कर्नाटक का Fight (First, द्वितीय, तृतीय)

कर्नाटक का First Fight (1744 र्इ. से 1748 र्इ.)

1740 र्इ. में यूरोप में ऑस्ट्रिया के उत्तराधिकार-Fight में Single और फ्रांस और दूसरी और ब्रिटेन था अत: दोनों के मध्य यूरोप में Fight प्रारम्भ हो गया। इस Fight के प्रतिक्रियास्वReseller भारत में भी ब्रिटिश और फ्रेंच कंपनियां परस्पर Single-Second के विरुद्ध रण क्षेत्र में आ गर्इं। फ्रांसीसियों ने जलसेना की सहायता से अंग्रेजों के मद्रास पर आक्रमण कर उस पर अधिकार कर लिया। इसी बीच अंग्रेजों ने कर्नाटक के नबाव अनवरुद्दीन से सहायता की याचना की। इस पर नवाब ने Single सेना मद्रास पर अधिकार करने के लिये भेजी, किन्तु फ्रांसीसी गर्वनर डूप्ले ने इस सेना को 1746 र्इ. में Defeat कर दिया। इससे डूप्ले की विजय और राज्य विस्तार की महत्वाकांक्षा और बढ़ गयी तथा उसने मद्रास से लगभग 20 किलोमीटर दूर अंग्रेजों के सेंट डेविड दुर्ग पर आक्रमण Reseller, किन्तु असफल रहा। तत्पश्चात अंग्रेजों ने 1748 र्इ. में पांडिचेरी पर आक्रमण कर इसे अपने अधिकार में करना चाहा, किन्तु उनको भी सफलता नहीं मिली। इसी बीच यूरोप में Single्स-ला-शापल की सन्धि हो जाने से ऑस्ट्रिया के उत्तराधिकार का Fight समाप्त हो गया तो भारत में भी ब्रिटिश और फ्रेंच कंपनियों का Fight समाप्त कर दिया गया और दोनों के मध्य सन्धि हो गर्इ जिसके According अंग्रेजों को मद्रास पुन: प्राप्त हो गया।

Fight का महत्व और परिणाम

  1. इस Fight में सैनिक अभियानों और Fightों के कारण अंग्रेज और फ्रांसीसी दोनों को समुद्रतट से भीतर लगभग 175 किलोमीटर के क्षेत्र का यथेश्ट भौगोलिक ज्ञान प्राप्त हो गया जिसका लाभ उनको अगले Fightों में मिला।
  2. इस Fight से यह स्पष्ट हो गया कि यूरोपियन प्रणाली से प्रशिक्षित और छोटी सी सेना भी Indian Customer नरेशो की बड़ी सेना को Defeat कर सकती है।
  3. इस Fight से जलसेना और समुद्री शक्ति का महत्व स्पष्ट हो गया। विजय उस पक्ष की नि’िचत होगी जिसका सामुद्रिक बेड़ा उन्नत और श्रेष्ठ होगा। 
  4. अंग्रेज और फ्रांसीसी दोनों ने अपने व्यापार की उपेक्षा करके अपनी Safty के लिये सैनिक शक्ति संगठित करने की ओर वि’ोश ध्यान देने का निर्णय Reseller। 
  5. फ्रांसीसी सत्ता और शक्ति का प्रभुत्व दक्षिण के Indian Customer राज्यों पर जम गया और Indian Customer नरेश अपनी राजनीतिक समस्याओं के समाधान के लिए फ्रांसीसी सहायता प्राप्त करने को उत्सुक हो गये। 
  6. Indian Customer राजनीतिक दुर्बलता और अस्त-व्यस्त तथा खोखलेपन का ज्ञान फ्रांसीसी और अंग्रेजों दोनों को हो गया। इसलिये दोनों में Indian Customer राजनीति में हस्तक्षेप कर अपना-अपना राज्य स्थापित करने की महत्वाकांक्षा अधिकाधिक बलवती हो गयी।

कर्नाटक का द्वितीय Fight (1750 र्इ. से 1754 र्इ.)

कर्नाटक के First Fight के परिणामस्वReseller ब्रिटिश और फ्रेंच कंपनियां Indian Customer राजनीति में हस्तक्षेप करना चाहती थीं। कर्नाटक और हैदराबाद में उत्तराधिकार-Fight में दोनों ही कंपनियों को यह सुअवसर प्राप्त हो गया।

कर्नाटक और हैदराबाद में उत्तराधिकार-समस्या

हैदराबाद के निजाम आसफजाह की मृत्यु के पश्चात उसका Second पुत्र नासिरजंग और उसके नाती मुजफ्फरजंग के मध्य उत्तराधिकार-Fight प्रारंभ हो गया।

कर्नाटक में नवाब दोस्तअली का दामाद चांदासाहब जो मराठों के कारावास में था, कर्नाटक का नवाब बनने का महत्वाकांक्षी था। कर्नाटक के तत्कालीन नवाब अनवरुद्दीन का अत्याधिक विरोध हो रहा था। अतएव चांदासाहब ने डूप्ले से सहायता की याचना की। फलत: डूप्ले, चांदासाहब और मुजफ्फरजंग में Single गुप्त संधि हुर्इ जिसके According डूप्ले इन दोनों को राजसिंहासन प्राप्त करने के लिए सहायता प्रदान करेगा।

डूप्ले की योजना यह थी कि ऐसा करने से कर्नाटक का नवाब और हैदराबाद का निजाम (दक्षिण का मुगल सूबेदार) दोनों ही उसके हाथ में आ जायेंगे और दोनों ही अपने राज्याधिकार को फ्रांस की देन समझकर उसे भारत में वि’ोश सुविधाएं प्रदान करेगें। इससे फ्रांसीसी शक्ति में वृद्धि होगी और अंग्रेज शक्ति को आघात लगगे ा। डूप्ले ने इस प्रकार कर्नाटक में चांदासाहब को और हैदराबाद में मुजफ्फरजंग को राजसिंहासन प्राप्त करने के लिए सक्रिय सहयोग देकर सफलता प्राप्त की।

फ्रांसीसियों की इस सफलता से आतंकित होकर अंग्रेजों ने भी अपनी स्थिति को Windows Hosting रखने के लिए हैदराबाद में निजाम के सिंहासन के अन्य दावेदार नासिरजंग को और कर्नाटक में नवाब के सिंहासन के अन्य दावेदार मुहम्मदअली को सहायता देना प्रारम्भ Reseller। इस प्रकार यह संघर्ष मुजफ्फरजंग और नासिरजंग में कम किन्तु ब्रिटिश और फ्रेंच कंपनियों में अधिक प्रतीत होने लगा।

Fight की घटनायें

चांदासाहब ने अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए तंजौर पर आक्रमण Reseller। इसी बीच नासिरजंग ने अंग्रेजों की सहायता से कर्नाटक पर आक्रमण कर दिया। चांदासाहब तंजौर का घेरा उठाकर नासिरजंग का सामना करने के लिए लौटा। जिंजी नदी के तट पर नासिरजंग ने चांदासाहब और मुजफ्फरजंग और फ्रांसीसी सेना को Defeat कर दिया।

उपरोक्त पराजय से डूप्ले निराश नहीं हुआ। उसने अपनी सैनिक शक्ति से मछलीपट्टम, त्रिवादी और जिंजी पर अधिकार कर लिया और फिर नासिरजंग पर आक्रमण कर उसे Defeat ही नहीं Reseller, अपितु उसका वध भी करवा दिया। इस विजय के बाद शीघ्र ही डूप्ले ने मुजफ्फरजंग को हैदराबाद का निजाम बना दिया। इस विजय के उपलक्ष्य में नये निजाम मुजफ्फरजंग ने फ्रांसीसियों को दिवि और मछलीपट्टम के नगर व बहुत सा धन दिया। डूप्ले को दो लाख पौंड नगद और दस हजार पौंड की वार्शिक आय वाली जागीर प्रदान की गयी। डूप्ले को कृष्णा नदी से कन्याकुमारी तक के क्षेत्र का सूबेदार भी घोशित Reseller गया पर इस पदवी का यह Means नहीं था कि डूप्ले को उस विस्तृत प्रदेश पर शासन करने का कोर्इ विशोश अधिकार दिया गया। मुजफ्फरजंग ने फ्रांसीसियों की संरक्षता में चांदासाहब को कर्नाटक का नवाब भी मान लिया। इन घटनाओं से Indian Customer नरेशो की दृश्टि में डूप्ले का यश-गौरव और मान-मर्यादा अत्याधिक बढ़ गयी।

फ्रांसीसियों का प्रभुत्व

1751 र्इ. में फ्रांसीसी सफलता और प्रभाव अपनी चरम सीमा पर था। डुप्ले अपनी उपलब्घियों के उच्चतम ‘िाखर पर था। दक्षिण का मुगल सूबेदार (निजाम) सलाबतजंग और कर्नाटक का नवाब चांदासाहब फ्रांसीसी गवर्नर डुप्ले के नियंत्रण में थे।

अंगे्रजों की नीति तथा सफलता का प्रारंभ

ब्रिटिश कम्पनी के अधिकारियों को फ्रांसीसियों की उत्तरोतर बढ़ती सफलता से आघात लगा और उन्होंने फ्रांसीसियों और चांदासाहब के विरोध में मुहम्मदअली का सक्रिय समर्थन कर उसकी सहायता के लिए अंग्रेज सेना त्रिचनापल्ली भेज दी। मुहम्मदअली को चांदासाहब ने त्रिचनापल्ली में घेर लिया था। मुहम्मदअली पर चांदासाहब का सैनिक दबाव कम करने के लिये अगस्त 1751 र्इ. में रॉबर्ट क्लाइव ने चांदासाहब पर सैनिक दबाव बनाते हुए उसे Defeat कर दिया। इस पराजय से घबराकर चांदासाहब ने त्रिचनापल्ली का घेरा उठा लिया और स्वयं भागकर तंजौर के King के यहाँ शरण ली। किन्तु वहाँ चांदासाहब को शड़यंत्र से मरवा दिया गया। अब अंग्रेजों ने मुहम्मदअली को कर्नाटक का नवाब घोशित कर दिया। अंग्रेजों की इस सफलता से फ्रांसीसियों की आशाओं पर पानी फिर गया और डुप्ले की महत्वाकांक्षा चूर-चूर हो गयी। कर्नाटक में तो अब फ्रांसीसी पक्ष की नीति का आधार ही समाप्त हो गया था। जब फ्रांस की सरकार के पास डुप्ले और कंपनी की इस पराजय के समाचार पहंचु े तो उन्होंने डुप्ले को फ्रांस वापस बुला लिया और उसके स्थान पर गोड्यू को गवर्नर बनाकर भारत भेजा और उसके आने पर 1754 र्इ. में ब्रिटिश और फ्रेंच कंपनियों के बीच संधि हो गयी जो पांडिचेरी की सन्धि कहलाती है। पांडिचेरी की सन्धि की शर्तें निम्नलिखित हैं –

  1. अंग्रेजों And फ्रांसीसियों ने मुगल सम्राट या अन्य Indian Customer नरेशो द्वारा दिये गये समस्त पदों और उपाधियों को त्याग दिया और उनके पारस्परिक झगड़ों में हस्तक्षपे न करने का आ’वासन दिया। 
  2. फोर्ट सेंट जार्ज, फोर्ट सेटं डेविड तथा देवी काटे ा पर अंग्रेजों का आधिपत्य मान लिया गया।
  3. मछलीपट्टम तथा उसके आस-पास के क्षेत्र से फ्रांसीसियों ने अपना अधिकार वापिस ले लिया।
  4. दोनों कंपनियों के पास समान भू-भाग रहे।
  5. श्शति की स्थिति में ब्रिटिश और फ्रेचं कंपनियों द्वारा नवीन दुर्गों का निर्माण या किसी पद्रेशो की विजय नहीं की जायेगी। 
  6. Fight की क्षति-पूर्ति के विशय में आयोजन और समझौता होगा।
  7. जब तक इस संधि का अनुमोदन यूरोप में गृह सरकारों से न हो जाय, तब तक दोनों कम्पनियों की वर्तमान स्थिति में अंतर नहीं हागे ा। 
  8. दोनों कंपनियों ने मुहम्मदअली को कनार्टक का नवाब स्वीकर कर लिया।

महत्व And समीक्षा

डुप्ले ने इस संधि की आलोचना करते हुए कहा था कि ‘‘गोड्यू ने अपने देश के विनाश और असम्मान पर हस्ताक्षर किये हैं। यह भी कहा जाता है कि इस संधि के द्वारा अंग्रेजों ने वह सब कुछ प्राप्त कर लिया जिसके लिये वे फ्रांसीसियों से Fight कर रहे थे। इस संधि से फ्रांसीसियों को बड़ी क्षति हुर्इ और कर्नाटक पर उनका प्रभाव समाप्त हो गया। उनकी आर्थिक स्थिति भी दुर्बल हो गयी। डुप्ले की भारत में राज्य स्थापित करने की योजना समाप्त हो गयी किन्तु गोड्यू ने फ्रांसीसियों को जितना अधिक बचा सका बचा लिया। उसने अपने देशवासियों को क्षतिपूर्ति के लिये अवसर प्रदान Reseller।’’ इस Fight से यह स्पष्ट हो गया कि फ्रांसीसी और अंगे्रेज दोनों ही अपने व्यापार की आड़ में भारत की राजनीति में अपने साम्राज्यवादी स्वार्थों की पूर्ति के लिए खुलकर खेलना चाहते थे। यद्यपि इस Fight में फ्रांसीसियों को गहरा आघात लगा, फिर भी वे निराश नहीं हुए। उनकी स्थिति फिर भी अच्छी बनी रही। पांडिचेरी की संधि से अंग्रेजों को जो भूमि प्राप्त हुर्इ थी उसकी वार्शिक आय केवल 1,00,000 रुपये थी, जबकि फ्रांसीसियों के पास अब भी 8,00,000 रुपये वाशिर्क आय वाली भूि म थी। किन्तु Indian Customer राजनीति में हस्तक्षेप करके भारत में राज्य कानै करेगा? ये लगभग निश्चित हो गया।

कर्नाटक का तृतीय Fight (1756 र्इ. से 1763 र्इ.) 

ब्रिटिश और फ्रेचं कंपनियों में पांडिचेरी की जो संिध हुर्इ थी, वह स्थायी नहीं हो सकी। दोनों ही पक्ष Single Second के विरुद्ध अप्रत्यक्ष Reseller से गतिविधियाँ संचालित करते रहे। इसलिए जब 1756 र्इ. में यूरोप में सप्तवश्र्ाीय Fight प्रारम्भ हुआ और इंग्लैंड और फ्रांस इसमें Single-Second के विरुद्ध Fightरत हो गये, तब भारत में भी ब्रिटिश और फ्रेंच कंपनियों में Fight प्रारभं हो गया। फ्रांस की सरकार ने भारत में अंग्रेजों पर आक्रमण करके उन्हें वहाँ से खदेड़ देने और भारत में फ्रांसीसी शक्ति And प्रतिष्ठा को फिर से स्थापित करने के लिये काउन्ट लैली के नेतृत्व में Single शक्तिशाली सेना भेजी। आरम्भ में लैली को सफलता मिली। अंग्रेजों के सेंट डेविड के दुर्ग पर उसने अधिकार कर लिया। लैली ने हैदराबाद से बुसी को भी सहायता के लिए बुला दिया। यह लैली की भयंकर भूल थी क्योंकि जैसे ही बुसी ने हैदराबाद से प्रस्थान Reseller, वहाँ फ्रांसीसी प्रभाव समाप्त हो गया। अंग्रेजों ने मछलीपट्टम पर अधिकार कर लिया और निजाम सलाबतजंग से संधि कर ली। इस संधि से अंग्रेजों को कुछ और प्रदेश प्राप्त हुए। फ्रेंच सेनानायक लैली ने 1758 र्इ. में मद्रास पर आक्रमण कर उसे जीतना चाहा, किन्तु लैली असफल रहा और पांडिचेरी लौट आया। अन्त में 1760 र्इ. में वांडीवाश के Fight में अंग्रेजों ने फ्रांसीसियों को बुरी तरह Defeat कर दिया। बुसी बन्दी बना लिया गया।

History में वाडं ीवाश का Fight निर्णायक सिद्ध हुआ। इस Fight में फ्रांसीसियों का वह विशाल भवन धराशायी हो गया जिसे मार्टिन, ड्यूमा और डुप्ले ने अथक परिश्रम से निर्मित Reseller था। इससे लैली की सम्पूर्ण आशाएं समाप्त हो गयीं। इस पराजय के बाद लैली ने पांडिचेरी में शरण ली। किन्तु अंग्रेजों ने पांडिचेरी को घेर लिया और 16 जनवरी, 1761 र्इ. को लैली ने आत्म समर्पण कर दिया। लैली बन्दी बना लिया गया और इसी Reseller में उसे फ्रांसीोज दिया गया जहां उस पर अभियोग चलाकर मृत्यु दंड दिया गया। पांडिचेरी के पतन के पूर्व अंग्रेजों ने त्रिचनापल्ली पर आक्रमण कर उस पर अपना अधिकार कर लिया था। पांडिचेरी के पतन के बाद फ्रांसीसियों के अन्य नगर जिंजी, माही आदि भी अंग्रेजों के अधिकार में आ गये।

यूरापे में सप्तवश्र्ाीय Fight पेरिस की संधि से समाप्त हुआ था, तभी भारत में भी तृतीय कर्नाटक Fight का अंत हुआ। इस संधि की शर्तें निम्नलिखित थीं –

  1. फ्रांसीसियों को पांडिचेरी, माही, चन्द्रनगर आदि उनके नगर उन्हें लौटा दिये, किन्तु वे वहाँ किलेबन्दी नहीं कर सकते थे। 
  2. भारत के पूर्वी तट पर फ्रांसीसी सैनिकों की संख्या सीमित कर दी गर्इ। 
  3. बंगाल में फ्रांसीसियों को केवल व्यापार करने का अधिकार प्राप्त हुआ और इस प्रकार वहाँ से उनकी राजनीतिक शक्ति का पूर्णतया अन्त हो गया। 
  4. दक्षिण में मुहम्मदअली को कर्नाटक का नवाब और सलाबतजगं को हैदराबाद का निजाम स्वीकार कर लिया गया किन्तु वहाँ से फ्रांसीसी प्रभाव समाप्त कर दिया गया। 

महत्व And समीक्षा 

तृतीय कर्नाटक Fight पूर्णत: निर्णायक था और पेरिस की संधि अत्यन्त महत्वपूर्ण थी। अब फ्रांसीसी भारत में Single स्वतंत्र शक्ति के Reseller में समाप्त हो चुके थे। यद्यपि इस Fight के बाद कुछ फ्रांसीसियों ने समय-समय पर Indian Customer नरेशो की सेनाओं को यूरोपीय पद्धति पर प्र’िाक्षित Reseller, किन्तु इस कार्य में उन्हें कोर्इ विशेष सफलता प्राप्त नहीं हुर्इ। रण-क्षेत्र और राजनीति के क्षेत्र में फ्रांसीसियों के समाप्त हो जाने से अंग्रेजों के लिए साम्राज्य-विस्तार का मार्ग प्रशस्त हो गया।

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