अहिंसा का Means, Reseller, विशेषता And Need

अहिंसा का सामान्य Means है-अ + हिंसा। यानि हिंसा का अभाव। किसी प्राणी का घात न करना, अपWord न बोलना तथा मानसिक Reseller से किसी का अहित न सोचना, Single Word में यदि कहा जाए तो दुर्भाव का अभाव तथा समभाव का निर्वाह। मुख्य Reseller से अहिंसा के दो प्रकार होते है-1. निषेधात्मक तथा 2. विधेयात्मक। निषेध का Means होता है किसी चीज को रोकना, न होने देना। अत: निषेधात्मक अहिंसा का Means होता है किसी भी प्राणी के प्राणघात का न होना या किसी भी प्राणी को किसी प्रकार का कष्ट न देना। अहिंसा का निषेधात्मक Reseller ही अक्तिाक लोगों के ध्यान में आता है किन्तु अहिंसा केवल कुछ विशेष प्रकार की क्रियाओं को न करने में ही नहीं होती है, अपितु कुछ विशेष प्रकार की क्रियाओं के करने में भी होती है, जैसे-दया, करुणा, मैत्री, सहायता, सेवा, क्षमा करना आदि। यही सब क्रिया विधेयात्मक अहिंसा कहलाती है।

अहिंसा के Reseller

अहिंसा के दो Reseller मुख्यत: स्वीकार किये गये है-भाव अहिंसा यानि मन में हिंसा न करने की भावना का जाग्रत होना। द्रव्य अहिंसा यानि मन में आये हुए अहिंसा के भाव को क्रियाReseller देना Meansात् उसका वचन और काय से पालन करना, जैसे-हिंसा न करने का संकल्प करने वाला वास्तव में जिस दिन से संकल्प करता है, उस दिन से किसी भी प्राणी की हिंसा न करता है, न कराता है और न करने वाले का अनुमोदन ही करता है। भाव और द्रव्य हिंसा के आधार पर अहिंसा के चार विकल्प इस प्रकार बन सकतेहै-

  1. भाव अहिंसा और द्रव्य अहिंसा-कोर्इ व्यक्ति मन में संकल्प करता है कि वह स्थूल प्राणी की हिंसा नहीं करेगा और सचमुच वह ऐसा ही करता भी है तो ऐसी अहिंसा भावReseller तथा द्रव्यReseller दोनों ही हुर्इ। 
  2. भाव अहिंसा किन्तु द्रव्य अहिंसा नहीं-कोर्इ व्यक्ति किसी भी प्राणी की हिंसा न करने का संकल्प करके यत्नपूर्वक अपनी राह पर चार हाथ भूमि देखते हुए चलता है, फिर भी बहुत से जीवों का अनजाने में घात हो जाता है। अत: यहाँ पर भाव अहिंसा तो हुर्इ किन्तु द्रव्य अहिंसा नहीं हुर्इ। 
  3. भाव अहिंसा नहीं परन्तु द्रव्य अहिंसा-मछुआ मछली मारने के उद्देश्य से नदी किनारे जाल फैलाये हुए बैठा रहता है, किन्तु संयोगवश कभी-कभी वह Single भी मछली नहीं पकड़ पाता है। अत: यहाँ पर भाव अहिंसा तो नहीं किन्तु द्रव्य अहिंसा है। 
  4. न भाव अहिंसा और न द्रव्य अहिंसा-मांसादि के लोभ में पड़ा हुआ आदमी जब मृग आदि जीवों को मारता है तो उसके द्वारा न भाव अहिंसा होती है और न द्रव्य अहिंसा ही।

अहिंसा क्यों?

हिंसा को त्यागने और अहिंसा को अपनाने का यह सर्वविदित कारण है और सामान्य तौर से लोग यही समझते भी है कि हिंसा करने से अन्य प्राणियों को कष्ट पहुँचता है, अत: किसी को कष्ट पहुँचाना उचित नहीं। All प्राणियों को सुख प्रिय तथा दु:ख अप्रिय लगता है, सबको अपनी आत्मा प्यारी होती है, ऐसा जानते हुए भय और वैर से मुक्त होकर किसी भी जीव की हिंसा न करनी चाहिए क्योंकि जिस व्यवहार से Single व्यक्ति Second को कष्ट पहुँचाता है, यदि वही व्यवहार उसके साथ भी Reseller जाये तो उसे भी आनन्द नहीं बल्कि कष्ट ही मालूम होगा। परन्तु अहिंसा पालन करने का यह प्रधान कारण नहीं है, यद्यपि सामान्य जानकारी में इसी को प्रधानता मिलती है। अहिंसा के मार्ग पर चलने का मुख्य उद्देश्य है-आत्म-कल्याण। हिंसा करने वाला व्यक्ति Second का अनिष्ट करने के First अपना अनिष्ट करता है, हिंसा का भाव मन में लाकर वह अपनी आत्मा का पतन करता है, दूसरों से वैर बढ़ाकर उन्हें अपना शत्रु बना लेता है। इस प्रकार वह First अपनी भाव तथा द्रव्य हिंसाएँ करता है। इसके विपरीत यदि कोर्इ अहिंसा को अपनाता है, सबको समान दृष्टि से या आत्मवत देखता है तो उसका कोर्इ भी शत्रु नहीं होता। अत: उसकी द्रव्य हिंसा नहीं होती और चूँकि वह सबको समान समझता है, उसके मन में किसी के प्रति द्वेष नहीं पैदा होता, इसलिए उसका मन दूषित नहीं होता, उसकी आत्मा शुद्ध होती है, पवित्र होती है। आत्मशुद्धि के कारण वह मोक्षमार्ग पर अग्रसर होता है और आगे चलकर जन्म-मरण के बंधन से छूटकर मुक्त हो जाता है। Meansात् अहिंसा पालन से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसी वजह से प्रश्न व्याकरणसूत्र में अहिंसा का First नाम ‘निर्वाण’ दिया गया है। इस प्रकार अहिंसा पालन करने के दो कारण या दो फल हुए-

  1. आत्म-कल्याण या मोक्षप्राप्ति और 
  2. अन्य प्राणियों के प्रति उपकार।

अहिंसा की विशेषता

अहिंसा क्षत्रिय गुण है। कायर व्यक्ति के द्वारा अहिंसा का पालन असंभव है। जिसमें शक्ति है, जो शूर है वही किसी पर दया कर सकता है, जो निरीह प्राणी है, कायर है वह अपनी रक्षा के लिए दूसरों के सामने हाथ फैलाता है, वह दूसरों की रक्षा या दूसरों पर दया नहीं कर सकता है। ‘‘अहिंसा है जाग्रत आत्मा का गुण विशेष’’। यह अन्य गुणों का स्रोत है, मूल है। अतएव इसकी सफल साधना बिना विचार, विवेक, वैराग्य, तपश्चर्या, समता And ज्ञान के नहीं हो सकती। अहिंसा के द्वारा हृदय परिवर्तन होता है। यह मारने का सिद्धान्त नहीं, सुधारने का सिद्धान्त है। यह संहार का नहीं, उद्धार And निर्माण का सिद्धान्त है। यह ऐसे प्रयत्नों का पक्षधर है, जिसके द्वारा Human के अन्तर में मनोवैज्ञानिक परिवर्तन Reseller जा सकता है और अपराध की भावनाओं को मिटाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त-

  1. अहिंसा सर्वश्रेष्ठ Human धर्म है, इसमें पशुबल से अनन्त गुणी अधिक शक्ति And महानता है। 
  2. इससे व्यक्ति के स्वाभिमान और सम्मान भावना की रक्षा होती है।
  3. यदि कोर्इ व्यक्ति अथवा राष्ट्र अहिंसा का पालन करना चाहे तो First उसे अपना सर्वस्व त्यागने को तैयार रहना चाहिए। 
  4. अहिंसा की Single यह भी विशेषता है कि इसकी सहायता बालक, युवा, वृद्ध, स्त्री-पुरुष सब ले सकते है।
  5. अहिंसा जितना लाभ Single व्यक्ति को प्रदान कर सकती है, उतना ही Single जन-समूह को अथवा Single राष्ट्र को। 

Humanता के अन्तर्गत जिन-जिन गुणों का समावेश होता है, उनकी कोर्इ खास सर्वमान्य सूची नहीं बनायी जा सकती। किसी विचारक या धर्म-प्रवर्तक ने किन्हीं खास बातों को Human-धर्म का लक्षण माना, Second ने दूसरी बातों को। इस प्रकार विविध महानुभाव मनुष्य को तरह-तरह के गुणों का आचरण करने का परामर्श प्रदान करते रहे है। आधुनिक युग में गाँधीजी ने ग्यारह व्रतों का पालन आवश्यक ठहराया है-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, शरीर-श्रम, अस्वाद, निर्भयता, सर्वधर्म समभाव, स्वदेशी, स्पर्श भावना (सामाजिक समानता)। विनोबा ने इनमें नम्रता और दृढ़ता को और जोड़ दिया है। प्राय: All आचार्यों या धर्माधिकारियों और नीतिकारों ने मनुष्य के लिए अहिंसा और सत्य को मुख्य माना है और इन गुणों का अपनी-अपनी सूची के आरम्भ में ही स्थान दिया है और इन दोनों गुणों का भी परस्पर में बहुत सम्बन्ध है। गाँधीजी ने सत्य को साध्य और अहिंसा को उसका साधन माना है। अस्तु, उन्होंने अहिंसा को जीवन-धर्म कहा है। हम भी Humanता का मूल अथवा प्रधान गुण अहिंसा को ही समझ कर उसका चिन्तन करते है।

अहिंसा द्वारा हृदय परिवर्तन होता है। यह मारने का सिद्धान्त नहीं, सुधारने का सिद्धान्त है। यह संहार का नहीं, उद्धार And निर्माण का सिद्धान्त है। यह ऐसे प्रयत्नों का पक्षधर है, जिसके द्वारा Human के अन्तस् में मनोवैज्ञानिक परिवर्तन Reseller जा सकता है और अपराध की भावनाओं को मिटाया जा सकता है। अहिंसा द्वारा सबके कल्याण और उéति की भावना उत्पé होती है। इसके आचरण से निभ्र्ाीकता, स्पष्टता, स्वतंत्रता और सत्यता बढ़ती है। अहिंसा से ही विश्वास, आत्मीयता, पारस्परिक प्रेम, निष्ठा आदि गुण व्यक्त होते है। अहंकार, दम्भ, मिथ्या विश्वास, असहयोग आदि का अन्त भी अहिंसा द्वारा सम्भव है। यह Single ऐसा साधन है जो बड़े से बड़े साध्य को सिद्ध कर सकता है। Singleता की भावना अहिंसा का ही Reseller है। अहिंसा ही Single ऐसा शस्त्र है, जिसके द्वारा बिना Single बूंद रक्त बहाये वर्गहीन समाज की स्थापना की जा सकती है। यद्यपि कुछ लोग अहिंसा द्वारा निर्मित समाज को आदर्श या कल्पना की वस्तु मानते है पर यथार्थत: यह समाज काल्पनिक नहीं, प्रत्युत् व्यावहारिक होगा क्योंकि अहिंसा का लक्ष्य यही है कि वर्गभेद या जातिभेद से ऊपर उठकर समाज का प्रत्येक सदस्य अन्य के साथ शिष्टता और Humanता का व्यवहार करे। छल, कपट या इनसे होने वाली छीना-झपटी को अहिंसा द्वारा ही दूर Reseller जा सकता है। वस्तुत: अहिंसा में ऐसी अद्भुत शक्ति है, जिसके द्वारा आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक समस्याओं को सरलतापूर्वक समाहित Reseller जा सकता है। अहिंसा Human को हिंसा से मुक्त करती है। वैर, वैमनस्य, द्वेष, कलह, घृणा, र्इष्र्या, क्रोध, अहंकार, लोभ-लालच, शोषण, दमन आदि जितनी भी व्यक्ति और समाज की ध्वंSeven्मक प्रवृत्तियाँ है, विकृतियाँ है, वे सब हिंसा के Reseller है। Human मन हिंसा के विविध प्रहारों से निरन्तर घायल होता रहता है। इन प्रहारों का शमन करने के लिए अहिंसा की दृष्टि और अहिंसक जीवन ही आवश्यक है। अत: क्रोध को क्रोध से नहीं सरलता व निश्चलता से, लोभ को लोभ से नहीं सन्तोष उदारता से जीतना चाहिए। जिस प्रकार कुएँ में गयी ध्वनि प्रतिध्वनि के Reseller में वापिस लौटती है, उसी प्रकार अहिंSeven्मक क्रियाओं का प्रतिक्रियात्मक प्रभाव कर्त्ता पर ही पड़ता है। कर्त्तव्य-स्वभाव का निर्धारण अहिंSeven्मक व्यवहार द्वारा ही सम्भव है। माता-पिता, पुत्र-पुत्री, भार्इ-बहन, पति-पत्नी आदि के पारस्परिक कर्त्तव्य का अवधारण भावात्मक विकास की प्रक्रिया द्वारा होता है और यह अहिंसा का ही सामाजिक Reseller है। Human-हृदय की आन्तरिक संवेदना की व्यापक प्रगति ही तो अहिंसा है और यही परिवार, समाज और राष्ट्र के उद्भव And विकास का मूल है। यह सत्य है कि उक्त प्रक्रिया में रागात्मक भावना का भी Single बहुत बड़ा अंश है पर यह अंश सामाजिक गतिविधि में बाधक नहीं है।

अहिंसा की Need

अहिंसा तो सदैव आवश्यक है, पर जब हिंसा का वातावरण हो तो वह और अधिक आवश्यक हो जाती है। हिंसा जितनी अधिक होगी, अहिंसा की Need भी उतनी अधिक होगी। जब Human जाति हिंसा की चरम सीमा तक पहुँच चुकी है, ऐसे समय में अहिंसा ही उसकी Safty का Only उपाय है। यदि Human को महाविनाश में विलीन नहीं होना है तो अहिंसा के चिन्तन और व्यवहार का उसे पुन: व्यवहार करना होगा। आज अत्यन्त आवश्यक है Human के कल्याण में आस्था और अहिंसा के प्रयत्नों के विकास की। गाँधीजी ने कहा है, ‘सारा समाज अहिंसा पर उसी प्रकार कायम है, जिस प्रकार कि गुरुत्वाकर्षण से Earth अपनी स्थिति में बनी हुर्इ है।’ समाज में पग-पग पर अहिंसा की Need है। यह Single ऐसा साधन है जो बड़े से बड़े साध्य को सिद्ध कर सकता है। अहिंसा ही Single ऐसा शस्त्र है, जिसके द्वारा बिना बूंद रक्त बहाये वर्गहीन समाज का आदर्श प्रस्तुत Reseller जा सकता है क्योंकि अहिंसा का लक्ष्य यही है कि वर्गभेद या जाति भेद के ऊपर उठकर समाज का प्रत्येक सदस्य अन्य के साथ शिष्टता और Humanता का व्यवहार करे। वस्तुत: अहिंसा में ऐसी अद्भुत शक्ति है, जिसके द्वारा आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक समस्याओं को सरलता पूर्वक समाहित Reseller जा सकता है। अहिंसा के आधार पर सहयोग और सहभागिता की भावना स्थापित करने से समाज को बल मिलता है। Human हृदय की आंतरिक संवेदना की व्यापक प्रगति ही परिवार, समाज और राष्ट्र के उद्भव And विकास का मूल है।

जिस बुद्धि ने अणु की सूक्ष्म शक्ति का विघटन Reseller है, वही बुद्धि अहिंसा की जीवन शक्ति का मार्ग समझने की शक्ति रखती है। Human के कल्याण में आस्था रखनी चाहिए और उन्मुक्त हृदय से अहिंसा के प्रयत्नों का हृदय से स्वागत करना चाहिए। हिंसा में सर्वत्र मृत्यु है। अहिंसा में जीवन का वेग जन्म लेता है। हिंसा भय का मूल है। अहिंसा अभय का मुख्य द्वार उद्घाटित करती है। हिंसा निर्बल का क्षोभ है और अहिंसा बली की धीर वृत्ति है, जिसके आदि, अन्त और मध्य में शान्ति, प्रेम और कैवल्य का अमृत भरा है। बिना अहिंसा के समाज (तथा प्राणी मात्र) रह ही नहीं सकता। यहाँ तक कि सेना आदि हिंसक संगठनों को भी अहिंसा का आसरा लेना पड़ता है। अस्तु, समाज को जीवित रहने, विकास करने और विनाश से बचने के लिए अहिंसा की Need है।

यह संसार अहिंसा के बल पर ही टिका है, हिंसा से तो इसका विनाश हो सकता है। संसार में अहिंसा आवश्यक है, इसीलिए तो समय-समय पर Fight आदि होते रहते है और जिस अनुपात में होते है, उस अनुपात में विनाश होता रहता है। परन्तु यह होते हुए भी संसार सर्वथा Destroy न होकर बना हुआ है और आगे प्रगति होती जा रही है। इससे स्पष्ट है कि संसार में हिंसा की अपेक्षा अहिंसा की अधिकता है और वह संसार को टिकाये हुए है। यह समझना गलत है कि Fight आदि हिंसा-कार्य से संसार की प्रगति हो रही है। यह प्रगति हिंसा के होते हुए भी हो रही है तो इसका कारण यही है कि संसार में हिंसा की अपेक्षा अहिंसा का व्यवहार कहीं अधिक है। गाँधीजी ने कहा है कि संसार आज इसलिए खड़ा है कि यहाँ पर घृणा से प्रेम की मात्रा अधिक है, धोखेबाजी और जोर-जबरदस्ती तो बीमारियाँ है, सत्य और अहिंसा स्वास्थ्य है। यह बात कि संसार अभी तक Destroy नहीं हुआ है, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है कि संसार में रोग से अधिक स्वास्थ्य है। यह जगत् प्रतिक्षण बदलता है, इसमें संहार की इतनी शक्तियाँ है कि कोर्इ स्थिर नहीं रह सकता, लेकिन फिर भी मनुष्य-जाति का संहार नहीं हुआ, इसका Means यही है कि सब जगह अहिंसा ओत-प्रोत है। गुरुत्वाकर्षण शक्ति के समान अहिंसा संसार की सारी चीजों को अपनी तरफ खींचती है। प्रेम में यह शक्ति भरी हुर्इ है। अगर अहिंसा या प्रेम हमारा जीवन-धर्म न होता तो इस मत्र्य लोक में हमारा जीवन कठिन हो जाता। जीवन तो मृत्यु पर प्रत्यक्ष और सनातन विजय-Reseller है। अगर मनुष्य और पशु के बीच कोर्इ मौलिक और सबसे महान् अन्तर है तो वह यही है कि मनुष्य दिनों-दिन इस धर्म का अधिकाधिक साक्षात्कार कर सकता है। संसार के प्राचीन और अर्वाचीन सब सन्त-पुरुष अपनी-अपनी शक्ति और मान्यता के According इस परम जीवन-ध् ार्म के ज्वलंत उदाहरण थे। नि:संदेह यह सच है कि हमारे अन्दर छुपा हुआ पशु कर्इ बार सहज विजय प्राप्त कर लेता है। पर इससे यह सिद्ध नहीं होता कि यह धर्म मिथ्या है। इससे तो केवल यह सिद्ध होता है कि यह आचरण में कठिन है।

आदमी को जीवन के लिए ही अहिंसा की Need है। वह सुख-शांति चाहता है और इसके वास्ते उत्पादन और निर्माण-कार्य करना होता है, यह कार्य भी अहिंसा बिना नहीं हो सकता, इसलिए भी अहिंसा आवश्यक है। ‘Humanता का मूलभूत आधार अहिंसा है-प्राणी मात्र की स्वाभाविक प्रवृत्ति अहिंसामय है। अतएव दैनिक जीवन में अहिंसा की व्यावहारिक Need स्वत: सिद्ध है। किन्तु व्यावहारिक जीवन में शक्ति का भी अपना स्थान है। शक्ति के बिना जीवन पंगु है। परन्तु वह शक्ति पशुबल की नहीं होनी चाहिए क्योंकि पशु-बल संहारक और घातक है। इसके विपरीत अहिंसा की शक्ति महान है। अहिंसा-शक्ति से संहार और विनाश नहीं होता, बल्कि उससे निर्माण होता है और उत्पादन बढ़ता है, जिसके परिणाम-स्वReseller लोक में सुख-शांति बढ़ती है। Human की जो शक्ति विनाश के उपायों में खर्च होती है, वही Humanता के जागृत होने पर निर्माण के कार्यों में व्यय होती है। अहिंसा-संस्कृति की यही सबसे बड़ी सफलता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *