निर्णयन का Means, परिभाषा, प्रकार, महत्व And प्रक्रिया

निर्णयन का शाब्दिक Means, किसी निष्कर्ष पर पहुचने से लगाया जाता है। व्यवसाय में प्रवर्तन से समापन तक निर्णय ही लेने पड़ते हैं। प्रबन्धकों को उपलब्ध विभिन्न विकल्पों में से श्रेष्ठतम विकल्प का चयन करना पड़ता है जिससे न्यूनतम लागत पर, कम समय में, कुशलतापूर्वक कार्यों को सम्पन्न Reseller जा सके। पीटर एफ. ड्रकर के Wordों में, ‘‘Single प्रबन्धक जो भी क्रिया करता है वह निर्णय पर आधारित होती है।उसे निर्णय लेकर ही अपने कर्तव्यों का निष्पादन करना पड़ता है। कब व्यवसाय प्रारम्भ करें? कितने लोगों को काम पर लगायें? किस वस्तु का उत्पादन करें? कच्चा माल कहॉं से क्रय करें? निर्मित माल की बिक्री कहाँ करें? आदि निर्णयन ही तो है।

परिभाषाए

  1. आर.एस.डाबर के Wordों में ‘‘निर्णयन को दो या अधिक विकल्पों में से Single आचरण विकल्प का किसी सिद्धान्त के आधार पर चुनाव करने के Reseller में परिभाषित Reseller जा सकता है।निर्णय लेने का आशय काम समाप्त करना या व्यावहारिक भाषा में किसी निष्कर्ष पर पहुचना ।
  2. कून्टज And ओडोनेल के According, ‘‘Wordों Single क्रिया को करने के विभिन्न विकल्पों में से किसी Single का वास्तविक चयन है। यह नियोजन की आत्मा है।’’
  3. जी.एल.एस. शेकैल के According, ‘‘निणर्य लेना Creationत्मक मानसिक क्रिया का वह केन्द्र बिन्दु होता है जहॉं ज्ञान विचार भावना तथा कल्पना कार्यपूर्ति के लिए Singleत्र किये जाते हैं।
  4. अर्नेस्ट डेल – ‘‘प्रबधंकीय निर्णयों से आशय उन निर्णयों से है जो प्रबंध संबंधी प्रत्येक क्रिया नियोजन, संगठन, स्टाकिंग, नियंत्रण, नव प्रवर्तन तथा प्रतिनिधित्व करना आदि के निश्पादन के लिए आवष्यक होते हैं।’’
  5. जार्ज टैटी – ‘‘निर्णयन मापदण्डों पर आधारित दो या दो से अधिक संभावित विकल्पों में से किसी Single विकल्प का चयन है।’’
  6. हर्बर्ट साइमन – ‘‘निर्णयन के अन्तर्गत तीन प्रमुख अवस्थायें समाहित होती हैं – कार्य करने के अवसरों का पता लगाना, कार्य के सम्भावित क्रमों का पता लगाना तथा कार्य के सम्भावित क्रमों में से चयन करना।
  7. हाज And जॉनसन –’’उपलब्ध विभिन्न विकल्पों में से Single विशेष विकल्प का चयन करना ही निर्णयन कहलाता है।’’

निर्णयन के प्रकार 

1. प्रमुख व गौण निर्णय – 

जब किसी महत्वपूर्ण विष्ज्ञय पर निणर्य लिये जाते हैं तो इसे प्रमुख निर्णय कहते हैं। इसे आधारभूत निर्णय या महत्वपूर्ण निर्णय भी कहते हैं। भूमि क्रय करना, संयंत्र क्रय करना, वस्तु का मूल्य निर्धारित करना आदि निर्णय इस वर्ग में आते हैं। ऐसे निर्णयों के लिये अत्यधिक सावधानी की Need होती है। जब सामान्य मामलों के संबंध में निर्णय लिये जाते हैं जिसके लिए अधिक सोच विचार करने की Need नहीं होती है तो ऐसे निर्णयों को गौण निर्णय कहते हैं। इनमें स्टेशनरी क्रय करना, फोन के बिलों का भुगतान करना आदि आते हैं।

2. अनियोजित And नियोजित निर्णय – 

ऐसे निर्णय जो किसी परिस्थिति विशेष पर अकस्मात लेने पड़ते हैं जिसके लिए कोर्इ पूर्व योजना नहीं होती है अनियोजित निर्णय कहलाते हैं। इसके विपरीत ऐसे निर्णय जो किसी पूर्व येाजना पर आधारित होते हैं, नियोजित निर्णय कहलाते हैं। नियोजित निर्णय ठोस तथ्यों पर आधारित होते हैं क्योंकि यह पूर्व निर्धारित योजना पर आधारित होते हैं।

3. संगठनात्मक And व्यक्तिगत निर्णय – 

ऎसे निणर्य जो संगठन को प्रत्यक्षत: प्रभावित करते हैं। यह संगठन के पदाधिकारी के Reseller में लिये गये होते हैं तो ऐसे निर्णय को संगठनात्मक निर्णय कहते हैं। Second Wordों में किसी संगठन में कार्यरत व्यक्ति द्वारा अपने पद के कारण जो निर्णय लेने पड़ते हैं जिससे संगठन प्रभावित होता है संगठनात्मक निर्णय कहलाते हैं। इसके विपरीत व्यक्ति द्वारा लिये गये ऐसे निर्णय जिससे व्यक्ति का व्यक्तिगत जीवन प्रभावित होता है व्यक्तिगत निर्णय कहलाते हैं। माल कब क्रय करना है? कितना क्रय करना है? आदि संगठनात्मक निर्णय है। आज कहॉं जाना है किस मित्र से मिलना है? आदि व्यक्तिगत निर्णय है।

4. नैतिक And व्यूह Creation संबंधी निर्णय – 

ऐसे निर्णय जो दिन प्रतिदिन के कार्यों से सम्बन्धित होते हैं नैतिक निर्णय कहलाते हैं। इन्हें सामान्य निर्णय भी कहते हैं। जैसे दिहाड़ी मजदूर को Reseller जाने वाला मजदूरी भुगतान। व्यूह Creation संबंधी निर्णय लेना व्यवसाय के लिए कठिन होता है। यह व्यवसाय के भविष्य को प्रभावित करते हैं तथा सम्पूर्ण संगठन को प्रभावित करता है। ऐसे निर्णय प्रतिद्वन्दियों को पराजित करने तथा व्यावसाय विषम परिस्थितियों में भी सफलता से संचालित करने हेतु किये जाते हैं।

5. व्यक्तिगत And सामूहिक निर्णय – 

ऐसे निर्णय जो केवल Single व्यक्ति द्वारा लिये जाते हैं व्यक्तिगत निर्णय कहलाते हैं। Singleल स्वामित्व व्यवसाय में लिये जाने वाले निर्णय व्यक्तिगत निर्णय कहलाते हैं। ऐसे निर्णय जो Single समूह द्वारा जैसे अधिकारियों And कर्मचारियों के समूह, द्वारा लिये जाते हैं, सामूहिक निर्णय कहलाते हैं।

6. नीति विषयक निर्णय And संचालन संबंधी निर्णय –

नीति विषयक निर्णय संगठन के शीर्ष प्रबंध द्वारा लिये जाते हैं । यह संगठन की आधारभूत नीतियों से संबंधित होते हैं। लाभाशं की दर निर्धारित करना? कर्मचारियों को प्रशिक्षण देना आदि नीति विषयक निर्णयों की श्रेणी में आते हैं। संचालन संबंधी निर्णय निम्नस्तरीय प्रबंधकों द्वारा लिये जाते हैं। किस व्यक्ति को कौन सा काम करना है? कितना काम आज हो जाना चाहिए? आदि संचालन संबंधी निर्णय ही हैं।

निर्णयन का महत्व 

All क्षेत्रों में निर्णयन की Need पड़ती है। प्रत्येक परिस्थिति में प्रबंधकों द्वारा लिये गये निर्णय सही होने चाहिए तथा जिस उद्देश्य की पूर्ति हेतु निर्णय लिये गये हैं उनकी पूर्ति होनी चाहिए। Single गलत निर्णय  जीवन को संकट में ला सकता है। सही निर्णयन क्षमता ही व्यावसायिक सफलता का आधार होती है। लिये गये सटीक निर्णय प्रगति के पथ पर ले जाते हैं ।

निर्णयन प्रक्रिया 

1. समस्या को परिभाषित करना – 

निर्णयन का First चरण समस्या को परिभाषित करना है। समस्या की प्रकृति कैसी है? इसका स्वReseller कैसा है? यह कितनी मात्रा में संगठन को प्रभावित करती है? आदि प्रमुख बिन्दु पर विचार Reseller जाता है। समस्या को परिभाषित करना ठीक उसी प्रकार है जिस प्रकार किसी बीमारी को पता लगाने हेतु चिकित्सकीय परीक्षण किये जाते हैं और बीमारी का सही सही पता लगाया जाता है। इसके पश्चात ही बीमारी के उपचार हेतु औषधि दी जाती है। इसी प्रकार निर्णयन के First चरण में समस्या को सुपरिभाषित Reseller जाता है जिससे समस्या के सम्बन्ध में सही सही निर्णय लिये जा सकें।

2. समस्या का विश्लेषण करना – 

समस्या को परिभाषित करने से उसका स्वReseller स्पष्ट हो जाता है। इसके पश्चात हम समस्या कागहन विश्लेषण करते हैं इसमें इन बातों पर विचार Reseller जाता है –

  1. समस्या की प्रकृति कैसी है?
  2. यह किन विभागों से सम्बन्धित है? 
  3. निर्णय के लिए किन किन सूचनाओं की Need होगी? 
  4. निर्णय हेतु कौन कौन से व्यक्तियों की सहायता लेनी चाहिए? 
  5.  निर्णय किन आधारों पर लिये जाने चाहिए? आदि 

उपरोक्त बातों पर विचार किये बिना जो निर्णय लिये जाते हैं उनके कार्यान्वयन में कठिनार्इ आ सकती है। समस्या के विश्लेषण हेतु वैज्ञज्ञनिक विधियों का प्रयोग Reseller जाना चाहिए।

3. वैकल्पिक हलों पर विचार करना –

किसी समस्या के समाधान के लिए अनेक हल होते हैं। संगठन को All हलों पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए तथा जो हल संगठन के लिये सर्वथा उपयुक्त हो उसे ही अपनाना चाहिए। यह आवश्यक नहीं कि जो हल Single संगठन के लिये भी उपयुक्त हो वही Second संगठन के लिए ही उपयुक्त हो।यदि किसी संगठन में कार्यरत संयंत्र खराब हो गया हो तो उसके सम्बन्ध मेंइन तथ्यों पर विचार Reseller जा सकता है –

  1. संयंत्र की मरम्मत करार्इ जा सकती है। 
  2. यदि मरम्मत संभव न हो तो संयंत्र को बदला जा सकता है।
  3. संयंत्र को उसी प्रकार के संयंत्र से बदला जा सकता है। 
  4. यंत्र को आधुनिक संयंत्र से बदला जा सकता है आदि। 

यदि All विकल्पों पर विचार करना संभव न हो तो केवल उन्हीं विकल्पों पर विचार Reseller जा सकता है। जो संगठन के लिए अधिक प्रासंगिक हैं। इस प्रकार हम सीमित करने वाले घटकों पर विचार कर लेते हैं।

4. सर्वश्रेष्ठ विकल्प का चयन करना – 

उपलब्ध विकल्पों में से संगठन के लिए अधिक प्रासंगिक विकल्पों पर विचार कर सर्वश्रेष्ठ विकल्प का चयन Reseller जाता है। इसके लिये इन बातों पर विचार Reseller जा सकता है।

  1. किस विकल्प में न्यूनतम प्रयत्न करने की Need है?
  2. किस विकल्प में कितना व्ययय होगा?
  3. किस विकल्प में लाभ कितना होगा? 
  4. किस विकल्प में कितना समय लगेगा?
  5. किस विकल्प में कम सामग्री And श्रम की Need पड़ती है? 

इस प्रकार विभिन्न विकल्पों के विभिन्न घटकों पर विचार कर संगठन के लिए सर्वथा उपयुक्त विकल्प का चयन कर लिया जाता है।

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