता है। इसका आपेक्षिक गुरूत्व 1.005 से 1.006 होता है। इसका रंग कत्थर्इ होता है। यह ऊपर से छूने में मुलायम तथा भीतर से ठोस होता है। यह 24 घण्टे में लगभग 550 ग्राम पित्त (Bile) तैयार करता है इसका स्वReseller त्रिभुजाकार होता है। यकृत में स्थित पित्ताशय (Gall Bladder) पाचन क्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है पित्ताशय का आकार Single नाशपती के समान खोखली थैली जैसा होता है। यह थैली यकृत के की सतह के भीतर रहती है तथा इसका अन्तिम बड़ा शिरा कुछ – कुछ दिखार्इ देता है। इसके भीतरी भाग से पित्ताशयिक नली (Cystic Duct) बनती है, जो मध्यभाग के पीछे की ओर से होती हुर्इ यकृत नली में जाकर मिल जाती है। इस प्रकार पित्त – प्रणाली (Bile Duct) का निर्माण होता है।

पाचन क्रिया विधि

हम जो कुछ भी खाते हैं। वह First मुॅह में पहुॅचता है। वहॉ दातों द्वारा उसे छोटे – छोटे टुकड़ो में कर दिया जाता है। मुॅह की गन्थियों से निकलने वाला लार नामक Single स्त्राव उस कुचले हुए भोजन को चिकना बना देता है ताकि वह गले द्वारा आमाशय से आसानी से फिसल कर पहुॅच सके। इस लार में कुछ ऐसे रासायनिक पदार्थ भी होते हैं। जो भोजन को पचाने में सहायता करते है इनमें से Single म्यूसिन है जो साग अथवा छिलकों पर अपनी क्रिया प्रकट करता है। दूसरा टाइलिन है जिसकी क्रिया कार्बोहाइडे्रट्स पर होती है। जब आहार आमशय में पहुॅचने को होता है, उस समय आमाशय की ग्रन्थियो से Single गैस्ट्रिक स्त्राव (Gastric juice) निकलता है जो Single तेजाब की तरह होता है। यह आहार द्वारा आमाशय में पहुॅचे हुए जीवाणु को Destroy करता है तथा पाचन – क्रिया में सहायता पहुॅचाता है। यह आहार को गला कर लेर्इ के Reseller में (Chyme) बदल देता है, जिसके कारण वह सुपाच्य हो जाता है। आमाशय का पेप्सीन नामक एन्जाइम Meansात् पाचक रस प्रोटीन पर क्रिया करता है और उसे Single किस्म के रासायनिक योग पेप्टोन (Peptone) में बदल देता है। आमाशय में पहुॅचा हुआ आहार Singleदम लेर्इ की भॉति घुट जाता है। वहॉ से वह पक्वाशय में पहुॅचाता है यकृत से उत्पन्न होने वाला पित्त रस पक्वाश्य में पहुॅचकर इस आहार में जा मिलता है साथ ही से अग्न्याशय का रस भी जा मिलता है। इन रसों के संयोग से भोजन घुलनशील वस्तु के Reseller में परिणत हो जाता है। आहार के पचने का अधिकांश कार्य आमाशय तथा पक्वाशय में ही होता है। तत्पश्यात् वह छोटी ऑत में होता हुआ बड़ी ऑत में पहुॅचता है। ऑतों की मांसपेशियों क्रमश: फैलती तथा सिकुड़ती हुर्इ भोजन को आगे की ओर बढाती रहती है। इस क्रिया को पेरीस्टालटिक गति (Peristaltic Moment ) कहते हैं। बड़ी ऑतो में जल के भाग का शोषण हो जाने के बाद भोजन का सार भाग द्रव के Reseller में रक्त मिल जाता है तथा ठोस भाग मल के Reseller में गुदा द्वार से बाहर निकल जाता है।

भोजन के सार भाग का शोषण दो प्रकार से होता है – (1) रक्त नलिकाओं द्वारा तथा (2) लसिका नलिकाओं द्वारा । प्रोटीन , कार्बोहाइड्रेट तथा 40 प्रतिशत चर्बी का शोषण रक्त निलकाओं द्वारा होता है तथा शेष चर्बी लसिका नलिकाओ द्वारा शोषित कर ली जाती है। प्रोटीन का शोषण मांसपेशियों द्वारा होता है। ये अपनी Needनुसार प्रोटीन ग्रहण कर शेष को छोड़ देती है तब वह शेष प्रोटीन रीनल धमनी द्वारा वृक्क में पहुॅचता है और मूत्र के Reseller में परिणत होकर मूत्र – नली द्वारा बाहर निकल जाता है।

कार्बोहाइडे्रट का अधिक भाग ग्लूकोज के Reseller में रक्त द्वारा शोषित होकर सम्पूर्ण शरीर में फैलकर उसे शक्ति प्रदान करता है। पित्त की क्रिया द्वारा चर्बी (1) साबुन तथा (2) इमल्शन इन दोनों में बदल जाती है। साबुन वाला चमर्ं के निम्न भागों , गाल उदर की बाहरी दीवार तथा नितम्बों मे Singleत्र होता है तथा इमल्शन वाला भाग लसिका नलियॉ द्वारा सम्पूर्ण शरीर में फैलकर शरीर के भीतर गर्मी पहुॅचाने का कार्य करता है। नवजात शिशु का पाचन संस्थान भली – भॉति विकसित नही हो पाता और उसमें पाचक रस भी नही बनता है, इसी कारण वह मॉ के दूध के अतिरिक्त को कुछ नही पचा पाता, परन्तु वह ज्यों ज्यों वह बड़ा होने लगता है, त्यों त्यों उसकी पाचन शक्ति भी बढ़ती चली जाती है। 50 वर्ष की आयु तक पाचन शक्ति भी बढ़ती रहती है, तत्पश्यात् वह घटने लगती है। पाचन शक्ति कमजोर हो जाने पर मनुष्य को ऐसा आहार लेने की Need पड़ती है

जो आसानी से पच जाये। वृद्धावस्था में सादा तथा हल्का भोजन लेना ठीक रहता है। भारी भेजन लेने से खून का दबाव बढ़ जाया करता है।

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