सहिष्णुता का Means And Need

सहिष्णुता है-असहयोग। विरोधी के साथ न प्रवृत्ति करो, न निवृत्ति करो, किन्तु उपेक्षा करो। क्रोध करने वाले के साथ क्रोध नहीं, उसकी उपेक्षा करो।

सहिष्णुता का Single Means है-सहन करके सुधार के लिए अवसर देना। किसी व्यक्ति की तुच्छता को सहन करना उसको बिगाड़ना नहीं, वरन् उसे सुधरने का अवसर देना है। प्रश्न है कि क्या अन्याय को भी सहन करें। अनेकान्त का उत्तर है-अन्याय को सहन मत करो पर उसका प्रतिकार सहिष्णुता से हो।सहिष्णुता का Single Means है-मानसिक शांति। विरोधी विचार व परिस्थितियां व्यक्ति को अशांत करती है। विपरीत विचारों, स्थितियों व व्यवस्थाओं को सहन करें। इससे मानसिक शांति भंग नहीं होगी और यदि व्यक्ति शांत है तो विश्व शांति भी संभव है।

सहिष्णुता की Need-

संयोग-वियोग की इस दुनिया में सहिष्णुता ही त्राण है। विरोधी व्यक्तियों, विरोधी विचारों, विरोधी परिस्थितियों के बीच यदि व्यक्ति सदैव प्रतिक्रिया ही करता रहेगा तो अपनी क्षमताओं का उपयोग वह विकास के लिए कब करेगा? इसलिए सहिष्णुता प्रतिक्रिया विरति के लिए आवश्यक है।सुविधाओं के विकास के साथ व्यक्ति की सहनशीलता भी समाप्त हो गर्इ है। व्यक्ति में धैर्य नहीं, शक्ति नहीं, सहन करने की क्षमता नहीं, अधीरता है, इसलिए भी सहिष्णुता की अपेक्षा है। सुविधावाद जो अन्तत: हिंसा की ओर धकेलता है, कष्ट सहिष्णु बनकर ही उससे बचा जा सकता । सहिष्णुता के विकास से ही अनुशासन का विकास संभव है। अनुशासनहीनता की समस्या किसी Single राष्ट्र की नहीं, वरन् पूरे विश्व की है। सहिष्णुता के विकास से अनुशासनहीनता समाप्त होती चली जाएगी। सहिष्णुता व्यक्ति में शक्ति का वर्द्धन भी करेगी जो अन्तत: उसे समता के आदर्श तक पहुंचा सकेगी।

सहिष्णुता का विकास-

सहिष्णुता के विकास के लिए कुछ मार्गदर्शक तत्त्व का प्रयोग इस प्रकार है-

  1. संवेगों पर नियंत्रण करें-विपरीत परिस्थिति के आते ही व्यक्ति संवेगों के भंवर में फंस जाता है। क्रोध या अहंकार जब प्रबल होता है तब व्यक्ति यह भूल जाता है उसे कैसा व्यवहार करना चाहिए। इसलिए सहिष्णुता के विकास के लिए क्रोध, भय, अहंकार, राग-द्वेष आदि संवेगों पर नियंत्रण करें। 
  2. दृष्टिकोण सम्यक् बनाएं-वस्तु सत्य को उसी Reseller में जानें। कोर्इ व्यक्ति कब, कहां, कैसे और किन परिस्थितियों में कह रहा है, उसे उसी संदर्भ में समझने की कोशिश करें। 
  3. सहासिका-समस्या सुलझाने के लिए Single साथ बैठें। व्यक्तियों के बीच संचार के अभाव में संघर्ष बढ़ जाते हैं। इसलिए उचित संचार के लिए Single साथ बैठकर विचार-विमर्श करें।
  4. Single Second को समझने का प्रयत्न करें। 
  5. उपवास व Ultra site आतापना से सहनशीलता का विकास संभव है।
  6. मस्तिष्क के अग्रभाग व ललाट जिन्हें क्रमश: शांतिकेन्द्र व ज्योतिकेन्द्र कहा जाता है-इन दोनों केन्द्रों पर ध्यान करें फिर क्रमश: दोनों केन्द्रों पर सफेद रंग का ध्यान करें।
  7. अनुचिंतन करें-विरोधी विचार, विरोधी स्वभाव, विरोधी रूचि-ये संवेदन मुझे प्रभावित करते है। किन्तु इनके प्रभाव को कम करना है। यदि इनका प्रभाव बढ़ा तो शक्तियां क्षीण होंगी। जितना इनसे कम प्रभावित रहूं, उतनी ही शक्तियां बढे़ंगी। इसलिए सहिष्णुता का विकास मेरे जीवन की सफलता का महामंत्र है।

सहिष्णुता के विकास की भूमिकाएँ

  1. परिस्थितियों को सहन करना। 
  2. Second व्यक्तियों को सहन करना। 
  3. अपने से भिé विचारों को सहन करना। 
  4. राग-द्वेष की तरंगों का सामना कर उन्हें Defeat करना।

इस प्रकार सहिष्णुता का विकास न केवल पारिवारिक कलह को दूर करेगा बल्कि समाज, धर्म, राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय संघर्षों को भी निराकृत कर सकेगा। विशेषत: उन संघर्षों को जो वैचारिक है। जो महत्त्वाकांक्षाओं पर आधारित है। जो भय की भावनाओं या अविश्वासों के कारण है। क्योंकि यह Second के विचारों को सहन करना सिखाती है। महत्त्वाकांक्षाओं व भय के संवेगों पर नियंत्रण करती है तथा आपसी विचार-विमर्श के द्वारा अविश्वासों को दूर करती है। इसलिए वैचारिक अशांति का महत्त्वपूर्ण निदान है-सहिष्णुता का विकास, Second के विचारों को सहना।

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