कान या कर्ण की संCreation And कार्य

कान या कर्ण शरीर का Single आवश्यक अंग है, जिसका कार्य सुनना (Hearing) And शरीर का सन्तुलन (Equilibrium) बनाये रखना है तथा इसी से ध्वनि (Sound) की संज्ञा का ज्ञान होता है। कान की Creation अत्यन्त जटिल होती है, अत: अध्ययन की दृष्टि से इसे  तीन प्रमुख भागों में विभाजित Reseller जाता है-

  1. बाह्य कर्ण (External ear) 
  2. मध्य कर्ण (Middle ear) 
  3. अंत: कर्ण (Internal ear)

1) बाह्य कर्ण या कान (External Ear)-

बाह्य कर्ण के बाहरी कान या कर्णपाली (Auricle or pinna) तथा बाह्य कर्ण कुहर (External auditory meatus), दो भाग होते हैं। कर्णपाली (Auricle or pinna) कान का सिर के पाश्र्व से बाहर को निकला रहने वाला भाग होता है, जो लचीले फाइब्रोकार्टिलेज से निर्मित् तथा त्वचा से ढँका रहता है। यह सिर के दोनों ओर स्थित रहता है। कर्णपाली का आकार टेढ़ा-मेढ़ा और अनियमित होता है, इसका बाहरी किनारा हेलिक्स (Anthelix) कहलाता है। हेलिक्स से अन्दर की ओर के अर्द्धवृत्ताकार उभार (Semicircular ridge) को एन्टहेलिक्स (Anthelix) कहा जाता है, ऊपर के भाग में स्थित उथले गर्त को ट्रइएन्गूलर फोसा (Triangular fossa) तथा बाह्य कर्ण कुहर से सटे हुए गहरे भाग को कोन्चा (Concha) dहते हैं And कुहर के प्रवेश स्थल के सामने स्थित छोटे से उत्सेघ (Projection) को VWªxl (Tragus) कहते हैं। निचला लटका हुआ भाग (Ear lobule) कोमल होता है और वसा-संयोजक-ऊतक (Adipose connective tissue) से निर्मित होता है तथा इसमें रक्त वाहिनियों की आपूर्ति बहुत अधिक रहती हैं कर्णपाली कान की रक्षा करती है तथा ध्वनि से उत्पन्न तरंगों को Singleत्रित करके आिगे कान के अन्दर भेजने में सहायता करती है।

बाह्य कर्ण कुहर (External auditory meatus)- बाहर कर्णपाली से भीतर टिम्पेनिक मेम्बे्रन या र्इयर ड्रम (कान का पर्दा) तक जाने वाल अंगे्रजी के ‘S’ अक्षर के समान घुमावदार, लगभग 2.5 सेमी. (1’) लम्बी-सँकरी नली होती है। टिम्पोनिक मेम्ब्रेन द्वारा यह मध्यकर्ण से अलग रहती है। इसका बाहरी Single तिहार्इ भाग कार्टिलेज का बना होता है तथा शेष भीतरी दो तिहार्इ भाग Single नली के Reseller में टेम्पोरल अस्थि में चला जाता है, जो अस्थि निर्मित होता है। समस्त बाह्य कर्णकुहर रोमिल त्वचा से अस्तरित होता है, जो कर्णपाली को आच्छादित करने वाली त्वचा के Sevenत्य में ही रहता है। कार्टिलेजिन भाग की त्वचा में बहुत सी सीबेसियस And सेर्यूमिनस ग्रन्थियाँ होती हैं जो क्रमश: सीबम (तैलीय स्राव) And सेर्यूमेन (कान का मैल या र्इयर वैक्स) स्त्रावित करती हैं। र्इयर वैक्स (Ear wax) से, बालों (रोम) से तथा कुहर के घुमावदार होने से बाहरी वस्तुएँ जैसे धूलकण, कीट-पंतगें आदि कान के भीतर नहीं जा पाते हैं।

कर्णपटह या कान का पर्दा या टिम्पेनिक मेम्बे्रन (Tympanic membrane)-
इसे र्इयर ड्रम (Ear drum) भी कहा जाता है। यह बाह्य कर्ण And मध्य कर्ण के बीच विभाजन (Partition) करने वाली चौरस कोन आकार की Single पतली फाइबर्स सीट होती है जो बाहर की ओर त्वचा के साथ तथा अन्दर की ओर मध्य कर्ण को आस्तरित करने वाल म्यूकस मेम्ब्रेन के Sevenत्य (Continuation) में रहती हैं। कर्णपटह मध्य कर्ण की ओर दबा सा रहता है। यह बिन्दु अम्बो (Umbo) कहलाता है। इसी स्थान पर मध्य कर्ण स्थित मैलीयस (Malleus) अस्थि कार्णपटह के भीतर की ओर से सटी रहती हैं। कर्णपटह के अधिकांश किनारे (Margin) टिम्पेनिक ग्रूव में जुटे (Embedded) रहते हैं। यह गू्रव बाह्य कर्ण कुहर के अन्दरूनी सिरे (Inner end) की सतह पर स्थित होता है। बाहरी कान तथा बाह्य कर्णकुहर दोनों ही ध्वनि तरंगों को Singleत्रित करके िभीतर भेजते हैं। जब ध्वनि तरंगें कर्णपटह से टकराती हैं तो उसमें प्रकम्पन (Vibration) उत्पन्न होता है, जिसे वह मध्यकर्ण की अस्थिकाओं (Ossicles) द्वारा अन्त:कर्ण में भेजता है।

2) मध्य कर्ण (Middle ear)-

मध्यकर्ण, कर्णपटह (टिम्पोनिक मेम्ब्रेन) And अन्त:कर्ण के बीच स्थित Single छोटा कक्ष (Chamber) है। इसमें कर्णपटही गुहा (Tympanic cavity) And श्रवणीय अस्थिकाओं (Auditory ossicles) का समावेश होता है।

कर्णपटही गुहा (Tympanic cavity)-टेम्पोरल अस्थि के अश्माभ भाग (Petrous portion) में स्थित सँकरा, असमाकृति का वायु पूरित (Air filled) Single अवकाश या स्थान है। इसमें अग्र, पश्च, मध्यवर्ती And पाश्र्वीय 4 भित्तियाँ तथा छत और फर्श होता है, जो All म्यूकस मेम्बेन से आस्तारित रहते हैं। टेम्पोरल अस्थि की पतली प्लेटें छत (Roof) And फर्श (Floor) बनाती हैं, जो टिम्पेनिक गुहा को ऊपर से मिडिल क्रेनियल फोसा से तथा नीचे से ग्रीवा की वाहिकाओं (Vessels) से पृथक करती हैं। पश्चभित्ति (Posterior wall) में Single द्वारा (Aditus) होता है जो ‘कर्णमूल वायु कोशिकाओं’ (Mastoid air cells) में खुलता है, इसमे ंअस्थि का Single छोटा-सा कोन आकार का पिण्ड (Pyramid) भी होता है, जो स्टैपीडियस पेशी (Stapedius muscle) से घिरा रहता है ंइस पेशी का टेन्डन, द्वार (छिद्र) से गुजरकर पिरामिड (Pyramid) के शिखर पर स्टैपीज (Stapes) से जुड़ता है। पाश्र्वीय भित्ति (Lateral wall) टिम्पेनिक मेम्बे्रन से बनती है। मध्यवर्ती भित्ति (Medial wall) टेम्पोरल अस्थि की Single पतली परत होती है। जिसमें दूसरी ओर अंत:कर्ण (Internal ear) होता है। इसमें दो छिद्र (Openings) होते हैं, जो मेम्ब्रेन से ढँके रहते हैं। ऊपर वाला छिद्र अण्डकार होता है, जो अन्त:कर्ण के प्रघाण (Vestibule) में खुलता है तथा इसे फेनेस्ट्रा ओवेलिस (Fenestra ovalis) कहते हैं। दूसरा छिद्र गोलाकार होता है जिसे फेनेस्ट्रा रोटनडम (Fenestra rotundum) कहते हैं। यह गोलाकार छिद्र मध्य कर्ण की म्यूकस मेम्ब्रेन से बन्द रहता है तथा इसका सम्बन्ध अन्त:कर्ण की कॉक्लिया से रहता है। अग्रभित्ति (Anterior wall) टेम्पोरल अस्थि से बनी होती है। इसमे ंकर्णपटह (Tympanic membrane) के बिल्कुल समीप ही Single छिद्र होता है जो यूस्टेचियन नली (Eustachian tube) का मुखद्वार होता है।

यूस्टेचियन नली या श्रवणीय नली (Auditory tube) अथवा फेरिन्ज्ाोटिम्पेनिक नली (Pharyngotympanic tube)-मध्यकर्ण की बुहा And नासाग्रसनी (Nasopharynx) के बीच सम्बन्ध बनाती है। मध्यकर्ण को आस्तारित करने वाली म्यूकस मेम्ब्रेन Sevenत्य में इस नली को भी आस्तारित करती है। मध्यकर्ण का सम्बन्ध कर्णमूल वायु कोशिकाओं (Mostoid air cells) से भी रहता है। गले के संक्रमण (Throat infections) प्राय: इसी नली के द्वारा मध्य कान में पहुँचते हैं तथा यहाँ से कर्णमूल कोशिकाओं में पहुँचकर विद्रधियाँ (Abscesses) उत्पन्न कर सकते हैं।

श्रवणीय अस्थिकाएँ (Auditory ossicles)-छोटी-छोटी तीन अस्थियाँ (मैलीयस? इन्कस या एन्विल तथा स्टैपीज) हैं, जो श्रृंखलाबद्ध तरह से कर्णपटह (Tympanic membrane) से लेकर मध्यवर्ती पर स्थित अण्डाकार छिद्र (Fenestra ovalis) तक स्थित रहती हैं। प्रत्येक अस्थि (मैलीयस) का छोर दूसरी अस्थि के सिरे से संधिबद्ध रहता है। First अस्थि का सिरा टिम्पेनिक मेम्ब्रेन से सम्बन्धित रहता है और अन्तिम अस्थि (स्टैपीज) का छोर फेनेस्ट्रा ओवेलिस में सटा रहता है। श्रृंखलाबद्ध होने के कारण ध्वनि-तंरगों से उत्पन्न प्रकम्पन (Vibration) टिम्पेनिक मेम्ब्रेन से, इन तीनों अस्थिकाओं (Auditory ossicles) से होता हुआ इन्हीं के द्वारा अन्त:कर्ण तक पहुँच जाता है तथा बाह्यकर्ण का अन्त:कर्ण से सम्बन्ध स्थापित रहता है।

3) अन्त:कर्ण (Internal ear)-

यह टेम्पोरल अस्थि के अश्माभ भाग (Petrous portion) में स्थित श्रवणेन्द्रिय का प्रमुख अंग है। इसी में सुनने तथा सन्तुलन के अंग अवस्थित होते हैं। अन्त:कर्ण की बनावट टेढ़ी-मेढ़ी And जटिल है जो कुछ-कुछ घोंघे (Snail) के सदृश होती है। इसमें अस्थिल लैबिरिन्थ (Bony labyrinth) तथा कलामय लैबिरिन्थ (Membranous labyrinth) दो मुख्य Creationएँ होती हैं, जो Single Second के भीतर रहती हैं।

अस्थिल लैबिरिन्थ टेम्पोरल अस्थि के अश्माभ भाग में स्थित टेढ़ी-मेढ़़ी अनियमित आकार की नलिकाओं की Single श्रृंखला (Series of channels) है, जो परिलसीका (Perilymph) नामक तरल से भरा होता है।

कलामय लैबिरिन्थ अस्थिल लैबिरिन्थ में स्थित रहता है। इसमें यूट्रिक्ल (Utricle), सैक्यूल (Saccule), अर्द्धवृत्ताकार वाहिकाएँ (Semicircular ducts) And कॉक्लियर वाहिका (Cochlear duct) का समावेश रहता है। इन समस्त Creationओं में अन्त:कर्णोद (Endolymph) तरल भरा रहता है तथा सुनने And सन्तुलन के समस्त संवेदी रिसेप्टर्स विद्यमान रहते हैं। अर्द्धवृत्ताकार वाहिकाएँ अर्द्धवृत्ताकार नलिकाओं के भीतर स्थित रहती हैं। अस्थिल नलिकाओं (Canals) And वाहिकाओं (Ducts) के बीच के स्थान में परिलसीका (Perilymph) भरा रहता है। चँूकि कलामय लैबिरिन्थ अस्थिल लैबिरिन्थ भीतर स्थित रहता है, इसीलिए इनकी आकृति समान रहती है। इनका वर्णन अस्थिल लैबिरिन्थ में ही Reseller गया है। अस्थिल लैबिरिन्थ (Bony labyrinth) में निम्न तीन Creationओं का समावेश रहता है-

  1. प्रघाण या वेस्टिब्यूल (Vestibule)
  2. तीन अर्द्धवृत्ताकार नलिकाएँ (3 Semicircular canals) 
  3. कर्णावर्त या कॉक्लिया (Cochlea)

1. प्रघाण या वेस्टिब्यूल (Vestibule)-

यह लैबिरिन्थ का मध्य कक्ष है। इसके सामने कॉक्लिया और पीछे अर्द्धवृत्ताकार नलिकाएँ रहती हैं। वेस्टिब्यूल की बाहरी भित्ति के अण्डाकार छिद्र (Fenestra ovalis) में मध्य कर्ण की स्टैपीज अस्थिका की प्लेट लगी रहती है। इसी के द्वारा वेस्टिब्यूल का सीधा सम्पर्क मध्यकर्ण से रहता है। मध्यकर्ण और वेस्टिब्यूल के मध्य में केवल इस खिड़की के समान छिद्र में लगा हुआ झिल्ली कका पर्दा रहता है। वेस्टिब्यूल के भीतर अन्त:कर्णोद (Endollymph) से भरी कलामय लैबिरिन्थ की दो थैली (Sacs) होती हैं। जिन्हें यूट्रिक्ल (Utricle) तथा सैक्यूल (Saccule) कहा जाता है। प्रत्येक थैली (Sac) में संवेदी पैच (Sensory patch) विद्यमान रहता है, जिस मैक्यूल (Macule) कहा जाता है।

2. तीन अर्द्धवृत्ताकार नलिकाएँ

वेस्टिब्यूल के ऊपर (Superior), पीछे (Posterior) तथा पाश्र्व में (Lateral), ये तीन अस्थिल अर्द्धवृत्ताकार नलिकाएँ होती हैं, जो वेस्टिब्यूल से संलग्न रहती हें। ये तीनों नलियाँ Single-Second के लम्बवत् (Perpendicular) होती हैं। इनके भ्ज्ञीतर कलामय वाहिकाएँ (Ducts) रहती हैं कलामय वाहिकाओं (Membranous semicircular) And अस्थिल नलिकाओं (Bony semicircular ducts) के मध्य परिलसीका तरल भरा रहता है तथा कलामय वाहिकाओं के भीतर अन्त:कर्णोद तरल रहता है। प्रत्येक वाहिका का छोर कुछ फूला हुआ (Expanded) होता है, जिसे ‘एम्पूला’ (Ampulla) कहते हैं, इसमें संवेदी रिसेप्टर-क्रिस्टा एम्पूलैरिस (Crista ampullaris) रहता है। इसमें कुपोला (Cupola) नामक रोम कोशिकाएँ (Hair cells) भी रहती हैं। यहीं पर आठवीं कपालीय तन्त्रिका की शाखा वेस्टिब्यूलर तन्त्रिका (Vestibular nerve) आती है। यूट्रिक्ल, सैक्यूल And अर्द्धवृत्ताकार वाहिकाओं, तीनों का सम्बन्ध शरीर की साम्य स्थिति (Equilibrium) को बनाए रखने से है न कि सुनने की क्रिया से।

3. कर्णावर्त या कॉक्लिया (Cochlea)-

कॉक्लिया अपने ही पर लिपटी हुर्इ सर्पिल आकार की Single लनिका है, जो देखने में घोंघे के कवच के समान दिखार्इ देती है। यह मध्य में स्थित शंक्वाकार अस्थिल अक्ष स्तम्भ, जिसे मॉडियोलस कहते हैं, के चरों ओर दो और तीन चौथार्इ (2 ) बार कुण्डलित होती है। नीचे का चक्र सबसे बड़ा होता है और ऊपर का सबसे छोटा। कॉक्लिया की नलिका अण्डाकार छिद्र की खिड़की फेनेस्ट्रा रोटण्डा (Fenestra rotunda) तक फैली रहती है। अस्थिल कॉक्लिया के भीतर, ठीक इसी आकार की कलामय कॉक्लिया की वाहिका (Duct) होती है। इन दोनों नलिकाओं के बीच परिलसीका (Perilymph) तरल भरा रहता है। कलामय कॉक्लिया वाहिका वेस्टिब्यूलर And बेसिलर नामक दो मेम्बे्रन्स द्वारा लम्बवत् Reseller में तीन प्रथक कुण्डलित (सर्पिल) वाहिकाओं में विभक्त हो जाती है।

  1.  स्कैला वेस्टिब्यूलाइ 
  2. स्कैला मीडिया (Scala media) कॉक्लियर डक्ट 
  3. स्कैला टिम्पेनाइ

स्कैला वेस्टिब्यूलाइ का वेस्टिब्यूल से सम्बन्ध रहता है और स्कैला टिम्पेनाइ का समापन (End) गोलाकार छिद्र वाली खिड़की पर होता है तथा स्कैला मीडिया अन्य दोनों वाहिकाओं के बीच रहती है तथा इसमें अंत:कर्णोद (Endolymph) तरल भरा रहता है। स्कैला वेस्टिब्यूलाइ And स्कैला टिम्पेनाइ में परिलसीका (Perilymph) भरा रहता है। ये तीनों वाहिकाएँ (Ducts) समानान्तर व्यवस्थित रहकर अस्थिल अक्ष स्तम्भ (Modiolus) के चारों ओर कुण्डलित होकर ऊपर की ओर चढ़ती हैं। स्कैला मीडिया जिसे कॉक्लियर डक्ट भी कहते हैं, में स्पाइरल अंग (Spiral organ) भी विद्यमान रहते हैं, जो श्रवण अंग (Organ of Corti) कहलाते हैं।

श्रवण अंग (Organ of Corti) सहरा देने वाली कोशिकाओं (Supporting cells) And रोम कोशिकाओं (Hair hearing) से मिलकर बना श्रवण अन्तांग (End organ of hearing) है। रोम कोशिकाएँ कुण्डली की सम्पूर्ण लम्बार्इ के साथ-साथ पंक्तियों में व्यवस्थित रहती हैं। बाहरी रोम कोशिकाएँ तीन पक्तियों में तथा आन्तरिक रोम कोशिकाएँ बेसिलर मेम्बे्रन के भीतरी किनारे के साथ-साथ Single पंक्ति में व्यवस्थित रहती हैं। Human में लगभग 3500 आन्तरिक रोम कोशिकाएँ तथा 20,000 बाहरी रोम कोशिकाएँ होती हैं। इन दोनों आन्तरिक And बाहरी रोम कोशिकाओं में सूख्मबाल के समान संवेदी रोम (Sensory hair), या स्टीरियो सिलिया (Stereocilia) रहते हैं। प्रत्येक बाहरी रोम कोशिका में 80 से 100 संवेदी रोम (Sensory hairs) तथा आन्तरिक रोम कोशिका में, रोम पंक्तियों में व्यवस्थित रहते हैं, जो अंगे्रजी के अक्षर ‘W’ या ‘U’ बनाते हैं। रोमों (Hairs) के छोर (Tips) आपस में मिलकर Single छिद्र युक्त झिल्ली (Perforated membrance) बनाते हैं, जिसे ‘टेक्टोरियल मेम्बे्रन’ (Tectorial membrane) कहते हैं, जो श्रवण अंग (Spiral organ) के ऊपरी जीम (Firmly bound) रहती है।

कान की तन्त्रिकाएँ (Nerves of the Ear)- कान में आठवीं (VIII) कपालीय तन्त्रिका (Vestibulocochlear nerve) की आपूर्ति होती है। यह दो शाखाओं में विभाजित हो जाती है। Single वेस्टिब्यूल (प्रघाण) में जाती है और दूसरी कॉक्लिया में। वेस्टिब्यूल में जाने वाली शाखा वेस्टिब्यूल तन्त्रिका (Vestibular nerve) कहलाती है। इसका सम्बन्ध शरीर की साम्य स्थिति (Equilibrium) बनाए रखने की क्रिया से है। उद्दीपन मिलने पर यह आवेगों को अनुमस्तिष्क (Cerebellum) में संचारित करती है।

दूसरी तन्त्रिका जो कॉक्लिया में जाती है, उसे कॉक्लियर तन्त्रिका (Cochlear nerve) कहते हैं। यह कॉक्लिया के मध्य में स्थित अस्थिल स्तम्भ (Modiolus) में प्रवेश करती है और श्रवण अंग (Organ of Corti) के समीप पहुँच कर इसकी अनेक शाखाएँ चारों ओर फैल जाती हैं। इस तन्त्रिका द्वारा ले जाए जाने वाले आवेग प्रमस्तिष्क (Cerebrum) के टेम्पोरल लोब में स्थित श्रवण केन्द्र (Hearing Centre) में पहुँचते हैं। जहाँ ‘ध्वनि’ (Sound) का विश्लेषण होता है और हमें विशष्ट ध्वनि की संवेदना का ज्ञान होता है।

श्रवण-क्रिया –

ध्वनि के कारण वायु में तरंगें अथवा प्रकम्पन उत्पन्न होते हैं जो लगभग 332 मीटर प्रति सेकण्ड की गति से संचारित होते हैं। किसी स्वर का सुनना तभी संभव होता है जब कि उसमें वायु में तरंगें उत्पन्न करने की क्षमता हो और फिर वायु में उत्पन्न ये तरंगें कान से टकराएँ। ध्वनि का प्रकार, उसका तारत्व (Pitch), उसकी तीव्रता अथवा मन्दता (Intensity), उसकी मधुरता या रूक्षता आदि वायु तरंगों की आवृत्ति (Frequency), आकार (Size) तथा आकृति (Form) पर निर्भर करता है।

जैसा कि पूर्व में भी बताया जा चुका है कि बाह्यकर्ण की कर्णपाली (Auricle) ध्वनि तरंगों को संग्रहीत करती है और उन्हें बाह्य कर्ण कुहर (External auditory meatus) के द्वारा कान में पे्रषित करती है। तत्बाद ध्वनि तरंगें कर्ण पटह (Tympanic membrane) से टकराकर उसी प्रकार का प्रकम्पन (Vibration) उत्पन्न करती है। कर्ण पटह के प्रकम्पन अस्थिकाओं (Ossicles) में गति होने से मध्यकर्ण से होकर संचारित हो जाते हैं। कर्णपटह का प्रकम्पन उसी से सटी मैलियस (Malleus) अस्थिका द्वारा क्रमश: इन्कस (Incus) And स्टैपीज (Stapes) अस्थिकाओं में होता हुआ अण्डाकार छिद्रवाली खिड़की (Fenestra ovalis) पर लगी मेम्ब्रेन में पहुँच जाता है। प्रकम्पन के यहाँ तक पहुँच जाने पर वेस्टिब्यूल (Vastibule) में स्थित परिलसीका (Perilymph) तरल में तरंगें उत्पन्न हो जाती हैं। स्कैला वेस्टिब्यूलाइ And स्कैला टिम्पेनाइ में स्थित परिलसिका वेस्टिब्यूल के परिलसिका से सम्बन्धित रहता है, फलत: वह भी तरंगित हो उठता है। स्कैला वेस्टिब्यूलाइ And स्कैला टिम्पेनाइ की तरंगें स्कैला मीडिया अथवा कॉक्लियर वाहिका (Cochlear duct) के एण्डोलिम्फ को भी तरंगित कर देती हैं, जिसके फलस्वReseller बेसिलर मेम्ब्रेन में प्रकम्पन उत्पन्न होता है तथा श्रवण अंग (Organ of Corti) की रोम कोशिकाओं (Hair cells) में के श्रवण रिसेप्टर्स (Auditory receptors) में उद्दीपन होता है। इससे उत्पन्न तन्त्रिका आवेग (Nerve impulses) आठवीं कापालीय तन्त्रिका (वेस्टिब्युलोकॉक्लियर तन्त्रिका) की कॉक्लियर शाखा के द्वारा प्रमस्तिष्क के टेम्पोरल लोब में स्थित श्रवण केन्द्र में पहुँचते हैं। यहाँ ध्वनि का विश्लेषण होता है और विशिष्ट ध्वनि का बोध होता है।

शरीर की साम्य स्थिति And सन्तुलन (Equilibrium and balance of the body)- शरीर को साम्य स्थिति And सन्तुलन में बनाए रखने का कार्य अन्त:कर्ण के वेस्टिब्यूलर उपकरण (Vestibular apparatus)] यूट्रिक्ल, सैक्यूल And अर्द्धवृत्ताकार नलिकाओं द्वारा संपादित होता हे। सिर की स्थिति (Position) में कैसा भी परिवर्तन (हिलना) होता है, तो पेरिलिम्फ And एण्डोलिम्फ तरह हिल जाता है, जिससे रोम कोशिकाएँ (Hair cells) मुड़ (झुक) जाती हैं तथा यूट्रिक्ल, सैक्यूल And एम्पूलाओं (Ampullae) में स्थित संवेदी तन्त्रिका अन्तांग उद्दीप्त हो उठते हैं। इससे उत्पन्न तन्त्रिका आवेगों को वेस्टिब्यूलर तन्त्रिका (आठवीं कपालीय तन्त्रिका की शाखा) के तन्तु मस्तिष्क के सेरीबेलम को संचारित कर देते हैं। मस्तिष्क के आदेश से उन All पेशियों में तदनुकूल गति और क्रिया होती है जिससे शरीर की साम्य स्थिति गनी रहती हैं।

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