तुगलक वंश की स्थापना

खुसरो खाँ का वध कर गाजी मलिक गयासुद्दीन तुगलकशाह के नाम से दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर बैठा। इस नए तुगलक वंश ने सन् 1320 में गयासुद्दीन के राज्यारोहण से लेकर 1414 ई0 में सैय्यद वंश की स्थापना तक सल्तनत की बागड़ोर सम्भाली। इस वंश में निम्नलिखित King हुए-

  1. गयासुद्दीन तुगलक (1320-1325 ई0)
  2. मुहम्मद बिन तुगलक (1325-1351 ई0)
  3. फीरोजशाह तुगलक (1351-1388 ई0)
  4. फीरोज के उत्तराधिकारी गयासुद्दीन तुगलक द्वितीय, अबूबक्र, नासिरूद्दीन मुहम्मद शाह, अलाउद्दीन सिकन्दरशाह (हुमायूँ), नासिरुद्दीन महमूदशाह (1388 से 1412 ई0)

14 अप्रैल, 1316 ई0 को सत्रह या 18 वर्ष की अल्प आयु में मुबारक खां कुतुबुद्दीन मुबारकशाह के नाम से दिल्ली का सुल्तान बन गया। प्रथानुसार उत्सव मनाये गये और राज्य के प्रमुख व्यक्तियों और अमीरों को पदवियां तथा सम्मान प्रदान किये गये। मलिक काफूर की हत्या और कुतुबुद्दीन मुबारकशाह के सिंहासनारोहण से दरबार के उन अमीरों को राहत मिली जो अलाउद्दीन के घराने के प्रति स्वामीभक्त थे। नये सुल्तान ने कठोर अलाई नियमों को शिथिल करके अमीर वर्ग को अपने पक्ष में कर लिया। उसने All कैदियों को छोड़ दिया और बाजार नियंत्रण संबंधी कठोर दण्डों को हटा दिया। अमीरों की जो भूमियां जब्त की थी या उनके जो गांव हस्तगत कर लिये गए थे वे उन्हें लौटा दिये गये। सैनिकों को छ: माह का वेतन पुरस्कार स्वReseller दिया गया और मलिकों तथा अमीरों के वेतन बढाने का आदेश दिया गया। सुल्तान ने अपनी स्थिति और भी सुदृढ़ करने के लिये पुराने अलाई अमीर वर्ग को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त Reseller। सबसे अधिक आश्चर्यजनक उन्नति गुजरात,

के सामान्य दास हसन की हुई जिसे सुल्तान ने विशेष सम्मान और खुसरो खां की पदवी से सुशोभित Reseller तथा मलिक नायब का लाव-लश्कर और आक्ता प्रदान Reseller। कुछ समय बाद ही शासन के First ही वर्ष में सुल्तान ने उसे वजीर के पद पर पदोन्नत कर दिया। खुसरो खां के प्रति सुल्तान के झुकाव से कुछ प्रमुख अमीर असन्तुष्ट हो गए।

कुतुबुद्दीन मुबारकशाह ने गद्दी पर बैठने के बाद लगभग दो वर्ष तक तो बड़ी तत्परता और लगन के साथ कार्य Reseller; परन्तु शीघ्र ही वह आलस्य, विलासिता, इन्द्रिय लोलुपता व्यभिचार आदि दुर्गुणों का शिकार हो गया, चॅूंकि सुल्तान खुल्लम खुल्ला रात दिन व्यभिचार तथा दुराचार में लगा रहता था, अत: प्रजा के हृदय में भी व्यभिचार तथा दुराचार के भाव उत्पन्न हो गये। इमरद गुलाम, Resellerवान ख्वाजासरा तथा सुन्दर कनीजों (दासियों) का मूल्य पांच सौ, हजार तथा दो हजार टंका हो गया। यद्यपि सुल्तान कुतुबुद्दीन के अलाई आदेशों में केवल मदिरापान की मनाही का आदेश उसी प्रकार चालू रक्खा गया जैसा कि अलाउद्दीन खल्जी के समय था किन्तु उसकी आज्ञाओं तथा उसके आदेशों का भय न होने के कारण प्रत्येक घर मंिदरा की दुकान बन गया था। मुल्तानी अपनी इच्छानुसार कार्य करने लगे। वे सुल्तान अलाउद्दीन की बुराई करते थे और सुल्तान कुतुबुद्दीन को दुआ देते थे। मजदूरी चौगुना बढ़ गई। जो लोग 10-12 टंका पर नौकर थे उनका वेतन 70-80 और 100 टंका तक पहुंच गया। घूस, धोखाधड़ी तथा अपहरण के द्वार खुल गये। सुल्तान के आदेशों के भय का लोगों के हृदय से अन्त हो गया।

सुल्तान कुतुबुदुदीन को अपने राज्यकाल के चार वषोर्ं तथा चार महीनों मे मदिरापान गाना सुनने, भोग-विलास, ऐश व इशरत तथा दान के अतिरिक्त कोई कार्य ही न रह गया था। कोई नहीं कह सकता कि यदि उसके राज्यकाल में मंगोल सेना, आक्रमण कर देती या कोई उसके राज्य पर अधिकार जमाने का प्रयत्न प्रारम्भ कर देता या

किसी ओर से कोई बहुत बड़ा विद्रोह तथा उपद्रव उठ खड़ा होता तो उसकी असावधानी, भोग-विलास तथा लापरवाही से देहली के राज्य की क्या दशा हो जाती, किन्तु उसके राज्यकाल में न तो कोई अकाल पड़ा, न मुगलों के आक्रमण का भय हुआ, न आकाश से कोई ऐसी आपत्ति आई, जिसे दूर करने में लोग असमर्थ होते न किसी ओर से कोई विद्रोह तथा उपद्रव हुआ और न किसी को कोई कष्ट था और न क्लेश किन्तु उसका विनाश उसकी असावधानी तथा भोग-विलास के कारण हो गया।8 अनुभवी लोग जिन्होंने बल्बनी राज्य की दृढ़ता तथा सुल्तान मुइज्जुद्दीन की असावधानी, अलाई राज्य का अनुशासन तथा सुल्तान कुतुबुद्दीन का नियमों का पालन न करना देखा था वे इस बात से Agree थे, कि सुल्तान में अनुशासन स्थापित करने की योग्यता, कठोरता अपनी आज्ञाओं का पालन कराने की शक्ति तथा अहंकार And आतंक का होना आवश्यक है।

उसने बड़ी निरंकुशता प्रारम्भ कर दी। उसने ऐसे कार्य करने प्रारम्भ कर दिये जो किसी King को शोभा नहीं देते। उसकी आंखों की लज्जा समाप्त हो गयी। वह स्त्रियों के वस्त्र तथा आभूषण धारण करके मजमे में आता था। नमाज, रोजा पूर्णतया त्याग दिया था तथा अपने अमीरों और मलिकों को स्त्रियों तथा व्यभिचारी विदूषकों से इतनी बुरी-बुरी गालियां इस प्रकार दिलवाता था कि हजार-सितून में उपस्थित जन उन्हें सुनते थे।

चूंकि उसका पतन निकट था इसलिये उसने खुल्लम खुल्ला शेख निजामुद्दीन को भला-बुरा कहा और अपने अमीरों को आदेश दिया कि कोई भी शेख के दर्शनार्थ गयासपुर न जाये। सुल्तान की हसन पर आसक्ति बढ़ती ही गयी। जिसने भी सुल्तान को हसन की तरफ से सावधान करने का प्रयत्न Reseller उसे ही सुल्तान ने दण्डित Reseller। उसने चंदेरी के मुक्ता मलिक तमर का पद घटा दिया और दरबार से निष्कासित कर दिया तथा चंदेरी की आक्ता उससे लेकर खुसरो को दे दी। उसने कड़े के मुक्ता मलिक तुलबगायगदा के मुंह पर जो कि

माबर अभियान के दौरान खुसरो खां की विद्रोही प्रवृत्ति को बयान कर रहा था के मुंह पर चांटे मारे और उसका पद, आक्ता तथा लावलश्कर जब्त कर लिया। जिन लोगों ने खुसरो खां की दुष्टता के बारे में गवाही दी उन्हें कठोर दण्ड दिये और कैद करके दूर-दूर के स्थानों पर भेज दिया। इस प्रकार All को यह बात ज्ञात हो गयी कि जो भी अपनी राजभक्ति के कारण खुसरो खां के खिलाफ कुछ कहेगा उसे दण्ड का भागी बनना पड़ेगा। दरबारियों तथा शहर के निवासियों ने समझ लिया कि सुल्तान कुतुबुद्दीन का अंतिम समय निकट आ गया है। दरबार के प्रतिष्ठित तथा गणमान्य व्यक्तियों ने विवश होकर खुसरो खां की शरण में जाना प्रारम्भ कर दिया था। लोग खुसरो खां को सुल्तान के विरूद्ध “ाड्यन्त्र करते देखते थे पर क्रोध, अन्याय तथा दण्ड के भय से कुछ न कह सकते थे। सम्राट के शिक्षक काजी खां जो उस समय सदरे जहां थे और कलीददारी (ताली रखने का) का उच्च पद उन्हें प्राप्त था के समझाने का भी सुल्तान पर असर न हुआ। खुसरो खां ने सुल्तान कुतुबुद्दीन को Agree कर और उसकी दानशीलता की प्रशंसा कर गुजरात से अपने बरवार रिश्तेदारों को बुला लिया और अपने सम्बन्धियों से मिलने का वास्ता देकर छोटे द्वार की कुंजी सुल्तान से प्राप्त कर ली। इब्नबतूता का description यहां थोड़ा अलग है।

उसके According Single दिन खुसरो खां ने सम्राट से निवेदन Reseller कि कुछ हिन्दू मुसलमान होना चाहते है। प्रथा के According सम्राट की अभ्यर्थना के लिए उसकी उपस्थिति आवश्यक थी इसलिये सुल्तान ने जब उन पुरूषों को भीतर बुलाने को कहा तो उसने उत्तर दिया कि अपने सजातीयों से लज्जित और भयभीत होने के कारण वे रात को आना चाहते हैं। इस पर सम्राट ने रात को आने की अनुमति दे दी। अब मलिक खुसरो ने अच्छे वीर हिन्दुओं को छाटा और अपने भ्राता खानेखाना को भी उसमें सम्मिलित कर लिया। गर्मी के दिन थे, सम्राट सबसे ऊँची छत पर था। मलिक खुसरो के अतिरिक्त उसके पास कोई न था। खुसरो खां का मामा रन्धौल कुछ बरवारियों के साथ छिपा था वह परदों के

पीछे छिपता हुआ हजार सुतून में पहुंचा और काजी जियाउद्दीन के पास पहुॅंच कर उसे Single पान का बीड़ा दिया। उसी समय जहारिया बरवार ने जो सुल्तान कुतुबुद्दीन की हत्या के लिये नियुक्त था, काजी जियाउद्दीन के निकट पहुंचकर परदे के पीछे से काजी जियाउद्दीन की ओर Single तीर मारा और काजी को उसी स्थान पर मृत्यु की नींद सुला दिया। हजार सुतून बरवारियों से भर गया जिससे बड़ा शोरगुल होने लगा। यह शोरगुल सुल्तान के भी कान में पहुँचा और उसने खुसरो खां से पूछा कि नीचे यह शोरगुल कैसा हो रहा है। खुसरो खान कोठे की दीवार तक आया और नीचे झांक कर सुल्तान से निवेदन Reseller कि ‘खासे के घोड़े छूट गये है और वे हजार सितून के आंगन में दौड़ रहे है, लोग घेर कर उन घोड़ों को पकड़ रहे है। जबकि इब्नबतूता का description इससे अलग है। उसके According खुसरो मलिक ने सुल्तान से यह कहा कि हिन्दुओं को भीतर आने से काजी रोकते है इसी कारण कुछ वाद-विवाद उत्पन्न हो गया है। इस बीच जाहरिया अन्य बरवारों को लेकर हजार सुतून के कोठे पर पहुँच गया, शाही द्वार के दरबानों की, जिनके नाम इब्राहीम तथा इश्हाक थे, तीर मार कर हत्या कर दी। सुल्तान समझ गया कि कोई “षडयंत्र हो गया है। इसलिये वह अन्त:पुर की ओर भागा पर खुसरो खान ने पीछे से उसके केश पकड़ लिये। सुल्तान ने उसे नीचे पटक दिया और उसके ऊपर सवार हो गया परन्तु उसी समय वहां अन्य बरवारी आ गये। जाहरिया बरवार ने सुल्तान का शीश काट डाला और उसका मृतक शरीर हजार सुतून के कोठे से हजार सुतून के आंगन में फेंक दिया। उनमें Single “षडयंत्रकारी सूफी अपने कुछ, ब्रादों साथियों को लेकर आगे बढ़ा ताकि यदि कोई कुतुबुद्दीन की ओर से जोर मारे तो उसकी हत्या कर दी जाय। ब्रादों लोगों ने यह तय करना प्रारम्भ Reseller कि अब किसे सिंहासनारूढ़ Reseller जाय। खुसरो के हितैषियों ने इस अवसर पर किसी शहजादे को सिंहासनारूढ़ करने में बड़ी आपत्ति प्रकट की और कहा कि, ‘‘जब तूने अपने स्वामी की हत्या कर ही दी है तो अब स्वयं सुल्तान बन अन्यथा तुझे कोई जीवित न छोड़ेगा।’’ इस परामर्श में खुसरो के मुस्लिम सहायक भी सम्मिलित थे। कुतुबुद्दीन के भाइयों फरीद खां और अबूबक्र खाँ की हत्या कर दी गयी और तीन छोटे भाईयों अली खाँ, बहादुर खाँ और उस्मान को अन्धा बना दिया गया। अलाई राजभवन में बाहर से भीतर तक बरवारों का अधिकार स्थापित हो गया। अत्यधिक मशाल और डीबट जला दिये गये। दरबार सजा दिया गया। उसी आधी रात में मलिक ऐनलमुल्क मुल्तानी, मलिक बहीदुद्दीन कुरैशी, मलिक फखरूद्दीन जूना, मलिक बहाउद्दीन दबीर, मलिक क़िराबेग के पुत्रों को जिनमें से All प्रतिष्ठित तथा गणमान्य मलिक थे And अन्य प्रसिद्ध And प्रतिष्ठित व्यक्तियों को बुलवाया गया। उन्हें महल के द्वार पर लाया गया और वहां से वे हजार सुतून के कोठे पर पहुंचा दिये गये। भीतर प्रवेश करने पर उन्होंने मलिक खुसरो को सिंहासनारूढ़ देखा ओर उसके हाथ पर भक्ति की शपथ ली। खुसरो मलिक की पदवी सुल्तान नासिरूद्दीन निश्चित हुई। इनमें से कोई व्यक्ति प्रात: काल तक बाहर न जा सका।

Ultra siteोदय होते ही समस्त राजधानी में विज्ञप्ति करा दी गयी और बाहर के All अमीरों के पास बहुमूल्य खिलअत (सिरोपा) तथा आज्ञापत्र भेजे गये। All अमीरों ने ये खिलअते स्वीकार कर ली। केवल दीपालपुर के हाकिम तुगलकशाह ने इनको उठाकर फेंक दिया और आज्ञापत्र पर आसीन होकर उसकी अवज्ञा की। यह सुनकर खुसरो ने अपने भ्राता खानेखाना को उस ओर भेजा परन्तु तुगलकशाह ने उसको Defeat कर भगा दिया।29 खुसरो मलिक ने सुल्तान होकर हिन्दुओं को बड़े-बड़े पदों पर नियुक्त करना प्रारम्भ कर दिया और गोवध के विरूद्ध समस्त देश में आदेश निकाल दिया। अपने सिंहासनारोहण के पांच दिन के भीतर ही खुसरो ने महल में मूर्ति पूजा आरम्भ करवा दी।

इब्नबतूता बताता है कि मुल्तान नगर में तुगलक द्वारा निर्मित मस्जिद में उसने यह फतवा पढ़ा था कि 48 बार तातरियो को रण में Defeat करने के कारण उसे मलिक गाजी की उपाधि दी गई थी।

सम्राट कुतुबुद्दीन ने इसको दीपालपुर के हाकिम के पद पर प्रतिष्ठित कर इसके पुत्र जूना खां को मीर-आखूर के पद पर नियुक्त Reseller। सम्राट खुसरो ने भी इसको इसी पद पर रखा।
नासिरुद्दीन खुसरो के विरूद्ध विद्रोह का विचार करते समय गाजी तुगलक के अधीन केवल तीन सौ विश्वसनीय सैनिक थे। अतएव इसने तत्कालीन सुल्तान के वली किशलू खान को (जो केवल Single पड़ाव की दूरी पर मुल्तान नगर में था) लिखा कि इस समय मेरी सहायता कर अपने स्वामी के रूधिर का बदला चुकाओ परन्तु किशलू खाँ ने यह प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया क्योंकि उसका पुत्र खुसरो खां के पास था।

अब तुगलकशाह ने अपने पुत्र जूना खाँ को लिखा कि किशलू खां के पुत्र को साथ लेकर, जिस प्रकार संभव हो दिल्ली से निकल आओ। मलिक जूना निकल भागने के तरीके पर विचार कर ही रहा था कि दैवयोग से Single अच्छा अवसर उसके हाथ आ गया। खुसरो मलिक ने Single दिन उससे यह कहा कि घोड़े बहुत मोटे हो गये हैं, तुम इनसे परिश्रम लिया करो। आज्ञा होते ही जूना खां प्रतिदिन घोड़े फेरने बाहर जाने लगा, किसी दिन Single घंटे में ही लौट आता, किसी दिन दो घंटे में और किसी दिन तीन-चार घंटों में Single दिन वह जोहर (Single बजे की नमाज) का समय हो जाने पर भी न लौटा। भोजन करने का समय आ गया। अब सुल्तान नें सवारों को खबर लाने की आज्ञा दी। उन्होंने लौट कर कहा कि उसका कुछ भी पता नहीं चलता। ऐसा प्रतीत होता है कि किशलू खां के पुत्र को लेकर अपने पिता के पास भाग गया है।

पुत्र के दीपालपुर पहुंचने पर गाजी मलिक ने खुशियां मनाई और दबीरे खास को बुलाकर Single पत्र मुगलती मुल्तान के King के नाम, दूसरा मुहम्मद शाह सिविस्तान के King के नाम, तीसरा मलिक बहराम ऐबा को, चौथा यकलखी अमीर सामाना को और पांचवा जालौर के मुक्ता अमीर होशंग को सहायता प्राप्ति हेतु लिखवाया।

बहराम ऐबा ने पूरे उत्साह से गाजी मलिक की सहायता का वचन दिया। जबकि मुगलती अमीर अत्यन्त रुष्ट हुआ इस पर गाजी मलिक ने मुल्तान के अन्य अमीरों को गुप्त Reseller से यह संकेत कर दिया कि वे मुगलती अमीर पर आक्रमण कर दें। Single मोची के अलावा उसका साथ किसी ने न दिया और विद्रोहियों के नेता बहराम सिराज ने उसका सिर धड़ से उड़ा दिया। जब मुहम्मदशाह लुर सिविस्तान के पास यह संदेश पहुंचा तो उस समय उसके अमीरों ने विद्रोह Reseller हुआ था। विद्रोही सरदारों ने गाजी मलिक से संधि कर ली और उसकी सहायता का वचन दिया किन्तु प्रस्थान में इतना विलम्ब Reseller कि Fight ही समाप्त हो गया।

गाजी मलिक ने जो पत्र ऐनलमुल्क मुल्तानी को लिखा उसे उसने खुसरो खां को दिखा दिया। गाजी मलिक ने पुन: Single गुप्तचर उसके पास भेजा। ऐनलमुल्क ने उससे कहा कि इस समय वह विवश है और खुसरो खां का सहायक बना हुआ है किन्तु उसे खुसरो से हार्दिक घृणा है और वह Fight आरम्भ होते ही गाजी मलिक के पास आ जायेगा फिर वह उसे चाहे दण्ड दे या माफ कर दे। सामाना के अमीर यखलखी ने पत्र पाकर विरोध करना प्रारम्भ कर दिया, वास्तव में वह हिंदू से परिवर्तित मुस्लिम था और उसने यह पत्र मलिक खुसरो को भेज दिया और गाजी मलिक के विरूद्ध प्रस्थान Reseller परंतु उसकी पराजय हुई और नगरवासियों ने उस पर आक्रमण कर उसकी हत्या कर दी।

अब गाजी तुगलक ने विद्रोह प्रारम्भ कर दिया और किशलू खां की सहायता से सेना Singleत्र करना शुरू कर दिया। सुल्तान ने अपने भ्राता खानेखाना को Fight करने को भेजा परन्तु वह पराजित होकर भाग आया, उसके साथी मारे गये और राजकोष तथा अन्य सामान गाजी तुगलक के हाथ आ गया।

उस समय मलिक गाजी तुगलक ने तीन स्वप्न देखे। Single में किसी बुजुर्ग ने उसे बादशाही की सूचना दी। Second स्वप्न में तीन चांद दिखाई दिये जिनका Means तीन शाही छत्र समझे गये। Third स्वप्न में Single बहुत सुन्दर उद्यान देखा जिसका Means यह था कि यह राजत्व का बाग है जो
उसे प्राप्त होने वाला है। अब तुगलक दिल्ली की ओर अग्रसर हुआ और खुसरो ने भी उससे Fight करने की इच्छा से नगर के बाहर निकल आतियाबाद में अपना शिविर डाला। सम्राट ने इस अवसर पर हृदय खोलकर राजकोष लुटाया, Resellerयों की थैलियों पर थैलियां प्रदान की। खुसरो खां की सेना भी ऐसी जी तोड़कर लड़ी कि तुगलक की सेना के पांव न जमे और वह अपने डेरे इत्यादि लुटते हुए छोड़कर ही भाग खड़ी हुई।

तुगलक ने अपने वीर सिपाहियों को फिर Singleत्र कर कहा कि भागने के लिए अब स्थान नहीं है। खुसरो की सेना तो लूट में लगी हुई थी और उसके पास इस समय थोड़े से मनुष्य ही रह गए थे। तुगलक अपने साथियो को ले उन पर फिर जा टूटा।

भारतवर्ष में सम्राट का स्थान छत्र से पहचाना जाता है। मिस्र देश में सम्राट केवल ईद के दिवस पर ही छत्र धारण करता है परंतु भरतवर्ष में और चीन में देश, विदेश, यात्रा आदि All स्थानों में सम्राट के सिर पर छत्र रहता है।

गाजी तुगलक के इस प्रकार से सुल्तान पर टूट पड़ने पर भीषण यु़द्ध हुआ। जब सुल्तान की समस्त सेना भाग गई, कोई साथी न रहा, तो उसने घोड़े से उतर अपने वस्त्र तथा अस्त्रादिक फेंक दिए और भारतवर्ष के साधुओ की भांति सिर के केश पीछे की ओर लटका लिए और Single उपवन में जा छिपा।

इधर गाजी तुगलक के चारों ओर लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई। नगर में आने पर कोतवाल ने नगर की कुंजियां उसको अर्पित कर दी। अब राजप्रासाद में घुसकर उसने अपना डेरा भी Single ओर को लगा दिया और किशलू खां से कहा कि तू सुल्तान हो जा। किशलू खां ने इस पर कहा कि तू
ही सुल्तान बन। जब वाद-विवाद में ही किशलू खां ने कहा कि यदि तू सुल्तान होना नहीं चाहता तो हम तेरे पुत्र को ही राजसिंहासन पर बिठाए देते हैं, तो यह बात गाजी तुगलक ने अस्वीकार की और स्वयं सुल्तान गयासुद्दीन की पदवी लेकर सिंहासन पर बैठ गया। सिंहासन पर बैठने के बाद अमीर और जनसाधारण सबने उसकी आधीनता स्वीकार की।

सिंहासनारोहण से पूर्व तुगलक ने तख्त पर बैठने में आना कानी की थी और उपस्थित अमीरों से कहा था कि- खुसरो खां के कृत्यों को सुनकर मैने तीन प्रतिज्ञायें की थीं- (1) मैं इस्लाम के लिये जिहाद करूँगा (2) इस राज्य को इस तुच्छ हिन्दू के पुत्र से मुक्त करा दँूगा और उन शहजादों को जो सिंहासन के योग्य होंगे सिंहासनारूढ़ कराऊँगा (3) जिन काफिरों ने शाही वंश का विनाश Reseller है उन्हें दण्ड दॅूंगा। इसलिये यदि मैने अब राज्य स्वीकार कर लिया तो लोग कहेंगे कि मैने राज्य ही के लिये Fight Reseller था।

खुसरो खां तीन दिन तक उपवन में ही छिपा रहा। तृतीय दिवस जब वह भूख से व्याकुल हो बाहर निकला तो Single बागबान ने उसे देख लिया। उसने बागबान से भोजन मांगा परंतु उसके पास भोजन की कोई वस्तु न थी। इस पर खुसरो ने अपनी अंगूठी उतारी और कहा कि इसको गिरवी रखकर बाजार से भोजन ले आ। जब बागबान बाजार में गया और अंगूठी दिखाई तो लोगों ने संदेह कर उससे पूछा कि यह अंगूठी तेरे पास कहां से आई। वे उसको कोतवाल के पास ले गए। कोतवाल उसको गाजी तुगलक के पास ले गया। गाजी तुगलक ने उसके साथ अपने पुत्र को खुसरो खां को पकड़ने के लिए भेज दिया। खुसरो खां इस प्रकार पकड़ लिया गया। जब जूना खां उसको टट्टू पर बैठाकर सुल्तान के सम्मुख ले गया तो
उसने सुल्तान से कहा कि ‘‘मैं भूखा हूँ’’। इस पर सुल्तान ने शर्बत और भोजन मंगाया।
जब गाजी तुगलक उसको भोजन, शर्बत, तथा पान इत्यादि सब कुछ दे चुका तो उसने सुल्तान से कहा कि मेरी इस प्रकार से अब और भर्तस्ना न कर, प्रत्युत मेरे साथ ऐसा बर्ताव कर जैसा सुल्तानों के साथ Reseller जाता है। इस पर तुगलक ने कहा कि आपकी आज्ञा सिर माथे पर। इतना कह उसने आज्ञा दी कि जिस स्थान पर इसने कुतुबुद्दीन का वध Reseller था उसी स्थान पर ले जाकर इसका सिर उड़ा दो और सिर तथा देह को भी उसी प्रकार छत से नीचे फेंको जिस प्रकार इसने कुतुबुद्दीन का सिर तथा देह फेंकी थी। इसके बाद इसके शव को स्नान करा कफन दे उसी समाधि स्थान में गाड़ने की आज्ञा प्रदान कर दी।

Historyनीय है कि तुगलकनामा बतलाती है कि जब खुसरो खां को कैद कर गाजी तुगलक के सम्मुख लाया गया तो गाजी तुगलक ने उससे पॅूंछा कि “तूने अपने स्वामी की हत्या क्यों की, उसने तुझे अपने हृदय में स्थान दिया और तूने उसका रक्त बहा दिया।” खुसरो खां ने उत्तर दिया कि- “मेरी दशा सब लोगों को ज्ञात है, यदि मुझसे अनुचित व्यवहार न Reseller जाता तो जो कुछ मैने Reseller वह न करता।”

विद्धानों ने तुगलक वंश की उत्पत्ति के विषय में विभिन्न मत प्रकट किये हैं। इनकी उत्पत्ति के विषय में तीन मत मिलते है-First तुगलक मंगोल थे, द्वितीय तुर्क थे और तृतीय वे मिश्रित जाति के थे। तुगलक मंगोल थे, इस मत के प्रवर्तक मिर्जा हैदर हैं। इन्होने अपने ग्रंथ तारीख-ए-रशीदी’ में तुगलकों को चगताई मंगोल बताया है। उन्होंने यह स्पष्ट Reseller कि मंगोल दो प्रमुख श्रेणियों में विभक्त थे- First मंगोल, द्वितीय चगताई मंगोल। दोनों में परस्पर वैमनष्य था और संघर्ष चलता रहता था। दोनों ही Single Second को हेय समझते थे, इसलिए घृणा भी करते थे। इसी भावना के कारण मंगोल श्रेणी के लोग चगताई मंगोलों को ‘करावना’ कहते थे ओर चगताई मंगोल अन्य मंगोलो को ‘जाटव’ कहते थे। ‘करावना’ और ‘करौना’ में समता है। ‘करावना’ Word ही परिवर्तित होकर करौना बन गया। तुगलक वंश जिस कबीले से था, उसका नाम करौना था। इसलिए तुगलक ‘करावना’, ‘करौना’ व चगताई मंगोल जाति के है। मार्कोपोलो भी तुगलकों को करौना जाति का मानता है।

परन्तु प्रश्न यह उठता है कि यदि तुगलक मंगोल थे तो गयासुद्दीन अपने मंगोल विजेता होने का गर्व क्यों करता है इन्हीं विजयों के परिणाम स्वReseller उसे ‘अल-मलिक-गाजी’ की उपाधि से विभूषित Reseller गया था52 यदि वह स्वयं मंगोल होता तो, मंगोलों के विरूद्ध नही अपितु उनके पक्ष में Fight करता। उस युग में Fight में अनेक मंगोल स्त्रियाँ, बच्चे और पुरूष बन्दी बना लिये जाते थे और संभव है कि इनमें से कुछ तुगलकों के परिवार करौना कबीले में सम्मिलित हो गये हों और करौना व मंगोलों में रक्त का समिश्रण हो गया हो।

अफ्रीकी यात्री इब्नबतूता का मत है कि तुगलक करौना तुर्क जाति के थे जो कि तुर्किस्तान और सिन्धु प्रान्त के मध्यस्थ पर्वतों में निवास करती थी। शेख रूकनुद्दीन मुल्तानी ने भी, जो सुहारावर्दी संत थे तुगलकों को तुर्क माना है। यह शेख तुगलक सुल्तान के अत्यधिक निकट रहते थे अत: उनके सानिध्य से उसका कथन अधिक प्रामाणिक प्रतीत होता है। फरिश्ता का भी कथन है कि गयासुद्दीन तुगलक का पिता तुर्क था।

अधिकाधिक विद्वान तुगलकों को मिश्रित जाति का मानते है। डॉ0 ईश्वरी प्रसाद-’’ए हिस्ट्री ऑफ करौना टर्कस’’ में इस मत की पुष्टि करते है। उनके According इस समय के निवासी, विदेशी तुर्क सैनिक और अमीर Indian Customer स्त्रियों से विवाह करते थे गयासुद्दीन के भाई रज्जब ने भी जो सुल्तान फ़िरोज़शाह का पिता था, पंजाब की Single भाटी राजपूत स्त्री से विवाह Reseller था। इस समय अनेक विदेशी तुर्क जाति के सैनिक जो भारत में Fight करने, धन प्राप्त करने और इस्लाम का प्रचार करने के लिए आये थे, कालान्तर में सीमान्त क्षेत्र और पंजाब में स्थायी Reseller से बस गये और दिल्ली सुल्तान की सेनाओं में पदाधिकारी बन गये। इनमें से कुछ तुर्क ‘‘करौना’’ कबीले के थे। इन्होंने Indian Customer जाटों And राजपूतों से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर लिए थे। इससे करौना तुर्क कबीले की सन्तानें मिश्रित जाति की हो गई। इनमें तुर्की रक्त की प्रधानता थी, संभव है कालान्तर में इन तुर्को और मंगोलों में परस्पर वैवाहिक सम्बन्ध हो गये हो और मंगोल रक्त का भी उनमें समिश्रण हो गया हो।

एम्जिक का मत है कि ‘करौना’ संस्कृत Word ‘कर्ण’ से सम्बन्धित है जिसका Means मिश्रित जाति है और उस व्यक्ति के लिए प्रयुक्त होता है। जिसका पिता क्षत्रिय और माता शूद्र होती है। फरिश्ता के According गयासुद्दीन का पिता मलिक तुगलक बल्बन का Single तुर्क दास था और उसकी माता स्थानीय जाट परिवार की स्त्री थी। फिर भी सुल्तान गयासुद्दीन का करौना होना अत्यधिक संदिग्ध है। जैसा कि अमीर खुसरो के ‘तुगलकनामा’ नामक, समकालीन आधार ग्रन्थ में उल्लिखित है, राज्यारोहण के पूर्व अपने वक्तव्य में गयासुद्दीन स्पष्ट स्वीकार करता है कि वह आरम्भ में Single साधारण व्यक्ति था यदि सुल्तान ने ऐसा कुछ न कहा होता तो कवि यह तथ्य उसके भाषण का आधार बनाने का साहस नही कर सकता था। इन विभिन्न मतों

को ध्यान में रखते हुए यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि, भारत व मध्य एशिया में ‘कारौना’ Word मिश्रित जाति के लिए Meansात तुर्क पिताओं ओर अतुर्कमाताओं के वंशजों के लिए प्रयुक्त होता था।

तुगलकनामा के Single पद से स्पष्ट है कि तुगलक सुल्तान का व्यक्तिगत नाम था, जातीय नहीं। मुद्र्राशास्त्रीय तथा शिलालेखीय प्रमाण भी अमीर खुसरो के कथन की पुष्टि करते है। सुल्तान मुहम्मद स्वयं को तुगलकशाह का पुत्र कहा करता था परन्तु फ़िरोज़शाह तथा उसके उत्तराधिकारियों ने कभी तुगलक उपनाम का प्रयोग नहीं Reseller। फिर भी यह नितान्त गलत होते हुए भी अधिक सुविधाजनक है कि सम्पूर्ण वंश को तुगलक वंश का नाम दिया जाय।
गयासुद्दीन की जातीय उत्पत्ति की ही तरह उसका भारत आगमन भी विवादास्पद है।

तुगलक अत्यंत निर्धन था और इसने सिंधु प्रान्त में आकर किसी व्यापारी के यहां First भेड़ों के चारे की रक्षा करने की वृत्ति स्वीकार की थी यह बात सुल्तान अलाउद्दीन के समय की है। उन दिनों सुल्तान का भ्राता उलूग खां (उलग खां) सिंधु प्राप्त का हाकिम (गवर्नर) था। व्यापारी के यहां से तुगलक नौकरी छोड़ इस गवर्नर का भृत्य हो गया और पदाति सेना में जाकर सिपाहियों में नाम लिखा लिया। जब इसकी कुलीनता की सूचना उलूग खां को मिली तो उसने उसकी पदवृद्धि कर इसको घुड़सवार बना दिया। इसके पश्चात यह अफसर बन गया। फिर मीर-आखूर (अस्तबल का दारोगा) हो गया और अंत में अजीमउश्शान (महान ऐश्वर्यशाली) अमीरों में इसकी गणना होने लगी।

सन्दर्भ –

  1. किशोरी सरन लाल, खल्ज़ी वंश का History, पृ0 285।
  2. एस.बी.पी. निगम: नोबिलिटी अंडर द सुल्तान ऑफ डेलही, ई0 1206-1398, पृ0 67।
  3. रिजवी, खल्ज़ीकालीन भारत बरनी, तारीखे फ़िरोज़शाही, पृ0 125
  4. रिजवी, खल्ज़ीकालीन भारत, बरनी, तारीखे फ़िरोज़शाही, पृ0 125
  5. मदन गोपाल, इब्नबतूता की भारत यात्रा, पृ0 58,
  6. रिजवी खल्ज़ीकालीन भारत, बरनी, तारीखे फ़िरोज़शाही, पृ0 136
  7. रिजवी, खल्ज़ीकालीन भारत, बरनी, तारीखे फ़िरोज़शाही, पृ0 139
  8. रिजवी, खल्ज़ीकालीन भारत, बरनी, तारीखे फ़िरोज़शाही, पृ0 139, अमीर खुसरो, तुगलकनामा पृ0 185
  9. रिजवी, खल्ज़ीकालीन भारत, अमीर खुसरो; तुगलकनामा, पृ0 185
  10. रिजवी, खल्ज़ीकालीन भारत, बरनी, तारीखे फिरोज़शाही पृ0 140
  11. मदनगोपाल, इब्नबतूता की भारत यात्रा, पृ. 60

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