अम्लीय वर्षा का निर्माण, प्रभाव And नियंत्रण

अम्लीय वर्षा वायु प्रदूषण का विनाशकारी प्रभाव है। विभिन्न उत्पादन क्रियाओं -उद्योगों, कारखानों, वाहन And तेल शोधकों से निकली कार्बन डार्इ ऑक्साइड, नाइट्रिक ऑक्साइड, सल्फर डार्इ ऑक्साइड (SO2), वायु में घुल जाती है। वर्षा जब होती है जब Ultra site किरणों की ऊष्मा समुद्र की सतह, झीलों And नदियों की जल सतह पर वाष्पीकरण को उत्प्रेरित करती है। इस विधि के अंतर्गत जो जल वाष्प बनती है Single ऊँचार्इ तक वायुमंडल में जाती है, वहाँ यह आद्रर्ता में संघनित हो जाती है। यदि अनुकूल परिस्थितियाँ होती हैं तब यह वर्षा के Reseller में Earth पर आती है। अम्लीय वर्षा की स्थिति में जलवाष्प वायुमंडल में पहुँचकर संघनित होती और SO2, NO2 And CO2 गैसों से जो वायुमंडल में पार्इ जाती हैं, उनसे अभिक्रिया करती हैं। यह गैस अभिक्रिया करके सल्फ्यूरिक अम्ल (Sulphuric Acid), नाइट्रिक अम्ल (Nitric Acid) And कार्बोनिक अम्ल (Carbonic Acid) का निर्माण करती है। जब यह वर्षा होती है तब यह वायुमंडलीय प्रदूषक मिट्टी, वनस्पति, सतही जल या जलाशयों में संचित हो जाते हैं। इसके परिणामस्वReseller क्षति होती है, क्योंकि प्रदूषक अम्लीय होते हैं।

अम्लीय वर्षा (Acid Rain) यह आज की घटना नहीं है अम्लीय वर्षा (Acid Rain) को First रोबर्ट एन्गस स्मिथ (Robart Angus Smith) ने 1852 में परिभाषित Reseller था। वर्तमान में औद्योगिक क्षेत्र अम्लीय वर्षा के कारण अधिक प्रभावित होते हैं, जबकि औद्योगिक क्रांति के पूर्व अम्लीय वर्षा का प्रभाव नहीं था।

भारत भी अम्लीय वर्षा के प्रभाव से पृथक नहीं हुआ है। भारतवर्ष में Human जनित अनेक स्त्रोत पाये जाते हैं। जो SO2 को निष्कासित करते हैं, जैसे- ऊर्जा उत्पादन, परिवहन And घरेलू ऊर्जा जो कि खाना पकाने के लिए उपयोग होती है, अनेक प्रकार के जीवाश्म र्इधन का उपयोग। भारतवर्ष में उद्योगों के माध्यम से वर्षा की अम्लीयता में वृद्धि हुर्इ है।

अम्लीय वर्षा का निर्माण

प्रदूषण इकार्इ के अंतर्गत तापीय ऊर्जा संयंत्र, उर्वरक, रासायनिक And कोयला खनन उद्योग के कारण वायु में CO2, SO2, NOX हाइड्रोकार्बन मुक्त होती है। यह गैसें वायुमण्डल की वायु में उपस्थित जलवाष्प से अभिक्रिया कर H2 CO3, H2 SO4, HNO3 का निर्माण करती हैं। इन अम्लों से संदूषित वर्षा, Earth पर आती है। जिससे मिट्टी का संगठन And उर्वरता Destroy हो जाती है। मिट्टी के सूक्ष्मजीव Destroy हो जाते हैं, भूमि बंजर हो जाती है And जलीय जीवन को Destroy करती है। पौधों के ऑक्सीजन उत्पन्न करने की क्षमता को कम करती है। पौधों की वृद्धि, प्रजनन क्षमता को Destroy करती है और अन्त में वनस्पति को पूर्णत: समाप्त करती है। प्राणी समूह भी इससे प्रभावित होता है।

अम्ल वर्षा का प्रमुख कारण है SO2 And NO2 गैसों को माना जाता है। अम्लीय वर्षा के अतिरिक्त, नाइट्रोजन के ऑक्साइड्स, हाइड्रोकार्बन्स के साथ अभिक्रिया कर ओजोन (Ozone) को उत्पन्न करते हैं जो कि Single दीर्घ प्रदूषक है।

अम्लीय वर्षा के प्रभाव

  1. अम्लीय वर्षा का अधिकतम प्रभाव वनस्पतियों पर दिखार्इ देता है। वनस्पति Destroy हो जाती हैं, पत्त्ाों के रंग में परिवर्तन, वृक्षों के शिखर की सीमित वृद्धि, वनस्पति, वृक्षों की वृद्धि And प्रजनन में कमी, असमय फूलों, पत्त्ाों And कलियों का गिरना।
  2. अनेक देशों में वनों का क्षेत्र Destroy होता जा रहा है। 
  3. अम्लीय वर्षा के प्रभाव से जलीय जीव जात मछलियाँ, शैवाल And अन्य जलीय प्राणी Destroy हो रहे हैं। मछलियाँ अपने शरीर में लवण के स्तर को संतुलित नहीं रख पाती हैं तथा हानिकारक विषाक्त तत्व जैसे – जस्ता, सीसा, कैडमियम, मैगनीज, निकल, एल्यूमीनियम की सान्द्रता मछलियों के शरीर में अधिक हो जाती है जिसके कारण मछलियाँ And जीव जात की मृत्यु हो जाती है। इन मछलियों के खाने से मनुष्य प्रभावित होता है। 
  4. जलीयकाय अनुपयोगी हो जाते हैं। झीलों, तालाब में उद्योगों से निकली SO2, NO2 अन्य हाइड्रोकार्बन्स के मिल जाने से इनकी जैविक सम्पदा Destroy हो जाती है, इस कारण इन झीलों को जैविक सम्पदा की दृष्टि से मृत झीलें (Dead Lakes) कहा जाता है। 
  5. अम्लीय वर्षा के कारण मिट्टी अम्लीय हो जाती है, इस कारण मृदा की उर्वरता, उत्पादकता समाप्त हो जाती है या कम हो जाती है। 
  6. अम्लीय वर्षा के कारण प्राचीन ऐतिहासिक भवनों/पुरातत्वीय दृष्टि से महत्त्वपूर्ण भवनों को क्षति पहुँचती है। उदाहरण: भारतवर्ष का ताजमहल, लाल किला, मोती मस्जिद, आगरा And ग्वालियर का किला, यूनान की Single्रियोपोलिस, अमेरिका का लिंकन स्मारक आदि की सुंदरता समाप्त हो रही है। 

अम्लीय वर्षा का नियंत्रण

अम्लीय वर्षा के प्रभावों के नियंत्रण के लिए निम्न उपाय करना चाहिए – 

  1. पर्यावरण को स्वच्छ रखने की तकनीक का उपयोग, उद्योगों की चिमनियों से निकलने वाली सल्फर डार्इ ऑक्साइड गैस को कम करने वाली तकनीक का उपयोग करना चाहिए। 
  2. उद्योगों की चिमनियों की ऊंचार्इ 200 मीटर And चिमनियों से निकलने वाली गैस की गति 80 किमी प्रतिघंटा रखी जाए जिससे 600 मीटर से अधिक ऊंचार्इ पर गैस वायुमण्डल में जाकर अधिक से अधिक क्षेत्र में विसर्जित हो सके। 
  3. All परिष्कृत शालाओं के द्वारा डीजल का उत्पादन Reseller जावे उसमें गंधक की मात्रा 0.25 प्रतिशत होना चाहिए। शहर में All टैक्सी, मोटरयान, दुपहिया वाहन And बसें ब्छळ गैस का उपयोग कर परिचालित करें। 
  4. शासन द्वारा First विभिन्न क्षेत्रों में अम्लीय वर्षा के भार को निर्धारित Reseller जावे And अम्लीय वर्षा का प्रादर्श तैयार कराया जावे जो कि अम्लीय वर्षा में प्रदूषकों की मात्रा के बारे में Single निश्चित क्षेत्र में भविष्यवाणी कर सके। इसके आधार पर यह संभव हो सकेगा कि मनुष्य And भूमि को कितनी क्षति होती होगी। अम्लीय वर्षा से होने वाली क्षति को चरणानुसार विभिन्न तकनीकी के द्वारा नियंत्रित Reseller जा सके। 
  5. समस्याओं के नियंत्रण के लिए आधुनिक नीति को क्रियान्वयन कर सकें-
    1. ऊर्जा दक्षता में मूलभूत सुधार करना।
    2. निम्न गन्धक युक्त र्इंधन या गन्धक रहित र्इंधन-प्राकृतिक गैस का उपयोग Reseller जावे। 
    3. नवीनीकरण संसाधनों का अधिक से अधिक उपयोग। 
    4. डीजल And र्इंधन तक के शोधन कारखानों में से गन्धक को पूर्णतया दूर कर दिया जावे। 
    5. आर्थिक क्षेत्र की विभिन्न तकनीकी के द्वारा प्रदूषण नियंत्रण विधियों का उपयोग Reseller जावे।
  6. वैकल्पिक ऊर्जा स्त्रोतों का उपयोग करना। भारत में अम्लीय वर्षा का प्रभाव नगण्य है, क्योंकि उष्ण कटिबन्धीय जलवायु And देश में क्षारीय मिट्टी में प्रदूषकों को उदासीन करने की क्षमता है। भारतवर्ष में धूल के कण क्षारीय स्वभाव के होते हैं, अम्लीय वर्षा को करने वाली गैस- SO2 And NOX को उदासीन कर देते हैं, लेकिन यदि सावधानी नहीं उपयोग में लार्इ गर्इ तो भारतवर्ष में भी संकट हो सकता है।

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