परिकल्पना या ‘उपकल्पना’ क्या है ?

किसी भी अनुसंधान और सर्वेक्षण के समस्या के चुनाव के बाद अनुसंधानकर्ता समस्या के बारे में कार्य-कारण सम्बन्धों का पूर्वानुमान लगा लेता है या पूर्व चिन्तन कर लेता है यह पूर्व चिन्तन या पूर्वानुमान ही प्राक्कल्पना, परिकल्पना या ‘उपकल्पना’ कहलाती जॉर्ज लुण्डबर्ग ने अपनी पुस्तक “Social Research” में उपकल्पना को परिभाषित करते हुए लिखा है कि ‘‘उपकल्पना Single सामयिक तथा काम चलाऊ सामान्यीकरण अथवा निष्कर्ष है जिसकी सत्यता की परीक्षा करना शेष है। अपने बिल्कुल प्रारम्भिक चरणों में उपकल्पना कोर्इ मनगढ़न्त अनुमान, कल्पनापूर्ण विचार अथवा सहजज्ञान, इत्यादि कुछ भी हो सकता है, जो क्रिया अथवा अनुसंधान का आधार बन जाता है।’’ एफ.एन. कर्लिंगर का कहना है, ‘‘Single उपकल्पना दो या दो से अधिक परिवत्र्यों के बीच सम्बन्ध प्रदर्शित करने वाला Single अनुमानात्मक कथन है।’’ पी.वी. यंग के According, ‘‘Single कार्यवाहक उपकल्पना Single कार्यवाहक केन्द्रीय विचार है जो उपयोगी अध्ययन का आधार बन जाता है।’’

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर यह सुगमतापूर्वक विश्लेषित Reseller जा सकता है कि उपकल्पना Single ऐसा कार्यकारी तर्क-वाक्य, कल्पनात्मक धारणा या पूर्वानुमान होता है जिसे अनुसंधानकर्ता अनुसंधान की प्रकृति के आधार पर First से निर्मित कर लेता है And अनुसंधान के दौरान उसकी वैधता की परीक्षा करता है। यह उपकल्पना सत्य And असत्य दोनों हो सकती है। यदि अनुसंधान में संकलित And विश्लेषित किए गए तथ्यों के आधार पर उपकल्पना प्रमाणित हो जाती है And इसी प्रकार की उपकल्पनाएँ अनेक बार, अनेक स्थानों पर Meansात् समय व काल से परे प्रमाणित होती जाती हैं तो वे धीरे- धीरे Single सिद्धान्त के Reseller में प्रतिस्थापित हो जाती हैं।

उपकल्पना की विशेषताएँ 

गुडे And हॉट ने सामाजिक अनुसंधान में उपयोगी उपकल्पना की विशेषताओं की विवेचना की है –

  1. स्पष्टता : उपकल्पनाओं का अवधारणात्मक Reseller में स्पष्ट होना परमावश्यक है। उपकल्पना की स्पष्टता में, गुडे तथा हॉट के According, दो बातें सम्मिलित हैं – Single तो यह कि उपकल्पना में निहित अवधारणाओं को स्पष्ट Reseller से परिभाषित Reseller जाए ओर दूसरी यह कि परिभाषाऐं ऐसी स्पष्ट भाषा में लिखी जाएँ कि अन्य लोग भी सामान्यत: उसका सही Means समझ सकें।
  2. अनुभवाश्रित सन्दर्भ : इस विशेषता का तात्पर्य यह है कि वही उपकल्पना वैज्ञानिक अनुसंधान में प्रयुक्त की जा सकती है जिसमें कि आदर्शात्मक निर्णय का पुट नहीं है। इसका Means यह है कि वैज्ञानिक को अपनी उपकल्पना में किसी आदर्श को प्रस्तुत करने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए। अपितु उसका सम्बन्ध ऐसे विचार या ऐसी अवधारणा से होना चाहिए जिसकी सत्यता की परीक्षा वास्तविक प्रयोग अथवा वास्तविक तथ्यों क¢ आधार पर की जा सके
  3. विशिष्टता : उपकल्पना अगर अत्यन्त सामान्य है तो उससे यथार्थ निष्कर्ष तक पहुँचना संभव नहीं होता हैय क्योंकि किसी विषय के All पक्षों का वैज्ञानिक अध्ययन हम Single ही समय पर नहीं कर सकते, अत: यथार्थ ज्ञान की प्राप्ति के लिए यह आवश्यक है कि उपकल्पना अध्ययन-विषय के किसी विशेष पहलू से सम्बद्ध होय अगर उसमें विशिष्टता का गुण नहीं हुआ तो उसकी सत्यता की जाँच करना भी कठिन हो जाता है, और जो उपकल्पना जाँच से परे है वह वैज्ञानिक के लिए निरर्थक भी है।
  4. उपलब्ध प्रविधियों से सम्बद्ध : उपकल्पना का निर्माण इस बात को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए कि उसकी सत्यता की जाँच उपलब्ध प्रविधियों द्वारा संभव हो। इसका तात्पर्य यह है कि उपकल्पना इस प्रकार की हो कि वह अनुसंधान का Single सामयिक आधार भी बन सकती है या नहीं, इसकी परीक्षा उपलब्ध प्रविधियों द्वारा की जा सके। सिद्धान्त समूह से सम्बद्ध : उपकल्पना अध्ययन विषय से सम्बद्ध किसी पूर्वस्थापित सिद्धान्त के क्रम में हो क्योंकि असम्बद्ध उपकल्पनाओं की परीक्षा विस्तृत सिद्धान्तों के सन्दर्भ में ही की जा सकती है।

उपकल्पनाओं के प्रकार 

Single अनुसंधानकर्ता के लिए इस बात की जानकारी भी आवश्यक है कि सामाजिक विज्ञानों में किन-किन प्रकारों की उपकल्पनाओं का प्रयोग Reseller जाता है। सामाजिक यथार्थ की जटिल And अमूर्त प्रकृति के कारण उपकल्पनाओं का कोर्इ Single सर्वमान्य वर्गीकरण प्रस्तुत करना संभव नहीं है। अत: अनेक विद्वानों ने अपने-अपने मतानुसार उपकल्पनाओं को वर्गीकृत Reseller है।

मैक गुइगन ने तीन प्रकार की उपकल्पनाएँ बतार्इ हैं –

  1. सार्वभौमिक (Universal) : इस वर्ग में वे उपकल्पनाऐं सम्मिलित की जाती है जिनका अध्ययन Reseller जाने वाला सम्बन्ध All चरों से All समय तथा All स्थानों पर रहता है। 
  2. अस्तित्वात्मक (Existential) : ऐसी उपकल्पना जो कम से कम Single मामलें में चरों के अस्तित्व को उचित घोषित कर सके। 

हेज ने दो प्रकार की उपकल्पनाएँ बतार्इ है :

  1. सरल उपकल्पना – इसमें किन्हीं दो चरों में सहसम्बन्ध ज्ञात करते हैं। 
  2. जटिल उपकल्पना – इसमें Single से अधिक चर होते हैं तथा उनमें सहसम्बन्ध ज्ञात करने के लिये उच्च सांख्यिकीय प्रविधियों का प्रयोग करते हैं। 

वैज्ञानिक अनुसंधान में उपकल्पना को सिद्ध करना वैज्ञानिक का मुख्य कार्य है। वैज्ञानिक अस्तित्वात्मक उपकल्पना द्वारा अपनी अनुसंधानिक उपकल्पना को सिद्ध करने में अधिक सफल रह सकता है तथा वह किसी घटना के अस्तित्व को स्थापित करता है। तत्बाद वह अध्ययन की जाने वाली घटना का सामान्यीकरण करना चाहता है। किसी विशिष्ट घटना का अस्तित्वात्मक उपकल्पना द्वारा अध्ययन अथवा निरीक्षण करना कठिन कार्य है। इसी कारण अति विशिष्ट उपकल्पना से सार्वभौमिक उपकल्पना बनाने में यह कठिनार्इ अनुभव करता है। वैज्ञानिक का मुख्य कार्य यह स्थापित करना होता है कि किन विशेष दशाओं में कोर्इ घटना उत्पन्न होती है जिससे वह आवश्यक दशाओं को पाकर सार्वभौमिक उपकल्पनाओं का निर्माण कर सके। अनुसंधानों में सार्वभौमिक कथनों की भी Need होती है। सार्वभौमिक कथनों में पुर्वानुमान मूल्य अधिक होता है। अतएव इस प्रकार के कथन अनुसंधान में अधिक महत्वपूर्ण है।

  1. सकारात्मक कथन : इसमें उपकल्पना का कथन सकारात्मक Reseller में करते हैंय जैसे वर्ग ‘अ’ की बुद्धिलब्धि वर्ग ‘ब’ से अधिक है।
  2. नकारात्मक कथन : इस प्रकार की उपकल्पना में कथन नकारात्मक होता हैय जैसे वर्ग ‘अ’ की बुद्धिलब्धि वर्ग ‘ब’ से अधिक नहीं है। 

इन दोनों प्रकार की उपकल्पनाओं को निर्देशित उपकल्पना कहते हैं। इनमें Single दोष यह होता है कि जब अनुसंधानकर्ता Single कथन सकारात्मक अथवा नकारात्मक Reseller में कर देता है तो उसमें उनके स्वनिहित हो जाने की संभावना रहती है।

शून्य उपकल्पना (Null Hypothesis) : इसमें यह मानकर चलते हैं कि दो चर जिनमें सम्बन्ध ज्ञात करने जा रहे हैं उनमें कोर्इ अन्तर नहीं है। नल (Null) जर्मन भाषा का Word है जिसका Means होता है ‘‘शून्य’’। अत: इस उपकल्पना को शून्य उपकल्पना भी कहते हैं उदाहरणार्थ वर्ग ‘अ’ और वर्ग ‘ब’ की बुद्धिलब्धि में कोर्इ अंतर नहीं है। शून्य उपकल्पना को नकारात्मक उपकल्पना इस Means में मानते हैं कि इसमें यह मानकर चलते हैं कि दो चरों में कोर्इ सम्बन्ध नहीं है अथवा दो समूहों में किसी विशेष चर के आधार का कोर्इ अन्तर नहीं है।

गुडे And हॉट ने “Methods in Social Research” में उपकल्पनाओं के तीन प्रकारों का History Reseller है: —

आनुभविक SingleResellerताओं सम्बन्धी (Related to Empirical Uniformities) : समाज और संस्कृति में अनेक कहावतें, मुहावरें, लोकोक्तियाँ होती हैं जिनको उससे सम्बन्धित All लोग जानते हैं तथा सत्य मानते हैं। सामाजिक अनुसंधानकर्ता उन्हीं को उपकल्पना बनाकर अवलोकनों, आनुभविक तथ्यों तथा आँकड़ों को Singleत्र करके उनकी जाँच करते हैं और निष्कर्ष के Reseller में उन्हें प्रस्तुत करते हैं। इस प्रकार की उपकल्पनाएँ सामान्य ज्ञान पर आधारित कथनों का आनुभविक तथ्यों द्वारा परीक्षण करती हैं।

आदर्श प्राResellerों सम्बन्धी (Related to Complex Ideal Types) : कुछ उपकल्पनाएँ जटिल आदर्श प्राResellerों से सम्बन्धित होती है। इन उपकल्पनाओं का उद्देश्य आनुभविक समResellerताओं के बीच तार्किक आधार पर निकाले गये सम्बन्धों का परीक्षण करना है। इन उपकल्पनाओं का उद्देश्य तथा कार्य उपकरणों तथा समस्याओं का निर्माण करना है। इसमें आगे जटिल क्षेत्रों में अनुसंधान करने के लिए सहायता मिलती है। आदर्श प्राReseller से सम्बन्धित उपकल्पनाओं की जाँच तथ्य Singleत्र करके की जाती हैय और तत्बाद निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

विश्लेषणात्मक चरों सम्बन्धी (Related to Analytical Variables) : यह उपकल्पना चरों के तार्किक विश्लेषण के अतिरिक्त विभिन्न चरों में परस्पर क्या गुण सम्बन्ध हैं, उसका भी विशेष Reseller से विश्लेषण करती है। विभिन्न चर Single Second को प्रभावित करते हैं । इन प्रभावों का तार्किक आधार ढूढ़ना इन उपकल्पनाओं का उद्देश्य है। विश्लेषणात्मक चरों से सम्बन्धित उपकल्पनाएँ अमूर्त प्रकृति की होती हैं। प्रयोगात्मक अनुसंधान में इन उपकल्पनाओं का विशेष Reseller से प्रयोग Reseller जाता है।

उपकल्पना निर्माण के स्त्रोत  

सामान्यत:, सामाजिक विज्ञानों में उपकल्पनाओं के दो प्रमुख स्त्रोतों का History Reseller गया है:-

  1. वैयक्तिक या निजी स्त्रोत – इसमें अनुसंधानकर्ता की अपनी स्वयं की अन्तदर्ृष्टि, सूझ-बूझ, विचार, अनुभव कुछ भी हो सकता है। वह सामान्यतया अपनी प्रतिभा तथा अनुभवों के आधार पर उपकल्पना का निर्माण कर सकता है। 
  2. बाह्य स्त्रोत – इसमें कोर्इ भी साहित्य, कल्पना, कहानी, कविता, नाटक, उपन्यास आदि कुछ भी हो सकता है जो कि उपकल्पना का स्त्रोत होता है।

गुडे And हॉट ने Methods in Social Research में उपकल्पना के चार स्त्रोतों का History Reseller है :-

  1. सामान्य संस्कृति : व्यक्तियों की गतिविधियों को समझने का सबसे अच्छा तरीका उनकी संस्कृति को समझना है। व्यक्तियों का व्यवहार And उनका सामान्य चिन्तन, Single सीमा तक उनकी अपनी संस्कृति के अनुReseller ही होता है। अत: अधिकांश उपकल्पनाओं का मूल स्त्रोत वह सामान्य संस्कृति होती है, जिसमें विशिष्ट विज्ञान का विकास होता है। सामान्य संस्कृति को तीन प्रमुख भागों में बाँटकर समझा जा सकता है :- (i) सांस्कृतिक पृष्ठभूमि (ii) सांस्कृतिक चिन्ह (iii)  सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तन। सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का तात्पर्य है कि जिस सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में हम रहते हैं उस संस्कृति की जो विशेषताएँ है वह उपकल्पना का स्त्रोत बन सकती है जैसे भारत व ब्रिटेन की पृथक-पृथक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि। सांस्कृतिक चिन्ह के अन्तर्गत लोक विश्वास, लोक कथाएँ उपकल्पना का स्त्रोत हो सकती हैं। सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तनों के कारण परिवर्तित सांस्कृतिक मूल्य भी उपकल्पना के स्त्रोत बन सकते हैं।
  2. वैज्ञानिक सिद्धान्त : वैज्ञानिक सिद्धान्त जो समय-समय पर वैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तुत किये जाते हैं, भी उपकल्पना के स्त्रोत हो सकते हैं। प्रत्येक विज्ञान में अनेकों सिद्धान्त होते हैं। इन सिद्धान्तों से हमें Single विषय के विभिन्न पहलुओं के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त होती है। इस प्रकार इन सिद्धान्तों के अन्तर्गत सम्मिलित पक्षों के सम्बन्ध में प्राप्त ज्ञान भी उपकल्पनाओं का स्त्रोत माना जा सकता है।
  3. सादृश्यताएँ : जब कभी दो क्षेत्रों में कुछ समानताएँ या समResellerताएँ दिखार्इ देती हैं तो, सामान्यतया, इस आधार पर भी उपकल्पनाओं का निर्माण कर लिया जाता हैय Meansात, ऐसी समResellerताएँ भी उपकल्पना के लिये स्त्रोत बन जाती हैं। कभी-कभी दो तथ्यों के मध्य समानता के कारण नर्इ उपकल्पना का जन्म होता है, और इनकी प्रेरणा का कारण सादृश्ताएँ होती हैं।
  4. व्यक्तिगत अनुभव : व्यक्तिगत अनुभव भी उपकल्पना का महत्वपूर्ण स्त्रोत है। न्यूटन ने पेड़ से गिरने वाले सेव को देखकर गुरूत्वाकर्षण के महान सिद्धान्त की Creation की। इसी प्रकार, डार्विन को जीवन संघर्ष And उपयुक्त व्यक्ति की जीवन क्षमता का सिद्धान्त स्थापित करने में अपने व्यक्तिगत अनुभवों पर ही उपकल्पनाओं का निर्माण करना पड़ा था।

उपकल्पना का महत्व 

अनुसंधान में उपकल्पना के महत्व को अनेक प्रकार से दर्शाया गया है। विद्वान इसकी तुलना धु्रवतारे And कुतुबनुमा से करते हैं, तो कुछ विद्वान समुद्र में जहाजों को रास्ता दिखलाने वाले प्रकाश स्तम्भ से जो वैज्ञानिकों को भटकने से बचाते हैं। इसी के द्वारा अनुसंधानकर्ता सत्य और असत्य की पुष्टि करता है And विषय से सम्बन्धित वास्तविकता का पता लगाता है। उपकल्पना के महत्व की विवेचना हम इस प्रकार कर सकते हैं:-

  1. अध्ययन के उद्देश्य का निर्धारण : उपकल्पना हमारे अध्ययन के उद्देश्य को निर्धारित करती है। उपकल्पनाएँ हमें यह बताती है कि हमें किन तथ्यों का संकलन करना है और किनका नहीं, कौन से तथ्य हमारे उद्देश्य के अनुReseller और सार्थक है तथा कौन से निरर्थक।
  2. अध्ययन को उचित दिशा प्रदान करना : उपकल्पनाएँ अनुसंधानकर्ता का ध्यान अध्ययन-विषय के Single विशिष्ट पहलू पर केन्द्रित कर देती है और अनुसंधानकर्ता उसी के According Single निश्चित दिशा की ओर बढ़ता चला जाता है। उपकल्पना के आधार पर अनुसंधानकर्ता यह जानता है कि उसे क्या करना है और क्या नहीं करना है ? वास्तव में ठीक-ठीक उपकल्पना का निर्माण कर लेने से न केवल अध्ययन क्षेत्र का ही अपितु लक्ष्य का भी, स्पष्टीकरण हो जाता है और अनुसंधानकर्ता का प्रत्येक प्रयास उद्देश्यपूर्ण हो जाता है।
  3. अध्ययन क्षेत्र को सीमित करना : तथ्यों की दुनियां बहुत बड़ी है और किसी भी अनुसंधानकर्ता के लिये यह संभव नहीं है कि वह Single विषय से सम्बद्ध All पहलुओं का Single ही समय पर अध्ययन करे, अगर ऐसा Reseller गया तो अध्ययन विषय के सम्बन्ध में कोर्इ भी विशिष्ट व यथार्थ ज्ञान हमें प्राप्त नहीं हो सकता। ऐसी स्थिति में उपकल्पना अध्ययन क्षेत्र को सीमित कर अध्ययन विषय के Single विशिष्ट पहलू पर अनुसंधानकर्ता का ध्यान आकर्षित करती रहती है।
  4. तथ्यों के संकलन में सहायक : उपकल्पना अनुसंधानकर्ता को समस्या से सम्बन्धित उपयुक्त तथ्यों को संकलित करने को प्रेरित करती है। प्रारम्भ में ऐसा भी हो सकता है कि वैचारिक अस्पष्टता के कारण हम All तथ्यों को Singleत्रित कर लेते हैं किन्तु बाद में उनमें से हमें कुछ विशिष्ट तथ्यों का ही चुनाव करना पड़ता है। इस कार्य में उपकल्पना सहायक होती है।
  5. निष्कर्ष निकालने में सहायक : जो भी वैज्ञानिक अध्ययन उपकल्पना के निर्माण में प्रारम्भ होता है। उसमें अध्ययन के अन्त में निष्कर्ष निकालने में उपकल्पना बहुत अधिक सहायक सिद्ध होती है क्योंकि तथ्यों का संकलन, वर्गीकरण और सारणीयन उपकल्पना को ध्यान में रखकर Reseller जाता है। इसके बाद जब निष्कर्ष निकाले जाते हैं तो उसमें यह देखा जाता है कि उपकल्पना सत्य है अथवा असत्य। उपकल्पना में जिन तथ्यों का परस्पर गुण सम्बन्ध दिया होता है उन्हीं की सत्यता की जॉंच करके अध्ययनकर्ता निष्कर्ष Reseller में प्रस्तुत करता है। सिद्धान्त निर्माण में सहायक : उपकल्पना तथ्यों व सिद्धान्तों के बीच की कड़ी है, क्योंकि जब उपकल्पना सत्य सिद्ध हो जाती है तथा स्थापित हो जाती है तो वह Single सिद्धान्त का भाग बन जाती है।

उपकल्पना की सीमाएँ 

उपकल्पनाएँ सामाजिक अनुसंधान में मार्गदर्शन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। फिर भी यदि इसका प्रयोग सावधानी से नहीं Reseller गया तो यह अध्ययन के लिए खतरा भी पैदा कर सकती है इसकी सीमाएँ है :-

  1. अनुसंधान की असावधानियाँ : अनुसंधानकर्ता उपकल्पना के निर्माण के समय स्वयं की भावनाओं, पूर्वाग्रहों तथा इच्छाओं पर नियन्त्रण नहीं कर पाता है, इस असावधानी के कारण उपकल्पना में पक्षपात आ जाता है जिसके फलस्वReseller दोषपूर्ण परिणाम निकलते हैं।
  2. उपकल्पना को अंतिम मार्गदर्शक मानना : अध्ययनकर्ता उपकल्पना को अंतिम मार्गदर्शक मान बैठता है, और जैसी उपकल्पना होती है उसी को ध्यान में रखकर तथ्यों को Singleत्र करता है। अध्ययन क्षेत्र में स्वयं के विवेक को बिल्कुल काम में नहीं लेता है। इससे अध्ययन वैज्ञानिक नहीं रह पाता है।
  3. अध्ययन में पक्षपात : कर्इ बार अनुसंधानकर्ता अपनी किसी विशिष्ट रूचि और संवेग के कारण Single विशेष अध्ययन-विषय का चुनाव करता है और उसके प्रति पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाता है। तब उसके द्वारा Reseller जाने वाला अध्ययन अवैज्ञानिक हो जाता है।
  4. उपकल्पना आधारित तथ्य : प्रारम्भ में अध्ययकर्ता उपकल्पना के आधार पर ही तथ्यों का संकलन करता है। उसे चाहिये कि वह वास्तविक तथ्यों के आधार पर अपनी उपकल्पना में संशोधन And परिवर्तन कर लेय ऐसा न करने पर संकलित तथ्य असंगत And व्यर्थ सिद्ध होते हैं।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि उपकल्पना अपने आप में अनुसंधान में महत्वपूर्ण कार्य करती हैय लेकिन थोड़ी सी असावधानी से वह हानिकारक सिद्ध हो सकती है। यंग का कहना है कि अध्ययनकर्ता को तथ्यों को सिद्ध करने की ओर ध्यान नहीं देना चाहियेय उसे तो परिस्थिती को सीखनें तथा समझने की ओर ध्यान रखना चाहिएय अत:, उसे उपकल्पना के प्रति तटस्थ रहना चाहिए।

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