अवलोकन का Means, प्रकार And विशेषताएं

अवलोकन का Means

अवलोकन Word अंग्रेजी भाषा के Word ‘Observation’ का पर्यायवाची है। जिसका Means ‘देखना, प्रेक्षण, निरीक्षण, Meansात् कार्य-कारण And पारस्पारिक सम्बन्धों को जानने के लिये स्वाभाविक Reseller से घटित होने वाली घटनाओं का सूक्ष्म निरीक्षण है। प्रो0 गडे And हॅाट के According विज्ञान निरीक्षण से प्रारम्भ होता है और फिर सत्यापन के लिए अन्तिम Reseller से निरीक्षण पर ही लौटकर आता है। और वास्तव में कोर्इ वैज्ञानिक किसी भी घटना को तब तक स्वीकार नहीं करता जब तक कि वह स्वंय उसका अपनी इन्द्रियों से निरीक्षण नहीं करता।

सी.ए. मोजर ने अपनी पुस्तक ‘सर्वे मैथड्स इन सोशल इनवेस्टीगेशन’ में स्पष्ट Reseller है कि अवलोकन में कानों तथा वाणी की अपेक्षा नेत्रों के प्रयोग की स्वतन्त्रता पर बल दिया जाता है। Meansात्, यह किसी घटना को उसके वास्तविक Reseller में देखने पर बल देता है। श्रीमती पी.वी.यंग ने अपनी कृति ‘‘सांइटिफिक सोशल सर्वेज एण्ड रिसर्च’’ में कहा है कि ‘‘अवलोकन को नेत्रों द्वारा सामूहिक व्यवहार And जटिल सामाजिक संस्थाओं के साथ-साथ सम्पूर्णता की Creation करने वाली पृथक इकार्इयों के अध्ययन की विचारपूर्ण पद्धति के Reseller में प्रयुक्त Reseller जा सकता है।’’ अन्यत्र श्रीमती यंग लिखती है कि ‘‘अवलोकन स्वत: विकसित घटनाओं का उनके घटित होने के समय ही अपने नेत्रों द्वारा व्यवस्थित तथा जानबूझ कर Reseller गया अध्ययन है।’’ इन परिभाषाओं में निम्न बातों पर बल दिया गया है। (1) अवलोकन का सम्बन्ध कृत्रिम घटनाओं And व्यवहारों से न हो कर, स्वाभाविक Reseller से अथवा स्वत: विकसित होने वाली घटनाओं से है। (2) अवलोकनकर्त्ता की उपस्थिति घटनाओं के घटित होने के समय ही आवश्यक है ताकि वह उन्हें उसी समय देख सके। (3) अवलोकन को सोच समझकर या व्यवस्थित Reseller में आयोजित Reseller जाता है।

उपरोक्त परिभाषााओं के अध्ययन से यह स्पष्ट है कि Single निरीक्षण विधि प्राथमिक सामग्री (Primary data) के संग्रहण की प्रत्यक्ष विधि है। निरीक्षण का तात्पर्य उस प्रविधि से है जिसमें नेत्रों द्वारा नवीन अथवा प्राथमिक तत्यों का विचाारपूर्वक संकलन Reseller जाता है। उपरोक्त विश्लेषण के आधार पर हम अवलोकन की निम्न विशेषतायें स्पष्ट कर सकते हैं।

  1. Humanीय इन्द्रियों का पूर्ण प्रयोग- यद्यपि अवलोकन में हम कानों And वाक् शक्ति का प्रयोग भी करते हैं, परन्तु इनका प्रयोग अपेक्षाकृत कम होता है। इसमें नेत्रों के प्रयोग पर अधिक बल दिया जाता है। Meansात्, अवलोकनकर्त्ता जो भी देखता है- वही संकलित करता है। 
  2. उद्देश्यपूर्ण And सूक्ष्म अध्ययन- अवलोकन विधि सामान्य निरीक्षण से भिé होती है। हम हर समय ही कुछ न कुछ देखते रहते हैंय परन्तु वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसे अवलोकन नहीं कहा जा सकता। वैज्ञानिक अवलोकन का Single निश्चित उद्देश्य होता हैय और उसी उद्देश्य को दृष्टिगत रखते हुये समाज वैज्ञानिक सामाजिक घटनाओं का अवलोकन करते हैं। 
  3. प्रत्यक्ष अध्ययन- अवलोकन पद्धति की यह विशेषता है कि इसमें अनुसंधानकर्त्ता स्वयं ही अध्ययन क्षेत्र में जाकर अवलोकन करता है, और वांछित सूचनायें Singleत्रित करता है। 
  4. कार्य-कारण सम्बन्धों का पता लगाना- सामान्य अवलोकन में अवलोकनकर्त्ता घटनाओं को क¢वल सतही तौर पर देखता है, जबकि वैज्ञानिक अवलोकन में घटनाओं के बीच विद्यमान कार्य-कारण सम्बन्धों को खोजा जाता है ताकि उनक¢ आधार पर सिद्धान्तों का निर्माण Reseller जा सक¢। 
  5. निष्पक्षता- अवलोकन में क्योंकि अवलोकनकर्त्ता स्वयं अपनी आँखों से घटनाओं को घटते हुये देखता है, अत: उसके निष्कर्ष निष्पक्ष होते हैं। 
  6. सामूहिक व्यवहार का अध्ययन- सामाजिक अनुसंधान में जिस प्रकार से व्यक्तिगत व्यवहार का अध्ययन करने के लिये ‘‘वैयक्तित्व अध्ययन पद्धति’’ को उत्तम माना जाता है, उसी प्रकार से सामूहिक व्यवहार का अध्ययन करने के लिये अवलोकन विधि को उत्तम माना जाता है। 

अवलोकन की विशेषताएॅ 

  1. प्रत्यक्ष पद्धति- सामाजिक अनुसंधान की दो पद्धितियॉ हैं- प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष। अवलोकन सामाजिक अनुसंधान की प्रत्यक्ष पद्धति है, जिसमें अनुसंधानकत्र्ता सीधे अध्ययन वस्तु को देखता है और निष्कर्ष निकालता है।
  2. प्राथमिक सामग्री- का सामाजिक अनुसंधान में जो सामग्री संग्रहित की जाती है, उसे दो भागों में विभाजित Reseller जा सकता है-प्राथमिक और द्वितीयक। अवलोकन के द्वारा प्रत्यक्षत: सीधे सम्पर्क और सामाजिक तथ्यों का संग्रहण Reseller जाता है।
  3. वैज्ञानिक पद्धति- सामाजिक अनुसंधान अन्य पद्धतियों की तूलना में अवलोकन पद्धति अधिक वैज्ञानिक है, क्योंकि इस पद्धति के द्वारा अपनी ऑखों से देखकर सामग्री का संग्रहण Reseller जाता है। इसलिए उसमें विश्वसनीयता और वैज्ञानिकता रहती है। 
  4. Human इन्द्रियों का पूर्ण उपयोग- अन्य पद्धतियों की तूलना में इनमें Human इन्द्रियों का पूर्ण Reseller से प्रयोग Reseller जाता है। इससे सामाजिक घटनाओं को ऑखों से देखकर जॉच-पड़ताल की जा सकती है। 
  5. विचारपूर्वक And सूक्ष्म अध्ययन- अवलोकन Single प्रकार से उद्देश्यपर्ण होता है। कोर्इ भी अवलोकन क्यों न हो, उसका निश्चित उद्देश्य होता है। 
  6. विश्वसनीयता- अवलोकन पद्धति अधिक विश्वसनीय भी होती है, क्योंकि इसमें किसी समस्या या घटना का उसके स्वाभाविक Reseller से अध्ययन Reseller जाता है। इसलिए इसके द्वारा प्राप्त निष्कर्ष अधिक विश्वसनीय होते हैं।
  7. सामूहिक व्यवहार का अध्ययन- अवलोकन प्रणाली का प्रयोग सामूहिक व्यवहार के अध्ययन के लिए Reseller जाता है। 
  8. पारस्परिक And कार्यकाकरण सम्बन्धों का ज्ञान- इसकी अन्तिम विशेषता यह है कि इसके द्वारा कार्य-कारण सम्बन्धों या पास्परिक सम्बन्धों का पता लगाया जाता है।

अवलोकन की प्रक्रिया 

अवलोकन सोच समझ कर की जाने वाली क्रमबद्ध प्रक्रिया है। अत: अवलोकन प्रारम्भ करने से पूर्व, अवलोकनकर्त्ता अवलोकन के प्रत्येक चरण को सुनिश्चित कर लेता है।

  1. प्रारम्भिक Needयें –अवलोकनकर्त्ता को सर्व First अवलोकन की Resellerरेखा बनाने के लिये यह निश्चित करना पड़ता है कि (1) उसे किसका अवलोकन करना है? (2) तथ्यों का आलेखन कैसे करना है? (3) अवलोकन का कौनसा प्रकार उपयुक्त होगा? (4) अवलोकनकर्त्ता व अवलोकित के मध्य सम्बन्ध किस प्रकार स्थापित Reseller जाना है?
  2. पूर्व जानकारी प्राप्त करना –इस चरण में अवलोकनकर्त्ता निम्न जानकारी पूर्व में प्राप्त कर लेता है। (1) अध्ययन क्षेत्र की इकार्इयों के सम्बन्ध में जानकारी। (2) अध्ययन समूह की सामान्य विशेषताओं की जानकारीय जैसे स्वभाव, व्यवसाय, रहन-सहन, इत्यादि। (3) अध्ययन क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति की जानकारी, घटना स्थलों का ज्ञान And मानचित्र, आदि।
  3. विस्तृत अवलोकन Resellerरेखा तैयार करना –Resellerरेखा तैयार करने के लिये निम्न बातों को निश्चित करना होता है। (1) उपकल्पना के According अवलोकन हेतु तथ्यों का निर्धारण, (2) Needनुसार नियंत्रण की विधियों And परिस्थितियों का निर्धारण, (3) सहयोगी कार्यकर्त्ताओं की भूमिका का निर्धारण।
  4. अवलोकन यंत्र –अवलोकन कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व, उपयुक्त अवलोकन यंत्रों का निर्माण करना आवश्यक होता है:-जैसे:- (1) अवलोकन निर्देशिका या डायरी (2) अवलोकित तथ्यों के लेखन के लिये उचित आकार के अवलोकन कार्ड (3) अवलोकन-अनुसूची And चार्ट-सूचनाओं को व्यवस्थित Reseller से संकलित करने के लिये इनका प्रयोग Reseller जाता है।
  5. अन्य Needयें –इसमें कैमरा, टेप रिकार्डर, मोबाइल आदि को शामिल Reseller जा सकता है। इनकी सहायता से भी सूचनायें संकलित की जाती है।

अवलोकन के प्रकार 

अध्ययन की सुविधा हेतु निरीक्षण को कर्इ भागों में बाटा जाता है। प्रमुख Reseller से निरीक्षण का निम्नवत वर्गीकरण Reseller जा सकता है।

  1. अनियन्त्रित निरीक्षण (Un-controlled observation) 
  2. नियन्त्रित निरीक्षण (Controlled observation) 
  3. सहभागी निरीक्षण (Participant observation) 
  4. असहभागी निरीक्षण (Non-participant-observation) 
  5. अर्द्वसहभागी निरीक्षण (Quasi-participant observation) 
  6. सामूहिक निरीक्षण (Mass observation) 

1. अनियन्त्रित अवलोकन 

अनियन्त्रित निरीक्षण ऐसे निरीक्षण को कहा जा सकता है जबकि उन लोगों पर किसी प्रकार का कोर्इ नियंत्रण न रहे जिनका अनुंसधनकर्ता निरीक्षण कर रहा है। Second Wordों में जब प्राकृतिक पर्यावरण एव अवस्था में किन्ही क्रियाओं का निरीक्षण Reseller जाता है। साथ ही क्रियाये किसी भी बाहय “ाक्ति द्वारा संचालित एंव प्रभावित नही की जाती है तो ऐसे निरीक्षण का अनियंत्रित निरीक्षण कहा जाता है। इस प्रकार के अवलोकन में अवलोकन की जाने वाली घटना को बिना प्रभावित किये हुये, उसे उसके स्वाभाविक Reseller में देखने का प्रयास Reseller जाता है। इसलिए गुड And हाट इसे साधारण अवलोकन (Simple observation) कहते हैं। जहोदा And कुक इसे ‘असंरचित अवलोकनश् (Unstructured observation) का नाम देते हैं। समाज विज्ञानों में इस अवलोकन को स्वतन्त्र अवलोकन (Open observation), अनौपचारिक अवलोकन (Informal observation) तथा अनिश्चित अवलोकन (Undirected observation) भी कहा जाता है। सामाजिक अनुसंधानों में अनियन्त्रित अवलोकन पद्धति ही सर्वाधिक प्रयुक्त होती है। जैसा कि गुड And हाट कहते हैं कि ‘‘मनुष्य के पास सामाजिक सम्बन्धों के बारे में उपलब्ध अधिकांश ज्ञान अनियन्त्रित (सहभागी अथवा असहभागी) अवलोकन से ही प्राप्त Reseller गया है।’’ इस प्रकार उपरोक्त विवेचन अनियन्त्रित अवलोकन की चार विशेषताओं को स्पष्ट करता है।

  1. अवलोकनकर्त्ता पर किसी भी प्रकार का नियन्त्रण नहीं लगाया जाता है। अनियन्त्रित अवलोकन सहभागी अवलोकन नियंत्रित अवलोकन सामूहिक अवलोकन असहभागी अपलरेकल परिस्थिति पर नियंत्रण अर्द्व-सहभागी अवलोकल अवलोकन कर्ता पर नियंत्रण 
  2. अध्ययन की जाने वाली घटना पर भी कोर्इ नियन्त्रण नहीं लगाया जाता है।
  3. घटना का स्वाभाविक परिस्थिति में अध्ययन Reseller जाता है।
  4. यह अत्यन्त सरल And लोकप्रिय विद्यि है। 

अनियन्त्रित अवलोकन की उपयोगिता-

अब आपको स्पष्ट हो गया होगा कि अनियंत्रित अवलोकन, घटनाओं का उनके स्वाभाविक Reseller में अध्ययन करने की प्रविधि है। इसके महत्व को इस प्रकार स्पष्ट Reseller जा सकता है- 

  1. सामाजिक घटनाओं को बिना प्रभावित किये, उन्हें उनके स्वाभाविक Reseller में देखा जाने And सूचनायें Singleत्रित Reseller जाने को संभव बनाना।
  2. अध्ययन में निष्पक्षता व वैषयिकता बनाये को संभव बनाना। 
  3. परिवर्तनशील व जटिल सामाजिक घटनाओं And व्यवहारों के अध्ययन को व्यावहारिक बनाना। 

अनियन्त्रित अवलोकन के दोष-

  1. अवलोकनकर्त्ता इस विश्वास से ग्रसित हो सकता है कि उसने जो कुछ अपनी आँखों से देखा है, वह सब सही है। परिणामस्वReseller, त्रुटियों, भ्रान्तियों आदि की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं। 
  2. कभी-कभी अनावश्यक तथ्यों के संकलित हो जाने के कारण समय, धन व परिश्रम के अपव्यय होने की सम्भावना रहती है। 
  3. घटनाओं को देखते समय अवलोकनकर्त्ता तथ्यों का लेखन नहीं कर पाता है। अत:, आवश्यक सूचनायें छूट भी सकती हैं। 
  4. व्यक्तिगत पक्षपात आ जाने के कारण, वैज्ञानिकता खतरे में पड़ सकती है। 

2. नियन्त्रित अवलोकन

अनियन्त्रित अवलोकन में पायी जाने वाली कमियों जैसे- विश्वसीनयता And तटस्थता का अभाव-ने ही नियन्त्रित अवलोकन का सूत्रपात Reseller है। नियन्त्रित अवलोकन में अवलोकनकर्त्ता पर तो नियन्त्रण होता ही है, साथ ही साथ अवलोकन की जाने वाली घटना अथवा परिस्थिति पर भी नियन्त्रण Reseller जाता है। अवलोकन सम्बन्धी पूर्व योजना तैयार की जाती है, जिसक¢ अन्तर्गत निर्धारित प्रक्रिया And साधनों की सहायता से तथ्यों का संकलन Reseller जाता है। इस प्रकार के अवलोकन में निम्न दो प्रकार से नियन्त्रण लागू Reseller जाता है : – 

  1. सामाजिक घटना पर नियन्त्रण- इस प्रविधि में अवलोकित घटनाओं को नियन्त्रित Reseller जाता है जिस प्रकार प्राकृतिक विज्ञानों में प्रयोगशाला में परिस्थितियों को नियन्त्रित करके अध्ययन Reseller जाता है, उसी प्रकार समाज वैज्ञानिक भी सामाजिक घटनाओं अथवा परिस्थितियों को नियन्त्रित कर के, उनका अध्ययन करता है। तथापि, सामाजिक घटनाओं And Humanीय व्यवहारों को नियन्त्रित करना अत्यन्त कठिन कार्य होता है। इस प्रविधि का प्रयोग बालकों के व्यवहारों, श्रमिकों की कार्य-दषाओं, आदि, क¢ अध्ययनों में प्रयुक्त Reseller जाता है। 
  2. अवलोकनकर्त्ता पर नियन्त्रण- इसमें घटना पर नियन्त्रण न रखकर, अवलोकनकर्त्ता पर नियन्त्रण लगाया जाता है। यह नियन्त्रण कुछ साधनों द्वारा संचालित Reseller जाता है। जैसे- 51 अवलोकन की विस्तृत पूर्व योजना, अवलोकन अनुसूची, मानचित्रों, विस्तृत क्षेत्रीय नोट्स व डायरी, कैमरा, टेप रिकार्डर आदि प्रयुक्त Reseller जाना। नियन्त्रण के सम्बन्ध में गुडे And हाट का कहना है ‘‘सामाजिक अनुसंधान में अध्ययन-विषय पर नियन्त्रण रख सकना तुलनात्मक दृष्टि से कठिन होता हैय अत: अवलोकनकर्त्ता पर नियन्त्रण अधिक व्यावहारिक And प्रभावी प्रतीत होता है।’’ स्पष्ट है कि नियन्त्रित अवलोकन सामाजिक अनुसंधान में वैज्ञानिकता, विश्वसनीयता And तटस्थता की दृष्टि से अनियन्त्रित अवलोकन की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण हैय और यही इसकी लोकप्रियता का आधार है। 

नियन्त्रित And अनियन्त्रित अवलोकनों में अन्तर- 

उपरोक्त दोनों पद्धतियों में निम्न अन्तर स्पष्ट किये जा सकते हैं : – 

  1. नियन्त्रित अवलोकन में घटनाओं And परिस्थितियों को अध्ययन के दौरान कुछ समय तक नियन्त्रित रखना पड़ता है, जबकि अनियन्त्रित अवलोकन में घटनाओं के विभिé पक्षों को, Needनुसार, उनक¢ स्वाभाविक Reseller में अवलोकित Reseller जाता है। 
  2. नियन्त्रित अवलोकन का संचालन पूर्व योजना के According ही Reseller जाता है। अनियन्त्रित अवलोकन बिना पूर्व योजना Reseller जाता है।
  3. नियन्त्रित अवलोकन में अवलोकनकर्त्ता को अपने व्यवहार को पूर्व निर्धारित निर्देशों के According ही क्रियान्वित करना पड़ता है। अनियन्त्रित अवलोकन में इस प्रकार का कोर्इ नियन्त्रण नहीं होता है। 
  4. नियन्त्रित अवलोकन में अवलोकन हेतु कतिपय यन्त्रों-जैसे, अवलोकन निर्देशिका, अनुसूची, अवलोकन कार्ड, आदि-का प्रयोग Reseller जाता हैय जबकि अनियन्त्रित अवलोकन में यन्त्रों की Need प्राय: नहीं पड़ती है।
  5. नियन्त्रित अवलोकन में अवलोकनकर्त्ता को पूर्व निर्धारित निर्देशों के According ही कार्य करना होता है। अत: अध्ययन निष्पक्ष, विश्वसनीय And वस्तु निष्ठ बना रहता है। अनियन्त्रित अवलोकन में घटनाओं को उनके स्वाभाविक Reseller में ही देखा जाता है। अत: पक्षपात की सम्भावना रहती है। 
  6. नियन्त्रित अवलोकन में अवलोकनकर्त्ता पर नियन्त्रण होने के कारण अध्ययन गहन And सूक्ष्म नहीं हो पाता हैय जबकि अनियन्त्रित अवलोकन में अवलोकनकर्त्ता पर नियन्त्रण न होने के कारण अध्ययन स्वाभाविक, गहन And सूक्ष्म हो जाता है। 

3. सहभागी अवलोकन

 सहभागी निरीक्षण की अवधारणा का प्रयोग First एण्डवर्ड लिण्डमैंट ने अपनी पुस्तक में Reseller था इसके बाद ही सहभागी निरीक्षण Single महत्वपूर्ण प्रविधि के Reseller में लोगों के सामने आया, इस प्रविधि को स्पष्ट करते हुए पी0एच0मान से लिखा है ‘‘ सहभागी अवलोकन की तात्पर्य Single ऐसी दषा है जिसमें अवलोकनकर्ता अध्ययन किये जाने वाले समूह को अत्यधिक घनिश्ट सदस्य बन जाता है। पूर्ण-सहभागी अवलोकन से तात्पर्य उस अवलोकन से है जिसमें अवलोकनकर्त्ता अध्ययन किये जाने वाले समूह में जा कर रहने लगता है। उस समूह की All क्रियाओं में Single सदस्य की तरह भाग लेता है। समूह के सदस्य भी उसे स्वीकार कर लेते हैं, और उसे अपने समूह का सदस्य मान लेते हैं। अध्ययनकर्त्ता समूह के उत्सवों, संस्कारों And अन्य क्रियाकलापों में उसी तरह भाग लेता है जिस तरह अन्य सदस्य भाग लेते हैं। जॉन मैज ने अपनी पुस्तक ‘‘द टूल्स इन सोशल साइन्सेस’’ में लिखा है- ‘‘जब अवलोकनकर्त्ता के हृदय 52 की घड़कनें समूह के अन्य व्यक्तियों की धड़कनों में मिल जाती हैं और वह बाहर से आया हुआ कोर्इ अन्जान व्यक्ति नही रह जाता, तो इस प्रकार का अवलोकनकर्त्ता पूर्ण-सहभागी अवलोकनकर्त्ता कहलाने का अधिकार प्राप्त कर लेता है।’’ सन् 1924 में, लिण्ड मैन ने अपनी पुस्तक ‘‘सोशल डिस्कवरी’’ में सर्व First सहभागी अवलोकन Word का प्रयोग Reseller था। लिण्ड मैन ने कहा है कि औपचारिक प्रश्नों पर आधारित साक्षात्कार-विधि द्वारा समस्या के तल में नहीं पहुँचा जा सकता। सामाजिक अन्ताक्रियाओं के पीछे छुपे हुये व्यक्तिपरक तथ्य असहभागिक अवलोकन के नेत्रों से प्राय: औझल हो जाते हैं। अत:, व्यक्तिपरक तथ्यों को समझने के लिये पूर्ण-सहभागी अवलोकन का प्रयोग आवश्यक है। पूर्ण-सहभागी अवलोकन को अधिक स्पष्ट करने के लिये, निम्न विद्वानों की परिभाषाओं पर दृष्टिपात करना उचित रहेगा : – 

  1. श्रीमती पी.वी. यांग – ‘‘सामान्यत: अनियन्त्रित अवलोकन का प्रयोग करने वाला सहभागी अवलोकनकर्त्ता उस समूह के जीवन में ही रहता तथा भाग लेता है जिसका कि वह अध्ययन कर रहा है।’’ 
  2. जार्ज ए. लुण्डबर्ग – ‘‘अवलोकनकर्त्ता अवलोकित समूह से यथासम्भव पूर्ण तथा घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित करता है, Meansात् वह समुदाय में बस जाता है तथा उस समूह के दैनिक जीवन में भाग लेता है।’’ 
  3. श्री जॉन हॉबर्ड जेल और उसमें रहने वाले कैदियों का अध्ययन करने के लिये अनेक वर्षों तक जेल में कैदियों के साथ ही रहे। 
  4. श्री मैलिनोवस्की (Human शास्त्री) ने पश्चिमी प्रशान्त महासागर के तट पर रहने वाली ।हतवदंनज जन-जाति का अध्ययन उनके साथ रह कर ही Reseller। 
  5. फ्रेडलीपले ने श्रमिक परिवारों पर औद्योगिककरण के प्रभावों का अध्ययन करने के लिये सहभागी अवलोकन प्रविधि को ही अपनाया। 

पूर्ण-सहभागी अवलोकन के संदर्भ में चूंकि अध्ययनकर्त्ता को अध्ययन समूह में अपने आपको पूर्णतया सहभागी बना कर इस समूह की उन All क्रियाकलापों में यथासंभव उन्मुक्त Reseller में भाग लेना होता है। तथापि यह भी आवश्यक होता है कि वह अपने उद्देश्य से विचलित न होय Meansात् अपने उद्देश्य के प्रति सदैव सजग रहे। अत:, यह प्रश्न विचारणीय हो जाता है कि अवलोकनकर्त्ता द्वारा समूह को अपने प्रति जागरूक Reseller जाना चाहिये अथवा नहीं? यानि, क्या अवलोकनकर्त्ता द्वारा समूह के लोगों को अपना परिचय And उद्देश्य स्पष्ट कर देना चाहिये? इस संदर्भ में विद्वानों में वैचारिक भिéता है। अमेरिकन समाजशास्त्रियों का मत है कि अवलोकनकर्त्ता को अपना परिचय And मूल उद्देश्य स्पष्ट नहीं करना चाहिये। उसे चालाकी और सजगता से काम लेते हुये समूह की All क्रियाओं में भागीदार निभानी चाहिये और, साथ ही साथ, अपने प्रति समूह के विश्वास को भी बनाये रखना चाहिये। दूसरी ओर Indian Customer समाज शास्त्रियों का मत है कि अवलोकनकर्त्ता को अपना परिचय व उद्देश्य अध्ययन समूह से छिपाना नहीं चाहियेय वरन् उनके मध्य अपना वास्तविक परिचय व उद्देश्य स्पष्ट कर देना चाहियेय अन्यथा समूह के सदस्यों को उस पर सन्देह हो सकता है। ऐसी स्थिति में, समूह के सदस्यों का व्यवहार स्वाभाविक न हो कर कृत्रिमतापूर्ण हो सकता है और यदि ऐसा हुआ तो अवलोकनकर्त्ता अपने उद्देश्य में असफल हो जायेगा। नैतिकता के दृष्टि से भी यह उचित है कि अवलोकनकर्ता को अपना परिचय व उद्देश्य अध्ययन समूह को स्पष्ट कर देना चाहिये। स्पष्ट है, सहभागी अवलोकन में अवलोकनकर्त्ता की व्यवहार कुशलता, वाक पटुता, चतुरता And सजगता ही उसे समूह में अपनी दोहरी भूमिका क¢ निर्वहन में सहायक हो सकते हैं। 

उपरोक्त विश्लेषण से पूर्ण सहभागी अवलोकन की निम्न विशेषतायें स्पष्ट हो जाती हैं- 

  1. अवलोकनकर्त्ता, अवलोकन की जाने वाली परिस्थितियों अथवा समूह में स्वयं भागीदारी करता है। 
  2. अवलोकनकर्त्ता अध्ययन समूह का पूर्ण Resellerेण सदस्य बन जाता है। और उनके All क्रिया कलापों में सक्रिय Reseller से भाग लेता है।
  3. सत्य की खोज के लिये सजगता, वाक् पटुता व चतुरता के साथ वास्तविक तथ्यों का संकलन करने का प्रयास करता है 

सहभागी अवलोकन के गुण –

तथ्य संकलन की Single महत्वपूर्ण प्रविधि के Reseller में पूर्ण-सहभागी अवलोकन के निम्न गुणों को रेखांकित Reseller जा सकता है। 

  1. गहन And सूक्ष्म अध्ययन- अवलोकनकर्त्ता अध्ययन परिस्थिति अथवा समूह में स्वयं प्रत्यक्ष Reseller से लम्बे समय तक भागीदारी निभाता है। अत:, उसे समूह की जितनी सूक्ष्म जानकारी प्राप्त हो जाती है, उतनी अन्य प्रविधियों से सम्भव नहीं है। 
  2. स्वाभाविक व्यवहार का अध्ययन- अवलोकनकर्त्ता समूह में इतना घुलमिल जाता है कि उसकी उपस्थिति समूह के व्यवहार को किसी भी तरह से प्रभावित नहीं करती है। अत:, उसे समूह के वास्तविक व्यवहार को नजदीकी से देखने व अध्ययन करने का अवसर मिलता है। 
  3. अधिक विश्वसनीयता- अवलोकनकर्त्ता सम्बन्धित समूह में रहकर स्वयं अपने नेत्रों से घटनाओं को स्वाभाविक तथा क्रमबद्ध Reseller से घटते हुये देखता है। अत:, संकलित सूचनायें अधिक विश्वसनीय And भरोसा योग्य होती है। 
  4. संग्रहित सूचनाओं का परीक्षण सम्भव- अवलोकनकर्त्ता, व्यक्तिगत Reseller में समूह की विभिé गतिविधियों में भाग लेता रहता है। अत:, शंका होने पर पुन: वैसी ही परिस्थिति में सूचनाओं की शुद्धता And विश्वसनीयता की जाँच सम्भव है। 
  5. सरल अध्ययन- सम्बन्धित समूह का सदस्य बन जाने के कारण अवलोकनकर्त्ता घटनाओं And परिस्थितियों का सरलता से अवलोकन कर सकता है। यही कारण है कि अनेक Humanशास्त्रियों And समाजशास्त्रियों ने छोटे समुदायों, जन – जातियों And साँस्कृतिक समूहों के किसी भी पक्ष का अध्ययन करने में इस विधि का सफलतापूर्वक प्रयोग Reseller है। 

सहभागी अवलोकन के दोष/सीमायें- 

  1. पूर्ण सहभागिता सम्भव नहीं- रेडिन And हरस्कोविट्स ने इस विधि को पूर्णतया अव्यवहारिक कहा है। यह सत्य भी है। उदाहरण क¢ लिए, जनजातियों के साथ सहभागिता क¢ दौरान उनके रीति-रिवाजों, आदतों, मनोवृत्तियों के According अवलोकनकर्त्ता का रहना सम्भव नहीं हो सकता है। इसी प्रकार, पागलों के अध्ययन के दौरान भी सहभागिता सम्भव नहीं है। अत:, एम.एम. बसु ने उचित ही लिखा है- ‘‘Single क्षेत्रीय कार्यकर्त्ता कुछ व्यावहारिक कारणों से अध्ययन किये जाने वाले समुदाय के जीवन में कभी भी पूर्णतया भाग नहीं ले सकता है।’’ 
  2. व्यक्तिगत प्रभाव- अवलोकनकर्त्ता अध्ययन समूह में इतना घुलमिल जाता है कि कभी-कभी अवलोकनकर्त्ता के व्यवहार And स्वभाव का प्रभाव, समूह के व्यक्तियों के व्यवहार में भी परिवर्तन ला देता है। ऐसी स्थिति में, समूह के स्वाभाविक And वास्तविक व्यवहार का अवलोकन सम्भव नहीं हो पाता है। 
  3. साधारण तथ्यों का छूट जाना- कभी-कभी अवलोकनकर्त्ता अध्ययन समूह से सहभागिता के चलते कर्इ महत्वपूर्ण तथ्यों को सामान्य समझ कर छोड़ देता है, जबकि वे तथ्य अध्ययन की दृष्टि महत्वपूर्ण होते हैं। 
  4. वस्तु-निष्ठता का अभाव- अवलोकनकर्त्ता की समूह में अत्याधिक सहभागिता उसमें समूह के प्रति लगाव व आत्मीयता पैदा कर देती है। परिणामस्वReseller, वह समूह के अवगुणों को छिपा कर अच्छाइयों को ही चिन्हित करने लग जाता है, जिससे कि अध्ययन की वस्तुनिष्ठता में कमी आती है। 
  5. अत्यधिक खर्चीली- अवलोकनकर्त्ता को अध्ययन समूह से सहभागिता प्राप्त करने And उनका विश्वास जीतने में काफी समय के साथ-साथ अधिक धन भी व्यय करना पड़ता है। 
  6. सीमित क्षेत्र का अध्ययन- इस प्रविधि से बड़े समुदाय के All लोगों का अध्ययन सम्भव नहीं है। अत:, इस प्रविधि का प्रयोग लघु समुदाय में ही संभव है। 
  7. भूमिका सामन्जस्य में कठिनार्इ- अवलोकनकर्त्ता को दो भूमिकाओं का निर्वहन करना होता है। Single भूमिका अवलोकनकर्त्ता की And दूसरी समूह के सदस्य की। दोनों भूमिकाओं के उचित निर्वहन से ही वह निष्पक्ष सूचनायें Singleत्रित कर सकता है। अन्यथा ‘भूमिका संघर्ष’ अवलोकनकर्त्ता की मेहनत पर पानी फेर सकता है। मोजर ने लिखा है- ‘‘सहभागिक अवलोकन Single व्यक्ति प्रधान क्रिया है, अत: इसकी सफलता बहुत कुछ अवलोकनकर्त्ता के व्यक्तिगत गुणों पर निर्भर करती है।’’ 

4. असहभागिक अवलोकन

यह विधि सहभागी अवलोकन के विपरीत है। इस प्रकार की क्रिया में निरीक्षणकर्ता समुदाय का न तो अस्थार्इ सदान्य बनता है और न उनकी क्रियाओं में भागीदार ही होता है इस से ही निरीक्षण कर उसकी गहरार्इ में जाने का प्रयत्न करता है। वह सामुहिक जीवन में स्वंय प्रवेश करने के बजाए उसके बाहय पहलुओं का ही निरीक्षण करता है। इस प्रकार से निश्पदन एव स्वत्रंतापूर्वक अध्ययन इस प्रकार की प्रवधि की विशेषता है इसमें अवलोकनकर्त्ता अध्ययन समूह के बीच उपस्थिति रहते हुये भी, उनके क्रियाकलापों में भागीदारी नहीं निभाता हैय वरन् तटस्थ तथा पृथक रहते हुए वह Single मूक दर्शक की तरह घटनाओं को घटते हुए देखता है, सुनता है And उनका आलेखन करता है। जैसे किसी महाविद्यालय के वार्षिकोत्सव में अतिथियों के साथ बैठकर घटनाओं का निरीक्षण करना। तथापि, यह आवष्यक है कि असहभागी अवलोकनकर्त्ता को अपनी उपस्थिति से समूह के घटनाक्रम को प्रभावित नहीं होना देना चाहिये। 

असहभागी अवलोकन की विशेषतायें- 

उपरोक्त विवेचन से असहभागी अवलोकन की निम्न विशेषताओं को रेखांकित कर सकते हैं : –

  1. वस्तु परकता- अवलोकनकर्त्ता अध्ययन समूह में घुलता मिलता नहीं है, वरन् Single मौन दर्शक के ही Reseller में रह कर तथ्यों का संकलन करता है। अत:, उसके अध्ययन में वस्तु-निष्ठता बनी रहती है। 
  2. कम खर्चीली- सहभागी अवलोकन की तुलना में अपेक्षाकृत समय व धन कम खर्च होता है। तथा भूमिका सामंजस्य की समस्या से भी मुक्ति मिल जाती है। 
  3. विश्वसनीयता- अवलोकनकर्त्ता अपरिचित के Reseller में होता है। अत: अध्ययन समूह के सदस्य बिना हिचकिचाये स्वाभाविक Reseller से व्यवहार करते हैं। अत:, तथ्यों की विश्वसनीयता बनी रहती है। 

असहभागी अवलोकन के दोष- 

  1. पूर्ण असहभागिता सम्भव नहीं हो पाती हैय Meansात् अवलोकनकर्त्ता प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष Reseller से कहीं न कहीं घटनाओं से प्रभावित हो सकता है। 
  2. यदि अध्ययन समूह के सदस्यों को अवलोकनकर्त्ता पर सन्देह हो जाने की दषा में, उनके व्यवहार में कृत्रिमता आ सकती है।
  3. अवलोकनकर्त्ता घटनाओं को केवल अपने दृष्टिकोण से ही देखता है जिससे मौलिकता संदेहपूर्ण हो सकती है। 
  4. अचानक घटित होने वाली घटनाओं का अध्ययन इस प्रविधि से सम्भव नहीं है। 
  5. इस प्रविधि से गहन अध्ययन सम्भव नहीं होता है। 

उपरोक्त विश्लेषण के आधार पर, आप सहभागी व असहभागी अवलोकन में निम्न अन्तर स्पष्ट कर सकते हैं : – 

  1. अध्ययन की प्रकृति- सहभागी अवलोकन में अवलोकनकर्त्ता सामुदायिक जीवन की गहरार्इ तक पहुँच कर समूह का गहन, आन्तरिक And सूक्ष्म अध्ययन कर सकता है। इसके विपरीत असहभागी अवलोकन से समूह के केवल बाहरी व्यवहार का अध्ययन सम्भव हो सकता है। गोपनीय सूचनायें प्राप्त नहीं की जा सकती हैं। 
  2. सहभागिता का स्तर- सहभागी अवलोकन में अवलोकनकर्त्ता स्वयं अध्ययन समूदाय में जा कर रच बस जाता है And उसके क्रिया कलापों में सक्रियता से भाग लेता है। असहभागी अवलोकन में अवलोकनकर्त्ता की स्थिति Single अपरिचित की रहती हैय Meansात् वह अध्ययन समूह से पृथक व तटस्थ रह कर अध्ययन करता है। 
  3. सूचनाओं की पुर्नपरीक्षा- सहभागी अवलोकन में सहभागिता के कारण अवलोकनकर्त्ता प्राप्त सूचनाओं की शुद्धता की जाँच कर सकता है, जबकि अहसभागी अवलोकन में अवलोकनकर्त्ता कभी-कभी या घटनाओं के घटने की सूचना मिलने पर ही अध्ययन समूह में जाता है। अत:, अवलोकित घटनाओं की पुर्नपरीक्षा सम्भव नहीं हो पाती है।
  4. सामूहिक व्यवहार की प्रकृति- सहभागी अवलोकन में अवलोकनकर्त्ता सामूदायिक जीवन में घुलमिल जाता है। अत:, घटनाओं का अवलोकन उनके सरल And स्वाभाविक Reseller में सम्भव होता है जबकि असहभागी अवलोकन में अवलोकनकर्त्ता के Single अपरिचित व्यक्ति के Reseller में होने के कारण लोग उसे शंका And संदेह की दृष्टि से देखते हैं। अत:, स्वाभाविक Humanीय व्यवहार का अध्ययन सम्भव नहीं होता है।
  5. समय व धन- सहभागी अवलोकन समय व धन दोनों की दृष्टि से खचÊला है, क्योंकि अवलोकनकर्त्ता को लम्बे समय तक अध्ययन समूह में रहना पड़ता है। इसकी तुलना में असहभागी अवलोकन में समय व धन तुलनात्मक Reseller से कम खर्च होता हैं। 

     5. अर्द्धसहभागी अवलोकन-

पूर्ण सहभागिता And पूर्ण असहभागिता दोनों ही स्थितियाँ व्यावहारिक दृष्टि से असम्भव होती है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुये, गुडे And हॉट ने मध्यम मार्ग को अपनाने का सुझाव दिया है। Meansात्, अर्द्धसहभागी अवलोकन, सहभागी And असहभागी अवलोकन दोनों का समन्वय है। इस प्रकार के अवलोकन में अवलोकनकर्त्ता परिस्थिति, Need और घटनाओं की प्रकृति के 56 According कभी अध्ययन समूह में सहभागिता निभाते हुए सूचनायें Singleत्रित करता है, और कभी उससे पूर्णतया पृथक रह कर Single मूक दर्शक के Reseller में सूचनायें Singleत्रित करता है। विलियन àाइट का मानना है कि ‘‘हमारे समाज की जटिलता को देखते हुये पूर्ण Singleीकरण का दृष्टिकोण अव्यावहारिक रहा है। Single वर्ग के साथ Singleीकरण से उसका सम्बन्ध अन्य वर्गों से समाप्त हो जाता है। अत: अर्द्ध-सहभागिता अधिक संभव होने क¢ साथ ही उपयुक्त भी प्रतीत होती है।’’ 

6. सामूहिक अवलोकन

सामूहिक अवलोकन में अध्ययन की जाने वाली घटना के विभिé पक्षों का Singleाधिक विषय-विशेषज्ञों द्वारा अवलोकन Reseller जाता है, स्पष्ट है कि सामूहिक अवलोकन में अवलोकन का कार्य कर्इ व्यक्तियों के माध्यम से Reseller जाता है। इन All अवलोकनकर्त्ताओं में कार्य को बाँट दिया जाता है, और उनके कार्यों का समन्वय Single केन्द्रीय संगठन द्वारा Reseller जाता है। 

सामूहिक अवलोकन का प्रयोग 1984 में इंग्लैण्ड में वहाँ के निवासियों के जीवन, स्वभाव व विचारों के अध्ययन हेतु Reseller गया था। 1944 में जमैका में स्थानीय दशाओं के अध्ययन हेतु भी इस विधि का प्रयोग Reseller गया था। यह प्रविधि खर्चीली होने के साथ-साथ कुशल प्रशासन भी चाहती है। इसी वजह से इस विधि का प्रयोग व्यक्ति के बजाय सरकारी या अर्द्ध सरकारी संस्थानों द्वारा अधिक Reseller जाता है। 

सामूहिक अवलोकन के गुण- 

  1. यह अध्ययन की सहकारी And अन्तर- अनुKingीय विधि है। 
  2. इसमें अध्ययन विश्वसनीय And निष्पक्ष होता है। 
  3. व्यक्तिगत पक्षपात की सम्भावना नहीं होती है। 
  4. इसमें नियन्त्रित And अनियन्त्रित अवलोकन विधियों का मिश्रण होता है। 
  5. इसमें व्यापक क्षेत्र का अध्ययन सम्भव है। 
  6. गहन अध्ययन And पुन: परीक्षण सम्भव है। 

सामूहिक अवलोकन की सीमाएँ – 

  1. Single से अधिक कुशल अवलोकन कर्त्ताओं को जुटा पाना कठिन कार्य है। 
  2. विभिन्न अवलोकनकर्त्ताओं के कार्यों में परस्पर समन्वय व सन्तुलन बनाया जाना आसान नहÈ है। 
  3. वांछित मात्राओं में समय, धन And परिश्रम की व्यवस्था कर पाना आसान नहÈ है। 
  4. इस प्रविधि का प्रयोग प्राय: सरकारी संगठनों के द्वारा ही अधिक संभव है। 

अवलोकन पद्धति- उपयोगिता And सीमायें

 इस इकार्इ के अध्ययन के पश्चात आप अवलोकन पद्धति की उपयोगिता को निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट कर सकते हैं- 

  1. सरलता : यह विधि अपेक्षाकृत सरल है। अवलोकन करने के लिये अवलोकनकर्त्ता को कोर्इ विशेष प्रशिक्षण की Need नहीं होती है। 
  2. स्वाभाविक पद्धति : Human आदि काल से ही स्वाभावत: अवलोकन करता आया है। 
  3. वैषयिकता : चूँकि इस विधि में अवलोकनकर्त्ता घटनाओं को अपनी आँखों से देख कर उनका हूबहू description प्रस्तुत करता है। अत: वैषयिकता बनी रहती है। 
  4. विश्वसनीयता : अध्ययन निष्पक्ष होने के कारण विश्वसनीयता बनी रहती है। 
  5. सत्यापन शीलता : संकलित सूचनाओं पर संशय होने पर पुन: परीक्षण सम्भव होता है। 
  6. उपकल्पना का स्त्रोत : अवलोकन के दौरान अवलोकनकर्त्ता द्वारा घटना के प्रत्यक्ष निरीक्षण के कारण घटनाओं के प्रति नवीन विचारों And उपकल्पनाओं की उत्पत्ति होती है, जो भावी अनुसन्धान का आधार बनती है। 
  7. सर्वाधिक प्रचलित पद्धति : अपनी सरलता, सार्थकता And वस्तुनिष्ठता के कारण अवलोकन सर्वाधिक लोकप्रिय पद्धति है। 

अवलोकन पद्धति की सीमायें:-

इस विधि की कुछ सीमायें भी है-

  1. All घटनाओं का अध्ययन सम्भव नहीं – कुछ घटनाओं का अध्ययन सम्भव नहीं हो पाता। जैसे- (i) पति-पत्नि के व्यक्तिगत व व्यावहारिक जीवन का अवलोकन (ii) कुछ घटनाओं के घटित होने का समय व स्थान का निश्चित ना होना। जैसे पति-पत्नि की कलह, साह-बहू का तकरार। (iii) अमूर्त घटनायें, जैसे, व्यक्ति के विचार, भावनायें, मनोदशा आदि। 
  2. व्यवहार में कृत्रिमता – कभी-कभी अवलोकन के दौरान लोग अपने स्वाभाविक व्यवहार से हटकर नाटकीय व्यवहार करते हैं। परिणामस्वReseller सही निष्कर्ष नहीं निकल पाते हैं। 
  3. सीमित क्षेत्र – समय, धन And परिश्रम की सीमितता के चलते यह विधि सीमित क्षेत्र का ही अध्ययन कर पाती है।
  4. पक्षपात- अवलोकित समूह के व्यवहार में कृत्रिमता And अवलोकनकर्त्ता के मिथ्या-झुकाव के कारण अध्ययन में पक्षपात आने की सम्भावना रहती है। 
  5. ज्ञानेन्द्रियों में दोष – कभी-कभी ज्ञानेन्द्रियाँ वास्तविक व्यवहार को समझने में समर्थ नहीं होती हैं जबकि अवलोकन में ज्ञानेन्द्रियों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। ऐसी स्थिति में अध्ययन प्रभावित होता है।

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