Meansव्यवस्था का Means, विशेषताएं And प्रकार

Meansव्यवस्था का Means, विशेषताएं And प्रकार

By Bandey

अनुक्रम

Meansव्यवस्था Humanीय Needओं की संतुष्टि करने के लिये Single Human निर्मित संगठन है। ए.जे. ब्राउन के According, ‘‘Meansव्यवस्था Single ऐसी पद्धति है जिसके द्वारा लोग जीविका प्राप्त करते हैं।’’ जिस विधि से मनुष्य जीविका प्राप्त करने का प्रयास करता है वह समय तथा स्थान के सम्बन्ध में भिन्न होती है। प्राचीनकाल में, ‘जीविका प्राप्त करना’ सरल था परन्तु सभ्यता के विकास के साथ यह अत्यंत जटिल हो गया है। यहां यह ध्यान देना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि जिस विधि से व्यक्ति जीविका अर्जन करता है वह वैध तथा न्यायपूर्ण होनी चाहिए। अन्यायपूर्ण तथा अवैध कार्य जैसे लूटपाट, तस्करी से भी किसी को आय अर्जित हो सकती है परन्तु इसे लाभदायक आर्थिक गतिविधि अथवा जीविका प्राप्त करने की पद्धति की श्रेणी में नहीं लेना चाहिये। इसलिये यह कहना उपयुक्त होगा कि Meansव्यवस्था Single संCreation है जहां सारी आर्थिक गतिविधियां पूरी होती है।

Meansव्यवस्था की मुख्य विशेषताएं

Meansव्यवस्था की कुछ मुख्य विशेषताएं है :-


  1. आर्थिक संस्थाएं Human निर्मित होती है। अत: Meansव्यवस्था वैसी ही होती है, जैसी हम उसे बनाते हैं।
  2. आर्थिक संस्थाएं सृजित, विघटित, प्रतिस्थापित अथवा परिवर्तित हो सकती हैं। उदाहरण के लिये यू.एस.एस.आर. में 1917 में साम्यवाद ने पूंजीवाद को विस्थापित कर दिया तथा 1989 में भूतपूर्व यू.एस.एस.आर. में आर्थिक सुधारों की श्रृंखला के माध्यम से साम्यवाद ध्वस्त हो गया। भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात 1947 में आर्थिक तथा सामाजिक सुधारों द्वारा हमने जमींदारी पद्धति का उन्मूलन कर दिया तथा अनेक भूमि सुधार लागू किये।
  3. आर्थिक गतिविधियों के स्तर में परिवर्तन होता रहता है।
  4. उत्पादक तथा उपभोक्ता समान व्यक्ति होते हैं। इस प्रकार उनकी भूमिका दोहरी होती है। उत्पादकों के Reseller में वे कार्य करते हैं तथा कुछ वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन करते हैं और उसी को उपभोक्ताओं के Reseller में उपभोग करते हैं।
  5. उत्पादन, उपभोग तथा निवेश Meansव्यवस्था की अति आवश्यक गतिविधियां होती हैं।
  6. आधुनिक जटिल Meansव्यवस्थाओं में हम मुद्रा को विनिमय के माध्यम के Reseller में प्रयोग करते हैं।
  7. आजकल Meansव्यवस्था मे सरकारी हस्तक्षेप को अवांछनीय समझा जाता है तथा All प्रकार की Meansव्यवस्थाओं में कीमतों And बाजार शक्तियों की स्वतंत्र Reseller से कार्य करने की वरीयता में वृद्धि हो रही है।

Meansव्यवस्था के प्रकार

जैसा कि आप जानते हैं, Meansव्यवस्था Single Human-निर्मित संगठन है, जिसका समाज की Needओं के According सृजन, विघटन तथा उसमें परिवर्तन Reseller जाता है। हम विभिन्न प्रकार की आर्थिक पद्धतियों में निम्नलिखित मानदण्डों के आधार पर भेद कर सकते हैं।

उत्पादन के साधनों अथवा संसाधनों के स्वामित्व तथा नियंत्रण के आधार पर

संसाधनों पर निजी व्यक्तियों का पूर्ण स्वामित्व हो सकता है। उन्हें इनका प्रयोग कर मन चाहा लाभ कमाने की छूट हो सकती है। अथवा ये सामूहिक स्वामित्व (सरकारी नियंत्रण) में हो सकते हैं तथा सम्पूर्ण समाज के सामूहिक कल्याण के लिये इनका उपयोग Reseller जा सकता है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता के स्तर तथा लाभ के उद्देश्य की कसौटी के आधार पर Meansव्यवस्थाओं का नामकरण इस प्रकार हो सकता है:

  • (अ) पूंजीवादी अथवा स्वतंत्र उद्यम Meansव्यवस्था
  • (ब) समाजवादी अथवा केन्द्रीय नियोजित Meansव्यवस्था
  • (स) मिश्रित Meansव्यवस्था

अब हम इनकी मुख्य विशेषताओं की संक्षेप में Discussion करेंगे।

(अ) पूंजीवादी Meansव्यवस्था

पूंजीवादी या स्वतंत्र उद्यम Meansव्यवस्था Meansव्यवस्थाओं का प्राचीनतम स्वReseller है। प्राचीन Meansशास्त्री आर्थिक मामलों में ‘पूर्ण स्वतंत्रता’ के पक्षधर थे। वे आर्थिक कार्यों में सरकारी हस्तक्षेप न्यूनतम स्तर तक सीमित रखना चाहते थे। पूंजीवादी Meansव्यवस्था की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं; 

  1. निजी संपत्ति – पूंजीवादी प्रणाली में प्रत्येक व्यक्ति को संपत्ति का स्वामी होने का अधिकार होता है। व्यक्ति अपनी संपत्ति को पाकर उसे अपने परिवार के लाभार्थ प्रयोग करने को स्वतंत्र होते हैं। भूमि, मशीनों, खानों, कारखानों के स्वामित्व, लाभ कमाने और धन संग्रह करने पर कोई रूकावट नहीं लगाई जाती है। व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात उसकी संपत्ति उसके कानूनी उत्तराधिकारियों के नाम अन्तरित हो जाती है। इस प्रकार उत्तराधिकार का नियम निजी संपत्ति व्यवस्था को जीवित रखता है।
  2. उद्यम की स्वतंत्रता – पूंजीवादी Meansव्यवस्था में सरकार नागरिकों की उत्पादक गतिविधियों में समन्वय लाने का प्रयास नहीं करती। All व्यक्ति अपना व्यवसाय चुनने को स्वतंत्र होते हैं। उद्यम की स्वतंत्रता का Means है कि All फर्में संसाधन प्राप्त कर उन्हें अपनी किसी वस्तु और सेवा के उत्पादन में लगाने के लिये स्वतंत्र होती हैं। ये फर्में अपने इच्छित बाजारों में अपना उत्पादन बेचने को भी स्वतंत्र होती हैं। इसी प्रकार प्रत्येक श्रमिक अपना रोजगार और रोजगारदाता चुनने को स्वतंत्र रहता है। छोटी व्यवसायिक इकाइयों में उनके मालिक स्वयं ही उत्पादन से जुड़े जोखिम उठाते हैं तथा लाभ अथवा हानि उठाते हैं। किन्तु आधुनिक निगमित व्यवसाय में जोखिम अंशधारियों के हिस्से में आते हैं और व्यवसाय का संचालन वेतनभोगी ‘निदेशक’ करते हैं। अत: लाभ कमाने के लिये अपनी पूंजी को प्रयोग कर अपना ही नियंत्रण होना आवश्यक नहीं रह गया है। सरकार या कोई अन्य संस्था श्रमिकों के किसी उद्योग में आने या उससे बाहर जाने पर कोई बंधन नहीं लगाती। प्रत्येक श्रमिक वही रोजगार चुनता है जहां से उसे अधिकतम आय प्राप्त हो सके।
  3. उपभोक्ता प्रभुत्व – पूंजीवादी Meansव्यवस्था में उपभोक्ता King के समान होता है। उपभोक्ता अधिकतम संतुष्टिदायक वस्तुओं और सेवाओं पर अपनी आय खर्च करने को पूरी तरह स्वतंत्र होते हैं। पूंजीवादी व्यवस्थाओं में उत्पादन कार्य उपभोक्ताओं द्वारा किये गये चयनों के According किये जाते हैं। उपभोक्ता की निर्बाध स्वतंत्रता को ही उपभोक्ता की सत्ता का नाम दिया जाता है।
  4. लाभ का उद्देश्य – पूंजीवाद में मार्गदर्शन करने का सिद्धान्त स्वयं का हित होता है। उद्यमी जानते हैं कि अन्य उत्पादक साधनों को भुगतान के बाद लाभ अथवा हानि उनकी होगी। अत: वे सदैव लागत को न्यूनतम और आगम को अधिकतम करने का प्रयास करते रहते हैं ताकि उनको मिलने वाला अन्तर (लाभ) अधिकतम हो जाए। इसी से पूंजीवादी Meansव्यवस्था कुशल और स्वयं नियंत्रित Meansव्यवस्था बन जाती है।
  5. प्रतियोगिता – पूंजीवादी पद्धति में किसी व्यवसाय में फर्मों के प्रवेश और उसकी निकासी पर कोई प्रतिबंध नहीं होता है। प्रत्येक वस्तु और सेवा के बहुत से उत्पादक बाजार में वस्तु की आपूर्ति कर रहे होते हैं। इस कारण कोई फर्म सामान्य से अधिक लाभ नहीं कमा पाती। प्रतियोगिता पूंजीवाद की Single आधारभूत विशेषता है और इसी के कारण उपभोक्ता का शोषण से बचाव होता है। यद्यपि आजकल फर्मों के बड़े आकार और उत्पाद विभेदन के कारण बाजार में कुछ Singleाधिकारी प्रवृत्तियां पनप रही हैं, फिर भी फर्मों की बड़ी संख्या और उनके बीच कड़ी प्रतियोगिता साफ दिखाई पड़ जाती है।
  6. बाजारों और कीमतों का महत्व – पूंजीवाद की निजी संपत्ति, चयन की स्वतंत्रता, लाभ का उद्देश्य और प्रतियोगिता की विशेषताएं ही बाजार की कीमत प्रणाली के सुचारू Reseller से काम करने के लिये उपयुक्त परिस्थितियों का निर्माण करती हैं। पूंजीवाद मूलत: बाजार आधारित व्यवस्था है जिसमें प्रत्येक वस्तु की Single कीमत होती है। उद्योगों में मांग और आपूर्ति की शक्तियां ही कीमत का निर्धारण करती हैं। जो फर्में उस निश्चित कीमत के According अपने उत्पादन को ढाल पाती हैं वही समान्य लाभ कमाने में सफल रहती हैं। अन्यों को उद्योग से पलायन करना पड़ता है। प्रत्येक उत्पादक उन्हीं वस्तुओं का उत्पादन करेगा जिनसे उसे अधिकतम लाभ मिल सके। 
  7. सरकारी हस्तक्षेप का अभाव – स्वतंत्र बाजार अथवा पूंजीवादी Meansव्यवस्था में समन्वयकारी संस्था का कार्य कीमत प्रणाली करती है। सरकारी हस्तक्षेप और सहारे की कोई Need नहीं होती। सरकार की भूमिका बाजार व्यवस्था के स्वतंत्र और कुशल संचालन में सहायता करती है।

(ब) समाजवादी Meansव्यवस्था

समाजवादी या केन्द्रीय नियोजित Meansव्यवस्थाओं में समाज के All उत्पादक संसाधनों पर समाज के बेहतर हितों की पूर्ति के लिये सरकार का स्वामित्व और नियंत्रण रहता है। सारे निर्णय किसी केन्द्रीय योजना प्राधिकरण द्वारा लिये जाते हैं। Single समाजवादी Meansव्यवस्था की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं:

  1. उत्पादन के संसाधनों का सामूहिक स्वामित्व – समाजवादी Meansव्यवस्था में जनता की ओर से उत्पादन के संसाधनों पर सरकार का स्वामित्व होता है। यहां निजी संपत्ति का अधिकार समाप्त हो जाता है। कोई व्यक्ति किसी उत्पादक इकाई का स्वामी नहीं हो सकता। वह धन संग्रह कर उसे अपने उत्तराधिकारियों को भी नहीं सौंप सकता। परन्तु लोगों को व्यक्तिगत प्रयोग के लिये कुछ दीर्घोपयोगी उपभोक्ता पदार्थ अपने पास रखने की छूट होती है।
  2. समाज के कल्याण का ध्येय – सरकार, समष्टि स्तर पर, All निर्णय निजी लाभ नहीं बल्कि अधिकतम सामाजिक कल्याण की प्राप्ति के उद्देश्य से करती है। मांग और आपूर्ति की शक्तियों की भूमिका इतनी महत्वपूर्ण नहीं होती। All निर्णय ध्यानपूर्वक कल्याण के उद्देश्य से प्रेरित होकर लिये जाते हैं।
  3. केन्द्रीय नियोजन – आर्थिक नियोजन समाजवादी Meansव्यवस्था की Single मूलभूत विशेषता है। केन्द्रीय योजना प्राधिकरण संसाधनों की उपलब्धता का आकलन कर उन्हें राष्ट्रीय वरीयताओं के According आबंटित करता है। सरकार ही वर्तमान और भावी Needओं को ध्यान में रखते हुए ‘उत्पादन, उपभोग और निवेश संबंधी All आर्थिक निर्णय लेती है। योजना अधिकारी प्रत्येक क्षेत्र के लक्ष्यों का निर्धारण करते हैं और संसाधनों का कुशल प्रयोग सुनिश्चित करते हैं। 
  4. विषमताओंं में कमी – पूंजीवादी Meansव्यवस्थाओं में आय और संपत्ति की विषमताओं का मूल कारण निजी संपत्ति और उत्तराधिकार की व्यवस्थाएं हैं। इन दोनों व्यवस्थाओं को समाप्त कर Single समाजवादी आर्थिक व्यवस्था आय की विषमताओं को कम करने में समर्थ होती है। यह ध्यान रहे कि किसी भी व्यवस्था में आय और संपत्ति की पूर्ण समानता को न तो वांछनीय माना जाता है और न ही यह व्यवहारिक है।
  5. वर्ग संघर्ष की समाप्ति – पूंजी Meansव्यवस्थाओं में श्रमिकों और प्रबंधकों के हित भिन्न होते हैं। ये दोनों वर्ग ही अपनी आय और लाभ को अधिकतम करना चाहते हैं। इसी से पूंजीवाद में वर्ग संघर्ष उत्पन्न होता है। समाजवाद में वर्गों में कोई प्रतियोगिता नहीं होती। All व्यक्ति श्रमिक होते हैं इसलिये कोई वर्ग संघर्ष नहीं होता। All सह-कर्मी होते हैं।

(स) मिश्रित Meansव्यवस्था

मिश्रित Meansव्यवस्था में समाजवाद और पूंजीवाद की सबसे अच्छी विशेषताओं को सम्मिलित Reseller जाता है। अत: इनमें पूंजीवादी स्वतंत्र उद्यम और समाजवादी सरकारी नियंत्रणें के कुछ तत्व मिले रहते हैं। मिश्रित Meansव्यवस्था में निजी और सार्वजनिक क्षेत्रकों का सह-अस्तित्व रहता है। मिश्रित Meansव्यवस्था की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं :

  1. निजी तथा सार्वजनिक क्षेत्र कों का सह-अस्तित्व निजी क्षेत्रक में वे उत्पादन इकाइयां आती हैं जो निजी स्वामित्व में होती हैं तथा लाभ के उद्देश्य के लिये कार्य करती हैं। सार्वजनिक क्षेत्रक में वे उत्पादन इकाइयां सम्मिलित की जाती हैं जो सरकार के स्वामित्व में होती हैं तथा सामाजिक कल्याण के लिये कार्य करती हैं। सामान्यत: दोनों क्षेत्रकों के आर्थिक कार्य क्षेत्रों का स्पष्ट विभाजन रहता है। सरकार अपनी लाइसेंस, करारोपण, कीमत, मौद्रिक और राजकोषीय नीतियों द्वारा निजी क्षेत्र के कार्यों पर नियंत्रण और उनका नियमन करती है।
  2. व्यक्तिगत स्वतंत्रता – व्यक्ति अपनी आय को अधिकतम करने के लिये आर्थिक क्रियाओं में संलग्न रहते हैं। वे अपना व्यवसाय और उपभोग चुनने के लिये स्वतंत्र होते हैं। परन्तु उत्पादकों को श्रमिकों और उपभोक्ताओं का शोषण करने की छूट नहीं दी जाती है। जन-कल्याण की दृष्टि से सरकार उन पर कुछ नियंत्रण लागू करती है। उदाहरणार्थ, सरकार हानिप्रद वस्तुओं के उत्पादन और उपभोग पर रोक लगाती है। परन्तु सरकार द्वारा जनहित में बनाये गये कानूनों और प्रतिबंधों के दायरे में रहते हुए निजी क्षेत्र ‘पूर्ण स्वतंत्रता का उपयोग’ कर सकता है।
  3. आर्थिक नियोजन – सरकार दीर्घकालीन योजनाओं का निर्माण कर Meansव्यवस्था के विकास में निजी And सार्वजनिक उद्यमों के कार्यक्षेत्रों व दायित्वों का निर्धारण करती है। सार्वजनिक क्षेत्र पर सरकार का प्रत्यक्ष नियंत्रण रहता है अत: वही उसके उत्पादन लक्ष्यों और योजनाओं का निर्धारण भी करती है। निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन, समर्थन, सहारा तथा आर्थिक सहायताओं आदि के माध्यम से राष्ट्रीय वरीयताओं के According कार्य करने के लिये प्रेरित Reseller जाता है। 
  4. कीमत प्रणाली कीमतें संसाधनों के आबंटन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। कुछ क्षेत्रकों में निर्देशित कीमतें भी अपनाई जाती हैं। सरकार लक्ष्य समूहों के लाभ के लिये कीमतों में आर्थिक सहायता भी प्रदान करती है। सरकार का ध्येय जनसामान्य का हित संवर्धन होता है। जो व्यक्ति बाजार कीमतों पर आवश्यक उपभोग सामग्री खरीदने की स्थिति में नहीं होते, सरकार उन्हें रियायती कीमतों पर (या नि:शुल्क भी) वस्तुएं उपलब्ध कराने का प्रयास करती है। अत: Single मिश्रित Meansव्यवस्था में जन सामान्य को तथा समाज के कमजोर वर्गों के हित-सवंर्धन में सरकार द्वारा व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सहारा, दोनों ही उपलब्ध रहते हैं। Indian Customer Meansव्यवस्था मिश्रित Meansव्यवस्था समझी जाती है क्योंकि यहां आर्थिक नियोजन के साथ-साथ निजी व सार्वजनिक क्षेत्रकों के आर्थिक कार्य क्षेत्र स्पष्टतया परिभाषित हैं। यू.एस.ए., यू.के. आदि देश भी जो पूंजीवादी देश कहे जाते थे, आर्थिक विकास में इनकी सरकारों की सक्रिय भूमिका के कारण अब मिश्रित Meansव्यवस्था कहलाते हैं।

विकास के स्तर के आधार पर Meansव्यवस्थाओं के प्रकार

विकास के स्तर के आधार पर हम Meansव्यवस्ताओं को दो वर्गों में विभाजित कर सकते हैं:

  1. विकसित Meansव्यवस्था
  2. विकासशील Meansव्यवस्था

किसी Meansव्यवस्था को उसके वास्तविक राष्ट्रीय आय, तथा उसकी जनसंख्या की प्रति व्यक्ति आय और जीवन के निर्वाह स्तर के आधार पर उसे विकसित या अमीर और विकासशील अथवा गरीब देश कहा जाता है। विकासित देशों में राष्ट्रीय और प्रतिव्यक्ति आय तथा पूंजी निर्माण Meansात बचत और निवेश के स्तर उच्च होते हैं। उनके Humanीय संसाधन अधिक शिक्षित होते हैं। वहां जन सुविधाओं, चिकित्सा-स्वास्थ्य तथा स्वच्छता प्रबंध सुविधाएं, बेहतर होती हैं और मृत्यु दर, शिशु मृत्यु दर निम्न होती हैं। साथ ही वहां औद्योगिक और सामाजिक आधारिक संCreation तथा पूंजी और वित्त बाजार भी विकसित होते हैं। संक्षेप में, विकसित देशों में जीवन स्तर उन्नत होता है।

विकासशील देश विकास की सीढ़ी पर काफी नीचे होते हैं। उन्हें कई बार अल्प विकसति, पिछड़े या गरीब देश भी कहा जाता है। परन्तु Meansशास्त्री उन्हें विकासशील कहना बेहतर मानते हैं क्योंकि इस Word से गतिशीलता का भास होता है। इन देशों में राष्ट्रीय तथा प्रति व्यक्ति आय निम्न होती हैं। इनके कृषि और उद्योग पिछड़े होते हैं, बचत, निवेश और पूंजी निर्माण का स्तर निम्न होता है। यद्यपि इन देशों में निर्यात से आय होती है पर अधिकांशत: ये प्राथमिक और कृषि उत्पाद ही निर्यात कर पाते हैं। संक्षेप में निम्न जीवन स्तर के इन देशों में उच्च शिशु मृत्यु दर, जन्म And मृत्यु दरें और स्वास्थ्य, स्वच्छता प्रबंध तथा आधारिक संCreation का स्तर भी निम्न होता है।

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *