अग्नि बीमा क्या है ?

अग्नि बीमा में दावेदार को सिद्ध करना होता है कि हानि अग्नि द्वारा ही हुर्इ है और इसके लिए दो बातों को साबित करना आवश्यक होता है : (1) उस अग्नि में ज्वाला (ignition) प्रकट हुर्इ थी, (2) वह अग्नि आकस्मिक (accidental) थी।

  1. अग्नि में यदि ज्वाला नहीं प्रकट हुर्इ हो तब बीमा की संविदा में इसे ‘‘अग्नि’’ नहीं माना जा सकता। कुछ वस्तुएं रासायनिक प्रभाव से जल या झुलस जाती हैं या तापमान बहुत ऊॅंचा होने से Destroy हो जाती हैं, किन्तु यदि उस क्रिया में ज्वाला (ignition) न प्रकट हुर्इ हो तो इसे अग्नि द्वारा जला या झुलसा नहीं कहा जा सकता। विद्युत्पात के कारण यदि ज्वाला प्रकट हो और उससे हानि हुर्इ हो, तो वह हानि अग्नि के कारण हुर्इ मानी जाएगी, किन्तु ज्वाला प्रकट न होने पर वह हानि विद्युत्पात के कारण हुर्इ मानी जाएगी, अग्नि के कारण नहीं।
  2. अग्नि बीमा की संविदा में यह साबित करनी होती है कि ऐसी अग्नि आकस्मिक Reseller से (accidental) हुर्इ। यदि आग लगने में आकस्मिकता का अभाव हो तब हानि के लिए बीमा कम्पनी दायी नहीं होगी। जैसे, यदि आग साधारण कार्यों के लिए प्रयुक्त होती है (जैसे, रसोर्इ बनाने अथवा निर्माण कार्यों के लिए या अन्य गृह-कार्यों के लिए) ओर अपनी उचित सीमा में रहती है, तब उससे हुर्इ क्षति के लिए बीमा कम्पनी दायी नहीं, क्योंकि यहां तो प्रयोजवश आग जलार्इ गर्इ है और इसमें आकस्मिकता नहीं है। ऐसी अग्नि को ‘‘मैत्रीपूर्ण अग्नि’’ (friendly fire) कहते हैं। यदि ऐसी आग से कोर्इ चीज झुलस जाए या चटक जाए या भस्म हो जाए तो बीमा की दृष्टि से उस हानि को ‘‘अग्नि’’ द्वारा हुर्इ नहीं कहेंगे। लेकिन यदि इस ढंग से प्रयुक्त आग से चिनगारियां निकलकर अपनी उचित सीमा से बाहर चली जाए और ज्वलित होकर बीमित वस्तु को Destroy कर दे ंतब यह आकस्मिक Reseller से हुर्इ क्षति कही जाएगी जिसके लिए कम्पनी दायी रहेगी। अग्नि बीमा में यदि आकस्मिक परिस्थितियों में कोर्इ ऐसी वस्तु अग्नि पर है जिसे अग्नि पर नहीं होना चाहिए था, तो उसकी क्षति को ‘‘अग्नि’’ द्वारा हुर्इ क्षति माना जाता है।

अग्नि द्वारा हानि And उसका निवारण –

(क) अग्नि द्वारा हानि – 

जो वस्तु उपरोक्त Means में ‘‘अग्नि’’ के सम्पर्क में आने के कारण Destroy हो जाए, उसकी हानि तो प्रत्यक्षत: अग्नि द्वारा हुर्इ कही जाएगी किन्तु यह आवश्यक नहीं है कि बीमित विषय अग्नि के सम्पर्क में आकर ही Destroy हो। बीमादाता उन समस्त हानियों की पूर्ति करने के लिए दायी रहता है जिसका आसन्न कारण (Proximate cause) अग्नि हो। आग लगने पर उसे नियन्त्रित करने की क्रिया में पानी फेंका जाता है, फायर ब्रिगेड वाले मकान की तोड़-फोड़ करते हैं, और अग्निकांड से बचाने के विचार से सामान आदि उठाकर बाहर फेंक दिए जाते हैं, घनी बस्ती में आग व्याप्त होने के संकट को रोकने के विचार से पड़ोसी के मकान का कुछ भाग गिरा दिया जाता है, आदि। इन कार्यों में हुर्इ क्षतियों को भी ‘‘अग्नि’’ द्वारा हुर्इ हानि माना जाता है। इसी प्रकार पड़ोस के मकान में आग लगने से बीमित सम्पत्ति धुएं, पानी आदि द्वारा Destroy हो सकती है अथवा उस मकान की दीवार गिरने से Destroy हो सकती है। ऐसी All हानियों को ‘‘अग्नि’’ द्वारा हुर्इ हानि माना जाता है। इस प्रकार से हुर्इ हानि के कतिपय उदाहरण इस प्रकार हैं –

  1. आग लगने के कारण किसी मकान की छत या दीवार या कोर्इ अन्य भाग के गिर जाने के कारण अथवा धुएं, ताप आदि के कारण अन्य वस्तुओं की हानि, 
  2. जलते हुये मकान के सामानों को हटाते समय हुर्इ हानि, 
  3. अग्निकांड के कारण बाहर निकालकर रखी गर्इ वस्तुओं की पानी बरसने या खराब मौसम के कारण हुर्इ हानि, 
  4. आग बुझाने की कार्यवाही के कारण हुर्इ हानि।

(ख) निवारण –

  1. विशाल जोखिमों के अग्नि बीमा प्रस्तावों पर विचार करते समय कम्पनियां जोखिम की पूरी तोर से जांच-पड़ताल कर लेती है। जो सर्वेक्षक (Surveyor) इस काम के लिए भेजा जाता है वह जोखिमों को कम करने के उपायों के बारे में भी विचार करता है और जोखिम सुधार (risk improvement) के बारे में व्यावहारिक सुझाव देता है। ऐसे सुझावों पर अमल करने से आग लगने पर नाश होने की सम्भावना कम हो जाती है। इस प्रकार अग्नि बीमा की व्यवसाय पद्धति द्वारा समाज को लाभ होता है। 
  2. हमारे देश में Single कम्पनी है जिसका नाम है ‘‘Indian Customer हानि निवारण संगम’’ (Loss Prevention Association of India), जिसने देश के प्रमुख केन्द्रों में ‘‘उद्धारण दल’’ (Salvage Corps) संगठित कर रखा है। यह दल फायर ब्रिगेडों के साथ सहयोग करता है और अग्निकांड के समय सम्पत्ति को और अधिक क्षति से बचाने के उद्देश्य से All सम्भव कार्यवाही करता है। 
  3. बीमा कम्पनियां जोखिम के अनुपात में ही प्रीमियम लिया करती हैं ओर वे साधारण प्रीमियम में से छूट देने को तैयार रहती हैं, यदि बीमादार मकान में आग बुझाने के यन्त्र तथा अग्नि रक्षक साधनों की व्यवस्था कर ले। इसी प्रकार यदि बीमादार अग्नि निवारण (Fire Prevention) के उपायों की व्यवस्था न करता हो तब बीमा का प्रस्ताव अस्वीकृत भी कर दिया जाता है। इन कारणों से बीमादार यथासम्भव जोखिम को Safty के उपयुक्त स्तर पर लाने का प्रयत्न करते हैं और इस प्रकार आग लगन की आशंका कम हो जाती है।

अग्नि बीमा का क्षेत्र

अग्नि बीमा के क्षेत्र को सामान्यत: दो भागों में बांटा जा सकता है- (क) साधारण क्षेत्र, और (ख) विस्तृत क्षेत्र।

(क) अग्नि बीमा का साधारण क्षेत्र :-

अग्नि बीमा में बीमादाता यह वचन देता है कि यदि बीमा अवधि में आग लगने से बीमित विषय Destroy हो जाए तब बीमादार की क्षतिपूर्ति की जाएगी। किन्तु अग्नि बीमा की मानक पॉलिसी (Standard Policy) में अनेक जोखिमों को अपवर्जित (exclude) कर दिया जाता है। अग्नि बीमा का साधारण क्षेत्र जानने के लिए यह देखना होगा कि Single साधारण अग्नि पॉलिसी में (1) किन जोखिमों को जोड़ दिया जाता है और (2) किन जोखिमों को सामान्यत: संवृत (जोड़) नहीं Reseller जाता है।सामान्य अग्नि बीमा की प्रसंविदा में संवृत (जुड़ने) वाली जोखिमें And न संवृत होने वाली जोखिमें इस प्रकार है :-

  1. Single साधारण अग्नि पॉलिसी में आपदाएं संवृत की जाती है-
    1. अग्नि (जिसमें विस्फोट के कारण उत्पन्न अग्नि सम्मिलित है), 
    2. विद्युत्पात,
    3. केवल गृहस्थी के लिए उपयोग में होने वाले बॉयलर का विस्फोट,
    4. गृहस्थी के कार्यो या भवन के प्रकाश अथवा ताप के लिए प्रयुक्त गैस का विस्फोट।
  2. सामान्य अग्नि पॉलिसी में न संवृत होने वाली जोखिमें – पॉलिसी में अनेक जोखिमें अपवर्जित (exclude) कर दी जाती हैं, Meansात् उनकी हानियों के लिए बीमादाता दायी नहीं होता। इनमें इस प्रकार है :-
    1. बीमा के अयोग्य वस्तुएं-न्यास (Trust) या कमीशन पर रखा गया माल, बहुमूल्य धातु और जवाहरात, कलात्मक वस्तुएं, हस्तलिपियां, नक्षे, डिजाइन, नमूने, सांचे, प्रतिभूतियां, दस्तावेज, स्टाम्प, मुद्रा, चैक, खाता पुस्तें और अन्य व्यापारिक पुस्तकें, विस्फोटक पदार्थ। इनका बीमा नहीं होता। 
    2. ऐसी समस्त हानि या क्षति जो किसी प्रकार इन घटनाओं से सम्बन्धित हो- भूकम्प, ज्वालामुखी उद्भेदन, तूफान, चक्रवात, वायुमण्डलीय विक्षोभया अन्य प्राकृतिक उपद्रव, दंगा, विद्रोह, क्रान्ति, राजद्रोह, बलवा, Fight, हमला, मार्शल लॉ या अन्य असाधारण घटनाएं। 
    3. ऐसी समस्त हानि या क्षति, जो इन आपदाओं से होती है : (क) अग्निकांड के समय या उसके बाद चोरी, (ख) स्वयं किण्वन (fermentation), स्वाभाविक तापन या स्वत: दहन (ग) अन्तरभौम अग्नि (subterranean fire), या सरकारी आदेशनुसार सम्पत्ति का दहन (घ) वन, झाड़ी, पंपास, जंगल, आदि का अग्नि द्वारा आकस्मिक या स्वैच्छिक दहन (burning) ।

(ख) अग्नि बीमा का बृहद क्षेत्र (व्यापक) :-

विशेष प्रकार की पॉलिसियों में अग्नि बीमा के क्षेत्र को दो प्रकार से विस्तृत Reseller जाता है-

  1. साधारण पॉलिसी की अनेक अपवर्जित आपदाओं (excluded perils) तथा अनेक अन्य विशिष्ट आपदाओं को संवृत करके, तथा (ब) अनेक अप्रत्यक्ष हानियों तथा पारिणामिक हानियों (consequential losses) को संवृत करके। (अ) विशेष जोखिम को संवृत करके बीमा कम्पनियां अब बीमादार को अनेकानेक ऐसी जोखिमों से भी Safty प्रदान करती हैं जो साधारण पॉलिसी के क्षेत्र से बाहर हैं। इसे ‘‘विशेष आपदा बीमा’’ (Special Perils Insurance) कहा जाता है। विशेष आपदा पॉलिसी में साधारण पॉलिसी की प्राय: समस्त अपवादित जोखिमों का बीमा होता है, जैसे स्वयं दहन, विस्फोट, अन्तरभौम अग्नि, भूकम्प, तूफान, बलवा आदि तथा साधारण पॉलिसी के अन्तर्गत जो वस्तुएं बीमा के अयोग्य मानी जाती हैं उनमें अधिकांश वस्तुओं की जोखिमों को भी संवृत Reseller जा सकता है। 
  2. साधारण पॉलिसी में प्रत्यक्ष हानियों की ही क्षतिपूर्ति हो सकती है। किन्तु बीमित विषय के Destroy होने से अनेक प्रकार की अप्रत्यक्ष हानियां (Indirect losses) भी होती हैं और इनका बीमा विशेष पॉलिसियों के अन्तर्गत कराया जा सकता है। ऐसी हानियों को ‘‘पारिणामिक हानि’’ (consequential losses) कहते हैं। उदाहरण के लिए, कारखाने में आग लगने के कारण केवल कारखानों का ही नुकसान नहीं होता, इसकी पारिणामिक (consequential) हानियां इस प्रकार की हो सकती हैं-(अ) आग लगने से कारखाने का काम बन्द रहने में शुद्ध लाभ न प्राप्त होने के कारण हानि, (ब) काम बन्द रहने पर भी किराया, टैक्स, ऋण का ब्याज, स्थायी कर्मचारियों का वेतन और अन्य स्थिर व्ययों की हानि, (स) जब तक कारखाना पुनर्निर्मित न हो जाए तब तक के लिए अस्थायी मकान का किराया, भाड़े पर ली गयी मशीन आदि के कारण हुर्इ हानि। इन All पारिणामिक हानियों के लिए भी अग्नि बीमा कराया जा सकता है। 

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