धर्म सुधार आंदोलन And धर्म सुधार विरोधी आन्दोलन

1517 र्इ. से 1648 र्इ. तक का युग धर्म सम्बन्धी सुधारों का युग था। चर्च और पोप के भ्रश्ट तंत्र के विरूद्ध जो आंदोलन हुआ वह धर्म सुधार आंदोलन था। इस आंदोलन के दो लक्ष्य थे- (1) र्इसार्इयों में धार्मिक, नैतिक और आध्यात्मिक जीवन को पुन: उन्नत और श्रेश्ठ करना और (2) रोम के पोप और उसके अधीनस्थ अन्य धर्माधिकारियों के धर्म संबधी अनेक व्यापक अधिकारों को कम करना। मध्ययुग में पूर्ण यूरोपीय समाज धर्मकेन्द्रित, धर्मप्रेरित और धर्मनियंत्रित था और पोप, धार्मिक जीवन का नियंता ही नहीं था, अपितु राजनीतिक क्षेत्र में भी सर्वोपरि था। धर्म सुधार आंदोलन ऐसे सामाजिक और धार्मिक जीवन के विरूद्ध Single असाधारण प्रक्रिया थी, परंतु राज्य और व्यक्ति के जीवन को इस आंदोलन ने सर्वाधिक प्रभावित Reseller। इस आंदोलन के दो स्वReseller थे-Single धार्मिक और दूसरा राजनीतिक। इस आंदोलन से र्इसार्इयों में जो धार्मिकता, नैतिकता और आध्यात्मिकता की वृद्धि हुर्इ, उस दृष्टि से यह धर्म सुधार आंदोलन था। इसके अतिरिक्त जब पापे के अनेक अधिकारों के उन्मूलन के विरूद्ध आंदोलन Reseller गया और इससे राष्ट्रीय राजतंत्र और पोप में जो परस्पर संघर्श छिड़ा उस दृष्टि से यह राजनीतिक आंदोलन था।

धर्म सुधार आन्दोलन के कारण

राजनीतिक कारण

चर्च और पोप के पास व्यापक राजनीतिक ओर आर्थिक अधिकार और शक्तियाँ थीं। पोप से लेकर गाँव के पादरी तक चर्च के All अधिकारी King की सत्ता से स्वतंत्र थे। उनके पास विशाल जागीरें थी, वे राज्य के करों से मुक्त थे, पर जनता से विभिन्न प्रकार के कर वसूल करते थे, चर्च के स्वतंत्र न्यायालय भी थे जहाँ वे जनता के मुकदमों को सुनते और निणर्य देते थे। पापे राज्य के आतं रिक और बाहरी मामलों में हस्तक्षपे करता था। वह King को र्इसार्इ धर्म से बहिश्कृत करने, राज्य में चर्च के पादरियों और अधिकारियों को Appointment करने का आदेश भी दे सकता था। उदीयमान राष्ट्रीय Kingओं ने चर्च और पापे के इन व्यापक धामिर्क ओर राजनीतिक अधिकारों का घोर विरोध Reseller क्योंकि ये विस्तृत अधिकार राष्ट्रीय राजतंत्रों के अधिकारों की अभिवृद्धि में बाधक थे। नवीन Kingगण इन अवांछनीय अधिकारों को समाप्त कर अपनी प्रभु-सत्ता और शक्ति को सुदृढ़ करना चाहते थे।

राष्ट्रीय जागृति से Kingओं को जन समर्थन प्राप्त हो गया था। राष्ट्रीय भावना से जन साधारण में यह भावना जागृत हो गयी कि पोप Single विदेशी सत्ता है। अपने देश के प्रति देशभक्त रहकर उसकी उन्नति को महत्वपूर्ण समझना और पोप के प्रभाव व अधिकारों को समाप्त करना प्रत्येक देश अपना कर्तव्य मानने लगा। इसीलिए Kingगण अपनी निरंकुश राजसत्ता को अधिकार दृढ़ करने के लिए अपने राज्य में फैली चर्च की अतुल धन सम्पित्त व जागीरों को ही हड़पना चाहते थे। वे गिरजाघरों की अतुल सम्पित्त और आर्थिक स्रोतों पर अधिकार करने के लिए लालायित थे। एसेी दशा में राष्ट्रीय Kingओं ने धर्म सुधार आंदोलन का समर्थन Reseller।

आर्थिक कारण

मध्ययुगीन यूरोप में सामतं वादी व्यवस्था में कृशक दास थे और उद्यागेां में श्रेणी व्यवस्था से श्रमिक और शिल्पी को व्यक्तिगत स्वतंत्रता नहीं थी। परंतु सोलहवीं सदी में विभिन्न कारणों से यह सामंतवादी व्यवस्था विघटित हो गयी और व्यापार, वाणिज्य ओर उद्यागेां के विकास होने से कृशक, कारीगर ओर मजदूर विभिन्न उद्योग धंधों And कल कारखानों में लग गये। वाणिज्यवाद और पूँजीवाद का उत्कर्श हुआ। इससे समाज में धन सम्पन्न वणिक वर्ग और उद्योगपतियों का वर्ग बन गया। चर्च इसके ब्याज और मुनाफ़ा अर्जित करने के साधनों को वर्जित करता था। अत: इस नवीन पूँजीवादी वणिक वर्ग ने चर्च का विरोध Reseller, वे चर्च की अतुल सम्पित्त को भी अपने व्यापार और उद्योगों की वृद्धि के लिए हड़पना चाहते थे, क्योंकि वे चर्च की धन सम्पित्त को अनुत्पादक मानते थे, इसलिए उन्होंने धर्म सुधार आंदोलन को हवा दी।

चर्च की असंख्य भू स्वामित्व जागीरों से, विभिन्न करों, चन्दो And अनुदानों से चर्च के पास अतुलनीय धन सम्पित्त संग्रहीत हो गयी थी। इसका उपयोग चर्च के पादरी और अधिकारी सांसारिकता और भोगविलास में करते थे। इससे जनसाधारण में रोश व्याप्त हो गया और उन्होने राष्ट्रीय हित में इसे हड़पना चाहा। अत: उन्होंने धर्म सुधार आंदोलन को समर्थन और सहयोग दिया।

धार्मिक कारण

आधुनिक युग के प्रारंभ होने तक चर्च और पोपशाही में अनेक दोष उत्पन्न हो गये थे। चर्च के बहुसंख्यक पादरी ओर धर्माधिकारी अपने धार्मिक कर्तव्यों की अपेक्षा करते थे। वे पापे की भाँति आचरण-भ्रश्ट व अनैतिक थे तथा सांसारिक सुख-सुविधाओं और वैभव विलासिता में मग्न रहते थे। वे राजनीति, प्रदशर्न, शानशौकत और भौतिकवादी प्रवृित्तयों में डूबे हुए थे। चर्च का स्वReseller मुख्यतया व्यावसायिक हो गया था। चर्च के विभिन्न पदों पर Appointmentयाँ योग्यता के आधार पर नहीं होकर, अनुशसंओ, प्रभावों और धन के प्रलोभन के आधार पर होती थी। पापे गिरजाघरों के विभिन्न पदों को बेचता था। चर्च में Single दोष “प्लुरेलिटिज” प्रथा थी। इनके अंतर्गत Single ही पादरी अनेक गिरजाघरों का अध्यक्ष हो सकता था और अनेक पदों पर कार्य कर सकता था। इससे Single ही व्यक्ति की सत्ता और सम्पन्नता में खूब वृद्धि होती थी।

चर्च में व्याप्त इस अनैतिकता और विलासिता के अतिरिक्त चर्च जनसाधारण का शोषण भी करता था। चर्च द्वारा विभिन्न करो, उपहारों और दानों से धन Singleत्र Reseller जाता था। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी आय का दसवाँ भाग अनिवार्य Reseller से चर्च को देना पड़ता था। इसके अतिरिक्त भंटे , उपहार और चढ़ावा भी चर्च को देना पड़ता था। पोप भी अन्य प्रकार के कर लगाकर जनता का शोषण करता था। इस आर्थिक शोषण से तो जनसाधारण में आक्रोश था ही, पर करों द्वारा Singleत्रित धन देश के बाहर पोप के पास रोम भेजा जाता था। इससे लोग चर्च के विरोधी हो गये। राष्ट्रीय चेतना के कारण नवीन King वर्ग चर्च द्वारा इस प्रकार वसूल किये और रोम भेजे गये धन को अपने राज्य की आय की चोरी समझता था। इस धन को King लोकहित में और राजतंत्र को दृढ़ करने में हाथियाना चाहते थे। पोपशाही में भी अनेक दोष और दुर्बलताएँ उत्पन्न हो गयी थीं। रोम में पोप का दरबार भयंकर व्यभिचार और भ्रष्टाचार का घर बन गया था। पापे और उसके सहयोगी धर्माधिकारी भव्य राजप्रसादों में वैभव और विलासिता से रहते थे। उसका व्यक्तिगत जीवन अनैतिकता और अनाचार से भरापूरा होता था। पापे एलेक्जेडंर शश्ट (1492-1503) तो विलासिता के लिए Single पूरा हरम रखता था तथा व्यभिचार से उत्पन्न अपने अवैध पुत्रों के लिए जागीरें खोज करता था।

पोप अपने आपको र्इशवर का प्रतिनिधि मानता था और उसने अधिकतम धन संग्रह करने के लिए “क्षमापत्रों” या “पापमाचे न-पत्रो” को अपने पादरियों द्वारा जनता में बेचना शुरू Reseller। कोर्इ भी व्यक्ति अपने पापों से मुक्त होने के लिए धन देकर क्षमा पत्र प्राप्त कर सकता था। इस क्षमा पत्र पर कुछ भी नहीं लिखा रहता था। पोप ने यह प्रचार Reseller था कि जो व्यक्ति मृत्यु के पूर्व पाप-मोचन पत्र खरीद लेगा, वह मृत्यु के बाद स्वर्ग प्राप्त करेगा। इन सबका सामूहिक परिणाम धर्म सुधार आंदोलन था।

तात्कालिक कारण

पाप मोचन पत्रों की बिक्री के समय जर्मनी में जो विस्फाटे क घटना घटी उससे धर्म सुधार आंदोलन का सूत्रपात हो गया। जब 1817 र्इ. में पापे का एजेटं टेटजेल जर्मनी में पाप मोचन पत्रों को विटनवर्ग में खुले आम बेच रहा था तब मार्टिन लूथर ने इसका कड़ा विरोध Reseller और अपने लिखित “95 प्रसंगों” द्वारा पोप को चुनौती दी और इस प्रकार पोप के विरूद्ध खुला विद्रोह कर दिया। लूथर का कथन था कि धन देकर मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता, अपितु पापों से मुक्ति पाने के लिए र्इशवर पर विशवास रखना और र्इशवर की असीम दया प्राप्त तथा अच्छे कर्म करना आवशयक है। उसने र्इशवर के प्रति श्रद्धा और विशवास तथा स्वयं की प्रायश्चित की भावना द्वारा दोष मुक्ति का सिद्धांत प्रतिपादित Reseller। इसके लिए उसने पाप मोचन पत्र की Need निरर्थक बतलायी और इस प्रकार धर्मसुधार आन्दोलन का प्रारंभ हो गया।

धर्मसुधार आन्दोलन के प्रणेता

मार्टिन लूथर के पूर्व धर्म सुधारकों ने Fourteenवीं सदी से ही चर्च और पापे शाही की अनैतिकता, भ्रश्टता, विलासिता ओर शोशण के विरूद्ध अपनी आवाज बुलंद की ओर उन्होने धर्म सुधार की पृष्ठ्भूमि तैयार की। ये अधोलिखित हैं।

जान वाइक्लिफ (1320 र्इ.-1384 र्इ.) 

यह इंग्लैण्ड में आक्सफोर्ड विशवविद्यालय में प्रोफसेर था। उसने कैथोलिक धर्म और चर्च की अनेक गलत परम्पराओं और गतिविधियों की ओर जनसाधारण का ध्यान आकृश्ट Reseller। उसने बाइबल का अंगे्रजी में अनुवाद Reseller जिससे कि साधारण जनता र्इसार्इ धर्म के वास्तविक सिद्धांतों को समझ सके And पादरियों द्वारा गुमराह होने से बच सके। प्रत्येक र्इसार्इ को बाइबल के सिद्धांतों के According कार्य करना चाहिए। इसलिए पादरियों के मार्गदशर्न की Need नहीं है। उसके मतानुसार चर्च में व्याप्त भ्रष्टाचार का कारण उसकी अतुल सम्पित्त है, इसलिए उसने King को सुझाव दिया कि राज्य इस अतुल सम्पित्त को ले ले और गिरजाघरों को पवित्र स्थल बनावे।

जानहस

यह जमर्न ी में बाहे ेि मया का निवासी था ओर प्राग विशवविद्यालय में प्रोफसे र था। उसने यह मत प्रतिपादित Reseller कि Single साधारण र्इसार्इ बाइबल के सिद्धांतों का अनुकरण कर मुक्ति प्राप्त कर सकता है। इसके लिए गिरजाघर और पादरी की Need नहीं है। चर्च की आलोचना करने पर उसे नास्तिक कहा गया और नास्तिकता के आरोप में उसे 1415 र्इ. में जीवित जला दिया।

सेवोनारोला (1452 र्इ.-1498 र्इ.)

यह इटली में फ्लोरंस नगर का विद्वान पादरी था। उसने पोप की अनैतिकता, भ्रश्टता और विलासिता तथा चर्च में व्याप्त दोषों की कटु आलाचे ना की। इस पर पापे और उसकी परिशद ने उसे दंडित कर जीवित जला दिया।

इरासमस (1466 र्इ.-1536 र्इ.)

यह हालैण्ड निवासी था। उसने लेटिन साहित्य तथा र्इसार्इ धर्मॉास्त्रों का अध्ययन Reseller। इस अध्ययन से उसमें Humanतावादी पवित्र भावनाएँ जागृत हइुर् । 1484 ई. में वह र्इसार्इ मठ में धार्मिक जीवन व्यतीत करने चला गया। 1492 र्इ. तक उसने यहाँ Single पादरी के पद पर कार्य Reseller। यहाँ उसने चर्च व मठों में व्याप्त भ्रष्टाचार और विलास को स्वयं देखा। 1499 र्इ. में वह इंग्लैण्ड चला गया। वहाँ वह टामस, मूर, जान कालेट, टामस लिनेकर जसै इंग्लैण्ड के विद्वानों के संपर्क में आया और उसने अनेक पुस्तकें और लेख लिखे। उसकी Creationओं में कलेक्टिनिया एडगियारे म जिसका अनुवाद अनेक भाषाओं में हुआ, “कोलोक्वीज” , “हैण्डबुक ऑफ ए क्रिश्चियन गलेजर” और 1511 र्इ. में लिखी द पे्रज ऑफ फाली प्रमुख है। अंतिम ग्रंथ में उसने व्यंग्य और परिहास की शैली में धर्माधिकारियों की पोल खोली और चर्च में व्याप्त दोषो और अनैतिकता पर प्रहार किये। उसने 1515 र्इ.में उसने बाइबल का लेटिन भाषा में अनुवाद Reseller।

मार्टिन लूथर (1483 र्इ.-1546 र्इ.)

जर्मनी में सेक्सनी क्षेत्र के गाँव आइबेन में लूथर का जन्म 10 नवम्बर 1483 को Single साधारण कृशक परिवार में हुआ था। उसने इरफर्ट विवि में धर्म शास्त्र और Humanवादी शास्त्र का अध्ययन Reseller। 1508 र्इ. में वह गटेनवर्ग के विशवविद्यालय में धर्म और दशर्न शास्त्र का प्रोफसे र नियुक्त हुआ। पर वह पादरी और प्रोफेसर बन गया। उसने र्इसार्इ धर्म और संतों के सिद्धांतों का गहन अध्ययन Reseller और इस निश्कर्श पर पहुँचा कि मोक्ष प्राप्ति के लिए मनुश्य में र्इशवर के प्रति श्रद्धा And र्इशवर की क्षमाशीलता में विशवास नितातं आवशयक है। उसने तत्कालीन कैथाेिलक धर्म में प्रचलित सप्त संस्कारों के सिद्धातं का खंडन Reseller।

1511 ई. में वह Single धर्म यात्री के Reseller में रामे गया ओर वहाँ पापे की अनैतिकता, भ्रष्टाचार और विलासिता को स्वयं देखकर उसे गहरा क्षोभ हुआ और उसने कहा कि र्इसार्इ धर्म रोम के जितना समीप है उतना ही वह दोषों से परिपूर्ण है। इस समय तक लूथर पोप और कैथोलिक चर्च का विरोधी नहीं था। किंतु पाप मोचन पत्रों या क्षमा पत्रों की खुली बिक्री ने उसे विरोधी बना दिया। इस बिक्री से प्राप्त धन को पापे रामे में सेंट पीटर गिरजाघर के निर्माण में लगा रहा था।

1517 ई. में पापे का Single पादरी एजेटं जर्मनी के विटेनवर्ग में क्षमा पत्रों को बचे रहा था। लूथर ने इस बिक्री की घोर निंदा की और इसके विरोध में विटेनवर्ग के गिरजाघर के प्रवेश द्वार पर “95 प्रसंगों” को लिख कर लगा दिया। वस्तुत: इन 95 कारणों में क्षमा पत्रों की बिक्री का ही नहीं, अपितु चर्च द्वारा विभिन्न साधनों से धन Singleत्र करने का विरोध कर उनकी कटु आलोचना की गयी थी। इसके बाद 1519 र्इ. में जर्मनी के Single नगर में खुले वाद-विवाद में लूथर ने कैथोलिक चर्च की सर्वोच्च सत्ता को और धर्माधिकारियों को अमान्य कर दिया। उसका कथन था कि मनुश्य ओर इशर् वर के बीच पोप की सहायता और मध्यस्थता निरर्थक है। मनुश्य को र्इशवर की दया और अनुकंपा की प्राप्ति के लिए किसी पादरी या पोप की मध्यस्थता की Need नहीं है। इस प्रकार लूथर ने कैथोलिक चर्च की निरंकुशता और सर्वोच्चता पर पहली बार कुठाराघात Reseller। 1520 र्इ. में उसने तीन प्रसिद्ध छोटी पुस्तिकाएँ लिखीं और चर्च व पोप पर घातक आक्रमण किये।

लूथर के इन प्रहारों और आक्षेपों ने क्षबुध होकर पोप ने 1520 र्इ. में लूथर को कैथाेिलक चर्च से निश्कासित करने का आदेश दिया। पर लूथर ने विटेनवर्ग के खुले बाजार में इस निश्कासन आज्ञा को जला दिया। स्पेन सम्राट चाल्र्स पंचम इस समय कैथालिक धर्म का प्रबल समर्थक था। जर्मनी में भी उसकी सर्वोच्च राजसभा थी। 1521 र्इ. में वम्र्स नगर में चाल्र्स की अध्यक्षता में जमर्न राज्यों की Single धर्म सभा आयोजित की गयी और लूथर से कहा गया कि वह इसके सम्मुख अपना स्पश्टीकरण दे। लूथर वहां भी अपने सिद्धांतो पर अडिग रहा। इस पर सभा ने उसकी Creationओं को गैर कानूनी घोशित कर दिया और उसे नास्तिक करार देकर उसे राज्य की Safty से वंचित कर दिया। इसी बीच लूथर ने जर्मन भाषा में बाइबल का अनुवाद Reseller जो अत्यधिक लोकप्रिय हुआ। इससे जनता लूथर के सिद्धांतों और विचारों को सरलता से समझ सकी। इस समय लूथर राज्य की Safty से वंचित कर दिया गया था। इससे उसकी हत्या की संभावना थी। इस संकट में लूथर के समर्थक जर्मनी में सेक्सनी के सामंत फडे रिक ने उसे वर्टम्वर्ग के दुर्ग में शरण देकर उसकी Safty की।

तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक अव्यवस्था का लाभ उठाते हुए लूथर ने चर्च, पोप और सम्राट पंचम की उपेक्षा की और अपने विचारों व सिद्धांतों का खूब प्रचार Reseller। शीघ्र ही लूथर का धर्म सुधार आंदोलन जर्मनी में लोकप्रिय राष्ट्रीय आंदोलन हो गया। सांसारिक लोग और स्थानीय जर्मन King जो चर्च की अतुल सम्पित्त हथियाना चाहत थे और वे जर्मन देशभक्त जो विदेशी पादरियों के शोशण के विरूद्ध थे, लूथर के धर्म सुधार आंदोलन के समर्थक बन गये। समस्त जर्मनी में लूथरवादी सिद्धांतों का प्रसार हुआ, अत: चर्च के विरूद्ध विद्रोह हो गया, कैथोलिक मठ विध्वंस कर दिये गए, चर्च की सम्पत्ति छीन ली गयी। पोप की राजनीतिक, धार्मिक और अधिक सत्ता अमान्य कर दी गयी।

प्रोटेस्टेंट धर्म का उदय

1526 र्इ. में पवित्र साम्राज्य की सभा की बैठक स्पीयर में हुर्इ, इसमें जर्मनी के King कैथोलिक और लूथरवादी दो दलों में विभक्त हो गये थे। 1529 र्इ. में स्पीयर में ही दूसरी सभा हुर्इ। इसमें सम्राट चाल्र्स पंचम ने कैथोलिक धर्म का प्रबल समर्थन Reseller और नये धर्म सुधार आंदोलन के विरूद्ध कर्इ कठोर निर्देश पारित किए। इन सभा में इस Single पक्षीय निर्णयों का सुधारवादी Kingों और समर्थकों ने विरोध Reseller। इस विरोध और प्रतिवाद के कारण इस धर्म सुधार आंदोलन का नाम प्रोटेस्टेंट पड़ा। 1530 र्इ. में प्रोटेस्टेंट धर्म के सिद्धांतों को निर्दिश्ट Singleीकृत Reseller दिया गया। इसमें लूथर के सिद्धांत सम्मिलित कर लिए गए। यूरोप में यह प्रोटेस्टेंट धर्म का उदय था।

आम्सवर्ग की संधि (1555 र्इ.)

सम्राट चाल्र्स First ने जर्मनी में आम्सवर्ग में Single सभा आयाेिजत की ओर उसमें प्रोटेस्टेंटों को अपने सिद्धातों को प्रस्तुत करने की आज्ञा दी। फलत: प्रोटेस्टेंटों ने अपने Singleीकृत सिद्धांतों को Single दस्तावेज के Reseller प्रस्तुत Reseller। इस दस्तावेज को “आम्सवर्ग की स्वीकृति” कहते हैं, परंतु चाल्र्स पंचम ने इसे अमान्य कर दिया और नवीन सुधारवादी धर्म के दमन का निशचय Reseller। इसका सामना करने के लिए लूथरवादी जर्मन Kingओं से 1531 र्इ. में शमालकाडेन लीग नामक Saftyत्मक संघ बनाया। अब सम्राट चाल्र्स पंचम ने प्रोटेस्टंटों का सामूहिक नाश करने का निणर्य लिया। फलत: जर्मनी में गृह Fight प्रारंभ हो गया। इसे शमालकाडेन का Fight (1546 र्इ.-1555 र्इ.) कहते हैं। पर कुछ समय बाद इस गृह Fight से त्रस्त होकर सम्राट चाल्र्स के उत्तराधिकारी फर्डिनेण्ड ने 1555 र्इ. में आम्र्सवर्ग की संधि कर ली। इसकी धाराएँ अधोलिखित थीं –

  1. जर्मनी ने प्रत्येक King को (प्रजा को नहीं) अपना और अपनी प्रजा का धर्म चुनने की स्वतंत्रता दी गयी। 
  2. 1552 र्इ. के पूर्व कैथोलिक चर्च की जो धन सम्पित्त प्रोटेस्टेंटों के हाथों में चली गयी, वह उनकी मान ली गयी।
  3. लूथरवाद के अतिरिक्त अन्य किसी धार्मिक सम्प्रदाय को मान्यता नहीं दी गयी। 
  4. कैथाेिलक धर्म के क्षेत्रों में रहने वाले लूथरवादियों को उनका धर्म परिवर्तन करने के लिए विवश नहीं Reseller जायेगा। 
  5. “धार्मिक रक्षण” की व्यवस्था की गयी। इसके According यदि कोर्इ कैथोलिक पादरी प्रोटेस्टेंट हो जाए तो उसे अपने कैथोलिक पद और उससे संबंधित All अधिकारों को त्यागना होगा। 

संधि की समीक्षा 

  1. इस संधि से 1530 र्इ. में लूथरवादी संप्रदाय का जो सैद्धांतिक स्वReseller निर्दिश्ट Reseller गया था उसे 1555 र्इ. की इस संधि द्वारा सरकारी मान्यता प्राप्त हो गयी। 
  2. जिं वग्लीवादी ओर कैल्विनवादी जैसे अन्य प्रोटेस्टंट संप्रदायों को मान्यता नहीं मिलने से पुन: धार्मिक Fight (तीस वर्षीय Fight) प्रारंभ हो गया जो वेस्ट फेलिया की संधि से समाप्त हुआ। 
  3. 1552 र्इ. के बाद प्रोटेस्टेंटों ने धर्म परिवर्तन के साथ सम्पित्त हस्तांतरण के सिद्धांत पर बल दिया। इससे कैथालिकों और प्रोटेस्टंटों में  झगड़े बढ़। इन दोषो के बावजूद भी आम्सवर्ग की संधि ने 1619 र्इ. तक जर्मनी में धार्मिक व्यवस्था बनाए रखी।

इंग्लैण्ड में धर्म सुधार आंदोलन

हेनरी का उत्तराधिकारी एडवर्ड छठा अवयस्क था, इसलिए उसके शासनकाल (1547 र्इ.-1553 र्इ.) में उसके संरक्षक ड्यूक ऑफ सामरसेट और ड्यूक ऑफ नार्बम्बरलैण्ड ने प्रोटेस्टेंट धर्म के सिद्धांतों का प्रचार Reseller और इंग्लैण्ड के चर्च को इन सिद्धांतों के आधार पर संगठित Reseller तथा अंगे्रजी भाषा में 42 सिद्धांतों वाली “सामान्य प्रार्थना पुस्तक” प्रचलित की। इससे इंग्लैण्ड के चर्च की आराधना पद्धति में कर्इ परिवर्तन किये गये। इन सब कारणों से अब इंग्लैण्ड का चर्च एंग्लिकन चर्च कहा जाने लगा। एडवर्ड की मृत्यु के बाद मेरी ट्यूडर (1553 र्इ.-1558 र्इ.) के शासनकाल में कैथोलिक धर्म और पोप की सर्वोपरिता को पुन: इंग्लैण्ड में प्रतिश्ठित करने के प्रयास किये गये और लगभग 300 धर्म सुधारको, जिनमें आर्क बिशप क्रेनमर, लेटिमर और रिडल प्रमुख थे, को मृत्यु दंड भी दिया। किंतु प्रोटेस्टेंट आंदोलन और धर्म प्रचार का पुर्णResellerेण दमन नहीं हो सका।

इस प्रकार धर्म सुधार आंदोलन के परिणामस्वReseller यूरोप में कैथोलिक सम्प्रदाय के साथ-साथ लूथर सम्प्रदाय, कैल्विन सम्प्रदाय, एंग्लिकन सम्प्रदाय और प्रेसबिटेरियन संप्रदाय प्रचलित हो गये। इंग्लैण्ड और यूरोपीय देशों में हुए धर्म सुधार आन्दोलनो में अंतर है। यूरोप के देशों में हुआ धर्म सुधार आंदोलन पूर्णResellerेण धार्मिक था। इसके विपरीत इंग्लैण्ड का धर्म सुधार आंदोलन व्यक्तिगत और राजनीतिक था। यूरोप में धर्म सुधार का प्रारंभ धार्मिक नेताओं ओर उनके बहुसंख्यक अनुयायियों ने Reseller। कालांतर में जनता ने उसे अपना लिया। प्रारंभ में अनेक Kingओं ने धर्म सुधार आंदोलन का विरोध कर उसका दमन Reseller। इसके विपरीत इंग्लैण्ड में King हेनरी अश्टम ने धर्म सुधार आंदोलन प्रारंभ Reseller और उसके उत्तराधिकारी एडवर्ड षष्ठम के मंत्रियों ने और रानी एजिलाबेथ ने नवीन धर्म को प्रजा के लिए अनिवार्य कर दिया और पोप के स्थान पर King इंग्लैण्ड के चर्च का संरक्षक और सर्वोच्च अधिकारी बन गया।

हेनरी अश्टम ने अपनी पत्नी केवराइन के तलाक की अनुमति पोप द्वारा नहीं दिये जाने पर पोप का विरोध Reseller और Single्ट ऑफ सुप्रीमेसी पारित कर वह इंग्लैण्ड के चर्च का सर्वोच्च अधिकारी हो गया। इस प्रकार उसने पोप से संबंध विच्छेद कर लिये और कैथोलिक मठों की धन सम्पित्त भी हथिया ली। हेनरी अश्टम का उद्दशे य धर्म में सुधार नही  था। उसने पापे से संबंध विच्छेद करने पर भी कैथाेिलक धर्म के सिद्धातों को बनाये रखा। उसकी सहानुभूति न तो लूथरवाद के प्रति थी और न कैल्विनवाद के प्रति। उसका विरोध तो केवल पोप से था, इसलिए इंग्लैण्ड में उसने पोप की सत्ता को Destroy कर दिया। धर्म सुधार का यह कारण व्यक्तिगत था। हेनरी अष्टम ने कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट दोनों को दंडित Reseller। उसने कैथोलिकों को इसलिए दंडित Reseller कि वे उसे चर्च का प्रमुख और सर्वेसर्वा नहीं मानते थे और प्रोटेस्टेंट ों को इसलिए दंडित Reseller Reseller कि वे कैथाेिलक धर्म के सिद्धातों को नहीं मानते थे। इंग्लैंड में धर्म सुधार का प्रसार धीरे-धीरे एडवर्ड शष्ठ के शासनकाल में प्रारंभ हुआ।

धर्म-सुधार-विरोधी आंदोलन

धर्म-सुधार-विरोधी आंदोलन से अभिप्राय

यूरोप में धर्म सुधार आंदोलन के कारण नवीन प्रोटेस्टेंट धर्म के प्रसार से चिंतित होकर कैथोलिक धर्म के अनुयायियों ने कैथोलिक चर्च व पोपशाही की शक्ति व अधिकारों को Windows Hosting करने और उनकी सत्ता को पुन: सुदृढ़ बनाने के लिए कैथोलिक चर्च और पोपशाही में अनके सुधार किये। यह सुधार आंदोलन, कैथोलिकों की दृष्टि से उनके पुनरुत्थान का आंदोलन है और प्रोटेस्टेंट विरोधी होने से इसे धर्म-सुधार-विरोधी आंदोलन, या प्रतिवादी अथवा प्रतिवादात्मक धर्म-सुधार आंदोलन कहा गया। यह आंदोलन सोलहवीं सदी के मध्यान्ह से प्रारंभ हुआ। इस धर्म-सुधार-विरोधी आंदोलन का उद्देशय कैथाेिलक चर्च में पवित्रता और ऊँचे आदर्शों को स्थापित करना था, चर्च ओर पापे शाही में व्याप्त दोषो को दूर कर उसके स्वReseller को पवित्र बनाना था। इस युग के नये पोप जैसे पॉल तृतीय, पॉल चतुर्थ, पायस चतुर्थ, पायस पंचम आदि पूर्व पोपों की अपेक्षा अधिक सदाचारी, धर्मनिश्ठ, कर्तव्यपरायण और सुधारवादी थे। इनके प्रयासों से कैथोलिक धर्म में नवीन शक्ति, स्फूर्ति और पे्ररणा आर्इ और कर्इ सुधार किये गये।

धर्म-सुधार-विरोधी आंदोलन का प्रयास और साधन

टे्रन्ट की धर्म सभाएँ (1545 र्इ.-1565 र्इ.) दिसम्बर 1545 र्इ. में लूथर के दहेांत के कुछ ही समय First जर्मनी में सम्राट चाल्र्स पंचम ने Single धर्म सभा आयाेि जत की जिससे कि यूरोप के सम्राट चर्च में सुधार कर सकं।े इस सभा की बठै कें 1545 र्इ. से 1565 र्इ. की अवधि में आयोजित होती रही। इनमें कैथोलिकों की प्रधानता थी और उनका अध्यक्ष भी कैथोलिक ही था। इन सभाओं में सुधार के लिए महत्वपूर्ण निर्णय लेकर उनको कार्यान्वित Reseller गया।

  1. कैथाेिलक चर्च का प्रधान पापे है। धार्मिक विशयों में उसके निर्माण को अंतिम और श्रेश्ठ माना गया। 
  2. चर्च के विभिन्न पदों की बिक्री निशिद्ध कर दी गयी। योग्यता के आधार नर्इ Appointmentयाँ की जाएँ।
  3.  पादरियों बिशपों के प्रशिक्षण की व्यवस्था की गयी। उनको तथा चर्च के धर्माधिकारियां े को निर्देश दिए गए कि वे सांसारिक भोग-विलासिताओं को त्याग कर, अपने-अपने कार्य क्षेत्रों में रहें और कर्तव्यों का समुचित पालन करें उनके जीवन को पवित्र, सदाचारी, अनुशासन युक्त तथा क्रियाशील बनाने के लिए विभिन्न नियम बनाये गये। 
  4. जन साधारण की भाषा में धार्मिक उपदेश दिये जाएँ। 
  5. पाप मोचन पत्रों या क्षमा पत्रों का दुरुपयागे समाप्त कर दिया गया। 
  6. कैथोलिकों के लिए Single सी आराधना पद्धति व प्रार्थना-पुस्तक निर्धारित की गयी। 
  7. उन पुस्तकों को जिनमें प्राटेस्टेंट धर्म के सिद्धातों का निResellerण था, निशिद्ध कर दिया गया। 
  8. कैथोलिक धर्म के सिद्धांतों को अधिक स्पश्ट और सुदृढ़ Reseller गया। 
  9. लूथर का प्रतिपादित “श्रद्धा समन्वित सिद्धांत” असत्य और अमान्य घोशित Reseller गया। लूथर का यह मन कि केवल धार्मिक श्रद्धा से ही पापी मुक्ति पा सकता है गलत बताया गया। मुक्ति के लिए धार्मिक श्रद्धा, सद्कार्य और पुण्य कर्म दोनों की Need पर बल दिया गया। “सप्त संस्कारों” की उत्पित्त र्इसा से बता कर उसकी अनिवार्यता को बतलाया गया। “लास्ट सपर” के सिद्धांत की पुश्टि की गयी। 
  10. लेटिन भाषा में लिखी बाइबल ही मान्य की गयी। मठो, गिरजाघरों और पाठशालाओं में सर्वमान्य बाइबल पढ़ाने की व्यवस्था की गयी।

इस प्रकार ट्रेन्ट की धर्म सभाओं के कार्य दो प्रकार के थे – सैद्धांतिक और सुधारात्मक। सैद्धांतिक दृष्टि से कैथोलिक धर्म के सिद्धांतों को अधिक स्पश्ट Reseller गया तथा उसकी मान्यताओं को पुन: पुश्ट Reseller गया। सुधार की दृष्टि से चर्च में नैतिकता, शुद्धता, पवित्रता, अनुशासन, धर्मपरायणता आदि की स्थापना की गर्इ। ट्रेन्ट की धर्म सभाओं के परिणामस्वReseller कैथाेिलक सम्प्रदाय के संगठन में उच्च श्रेश्ठ आदशर् और अनुशासन स्थापित हो गये।

इगनेशियस लायला (1491 र्इ.-1556 र्इ.)

कैथाेिलक धर्म में सुधार के लिए धर्म सभाओं के प्रस्ताव ओर निर्णयों पर्याप्त नहीं थे, उन्हें कार्यान्वित करने के लिए धार्मिक संगठनों की Need थी, एसे स्वयं सेवकों की Need थी जो विभिन्न स्थानों का भ्रमण कर कैथोलिक धर्म की ज्योति पुन: प्रज्जवलित करने और कैथोलिक धर्म के सिद्धातों का अनेक कश्टों को सहन करते हुए प्रचार करते। फलत: सोलहवीं सदी के उत्तरार्द्ध में एसे अनेक धार्मिक संघ बन गये। इनमें जेसुइट संघ और उसका संस्थापक इगनेशियस लायला विशेश प्रसिद्ध है।

इगनेशियस लायला स्पेन का Single सैनिक था जो सन 1521 में नवार के Fight में घायल होकर सदा के लिए लगड़ा हो गया था। उसके विचारों और मानसिक प्रवृित्तयों में परिवर्तन हुआ। उसने र्इसामसीह का सैनिक बनकर चर्च की सेवा करने का निशचय Reseller। उसने कैथोलिक भिक्षु के वस्त्र धारण कर लिये और ज्ञान संचय के लिए Seven वर्ष तक पेरिस विशव-विद्यालय में साहित्य, दशर्न शास्त्र और धर्म-शास्त्रों का गहन अध्ययन Reseller। यहीं Single दिन उसने सेन्टमेरी के गिरजाघर में अपने साथियों सहित Singleत्र होकर जीसस संघ स्थापित Reseller। इसका उद्देशय कैथोलिक चर्च और र्इसार्इ धर्म की सेवा करना, कैथोलिक धर्म का प्रचार करना तथा अपरिग्रह, बह्यचर्य और पवित्रता से जीवन व्यतीत करना था।

जीसस संघ के कार्य और उपलब्धियाँ

इगनेशियस लायला और उसके साथी फ्रांसिस जेवियर की श्रद्धा, भक्ति और निस्वार्थ सेवा से प्रभावित होकर पोप पाल तृतीय ने 1540 र्इ. में इस जेसुइट संघ को स्वीकृति पत्र देकर इसे कैथोलिक चर्च के सक्रिय संघ और कार्यकर्ताओं में मान लिया।

इस संघ का स्वReseller सैनिक था। इसका प्रमुख या अघ्यक्ष “जनरल” कहा जाता था। वह जीवन भर के लिए इस पद पर नियुक्त होता था। इसके सदस्य निस्वार्थ सेवक थे। उनको अपने उच्च अधिकारियों के आदेशों का बड़ी कठारे ता से पालन करना पड़ता था। उन्होंने कर्इ शिक्षण संस्थाएँ स्थापित की जहाँ नि:शुल्क शिक्षा दी जाती थी। उन्होने सेवा, दान, लाके हितैशी कार्य, चिकित्सा सेवा कार्य धर्मोपदेश आदि के द्वारा कैथोलिक कार्य और चर्च की खूब उन्नति की। उन्होंने चीन भारत, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका, जापान, ब्राजील, पैरागुए जैसे गैर-र्इसार्इ देशों में जाकर भी कैथाेिलक धर्म का खूब प्रचार Reseller। अकबर के शासनकाल में जैसुइट पादरी धर्म प्रचार के लिए भारत आये थे। फ्रांसिस जेवियर तो अकबर के दरबार में था। वे कट्टर और धर्मांध थे। जेसुइट पादरियों के परिणामस्वReseller सत्रहवीं सदी के मध्य तक इटली, फ्रासं , स्पने , पोलैंड, नीदरलैण्ड, दक्षिणी जर्मनी, हगंरी आदि देशों में कैथोलिक धर्म पुन: प्रतिश्ठित हो गया।

जेसुइट धर्माधिकारियों ने इंग्लैण्ड में भी कैथाेिलक धर्म का प्रचार Reseller। उन्होने इंग्लैण्ड की रानी एलिजाबेथ को कैथोलिक बनाने के कर्इ प्रयास किये किंतु असफल रहे।

इन्क्वीजिशन (धार्मिक न्यायालय)

प्रोटेस्टेंट धर्म की प्रगति को अवरूद्ध करने के लिए इन्क्वीजिशन नामक धार्मिक न्यायालय विभिन्न देशों में स्थापित किये गय।े इनकी स्थापना ओर गतिविधियों में जेसुइट पादरियों और धर्माधिकारियों का सबसे अधिक हाथ रहा।

इस विशिश्ट धार्मिक न्यायालय को 1552 र्इ. में पोप पॉल तृतीय ने रोम में पुनर्जीवित Reseller। यह न्यायालय सर्वोच्च अधिकारों युक्त था। नास्तिकों को ढूँढ निकालने, उनको कठोरतम दंड देने, कैथाेिलक चर्च के सिद्धातों को बलपूर्वक लागू करने, कैथाेिलक धर्म के विरोधियों को निर्ममता से कुचलने के लिए, Second देशों से धर्म के मुकदमों में अपीलें सुनने आदि के कार्य यह न्यायालय करता था। प्रोटेस्टेंटों के विरूद्ध इस न्यायालय ने कठोरतम उपाय किये। इस न्यायालय में बड़ी संख्या में मृत्यु दण्ड और जीवित जला देने की सजाएँ भी दी। इससे कालातं र में यह न्यायालय कुख्यात हो गया।

धार्मिक आंदोलनों का प्रभाव

  1. सोलहवीं सदी के प्रारंभ से लेकर सत्रहवीं सदी के मध्यान्ह तक यूरोप में जो धर्म सुधार आंदोलन और प्रतिवादी धर्म सुधार आंदोलन और संघर्श हुए- उसके परिणामस्वReseller यूरोप का र्इसार्इ जगत दो प्रमुख भागों में विभक्त हो गया-कैथाेिलक और प्रोटेस्टेंट। अब कैथाेिलक धर्म के अंतगर्त यूरोप में इटली, स्पेन, पुर्तगाल, बेलजियम, स्विटजरलैण्ड, दक्षिणी जर्मनी, आयरलैण्ड, पोलैण्ड, लिथुनिया, बोहेमिया, उत्तरी यूगोस्लाविया, हंगरी तथा यूरोप से बाहर पश्चिमी द्वीप समूह तथा मध्य व दक्षिण अमेरिका थे। प्रोटेस्टेंट धर्म के अंतर्गत उत्तरी और मध्य जर्मनी, डेनमार्क, नारवे, स्वीडन, फिनलैण्ड, एस्टोनिया, लेटविया, उत्तरी नीदरलैण्ड (हालैण्ड), स्काटलैण्ड व स्विटजरलैण्ड के क्षत्रे थे। Second Wordों में उत्तरी  ओर पूर्वी यूरोप प्रोटेस्टेंट हो गया और दक्षिणी तथा पश्चिमी यूरोप केथोलिक बना रहा। 
  2. धार्मिक आंदोलनों के फलस्वReseller यूरोप में राश्ट्रों और सुदृढ़ राजतन्त्रो का विकास हुआ। अपने अधिकारों की वृद्धि करने और अपने राश्ट्र व राज्य को सुदृढ़ करने के लिए उन्होंने धार्मिक आंदोलनों में सक्रिय भाग लिया। Single ओर कैथाेिलक धर्मावलंबी Kingओं ने कैथाेिलक धर्म का और दूसरी ओर प्रोटेस्टेंट Kingओं ने प्रोटेस्टेंट धर्म का समर्थन Reseller। उन्होंने चर्च के सहयोग से धार्मिक Singleता स्थापित कर अपने-अपने राज्य में सुदृढ़ राजतंत्र और राष्ट्रीय Singleता स्थापित की। 1517 र्इ. से 1646 र्इ. तक यूरोप का राजनीतिक क्षेत्र धर्म से पूर्ण प्रभावित था। 
  3. धार्मिक आंदोलनों के फलस्वReseller यूरोप के विभिन्न देशों में राष्ट्रीय भावना का उदय और विकास हुआ। र्इसार्इ धर्म का राष्ट्रीयकरण हो गया। केथोलिक चर्च और पोपशाही के विरूद्ध आंदोलन को राष्ट्रीयता की अभिव्यक्ति माना गया। प्राटेेस्टेंटवाद का समीकरण राश्ट्रवाद में हो गया। लूथरवाद ने जर्मन राष्ट्रीयता, कैल्विनवाद ने डच और स्काटिश राष्ट्रीयता और एंग्लिकन चर्च ने ब्रिटिश राष्ट्रीयता का विकास Reseller। इसी प्रकार अन्य देशों में भी केथोलिक चर्च का स्वReseller राष्ट्रीय हो गया।
  4. धर्म सुधारों से जन जागृति और स्वतंत्र वातावरण निर्मित हुआ ओर स्वतंत्र विचारों की अभिव्यक्ति हुर्इ तथा मनन-चितंन की प्रवृित्त अधिक बलवती हुर्इ। जेसुइट पादरियों और धर्म प्रचारकों ने शिक्षा को धर्म की उन्नति का साधन मानकर शिक्षा की प्रगति और प्रसार की ओर विशेश ध्यान दिया। न केवल जेसुइटों ने, अपितु लूथर और कैल्विन के अनुयायियों ने भी शिक्षा के प्रसार और विकास पर अधिकाधिक बल दिया। कैल्विन ने तो जेनेवा को प्रोटेस्टेंट जगत का ज्ञान-विज्ञान का केन्द्र बना दिया था। 
  5. धार्मिक आंदोलनों के परिणामस्वReseller र्इसार्इयों का नैतिक जीवन अधिक उन्नत हो गया। विभिन्न र्इसार्इ सम्प्रदायों में व्यावहारिक नैतिक, चारित्रिक पवित्रता, आचरण की श्रेश्ठता, सरल और संयमी जीवन प्रणाली पर अधिकाधिक बल दिया जाने लगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *