परीक्षण वैधता क्या है ?

परीक्षण वैधता का परीक्षण के उद्देश्यों से घनिष्ठ सम्बन्ध है। Single अवैध परीक्षण कभी भी निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति नहीं करता। कोर्इ परीक्षण जितनी शुद्धता और सार्थकता से अपने उद्देश्यों का मापन करता है वह परीक्षण उतना ही वैध होता है। अत: किसी परीक्षण की वैधता उसकी वह मात्रा है जिस सीमा तक वह उस वस्तु का मापन करता है जिसके लिए उसका निर्माण Reseller गया है। कोर्इ भी परीक्षण शत-प्रतिशत उद्देश्यों को पूरा नही करता Meansात् वह उस वस्तु का पूर्णResellerेण मापन नही कर पाता, जिसके लिए उसका विकास Reseller जाता है। इस प्रकार यदि कोर्इ परीक्षण उच्च मात्रा में वही मापता है जिसे मापने के लिए उसका निर्माण Reseller गया है तो उसे वैध परीक्षण कहेंगे।

  1. क्रानबेक (coronbach) के Wordों मे ‘‘किसी परीक्षण की वैधता उसकी वह सीमा है जिस सीमा तक वह, वही मापता है जिसके लिए उसका निर्माण Reseller गया है।’’
  2. फ्रीमैन (Freeman) के Wordों में ‘‘वैधता का सूचकांक उस सीमा को व्यक्त करता है जहाँ तक परीक्षण उस तथ्य को मापता है जिसके मापन हेतु उसको बनाया गया है जबकि उसे किसी स्वीकृत कसौटी के सापेक्ष तौला जाता है।’’
  3. गिलफोर्ड के According- ‘‘कोर्इ परीक्षण उस सीमा तक वैध है जहाँ तक वह अपने उद्देश्य का मापन करता है।
  4. गैरेटे के Wordों में ‘‘किसी परीक्षण या मापन उपकरण की वैधता इस बात पर निर्भर करती है कि वह कितनी शुद्धता से उस गुण का मापन करता है। जिसके लिए उसे बनाया गया है।’’

वास्तव में किसी परीक्षण की वैधता उसके स्वीकृत मानक (निकष) से सम्बन्ध की मात्रा पर निर्भर करती है Meansात कोर्इ परीक्षण स्वीकृत मानक के अनुReseller जितना मापन करता, वही उसकी वैधता की मात्रा होती है।

वैधता के प्रकार

विभिन्न मापनविदो ने वैधता के भिन्न-भिन्न वर्गीकरण दिये हैं। कुछ प्रमुख वर्गीकरण है-

क्रोनबैक ने वैधता को निम्न चार भागों में विभाजित Reseller है-

  1. पूर्वकथनात्मक वैधता (Predictive Validity)
  2. विषयगत वैधता (Content Validity)
  3. समवर्ती वैधता (Concurrent Validity)
  4. संCreationत्मक वैधता (Construct Validity)

फ्रीमैन ने वैधता के चार प्रकार बताये है-

  1. संकार्यात्मक वैधता (Operational Validity)
  2. कार्यात्मक वैधता (Functional Validity)
  3. अवयवात्मक वैधता (Factorial Validity)
  4. Reseller वैधता (Face Validity)

अनास्तेसी (Anastasi) ने वैधता को चार प्रकारों में विभाजित Reseller है-

  1. Reseller वैधता (Face Validity)
  2. विषयगत वैधता (Content Validity)
  3. अवयवात्मक वैधता (Factonial Validity)
  4. अनुभाविक वैधता (Empirical Validity)

जार्डन (Zorden) ने वैधता को दो भागों में बांटकर उन्हें फिर Seven उप प्रकारों में प्रकार बांटा है-

  1. आन्तरिक वैधता (Internal Validity) 
    1. सक्रियात्मक वैधता (Operational Validity)
    2. Reseller वैधता (Face Validity)
    3. विषयगत वैधता (Content Validity)
    4. अवयवात्मक वैधता (Faetonial Validity)
  2. वाहय वैधता (External Validity) 
    1. पूर्वकथनात्मक वैधता (Predictive Validity)
    2. संCreationत्मक वैधता (Construct Validity)
    3. समवर्ती वैधता (Concurrent Validity)

परीक्षण वैधता कर्इ प्रकार की हैं। कुछ प्रमुख वैधता के प्रकार  है-

(1) विषयगत वैधता – 

इस े पाठय् क्रम वैधता भी कहते है। इस प्रकार की वैधता उपलब्धि परीक्षण में देखी जाती हैं । यदि परीक्षण के प्रश्न या पद पाठयक्रम पर आधारित हो तथा प्रश्न पूरे पाठ्यक्रम के प्रत्येक अंश से चुने गये हो तो वह परीक्षण वैध कहा जाता है। विषय वैधता स्थापित करने के लिए बाते महत्वपूर्ण है-

  1. सम्पूर्ण पाठ्यक्रम में से प्रश्न होने चाहिए,
  2. पाठ्यक्रम का कोर्इ भाग छूटना नही चाहिए,
  3. पाठ्यक्रम के प्रत्येक भाग को उतना ही भार या महत्व मिलना चाहिए जितना आवश्यक हो
  4. प्रश्नों की भाषा And उसका कठिनार्इ स्तर छात्रों के स्तर के अनुकूल हो,

किसी परीक्षण की विषय वैधता या पाठ्यक्रम वैधता ज्ञात करने के लिए आवश्यक है कि First विषय के सम्पूर्ण पाठ्यक्रम का विश्लेषण कर लिया जाय Meansात, उसे प्रकरणों And उप प्रकरणों में विभक्त कर लेना चाहिए। इसके उपरान्त परीक्षण में सम्मिलित प्रश्नों (पदों) का मिलान पाठ्यक्रम के प्रकरणों उप-प्रकरणों, सिद्धान्तों, सम्प्रत्ययों आदि से करना चाहिए। इसके साथ-साथ परीक्षण पदों को उपरोक्त चारों कसौटियों पर जाँच लेना चाहिए। इस प्रकार किसी उपलब्धि परीक्षण की पाठ्यक्रम वैधता की जाँच की जाती है।

(2) Reseller वैधता – 

इस प्रकार की वैधता परीक्षण के प्रश्नों के Reseller को देखकर ही ज्ञात की जा सकती है। प्राय: उपलब्धि And व्यक्तित्व में Reseller वैधता ज्ञात की जाती हैं। इस प्रकार की वैधता केवल परीक्षक पदों के Reseller या प्रकृति को देखकर मालूम कर लेता है। उदाहरणार्थ गणित के उपलब्धि परीक्षण के प्रश्नों की विषय-वस्तु, भाषा And Creation को देखकर यह ज्ञात हो सकता है कि ये गणित से सम्बन्धित है या हीं। विज्ञान के उपलब्धि परीक्षण के Reseller को देखकर बताया जा सकता है कि ये विज्ञान के ही परीक्षण है। इसमें विज्ञान सम्बन्धी तथ्यों, सम्प्रत्ययों सिद्धान्तों पर आध् ाारित प्रश्न सम्मिलित किये जाते है। एनस्ेटसी के According- ‘‘Reseller वैधता का तात्पर्य इस बात से नही है कि परीक्षण द्वारा क्या मापन Reseller जाता है बल्कि इससे है कि परीक्षण किस चीज का मापन करने वाला प्रतीत होता है।’’

(3) तकर्सगंत वैधता – 

जब प्रश्न-पद उन्हीं सम्बोधों या प्रत्ययो (concepts) या इकाइयों से सम्बन्धित हो जिन्हे मापन करने का परीक्षण का उद्देश्य हो तो उसमें तर्कसंगत वैधता होती है। उदाहरणार्थ, यदि गणित परीक्षण में उद्देश्य इकाइयों के सम्बोध का मापन करना है, न कि समस्या हल करने की सामथ्र्य का, तो प्रश्न भी उसी प्रकार बनाने चाहिए, जैसे ‘‘यदि कमरे की लम्बार्इ, चौड़ार्इ तथा ऊँचार्इ क्रमश: 14 फीट, 10 फीट तथा 12 फीट हो, तो उसका आयतन-घन फीट होगा’’ इस प्रकार से विद्याथ्र्ाी की समस्या को हल करने की योग्यता का पता चलता है क्योंकि इकार्इ ‘घन फीट’ तो दी हुर्इ हैं। पर यदि इकार्इ का मापन करना है तो निम्न प्रकार से प्रश्न-Creation होनी चाहिए ‘यदि किसी कमरे की लम्बार्इ -चौड़ार्इ तथा ऊँचार्इ क्रमश: 14 फीट, 10 फीट तथा 12 फीट है। तो इसका आयतन 1680 होगा।’’

(4) कारक वैधता –

पा्र य: बुि द्ध And व्यक्तित्व परीक्षणों में कारक वैधता ज्ञात की जाती है। ऐसे बुद्धि And व्यक्तित्व परीक्षण, जहाँ विभिन्न गुणों योग्यताओं का मापन Single साथ होता है ऐसी स्थिति कारक वैधता को कारक विश्लेषण द्वारा ज्ञात Reseller जाता है। किसी परीक्षण में जो कारक या तत्व  विद्यमान होता है, उस तत्व के मापन के लिए उस परीक्षण का प्रयोग Reseller जाता है। दिये गये परीक्षण की वैधता कारक भार से परिभाषित की जाती हैं। यह कारक भार, सम्पूर्ण परीक्षण का प्रत्येक कारकों के साथ सह सम्बन्ध की गणना करके मालूम Reseller जाता हैं। उदाहरणार्थ Word भण्डार परीक्षण, मौखिक कारक से .80 सहसम्बन्धित है अत: .80 परीक्षण की कारक वैधता कही जायेगी।

(5) पूर्व कथन वैधता – 

किसी परीक्षण में पूर्व-कथन वैधता तब होती है जब इसके फलांक किसी भावी योग्यता या सामथ्र्य के बारे में पूर्व कथन करें। पूर्व कथनात्मक वैधता ज्ञात करने के लिए First परीक्षण का प्रशासन करके फलांक प्राप्त कर लेते है। कुछ समय बाद किसी कसौटी के आधार पर हम उसी पूर्व’परीक्षित समूह का मूल्यांकन करते है और फलांक लिख लेते है। इन दोनों फलांकों की श्रेणियों में सहसम्बन्ध ज्ञात कर लिया जाता है, जैसे- प्री-मेडीकल परीक्षा में प्राप्त फलांकों का प्रवेश के बाद कक्षा में प्राप्त फलांकों से सहसम्बन्ध And विक्रेता या लिपिक अभियोग्यता-परीक्षणों के फलांकों का भविष्य में विक्रय की मात्रा या लिपिक-योग्यता से सह-सम्बन्ध। पूर्व-कथनात्मक वैधता अभियोग्यता-परीक्षणों And व्यावसायिक चुनाव सम्बन्धी परीक्षणों में अत्यन्त आवश्यक है।

(6) समवर्ती वैधता – 

समवर्ती वैधता ज्ञात करने के लिए First परीक्षण प्रशासित करके फलांक प्राप्त कर लेते है, तत्पश्चात, किसी अन्य विधि या परीक्षण से योग्यता की जाँच करके फलांक प्राप्त कर लेते है और फिर इन दोनों में सह-सम्बन्ध ज्ञात करते है। उदाहरण के लिए किसी सामूहिक मानसिक परीक्षण की तुलना व्यक्तिगत मानसिक परीक्षण से की जा सकती है। नये परीक्षणों की समवर्ती वैधता पूर्व-स्थापित ख्याति प्राप्त परीक्षण से सह-सम्बन्ध निकालकर की जा सकती है। इसलिए अनेक बुद्धि-परीक्षणों को स्टेनफोर्ड-बिने या वेश्लर बुद्धि परीक्षण से सह-सम्बिन्ध् ात Reseller गया है। जब पूर्व-स्थापित परीक्षणों से सह-सम्बन्ध निकाला जाये तो यह देख लेना चाहिए कि उनमे स्वयं उच्च वैधता हो।

(7) अन्वय वैधता – 

अन्वय वैधता किसी परीक्षण की वह सीमा है जिस सीमा तक वह किसी सैद्धान्तिक अन्वय या शीलगुण का मापन करता है। इस प्रकार के अन्वय के उदाहरण बुद्धिध्, शाब्दिक प्रवाह, चलने की गति तथा दुश्चिता आदि से है। अन्वय वैधता अश्चिाक विस्तश्त क्षेत्र पर केन्द्रित होने के कारण इसके लिए अनेक स्रोतों से सूचनाएँ Singleत्र करनी पड़ती है। किसी भी शील गुण की प्रकृति से सम्बन्धित तथा उसके विकास को प्रभावित करने वाली परिस्थितियों से सम्बन्धित प्रदत्त, इस प्रकार की वैधता ज्ञात करने के लिए आवश्यक होते है।

जब Single परीक्षण निर्माता यह ज्ञात करना चाहता है कि किसी फलांक का मनोवैज्ञानिक Means क्या है या किस कारण Single व्यक्ति कोर्इ विशिष्ट फलांक प्राप्त करता है तो उसका Means यह जानना होता है कि परीक्षण में योग्यता की व्याख्या किन सम्बोधों (Concepts) के आधार पर की जाती है। इस प्रकार के सैद्धान्तिक सम्बोधों को अन्वय (Construct) कहते है और इस प्रकार की व्याख्या के वैधकरण को अन्वय वैधकरण कहते है। अन्वय वैधता ज्ञात करने के लिए परीक्षण पर प्राप्त अंकों तथा अन्य गुणों के प्राप्तांकों के बीच सम्बन्ध स्थापित Reseller जा सकता है। कारक विश्लेषण (Factor Analysis) नामक सांख्यिकीय विधि के द्वारा भी अन्वय वैधता स्थापित की जाती है।

वैधता स्थापित करने की विधियाँ

परीक्षण की वैधता ज्ञात करने की विधियों को दो मुख्य भागों में बांटा जा सकता है- (1) ताकिर्क विधियाँ (Rational Methods) या आन्तरिक कसौटी (Internal Criterion) पर आधारित विधियाँ- (2) सांख्यिकीय विधियाँ (Statistical methods) या वाह्य कसौटी (External Criterion) पर आधारित विधियाँ-

(1) तार्किक विधियाँ या आन्तरिक कसौटी पर आधारित वैधता- 

इसके अन्तगर्त पा्रय: यह देखा जाता है कि सम्पूर्ण परीक्षण के पदों तथा उसके उपवर्गो के पदों में परस्पर कितना सह-सम्बन्ध है। तार्किक विधियों के अन्तर्गत तकोर्ं के आधार पर परीक्षण की वैधता को स्पष्ट Reseller जाता है। परीक्षण के निर्माण, परीक्षण के प्रयोग तथा परीक्षण के Reseller से सम्बन्धित अनेक कारकों की व्याख्या करके परीक्षण की वैधता के सम्बन्ध में निर्णय लिया जाता हैं इसके अन्तर्गत Reseller वैधता, विषयवस्तु वैधता, तार्किक वैधता या कारक वैधता आते है।

(2) सांख्यिकीय विधियां या बाह्म कसौटी पर आधारित विधियाँ- 

किसी परीक्षण की वैधता ज्ञात करने के लिए सह-सम्बन्ध गुणाकं , टी-परीक्षण, कारक विश्लेषण, द्विपाँतिक सहसम्बन्ध, चतुवकोण्टिक सह- सम्बन्ध, बहु सहसम्बन्ध जैसी सांख्यिकीय विधियों का भी प्रयोग Reseller जाता हैं। इसके अन्तर्गत पूर्व कथित वैधता, समवर्ती वैधता, तथा कारक वैधता सांख्यिकीय आधार पर ही स्थापित की जाती है। इन विधियों में किसी बाह्म कसौटी के आधार पर वैधता गुणांक ज्ञात Reseller जाता है। इसलिए इस प्रकार की वैधता को बाह्म कसौटी पर आधारित वैधता भी कहा जाता है।

वैधता को प्रभावित करने वाले कारक 

  1. अस्पष्ट निर्देश (Unclear Instruction)- परीक्षण के सम्बन्ध में यदि परीक्षार्थियों को स्पष्ट निर्देश नही दिये जाते है तो परीक्षण की वैधता कम हो जाती हैं। जैसे प्रश्नों के उत्तर किस तरह से देने है या समय सीमा क्या हो जैसी अन्य बातों को परीक्षार्थियों को ठीक ढंग से न मालूम होने के कारण परीक्षण की वैधता कम हो जाती है।
  2. अभिव्यक्ति का माध्यम (Medium of Expression)- यदि परीक्षण परीक्षार्थियों की मातश् भाषा या उनके क्षेत्रीय भाषा में निर्मित Reseller जाता है तो वे परीक्षण के प्रश्नों को ठीक प्रकार से समझकर उनका उत्तर दे सकेगे जैसे हिन्दी भाषी छात्रों के लिए अंग्रेजी भाषा में बने गणित परीक्षण का प्रयोग करने पर परीक्षण की वैधता अत्यन्त कम प्राप्त हो सकेगी।
  3. प्रश्नों की भाषा एवम  Wordावली (language and Vocabulary of Items)- परीक्षण यदि परीक्षार्थियों के लिए अत्यधिक क्लिष्ट Word तथा साहित्यिक भाषा में होगा तो भी परीक्षण की वैधता कम प्राप्त हो सकेगी।
  4. प्रश्नों का कठिनार्इ स्तर- परीक्षण में पय्रुक्त अत्यधिक सरल व कठिन प्रश्नों से भी परीक्षण वैधता घट जाती हैं। इसके अतिरिक्त प्रारम्भ में कठिन प्रश्नों के रखे जाने से भी छात्र अधिक समय उन पर लगा देते है।
  5. प्रश्नों की वस्तुनिष्ठता- वस्तुनिष्ठ परीक्षणों की वैधता अधिक होती है जबकि निबन्धात्मक परीक्षणों की वैधता कम पायी जाती है।
  6. पक्ररणों का अवांछित भार- परीक्षण में यदि मापी जा रही योग्यता की All विमाओं को परीक्षण में सम्मिलित नही Reseller गया है कुछ को अंवाछित भार दे देने के कारण भी परीक्षण परिणामों की वैधता कम हो जाती है।
  7. मापन का उद्देश्य (Objective of Measurement) कोर्इ भी परीक्षण जिन निश्चित उद्देश्यों को ध्यान में रखकर निर्मित Reseller जाता है परीक्षण की वैधता उन्ही निश्चित उद्देश्यों के लिये हो वैध होती है। अन्य उद्देश्यों लिये वह वैध नही होगा।
  8. परीक्षण की लम्बार्इ (Length of the Test)- परीक्षण में प्रश्नों की संख्या बढ़ाने से न केवल विश्वसनीयता बढ़ती है अपितु वैधता भी बढ़ जाती है। किन्तु परीक्षण की लम्बार्इ बढ़ाते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि प्रश्नों के प्रकार Reseller, विषय वस्तु कठिनार्इ स्तर आदि में कोर्इ परिवर्तन नही आना चाहिए, परीक्षण की लम्बार्इ तथा उसकी वैधता के सम्बन्ध को निम्न सूत्र से व्यक्त Reseller जा सकता है। जहाँ-  rc1 = सहसम्बन्ध के Reseller में मूल परीक्षण का निकष वैधता गुणांक rcn = सहम्बन्ध के Reseller में संशोधित (n गुने) परीक्षण का निकष वैधता गुणांक  r = मूल परीक्षण का विश्वसनीयता गुणांक
  9. सांस्कृतिक प्रभाव- (Cultural Influencess)- किसी सामाजिक आर्थिक स्तर, वर्ग Creation, शैक्षिक विभिन्नता आदि का छात्र की बुद्धि अभिक्षमता, रूचि तथा अभिवृत्ति पर प्रभाव पड़ता है अत: Single सांस्कृतिक परिस्थिति में बना परीक्षण दूसरी सांस्कृतिक परिस्थिति में रहने वाले परीक्षार्थियों या प्रयोज्यों के लिए उपयुक्त नही होता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि सांस्कृतिक तत्व परीक्षण-वैधता को प्रभावित करते है।
  10. प्रतिक्रिया प्रवृत्ति (Response Sets)- प्रतिक्रिया प्रवृत्ति से तात्पर्य छात्र की परीक्षण पर उत्तर देने की आदत से है। जैसे Agreeि प्रवृत्ति में व्यक्ति बिना Agree हुए भी अधिकांश प्रश्नों पर हाँ, सत्य या Agreeि पर निशान लगाता है। उसी प्रकार अनिश्चय की प्रवश्त्ति वाला छात्र अधिकांशत: अनिश्चितता, उदासीनता, आदि पर निशान लगाता है। परीक्षण प्राप्तांकों को प्रभावित करके उनकी वैधता को कम कर देती है।
  11. वैधता के मूल्य पर अधिक विश्वसनीयता- परीक्षण मे प्रश्नों की संख्या बढ़ने से विश्वसनीयता बढ़ती है लेकिन इससे कभी-कभी वैधता में कमी हो जाती है। इसलिए यह ध्यान रखना चाहिए कि परीक्षण की विश्वसनीयता बढ़ाते समय ऐसे ही प्रश्न जोड़े जाय जो परीक्षण की वैधता को भी बढ़ा सकें।

वैधता तथा विश्वसनीयता में सम्बन्ध

परीक्षण विश्वसनीयता से हमारा तात्पर्य परीक्षण में विश्वास करना या परीक्षण में आस्था रखने से है Meansात, यदि Single परीक्षण द्वारा किसी छात्र की बार-बार परीक्षा ली जाय और उसमें वह Single निश्चित अंक ही प्राप्त करें तो वह परीक्षण विश्वसनीय कहलायेगा। परीक्षण वैधता में यह देखा जाता है कि जिस उद्देश्य से परीक्षण का निर्माण हो रहा है। उस उद्देश्य की पूर्ति हो रही है अथवा नही। यदि परीक्षण अपने उद्देश्यों की प्राप्ति कर लेता है तो उसे  वैधता कहा जायेगा।

किसी परीक्षण की विश्वसनीयता तथा वैधता Single ही सिक्के के दो पहलू है। वैधता के लिए विश्वसनीयता का होना आवश्यक है, परन्तु परीक्षण की विश्वसनीयता के लिए उसका वैध होना आवश्यक नही है। उदाहरणार्थ-Single घड़ी विश्वसनीय कही जायेगी यदि वह हर समय Single समान गति से चले। मान लीजिये, उस घड़ी में किसी अमुक क्षण नित्य 6 बजते है जबकि रेडियों समय (Indian Customer समय) के According उस क्षण 6 बजकर 10 मिनट होते है। ऐसी स्थिति में वह घड़ी विश्वसनीय कही जायेगी परन्तु वैध नहीं होगी क्योंकि वह प्रत्येक दिन उस क्षण वही समय बताती है किन्तु वह Indian Customer समय के According समय का मापन शुद्ध Reseller में नही करती। यदि वही घड़ी Indian Customer समय या रेडियों समय के According चले (यानि उस क्षण घड़ी समय 6 बजकर 10 मिनट बताये तो वह घड़ी विश्वसनीय And वैध दोनों कही जायेगी। इसी प्रकार मनोवैज्ञानिक परीक्षण विश्वसनीय होने के साथ-साथ वैध भी होना चाहिए इस सम्बन्ध में फ्रीमैन के विचार निम्न है

‘‘Single वैध परीक्षण की आवश्यक शर्त यह है कि वह पर्याप्त सीमा तक विश्वसनीय हो। यदि परीक्षण का विश्वसनीयता गुणांक शून्य है तो वह किसी भी अन्य परीक्षण से सह-सम्बन्धित नहीं होगा।

सांख्यिकीय दृष्टिकोण से, किसी भी परीक्षण की वैधता का अधिकतम् मान उसकी विश्वसनीयता के वर्गमूल के बराबर हो सकता है। Second Wordों में परीक्षण की वैधता गुणांक उसके विश्वसनीयता गुणांक के वर्गमूल से अधिक नहीं हो सकता है। स्पष्ट है कि विश्वसनीयता गुणांक के घटने पर अधिकतम वैधता गुणांक का मान भी घट जायेगा। विश्वसनीयता गुणांक शून्य होने पर वैधता गुणांक भी शून्य हो जायेगा। अत: विश्वसनीय परीक्षण वैध नही हो सकता है जबकि Single वैधता विहीन परीक्षण विश्वसनीय हो भी सकता है।

क्रॉस वैधता

क्रांस वैधता से तात्पर्य परीक्षण की वैधता को पुन: स्थापित करने से है। किसी भी परीक्षण की वैधता कुछ निश्चित उद्देश्यों व परिस्थितियों के लिये ही होती है। किसी अन्य उद्देश्यों व परिस्थितियों में परीक्षण प्रयोग करने पर  वैधता परिणाम नही प्राप्त होते है। उदाहरण के लिए आज से पन्द्रह वर्ष पूर्व तैयार Reseller गया बुद्धि, व्यक्तित्व परीक्षण वर्तमान में वैद्य नही भी हो सकता है। इसी प्रकार किसी अन्य देश के लिये बनाया गया परीक्षण भारत देश के लिए  वैध नही हो सकता है। जब किसी परीक्षण का उपयोग किन्ही अन्य उद्देश्यों या परिस्थितियों में करना चाहते है तब First उसका क्रास वैधकरण करते है। इसमें माना जाता है कि परीक्षण की वैधता परिस्थितिनुसार परिवर्तित हो सकती है इसलिए नवीन परिस्थितियों में वैधता का प्रमाण पुन: Singleत्रित करना चाहिए। स्पष्ट है कि नवीन परिस्थिति में परीक्षण की वैधता सुनिश्चित करने के उपरान्त ही परीक्षण का तर्कसंगत ढंग से प्रयोग Reseller जा सकता है।

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