समाज कल्याण प्रशासन क्या है ?

सामाजिक सेवाओं से सम्बन्धित विभिन्न समान अथ्री Wordों जैसे सामाजिक प्रशासन, समाज सेवा प्रशासन, सामाजिक Safty प्रशासन, कल्याण प्रशासन, लोक कल्याण प्रशासन, सामाजिक संस्था प्रशासन के कारण समाज कल्याण प्रशासन के वास्तविक Means के सम्बन्ध भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती हैए परन्तु वास्तव में समाज कल्याण प्रशासन उस क्रियाविधि को कहते है जिसके द्वारा सामाजिक संस्था अपनी निर्धारित नीति और उद्देश्यों की पूर्ति के हेतु समाज कल्याण कार्यक्रमों के आयोजनों के लिए व्यावसायिक कुशलता और सामथ्र्य का उपयोग करती है। समुदाय को प्रभावशाली और सुदृढ़ सेवाएँ प्रदान करने के लिए सामाजिक संस्था को कुछ प्रशासनिक, वित्तीय और विधि सम्बन्धी नियमों का पालन करना पड़ता है। इन्ही तीनों के सम्मिश्रण को ‘समाज कल्याण प्रशासन’ का नाम दिया गया है।

समाज कल्याण प्रशासन के अन्तर्गत उन दुर्बल वर्गो के लिए आयोजित सेवाएँ आती है, जो किसी सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक, या मानसिक बाधा के कारण उपलब्ध सामाजिक सेवाओं का उपयोग करने में असमर्थ हो अथवा परंपरागत धारणाओं और विश्वासों के कारण उनको इन सेवाओं से वांिछत रखा जाता है। समाज कल्याण के कार्यक्षेत्र में बालकों, महिलाओं, वृद्धों, अशक्तों, बाधित व्यक्तियों, पिछड़ी हुर्इ जातियों, आदिवासियों आदि के लिए सामाजिक सेवाओं और समाज कल्याण उपायों की व्यवस्था आती है।

समाज कल्याण प्रशासन की परिभाषा 

  1. जॉन किडनार्इ (1957) समाज कल्याण प्रशासन सामाजिक नीति को समाज सेवाओं में बदलने की Single प्रक्रिया है। 
  2. King राम शास्त्री (1970)सामाजिक अभिकरण तथा सरकारी कल्याण कार्यक्रमों से संबंधित प्रशासन को समाज कल्याण प्रशासन कहते है। यद्यपि इसकी विधियाँ, प्रविधियाँ, तौर-तरीके, इत्यादि भी लोक प्रशासन या व्यापार प्रशासन की ही भाँति होते है। किन्तु इसमें Single बुनियादी भेद यह होता है कि इसमें All स्तरों पर मान्यताओं और जनतंत्र का अधिक से अधिक ध्यान रखते हुए ऐसे व्यक्तियों या वर्ग से सम्बन्धित प्रशासन Reseller जाता है जो बाधित होते है। 
  3. डनहम (1949) समाज कल्याण प्रशासन को उन क्रिया कलापों में सहायता प्रदान करने तथा आगे बढाने में योगदान देने के Reseller में परिभाषित Reseller जा सकता है जो किसी सामाजिक संस्था द्वारा प्रत्यक्ष सेवा करने के लिए अनिवार्य है। 

कल्याण प्रशासन के प्रमुख क्षेत्र 

1. महिला कल्याण –

केन्द्र और प्रान्तिय सरकारों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों ने महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए अनेक कार्यक्रम आरम्भ किये और महिला दशक में उनकी Sevenत्यता को बनाये रखने के लिए, उनकी प्रगति और प्रसार के प्रयासों को तेज Reseller। बहुत सी प्रदेश की सरकारों ने आरम्भिक बाल सेवाओं के समेकित प्रदान की भूमिका को पहचानते हुए अपने प्रदेशों में केन्द्र द्वारा समर्थित समेकित शिशु विकास सेवाओं को उनके क्रियान्वयन के लिए लिया। इनका प्रभाव शिशु ओं और मताओं इन सब के जीवन पर पड़ा है जिसका प्रमाण जन्म के समय शिशु का भार बढ़ना, अपोषक अहार की घटनाओं में कमी उतना, टीकाकरण में वृद्धि होना, शिशु मृत्यु दर का घटना तथा जन्म और मृत्यु दरों में घटाव है।

2. बाल कल्याण-

प्रत्येक वर्ष श्री जवाहरलाल नेहरू का जन्म दिन 14 नवम्बर को प्रत्येक वर्ष बाल दिवस के Reseller में मनाया जाता हैं। बाल कल्याण बच्चों के प्रति राष्ट्रीय चिन्ता बच्चों के अधिकारों And उनके प्रति सरकार, समाज And परिवार के दायित्वों से सम्बन्धित And विधायी प्रावधानों से परिलक्षित है संविधान के अनचुछेद 15 में अंकित है कि 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को किसी कारखाने अथवा खान अथवा किसी अन्य खतरनाक रोजगार में नही लगाया जायेगा। राज्य नीति के निर्देषक सिद्धान्तों की धारा 39 में इस बात को सुनिष्चितReseller गया है कि आर्थिक Need से बाध्य होकर बच्चों को उनकी आयु And शक्ति के आयोग किसी व्यवसाय में कार्य न करना पडे़। इसमें यह भी described है कि बच्चों को स्वतंत्रता की स्थितियों में स्वस्थ्य ढ़ग से विकसित होने के अवसर And सुविधायें दी जाएँ तथा बचपन And यौवन की शोषण And नैतिक And भौतिक परित्याग से रक्षा की जाए। धारा 45 के अंतर्गत राज्यों से 14 वर्ष के आयु के All बच्चों के लिए निशुल्क And अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने के लिए कहा गया है।

3. राष्ट्रीय बाल नीति-

विभिन्न पंचवष्रीय योजनाओं की विषय वस्तु बच्चों के प्रति सरकार की नीति का महत्वपूर्ण दर्पण है। First चार पंचवर्षिय योजनाओं से प्राप्त अनुभव, स्वतंत्रता उपरांत अनेक विभिन्न समितियों यथा भारत सरकार के द्वारा 1959 में Appointment स्वास्थ्य सर्वे And नियोजन समिति, केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड द्वारा 1960 में स्थापित समाज कल्याण And पिछड़े वर्गो के कल्याण पर अध्ययन दल, समाज कल्याण विभाग द्वारा 1967 में Appointment बाल कार्यक्रम-निर्माण समिति, शिक्षा आयोग 1964, शिक्षा मंत्रालय के द्वारा स्थापित पूर्व स्कूली बच्चों के बारे में अध्ययन समूह, की सिफारिषों, विकालांग बच्चों से सम्बन्धित स्वयं सेवी अभिकरणों सेविका/पर्यवेक्षक करती है।

समेकित बाल विकास सेवा योजना की प्रशासनिकइकार्इ ग्रामीण/आदिवासी क्षेत्रों में ब्लाक। तालुका और शहरी क्षेत्रों में वार्डो गन्दी बस्तियों का समूह होती है।

सयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय बाल आपात निधि (यूनिसेफ) परामर्श सेवा, प्रशिक्षण, संचार, आपूर्ति, उपकरण, प्रबोधन, अनुसंधान और मूल्यांकन के क्षेत्र में समेकित बाल विकास सेवा कार्यक्रम को सहायता प्रदान कर रहा है। नोराड (नार्वे एजेन्सी फार डिवलपमेंट) उ0 प्र0 के तीन जिलों Meansात् लखनऊ, मिर्जापुर और रायबरेली में 31 समेकित बाल विकास परियोजनाओं को सहायता दे रहा है। यू0 एस0 ए0 आर्इ0 डी0 गुजरात के पंचमहल जिले में 11 समेंकित बाल विकास सेवा परियोजनाओं और महाराष्ट्र के चन्द्रपुर जिले में 10 समेकित बाल विकास सेवा परियोजनाओं को सहायता दे रहा है। कुछ समेकित बाल विकास सेवा परियोजनाओं को पूरक पोषाहार के लिए ‘‘केयर’’ और विश्व खाद्य कार्यक्रम की सहायता का भी उपयोग Reseller जा रहा है।

4. वृद्धों के कल्याण की Need

संयुक्त राष्ट्र संघ ने वृद्धों कें प्रति अपनी चिंता को व्यक्त करते हुए 1982 के दौरान वियना में आयोजित विश्व Fight महासभा में वृद्धो के लिए अंतर्राष्ट्रीय कार्य योजना अंगीकृत की थी। सयुक्त राष्ट्र के अनुमानों के According, वर्ष 2.25 में विश्व में वृद्धों की जनसंख्या 1.2 विलियन हो जायेगी, जिनमें से लगभग 71 प्रतिशतविकासशील प्रदेशों में होगी। 1950 And 2025 के मध्य विकासशील And विकसित प्रदेशों में 80 वर्ष के ऊपर के वृद्धों की संख्या से दोगुनी हो जायेगी। क्योंकि महिलाओं की आयु पुरूषों से अधिक होती है, अतैव वृद्धो में महिलाओं का बाहुल्य होगा। यह All प्रवृत्तियों राष्ट्रीय सराकरों से मुख्य नीति संशोधन की माँग करती है।

5. पेंशन न्यास कोष – 

चतुर्थ वेतन आयोग को पेंशन की नयी विचारणा का Single सुझाव ‘काँमन को’ द्वारा दिया गया था। इस विचारणा में Single पेंशन न्यास कोष को विकसित करने का विचार निहित है। इस कोष में सरकार कर्मचारी की सेवा अवधि के अनुपात में पेंशन का अनुवर्ती भुगतान अथवा सेवा निवृत्ति पर उसकी कुल पेंशन का भुगतान करेगी। यह न्यास कम से कम 10 प्रतिशत ब्याज की गारण्टी देगा, जो पेंशन भोगी को मासिक भुगतान के Reseller में मिलेगी। जब कभी महँगार्इ भत्ते की नयी किश्त दी जायेगी तो पेंशन भोगी के खाते में जमा कर दी जायेगी। कोष का प्रबन्ध न्याय मंडल द्वारा Reseller जायेगा जिसमें ख्यााति प्राप्त And निवेश अनुभवी लोग होंगे। पेंशन न्यास निधि के अनेक लाभ है। First And सर्व महत्वपूर्ण यह पेंशन भोगी को अथवा उसकी विधवा को पेंशन पाने के लिए विभिन्न प्रक्रियाओं को पूरा करने के लिए चक्कर नही काटने पडे़गे। इससें पेंशन निर्धारण भुगतान And लेखा रखने हेतु विविध स्थापनों पर हुये विशाल व्यय की बचत होगी। न्यास के क्रियान्वन की प्रक्रिया इतना सरलीकृत Reseller जा सकता है जिससें सारा कार्य थोड़े से स्टाफ द्वारा पूरा Reseller जा सके। इसके अतिरिक्त, सरकार न्यास निधि को लाभदायक विकासीय उद्देश्यों हेतु प्रयोग कर सकती है।

5. हैल्पेज इंडिया –

हैल्पेज इंडिया वृद्धों को देखभाल प्रदान करने के कार्यक्रमों में संलग्न प्रादेशिक स्वयं सेवी संगठनों के व्यक्तियों को प्रशिक्षण भी प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त यह वृद्ध देखभाल परियोजनाओं हेतु तकनीकि विशेष ज्ञता भी प्रदान करती है। अपने प्रारम्भ में इसने लगभग 10 करोड़ की लागत से 700 ऐसी परियोजनाओं को प्रयोजित Reseller है। हैल्पेज स्वयं ऐसी परियोजनाओं को परिचालित नही करता, यह प्रादेशिक वृद्धायु स्वयंसेवी संगठनों को तकनीकि And वित्तिय सहायता के द्वारा ऐसी परियोजनाओं के द्वारा And कार्यक्रमों के संचालन में सहायता करता है। हैल्पेज के द्वारा प्रबंधित केवल चलती फिरती मैडीकेयर युनिट का संचालन है जो नर्इ दिल्ली की झुग्गी झोपड़ियों में 150 से 200 रोगियों को प्रतिदिन मैडीकेयर सुविधाएँ प्रदान करती है।

भारत में हेल्पेज इंडिया की स्थापना 1980 में की गर्इ थी जिसके लक्ष्य And उद्देश्य थे – 50 वर्ष से ऊपर के आयु के पुरूषों And स्त्रियों को निवासिय, आवासीय And संस्थागत सुविधाओं के माध्यम से शैक्षिक, मनोरंजनात्मक, सामाजिक, सांस्कृतिक And आध्यात्मिक सेवाएँ प्रदान करना, मेडिकल सेवाओं, अर्द्धकालिक रोजगार आय वृद्धि हेतु, भ्रमणों And यात्राओं की व्यवस्था, करों, सम्पत्ति, पेंशनी And अन्य आर्थिक तथा वित्तिय Needओं हेतु व्यवसायिक परामश्रीय सेवाओ की व्यवस्था करना, वृद्धों की समस्या के बारे में अध्ययन And अनुसंधान कराना, And अध्ययन केन्द्रों, गोष्टियों, मनोरंजनात्मक समारोहों, रैलियों आदि की व्यवस्था करना तथा And युवा पीढ़ियों के मध्य बेहतर सामाजिक Singleीकरण And सद्भावना हेतु उचित वातावरण तैयार करना।

6. वृद्धायु आवास गृह –

केन्द्रीय And राज्य सरकारों, नगरपालिकाओं, परोपकारी समितियों, स्वयंसेवी संगठनों And अन्य वरिष्ठ नागरिक कल्याण समितियों ने वृद्ध And बुजुर्ग नागरिकों के लिए आवासीय सुविधाओं And अन्य सम्बद्ध Needओं की पूर्ति के लिए गृहों, शारीरिक And मानसिक गतिविधियों तथा अकेले पन को दूर करने And अन्य लोगों के साथ अन्तक्रिया करने And सम्पर्क बनाने हेतु मनोरंजन स्थलों की व्यवस्था की है। इस समय देशमें अधिकांशतया नगरीय क्षेत्रों में लगभग 300 ऐसे गृह है।

7. अनुसूचित जातियों And अनुसूचित जनजातियों का कल्याण – 

हरिजनों की अधिकांष संख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। कुछ समय पूर्व तक हरिजन अपनी बस्ती से बाहर निकलने का साहस नही कर पाता था परन्तु देषके कुछ Single भागों में कृषि विकास (विषेश तया हरित क्रान्ति), कुछेक प्रदेशों में औद्योगिक प्रगति, तेजी से बढ़ते हुए नगरीय करण And जनमानी प्रणाली के विघटन के कारण हरिजन गतिषील वर्ग बन गये है All अनुसूचित जाति श्रमिको का लगभग 52 प्रतिशत कृषिगत श्रमिक है तथा 28 प्रतिशतलघु And सीमान्त कृषक है And फसल सहभागी हैं। देशके पश्चिम भाग में लगभग All बुनकर अनुसूचित जातियों से है And पूर्वी भाग में All मछुवारे अनुसूचित जाति के है। कुछ गंदे व्यवसाय यथा झाडू लगाना, चमड़ा उतारना, तथा परिषोधन तथा चमड़ी उतारना पूर्णतया अनुसूचित जातियों के लिए है। नगरीय क्षेत्रों में रिक्शा चालको, ठेला चालको, निर्माण श्रमिकों, बीड़ी क्रमिकों And अन्य असंगठित गैर-कृषि श्रमिकों तथा नगरीय सफार्इ कर्मिकों, की पर्याप्त संख्या अनुसूचित जातियों से सम्बद्ध रखती है। वे उन निर्धनों में जो गरीबी रेखा से नीचे रहते है, में सबसे निर्धन है।यद्यपि जनसंख्या के अन्य वर्गो में भी निर्धन And दलित है तदपि घोर निर्धनता, असामान्य अज्ञानता And गठन अन्धविश्वास में डूबी हुर्इ जनसंख्या की अधिक भाग अनुसूचित जातियों में से है। वंचित लोगों में भी हरिजन ही शताब्दियों तक दासत, अपमान And नितांत विवशता का जीवन व्यतीत करते रहै है।

8. अनुसूचित जाति विकास निगम – 

अनुसूचित जाति विकास निगम के सम्मेलन में समाज कल्याण/अनुसूचित जाति कल्याण विभागों के सचिवों, अनुसूचित जाति विकास निगमों के वरिष्ठ अधिकारियों And प्रबन्धक निदेशकों, Indian Customer रिजर्व बंकै , Indian Customer स्टेट, नाबार्ड, जमा बीमा And ऋण गारण्टी निगम And बैकिंग संस्थानों, कल्याण मंत्रालय And ग्रामीण विकास विभाग, अनुसूचित जाति And अनुसूचित जनजाति आयोग के प्रतिनिधित्व तथा अनुसूचित जनजाति आयुक्त ने भाग लिया। इस सम्मेलन का विषय था, अनुसूचित जाति विकास निगम के माध्यम से अनुसूचित जातियों के परिवारों के आर्थिक विकास हेतु सहायता की नयी प्रणाली जिसे सीमान्त धन ऋण कार्यक्रम के विकल्प Reseller में विकसित Reseller गया था।

9. संवैधानिक Safty 

संविधान में अनुसूचित जातियों And जनजातियों And अन्य कमजोर वर्गो के लिए विशेष तौर पर अथवा नागरिक Reseller से उनके अधिकारों को मान्यता देकर उनके शैक्षिक And आर्थिक हितो का विकास करने And उनकी सामाजिक आयोग्यताओं को दूर करने हेतु Saftyएँ प्रदान की गर्इ है। मुख्य Saftyएँ है-

  1. अस्पृष्यता उन्मूलन And किसी भी Reseller मे इसके अभ्यास पर प्रतिबन्ध, (धारा 17) 
  2. उनके शैक्षिक And आर्थिक हितों की उन्नति And सामाजिक अन्याय And शोषण के All Resellerों से उनकी Safty, (धारा 46) 
  3. सार्वजनिक स्वReseller की हिंदू धार्मिक संस्थाओं को All वर्गो And श्रेणियों के लिये खोल देना (25 बी) 
  4. . दुकानों, जन भोजनालयों, रेस्टोंरेन्टों And सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों, कुओं, तलाबों, स्नानघाटों, सड़कों And सार्वजनिक विश्राम स्थानों जो पूर्णतया अथवा आंशिक Reseller में राज्य कोष से सहायता प्राप्त करते है अथवा जन प्रयोग के लिए समर्पित कर दियें है, के प्रयोग के बारे में किसी अयोग्यता, बाधा अथवा शर्त की समाप्ति (धारा 15 (2)), 
  5. अनुसूचित जातियों के हित में All नागरिकों को स्वतन्त्रापूर्वक घूमने, बसने अथवा सम्पत्ति प्राप्त करने के सामान्य अधिकार पर कानून के द्वारा प्रतिबन्ध (19 (5), संविधान में अनुसूचित जनजातियों के हितों के संरक्षण And वर्द्धन हेतु विभिन्न Saftyओं की व्यवस्था है। अनुच्छेद 19, 46, 164, 244, 330, 332, 334, 338, 349, 342, तथा संविधान की पाँचवी And छठी अनुसूचियाँ इस विशय पर प्रासंगिक है। भारत सरकार कर दायित्व इस मामले में केवल उनके विकास के लिए वित्तिय व्यवस्था करने से ही समाप्त नही हो जाता अपितु यह राज्य सरकारों के सहयोग And परामर्श से उनके शीघ्र And समन्वित विकास हेतु नीतियों And कार्यक्रमों का भी निर्णय करती है। 

10. अन्य पिछडें वर्गो का कल्याण –

अन्य पिछडे वर्गो से Means है ऐसे वर्गो से जो सामाजिक And शैक्षणिक दृष्टि से पिछडे हैं ! इन वर्गो के लिए संवैधारिक And विधिक संरक्षण व्यवस्था राज्य को पिछडे है । इन वर्गो के लिए संवैधानिक And विधिक संरक्षण व्यवस्था  है :-

  1. संवैधानिक व्यवस्था :-संविधान के अनुच्छेद की कोर्इ व्यवस्था राज्य को पिछडे हुए नागरिकों के कियी वर्ग के पक्ष में निका राज्य की राय में राज्य की सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है, Appointmentयों या पदो के आरक्षण के लिए प्रावधान करने से नहीं रोकेगी !
  2. विधिक व्यवस्था :-विकलांगों का कल्याण राष्ट्रीय संर्वेक्षण संगठन क्षरा किये गये संर्वेक्षण के According भारत में बारह मिलियन कुल जनसंख्या का 18 प्रतिशत तक अथवा अधिक विकलांगता से पीड़ित है। इन व्यक्तियों में से लगभग 10 प्रतिशत को Single से अधिक शारीरिक विकलांगता है। प्रत्येक प्रकार की विंकलागता को अलग लेते हुए गत्यात्मक विकंलागता सबसे अधिक (5.43 मिलियन) है, दृष्टिगत विकलांगता (3.47 मिलियन) श्रवण विकलांगता (3.02 मिलियन) And विकलांगता (1.75 मिलियन) है। इस सर्वेक्षण में केवल दृष्टिहीनों, पंगुओं एंव गूँगे व्यक्तियों को ही सम्मिलित Reseller गया है। अन्य विकलांगतों यथा मानसिक मदांधता को सम्मिलित नही Reseller गया है।

11. राष्ट्रीय विकलांग संस्थान –

कल्याण मंत्री के आधीन विकलांगता के प्रत्येक प्रमुख क्षेत्र के चार राष्ट्रीय संस्थान है। ये है- राष्ट्रीय अस्थि विकलांग संस्थान कलकत्ता, राष्ट्रीय दृष्टि विकलांग संस्थान, देहरादून, राष्ट्रीय विकलांग संस्थान सिकन्दराबाद, तथा अली यावर जंग राष्ट्रीय श्रवण विकलांग संस्थान बम्बर्इ। ये संस्थाएँ व्यवासायिकों को प्रशिक्षण, विकलांगों के लिए षिक्षण सामग्री And अन्य सहायकों के उत्पादन, पुर्नवास में अनुसंधान करने तथा विकलांगों के लिए उपर्युक्त प्रतिReseller सेवाओं का विकास करने के लिए शीर्ष संगठन है। यह संस्थान Single Second And देशके अन्य प्रशिक्षण केन्द्रों, स्वयं सेवी संगठनों, राज्य सरकारों, अन्तर्राष्ट्रीय अभिकरणों के साथ मिलकर विभिन्न विकलांग संस्थाओं में आधारिक प्रतिमानों को क्रियान्वित कराने And प्रशिक्षण कार्यक्रमों को उच्चस्तरीय बनाने के लिए कार्य करते है।विकलांगों के लिए समेकित शिक्षा कार्यक्रम का राज्यों द्वारा क्रियान्वन न किये जाने के प्रमुख कारण है। First राज्य स्तर पर विकलांगों की विभिन्न समस्याओं से निपटने के लिए कोर्इ समन्वयक निकाय नही है। द्वितीय, स्कूल स्तर पर इस कार्यक्रम के अधीन अतिरिक्त कार्य सुपुर्द किये जाने का स्वागत नही Reseller गया। तृतीय, अध्यापकों में विकलांग व्यक्तियों, बच्चों का प्रबन्ध करने के लिए योग्यता And प्रशिक्षण का अभाव हं।ै चतुर्थ, माता-पिता समझते है कि विकलांगता र्इश्वर की देन है And इसके लिए कुछ नही Reseller जा सकता है। वे इन बच्चों को स्कूल भी भेजना पंसद नही करते है इस आषंका से कि Second बच्चे उनका उपहास करेगे। पाँचवें, विष्ेाशज्ञों का विचार है कि विभिन्न रियायतों गहन सेवाओं, आरक्षण, यात्रा रियायतें, टेलीफोन स्वीकृत में वरीयता आदि का विकलांगों को जीवन की मुख्य धारा में विलिन करने में अधिक प्रभाव नही हुआ है। समस्या का मूल कारण अवसरों की उपलब्धता की समस्या में निहित है। विकलांगों के लिए शैक्षिक सुविधाएँ सीमित है, जिसके कारण रोजगार And प्रशिक्षण के अवसर सीमित हो जाते है। इस समय, इस कार्यक्रम के क्रियान्वय में केरल अग्रणी है।

समाज कल्याण प्रशासन का वर्गीकरण 

भारत में समाज कल्याण का कार्य प्राचीन काल से ही शैक्षिक आधार पर ही होता आया है। मध्य काल में कतिपय Kingों द्वारा जनहित में कुछ कार्य किये जाते थे। स्वतंत्रता के बाद भारत ने कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को स्वीकार Reseller तथा जनहित को शासन का दायित्व स्वीकार Reseller गया। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त राष्ट्र व अन्य संगठनों तथा प्रजातांत्रिक देशों ने समाज कल्याण हेतु अनेक कार्यक्रम चलाये। वर्तमान में भारत में विभिन्न समाज कल्याण योजनाओं को उनके प्रशासनिकवर्गीकरण के आधार पर निम्न वर्गों में विभाजित Reseller जा सकता है-

  1. अंतर्राष्ट्रीय समाज कल्याण प्रशासन 
  2. केन्द्रीय समाज कल्याण प्रशासन 
  3. राज्य स्तरीय समाज कल्याण प्रशासन 
  4. शासन द्वारा सहायता प्राप्त अनुदान द्वारा समाज कल्याण करने वाली पंजीकृत गैर सरकारी संस्थाओं का प्रशासन 
  5. अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा सहायता प्राप्त अनुदान द्वारा समाज कल्याण करने वाली पंजीकृत गैर सरकारी संस्थाओं का प्रशासन 6. निजी संस्थाओं के द्वारा किये जाने वाले समाज कल्याण का प्रशासन 
  6. स्वैच्छिक संस्थाओं द्वारा किये जाने वाले समाज कल्याण का प्रशासन 

समाज कल्याण प्रशासन की प्रक्रिया 

समाज कल्याण प्रशासन प्रक्रिया में प्रक्रिया समान उद्देश्य प्राप्ति के लिए समूह के पारस्परिक प्रयत्नों को सुविधाजनक बनाती है। प्रशासन प्रक्रिया निम्नाकिंत प्रकार के कार्यो के लिए प्रयोग में लार्इ जाती है।

  1. प्रशासनिक विधि, प्रक्रिया, कार्य की प्रगति और फल-प्राप्ति का समय-समय पर मूल्यांकन होना चाहिए। 
  2. संस्था के उद्देश्यों और कार्यक्रमों संबंधी आँकड़े इकट्ठे करके निर्णय लेने में सहायता करना। 
  3. उपलब्ध आँकड़ों के आधार पर Needओं का विश्लेषण करना।
  4. पूर्वानुमान के आधार पर संस्था के कार्य के लिए बहुत सी वैकल्पिक तकनीकों या प्रक्रियाओं में से Single का चुनाव करना। 
  5. वैकल्पिक प्रक्रिया के प्रयोग के द्वारा संस्था की परियोजनाओं को क्रियान्वित करने की व्यवस्था करना। 
  6. संस्था के कार्य के आधार के अनुReseller आवश्यक कर्मचारियों की भर्ती, प्रशिक्षण, पर्यवेक्षण, कार्य-बँटवारा आदि की व्यवस्था करना। 
  7. संस्था की उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए समुचित उपायों, क्रिया विधियों और तकनीकों के निरंतर प्रयोग की व्यवस्था करना। 
  8. कार्य-विधि के दौरान कार्य को सुदृढ़ बनाने के लिए आकड़ों का संग्रह, अभिलेखन और विश्लेषण करना। 
  9. सार्वजनिक धनराशि के सदुपयोग के हेतु वित्तिय क्रियाविधियों का निर्धारण करना और उनको क्रियान्वित करना। 
  10. संचार और प्रभावशाली जन-सम्पर्क की व्यवस्था करना। 
  11. समय-समय में कार्य और प्रयोग में लार्इ जाने वाली विधियों का मूल्यांकन करवाना।

1. वित्तीय प्रक्रिया –

यद्यपि संस्था के  वित्तीय मामलों का दायित्व प्रबंध-समिति पर होता है, जो कोषाध्यक्ष के माध्यम सें इसे कार्यान्वित करती है, तथापि बजट बनाने में संस्था के मुख्य कार्यपालक को पहल करना चाहिए। यदि संस्था के अनेक अनुभाग अथावा शाखायें हो तो उन सब के अनुमानित व्यय का ब्यौरा प्राप्त करना चाहिए और फिर उसका इकट्ठा description तैयार करना चाहिए। कर्मचारी वर्ग और कार्यकत्त्ााओं की चाहिए वे कार्यालय में अगामी वर्ष के कार्यक्रमों संबंधी  वित्तीय Needओं के विषय में संपूर्ण टिप्पणी रखते जायँ। ऐसा करते समय, संस्था के वित्तीय स्त्रोतों की क्षमता और कार्यक्रमों के विस्तार और सुधार के प्रस्तावों को ध्यान में रखना चाहिए।

उपलब्ध सामग्री के आधार पर बजट के मसविदे पर कर्मचारियों की बैठक में विचार करने के बाद उसे अंतिम Reseller देकर कोषाध्यक्ष के द्वारा प्रबंध समिति के सामने पेश Reseller जाना चाहिए। प्रबंध समिति के द्वारा अनुमोदित बजट की सामान्य सभा से स्वीकृति प्राप्त की जानी चाहिए। प्रबंध समिति के द्वारा बजट उप समिति बनार्इ जानी चाहिए, जिसमें  वित्तीय मामलों के विशेष ज्ञ, लेखा निरीक्षण, लेखाकार तथा मूल्यांकन पद्धति का ज्ञान रखने वाले व्यक्ति होने चाहिए। कोषाध्यक्ष इस समिति का प्रधान और मंत्री इसका मंत्री होना चाहिए।

बजट बनाने से First संस्था के आय व्यय का ब्यौरा मदों के According बनाना चाहिए। बजट के दो भाग होते है आय और व्यय। बजट निम्नलिखित खण्डों में बनाया जाना चाहिए :-

  1. पिछले वर्ष का अनुमानित आय-व्यय। 
  2. पिछले वर्ष का वास्तविक आय-व्यय। 
  3. चालू वर्ष का वास्तविक आय-व्यय। 
  4. अगामी वर्ष का अनुमानित आय-व्यय। 
    बजट के साथ व्याखात्मक टिप्पणी तैयार करनी चाहिए, जिसमें पिछले वर्ष से अधिक और कम अनुमानों के कारा दिये जाने चाहिए और यह भी बताया जाना चाहिए कि मदों पर अतिरिक्त व्यय के लिए धन कहाँ से प्राप्त Reseller जाये। यदि कोर्इ नया कार्यक्रम चालू करना हो अथवा वर्तमान कार्यक्रम में सुधार अथवा विस्तार करना हो, तो उसके लिए अनुमानित व्यय के सबंध में व्याख्यात्मक टिप्पणी देना चाहिए।

    समाज कल्याण प्रशासन का History 

    प्रत्येक व्यक्ति अपनी क्षमता, कुशलता तथा सामाजिक परिस्थितियों के कारण Single Second से भिन्न अस्तित्व रखता है। वह अपनी All Needओं की पूर्ति नहीं कर सकता है। उसे अन्य व्यक्तियों की सहायता लेनी ही पड़ती है जिसके परिणामस्वReseller सामूहिक Needओं का जन्म होता है। व्यक्ति की ये Needयें Single Second को सहायता प्रदान करने के सिद्धान्त पर संगठित करती हं ै तथा उनमें Singleमतता, सामूहिकता तथा सहयोग की भावना का विकास करती हं ै जो Single सभ्य समाज की आधारशिला है। प्रारम्भ में समाज कल्याण के विकास में धर्म के नाम पर दिए जाने वाले दान की संगठित व्यवस्था का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इसके बाद Needग्रस्त सदस्यों की सहायता के लिए व्यावसायिक संघों की पारस्परिक सहायता समितियों की प्रमुख भूमिका रही है। इसके बाद शहरों का विकास होने पर नगरपालिकाओं द्वारा Needग्रस्त लोगों की Needओं की पूर्ति की जाने लगी जो बाद में राज्य के दातव्य संगठनों के Reseller में परिवर्तित हो गर्इ। इसके अतिरिकत जाँन हावड्र, एलिजावेथ फ्रार्इ, जोसफीन ब्टलर, फ्लोरेन्स नाइटिंगेल जैसे समाज सुधारकों के प्रयासों के कारण सामाजिक सहायता के समाधान का विकास हुआ। अंग्रेजी निर्धन कानून का निर्माण समाज के निर्बल वर्गों की समस्याओ के समाधान में राज्य के उत्तरदायित्व की चेतना के विकास का प्रतिनिधित्व करता है और साथ-साथ इस बात को भी सामने लाता है कि केवल सहायता मात्र से कल्याण के लक्ष्यों की प्राप्ति नहीं हों सकती। उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में चलाए गए दान संगठन आन्दोलन का उद्देश्य निर्धनों की स्थिति में सुधार और इस कार्य में लगे हुए संगठनों में समन्वय स्थापित करना था।

    भारतवर्ष में प्राचीन काल से ही व्यक्तियों को सहायता प्रदान करने अथवा सेवा की भावना के महत्व का अनुभव Reseller गया था। गीता के According सृष्टि के आरम्भ में ब्रºमा ने त्याग के साथ मनुष्य की Creation करने के बाद कहा कि पारस्परिक बलिदान तथा पारस्परिक सहायता से उनका विकास तथा उनकी समृद्धि And वृद्धि होगी। यह त्याग कामधेनु के समान है जो All इच्छित वस्तुओं को प्रदान करेगा (बनर्जी, 1967:150)। Indian Customer दर्शन में यज्ञ को बहुत महत्व दिया गया है जिसका Means ऐसी किसी भी सामाजिक, राष्ट्रीय अथवा व्यक्तिगत क्रिया से है जिसमें व्यक्ति सेवा की भावना से अपने को पूर्ण Reseller से लगाने के लिए तैयार है। समाज कल्याण में सेवा की भावना का सर्वोपरि स्थान है। पंचतन्त्र में यह ठीक ही कहा गया है, ‘सेवा धर्म परम गहनो योगिनाम् प्रिय गम्य:’ और इसीलिए जो व्यक्ति सेवा की भावना से, लाभ की भावना से नहीं, तथा आत्मसन्तोष की भावना से, सफलता की भावना से नहीं, कार्य करता है, वही समाज कल्याण में वास्तविक योगदान दे सकता है। कठोपनिषद् में व्यक्तियों द्वारा सम्पन्न किए जाने वाले All कार्यों को पेय्र And श्रेय की श्रेणियों में वर्गीकृत Reseller गया है। समाज कल्याण की दृष्टि से इस बात पर बल दिया गया कि व्यक्ति को अपने लिए प्रेय न होने के बावजूद भी श्रेय कायांरे को करना चाहिए। प्राचीन Indian Customer विचारधारा के According प्रत्येक व्यक्ति को धर्म Meansात् समाज के प्रति अपने निर्धारित कर्तव्यों का पालन करने के लिए कहा गया है जो Single लम्बी अवधि के दौरान व्यक्ति में आत्मविश्वास और शुद्धीकरण को लाते हुए उसका भी कल्याण करता है। इसके साथ ही साथ प्रत्येक व्यक्ति के स्वभाव में अच्छार्इयाँ तथा बुरार्इयाँ दोनों ही पायी जाती हं ै और इन दोनों ही प्रकार की शक्तियों में अन्तर्द्वन्द होता रहता है। अपनी तार्किक शक्ति का उपयोग करते हुए व्यक्ति बुरार्इयों पर काबू पाने का प्रयास करता है तथा अपने प्रयासों से समाज कल्याण में अपना योगदान देता है।

    हिन्दू समाज में जीवन के लक्ष्यों के Reseller में चार पुरुषार्थों-धर्म, Means, काम तथा मोक्ष का वर्णन Reseller गया है। इनमें से इहलौकिक Means तथा काम की पूर्ति भी धर्म द्वारा निर्धारित होती है और अन्तिम उद्देश्य मोक्ष को चरम उत्कर्ष वाला माना जाता था और First तीनों लक्ष्यों का उद्देश्य Fourth लक्ष्य Meansात् मोक्ष को प्रापत करना होता था। हमारे मनीषियों द्वारा कर्तव्यों के संपादन पर अधिक बल दिया गया है और पंच महायज्ञों का प्रावधान करते हुए विभिन्न प्रकार के ऋणों से छुटकारा पाने की बात कही गयी है। भारतवर्ष में सामाजिक न्याय की विचारधारा कभी भी व्यक्ति के अधिकारों पर केन्द्रित नहीं रही है बल्कि यह अन्य व्यक्तियों के प्रति अपने कर्तव्यों के प्रतिपादन पर आश्रित रही है।

    इस प्रकार भारतवर्ष में त्याग की भावना पर हमेशा बल दिया गया है किन्तु इसका Means यह कदापि नहीं था कि व्यक्ति अकर्मण्य बन जाए। निष्काम कर्म का उपदेश इसीलिए दिया गया था ताकि व्यक्ति धर्म द्वारा निर्धारित सीमाओं के अधीन कार्य करते हुए इहलौकिक लक्ष्यों-Means And काम की प्राप्ति कर सके। बुद्धिमान व्यक्तियों को निष्काम कर्म करने की सलाह सम्पूर्ण विश्व का हित करने के लिए दी गर्इ थी। भारतवर्ष में प्राचीन काल में कलयाण की अवधारणा केवल Needग्रस्त वगांर् े तक ही सीमित नहीं थी बल्कि इसके विस्तार क्षेत्र में All वर्ग सम्मिलित थे। इसके साथ ही साथ कल्याण की अवधारणा शारीरिक अथवा भौतिक कल्याण तक ही सीमित नहीं थी और इसीलिए अनेकों ऐसे उदाहरण मिलते हैं जिनमें व्यक्ति अथवा समूह अपने साथियें की विभिन्न प्रकार की Needओं की पूर्ति नाना प्रकार के कार्य करते हुए करते थे जैसे कि कूँएं अथवा तालाब खुदवाना, विद्यालय खोलना, धर्मशालायें बनवाना, अस्पताल स्थापित करना, दार्शनिक विचार-विमर्श के लिए मठों की स्थापना करना, इत्यादि।समाज कल्याण की आवधारणा अत्यन्त प्राचीन है। निर्धनता, बीमारी, कष्ट आदि Human जीवन में सदैव विद्यमान रहे है। प्रारम्भ में गिरोह तथा कबीलों के Reseller में जीवन व्यतीत करता था। किन्तु यह जीवन आरक्षित And अव्यवस्थित था। फलस्वReseller समुदाय, समाज तथा राज्य के Reseller में मनुष्य ने समष्टिगत व्यवस्था को जन्म दिया। इस व्यवस्था के परिणामस्वReseller समाज मेंविश्ेाषीकरण का विकास हुआ और श्रम विभाजन ने जन्म लिया। इस श्रम-विभाजन के कारण समाज में उत्पादन के साधन Single Second से पृथक हो गये। श्रम और पूँजी दो पृथक व्यक्तियों के हाथ में चली गर्इ। इससे समाज में शोषण, उत्पीड़न तथा सम्पत्ति व शक्ति का असमान वितरण प्रारम्भ हुआ। असमान वितरण के कारण ही अनेक सामाजिक समस्याओं का जन्म हुआ और इन समस्याओं को हल करने के लिए समाज कल्याण का विकास हुआ।

    इस प्रकार Indian Customer परम्परा के According व्यक्ति का उद्देश्य स्वार्थ, लालच, तृष्णा जैसी पाशविक प्रवृत्तियों से नियन्त्रित सीमित व्यक्तिवाद को सम्पूर्ण Human-मात्र की भलार्इ के लिए कार्यरत आत्मबोध कराने वाली सार्वभौमिकता में परिवर्तित करना था जो कि समाज कल्याण प्रशासन की प्रारम्भिक स्थिति कही जा सकती है।

    समाज कल्याण प्रशासन समाज के प्रत्येक समाज कल्याण अभिकरण के सुचारू Reseller से कार्य करने से सम्बन्धित है। इसका मुख्य उद्देश्य सामाजिक, आर्थि, सांस्कृतिक तथा नैतिक विकास के लिए लोकतांत्रिक नियोजन के द्वारा कल्याणकारी समाज की स्थापना करना है। समाज कल्याण प्रशासन विकास नीति के प्रतिपादन में सहायता करता है। इसके साथ ही अनेक प्रमुख समाज कल्याण सेवाओं को समन्वित ढ़ग से नियोजित, व्यस्थित And कार्यान्वित करने में सहायता करता है। इन सेवाओं में राजकीय तथा स्वयंसेवी अभिकरणों का मिलकर कार्य करना भी शामिल है, यद्यपि विविध समाज कल्याण सेवाओं में इन दोनों का अनुपात भिन्न-भिन्न हो सकता है। इन सेवाओं को इन क्षेत्रों में विभाजित Reseller जा सकता है:-

    1. समाज सेवायें –

    1. शिक्षा- इसके अन्तर्गत प्राथमिक, माध्यमिक, विश्वविद्यालय स्तरीय, तकनीकि व्यावसायिक, श्रमिक तथा सामाजिक शिक्षा सम्मिलित हैं। शिक्षा का समन्वय जनषक्ति नियोजन द्वारा होना चाहिए। शिक्षा Human संसाधन के विकास में निवेश मानी जाने लगी है। यह Single प्रशंसनीय प्रगति है, परन्तु शिक्षा में सामाजिक मूल्यों तथा नैतिक विकास पर विशेष ध्यान देन की Need है।
    2. स्वास्थ्य सेवायें And परिवार नियोजन – स्वास्थ्य सेवाओं में चिकित्सकीय, निरोधात्मक तथा स्वस्थ्य वर्धक सेवायें आती है। जन्म दर में वृद्धि में विशेष कमी करने के लिउ परिवार नियोजन आवश्यक है। इस कार्य में स्वयंसेवी संस्थाओं का सहयोग निन्तात आवश्यक है। कृत्रिम साधनों के प्रयोग के साथ साथ संयम तथा नैतिक जीवन पर भी ध्यान देना चाहिए ताकि वह प्रयास पाश्चात्य देशों का अनुकरण मात्र ही बनकर न रह सके।
    3. आवास – निम्न आय वाले वर्ग के लिए ऋणमुक्त अनुदान की व्यवस्था की जाती है क्योकि साधनों के अभाव के कारण आवास स्थिति में विशेष सुधार की आशा नही की जा सकती है। राज्य की और से भी कम मूल्य के आवास बड़ी संस्था में बनाये जा सकते है।

    2. सामाजिक Safty 

    सामाजिक Safty को सुदढ़ बनाने के लिए सामाजिक बीमा का महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। इन योजनाओं को Singleीकृत करते हुए अधिक व्यापक बनाया जा सकता है। इससे निम्न आय वर्ग से प्राप्त धनराशि से योजना के साधनों में वृद्धि की जा सकती है। सामाजिक सहायता द्वारा वृद्धों, अबलाओं आदि को राज्य की ओर से आर्थिक सहायता दी जाती है। धन के आभाव के कारण इन सेवाओं को और अधिक व्यापक बनाने में अभी भी कठिनार्इ है। स्वयंसेवी संस्थायें इस ओर ध्यान दे तो अधिक साधन जुटाये जा सकते है।

    3. सामुदायिक विकास 

    सामुदायिक विकास ग्रामीण तथा नगरीय दोनों स्तर पर होता है। इन दोनों स्तरों का Singleीकृत कर Single व्यापक सामुदायिक विकास योजना के चलाये जाने की Need है जिससे संतुलित विकास सम्भव हो सके।

    4. श्रम सम्बन्ध 

    श्रमिक संघों की नियोजन की प्रक्रिया में सहभागिता आवश्यक है। राजकीय तथा निजी क्षेत्रों में प्रबंधकों और श्रमिकों के बीच मधुर सम्बन्ध स्थापित करते हुए उत्पादकता में वृद्धि की जा सकती है।

    5. समाज कल्याण 

    अनुसूचित जातियों, जनजातियों तथा पिछड़ी जातियों की कल्याण योजनाओं का विस्तार Reseller जाना चाहिए जिससे इस वर्ग में भी Singleीकरण हो सकें। शारीरिक Reseller से बाधित जैसे अंधे, बधिर, अपाहिज, आदि के लिए कल्याणकारी योजनाओं का निर्माण होना चाहिए। समाज में इनके पुनस्र्थापन को अधिक महत्व दिया जाना चाहिए। मानसिक रोगियों के लिए Humanता वादी समाज की व्यवस्था की जानी चाहिए तथा Single राष्ट्रवादी तथा Single राष्ट्रव्यापी Human आरोग्य शास्त्र का विधिवत प्रचार Reseller जाना चाहिए। सामाजिक चेतना के Creationत्मक कार्यो से मानसिक स्वास्थ्य में वृद्धि हो सकती है।

    6. सामाजिक रक्षा 

    वयस्क, युवा तथा बाल अपराधियों के लिए सुधार सम्बन्धी सेवाओं की व्यवस्था की जानी चाहिये। इसमें बन्दीगृह, प्रोबेशन, पुनर्वास आदि सेवायें आती है। अनैतिक व्यापार से पीड़ित लड़कियों तथा स्त्रियों के लिए नारी निकेतन तथा भिक्षुओं के लिए गृह स्थापित किये जाने चाहिए।

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