निर्देशन का Means, परिभाषा And उद्देश्य

Human अपने जीवन काल में व्यक्तिगत व सामाजिक दोनों ही पक्षों में अधिकतम विकास लाने के लिए सदैव सचेष्ट रहता है इसके लिये वह अपने आस पास के पर्यावरण को समझता है और अपनी सीमाओं व सम्भावनाओं, हितों व अनहितों गुणों व दोषों को तय कर लेता है। परन्तु जीवन की इस चेष्टा में कभी वे क्षण भी आते हैं जहॉ पर वह इन अद्भुत क्षमताओं का प्रदर्शन अपनी योग्यता के अनुReseller नहीं कर पाता है और तब वह इसके लिये Second से सहयोग लेता है जिससे वह अपनी समस्या को समझ सके And अपनी क्षमता के योग्य समाधान निकाल सके। यह प्रयास सम्पूर्ण जीवन चलता है और यह जीवन के विविध पक्षों के साथ बदलता जाता है यही निर्देशन कहलाता है। यह आदिकाल से ही ‘सलाह’ के Reseller में विद्यमान थी परन्तु बीसवीं सदी में इसका वर्तमान स्वReseller उभरा। निर्देशन का Means स्पष्ट करने के लिये इसका समझना आवश्यक है। अनेक विद्वानों ने इसे Single विशिष्ट सेवा माना है और यह व्यक्ति को उसके जीवन के विविध पक्षों में सहयोग देने हेतु प्रयुक्त Reseller जाता है। यह वास्तव में निर्देशन कार्मिक द्वारा किसी व्यक्ति को उसकी समस्या को दृष्टिगत रखते हुये अनेक विकल्प बिन्दुओं से अवगत कराते हुये अपेक्षित राय व सहायता देने की प्रक्रिया है।

वास्तव में शिक्षा And निर्देशन Single Second के पर्याय हैं क्योंकि इन दोनों के अन्तर्गत व्यक्ति या बालक को उसके शैक्षिक,व्यावसायिक, व्यक्तिगत, सामाजिक, नैतिक, आध्यात्मिक या शारीरिक जीवन पक्षों के विकास हेतु सहायता दी जाती है। निर्देशन वास्तव में Single अविरल प्रक्रिया है जो कि व्यक्ति हेतु जीवन पर्यन्त चाहिये। इस क्षेत्र में हर प्रशिक्षित व साधक व्यक्ति निर्देशन कार्मिक कहलाता है। इस प्रक्रिया में विद्यालय, परिवार, समाज व राजनीतिक परिवेश सम्मिलित होते हैं। विद्यालय से सम्बन्धित शिक्षक, उपबोधक तथा अन्य सहकर्मी, परिवार के अन्य All सदस्य, अभिभावक,मित्र राजनीतिज्ञ इस व्यापक प्रक्रिया को मूर्त स्वReseller प्रदान करते हैं। निर्देशन का अटूट क्रम है और यह व्यक्ति को उसके जीवन के विविध पक्षों में आवश्यक हो जाती है। वास्तव में यह समय व परिस्थिति के साथ केन्द्रि परामर्शदाता व सेवार्थी केन्द्रित हो जाती है जब यह परामर्शदाता को केन्द्र मानकर दी जाती है तो परामर्शदाता केन्द्रित और परामर्श प्रार्थी को केन्द्र बिन्दु मानकर दी जाती है तो यह परामर्श प्रार्थी केन्द्रित हो जाती है। हमारे देश में निर्देशनकर्मी अपनी औपचारिक भूमिका का निर्वाह अनेकानेक ‘मनोनितिक’ उपकरणों के अनुप्रयोग के अलावा व्यक्तिनिष्ठ या आत्मनिष्ठ प्राविधियों के माध्यम से करते चले आ रहे हैं ।

इस दृष्टि से व्यक्ति के बारे में विश्वसनीय And वैध आंकड़े तथा आधार सामग्री, प्राप्त करने के लिये मनोनितिक उपकरण यथा योग्यता व अभिक्षमता परीक्षण व्यक्तित्व मापन, निर्धारण मापनी तथा अभिवृत्ति And रूचि तालिका परीक्षणों का प्रयोग Reseller जाता है जिससे कि उसे आवश्यक And उपयोगी सलाह दी जा सके और उसे अपनी समस्याओं के प्रति उचित समझ विकसित हो यही निर्देशन कहलाता है।

निर्देशन की परिभाषा

निर्देशन Single प्रक्रिया है जिसके According Single व्यक्ति को सहायता प्रदान की जाती है जिससे कि वह अपने समस्या को समझते हुए आवश्यक निर्णय ले सके और निष्कर्ष निकालते हुये अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर सके। यह प्रक्रिया व्यक्ति को उसे व्यक्तित्व ,क्षमता, योग्यता तथा मानसिक स्तर का ज्ञान प्राप्त कराती है यह व्यक्ति को उसकी समस्या को समझने योग्य बना देती है। यह मुख्यतया व्यक्ति को उन उपायों का ज्ञान कराती है यह व्यक्ति को उसकी समस्या को समझने योग्य बना देती है। यह मुख्यतया व्यक्ति को उन उपायों का ज्ञान कराती है जिनके माध्यम से उसे अपनी प्राकृतिक शक्तियों का बोध होता है और ऐसा होने पर उसका जीवन व्यक्तिगत व सामाजिक स्तर पर अधिकतम हितकर होता है।

  1. यूनाइटेड ऑफिस एजुकेशन ने लिखा है –‘‘निर्देशन Single ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्ति का परिचय विभिन्न उपायोंं से, जिनमें विशेष प्रशिक्षण भी सम्मिलित है जिनके माध्यम से व्यक्ति को प्राकृतिक शक्तियों का भी बोध हो, कराती है जिससे वह अधिकतम, व्यक्तिगत And सामाजिक हित कर सकें।’’
  2. शले हैमरिन के According –‘‘व्यक्ति को अपने आपको पहचानने में मदद करना जिससे वह अपने जीवन में आगे बढ़ सके, निर्देशन कहलाता है’’। वस्तुत: इसमें निर्देशन द्वारा स्वयं आत्मा की अनुभूति कराना मनोवैज्ञानिक And आध्यात्मिक दोनों ही दृष्टियों से जटिल And दुसाध्य होने की प्रवृत्ति दिखार्इ देती है।’’
  3. चाइशोम इस व्याख्या को इस प्रकार लिखते है कि –Creationत्मक उपक्रम तथा जीवन से सम्बन्धित समस्याओं के समाधान की व्यक्ति में सूझ विकसित करना निर्देशन का उद्देश्य है ताकि वह अपनी जीवन भर की समस्याओं का समाधान करने के योग्य बन सके।
  4. जोन्स ने उपरोक्त परिभाषा का सारांश देते हुये कहा – निर्देशन से तात्पर्य ‘‘इंगित करना, सूचित करना तथा पथ प्रदर्शन करना है। इसका Means सहायता देने से अधिक है।’’ इस परिभाषा में निर्देशन व्यक्ति को व्यक्तिगत And सामाजिक दृष्टि से उपयोगी क्षमताओं के अधिकतम विकास के लिये प्रदत्त सहायता से सम्बन्धित निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया के Reseller में इंगित Reseller गया है –
  5. एमरी स्टूप्स ने अपनी परिभाषा को अलग ढंग से व्यक्त करते हुये लिखा है – ‘‘व्यक्ति को स्वयं तथा समाज के उपयोग के लिये स्वयं की क्षमताओं के अधिकतम विकास के प्रयोजन ने निरन्तर दी जाने वाली सहायता ही निर्देशन है।’’ गाइडेन्स कमेटी ऑफ साल्ट लेक सिटी स्कूल्स ने निर्देशन की यथार्थवादी परिभाषा देते हुये बताया कि वास्तविक Means में हर प्रकार की शिक्षा में उसे वैयक्तिक बनाने की चेष्टा या चिन्ता प्रगट होती है। इसका अभिप्राय यह है कि प्रत्येक शिक्षक की जिम्मेदारी है कि वह अपने बालक की रूचियों, योग्यताओं तथा भावनाओं को समझे तथा उसकी Needओं की सन्तुष्टि हेतु शैक्षिक कार्यक्रमों में तदनुReseller आवश्यक परिवर्तन लाये ।
  6. आर.एल. गिलक्रिस्ट व डब्लू. रिन्कल्स के According –‘‘निर्देशन का अभिप्राय है विद्यार्थी को उपयुक्त तथा प्राप्त होने योग्य उद्देश्यों के निर्धारण कर सकने तथा उन्हें सिद्ध करने हेतु अपेक्षित योग्यता का विकास करने में मदद देना And अभिप्रेरित करना ।  इसमें मुख्य तथ्य थे – उद्देश्यों का निResellerण संगत अनुभवों का प्रावधान करना, योग्यताओं का विकास करना व उद्देश्यों की सम्प्राप्ति सुनिश्चित करना।’’
  7. ट्रैक्सलर के मतानुसार –’’निर्देशन वह गतिविधि है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को अपनी योग्यताओं तथा रूचियों को समझने, उन्हें यथा सम्भव विकसित करने, उन्हें जीवन तथ्यों से जोड़ने तथा अन्तत: अपनी सामाजिक व्यवस्था के वांछनीय सदस्य की हैसियत से Single पूर्ण And परिपक्व आत्मनिर्देशन की व्यवस्था तक पहुॅंचने में सहायक होती है।’’
  8. लफेवर ने निर्देशन को परिभाषित करते हुये लिखा है कि शिक्षा प्रक्रिया की उस व्यवस्थित And गठित अवस्था को निर्देशन कहा जाता है जो युवा वर्ग का अपनी जिन्दगी में ठोस दिशा प्रदान करने की दृष्टि से उसकी क्षमता को बढ़ाने में मदद देता है तथा वह व्यक्तिगत अनुभव राशि में समृद्धि सुनिश्चित करने के साथ-साथ प्रजातान्त्रिक समाज में अपना अनुपम अवदान करता है।
  9. क्रो0 And क्रो0 ने निर्देशन की परिभाषा देते हुये कहा है‘‘निर्देशन लक्ष्य करना नहीं है। यह अपने विचार को दूसरों पर लादना नहीं है। यह उन निर्णयों का जिन्हें Single व्यक्ति को अपने लिये स्वयं लेना चाहिए। निश्चित करना नहीं है, यह दूसरों के दायित्व को अपने ऊपर लेना है, वरन् निर्देशन वह सहायता है जो Single कुशल परामर्शदाता द्वारा किसी भी आयु के व्यक्ति को अपना जीवन निर्देशन करने, अपना दृष्टिकोण विकसित करने, स्वयं निर्णय लेने तथा उत्तरदायित्व संभालने के लिये दी जाती है।’’

All परिभाषायें शिक्षा के सम्पूर्ण कार्यों के अधिक समीप है। जिस प्रकार से शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य व्यक्ति का अधिकतम विकास करना है उसी प्रकार निर्देशन अपनी वितरण एंव समायोजन सेवा द्वारा इस विकास में सुविधा प्रदान करता है।

निर्देशन की प्रकृति

  1. यह Single प्रक्रिया है जो कि सतत् चलती है।
  2. यह मूर्तस्वReseller में है और Single विशेष प्रकार की सेवा के Reseller में परिलक्षित होती है। 
  3. निर्देशन का कार्य अपने स्वभाव से Single माली के कार्य जैसा है जो कि अपने पौधों के विकास की प्रक्रिया से Added रहता है। 
  4. निर्देशन मूलReseller से आदिकाल से Human जीवन के साथ विद्यमान रहा। इसका वर्तमान स्वReseller बीसवीं सदी के परिणाम है।
  5. निर्देशन Human विकास के साथ Added रहता है। दार्शनिक परिप्रेक्ष्य में यह व्यक्ति के पूर्णतम विकास का पोषक, उसकी स्वाभाविक शक्तियों का संरक्षक तथा जीवन पर्यन्त गतिशील प्रक्रिया का द्योतक माना जाता है। 
  6. मनोवैज्ञानिक पृष्ठभूमि में यह अन्तक्रियात्मक व्यापार है जिसके जरिये Single विशेषज्ञ व्यक्ति समस्या ग्रस्त व्यक्ति को उसकी शैक्षिक, सामाजिक, व्यावसायिक And व्यक्तिक परिस्थितियों से समंजन की प्रक्रिया को सरल And सहज बनाने में मदद देता है। 
  7. समाजशास्त्रीय पृष्ठभूमि में यह Single समाज And व्यक्ति के हित हेतु Reseller जाने वाला कार्य है। यह समाज कल्याण के अवसरों में विस्तार करता है।
  8. यह व्यक्ति की अभिवृत्तियों रूचियों And आकर्षणों पर विशेष ध्यान अपेक्षित है।
  9. निर्देशन सेवाओं का उद्देश्य व्यक्ति का परिस्थिति विशेष से समायोजन कायम करना है।
  10.  निर्देशन का स्वReseller वस्तुनिष्ठ And आत्मनिष्ठ दोनों होता है क्योंकि इसमें व्यक्ति सम्बन्धी जानकारी Singleत्र करने हेतु परीक्षा तथा परामर्श बातचीत व पूछताछ का उपयोग Reseller जाता है। 
  11.  इसमें व्यक्ति व समाज दोनों के कल्याण की भावना सुनिश्चित की जाती है। 
  12. निर्देशन प्रक्रिया का स्वReseller Single जैसा न होकर बहुपक्षीय होता है। इसमें उपयुक्त सूचनाओं का संकलन निदानात्मक मूल्यांकन, साक्षात्कार, प्रेक्षण, व्यक्ति अध्ययन And चिकित्Seven्मक पद्धतियों Needनुसार Single साथ प्रयुक्त हो सकती है। यह किसी विशेष आयु वर्ग तक ही परिसीमित नहीं है।

    निर्देशन का क्षेत्र

    निर्देशन का केन्द्र बिन्दु व्यक्ति होता है परन्तु इसका विषय क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है इसके अध्ययन क्षेत्र के अन्तर्गत सेवार्थी समूह समस्यायें तथा अनेकानेक शैक्षिक व्यावसायिक तथा वैयक्तिक परिस्थितियाँ सम्मिलित हैं। सेवाथी्र से सम्बन्धित आवश्यक तथ्यों, descriptionों तथा आख्याओं का अध्ययन समूह की Needओं को जानना, समस्याओं को विविध श्रेणियों में रखकर उनके कारण मूल तत्वों का विश्लेषण उनका सुधारात्मक पक्ष को विकसित करना इसके अन्तर्गत आता है। निर्देशन का विषय क्षेत्र सम्पूर्ण Human जीवन है। Human जीवन के विविध पक्ष निर्देशन का कार्य क्षेत्र बन जाता है जिसे हम इस तरह से देख सकते हैं –

    (1) शिक्षा में निर्देशन- 

    1. शैक्षिक निर्देशन के तहत विविध पाठ्यक्रमों के चयन हेतु सहयोग ।
    2. शैक्षिक निष्पत्ति And प्रगति हेतु सहयोग।
    3. विद्यार्थियों में अपेक्षित अभिक्षमता स्तर, रूचि तथा अभिवृत्ति का विकास।
    4. शिक्षण अधिगम की व्यवस्था हेतु सहयोग ।
    5. अधिगम सम्बन्धी समस्याओं का निदान।
    6. विद्यालय में समायोजन सम्बन्धी समस्या का निदान।
    7. अन्य सहपाठियों के साथ सम्बन्धों का ज्ञान ।
    8. शैक्षिक And पाठ्य सहगामी क्रियाओं के द्वारा व्यक्तिगत विकास हेतु सहयोग।

    (2) व्यक्तिगत निर्देशन –

    1. व्यक्तिगत निर्देशन के अन्तर्गत उसे शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक विकास से जुड़ी समस्याओं हेतु उनका अध्ययन, व्यक्ति की विशेष परिस्थितियों का जायजा लेना, वैवाहिक व यौन सम्बन्धी विशेषताओं का अध्ययन ।

    (3) व्यावसायिक निर्देशन –

    1. व्यक्ति में व्यावसायिक क्षमताओं के विकास की अवस्थाओं का अध्ययन।
    2. विविध व्यवसायों से सम्बन्धित पूर्ण And विश्वसनीय आंकड़ों का Singleत्रीकरण।
    3. तथ्यों And जानकारी को प्रदान करने हेतु उचित माध्यमों का अध्ययन।
    4. व्यावसायिक अभिक्षमता विश्लेषणं।
    5. व्यवसाय के प्रति रूचियों,दृष्टिकोणों, बुद्धिस्तर, शारीरिक स्वास्थ्य And पात्रता का विश्लेषण।

    (4) निर्देशन के लिये उपलब्ध विविध सेवाएँ 

    1. उपबोधन,स्थानन, अनुवर्तन, अनुसंधान, मापन And मूल्यांकन ।

    (5) अन्य क्षेत्र 

    1. दर्शन, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, मनोमिति चिकित्सा मनोविज्ञान, सांख्यिकी, शिक्षाशास्त्र, Meansशास्त्र तथा विज्ञान आदि की विधियों का भी समावेश।

    विद्यालयी निर्देशन प्रक्रिया के प्रमुख अंग –

    1. मूल्याकंन – जिस व्यक्ति को निर्देशन देना है उसके गुणों का वस्तुनिष्ठ व विश्वसनीय ज्ञान प्राप्त करने हेतु निरन्तर मूल्यांकन की क्रिया की जाती है। 
    2. समायोजन – तात्कालिक शैक्षिक, व्यक्तिगत, सामाजिक And व्यावसायिक समस्यात्मक परिस्थिति के साथ समायोजन हेतु विद्यार्थियों को तत्काल सहयोग देना। – व्यक्तिगत कमियों को जानना और उनको परिस्थितिजन्य उपचार करना। – विद्यालय के शैक्षिक And शिक्षणेत्तर क्रियाकलापों के साथ व्यक्ति का समायोजन/ सम्बन्ध स्थापित करना। जीवन की वास्तविक परिस्थितियों And सत्य को जानने योग्य व्यक्ति की सहायता करना।
    3. नवीन परिस्थितियों को उत्पन्न करना – बालकों हेतु विद्यालय And व्यवसाय को उचित दशाओं का ज्ञान देकर समायोजन योग्य परिस्थितियॉं प्रदान करना। 
    4. विकास हेतु परिवेश प्रदान करना – व्यक्ति की योग्यताओ को समझते हुये उन्हें सही दिशा में विकसित करना ताकि वह स्वयं तथा अपने परिवेश को समझते हुये उसके अनुकूल विकास हेतु परिवेश प्रदान करना।

    निर्देशन के उद्देश्य

    निर्देशन व्यापक And संकुचित दोनों ही Meansों में Single प्रकार की सेवा है जिसका उद्देश्य व्यक्ति And उसके सामाजिक सन्दर्भों की गुणवत्ता,समरसता, उत्कृष्ठता And परस्पर तालमेल को सॅवारना, सुधारना तथा संजोना है। वास्तव में शिक्षा तथा निर्देशन के उद्देश्य Single ही जैसे हैं क्योंकि दोनों ही व्यक्ति के विकास से सम्बन्धित हैं। निर्देशन की क्रिया परिस्थितिजन्य, व्यवस्थित, औपचारिक व आनुषांगिक हो सकती है और इसके निम्न उद्देश्य होते हैं –

    1. व्यक्तिगत उद्देश्य –

    1. निर्देशन का प्रमुख उद्देश्य व्यक्ति का विकास है।
    2. व्यक्ति की आत्म विवेचन And आत्मविज्ञता को बढ़ाना।
    3. अपने व्यक्तित्व के सकारात्मक And नकारात्मक पक्षो, गुणों And सीमाओं प्रतिमाओं तथा न्यूनताओं को स्वयं समझने की क्षमता विकसित करना।
    4. व्यक्ति को अपनी Needओं, क्षमताओं,रूचियों And आकर्षणों के विषय में उचित समझ विकसित करना।
    5. व्यक्ति को अपनी क्षमताओं को समझने में सहायता देना और अपनी सामथ्र्य का एहसास कराना।
    6. व्यक्ति के आत्मविकास And वृद्धि के मार्ग को प्रशस्त करना।

    2. समाज से सम्बन्धित उद्देश्य –

    1. निर्देशन का प्रमुख उद्देश्य मात्र व्यक्ति की मदद नहीं समाज कल्याण भी है।
    2. निर्देशन द्वारा समाज को तनावमुक्त पीढ़ी प्रदान करना।
    3. समाज की Needओं And समस्याओं के प्रति व्यक्ति में उचित समझ पैदा करना।
    4. समाज के विविध क्षेत्रों में योग्य व कुशल व्यक्तियों को उपर्युक्त स्थान दिलाना।
    5. समाज को विकास हेतु उपर्युक्त सहयोग देना।

    3. व्यवसाय सम्बन्धी उद्देश्य –

    1. व्यवसायों व व्यक्ति के मध्य संगति बढ़ाना।
    2. व्यवसायों के प्रति उचित समझ विकसित करना।
    3. व्यक्ति को उचित व्यवसाय चयनित करने में सहयोग देना।
    4. विभिन्न व्यवसायों को निरीक्षण करने की सुविधा प्रदान करना।
    5. विभिन्न व्यावसायिक अवसरों की जानकारी देना।
    6. व्यक्ति में विभिन्न व्यवसाय सम्बन्धी सूचनाओं का विश्लेषण करने की क्षमता का विकास करना।
    7. कार्य के प्रति Single आदर्श भावना जागृत करना।

    4. शिक्षा सम्बन्धी उद्देश्य –

    आप ऊपर पढ़ चुके हैं कि शिक्षा और निर्देशन का कार्य Single ही जैसा है। शिक्षा के उद्देश्य विविध शिक्षा स्तरों पर बदलते जाते हैं।

    1. पूर्व प्रााथमिक स्तर पर –अपनी आदतों का विकास करने में सहायता देना, भावनात्मक नियंत्रण की आदत विकसित करने, वातावरण को जानने की कुशलता विकसित करने, अभिव्यक्ति की क्षमता विकसित करना।प्र्राथमिक स्तर पर – सृजनात्मक कार्यों के प्रति रूचि जागृत करना आत्मानुशासन विकसित करना, भावनात्मक सन्तुलन विकसित करना, सामाजिकता की भावना जागृत करना।
    2. जूनियर हार्इ स्कूूल स्तर पर –विचारो अभिरूचियां व भावनाओं को प्रकट करने के अवसर देना, भावनात्मक नियन्त्रण की क्षमता, विकसित करना, योग्यता And रूचि के According व्यवसाय चयन में सहयोग देना।हार्इ स्कूल स्तर पर – मानसिक स्थिरता विकसित करने में सहयागे देना, अच्छा नागरिक बनने में सहयोग देना, स्वतन्त्र कार्य करने व निर्णय करने में सहयोग देना, उचित पाठ्यक्रम चयन में सहयोग देना, व्यवसाय के प्रति उचित समझ विकसित करने में सहयोग देना।
    3. उच्च शिक्षा स्तर पर –पाठ्यक्रम व विषय चयन सम्बन्धी समस्याओं  का निदान, व्यवसाय खोजने में सहयोग, आर्थिक समस्याओं को दूर करने में सहयोग, दैनिक जीवन को तनावमुक्त बनाने में सहयोग देना।

    5. समस्या समाधान सम्बन्धी उद्देश्य –

    व्यक्तियों में उनके व्यक्तिगत, सामाजिक, शैक्षिक, व्यवसायिक जीवन में समायोजन की समस्या का निदान हेतु योग्यता विकसित करना। व्यक्तियों को पारिवारिक समस्याओं , स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं And यौन समस्याओं को सुलझाने में सहयोग प्रदान करनां।

    निर्देशन की Need

    निर्देशन आज Human जीवन And शिक्षा का अभिन्न अंग बन गया है। व्यक्ति को अपने विकास हेतु यथेष्ठ निर्देशन की Need पड़ती है। इस प्रगतिवादी, प्रयोजनवादी And भौतिकवादी जीवन दर्शन के Human जीवन को क्लिष्ट बना दिया है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति को जीवन के प्रत्येक स्तर पर निर्देशन की Need होती है।

    1. सामाजिक दृष्टिकोण से निर्देशन की Need-

    समाज की Safty और प्रगति के लिए आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति ऐसे स्थान पर रखा जाय जहॉं से वह समाज के कल्याण तथा प्रगति में अधिकतम योगदान कर सके Meansात् प्रत्येक व्यक्ति को इस प्रकार प्रशिक्षित Reseller जाय कि वह Single योग्य And क्रियाशील नागरिक बन जाए। आज का समाज अनेक नवीन परिस्थितियों से होकर गुजर रहा है। संयुक्त परिवार प्रणाली विघटित होती जा रही है, विभिन्न देशों की संस्कृति के साथ सम्पर्क बढ़ रहा है। नवीन उद्योगों की स्थापना हो रही है। इस बदलते हुए सामाजिक परिवेश में व्यक्ति के विकास को सही दिशा देने में निर्देशन का महत्वपूर्ण स्थान है। यहॉं हम सामाजिक दृष्टि से आवश्यक अन्य आधारों के सन्दर्भ में निर्देशन की Need पर विचार करेंगे।

    1. परिवार का बदलता स्वReseller –प्रशिक्षण का दायित्व अब परिवार पर न रहकर विद्यालय पर आ जाने से विभिन्न प्रकार के वातावरण में पले विविध छात्रों को प्रशिक्षण देना विद्यालयों को कठिन हो गया क्योंकि विद्यालय समस्त छात्रों की पारिवारिक स्थिति, उनकी क्षमताओं, योग्यताओं आदि से अनभिज्ञ थें। अतएव छात्रों को उनकी योग्यता And क्षमता के अनुकुल प्रशिक्षण देने के लिए निर्देशन सहायता की Need अनुभव की जाने लगी।
    2. बदलती व्यवसायों की तस्वीर –विभिन्न व्यवसायों में कार्य प्रणाली विभिन्न प्रकार की होती है। इन प्रणालियों को सीखना तथा उनका प्रशिक्षण आवश्यक है। किन्तु प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक प्रणाली के According कार्य नहीं कर सकता है। अत: उपयुक्त प्रणाली का उपयुक्त व्यक्ति के लिए चयन निर्देशन द्वारा ही सम्भव है।
    3. जनसंख्या में वृद्धि –भारत की जनसंख्या तीब्र गति से बढ़ रही है। सन् 1931 से हमारे देश की जनसंख्या करीब 2755 लाख थी। यही जनसंख्या 1951 में बढ़कर 3569 लाख हुर्इ तथा अब यह जनसंख्या Single अरब हो गर्इ। जनसंख्या वृद्धि के साथ साथ जनसंख्या की प्रकृति में भी परिवर्तन हो गया है। अब व्यक्ति ग्रामों से नगरों की ओर दौड़ रहे हैं। परिणामस्वReseller शहरों में आबादी बढ़ती जा रही है। जिससे नगरों का जीवन अत्यन्त भीड़ युक्त जटिल तथा क्लिष्ट हो गया है। अत: जनसंख्या वृद्धि ने तथा उनकी परिवर्तित प्रकृति ने निर्देशन की Need को और बढ़ा दिया है।
    4. सामाजिक मूल्यों का बदलता Reseller –प्राचीन मूल्यों में आध्यात्मिक शान्ति पर विशेष बल दिया जाता था,किन्तु आज भौतिकतावाद बढ़ रहा है। भारत में जाति प्रथा के प्रति व्याप्त संकुचित धारणा में परिवर्तन आता जा रहा है और अन्तर्जातीय विवाह में लोगों की रूचि बढ़ती जा रही है। इन समस्त परिवर्तित परिस्थितियों में मनुष्य अपने को किंकत्र्तव्यविमूढ़ सा पाता है। तो दूसरी ओर नवीन मूल्य निर्धारित नहीं हो पा रही है। ऐसी विकट परिस्थिति में व्यक्तियों द्वारा निर्देशन – सहायता की मॉग करना स्वाभाविक है।
    5. धार्मिक तथा नैतिक मूल्यों में परिवर्तन –सामाजिक, आर्थिक And औद्योगिक परिवर्तनों का प्रभाव निश्चित Reseller में हमारे नैतिक तथा धार्मिक स्तर पर पड़ा है। धार्मिक रीति रिवाज बदलने से कट्टरपंथी कम ही दृष्टिगत होते हैं। इसके साथ ही देश में व्यभिचार बढ़ता जा रहा है। नैतिक दृष्टि से कोर्इ भी व्यक्ति अपने उत्तरदायित्व का पालन र्इमानदारी से नहीं करता है। ऐसी परिस्थितियों से भावी पीढ़ी को बचाने के लिए हम निर्देशन -सहायता की उपेक्षा नहीं कर सकते हैं।
    6. उचित समायोजन की Need –यदि व्यक्ति को अपनी योग्यताओं And क्षमताओं के According कार्य मिलता है तो इससे उसको व्यक्तिगत संतोष के साथ-साथ उत्पादन क्षमता में विकास के लिए प्रोत्साहन भी प्राप्त होता है। इस कार्य में निर्देशन अधिक सहायक सिद्ध हो सकता है।

    2. राजनीतिक दृष्टिकाण से निर्देशन की Need –

    राजनीतिक दृष्टिकोण से भी देश में इस समय निर्देशन की बड़ी Need है। राजनीतिक क्षेत्र में निर्देशन की Need निम्नांकित बिन्दुओं से स्पष्ट होती है। देश के अस्तित्व की रक्षा – देश के अस्तित्व की रक्षा की दृष्टि से इस समय देश में निर्देशन की अत्यन्त Need है। भारत अब तक पंचशील के सिद्धान्तों का अनुयायी रहा है। किन्तु चीन और उसके बाद पाकिस्तान के आतंकवादी आक्रमणों ने भारत को अपनी Safty को दृढ़ करने को मजबूर कर दिया। Safty की मजबूती केवल सेना तथा Fight सामग्री हो जुटा लेने से नहीं होती। जरूरत है योग्य सैनिकों तथा अफसरों का चयन करना- ऐसे सैनिकों का चयन करना, जिनका मनोबल ऊॅंचा हो और जो Need पड़ने पर अपना बलिदान भी दे। इसके लिए उपयुक्त चयन-विधि का विकास करना जरूरी है, उचित व्यक्तियों की तलाश करना जरूरी है। इन सबको केवल निर्देशन ही कर सकता है।

    1. प्रजातन्त्र की रक्षा –भारत इस समय विश्व के प्रजातत्रं देशों में सबसे बडा़ देश है। यदि भारत में प्रजातन्त्र खतरे में पड़ता है तो यह समझना चाहिए कि सम्पूर्ण विश्व का प्रजातन्त्र खतरे में पड़ गया है। अत: हमें अपने प्रजातन्त्र की रक्षा आवश्यक है। हमें अपनी बुद्धि तथा विवेक से उचित प्रतिनिधियों का चयन करने की Need है, अपने कर्तव्य व अधिकारों के ज्ञान, उचित प्रतिनिधियों का चयन, देश के प्रति हमारे दायित्व आदि की दृष्टि से भी निर्देशन की Need बढ़ जाती है।
    2. धर्म-निरपेक्षता –भारत Single धर्म निरपेक्ष देश है। यहॉ All धर्मों को समान Reseller से मान्यता प्राप्त है। ऐसे धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र में अन्य धर्मावलम्बियों के प्रति आचरण निश्चित करने में निर्देशन सहायक होता है।

    3. शैक्षिक दृष्टि से निर्देशन की Need –

    ‘शिक्षा सबके लिए और सब शिक्षा के लिए है।’ इस विचार के According प्रत्येक बालक को शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए। शिक्षा किसी विशिष्ट समूह के लिए नहीं है। भारत सरकार ने भी संविधान में यह प्रावधान रखा है कि शिक्षा All के लिए अनिवार्य शिक्षा से तात्पर्य है कि प्रत्येक बालक को उसकी योग्यता And बुद्धि के आधार पर शिक्षित Reseller जाए। यह कार्य निर्देशन द्वारा ही सम्भव है। शैक्षिक दृष्टि से निर्देशन की Need निम्न आधारों पर अनुभव की जाती है।

    1. पाठ्यक्रम का चयन –आर्थिक And औद्योगिक विविधता के परिणामस्वReseller पाठ्यक्रम में विविधता का होना आवश्यक था। इसी आधार पर मुदालियर आयोग ने अपने प्रतिवेदन में विविध पाठ्यक्रम को अपनाने की संस्तुति की। इस संस्तुति को स्वीकार करते हुए विद्यालयों में कृषि विज्ञान, तकनीकी, वाणिज्य, Humanीय, गृहविज्ञान, ललित कलाओं आदि के पाठ्यक्रम प्रारम्भ किये। इसने छात्रों के समक्ष उपर्युक्त पाठ्यक्रम के चयन की समस्या खड़ी कर दी। इस कार्य में निर्देशन अधिक सहायक हो सकता है।
    2. अपव्यय व अवरोधन –Indian Customer शिक्षा जगत की Single बहुत बडी़ समस्या अपव्यय से सम्बन्धित है। यहॉ अनेक छात्र शिक्षा-स्तर को पूर्ण किये बिना ही विद्यालय छोड़ देते हैं, इस प्रकार उस बालक की शिक्षा पर हुआ व्यय व्यर्थ हो जाता है। श्री के.जीसैय द्दीन ने अपव्यय की समस्या को स्पष्ट करने के लिए कुछ ऑकड़े प्रस्तुत किये हैं। सन् 1952-53 में कक्षा 1 में शिक्षा प्राप्त करने वाले 100 छात्रों मे से सन 1955-56 तक कक्षा 4 में केवल 43 छात्र ही पहुंच पाये। इस प्रकार 57 प्रतिशत छात्रों पर धन अपव्यय हुआ। इसी प्रकार की समस्या अवरोधन की है। Single कक्षा में अनेक छात्र कर्इ वर्ष तक अनुत्तीर्ण होते रहते हैं। बोर्ड तथा विश्वविद्यालय की परीक्षाओं में तो अनुत्तीर्ण छात्रों की समस्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। गलत पाठ्यक्रम के चयन गन्दे छात्रों की संगति या पारिवारिक कारण अपव्यय या अवरोधन की समस्या के समाधान में अधिक योगदान कर सकती है।
    3. विद्यार्थियों की संख्या में वृद्धि –स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सरकार द्वारा शिक्षा प्रसार के लिए उठाये गये कदमों के परिणामस्वReseller विद्यार्थियों की संख्या में वृद्धि हुर्इ। कोठारी आयोग ने तो सन 1985 तक कितनी वृद्धि होगी उसका अनुमान लगाकर description दिया है। छात्रों की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ कक्षा में पंजीकृत छात्रों की व्यक्तिगत विभिन्नता सम्बन्धी विविधता में भी वृद्धि होगी। यह विविधता शिक्षकों And प्रधानाचार्य के लिए Single चुनौती Reseller में होगी, क्योंकि उधर राष्ट्र की प्रगति के लिए आवश्यक है कि छात्रों को उनकी योग्यता, बुद्धि क्षमता आदि के आधार पर शिक्षित And व्यवसाय के लिए प्रशिक्षित करके Single कुशल And उपयोगी उत्पादक नागरिक बनाया जाय। यह कार्य निर्देशन सेवा द्वारा ही सम्भव हो सकता है।
    4. अनुशासनहीनता –छात्रों में बढ़ते हुए असन्तोष तथा अनुशासनहीनता राष्ट्रव्यापी समस्या हो गयी है। आये दिन हड़ताल करना, सार्वजनिक सम्पत्ति की तोड़-फोड़ करना Single सामान्य बात है। इस अनुशासनहीनता का प्रमुख कारण यह है कि वर्तमान शिक्षा छात्रों की Needओं को सन्तुष्ट करने में असफल रही है। इसके साथ ही उनकी समस्याओं का समाधान के लिए विद्यालयों में ऐसी कोर्इ व्यवस्था नहीं है जहॉं वे उचित परामर्श प्राप्त करके लाभान्वित हो सकें। निर्देशन सहायता बढ़ती हुर्इ अनुशासनहीनता को कम कर सकती है।
    5. सामान्य शिक्षा के क्षेत्र में वृद्धि –हम ऊपर देख चुके हैं कि समस्त आर्थिक, राजनीतिक तथा सामाजिक वातावरण बदल गया है। इस परिवर्तित वातावरण के साथ शिक्षा क्षेत्र में भी परिवर्तन आ गये हैं समाज की Needए दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं । इन Needओं की पूर्ति करने हेतु नये-नये व्यवसाय अस्तित्व में आ रहे हैं अतएव नये नये पाठ्य विषयों की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है। पाठ्य विषयों का अध्ययन छात्र के लिए कुछ विशेष व्यवसायों में प्रवेश पाने में सहायक होता है। इनमें सफलता के हेतु भिन्न भिन्न बौद्धिक स्तर, मानसिक योग्यता, रूचि तथा क्षमता आदि की Need पड़ती है। अत: यह आवश्यक है कि माध्यमिक शिक्षा के द्वार पर पहुंचे हुए छात्र को उचित निर्देशन प्रदान Reseller जाय जिससे वह ऐसे विषय का चयन कर सके जो उसकी योग्यता के अनुकूल हो।

    4. मनोवैज्ञानिक दृष्टि से निर्देशन की Needए –

    प्रत्येक Human का व्यवहार मूल प्रवृत्ति And मनोभावों द्वारा प्रभावित है। उसकी मनोशारीरिक Needए होती है। इन Needओं की सन्तुष्टि And मनोभाव व्यक्ति के व्यक्तित्व को निश्चित करते हैं। मनोवैज्ञानिक अध्ययनों से यह स्पष्ट हो गया है कि व्यक्तित्व पर आनुवांशिकता के साथ साथ परिवेश का भी प्रभाव पड़ता है। निर्देशन सहायता द्वारा यह निश्चित होता है कि किसी बालक के व्यक्तित्व के विकास के लिए कैसा परिवेश चाहिए।

    1. वैयैयक्तिक भिन्नताओं का महत्व –यह तथ्य सत्य है कि व्यक्ति Single Second से मानसिक, संवेगात्मक तथा गतिविधि आदि आदि दशाओं में भिन्न होते हैं। इसी कारण व्यक्तियों के विकास तथा सीखने में भी भिन्नता होती है। प्रत्येक व्यक्ति के विकास का क्रम विभिन्न होता है तथा उनके सीखने की योग्यता तथा अवसर विभिन्न होते हैं । यह वैयक्तिक विभिन्नता वंशानुक्रम तथा वातावरण के प्रभाव से पनपती है। Single बालक कुछ लक्षणों को लेकर उत्पन्न होता है। तो उसकी व्यक्तिगत योग्यता को निर्धारित करते हैं। यह गुण वंशानुक्रम से प्राप्त होते हैं इसीलिए बालकों में भिन्नता होती है। वैयक्तिक विभिन्नता Single ऐसा तथ्य है जिसकी अवहेलना हम नहीं कर सकते हैं। शिक्षा बालकों के वैभिन्न के आधार पर ही दी जानी चाहिए। इस कार्य में निर्देशनसेवा अधिक सहायक होती है। यह सेवा छात्रों की इन विभिन्नताओं का पता लगाकर उनकी योग्यताओं, रूचियों And क्षमताओं के अनुReseller शैक्षिक, And व्यावसायिक अवसरों का परामर्श देती है।
    2. उचित समायोजन –उचित समायोजन व्यक्ति की कार्य कुशलता, मानसिक, दशा And सामाजिक प्रवीणता को प्रभावित करने वाला Single प्रमुख कारक है। सामाजिक, शैक्षिक या व्यावसायिक कुसमायोजन राष्ट्र के लिए घातक होता है। व्यक्ति संतोषजनक समायोजन उसी दशा में प्राप्त कर पाता है जबकि उसको अपनी रूचि And योग्यता के अनुReseller व्यवसाय विद्यालय या सामाजिक समूह प्राप्त हो। निर्देशन सेवा इस कार्य में छात्रों की विभिन्न विशेषताओं का मूल्यांकन करके उनके अनुReseller ही नियोजन दिलवाने में अधिक सहायक हो सकती है
    3. भावात्मक समस्याए –भावात्मक समस्याएं व्यक्ति के जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उत्पन्न होने वाली कठिनाइयों के कारण जन्म लेती है। ये भावात्मक समस्याए व्यक्ति के व्यवहार को प्रभावित करके उसकी मानसिक शान्ति में विध्न पैदा करती है। निर्देशन सहायता द्वारा भावात्मक नियन्त्रण में सहायता मिलती है इसके साथ ही निर्देशक उन कठिनाइयों का पता लगा सकता है। जो भावात्मक अस्थिरता को जन्म देती है।
    4. अवकाश-काल का सदुपुयोग –विभिन्न वैज्ञानिक यन्त्रों के फलस्वReseller मनुष्य के पास अवकाश का अधिक समय बचा रहता है । वह अपने कार्यों को यन्त्रों के माध्यम से सम्पन्न कर समय बचा लेता है। इस बचे हुए समय को किस प्रकार उपयोग में लाया जाय, यह समस्या आज भी हमारे सम्मुख खड़ी हुर्इ है। समय बरबाद करना मनुष्य तथा समाज दोनों के अहित में है और समय का सदुपयोग करना समाज तथा व्यक्ति दोनों के लिए हितकर है। अवकाश के समय को विभिन्न उपयोगी कार्यों में व्यय Reseller जा सकता है।
    5. व्यक्तित्व का विकास –व्यक्तित्व Word की परिभाषा व्यापक है। इसके अन्तर्गत मनोशारीरिक विशेषताए And अर्जित गुण आदि All सम्मिलित किये जाते हैं। प्रत्येक बालक के व्यक्तित्व का समुचित विकास करना शिक्षा का उद्देश्य है । यही उद्देश्य निर्देशन का भी है ।

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