आपदा का Means, प्रकार, प्रकृति, कारण And प्रभाव

आपदा का Means है विपत्ति, मुसीबत या कठिनार्इ। आपदा को अंग्रेजी में डिजास्टर कहते हैं। डिजास्टर Word दो Wordों से मिलकर बना है। डेस Meansात बुरा या अशुभ और ऐस्ट्रो का मतलब स्टार या नक्षत्र। पुराने जमाने में किसी विपत्ति, मुसीबत और कष्ट का कारण बुरा नक्षत्रों का प्रकोप माना जाता था। वर्तमान में आपदा का Means उन प्रकृति और Human जनित अप्रत्याशित या त्वरित घटनाओं से लिया जाता है जो Human पर कहर बरSevenी है। साथ ही जन्तु और पादप समुदाय को अपार क्षति पहुंचाती है।

आपदा की विशेषताएँ 

  1. आपदा प्रकृति जन्य और Human जनित आपदा है।
  2. यह अप्रत्याशित और त्वरित गति से घटती है। 
  3. आपदा से जानमाल को नुकसान पहुंचता है। लोगों को चोट पहुंचती है तथा स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। 
  4. इसके कारण सामाजिक ढांचा ध्वस्त हो जाता है। इमारतें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं।
  5. इसके कारण परिवहन, संचार व्यवस्था तथा अनिवार्य सेवायें प्रभावित होती हैं। 
  6. इससे आम जनजीवन अस्त व्यस्त हो जाता है और यह अचानक, अनजाने और व्यापक पैमाने पर आक्रमण करती है। 
  7. इससे पीड़ित समुदाय के लोगों को भोजन, वस्त्र, आवास और चिकित्सा और सामाजिक देखभाल की Need होती है।

प्रकोप और आपदा में अन्तर – 

प्रकोप और आपदा में निकट का सम्बन्ध है। प्रकोप में आपदा की सम्भावना छिपी रहती है। जब किसी क्षेत्र में प्रकोप आता है तो वहां Human जीवन अस्त व्यस्त हो जाता है तो उसे आपदा कहेंगें। यदि किसी निर्जन तट पर चक्रवात आता है तो उसे प्रकोप कहेंगें क्योंकि उससे आम जनता प्रभावित नहीं होती है।

प्रकोप सामान्यतया उन प्राकृतिक And Humanीय प्रक्रमों से सम्बन्धित होते हैं जो चरम घटनाएं उत्पन्न करते हैं जबकि आपदा वे त्वरित और अचानक होने वाली घटनाएं होती है जो Human समाज और जैव समुदाय को अधिक क्षति पहुंचाती हैं।

प्रकोप आपदा से पूर्व की स्थिति है और इसमें आपदा के आगमन का खतरा मौजूद रहता है और इससे मनुष्य की आबादी के Destroy होने का खतरा बना रहता है। आपदाओं को सदा Human के सन्दर्भ में देखा जाता है। आपदाओं की गहनता तीव्रता And परिमाण का आंकलन धन जन की हानि के परिप्रेक्ष्य में Reseller जाता है।

प्रकोप Single प्राकृतिक घटना है जबकि आपदा इसका परिणाम है। प्रकोप Single प्राकृतिक घटना है जिससे जान माल दोनों का नुकसान होता है जबकि आपदा इस संकट का अनुभव है।’’ (जान बिहरो-डिसास्टर 1980) आपदा का कार्य Humanीय कार्य भी हो सकता है जैसे सड़क पर हुर्इ कोर्इ दुर्घटना और औद्योगिक विस्फोट अथवा प्राकृतिक प्रकोप भी हो सकता है जैसे ज्वालामुखी, भूकम्प आदि। यदि भूकम्प .4.0 से कम परिमाण का आता है तो वह उस क्षेत्र के लोगों के लिए आपदा नहीं होगी क्योंकि इसका प्रभाव उस क्षेत्रों के लोगों पर नगण्य होगा और यदि भूकम्प 7.0 से अधिक परिणाम वाले आते हैं तो वह उस स्थान को तहस-नहस कर देते हैं। अप्रैल 2015 में नेपाल में आया भूकम्प जो Indian Customer ओर यूरेशियन प्लेट के खिसकाव के कारण आया था प्राकृतिक आपदा का उदाहरण है।

आपदा के प्रकार-

आपदा जीव-जन्तु वनस्पति तथा Human के लिए हानिकारक है। कुछ आपदाएं प्रकृति की व्यवस्था में असन्तुलन उत्पé होने के कारण होती है जबकि कुछ Human जनित क्रियाओं के कारण होते हैं।

1. भूगर्भीय आपदा

  1. ज्वालामुखी
  2. भूकम्प
  3. भूस्खलन
  4. हिमस्खलन
  5. सिंक होल

2. जलीय आपदा

  1. बाढ़
  2. लिम्निक उद्गार
  3. सुनामी
  4. बादल का फटना

3. मौसमी आपदा

  1. बर्फानी तूफान
  2. चक्रवात
  3. सूखा
  4. आकाशीय विद्युत आपदा
  5. उपल वृष्टि
  6. गर्म लहर
  7. शीतलहर
  8. हरिकेन
  9. टारनेडो
  10. हिमावरण या हिमद्रवण
  11. समुद्र तल में परिवर्तन

4. प्रश्नोतर प्रकोप And आपदा

  1. Earth And उल्काओं का टकराव
  2. उल्काओं में आपसी टक्कर

5. Human कृत प्रकोप And आपदा

  1. भौतिक आपदा
  2. वायु और जल प्रदूषण
  3. मृदा अपरदन
  4. भूस्खलन
  5. बांध जनित भूकम्प
  6. क्षरण तथा दावानल

6. रसायनिक आपदा

  1. नाभिकीय विस्फोट
  2. रेडियोधर्मी विकिरण
  3. जहरीले रसायनों का रिसाव
  4. सागर में तेल वाहक टेकर से पैट्रोलियम का रिसाव

7. जैविक आपदा

  1. जनसंख्या विस्फोट
  2. Fight/लड़ार्इ/दुश्मन का आक्रमण 
  3. महामारी
  4. कीट समूहन
  5. आतंकवाद आपदा

8. प्रौद्योगिकी आपदा

  1. परिवहन दुर्घटनाएं
  2. औद्योगिक दुर्घटना
  3. नाभिकीय Fight

आपदाओं की प्रकृति

प्रारम्भ में मनुष्य पर पर्यावरण के सम्बन्धों का अध्ययन Reseller जाता था जिसे निश्चयवाद की संज्ञा दी जाती है। वर्तमान में उद्योगों तथा प्रौद्योगिकी के विकास के कारण पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है जिसके कारण पर्यावरण पर Humanीय कार्यों के परिणामों पर अधिक जोर दिया जाने लगा है क्योंकि पर्यावरण में परिवर्तन का प्रभाव Human समाज पर पड़ने लगा है और इसका प्रभाव बाढ़, सूखा, भूकम्प आदि प्रकोप व आपदा के Reseller में दिखार्इ पड़ने लगा है। इसका अध्ययन विभिन्न विषयों में अलग-अलग दृष्टिकोंण से Reseller जाने लगा है। अभी तक छह दृष्टिकोंण सामने आए हैं।

  1. भौैगोलिक दृष्टिकोंण – इस दृष्टिकोंण के प्रमुख प्रर्वतक हारलैड वैराजे और गिलनर है। इसमें आपदा का विस्तार, आने के कारणों तथा समाज पर उसके प्रमुख प्रभावों तथा उससे निपटने के लिए विभिé उपायों पर Discussion की गर्इ है। 
  2. समाजशास्त्रीय दृष्टिकोंण – इसमें आपदाओं का समाज, Human के रहन-सहन तथा व्यवहार पर क्या प्रभाव पड़ता है का अध्ययन Reseller जाता है। इसमें मनोविज्ञान आधारित प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया पद्धति का आपदा के सन्दर्भ में अध्ययन Reseller जाता है। रस्सल आर डाइनेस और एनरिको एल क्वैरेनटेलि इस दृष्टिकोंण के प्रमुख प्रवर्तक हैं। 
  3. शास्त्रीय दृष्टिकोंण – इसमें सभ्यताओ के Destroy होने में आपदाओं की भूमिकाओं पर Discussion की गर्इ है। इसमें आपदाओं का सामाजिक आर्थिक विकास पर क्या प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, इसका अध्ययन Reseller जाता है। आपदा के कारण प्रभावित समुदाय अपनी Needओं की पूर्ति करने में असमर्थ रहता है। इसी कारण लोगों के प्रवजन या स्थानान्तरण की दशा का जिक्र Reseller गया है।
  4. विकाSeven्मक दृष्टिकोंण – आपदाओं के प्रभाव सबसे अधिक विकासशील देशों में होता है क्योंकि गरीबी के कारण प्राकृतिक प्रकोप की मार और भी घातक हो जाती है। इसी कारण इस दृष्टिकोंण में सहायता और राहत कार्य, शरणाथ्र्ाी प्रबंध, स्वास्थ्य, देखरेख और भुखमरी जैसी समस्याओं तथा इससे निपटने के उपायों पर Discussion की गर्इ है। 
  5. आपदा औषधि औैर महामारी विज्ञान – आपदा के दौरान सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं बाधित हो जाती है जिसके कारण पड़े पैमाने पर लोगों की मृत्यु तक हो जाती है। इसी कारण इसमें मृत्यु के प्रबंधन, क्षत विक्षत रोगियों का इलाज, संक्रामक और महामारी आदि से ग्रसित रोगियों के उपचार पर बल दिया जाता है। 
  6. तकनीकी दृष्टिकोंण – इसमें आपदा के विभिन्न पक्षो के अध्ययन के लिए विभिन्न विज्ञानों जैसे आपदा विज्ञान, ज्वालामुखी विज्ञान, भूआकृति विज्ञान, भूगर्भशास्त्र तथा भौतिकी का सहारा लिया जाता है। प्राकृतिक और शारीरिक विज्ञान इस प्रकार के दृष्टिकोण पर महत्व देते हैं।

आपदाओं के कारण

प्रकृतिजन्य और Human जनित अप्रत्याशित And दुष्प्रभाव वाली चरम घटनाओं को आपदा कहते हैं। ये आपदाएं कभी त्वरित And कभी मन्द गति से घटित होती है। इन आपदाओं के घटने के कर्इ विवर्तनिक तथा Humanजनित कारण है जिनका संक्षिप्त में यहाँ description दिया जा रहा है।

  1. Earth की ऊपरी पपड़ी छोटे-बड़े भिé-भिé भागों में विभक्त है जिसे प्लेट की संज्ञा दी गर्इ है। ये प्लेट गतिशील है। इनकी गति कभी Single-Second के सामने, तथा कभी Single Second के विपरीत दिशा में होती है। जब प्लेट विपरीत दिशा में गति करती है तो Earth के अन्दर का तप्त तथा तरल मौमा, सतह पर आकर फैल जाता है तथा शान्त ज्वालामुखी का उद्गार होता है। जब ये प्लेट आमने-सामने टकराती है तो भारी प्लेट हल्के पदार्थ से निर्मित प्लेट के नीचे चली जाती है तथा अधिक गर्मी से पिघल जाती है। जिससे अधिक परिमाण वाले भूकम्प आते हैं तथा विस्फोटक प्रकार वाले ज्वालामुखी का उद्गार होता है। 
  2. Earth के अन्वजति शक्तियों के कारण चट्टानों में क्षैतिज तथा उध्र्वाधर गतियां होती हैं। इन्हीं गतिशीलता के कारण वलन And भ्रंशन की क्रिया होती है। भं्रशन के कारण Single भाग ऊपर उठ जाता है तथा Single भाग नीचे धंस जाता है। धरातलीय भाग में अगल-बगल तथा ऊपर-नीचे खिसकाव होने से Earth पर कम्पन पैदा होता है तथा भूकम्प आता है। 
  3. धरातलीय भाग पर जब जल की अपार राशि का भण्डारण हो जाता है तो उससे उत्पé अत्यधिक भार तथा दबाव के कारण जल भण्डार की तली के नीचे चट्टानों में हेर फेर होने लगता है और जब यह परिवर्तन शीलता से होता है तो भूकम्प का अनुभव Reseller जाता है। 
  4. भूपटल के नीचे जब किसी कारण से जल पहुंच जाता है तो वह अत्यधिक ताप के कारण जलवाष्प में बदल जाता है। ये गैसे ऊपर जाने का प्रयास करती है तथा भूपटल पर नीचे से धक्के लगाती हैं। जिससे ऊपरी भाग का दबाव कम हो जाता है तथा ये विस्फोट के साथ ठोस And गैसीय पदार्थ निकलता है। जिससे ज्वालामुखी का उद्गार होता है तथा भूकम्प का अनुभव Reseller जाता है। 
  5. सागरीय तली में अचानक विवर्तनिक उथल-पुथल के कारण अपार सागरीय जलराशि का विस्थापन होता है तथा सुनामी की उत्पत्ति होती है। सागरीय तली में उथल-पुथल कर्इ कारणों से होती है। जैसे सागरीय तली में ज्वालामुखी का उद्गार, प्लेटों के खिसकाव के कारण भूकम्प, सागरीय भूस्खलन, बड़े-बड़े हिमखण्डों की फिसलन आदि है। सुनामी लहरों की तटवर्ती क्षेत्रों में ऊचार्इ अधिक हो जाती है जिसके कारण तबाही मचाती है।
  6. उष्ण कटिबन्धीय विक्षोभ, तूफान, हरिकेन या टाइफून ये उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के उनकी तीव्रता के आधार पर विभिé नाम हैं। ये अधिक शक्तिशाली, खतरनाक वायुमण्डलीय तूफान होते हैं। ये चक्रवात गर्म सागरों में ग्रीष्म काल में उत्पé होते हैं। जबकि तापमान 270से0 से अधिक होता है। भूमध्यरेखा के उत्तर तथा दक्षिण में कोरियालिस बल की तथा Earth की अक्षीय गति के कारण हवाओं की व्यवस्था चक्रीय हो जाती है। 
  7. बाढ़ प्राय: स्थलीय भाग के कर्इ दिनों तक जलमग्न रहने से आती है। जब वर्षा का पानी नदी के किनारों से प्रवाहित होकर समीपी भाग को जलमग्न कर दे तो बाढ़ की स्थिति आती है। तटीय क्षेत्र में बाढ़ वायुमण्डलीय तूफानों तथा उच्च ज्वार द्वारा जनित महालहरों के कारण आती है। क्योंकि इससे कर्इ मीटर ऊंची लहरे तटीय भाग के निचले क्षेत्र में प्रविष्ट कर जाती है। नगरीय क्षेत्र में बाढ़ जल निकासी की उचित व्यवस्था न होने के कारण आती है। 
  8. जब वार्षिक वर्षा सामान्य वर्षा से 75 प्रतिशत या उससे कम हो तो कृषि, पशुओं तथा जनसंख्या की जल की पर्याप्त मात्रा नहीं मिल पाती है। जल वर्षा कम होने के कारण मृदा में नमी की मात्रा कम हो जाती है जिससे फसल की न्यून पैदावार होती है तथा सतही और भूमिगत जलस्तर गिर जाता है।

आपदा के प्रभाव

संयुक्त राष्ट्र संघ (2015) की रिपोर्ट के According 2005 से 2014 के मध्य मौसम से सम्बन्धित आपदाओं में चक्रवात, बाढ़ और सूखा में बढ़ोत्तरी हुर्इ है। रिपोर्ट के According प्रतिवर्ष औसत 335 आपदाएं आती हैं। वर्ष 1955 से 2004 तक आपदाओं में निरन्तर वृद्धि हुर्इ है। भारत, इन्डोनेशिया और फिलीपाइन देशों का प्रतिशत सबसे अधिक आपदा प्रभावित देशों में रहा। इस रिपोर्ट के अनुसर 1994-2014 के मध्य से विभिन्न आपदाओं से 440 करोड़ लोग प्रभावित हुए हैं। रिपोर्ट के According पिछले बीस वर्षों में विकासशील और अविकसित देश प्राकृतिक आपदा से अधिक प्रभावित रहे हैं। अविकसित देशों का प्रतिशत 33 प्रतिशत रहा है। लेकिन आपदा से 81 प्रतिशत लोगों की मृत्यु इन्हीं देशों में हुर्इ है।

आपदाओं की प्रकृति, अवधि, तीव्रता अलग-अलग होती है। इसी कारण इन आपदाओं के प्रभाव तथा इनके परिणाम अलग होते हैं। आपदा के प्रभावों का मूल्यांकन विभिन्न आपदाओं की तीव्रता के आधार पर Reseller जा सकता है।

  1. कुछ आपदाएं अप्रत्याशित व त्वरित गति से आती है जैसे भूकम्प, ज्वालामुखी, चक्रवात तथा भूस्खलन आदि। इसके कारण अपार धन-जन की हानि होती है। इसका प्रभाव विस्तृत क्षेत्र पर पड़ता है। भवनों And परिवहन तंत्रों का विनाश हो जाता है। बिजली And जल की आपूर्ति बाधित हो जाती है। पालतू जानवरों का विनाश हो जाता है। ये आपदाएं अधिक विनाशात्मक प्रभाव छोड़ती है। इसी कारण सामाजिक और आर्थिक ढांचे को अस्त-व्यस्त कर देती है। 
  2. कुछ आपदाएं अत्यन्त मंद गति से आती है और इनका प्रभाव दूरगामी पड़ता है। वर्षा की मात्रा कम होने के कारण सूखे की स्थिति पैदा हो सकती है। इसके कारण फसल विफलता तथा न्यून पैदावार होती है। यदि सूखे की समयावधि लम्बी हो निर्वनीकरण, मरूस्थलीकरण तथा मृदा अपरदन की समस्या पैदा हो सकती है। कृषि उत्पादन को झटका लगता है तथा अन्न और जल के अभाव में अकाल की स्थिति आ सकती है तथा लोग भूखमरी, कुपोषण से ग्रस्त होकर अनेक बीमारियों की चपेट में आ सकते हैं। 
  3. कुछ आपदाएं Human जनित है। Human की असावधानी, अज्ञानता, लापरवाही, गलती या Human निर्मित तंत्रों की विफलता के कारण होती है। जैसे दो राष्ट्रों के बीच Fight, गृह Fight, पर्यावरणीय असंतुलन, जनसंख्या विस्फोट तथा परमाणु Fight तथा औद्योगिक दुर्घटना आदि है। Fight तथा गृह Fight के दौरान राष्ट्रीय सम्पत्ति को अधिक क्षति पहुंचती है जिसके कारण संसाधनों का अभाव हो जाता है तथा वस्तुओं की कीमतें तेजी से बढ़ने लगती हैं। देश में नागरिक आंदोलन, Fight तथा गृह Fight से हुआ विध्वंस प्राकृतिक प्रकोप के समान होता है। 
  4. आपदा का त्वरित प्रभाव जनसंख्या का स्थानान्तरण है। बाढ़ और भूकम्प के आने पर प्रभावित क्षेत्र के व्यक्ति अपना घर छोड़कर अन्यत्र पनाह लेते हैं। वहां पर उनको स्वच्छ जल, खाद्य आपूर्ति, शिक्षा तथा स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित होना पड़ता है। 
  5. आपदाओं का स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अत्यधिक बाढ़ के बाद पानी जगह-जगह भर जाता है। इसमें मच्छर और बैक्टीरिया पनपते हैं। जिसके कारण Human अधिक बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं। परमाणु शक्ति संयंत्रों के रियेक्टरों के रेडिएशन का रिसाव Human सहित All जीवों के लिए घातक तथा जानलेवा होता है। इसका प्रभाव विस्तृत क्षेत्र पर दीर्घ अवधि तक रहता है। नदियां, झीले तथा जलभण्डार रेडियो Single्टिव पदार्थों से संदूषित हो जाते हैं। 
  6. प्राकृतिक आपदा के बाद अक्सर खाद्य पदार्थों की कमी हो जाती है। आपदा से फसल विफलता तथा न्यून पैदावार के कारण अनाज की कीमतें बढ़ जाती हैं और लोगों में आर्थिक विपéता के कारण क्रय शक्ति की कमी हो जाती है। जिससे लोग भुखमरी के शिकार हो जाते है। पर्याप्त भोजन न मिलने के कारण लोग कुपोषण के शिकार हो जाते है और बच्चों का विकास लम्बी अवधि तक रूक जाता है। 
  7. आपदा के बाद लोग परिजनों की मृत्यु तथा आर्थिक बदहाली के कारण ‘पोस्ट ट्रानमेटिक स्ट्रेस डिस्ऑडर’ नामक बीमारी से ग्रसित हो जाते हैं। यह गम्भीर मनोवैज्ञानिक बीमारी है। इसमें व्यक्ति भय की स्थिति से गुजरता है। इस रोग का अगर उपचार नहीं Reseller गया तो व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक स्थिति हमेशा के लिए खराब हो जाएगी। 
  8. आपदा का सर्वाधिक प्रभाव समाज के गरीब तबके के लोगों पर पड़ता है। इस दौरान उनकी जमापूंजी खत्म हो जाती है और वे अधिक निर्धन बन जाते हैं।

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