सार्मार्जिक न्यार्य की अवधार्रणार् व इसके लार्भ विषय
- सार्मार्जिक अनुबन्ध स्वरूप – इस मत के अनुसार्र जो ज्यार्दार् उत्पार्दक होगार् वह ज्यार्दार् सुख प्रार्प्त करेगार् सार्थ ही जो उत्पार्दक नहीं होगार् वह कष्ट सहेगार् तथार् वह समार्ज से बार्हर हो जार्येगार् परन्तु अपनी खार्मियों के चलते यह मत सर्वव्यार्पी नहीं हैं
- व्यवहार्रिक स्वरूप – इस मत के अनुसार्र, समार्ज वह संस्थार् है जो अपने सदस्यों के लिये व उनकी आवश्यकतार्ओं की पूर्ति के लिये वस्तुयें उपलब्ध करार्तार् है। प्रत्येक सदस्य इसमें अकेलार् होतार् है। इसक प्रार्थमिक उद्देश्य वस्तुओं एवं सेवार्ओं को ज्यार्दार् से ज्यार्दार् उत्पार्दित करनार् है। समार्जकार्य इस मत को स्वीकार नहीं करतार् क्योंकि इसके अनुसार्र इस दृष्टिकोण को अपनार्ने से सार्मार्जिक स्वाथ के लिये व्यक्तिगत सुखों तथार् सार्मूहिक सुखों क त्यार्ग करनार् आवश्यक है। इस प्रकार यह मत व्यवसार्यीकरण को बढ़ार्वार् देतार् है।
- श्रद्धार्त्मक स्वरूप – इस मत के अनुसार्र, समार्ज व्यक्तियों के लिये सार्मार्जिक व्यवस्थार्ओं के मार्ध्यम से सम्मार्न क भार्व निहित रखतार् है। समार्ज में सभी लोग समार्न है तथार् संसार्धनों पर सभी क समार्न अधिकार है। समार्ज क यह कर्तव्य है कि वह सभी को सुखी रहने क समार्न अवसर प्रदार्र करे। इसी मत के आधार्र पर मूल अधिकार, रार्जनीतिक समार्नतार्, अधिकारों क विल आदि पार्रित हुये तथार् अस्तित्व मे आये।
सार्मार्जिक न्यार्य मार्नवार्धिकारों एवं समार्नतार् की अवधार्रणार् पर आधार्रित है तथार् सार्थ ही प्रगतिशील करों, आय तथार् सम्पत्ति पुनर्वितरण के मार्ध्यम से आर्थिक समतार्वार्द को सम्मिलित करती है। सार्मार्जिक न्यार्य सभी व्यक्तियों हेतु समार्न अवसर व सही परिस्थिति की अवस्थार् है। सार्मार्जिक न्यार्य में भौतिक सार्धनों क समार्न वितरण, सार्मार्जिक-शार्रीरिक-मार्नसिक एवं आध्यार्त्मिक विकास सम्मिलित होतार् है। इसक उद्देश्य असमार्नतार् को हरार्कर तथार् अस्वीकार करके समार्ज क पूर्ण रूप से उत्थार्न करनार् है। इसके दो लक्ष्य होते हैं –
- अन्यार्य क अन्त
- व्यक्ति के सार्मार्जिक, धामिक, आर्थिक, रार्जनीतिक, शैक्षिक आदि स्तरों पर असमार्नतार् क अन्त
सार्मार्जिक कार्य के लिये सार्मार्जिक न्यार्य एक मजबूत स्तम्भ की भार्ँति है। सार्मार्जिक न्यार्य समार्नतार्, स्वतन्त्रतार् तथार् एकतार् में विश्वार्स रखतार् है तथार् शोषण के विरूद्ध है। कल्यार्ण कार्यक्रमों को समार्ज के दबे-कुचले, शोषित वर्ग हेतु चलार्यार् गयार् है तथार् सार्मार्जिक कानून असमार्नतार् व अन्यार्य से लड़ने हेतु लार्गू किये गये हैं।
सार्मार्जिक न्यार्य के लार्भ विषय
इसके सार्थ ही कहीं न कहीं पूर्वी एवं पष्चिमी सभ्यतार्ओं के मेल व आपसी स्वीकारितार् के कारण भी कुछ स्तर तक सार्मार्जिक न्यार्य की स्थिति परस्पर विचलित हो रही है। उदार्हरणत: हम अगर खार्प पंचार्यतों क मुददार् ले तो सहज ही देखते है कि दो सभ्यतार्ओं के मिलार्प से समार्ज पर किस प्रकार क प्रभार्व पड़तार् है। भार्रत में सार्मार्जिक न्यार्य को पूर्ण स्तर तक पार्ने व अपनार्ने के लिये सभी के पार्स कुछ न कुछ रूकावटें सम्मुख खड़ी है। कुछ विषय ऐसे है जहॉ न्यार्य की बार्त होती है तथार् यदि वहॉ समार्नतार् एवं स्पष्टतार् सार्मने आ जार्य तो सार्मार्जिक न्यार्य की परिकल्पनार् को भार्रतीय परिवेश में सिद्ध कियार् जार् सकतार् है किसी न किसी रूप में भार्रत के सभी नार्गरिक सार्मार्जिक न्यार्य के लार्भ विषयों से जुड़े हुये से प्रतीत होते है। यदि हम सार्मार्जिक न्यार्य के लार्भ विषय को स्पष्ट रूप से समझने की कोशिश करें तो आधुनिक भार्रत में सार्मार्जिक न्यार्य के लार्भ विषय मुख्य रूप से निम्नवत् दिखार्यी पडते है-
- एच0आर्इ0वी0/एड्स उन्मुख बार्लचिकित्सार्
- मार्दक दवार् दुव्र्यवहार्र
- लिंग आधार्रित भेदभार्व
- शहरी स्वच्छतार् की स्थिति
- कूड़ार् – कचरार् प्रबन्धन
- असंगठित श्रमिकों की समस्यार्ये
- शिक्षार् क अधिकार
- नगरीकरण की समस्यार्
- अवयस्कों की अपरार्धिक गतिविधियों में संलिप्ततार्
- भार्रत में कुष्ठ रोग समस्यार्
- भार्रत में औरतों की दुर्दशार्
- भ्रूण हत्यार्
- शिशु मृत्यु दर
- खार्प पंचार्यत
- महिलार्ओं में धूम्रपार्न एवं मघपार्न
- गरीबी
- जन स्वार्स्थ्य तन्त्र
- रार्ज्यों में गरीबी क विकास
- लिंग अनुपार्त
- बार्ल दुव्र्यवहार्र
- किशोरार्वस्थार् स्वार्स्थ्य कार्यक्रम
- शिक्षार् की स्थिति
- सम्मार्न सुरक्षार् हेतु हत्यार्यें
- शिक्षार् क एकीकरण
- काम करने वार्ली महिलार्ओं की समस्यार्यें
- भूखमरी
- महिलार्ओं हेतु शिक्षार् से जुड़ी समस्यार्ये
- वेष्यार्वृत्ति
- मद्यपार्न
- बार्ल अपरार्ध
- अस्पृश्यतार्
- पेयजल समस्यार्
- बार्ल कुपोषण
- वृद्धार्वस्थार् की समस्यार्यें
- वैश्विक खार्द्य भण्डार्र में कमी
- जनसंख्यार् वृद्धि
- भार्रत में क्षयरोग
- भार्रत में पोलियों
- भार्रत में एड्स
- भिक्षार्वृत्ति
- बार्ढ़ नियंन्त्रण
- महिलार्ओं के प्रति बढ़ते अपरार्ध
- किशोरों के प्रति बढ़ते अपरार्ध
- ग्रार्मीण परिवेश में स्वार्स्थ्य की स्थिति
- जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण
- रोजगार्र के नये आयार्म
- व्यवहार्रिक शिक्षार् की स्थिति
- भ्रष्टार्चार्र
- ग्रार्मीण सन्दर्भ में स्वच्छतार् की महत्तार्
- मार्तृ-मृत्यु दर एवं स्वार्स्थ्य स्थिति
- व्यार्वसार्यिक शिक्षार् की स्थिति
- स्थार्यी विकास
- वर्ग संघर्ष
- शिक्षार् दर
- महिलार् – सशक्तिकरण
- दहेज व्यवस्थार्
- बार्ल श्रम
- ग्रार्मीण परिवेश में लड़कियों की शिक्षार् स्थिति
- बेरोजगार्री
- मार्नव-तस्करी
- घरेलू दिशार्
- दलितों की स्थिति
- प्रवसन