अनुशासन के प्रकार

आजीवन में अनुशासन का महत्त्व सबसे ज्यादा होता है क्योंकि अनुशासित
व्यक्ति जीवन को सुचारू Reseller से चला सकता है Meansात् सफलता की First
कुंजी अनुशासन है। अनुशासन का Means है कि हम जो कुछ कार्य करे उसका
निर्वाह इस प्रकार हो कि कम समय में उसकी व्यवस्था ठीक ढ़ग से हो सकें।
इस दृष्टि से वही व्यक्ति अनुशासित है, जिसको अपने कार्यों को समझ कर
व्यवहार में परिणित करने का ज्ञान है।

अनुशासन व्यक्तित्व विकास का First सोपान है। शिक्षा संस्कारों से
संबंधित है। प्रत्येक शिशु जब जन्म लेता है तो वह साफ कागज के समान
होता है। उसे सुसज्जित करने के लिए किन्ही प्रौढ़ व्यक्तियों की Need
होती है। इसी विकास की प्रक्रिया में वह संस्कारित होता जाता है। उसके
संस्कार प्रदाता चाहते है कि उनका बच्चा सुशील और आचरणवान बने। उसमें
अच्छी आदतें हो, वह कार्य करने में कुशल हो, शीलवान और चरित्रवान हो,
वह बड़ो का आदर और छोटो को प्यार दे। ऐसे गुणों से युक्त बालक को
चाहने वाले अभिभावक इसी हेतु अच्छे संस्कार देने की पूर्ण चेष्टा करते है।
गुणों की विधिवत् संस्कार प्रणाली को शिक्षा कहते है। Meansात् माता-पिता अपने
बच्चे में उत्तम शिक्षा का प्रबन्ध करना चाहते है। संस्कार ग्रहण करने वाले
बच्चे की शिक्षा अनायास संभव नहीं हो सकी। बालक की प्रारम्भिक अवस्था
में तो संस्कार में तो संस्कार प्रदाता ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। बच्चों
को उचित आदेश And निर्देश देकर उसमें वांछित संस्कार निर्मित करने का
प्रयास Reseller जा सकता है बालक द्वारा उन आदेशों And निर्देशों अथवा
आज्ञाओं का पालन या अनुकरण ही अनुशासन कहा जा सकता है। आज्ञा
पालन ही अनुशासन का पर्याय है। कोई भी बालक बिना अनुशासन के वांछित
संस्कार ग्रहण नहीं कर सकता। अत: शिक्षा में अनुशासन Indispensable है।

अनुशासन के प्रकार 

शिक्षक द्वारा आरोपित अनुशासन 

शिक्षक द्वारा आयोजित अनुशासन कुछ अंशों तक आवश्यक होता है।
उदाहरण के लिए प्राथमिक स्कूल के बच्चों को नियंत्रण और निर्देशन की बहुत
अधिक Need होती है क्योकि वे उपयुक्त सहायता के अभाव में संगठित
कार्यो के लिए आवश्यक समूह आकार का निर्माण करने में असमर्थ होते है।
जैसे-जैसे बच्चे परिपक्व होते जाते है, तो वे न केवल कुशलताएं ही जागृत
करते है, बल्कि आत्मानुशासित समूहों के साथ काम करने की रूचि तथा
आत्मानुशासन सम्बन्धित अपने स्वयं के मानदण्डों की Need भी विकसित
कर लेते है। वे Single ओर यह चाहते है कि कोई उनके आचरण की सीमाएं
निर्धारित कर दे तो दूसरी ओर वे इन निर्धारित सीमाओं का परीक्षण करना या
उन्हें चुनौती देना चाहते है। Single प्रभावशाली शिक्षक वहीं होता है जो बच्चों को
स्वाभाविक और स्वत: प्रवर्तित Reseller में विकसित होने का अवसर दे सकता है,
किन्तु वह इस योग्य भी होता है कि निश्चित अवधि में उनके आचरण की
सीमाएं भी निर्धारित कर सके।

अनुशासन से सम्बन्धित शिक्षक की समस्या नेतृत्व की समस्या के Reseller
में देखी जा सकती है। नेतृत्व के अध्ययन का Single दृष्टिकोण दो पहलुओं को
स्पष्ट करता है ‘‘संCreation का उपक्रमण’’ और ‘‘विचार’’। ‘‘संCreation-उपक्रमण से
सम्बन्धित नेतृत्व क्रियाओं में निर्देशन, नियंत्रण, दण्ड, सीमा निर्धारण, पुरस्कार,
चतुराई, संगठन निर्धारण, मानकों का अनुकरण आदि सम्मिलित होते है।
‘‘विचार’’ के अन्तर्गत ऐसा आचरण आता है जैसे – सहानुभूति प्रदर्शित करना
और अवबोध ग्रहण करना, समझौता करना, सहायता करना, आमन्त्रित करना
और समूह-सदस्यों के सुझावों का उपयोग करना तथा उनका समर्थक बनना।
इन दो पहलुओं का मूल्यांकन करने वाली Single प्रश्नावली बनायी गयी है और
ओहीयो स्टेट यूनिवर्सिटी के पर्सनल रिसर्च बोर्ड के नेतृत्व में उसका उपयोग
Reseller गया है। नेतृत्व की अधिकांश भूमिकाओं को दोनो प्रकार की संCreationओं
उपक्रमण और विचार की Need होती है आमतौर से Single पहलू के
बहिष्करण के लिए Second पर जोर देना अवांछनीय माना जाता है।

समूह-आरोपित अनुशासन

दूसरी प्रकार का अनुशासन समूह आरोपित अनुशासन है जिसमें शिक्षक
कक्षा समूहों द्वारा उत्पन्न शक्तियों को इन योग्य बनाने का प्रयास करता है
कि वे छात्रों को अपना आचरण नियंत्रित करने तथा आदशों को विकसित करने
में सहायता देने का भार वहन कर सकें।

आत्मारोपित अनुशासन

जब बच्चे प्रौढ़ के निर्देशन के लिए प्रतिक्रिया व्यक्त करना सीख लेते है
तो वे सामाजिक और भावात्मक परिपक्वता की Single अवस्था को सफलतापूर्ण
पार कर लेते है। जब वे अपने स्वयं के समूह के लिए प्रतिक्रिया व्यक्त करते
है, तो वे विकास की अत्यन्त उन्नत स्थिति में होते है। छात्रों को उत्तदायी
और विचारशील नागरिक बनाने के लिए उन्हें, समूह-मानकों को विकसित
करना तथा उसके प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त करना आना चाहिए और यह तभी
सम्भव है जब उसे अपने स्वयं के आचरण के माध्यम से सोचना आए।

कार्य आरोपित अनुशासन

ऐसे कार्य जो हमारा ध्यान अपनी ओर केन्द्रित रखते है और निर्धारित
किए गए समय से अधिक समय की मांग करते है। उन्हें Single बार आरम्भ
करने पर बंद करना या छोड़ना कठिन हो जाता है। ऐसे हर कार्य का अपना
Single अनुशासन होता है। ऐसे कार्यो के लिए, जिन्हें छात्र पूरा करना चाहते है,
उनकी Needओं के अनुReseller अपने आचरण को ढालने में अधिक सक्षम
होते है और अधिक आत्मानुशासन प्रदर्शित करते है। यह कार्य-आरोपित
अनुशासन सार्थक-प्रेरणा पर आधारित होता है।

प्राकृतिक अनुशासन

प्राकृतवादी अनुशासन से समर्थक रूसो और स्पेन्सर के मतानुसार
बालक को प्रकृति के ऊपर छोड़ देना चाहिए। उसे स्वयं कार्य करने तथा अपने
अनुभव से ज्ञान प्राप्त करने के अवसर दिये जाने चाहिए। इस प्रकार उसमें
स्वाभाविक अनुशासन का विकास होगा। प्रकृति के According कार्य करने पर उसे
सफलता प्राप्त होगी तथा विपरीत दिशा में कार्य करने पर असफलता मिलेगी।

अधिकारिक अनुशासन 

इस अनुशासन से आशय बड़ों के अधिकार में रहना है। शैश्यावस्था के
बाद इस प्रकार के अनुशासन का प्रारम्भ होता है। बालक परिवार में
माता-पिता, बड़े भाई-बहनों आदि की आज्ञाओं का पालन करता है तथा
विद्यालय में प्रधानाचार्य व शिक्षकों की आज्ञाओं का पालन करता है। जब
बालक आज्ञाओं का पूर्णत: पालन करता है तो उसे Single प्रकार का पुरस्कार
मिलता है, किन्तु जब वह उल्लंघन करता है, तो उसे दण्ड मिलता है।

सामाजिक अनुशासन

इस अनुशासन से आशय सामाजिक नियमों व आदशोर्ं का अनुगमन
करने से है। सामाजिक अनुशासन सामाजिक नियन्त्रण पर निर्भर करता है।
उचित सामाजिक नियन्त्रण होने से बालक असामाजिक क्रियायें नहीं करेगा।
अत: सामाजिक प्रशंसा, निन्दा या सामाजिक निन्दा उसमें अनुशासन के भाव
उत्पन्न करती है।

वैयक्तिक अनुशासन

इसे हम आत्मानुशासन या आत्मनियन्त्रण भी कह सकते हैं। जब
व्यक्ति का पूर्ण मानसिक विकास हो चुका होता है तथा जब वह अच्छे और
बुरे में अन्तर समझने लगता है, तब यह अनुशासन प्रारम्भ होता है। यह
अनुशासन व्यक्ति को बुरे कार्य करने से रोकता है तथा उसमें आत्मनियंत्रण
के भाव उत्पन्न करता है। व्यक्ति में जब आत्मानुशासन का विकास हो जाता
है तो वह सारे कार्य अपने विवेक से करता है।

व्यावसायिक अनुशासन

इस अनुशासन से तात्पर्य है कि व्यक्ति अपने व्यावसायिक जीवन में
अनुशासनबद्ध हो। Second Wordों में व्यक्ति इस योग्य हो कि वह अपने
व्यावसायिक जीवन का कुशलतापूर्वक निर्वाह कर सके। वह अपने व्यवसाय में ईमानदार, निपुण, परिश्रमी, अत्यन्त सूझ-बूझवाला, नियमशील तथा समय का
पाबन्द हो।

दमनात्मक अनुशासन 

शिक्षा क्षेत्र में यह Single अत्यन्त प्राचीन विचारधारा है। इसके According
विद्यालयों में विद्यार्थियों को सुधारने के लिए कड़े से कड़े दण्ड की व्यवस्था की
जाती है। 18वीं शताब्दी में यूरोप के स्कूलों में यह कथन प्रचलित था- ‘डण्डा
छूटा, बालक बिगड़ा’ (Spare the rod, Spoil the Child) इस प्रकार के विद्यालयों में
बालक के व्यक्तित्व का कोई आदर नहीं था तथा यह विश्वास Reseller जाता था
कि दण्ड देने से बदमाश से बदमाश बालक भी सीधा हो जाता है।

प्रभावात्मक अनुशासन

प्रभावात्मक अनुशासन का आधार आदर्शवाद है। आदर्शवादियों के
According शिक्षक को बालकों में अपने व्यक्तित्व के प्रभाव से अनुशासन उत्पन्न
करना चाहिए, न कि पाश्विक ढंग से दण्ड देकर। अध्यापक के विचार, उसका
चरित्र उसके आदर्श इतने ऊँचे होने चाहिए कि विद्याथ्र्ाी उसके व्यक्तित्व के
सामने नतमस्तक हो जायें और स्वयं भी वैसा ही बनने का प्रयत्न करें।

मुक्तयात्मक अनुशासन 

मुक्तयात्मक अनुशासन से आशय है स्वतन्त्रता पर आधारित अनुशासन
Meansात् बालक को अपने विकास के लिए पूर्ण स्वतन्त्रता मिलनी चाहिए तभी वे
अपनी रूचियों, प्रवृत्तियों And भावनाओं के According कार्य कर सकेंगे और अपने
व्यक्तित्व का पूर्ण विकास कर सकेंगे। इस अनुशासन के विशेष समर्थक रूसो
और स्पेन्सर हैं। आधुनिक अनेक मनोवैज्ञानिक भी इसी सिद्धान्त के समर्थक
हैं। इनके मतानुसार चूंकि बालक स्वतन्त्र पैदा हुआ है इसलिए उसे बंधनों की
जंजीरों में जकड़ना गलत है। इन विद्वानों का मत यह है कि दमनात्मक
अनुशासन बालक में मानसिक ग्रन्थियां उत्पन्न कर देता है तथा प्रभावात्मक
अनुशासन बालकों की विभिन्नताओं पर ध्यान न देकर उन पर शिक्षक के
व्यक्तित्व के प्रभाव को थोपने का प्रयास करता है।

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