जैन धर्म की उत्पत्ति And सिद्धान्त

वैदिक काल के अन्तिम चरण में हमें जटिल और महंगे कर्मकाण्ड, पशु-बलि, ब्राम्हणों की सर्वोच्चता और वर्ण व्यवस्था द्वारा समाज में, पैदा किये गये भेद-भाव के प्रति उग्र प्रतिक्रिया दिखार्इ पड़ती है । धार्मिक सुधार का यह बिलकुल सही अवसर था । र्इसा पूर्व छठी शताब्दी के दौरान वैदिक धर्म की औपचारिक और कर्मकाण्ड की व्यवस्थाओं के विरूद्ध प्रतिक्रिया-स्वReseller अनेक आंदोलन शुरू हो गये थे । बौद्ध धर्म और जैन धर्म ऐसे ही दो आंदोलन थे । इन दोनो ने ही जनता को प्रभावित Reseller, क्योंकि इन्होने महगे कर्मकाण्ड को रद्द Reseller, All के साथ समान व्यवहार Reseller और सादगी तथा भार्इचारे का उपदेश दिया । ये इसलिए और भी आकर्षक हो गये क्योंकि इन्होंने Humanीय दुखों की व्याख्या की और इनसे छुटकारा पाने के रास्ते भी सुझाये । इनके अहिंसा के उपदेश ने भी बहुतेरे लोगों को प्रभावित Reseller । देश-विदेश में इन धर्मो के प्रचार से भारत और अन्य देशों के बीच करीबी सांस्कृतिक सम्बन्ध स्थापित हो गए ।

जैन धर्म और बौद्ध धर्म के बारे में हमें सूचना देने वाले स्त्रोत है- जैन धर्म और बौद्ध धर्म ग्रंथ अनेक भग्नावशेष तथा स्मारक, जो हमें देश-विदेशों में अनेक स्थलों पर मिलते है । जैन साहित्य की मुख्य शाखाएं है – अंग, उपांग, प्रकीर्ण, छेदसूत्र, मलसूत्र और विभिन्न अन्य ग्रंथ । राजगीर, मथुरा, श्रवणबेलगोल, माउंट आबू, उड़ीसा में हाथी गुफा और उदयगिरी में सिंह गुफा के जैन मन्दिर जैन वास्तुकला के प्रसिद्ध उदाहरण है । बौद्ध धर्म के सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रंथ है- त्रिपिटक (तीन टोकरियां), विनय पिटक, सूत पिटक और अभिधम्भ पिटक तथा जातक । जातक बुद्ध के पूर्नजन्मों को आधार बनाकर लिखी गर्इ लोककथाएं है । सांची, भरूत और अमरावती तथा विदेशों में मिले भगनावशेष बौद्ध कला और वास्तुकला की सूचना देने वाले महत्वपूर्ण स्त्रोत है ।

चीनी यात्रियों फाहियान (5वीं शताब्दी र्इ.) और ह्वेनसांग (7वीं शताब्दी र्इ.) के description भी उनके समय की धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक स्थितियों पर प्रकाश डालते हैं ।

उद्भव –

ऋग्वैदिक काल में धर्म का स्वReseller अत्यंत सरल हो गया था । परन्तु उत्तर वैदिक काल के आते आते कर्मकाण्ड का समावेश होता गया । इससे आम जनता को धार्मिक क्रिया कलाप करने में कठिनार्इयां होने लगी । और इसी समय ब्राम्हण के विरूद्ध नये धर्म का अभ्युदय हुआ जो जैन And बौद्ध धर्म के Reseller में हुआ इसके उत्तपत्ति के कर्इ कारण थे जिनमें प्रमुख था-

  1. वैदिक धर्म में जटिलता के कारण लोग ऐसे धर्म की तलाश में थे जो सहज और सरल हो ।
  2. इस समय अनेक देवी देवताओं का जन्म हो चुका था जिनमें लोगों को पूजा पाठ में खर्च होने लगा, दान आदि का अभ्युदय हो गया था इस कारण लोगों ने नये धर्म की तलाश प्रारम्भ की । 
  3. इस समय ब्राम्हण धर्म सर्वश्रेष्ठ था । First जैसे उनमें त्याग विद्धता नहीं था । इस समय के पुरोहित पूजा अर्चना के नाम से लूट करने लगा । इसके प्रतिक्रिया स्वReseller बौद्धिक वर्ग ब्राम्हणों व पुरोहितों की सत्ता के प्रति अविश्वास प्रकट करने लगा ।
  4. समाज चार वर्ग में बंटा था जिसके कारण जातिगत व्यवस्था जटिल हो गयी थी, ऊंच-नीच की भावना प्रबल हो गयी इसी के प्रतिक्रिया स्वReseller जैन और बौद्ध धर्म का अभ्युदय हुआ। बौद्ध धर्म और जैन धर्म ऐसी दो विचार धाराएं थी, जो वैदिक धर्म की औपचारिक और कर्मकाण्डी परम्पराओं के विरूद्ध प्रतिक्रिया स्वReseller उठी । 

लगभग 600 र्इ.पू. के बाद खेती में लोहे के औजारों के इस्तेमाल ने मध्य गंगा के इलाके में Single नर्इ कृषि Meansव्यवस्था के विकास में योग दिया । इसने अहिंसा के सिद्धान्तों द्वारा मवेशियों की रक्षा की Need पैदा की ।

जैन धर्म

वर्द्धमान महावीर –

जैन धर्म के महान् उपदेशक, वर्द्धमान महावीर का जन्म 540 र्इ.पू. में उत्तरी विहार में वैशाली के निकट Single गांव में हुआ था । उनके पिता वैशाली में कुडंग्राम के मुखिया थे और माता लिच्छवि राजकुमारी थी । ये मगध के राज-परिवार से भी सम्बन्धित थे । आम विश्वास यह है कि वर्द्धमान महावीर जैन धर्म के संस्थापक थे, किन्तु उन्होंने वस्तुत: इसकी पुनरूद्वार और पुनव्र्यवस्था की है । जैन धर्म का उद्भव उनसे बहुत First हो गया था और जैन परंपरा के According उनसे First 23 तीर्थंकर या पवित्र व्यक्ति हुए थे । महावीर से 250 वर्ष First ‘‘पाश्र्व’’ या पाश्र्वनाथ हुए थे, जो उनके Singleदम पूर्ववर्ती थे और जिन्होने जैन धर्म के मूल सिद्धानतों-अंहिसा, र्इमानदारी और सम्पत्ति न रखने का उपदेश दिया था ।

महावीर ने 30 वर्षो तक गृहस्थ का जीवन बिताया, किन्तु बाद में वे घर छोड़ सत्य की खोज में सन्यासी हो गये । कहा जाता है कि वे पूर्ण संयम के साथ सन्यासी के Reseller में भिक्षा मांगते, ध्यान और वाद-विवाद करते-करते वर्षो भटकते रहे । यहां तक कि उन्होंने अपने वस्त्र भी नहीं बदले और कैवल्य (पूर्ण ज्ञान) की प्राप्ति कर उन्हें पूर्णत: त्याग दिया। कैवल्य ने उन्हें दुख और सुख दोनों पर विजय प्राप्त करन े में मदद की । उन्हें जिन (विजते ा) और उनके अनुयायियों को जैन के Reseller में जाना गया । शीघ्र ही महावीर को बहुत अधिक सम्मान प्राप्त हो गया और उन्होंने गंगा के साम्राज्यों में विभिन्न Kingओं के संरक्षण में 30 वर्षो तक शिक्षा दी । वे अपने मिशन को कोसल, मगध, मिथिला, चंपा तथा कुछ अन्य स्थानों पर ले गए । 72 वर्ष की आयु में बिहार में राजगीर के निकट पावापुरी स्थान पर उनकी मृत्यु हो गयी ।

जैन धर्म के सिद्धान्त- 

महावीर स्वामी ने जिन सिद्धान्तों का प्रचार-प्रसार Reseller वे जैन धर्म के सिद्धान्त कहलाये। जैन धर्म के According प्रत्येक वस्तु में आत्मा होती है । न केवल पशु पक्षियों में, बल्कि पौधों, धातुओं, खनिजों, पत्थरों और जल की भी आत्मा होती है । उनकी मान्यता है कि पत्थर तक को कष्ट होता है । जैन धर्म अच्छे व्यवहार और नैतिकता पर बल देता है । यह व्यवहार के पांच नियम नियम करता है जिसे पंच्च महाव्रज कहते है ।

  1. अहिंसा
  2. सत्य वचन
  3. अस्तेय
  4. अपरिग्रह
  5. ब्रम्हचर्य

जैन कर्म और पुर्नजन्म में विश्वास रखते हैं । जैन धर्म के According जीवन का उच्च्तम लक्ष्य मोक्ष या जीवन-मरण के बंधन से छुटकारा है और यह मोक्ष त्रिरत्नों यानी उचित विश्वास, उचित ज्ञान और उचित व्यवहार के द्वारा Reseller जा सकता है । महावीर ने अपने अनुयायियों को संयमी जीवन व्यतीत करने को कहा ।

जैन धर्म के त्रिरत्न-

i. सम्यक ज्ञान ii. सम्यक दर्शन iii. सम्यक चरित्र

जैन धर्म दो भागों में बंटा था –

  1. श्वेताम्बर
  2. दिगम्बर

जैन धर्म में 24 तीर्थकंर हुये First ऋषभदेव महाराज थे, 23वें तीर्थकर पाश्र्वनाथ की शिक्षाओं से महावीर स्वामी ने ब्रम्हचर्य व्रत को तोड दिया । महावीर स्वामी की मान्यता है कि इन व्रत से मुनि भ्रम मुक्त हो जाता है जैन धर्म ने वाह्य आडंम्बर को छोडकर नग्नता पर जोर दिया। इसी के कारण जैन धर्म दो वर्गो में बंट गया । श्वेत वस्त्र धारण करने वाले श्वेताम्बर कहलायें और नग्न रहने वाले दिगम्बर कहलायें ।

जैन धर्म का प्रसार-

महावीर ने अपने अनुयायियों की धार्मिक विधि को व्यवस्थित Reseller । जैन धर्म की शिक्षाओं के प्रसार के लिये दक्षिणी और पूर्वी भारत में भेजे गये । बाद की जैन परम्परा के According, चन्द्रगुप्त मौर्य ने कर्नाटक के बीच धर्म के प्रसार में मदद की । उन्होंने अपनी गद्दी त्याग दी और अपने जीवन के अन्तिम पांच वर्ष सन्यासी के Reseller में कर्नाटक में बिताये । लेकिन यह परम्परा किसी अन्य स्त्रोत द्वारा प्रमाणित नहीं है ।

दक्षिण भारत में जैन धर्म के प्रसार का अन्य कारण महावीर की मृत्यु के 200 वर्षो बाद मगध में फैला भयंकर आकाल फैलाया । यह आकाल 12 वर्षो तक रहा और इसने अनेक जैनियों को दक्षिण की ओर जाने पर मजबूर Reseller । बासदी नामक मठ सम्बन्घी अनेक संस्थाएॅं कर्नाटक में फैल गर्इ और अप्रवासी सैनिकों ने जैन धर्म के प्रसार में मदद की । जब अकाल खत्म हो गया, तो अनेक जैनी लौट आये, जहां स्थानीय जैनियों से उनके कुछ मतभेद हो गये । मतभेदों को दूर करने के लिए पाटलिपुत्र में Single संयुक्त गोष्ठी आयोजित की ।

जैन धर्म कलिंग में फैला और फिर तमिलानाडु पहुंचा । धीरे-धीरे यह राजस्थान, मालवा और गुजरात में भी फैला । यह व्यापारी समुदाय में लोकप्रिय हो गया । अहिंसा पर बहुत अधिक बल होने से किसान जैन बनने से हतोत्साहित हुए, क्योंकि खेती-बाड़ी में कुछ कीटों को मारना आवश्यक होता है । जैन धर्म कर्म के परिणामों में विश्वास रखता है । यह सद्व्यवहार और नैतिकता पर बल देता है तथा अहिंसा, सच्चार्इ और संयम का उपदेश देता है ।

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