सरकारी बजट क्या है?

बजट Word फ्रेंच  Word बजटे (Baugatte) से लिया गया है जिसका आशय Single छोटे से थैले से है। इस प्रकार बजट सरकार की आय And व्ययों का Single आथिर्क description है। Indian Customer संविधान के According- ‘वार्षिक वित्तीय description’ को लोक सभा तथा राज्य सभा के सम्मुख प्रस्ततु करना चाहिए। संविधान में बजट पर बहस के लिए पर्याप्त  अवसर प्रदान किये जाते है। वित्तीय वर्ष 1 अप्रेल से प्रारंभ होकर 31 मार्च को प्रति वर्ष समाप्त होता है। बजट में सरकार के आय, व्यय, ऋण आदि नीतियों को वर्णन रहता है।संविधान भारत का वित्त मत्रीं प्रति वर्ष फरवरी माह के अंतिम दिवस देश का सरकारी बजट प्रस्तुत करता है।

बजट का Means And परिभाषाएं

सरकारी बजट Single वित्तीय वर्ष में सरकारी व्ययों और इन व्ययों को पूरा करने के साधनों का Single description होता है। वित्तीय वर्ष शरूु होने के काफी First ही इसके बनाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इसमें आने वाले वित्त वर्ष में All व्ययों और इनको पूरा करने के लिए पैसा जुटाने के साधनों को description दिया जाता है। बजट की मुख्य परिभाषा है-

  1. टेलर के According- “बजट सरकार की मास्टर वित्तीय योजना है।”
  2. किंग के According- “बजट Single प्रशुल्क योजना है, जिसके द्वारा व्यय को आय से सन्तुलित Reseller जाता है।”
  3. रेन स्टोर्न के According- “बजट Single एसे ा प्रपत्र है जिसमें सार्वजनिक आय And व्यय की प्रारम्भिक स्वीकृति व्यवस्था रहती है।”
  4. डब्लू.एफ. बिलोबी- “बजट Single ही साथ Single प्रतिवदेन, Single अनुमान And Single प्रस्ताव है कि यह वह साधन है जिसमें वित्तीय प्रशासन की समस्त प्रक्रिया को सम्बन्धित, तुलना And समन्वित Reseller जाता है।”
  5. बजट के उपयुर्क्त परिभाषाओं के विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि सरकारी बजट के तीन पहलू हैं:-
      1. यह प्रत्याशित व्ययों और उन्हें पूरा करने के वित्तीय स्रोतों का description होता है।
      2. इसका सम्बन्ध Single वित्तीय वर्ष से होता है।
      3. व्यय और वित्तीय स्रोतों का चुनाव  सरकार की घोषित नीतिगत उद्देष्यों के According होता है।

        सरकारी बजट के घटक

        All सरकारी बजटों का स्वReseller लगभग Single समान होता है। केवल व्यय की मदो  उनके पारस्परिक महत्व और उनको पूरा करने के साधनों में अन्तर आ सकता है।

        सरकारी बजट के दो भाग या घटक है-

        (1) प्राप्तियां (2) व्यय
        1. राजस्व प्राप्तियां। 1. पूजीगत व्यय और राजस्व व्यय।
        2. पूजींगत प्राप्तिया। 2. योजना व्यय और गैर-योजना व्यय।

        (1) प्राप्तियां

        1. राजस्व प्राप्तियां –कर सरकार की आय का परम्परागत स्त्रोत रहा है। वर्तमान शताब्दी में सरकार की आय का Single और स्त्रोत उभरा है। सरकार ने उत्पादन प्रक्रिया में सीधा भाग लेना शुरू कर दिया है। उसने अपने उद्यागे खोले हैं जिन्हें सार्वजनिक उद्योग कहा जाता है। Indian Customer रेलवे, राष्ट्रीयकृत बैंक, राज्य व्यापार निगम, इंडियन एयरलाइंस आदि इसके कुछ उदाहरण हैं। सरकार की राजस्व प्राप्तियों का Single और स्त्रोत है। सरकार को विदेषों से अनुदान भी मिल सकते है। इन All स्त्रोतों को राजस्व प्राप्तियां कहा जाता है। इन्हे दो वर्गों में बांटा जाता है :- (अ) कर राजस्व और (ब) करतेर राजस्व।
          1. कर राजस्व – कर से क्या अभिप्राय है ? यह सरकार द्वारा लोगों पर लगाया गया कानूनी तारै पर Single अनिवार्य भुगतान है। आपने आय कर, बिक्री कर, उत्पादन शुल्क आदि के बारे में तो सुना होगा। आय कर उन पर लगता है जो आय प्राप्त करते हैं। हम वेतन, मजदूरी, किराया, ब्याज व लाभ के Reseller में आय प्राप्त करते है। भारत में वर्तमान में (वर्ष 2008-09) प्रत्येक व्यक्ति जिसकी वार्षिक आय Single लाख पचास हजार उसे आय कर देना पडत़ा है। यह 1 लाख 50 हजार Resellerये आय कर से छूट की सीमा कहलाती है जो समय-समय पर बदलती रहती है। बिक्री कर वस्तुओं की बिक्री पर लगाया जाता है। बहतु -सी वस्तएु जो आप खरीदते है। उन पर आप बिक्री कर देते है। उत्पादन शुल्क कारखानों में वस्तुओं का उत्पादन करने पर लगाया जाता है। कछु अन्य प्रकार के कर भी हैं जैसे सम्पत्ति कर, उपहार कर, चुगीं, आयात शुल्क आदि। कर का भार किस पर पड़ता है ? यानि, कर का भुगतान कौन करता है ? उदाहरण के लिए आय कर को लीजिए। यह कर व्यक्ति अपनी प्राप्त की गर्इ आय में से देता है। यदि यह साहेन की आय पर लगता है तो इसका भुगतान सोहन को अपनी आय में से करना होगा। साहेन ही इसका भार सहन करेगा और सरकार को देगा।अब बिक्री कर को लीजिए। बिक्री कर में ऐसा नहीं होता। इसका सरकार को भुगतान करने की जिम्मेदारी विक्रेता पर होती है। लेिकन क्या वह इसका भुगतान अपनी आमदनी में से करता है ? नही। वह इसे क्रेताओं से इकट्ठा करता है और फिर सरकार को देता है। इस प्रकार वह अपना भार क्रेताओं पर डाल देता है। इसका Means यह हुआ कि बिक्री कर का भार तो क्रेता पर पड़ता है लेकिन सरकार को इसका भुगतान विक्रेता करता है। इस प्रकार अप्रत्यक्ष तौर पर इसका भुगतान क्रेता करता है। प्रत्यक्ष कर बनाम अप्रत्यक्ष कर-हमने ऊपर आय कर और बिक्री कर के उदाहरण दिए थे। प्रत्यके कर के दो पहलू होते हैं :- 1. सरकार को करों के भुगतान की जिम्मेदारी किस पर होती है ? और 2. कर का वास्तविक भार किस पर पडत़ा है ? आय कर में कर के भुगतान की जिम्मेदारी और वास्तविक भार Single ही व्यक्ति पर पडत़ा है। इस कर का भार Second व्यक्ति पर नहीं डाला जा सकता। ऐसे कर को प्रत्यक्ष कर कहा जाता है। बिक्री कर में भुगतान की जिम्मेदारी तो विक्रेता पर होती है लेिकन इसका भार क्रेता पर पड़ता है। क्रेता यह कर विक्रेता को देता है और विक्रेता इसको सरकार के पास जमा करता है। ऐसे कर को अप्रत्यक्ष कर कहते है। ऐसे कर का भार Second व्यक्ति पर डाल दिया जाता है। इस प्रकार उत्पादन पर लगे All कर अप्रत्यक्ष कर कहलाते है। क्योंकि उत्पादक इन्है। क्रेताओं से वसलू करता है। प्राय: करों को दो वर्गों में बांटा जाता है :1.  प्रत्यक्ष कर और 2. अप्रत्यक्ष कर भारत में ऐसे करों के कुछ उदाहरण हैं :- 
            1. प्रत्यक्ष कर
              1.  निगम कर : यह कम्पनियों के लाभ पर लगाया गया कर है।
              2. आय कर : यह व्यक्तियों की आय पर लगाया गया कर है।
              3. ब्याज कर : यह ब्याज आय पर लगाया जाता है।
              4. व्यय कर : यह व्यय करने पर लगाया जाता है।
              5. सम्पत्ति कर : यह व्यक्तिगत सम्पत्ति पर लगाया जाता है।
              6. उपहार कर : यह किसी को उपहार देने पर लगाया जाता है।  
            2. अप्रत्यक्ष कर
              1. सीमा शुल्क : ये कर आयात और नियार्त पर लगाए जाते है।
              2. संघ उत्पादन शुल्क : ये कर केन्द्र सरकार द्वारा वस्तुओं के उत्पादन पर लगाए जाते है।
              3. सेवा कर : यह सेवाओं के उत्पादन पर लगाए जाते है।
              4. बिक्री कर : यह वस्तुओं के बिक्री पर लगाए जाते है।
          2. करतेर राजस्व- कर को छाडे क़ र राजस्व के All अन्य स्त्रोत करतरे राजस्व कहलाते है।भारत में केद्रीय सरकार के करतेर राजस्व के तीन स्त्रोत है :-
            1. ब्याज प्राप्तियां : केन्द्रीय सरकार के विभाग लोगों उद्योगों और स्थानीय निकायें आदि को ऋण देते हैं और बदले में ब्याज लेते है।
            2. लाभांश व लाभ : केन्द्रीय सरकार के अपने उद्यम होते हैं। ये सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम कहलाते हैं और निजी उद्यमों की तरह ये वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करते हैं। Indian Customer रेलवे, एयर इंडिया, महानगर टेलीफोन निगम, राश्टी्रयकृत बैकं आदि इसके कुछ उदाहरण है। केन्द्रीय सरकार या तो इनमें अश्ंधारी है या इनका पूर्ण Reseller से स्वामी है। इसमें सरकार को लाभांश और लाभ मिलता है।
            3. विदेशी अनुदान : सरकारी विभागों की विदेषी सरकारों से दान, उपहार, आदि के Reseller में अनुदान  मिलता है।
        2. पूंजीगत प्राप्तियां- केन्द्रीय सरकार के पूंजीगत प्राप्तियों के तीन मुख्य स्त्रोत है :-
          1. घरेलू ऋण : ये ऋण  देश  के अंदर से प्राप्त किए जाते हैं। सरकार, सरकारी प्रतिभूतिया और राजकोषीय हुडियां जारी करके वित्तीय बाजार से ऋण लेती है। सरकार आम जनता से विभिन्न जमा याजे नाओं के माध्यम से ऋण लेती है। लोक भविष्य निधि, लघु बचत योजनाएं, इन्दिरा विकास पत्र, किसान विकास पत्र, राष्टी्रय बचत योजना, राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र, आदि इसके कछु उदाहरण है। इन योजनाओं में जमा कराया गया पैसा सरकार को ऋण के Reseller में दिया जाता है।
          2. ऋणों की वसूली केन्द्रीय सरकार देश में राज्य व स्थानीय सरकारों को ऋण देती है। इन ऋणों की वापस वसूली केन्द्रीय सरकार की पूंजीगत प्राप्तियां मानी जाती है।
          3. सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के शेयरों की पुन: बिक्री  यह पूजीगत प्राप्तियों का Single नया स्त्रोत है। अब तक सावर्ज निक उद्यमों में केन्द्र सरकार की 100 प्रतिशत भागीदारी होती थी। यानि पूरा निवेष केन्द्रीय सरकार ही करती थी। वर्ष 1991 में केन्द्रीय सरकार ने निजीकरण की नीति अपनायी। इस नीति के अधीन सरकार ने इन उद्यमों के शेयरों को आम जनता और वित्तीय सस्थाओं को बेचना शरूु कर दिया। इसे ‘शेयर अनिवेश’ कहा जाता है।

        (2) व्यय

        1. पूंजीगत व्यय बनाम राजस्व व्यय – परिसम्पत्तियों पर होने वाला व्यय पूंजीगत व्यय कहलाता है। यह व्यय भवन, सडक़ , पुल, नहरें आदि निमार्ण कार्यों पर व पूंजीगत समान आदि पर होता है। परिसम्पत्तियों के अतिरिक्त अन्य मदों पर Reseller जाने वाला व्यय राजस्व व्यय कहलाता है। यह वेतन का भुगतान, सम्पत्ति की देखभाल, लोगों को नि:षुल्क सेवाएं आदि देने पर Reseller गया व्यय है।
        2. योजना व्यय बनाम गैर-योजना व्यय – भारत ने आर्थिक विकास के लिए नियोजन का रास्ता अपनाया है। इसमें पंचवर्षीय योजनाएं बनायी जाती हैं और लागू की जाती हैं। इन योजनाओं में प्राथमिकताओं के आधार पर सरकारी बजट में प्रति वर्ष व्यय का प्रावधान Reseller जाता है। ऐसे प्रावधानों को योजना व्यय कहते है।

        सरकार देश का प्रशासन चलाने के लिए दिन-प्रतिदिन के व्यय का भी प्रावधान करती है। नियाजे न हो या न हा,े ये व्यय तो प्रत्येक देश में होते ही है। प्रत्यके सरकार को अपने देश के लोगों की जान-माल की रक्षा करनी होती है। इस कार्य के लिए पुलिस और न्यायालय व्यवस्था पर व्यय करना होता है। देश  को विदेषी आक्रमणों से बचाने के लिए सेवा पर व्यय करना होता है। इसके अलावा दिन-प्रतिदिन के व्यय भी होते है। जैसे सरकारी विभागों विधायिकाओं जल-आपूित, सफार्इ, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि जैसी जन सेवाओं को प्रदान करने पर व्यय। ये All व्यय गैर-याजेना व्यय कहलाते है।

        बजट में प्रयुक्त घाटों की अवधारणाएं

        सरकारी बजट में जब अनुमानित प्राप्तियां अनुमानित व्यय से कम होती है तो घाटे की स्थिति निमिर्त होती है। घाटे की कर्इ अवधारणाए है। यहा हम बजटीय और राजकोषीय घाटा की अवधारणा का अध्ययन करेंगे ।

        (1) बजटीय घाटा –

        बजट घाटे की यह अवधारणा कुल प्राप्तियों तथा कुल व्यय पर आधारित है। जब कुल बजट प्राप्तियों से कुल बजट व्यय अधिक होती है बजटीय घाटा कहलाता है। जिसे सत्रू के Reseller में इस प्रकार व्यक्त Reseller जा सकता है-

        सूत्र –
              BD = TBE – TBR
              BD = बजटीय घाटा
              TBE = कुल बजट व्यय
              TBR = कुल बजट प्राप्तियां

        यह माप राजस्व और पूजींगत प्राप्तियों व योजना  और गैर-योजना  व्यय दोनों पर आधारित है। भारत सरकार के 2008-09 के बजट में कलु प्राप्तियां 6,02,935 करोड़ Resellerये तथा कलु व्यय 7,50,884 करोड़ Resellerये थी। इसका Means यह हुआ कि बजटीय घाटा 1,47,949 करोड़ Resellerये का था।

        (2) राजकोषीय घाटा –

        कलु बजटयी व्यय की ऋण प्राप्तियों को छाडे क़ र कलु प्राप्तियों में अधिकता राजकोषीय घाटा कहलाती है। इसे सत्रू के Reseller में निम्न प्रकार से समझा जा सकता है-

        सूत्र –
              RD = TBE – (TRB + LR + OR)
              RD = राजकोषीय घाटा
              TBE = कुल बजट व्यय
              TBR = कुल बजट प्राप्तियां
              LR = ऋण प्राप्तियां
              OR = अन्य प्राप्तियां

        भारत सरकार के 2008-09 के वार्षिक बजट में राजकोषीय घाटा 1,33,287 करोड़ Resellerये का था। राजकोषीय घाटा यह बताता है कि सरकार को अपने व्ययों को पूरा करने के लिए कुल कितने ऋण की आवष्यकता है।

        राजकोषीय घाटा Single बेहत्तर माप है क्यों ?

        बजटीय घाटा केवल Single आंशिक माप है। जबकि राजकोषीय घाटा Single व्यापक व बहेत्तर माप है। इसके दो कारण है-

        1. यह व्यय को पूरा करने के लिए धन जुटाने  की समस्या का सही-सही माप है।
        2. राजकोषीय घाटा इस बात का भी सकं ते देता है कि भविष्य में ब्याज के भुगतान और ऋणों की वापसी पर कितना और व्यय होगा।

        बजट घाटा पूरा करने के वित्तीय स्रोत

        किसी भी सरका के सामने घाटा पूरा करने के तीन वित्तीय स्रोत होते हैं-

        1. जनता और विदेषी सरकारों से ऋण।
        2. Indian Customer रिज़र्व बैकं में रखी हुर्इ नकद शेष को निकालना।
        3. Indian Customer रिजवऱ् बैकं से ऋण लेना।

        अपने व्ययों को पूरा करने के लिए सरकार जनता से ऋण लेना अधिक पसदं करती है क्यांेि क अन्य स्रोतों से व्ययों को पूरा करने पर मुदा्र पूिर्त पर प्रभाव पड़ता है। जनता से ऋण लेने पर देश में कुल मुद्रा पूर्ति पर कोर्इ सीधा प्रभाव नहीं पड़ता Meansात् इसका शून्य प्रभाव होता है। जनता के पास मुद्रा पूर्ति कम हो जाती है और सरकार के पास यह बढ़ जाती है। Secondी ओर Indian Customer रिज़र्व बैकं में रखी ‘नकद शेष’ को निकालने या उससे ऋण लेने  पर देश में मुद्रा पूिर्त बढ़ जाती है। Indian Customer रिज़र्व बैकं से बाहर आने वाली मुद्रा, मुद्रा -पूर्ति को बढ़ाती है। इससे देश में कीमतें बढ सकती हैं और Meansव्यवस्था में कर्इ अन्य समस्याएं जन्म ले सकती हैं। अत: कोर्इ और विकल्प न होने पर ही सरकार ये सा्रेत प्रयागे में लाती है।

        बजटीय नीति के उद्देश्य

        1. देश को प्रभावी प्रशासन देना –  इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए सरकार पुिलस, सेना, विधायिका न्यायालय सरकारी विभागों आदि पर व्यय करती है।
        2. मूलभूत सुविधाएं प्रदान करना – इसके लिए सरकार शिक्षा, स्वास्थ्य, सफाई,जल व बिजली आपूर्ति, परिवहन, डाक व दूर संचार सेवाएं सडक़ , पलु , पार्क आदि पर व्यय करती है।
        3. रोजगार के अवसर प्रदान करना – इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए सरकार कर्इ कदम उठाती है। वह सावर्ज निक उद्यागे खाले ती है। उत्पादन और राजे गार को प्रोत्साहन देने के लिए निजी उद्योगों को अनुदान देती है। करों में छूट, अनुदान, ऋण आदि के द्वारा लघु, कुटीर व गा्र मीण उद्योगों को प्रात्ेसाहन देती है। रोजगार के अवसर बढा़ ने के उद्देश्य से सावर्ज निक निर्माण कार्यों  जैसे सडक़ , पलु , सरकारी भवन आदि का निर्माण कार्य करती है।
        4. कीमतों में स्थिरता लाना – आवष्यक वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में स्थिरता बनाए रखना सरकार की जिम्मदे ारी होती है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए सरकार उचित दर की दुकानें खोलती है, अनाज का भण्डार रखती है, आदि। सरकार आवष्यक वस्तुएं जैसे रसोर्इ गैस, बिजली, पैट्रोल आदि की अधिकतम कीमतें निश्चित करती है।
        5. आय की असमानताए कम करना – सरकार अमीर वर्ग पर कर लगाकर और गरीब वर्ग पर व्यय करके आय की असमानताएं कम कर सकती है।
        6. आर्थिक संवृद्धि का बढ़ाव देना- लोहा, रसायन, रासायनिक खाद, मशीन निमार्ण जैसे आधारभूत उद्यागे खोलकर सरकार आथिर्क सवंृिद्ध को बढा़वा दे सकती है। प्राय: निजी उद्यागे इन व्यवसायों को खोलने में आगे नहीं आते क्यांेिक इनमें बहुत अधिक निवेश  की Need  होती है। लेकिन देश में औद्याेिगक वातावरण बनाने में इन  उद्योगों की बहतु बडी़ भूमिका होती है।

        उपरोक्त बिन्दुओं के अलावा बजटीय नीति का उद्देश्य भुगतान सन्तुलन में घाटे को ठीक करना भी है। सरकार आयात पर भारी मात्रा में शुल्क लगाकर तथा निर्यातकों को अनूदान दके र निर्यातों को प्रोत्साहन देती है ताकि घाटा कम हो सके

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