समाज कल्याण प्रशासन की अवधारणा, प्रकृति And कार्य

समाज के प्रत्येक व्यक्ति की Needओं की पूर्ति उचित ढ़ग से करना, जिससे कि वह सुखी और सन्तोषजनक जीवन व्यतीत कर सके, कल्याणकारी राज्य का प्रमुख उदेद्श्य है। प्रभावकारी सेवाओं को विस्तृत स्तर पर लागू करने के लिए, योजना, निर्देशन, समन्वय और नियंत्रण का सामूहिक प्रयास Reseller जाता है। समाज कार्य की सेवाओं को व्यवसायिक स्वReseller प्रदान करने के लिए भी यह आवश्यक है कि समाज कार्यकर्ताओं को आवश्यक ज्ञान और कौशल प्रदान Reseller जाये। समाज कार्य सेवाओं को प्रदान करने में आवश्यक प्रशासनिक And नेतृत्व दक्षता के लिए कार्यकर्ता को इस ज्ञान और कौशल का प्रयोग करके सेवाओं को और प्रभावकारी बनाया जा सकता है। अत: यह आवश्यक है कि समाज कार्यकर्ताओं को Single व्यवस्थित ज्ञान And तकनीकी कौशल प्रदान Reseller जाये।

समाज कल्याण प्रशासन की अवधारणा 

समाज कल्याण प्रशासन समाज कार्य की Single प्रणाली के Reseller में कार्यकताओं को प्रभावकारी सेवाओं हेतु ज्ञान And कौशल प्रदान करता है। यद्यपि समाज कल्याण प्रशासन , समाज कार्य की द्वितीयक प्रणाली मानी जाती है परन्तु First तीनों प्राथमिक प्रणालियों, वैयक्तिक सेवा कार्य, सामूहिक सेवा कार्य, तथा सामुदायिक संगठन की सेवाओं में सेवाथ्र्ाी को सेवा प्रदान करने हेतु समाज कल्याण प्रशासन की Need पड़ती है। समाज कल्याण प्रशासन का आशय जन सामान्य के लिए बनायी गयी And सामुदायिक सेवाओं जैसे स्वास्थ्य, आवास शिक्षा और मंनोरजन के प्रशासन से है। इसे समाज सेवा प्रशासन के पर्यायवाची Word के Reseller मे समझा जाता है।

समाज कल्याण प्रशासन की प्रकृति 

समाज कल्याण प्रशासन विज्ञान तथा कला दोनों हैं। Single विज्ञान के Reseller में इसके क्रमबद्ध ज्ञान होता है जिसका उपयोग सेवाओं को अधिक प्रभावी बना देता है। विज्ञान के Reseller में इसके निम्न तत्व प्रमुख है नियोजन, संगठन, कार्मियों की भर्ती, निर्देशन, समन्वय, प्रतिवेदन, बजट तथा मूल्यांकन। कला के Reseller में समाज कल्याण प्रशासन में अनेक निपुणताओं तथा प्रविधियों का उपयोग होता है जिसके परिणाम स्वReseller उपयुक्त सेवाओं को प्रदान सम्भव होता है। समाज कल्याण प्रशासन की निम्न प्रमुख विषेशतायें है:-

  1. प्रशासन कार्यो को पूरा करने के लिए की जाने वाली Single प्रक्रिया है। समाज कल्याण प्रशासन में स्वास्थ्य, शिक्षा आवागमन, आवास, स्वच्छता, चिकित्सा, आदि सेवाओं को प्रभावकारी बनाया जाता है। 
  2. समाज कल्याण प्रशासन की संCreation में Single उच्च-निम्न की संस्तरणात्मक व्यवस्था होती है। कर्मचारियों की स्थिति के According उनके कार्य तथा शक्तियाँ निर्धारित होती है। 
  3. नेतृत्व निर्णय लेने की क्षमता, शक्ति, संचार आदि प्रKingीय प्रक्रिया के प्रमुख अंग है। 

समाज कल्याण प्रशासन मूलReseller से निम्न क्रियाओं से सम्बन्धित है:- 

  1. राज्य के सामाजिक लक्ष्यों को प्राप्त करन के लिए ऐसी नीति निर्धारित करना जिससे संगठनल में कार्यरत जनशक्ति Singleीकृत Reseller से कार्य कर सके। 
  2. सेवाओं के प्रभावपूर्ण प्रावधान के लिए संगठनात्मक संCreation की Resellerरेखा तैयार करना। 
  3. संसाधनों, कर्मचारीगण तथा आवश्यक प्रविधियों का प्रबन्ध करना।
  4. आवश्यक ज्ञान And निपुणताओं से युक्त Human संसाधन का प्रबन्ध करना।
  5. उन क्रिया-कलापों को सम्पादित करवाना जिनसे अधिकतम संतोषजनक ढ़ग से लक्ष्य की प्राप्ति हो सके। 
  6. ऐसा वातावरण तैयार करना जहाँ आपसी मेल-मिलाप तथा प्रगाढ़ता बढ़े And कर्मचारी कार्य करने की प्रक्रिया के दौरान में सुख अनुभव करें। 
  7. किये जाने वाले कार्यो को निरन्तर मूल्यांकन करना। 

समाज कल्याण प्रशासन के कार्य 

समाज कल्याण प्रशासन न केवल संस्था के कार्यो को सम्पादित करता है बल्कि वह संस्थओं को निरन्तर उन्नति की दिशा में बढ़ाने का प्रयास भी करता है। वारहम के विचार से समाज कल्याण प्रशासन के निम्न कार्य है:-

  1. संस्था के उद्देश्य को पूरा करना समाज कल्याण प्रशासन संस्था की नीतियों को कार्यान्वित करता है। नीतियों को केवल प्रषासनिकप्रक्रिया द्वारा ही कार्यReseller प्रदान Reseller जा सकता है। वह नीतियों के निर्धारण में भी भाग लेता है जिससे संस्था के उद्देश्यों तथा नीतियों में SingleResellerता बनी रहे। 
  2. संस्था की औपचारिक संCreation का निर्माण करना समाज कल्याण प्रशासन का दूसरा कार्य सम्पेष््र ाण व्यवस्था को अधिक प्रभावी बनाने के लिए औपचारिक संCreation का निर्माण करना होता है, कर्मचारियों के लिए मानदण्ड निर्धारित करना होता है, तथा उन्ही के According कार्य सम्बन्ध विकसित करना होता है।
  3. सहयोगात्मक प्रयत्नों को प्रोत्साहन प्रदान करना प्रशासन का कार्य संस्था में ऐसा वातावरण तैयार करना होता है जिससे कर्मचारीगण पारस्परिक सहयोग से अपने उत्तरदायित्वों को पूरा कर सकें। यदि कहीं भी संघर्ष के बीज पनपने लगें तो उनकों तुरन्त Destroy कर देना आवश्यक होता है। कर्मचारियों के मनोबल को ऊँचा बनाये रखने के हर सम्भव प्रयत्न किये जाने आवश्यक होते है। 
  4. संसाधनों की खोज तथा उपयोग करना किसी भी संस्था के लिए Means शक्ति तथा Human शक्ति दोनों आवश्यक होती है। संस्था तभी अपने उत्तरदायित्वों को पूरा कर सकती है जब उसके पास पर्याप्त धन हो तथा दक्ष कर्मचारी हों। आर्थिक स्त्रोतों का पता लगाकर उनके समुचित उपयोग करने की व्यवस्था का कार्य प्रशासन हो होता है। वित्त पर नियंत्रण रखने का कार्य भी उसी का होता है। वह अपनी शक्तियों को हस्तांतरित भी करता है जिससे Second अधिकारी इस शक्ति का उपयोग कर सके। 
  5. अधीक्षण का मूल्यांकन प्रशासन संस्था के कार्यो के लिए उत्तरदायी होता है। अत: वह इसकी All गतिविधियों पर दृष्टि रखता है। वह संस्था के कर्मचारियों की आवश्यक तानुसार सहायता करता है तथा दिशा निर्देश देता है। वह सदैव कार्य प्रगति का लेखा-जोख रखता है। वह कार्यो का मूल्यांकन निरन्तर करता रहता है। 

लूथर गलिक ने समाज प्रशासन के कार्यो का वर्णन करने के लिए जादुर्इ सूत्र ‘पोस्डकार्ब’ प्रस्तुत Reseller है जिसका तात्पर्य है नियोजन करना, संगठन करना, कर्मचारी Appointment, निर्देशित करना, समन्वय करना, प्रतिवेदन प्रस्तुत करना तथा बजट तैयार करना।

1. नियोजन

नियोजन का Means है भावी लक्षित कार्य की Creation। इसमें वर्तमान दशाओं का मूल्यांकन, समाज की समस्याओं And आवश्यक ताओं का पहचान, लधु अथवा दीर्घ अवधि के आधार पर प्राप्त किये जाने वाले उद्ेदश्य And लक्ष्य तथा वाछित साध्यों की प्राप्ति के लिए क्रियान्वित किय जाने वाले कार्यक्रम का चित्रण निहित है। भारत में योजना आयोग की स्थापना काल से तथा 1951 में नियोजन प्रक्रिया के आरम्भ से समाज कल्याण नीतियों, कार्यक्रमों And प्रKingीय संयत्र पर यघपि आरम्भ में अधिक बल नही दिया गया, परन्तु उसके बाद क्रमिक पंचवर्षिय योजनाओं में उन्हें उचित वाछित स्थान दिया गया है। नियोजित विकास के गत चार दशकों के दौरान समाज कल्याण को योजना के Single घटक के Reseller में महत्व प्राप्त हुआ हैए जैसा योजनाओं में परिलक्षित है। उदाहरणातया First योजना में राज्यों से लोगों के कल्याण हेतु सेवाएँ प्रदान करने के लिए बढ़ती हुर्इ योजना का आहृान Reseller गया है। दूसरी पंचवर्षिय योजना में समाज के पीड़ित वर्गो को समाज सेवा प्रदान करने की धीमी गति के कारणों पर ध्यान दिया गया। तीसरी योजना में महिला And बाल देखभाल, सामाजिक Safty, विकलांग सहायता तथा स्वयंसेवी संगठनों को सहायता अनुदान पर बल दिया गया। चतुर्थ योजना में निराश्रित बच्चों की आवश्यक ताओं को बल मिला। पाँचवी योजना में कल्याण And विकास सेवाओं के उचित समेकन को लक्ष्य बनाया गया। छठी योजना में समाज कल्याण के आकारचित्र के अन्दर बाल कल्याण को उच्च प्राथमिकता दी गर्इ Sevenवीं योजना में समाज कल्याण कार्यक्रमों को इस प्रकार से आकार दिया गया ताकि वे Human संचालन विकास की दिशा में निर्देशित कार्यक्रमों के पूरक बने। आठवी पंचवष्र्ाीय योजना में, प्रत्याशा है, वर्तमान कल्याण कार्यक्रमों का विस्तार तथा नये कार्यक्रमों को सम्मिलित Reseller जायेगा।

नियोजन Single बौद्धिक प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य कार्यो को व्यवस्थित ढ़ग से सम्पादित करने की Resellerरेखा तैयार करना होता है। यह Reseller रेखा पूर्व उपलब्ध तथ्यों के आधार पर भविष्य के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर तैयार की जाती है। बिना विस्तृत नियोजन के कार्यो को ठीक प्रकार के पूरा करने में कठिनार्इ आती है। नियोजन का प्रमुख कार्य उद्देश्यों को स्पष्ट Reseller से पारिभाषित करना होता है। इसके बाद इन लक्ष्यों And उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए नीति निर्धारित करनी होती है। तीसरा कदम इन तरीकों तथा साधनों की व्यवस्था करनी होती है। तदंपु रान्त उन ढ़गों तथा साधनों की व्यवस्था करनी होती है जिनके द्वारा नीतियों को कार्यान्वित कर लक्ष्यों को प्राप्त Reseller जा सके। कार्य का निरन्तर मूल्यांकन भी करना होता है।

2. संगठन

संगठन से तात्पर्य किसी निश्चित उदेद्श्यों हेतु Humanी कार्यक्रमों का सचेतन समेकन है। इसमें अन्तनिर्भर अंगों को क्रमबद्ध तौर पर इकट्ठा करके Single Singleत्रित समष्टि का Reseller दिया जाता है। भूतकाल में समाज कल्याण न्यूनाधिक Single छितरायी And तदर्थ राहत क्रिया थी जिसका प्रशासन किसी व्यापक संगठनात्मक संCreationओंं के बिना Reseller जाता था। जो कुछ भी कार्य Reseller जाना होता था, उसका प्रबन्ध सरल, तदर्थ, अनौपचिरिक माध्यम से सामुदायिक And लाभ भोक्ताओं के स्तर पर ही हो जाता था। Single अन्य तत्व जो समाज कल्याण की अनौपचारिक And असंगठित प्रकृति का कारण बना, वह अषासकीय And स्वयंसेवी कार्य पर निर्भरता था। सरकारी प्रक्रियाएँ जो विशाल संगठनात्मक संCreation तथा भारी नौकरशाही का Reseller ले लेती है, से भिन्न अषासकीय क्रिया समाज कल्याण का मुख्य आधार रही जो अपनी प्राकृति के कारण अत्याधिक औपचारिक संगठित संयत्र पर कम आश्रित थी। परन्तु समाज कल्याण कार्यक्रमों के विस्तार तथा प्रभावित व्यक्तियों की संख्या And व्यथित धनराषि की मात्रा के कारण संगठन Indispensable हो गया है।

संगठन औपचारिक And अनौपचारिक हो सकता है। औपचारिक संगठन में सहकारी प्रयासों की नियोजित प्रणाली है जिसमें प्रत्येक भागीदार की निश्चित भूमिका, कर्तव्य And कार्य होते है। परन्तु कार्यरत व्यक्तियों में सद्भावना And पारस्परिक विश्वास की भावनाएँ विकसित करने हेतु अनौपचारिक सम्बन्ध समाज कल्याण कार्यक्रमों के सुचारू संचालन के लिए आवश्यक है।

संगठन के अन्तर्गत इसकी प्रभावी क्रियाशीलता के लिए कुछ सिद्धान्तों पर बल दिया जाता है। यह अपने सदस्यों के मध्य कार्य विभाजन करता है। यह विस्तृत प्रक्रियाओं के द्वारा मापक कार्यक्रमों की संस्थापना करता है, यह संचार प्रणाली की व्यवस्था करता है। इसकी पदोसोपानीय प्रक्रियायँ होती है जिससे सत्ता And दायित्व की रेखाएँ विभिन्न स्तरों के मध्य से शीर्ष तथा नीचे की ओर आती जाती है तथा आधार चौड़ा And शीर्ष पर Single अकेला अध्यक्ष होता है। इसमें आदेश की Singleता होती है जिसका Means है कि कोर्इ भी व्यक्ति कर्मचारी Single से अधिक तात्कालिक वरिष्ठ से आदेश प्राप्त नही करेगा, ताकि दायित्व स्पष्ट रहे और भ्राँति उत्पन्न न हो।

समाज कल्याण का स्वReseller संगठन कल्याण मंत्रालय के संगठन में देखा जा सकता है। इसमें मंत्री इसका राजनीतिक अध्यक्ष तथा सचिव प्रषासकीय मुख्य अधिकारी है। विभिन्न स्कीमों के लिए विभिन्न प्रभाग है, केन्द्रिय स्तर पर अधीनस्थ संगठन तथा राष्ट्रीय सामाजिक Safty संस्थान विकंलागों के लिए राष्ट्रीय आयोग And अल्पसंख्यक आयोग है। राज्यों And संघ क्षेत्रों के स्तरो पर समाज कल्याण विभाग का संगठन Reseller गया है। तथा केन्द्रीय And राज्य दोनों स्तरो पर समाज के विभिन्न वर्गो, यथा महिला, बालक, अनुसूचित जातियाँ And जनजातियाँ, भूतपूर्व सैनिकों के कल्याण हेतु निगमों की स्थापना की जाती है, स्वयंसेवी संगठनों में Indian Customer बाल कल्याण परिषद मुख्य संस्था है। कल्याण मंत्रालय कल्याणकारी क्रियाकलापों में मूल And मुख्य Reseller संलग्न स्वयं सेवी संगठनों को संगठनात्मक सहायता देती है जिनका क्रियाक्षेत्र उनकी विभिन्न गतिविधियों के समन्वय हेतु केन्द्रीय कार्यालय की माँग करता है। स्थानीय स्तर पर कल्याणकारी सेवाओं का संगठन विदेशों में उनके प्रतिभागों की तुलना में कमजोर है। संगठन का कार्य बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि संस्था के कार्यो का सम्पादन संगठन पर ही निर्भर होता है। भूमिकाओं तथा परिस्थितियों का निर्धारण Reseller जाता है। घटकों के बीच सम्बन्धों को पारिभाषित Reseller जाता है तथा इसी के साथ उत्तरदायित्वों को भी स्पष्ट Reseller जाता है। संस्था के लक्ष्यों को ध्यान में रखकर संगठन की Resellerरेखा तैयार की जाती है

3. कर्मचारियों का चयन

अच्छे संगठन की स्थानपा के बाद, प्रशासन की दक्षता And गुणवत्ता प्रशासन में सुप्रस्थापित कार्मिको की उपर्युक्तता से प्रभावित हेाती है। दुर्बल तौर पर संगठित प्रशासन को भी चलाया जा सकता है यदि इसका स्टाफ सुप्रशिक्षित बुद्धिमान कल्पनाशील And लगनशील हो। दूसरी ओर, Single सुनियोजित संगठन का कार्य असंतोष जनक हो सकता है। इस प्रकार स्टाफ Kingीय And अषासकीय दोनों प्रकार के संगठनों का अनिवार्य अंगभूत आधार है। भर्ती, चयन, Appointment, वर्गीकरण, प्रशिक्षण, वेतनमान And अन्य सेवा शर्तो का निर्धारण, उत्प्रेरणा And मनोबल, पदोन्नति आधार And अनुशासन, सेवानिवृत्ति, संघ And समिति बनाने का अधिकार इन सब समस्याओं की उचित देख भाल आवश्यक है। जिससे कि कर्मचारी अपने कार्यो को सच्ची लगन से निष्पादन And संगठन का अच्छा चित्र प्रस्तुत कर सके। संस्था के कर्मचारियों का चयन प्रKing का Single आवश्यक कार्य होता है क्योंकि इसी विशेष ता पर संस्था के कार्यो का सम्पादन निर्भर होता है। जिस प्रकार के कर्मचारी होते है उसी के According संस्था सेवायें प्रदान करती है। इस कार्य में निम्नलिखित बिन्दु महत्वपूर्ण होते है।

  1. कर्मचारी चयन, पदोन्नति आदि से सम्बन्धित नीति स्पष्ट होनी चाहिए। 
  2. कर्मचारियों की शिकायतों का निपटारा शीघ्र Reseller जाना चाहिए। 
  3. निर्णय पर बल दिया जाना चाहिए तथा दबाव के प्रभाव से उसे बदला नही जाना चाहिए। 
  4. All कर्मचारियों के स्पष्ट कार्य होने चाहिए तथा उसका उत्तरदायित्व निश्चित होना चाहिए। 
  5. कर्मचारियों में सहयोग की भावना विकसित करने के निरन्तर प्रयत्न किये जाने चाहिए। 
  6. सम्पेष््र ाण द्विमख्ु ाी होना चाहिए Meansात् प्रशासन तथा कर्मचारियों की और से विचारों का परस्पर आदान-प्रदान होना चाहिए। 

4. निर्देशन 

निर्देशन से तात्पर्य है -संगठनों के कार्यक्रमों के क्रियान्वयन हेतु आवश्यक निर्देश And दिशा निर्देश जारी करना तथा बाधाओं को दूर करना। कार्यक्रम के क्रियान्वन से सम्बन्ध निर्देशों में क्रियाविधि नियमों का भी History होता है ताकि निर्धारित उदेद्श्य की उपलब्धि संक्षम And सुगम ढ़ग से हो सके। क्रियाविधि नियमों में यह भी described Reseller जाता है कि अभिकरण की किसी विशिष्ट गतिविधि से सम्बन्धित किसी प्रार्थना अथवा जाँच-पड़ताल पर किस प्रकार कार्यवाही की जाए। समाज कल्याण प्रशासन में निर्देश अपरिधर्म है। क्योंकि ये लाभभोक्ताओं को कल्याण सेवाएँ प्रदान करने में संलग्न अधिकारियोंं को दिशा निर्देश तथा योग्य प्रार्थियों को कोर्इ लाभ दिये जाने से पूर्व अनुपालित क्रियाविधि के बारे में जानकारी प्रदान करते है। परन्तु क्रियाविधि की कठोरता से अनुपालन लालफिता शाही को जन्म दे सकता है जिसमें जरूरतमंद व्यक्तियों को वाछिंत लाभ प्रदान करने में अनावष्यक देरी तथा परेशानी हो जाती है। समाज कल्याण प्रशासन के कार्मिकों द्वारा अपने दायित्व पर कोर्इ निर्णय लेने से बचना तथा दायित्व Second पर थोपना व्यक्तियों And समुदायों की प्रभावी सेवा को बाधित करने वाला दोष है जिसके विरूद्ध Safty की जानी आवश्यक है। संस्था के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कर्मचारियों को दिशा-निर्देश देना आवश्यक होता है। निर्देशन के निम्नलिखित उद्देश्् य है:-

  1. यह देखना कि कार्य नियमों तथा निर्देशों के अनुReseller हो रहा है।
  2. कर्मचारियों की कार्य सम्पादन में सहायता प्रदान करना। 
  3. कर्मचरियों में हीन भावना And सहयोग की भावना बनाये रखना। 
  4. कार्य का स्तर बनाये रखना। 
  5. कार्यक्रम की कमियों से परिचित होना तथा उसको दूर करने का प्रयास करना। 
  6. समन्वय का तात्पर्य Single सामान्य क्रिया, आन्दोलन या दशा को प्राप्त करने के लिए भिन्न-भिन्न अंगों में परस्पर सम्बन्ध स्थापित करना होता है। 
    संस्था में समन्वय के दो महत्वपूर्ण कार्य है : उद्देश्यों तथा क्रियाओं में Single Resellerता स्थापित करना तथा किये जाने वाले कार्यो में Singleता लाना लेकिन यह तभी सम्भव है जब संस्था का प्रत्येक सदस्य सामान्य दृष्टिकोण रखता हो।

    प्रत्येक संगठन में कार्य विभाजन And विषिष्टिकरण होता है। इससे कर्मियों के विभिन्न कर्तव्य नियत कर दिए जाते है तथा उनसे प्रत्याशा की जाती है कि वे अपने सहकर्मियों के कार्य में कोर्इ हस्तक्षेप न करे। इस प्रकार प्रत्येक संगठन में कर्मिकों के मध्य समूह भावना से कार्य करने तथा कार्यो के टकराव And दोहरेपन को दूर करने का प्रयास Reseller जाता है। कर्मचारियों में सहयोग And टीम वर्क को विश्वस्त करने के इस प्रबन्ध केा समन्वय कहते है। इसका उदे्दश्य सांमजस्य, कार्य की Singleता And संघर्ष से बचाव को प्राप्त करना है। इसके उद्ेदश्य को दृष्टि में रखते हुए, मूने And रेले समन्वय को संगठन का First सिद्धान्त तथा अन्य सब सिद्धान्तों को इसके अधीन समझते है। क्योकि यह संगठन के सिद्धान्तों का यौगिक तौर पर प्रकटीकरण करता है। चाल्र्सवर्थ के According ‘‘समन्वय का Means है उपक्रम के उदे्देश्य को प्राप्त करने के लिए कर्इ भागों को Single सुव्यवस्थित समग्रता में समेकन।

    न्यूमैन के According ‘‘समन्वय का Means है प्रयासों का व्यवस्थित ढ़ग से मिलाना ताकि निर्धारित उदेद् “यों की प्राप्ति के लिए निष्पदन कार्य की मात्रा तथा समय को ठीक ढ़ग से निर्देषित Reseller जा सके। समाज कल्याण में समन्वय का केन्द्रीय महत्व है क्योंकि समाज कल्याण कार्यक्रमों में अनेक मंत्रालय, विभाग And अभिकरण कार्यरत है जिनमें कार्य के टकराव And दोहरेपन के दोष पाये जाते है जिससे Human प्रयास And संसाधनों का अपव्यय होता है। इस समय केन्द्रीय स्तर पर कल्याण सेवाओं में कार्यरत 6 मंत्रालय है तथा कल्याण प्रशासन के क्रियान्वन में विषयों की छिन्न भिन्नता, अनुदान देने वाले निकायों की बहुलता, संचार में देरी तथा सहयोगी प्रयासों के प्रति विमुखता अधिक दिखार्इ देती है। इसी प्रकार, राज्य स्तर पर विभिन्न राज्यों में Seven में सत्रह तक विभाग कल्याणकारी मामलों में सम्बद्ध है And कल्याणकारी सेवाओं के कार्यक्रमों में उपागम की Singleता, संगठन में समResellerता And क्रियान्विति में समन्वय का अभाव पाया जाता है। स्वयंसेवी संगठन भी कल्याणकारी सेवाओं में कार्यरत है। उनके मध्य तथा उनके And सरकारी विभागों के मध्य समन्वय की समस्याएँ जटिल से जटिलतर होती जा रही है, जैसे-जैसे सहायता अनुदानों में उदारता आने के कारण उनकी संख्या में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है।

    विभिन्न मंत्रालयों, विभागों And स्वयंसेवी संगठनों के मध्य समन्वय को अन्र्तविभागीय And विभागांतर्गत सम्मेलनों, विभिन्न हित समूहों के गैर-सरकारी प्रतिनिधियों को परामर्श हेतु सम्मिलित करके द्वारा प्राप्त Reseller जा सकता है। अत: कल्याण मंत्रालय राज्य सरकारों And केन्द्रषासित प्रदेशों के समाज कल्याण मंत्रियों तथा विभाग सचिवों का वार्षिक सम्मेलन समाज कल्याण के विविध मामलों And कार्यक्रमों पर विचार विमर्श And उनके प्रभावी क्रियान्वयन को आष्वस्त करने तथा दोहरेपन से बचने हेतु बुलाता है। संस्थागत अथवा संगठनात्मक विधियों, यथा अन्तर्विभागीय समितियों And समन्वय अधिकारियों, प्रक्रियाओं And विधियों के मानकीकरण, कार्यकलापों के विकेन्द्रीकरण आदि के द्वारा भी समन्वय प्राप्त Reseller जा सकता है। 1953 में स्थापित केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड जिसमें सरकारी अधिकारी तथा गैर-सरकारी समाजिक कार्यकर्ता सम्मिलित है, को समाज कल्याण कार्यक्रमों में कार्यरत सरकारी संगठनों And स्वयंसेवी संगठनों के मध्य उचित समन्वय प्राप्त करने का Single माध्यम बनाया गया है। राज्यीय समाज कल्याण परामर्शदात्री बोर्डो को भी राज्य सरकार And केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड के कार्यकलापों के मध्य अन्य कार्या सहित समन्वय लाने तथा दोहरेपन को दूर करने का कार्य सुर्पुद Reseller गया। परन्तु समन्वय हेतु इन संस्थागत प्रबन्धों के बावजूद भी सरकारी And स्वयंसेवी संगठनों के क्षेत्राधिकारों मे कल्याण कार्यक्रमों में टकराव And दोहराव के दोष पाये जाते है। सरकारी And स्वयंसेवी संगठनों के कार्यकलापों के क्षेत्रों का सुस्पष्ट सीमांकन, कल्याण सेवाओं की समेकित विकास नीति And प्रेरक नेतृत्व कल्याण सम्बन्धी उद्देश्यों की अधिकतम प्राप्ति हेतु उचित समन्वय विश्वस्त करने में काफी सहायक होगे।

    5. प्रतिवेदन

    प्रतिवेदन का Means है, वरिष्ट And अधिनस्थ अधिकारियों को गतिविधियों से सूचित रखना तथा निरीक्षण, अनुसंधान And अभिलेखों के माघ्यम से तत्सम्बधी सूचना Singleत्रित करना। प्रत्येक समाज कल्याण कार्यक्रम के कुछ लक्ष्य And उद्देश्य होते है। संगठन की सोपानात्मक प्रणाली में मुख्य कार्यकारी निचले स्तरों पर कार्य कर रहे कर्मचारियों की नीति, वित्तिय परिव्यय And निर्धारित उद्देश्य की प्राप्ति हेतु समय सीमा से अवगत कराता है अधीनस्थ कर्मचारी उच्च अधिकारियों को समय-समय पर मासिक, त्रैमासिक And वार्षिक, लक्ष्यों के सापेक्ष में प्राप्त उपलब्धि, व्ययित राशि, And सामने आयी समस्याओं, यदि कोर्इ है, तथा इन समस्याओं के समाधान हेतु उनका मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए रिपोट भेजते है। विभिन्न मामलों के समाधान हेतु अभिकरण And अन्तर्भिकरण स्तर पर आयोजित सम्मलनों And विचार विमर्शो की सूचना भी भेजी जाती है। उच्च अधिकारी अधीनस्थ कार्यालयों का निरीक्षण उनके कार्यकलापों की जानकारी प्राप्त करने And अनियमितताओं को पकड़ने तथा इनको भविष्य में दूर करने हेतु सुझाव देने के लिए समय-समय पर करते है। कभी-कभी किसी शिकायत की प्राप्ति पर समाज कल्याण अभिकरणों की गतिविधियों की जाँच पड़ताल करनी होती है जिसके निष्कर्षो से सम्बन्धित अधिकारियों को सूचित Reseller जाता है। कुछ कल्याण संगठन शोधकार्य भी करते हैं जिसके निष्कर्षो And सुझावों को नीतियों And कार्यक्रमों में संशोधन अथवा अन्य नयें कार्यक्रमों के निर्माण में प्रयोग हेतु प्रतिवेदन कर दिया जाता है।

    6. रिपोटिंग

    All समाज कल्याण एजेंन्सिया, बिना किसी अपवाद के सम्बन्धित मंत्रालय विभाग को अपना वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत करते है जो राज्य के अध्यक्ष को विधानमंडल की सूचना हेतु अन्तत: भेज दी जाती है। विभिन्न प्रकार की रिपोर्टो के द्वारा जनता को कल्याण एजेन्सियों के क्रियाकलापों की सूचना मिल जाती है। इस प्रकार रिपोटिंग किसी भी समाज कल्याण प्रशासन का Single महत्वपूर्ण घटक है।प्रतिवेदन के माध्यम से तथ्यों को प्रस्तुत Reseller जाता है। इसमें Single निश्चित अवधि में किये गये कार्यो का सारांश लिखा जाता है Single निश्चित अवधि के आधार पर प्रतिवेदन तैयार Reseller जाता है। संस्था के कायोर् की प्रगति का मूल्यांकन करने की दृष्टि से प्रतिवेदन का विशेष महत्व है। संस्था में उपलब्ध आलेखों के आधार पर प्रतिवेदन तैयार Reseller जाता है।

    7. वित्तीय प्रबन्ध

    वित्तीय प्रबन्ध बजट से अभिप्राय उस प्रक्रिया से है जिसके द्वारा सार्वजनिक अभिकरण की वित्तिय नीति कर निर्माण, विधिकरण And क्रियान्वन Reseller जाता है। व्यक्तिवाद के युग में, बजट अनुमानित आय And व्यय का सधारण description मात्र था। परन्तु आधुनिक कल्याण राज्य में सरकार के क्रियाकलापों में तेजी से वृद्धि हो रही है जो सामाजिक जीवन के All पक्षों को आवंटित करती है। सरकार अब सकारात्मक कार्यो के द्वारा नागरिकों के सामान्य कल्याण को उत्पन्न करने का Single अभिकरण है। अतएव बजट को अब Single प्रमुख प्रक्रिया समझा जाता है जिसके द्वारा जनसंसाधनों के प्रयोग केा नियोजित And नियंत्रित Reseller जाता है। बजट निर्माण वित्तिय प्रबन्ध का Single प्रमुख घटक है जिसमें विनियोग अधिनियम, व्यव का कार्यकारिणी द्वारा निरीक्षण, लेखा And रिपोटिंग प्रणाली का नियंत्रण, कोष प्रबन्ध And लेखा परीक्षण सम्मिलित है। प्रKing का कार्य प्रतिवर्ष वार्षिक बजट तैयार करना तथा उसे अनुमोदित करना होता है। संस्था के लक्ष्यों के अनुReseller ही बजट तैयार Reseller जाता है यह संस्था कि आय तथा व्यय का कथन होता है।

    समाज कल्याण प्रशासन के सिद्धान्त 

    यद्यपि समाज कल्याण प्रशासन में किसी आधिकारिक अथवा सरकारी तौर पर संस्थापित प्रKingीय मापदण्डों का अभाव है, तदापि निम्नलिखित सिद्धान्तों को समाज कल्याण व्यवहार And अनुभव होने के कारण सामान्य मान्यता दी गर्इ है And जिनका पालन सुप्रशासित सामाजिक अभिकरणों द्वारा Reseller जाता है-

    1. समाज कल्याण अभिकरण के उद्देश्यों कार्यो का स्पष्ट Reseller से वर्णन होना चाहिए। 
    2. इसका कार्यक्रम वास्तविक आवश्यक ताओं पर आधारित होना चाहिए, इसका कार्यक्षेत्र And भू-क्षेत्र उस सीमा तक जिसमें यह प्रभारी तौर पर कार्य कर सकती है सीमित होना चाहिए, यह समुदाय के संसाधनों, प्रतिResellerों And समाज कल्याण अवाष्यकताओं से सम्बन्धित होना चाहिए, यह स्थिर होने की अपेक्षा गतिमान होना चाहिए तथा इसे बदलती हुर्इ आवश्यक ताओं को पूरा करने के लिए बदलते रहना चाहिए। 
    3. अभिकरण सुसंगठित होना चााहिए, नीति निर्माण And क्रियान्वन में स्पष्ट अन्तर होना चाहिए, आदेश की Singleता, Meansात् Single ही कार्यकारी अध्यक्ष द्वारा प्रषासकीय निदेषन, प्रशासन की सामान्य योजना According कार्यो का तर्कयुक्त विभाजन, सत्ता And दायित्व का स्पष्ट And निश्चित सममनुदेशन, तथा संगठन की भी इकाइयों And स्टाफ सदस्यों का प्रभारी समन्वय।
    4. अभिकरण को उचित कार्मिक, नीतियों And अच्छी कार्यदशाओं के आधार पर कार्य करना चाहिए। कर्मचारियों की Appointment योग्यता के आधार पर होनी चाहिए तथा उन्हें समुचित वेतन दिया जाना चाहिए। कर्मचारियों वर्ग अभिकरण की आवश्यक ताओं को पूरा करने के लिए मात्रा And गुण में पर्याप्त होना चाहिए। 
    5. भिकरण मानक सेवा की भावना से ओतप्रोत होकर कार्य करे, इसे उन व्यक्तियों And उनकी आवश्यक ताओं की समुचित जानकारी होनी चाहिए जिनकी यह सेवा करना चाहता है। इसमें स्वतंत्रता, Singleता And प्रजातंत्र की भावना भी होनी चाहिए। 
    6. अभिकरण से सम्बन्धित All में कार्य की ऐसी विधियों And मनोवृत्तियों विकसित होनी चाहिए जिससे उचित जन सम्पर्क का निमाण हो।
    7. अभिकरण का वार्षिक बजट होना चाहिए। लेखा रखने की प्रणाली ठीक होनी चाहिए। And इसके लेखों का सुयोगय व्यावसायिक एजेंसी द्वारा जिसका अपना कोर्इ हित नही है, परीक्षण होना चाहिए। 
    8. यह अपने रिकार्ड को ठीक प्रकार से सरल And विस्तार से रखे जो आवश्यक ता के समय सुगमता ये उपलब्ध हो सके। 
    9. इसकी लिपिकिय And अनुरक्षण सेवाएँ भी मात्रा And गुण में पर्याप्त तथा क्रियान्वयन में दक्ष होनी चाहिए। 
    10.  अभिकरण उपयुक्त अन्तराल पर स्वमृल्यांकन करे। गत वर्ष की अपनी सफलताओं एव असफलताओं का अपनी वर्तमान प्रस्थिति And कार्यक्रमों का, उद्देश्यों And संस्थापित मानदण्डों के According मापित अपने निष्पादन का, अपनी शक्ति And कमजोरियों का अपनी वर्तमान समस्याओं का तथा अपनी सेवा को बेहतर बनाने के लिए अगले उपायों का लेखा-जोखा लेने के लिए। 

    समाज कल्याण प्रशासन में अनुश्रवण व मूल्यांकन 

    समाज कल्याण प्रशासन के अनुश्रवण व मूल्यांकन से हमारा अभिप्राय है संस्था द्वारा अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अपनार्इ गर्इ क्रियाविधियों की उपयोगिता और प्रभाविता की जाँच मूल्योकन मुख्यत: किसी संस्था के विगत अनुभवों का अध्ययन और आलोचना है। इसके अंतर्गत अनेक समूहों के बीच विकसित परस्पर सबंधों का का आलोचनात्मक विश्लेषण आता है।  इसका उद्देष्य है परिणामों को मापना आरै संग्रहीत प्रतिमानों के आधार पर लक्ष्यों और पद्धतियों में परिवर्तन लाना। अनुश्रवण व मूल्यांकन संस्था में कार्य काने वाले व्यक्तियों और समूहों में निरंतर दृढ़ता उत्पन्न करने का साधन बनता है। मूल्यांकन के कुछ कार्य निम्नलिखित है-

    1. संस्था की प्रगति को मापना। 
    2. आयोजन और नीति निर्धारण के लिए आवश्यक आँकड़ों का संग्रहण, 
    3. सामजिक परिवर्त्त्ानों के संदर्भ में संस्था के कार्यक्रमों की प्रभावित की जाँच करना, 
    4. भावी गलतियों और कमजोरियों से बचने के लिए उपलब्धियों का मूल्यांकन करना। 
    5. इसका अध्ययन करना कि संस्था की नीति और उद्देश्य की पूर्ति किस सीमा तक हो रही है।
    6. संस्था के कार्य में प्रयोग मे लार्इ जाने वाली तकनीकों और कुशलताओं में सुधार लाने के लिए उनका अध्ययन करना। 
    7. Single संस्था का दूसरी संस्थाओं के साथ संबंध को समझना और समाज कल्याण कार्यो में जन-सहयोग की माख का पता चलाना ताकि सेवाओं के दोहराव को रोका जा सके,
    8. यह देखना कि संस्था के कार्यक्रम का लाभ सेवार्थियों को पहुँच रहा है या नही। 
    9. संगृहीत आँकड़ों के आधार पर संस्था के आगामी कार्यक्रम का आयोजन करने के लिए मूल्यांकन उपयोगी है। 
    10. संस्था के कार्यक्रम में सुधार लाने के लिए उसके उद्देष्यों और कार्यक्रमों का व्यापक अध्ययन करना। 

    1. कार्मिक प्रबंध 

    स्वैच्छिक संस्थाओं में कार्मिक प्रबंध की स्थिति बहुत असंतोषजनक है। कार्यकर्त्त्ााओं में से केवल 18 प्रतिषतसमाज कार्य पर्यवेक्षक के कार्य में संलग्न है। शेष 82 प्रतिषतसमाज कार्य के अतिरिक्त कर्मचारी है- जैसे दफ्तर में कार्य करने वाले लिपिक तथा निम्नवर्गीय कर्मचारी। उपर्युक्त 82 प्रतिषतमें से 20 प्रतिषतस्नातकोत्त्ार और और 7 प्रतिषतस्नातक है। तीन-चौथार्इ के लगभग कार्मिक माध्यमिक स्तर तक भी शिक्षा प्राप्त नही है।

    कर्मवारी वर्ग श्रेष्ठ प्रशासन का महत्वपूर्ण और आधुनिक उपकरण माना जाता है। समाज कार्य के क्षेत्र में भी, जो व्यवसायों की तरह Single व्यवसाय है, उसका महत्व कम नही है। समाज कार्य में प्रशिक्षित कार्यकत्त्ााओं की उतनी ही आवश्यक ता है जितनी की Second व्यवसायों में। प्रत्येक समाज कार्य संस्था में सेवा के स्तर को ऊँचा रखने के लिए प्रशिक्षित और अनुभवी कार्यकत्त्ााओं को Appointment करना आवश्यक ही नही, अनिवार्य है।

    2. कार्मिक नीति

    प्रत्येक संस्था की प्रबंध-समिति द्वारा कार्मिक-संबंधी सुदृढ़ और स्पष्ट बनार्इ जानी चाहिए। पश्चिमी देशों में संस्थाओं की कार्मिक-संबंधी नीति का description संस्था की नियम-पुस्तिका में दिया जाता है। भारत में संस्थाओं को ऐसी नियम पुस्तिका बनानी चाहिए, जिसमें कार्मिक प्रबंध के नियम, पद्धति कर्मचारियों के प्रकार, Appointment, वेतन, प्रशिक्षण, परस्पर संबंध आदि के विषय में विस्तृत ब्यौरा हो। इस पुस्तिका में कर्मचारियों के कार्य, उनके मूल्यांकन, परियोग्यताओं, कार्मिक के सहयोग आदि के विषय में Discussion होनी चाहिए।

    3. कार्मिकों की Appointment 

    संस्था में आवश्यक कर्मचारियों की Appointment संस्था की नीति के According करनी चाहिए। प्रत्येक कार्य के लिए न्यूनतम शिक्षा, प्रशिक्षण तथा व्यावहारिक अनुभव आदि की शर्ते निर्धारित करनी चाहिए। योग्य कर्मचारियों के चुनाव के लिए समाचार पत्रों में पदों का विज्ञापन देना चाहिए। समाज कार्य विद्यालय तथा दूसरी सामाजिक संस्थाओं को भी खाली पदों के विषय में सूचित करके प्रार्थना पत्र मगँवाये जा सकते है। संस्था में कार्य करने वाले कर्मचारियों को भी इस खाली पदों के लिए आवेदन करने के लिए अनुमति होनी चाहिए।

    समाज कार्य के पदों के लिए समाज कार्य में प्रशिक्षण Single आवश्यक शर्त होनी चाहिए। पदों के लिए प्रार्थियों का लिखित प्रार्थना-पत्र संस्था को भेजने चाहिए, जिसमें उनकी शिक्षा, प्रशिक्षण, पिछले अनुभवों, आयु आदि के विषय में विस्तृत description हो। इन प्रार्थना पत्रों को जाँच के बाद चुने हुए योग्य प्रार्थियों को संस्था के द्वारा बनार्इ कार्मिक समिति के समक्ष साक्षात्कार के लिए बुलाना चाहिए। इस समिति में संस्था के अध्यक्ष, मंत्री तथा मुख्य कार्यपालक के अतिरिक्त समाज-कार्य के विशेष ज्ञ होने चाहिए। यदि प्राथमिक चुनाव कार्यपालक अथवा उप-समिति के द्वारा Reseller गया हो तो दो तीन चुने हुए प्रार्थियों के प्रार्थना पत्र उप-समिति को सिफारिश सहित संस्था की प्रबंध/कार्यकारी समिति के सामने अंतिम Appointment के लिए रखने चाहिए। औपचारिक तौर पर, उन प्रार्थियों को, जिनकी Appointment समिति के द्वारा नही की गर्इ हैं इस विषय में सूचित कर देना चाहिए।

    4. प्रशिक्षण, अभिनवीकरण तथा पुनष्चर्या 

    प्रत्येक नवAppointment कर्मचारी को बातचीत द्वारा और संस्था की प्रकाषितपुस्तिकाओं और प्रतिवेदनों द्वारा संस्था के संगठनात्मक ढ़ाँचे और कार्यक्र के विषय में जानकारी देनी चाहिए। नए कार्यकर्त्त्ाा को उस भवन में ले जाकर, जहाँ कार्यक्रम चल रहा हो, कार्यक्रम, कार्यकर्त्त्ााओं के दायित्व, काम के समय आदि के विषय में बताना चाहिए और Second कार्यकत्त्ााओं से उनकी भेंट करवानी चाहिए। इस प्रकार प्रत्येक नवAppointment कार्यकर्त्त्ाा का, संस्था और उसको सांपै े गए काम के बारे में परिचय करवाकर अभिनवीकरण करवाना लाभदायक होगा। यह जानकारी, उसके लिए संस्था में अपना दायित्व भलीभाँति निभाने में सहायक सिद्ध होगी। संस्था के मुख्य अधिकारी के साथ बातचीत और Second संबद्ध कार्यकत्त्ााओं के साथ बंठै के अभिनवीकरण के कार्य को सरल बनाएँगी। यही नही, संस्था के विभिन्न अनुभागों और दूसरी संस्थाओं के साथ मेलजोल और बैठकें करने से कर्मचारियों के व्यावसायिक विकास में सहायता मिलेगी।

    5. प्रशिक्षण 

    पुराने जमाने में जरूरतमंदों की समस्याओं का समाधान स्वैच्छिक कार्यकत्त्ााओं द्वारा चलार्इ जोन वाली संस्थाएँ करती थी। अब यह तान लिया गया है कि सामाजिक संस्थाओं में सेवार्थियों तक सेवाएँ पहुँचाने का कार्य केवल प्रशिक्षित कार्यकर्त्त्ाा को ही करना चाहिए। इसलिए यह कहा जा सकता है कि हमारे देया में समाज कार्य के व्यावसायिक प्रशिक्षण की Need के प्रति जागरूकता हाल ही में उत्पन्न हुर्इ है। अब यह विश्वास पुराना हो चुका है कि समाज कार्य के केवल समय, सद्भावना और त्याग की ही जरूरत है। अब स्वैच्छिक कार्यकर्त्त्ाा भी इस बात को स्वीकार करने लगे है कि समाज कार्यो के लिए प्रशिक्षित कार्यत्त्ााओं होने चाहिए। संस्थाओं में प्रशिक्षित कार्यकत्त्ााओं की Appointment की आवश्यक ता के प्रति जन-जाग्रति के साथ-साथ बदलती हुर्इ परिस्थितियों के कारण ऐसे कार्यकत्त्ााओं की माँग बढ़ी है। तेजी से हुर्इ सामजिक समस्याओं और सामाजिक विज्ञान की प्रगति के कारण समस्याओं का अध्ययन, विश्लेषण और समाधान वैज्ञानिक तरीके से करना अब आवश्यक हो गया है। इसलिए प्रशिक्षित कार्यकत्त्ााओं की माँग पैदा हो रही है।

    भारत में समाज-कार्य का पहला महाविद्यालय सन् 1936 र्इ0 में बंबर्इ में स्थापित हुआ। वर्तमान में बहुत से प्रदेषों में स्वैच्छिक संस्थाओं अथवा विश्वविद्यालयों द्वारा ऐसे महाविद्यालय स्थापित किये गये है। प्रत्येक वर्ष 500 के लगभग स्नातक इन प्रशिक्षण-संस्थाओं में तैयार किये जाते है। कर्इ कारणों से स्वैच्छिक संस्थाएँ ऐसे प्रशिक्षित कार्यकत्त्ााओं की Appointment नही कर पार्इ है। समाज कार्य के क्षेत्र में कार्यकत्त्ााओं की माँग को दृष्टिगत रखते हुए कर्इ स्वैच्छिक संस्थाओं के अवर-स्नातक-स्तरपर समाज कार्य का प्रशिक्षण आरंभ Reseller है। दिल्ली, नागपुर, पूना और शांति-निकेतन ऐसी संस्थाएँ काम कर रही है।

    इसके अतिरिक्त केन्द्रीय समाज-कल्याण बोर्ड द्वारा स्थापित किये गये प्रशिक्षण केन्द्रों में बाल सेविकाओं और मुख्य सेविकाओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। Indian Customer बाल कल्याण परिषद केन्द्रीय समाज कल्याण विभाग के अनुदान के द्वारा कर्इ स्थानों पर बाल सेंविका प्रशिक्षण-केन्द्र चला रही है। नन्ही दुनिया, देहरादून, बालकन-जी-बारी, बंबर्इ, बाल निकेतन संघ, इन्दौर, नूतन बाल शिक्षण-संघ, कोसबाद, दक्षिणामूर्ति, भावनगर आदि कर्इ संस्थाओं में बालबाड़ी-कार्यकत्त्ााओं के प्रशिक्षण की व्यवस्था है। लखनऊ और हैदराबाद में साक्षरता निकेतन ने प्रौढ़-साक्षरता की व्यवस्था की है। इस प्रकार, समाज कल्याण के अनेक कार्यकत्त्ााओं के प्रशिक्षण की व्यवस्था स्वैच्छिक संस्थाओं ने ही की है।

    संस्था को किस प्रकार के कार्यकत्त्ााओं की आवश्यक ता हैं, यह संस्था के कार्यो पर निर्भर है। यहाँ All प्रकार के प्रशिक्षणों के विषय में पूरा description देना सम्भव नही है। अखिल भारतीस स्वैच्छिक, समाज कल्याण विभागों, केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड, जन सहयोग में प्रशिक्षण और अनुसंधान के केन्द्रीय संस्थान आदि संस्थाओं में प्रशिक्षित कार्यकर्त्त्ाा के विषय में जानकारी मिल सकती है। समाज कार्य के कार्यकत्त्ााओं के अतिरिक्त Second कर्इ कार्यकर्त्त्ाा, जैसे दार्इ, मिडवाइफ, शिल्प-शिक्षक, नर्स परिवार नियोजन कार्यकर्त्त्ाा आदि, संस्थाओं के लिए आवश्यक है। इन कार्यकत्त्ााओं के समाज की पद्धतियों में अभीनवीनीकरण की आवश्यक ता है।

    6. सेवांतर्गत प्रशिक्षण 

    यद्यपि संस्थाओं की कार्य-पद्धतियों को सुधारने के लिए उनके कार्यकत्त्ााओं को सेवांतर्गत प्रशिक्षण देना Single आवश्यक कदम था, तथापि केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड ने, जिस पर इसकी जिम्मेदारी थी, ऐसा कोर्इ कार्य आरम्भ नही Reseller। केन्द्रीय समाज कल्याण विभाग ने स्वैच्छिक संस्थाओं के कार्यकत्त्ााओं को समाज-कार्य में अभिनवीनीकरण प्रशिक्षण देने के लिए समाज-महाविद्यालयों और संस्थाओं को अनुदान देकर गोष्ठियों का आयोजन Reseller था।

    जन सहयोग में अनुसंधान और प्रशिक्षण के केन्द्रीय संस्थान की स्थापना के बाद कर्मचारियों के प्रशिक्षण का कार्य इस संस्थान को सौंपा गया है। संस्थान स्वैच्छिक संस्थाओं के कार्यकत्त्ााओं के लिए गोष्ठियाँ तथा सेवांतर्गत प्रशिक्षण का आयोजन करता है। संस्थाओं के कार्यपालको के लिए संस्थान के पाठ्यक्रमों का आयोजन Reseller। बाल-कल्याण संस्थाओं के पर्यवेक्षकों के भी लगभग चार प्रशिक्षण कार्यक्रम पूरे हो चुके है। स्वैच्छिक नेताओं के लिए भी गोष्ठियों का आयोजन Reseller गया है। युवा नेताओं के प्रशिक्षण-पाठ्यक्रमों की भी व्यवस्था संस्थान करता है। ऐसे प्रशिक्षण प्रत्येक प्रकार के कार्यकत्त्ााओं की आवश्यक ताओं को पूरा करने के लिए आयोजित किये जाते है। समाज कार्य महाविद्यालयों की सहायता से संस्थान की स्थानीय भाषाओं के माध्यम से क्षेत्रीय स्तर पर ऐसे ही पाठ्यक्रमों का आयोजन Reseller गया था। संस्थान स्वैच्छिक कार्य संस्थाओं के कार्यकत्त्ााओं के प्रशिक्षण के क्षेत्र में विद्यमान बहुत बड़ी को पाटने की दिशा में प्रयत्नशील है।

    7. सेवा की शर्ते

    स्वैच्छिक संस्थाओं द्वारा अपने कार्यकत्त्ााओं के विकास के लिए संभवत: कोर्इ योजना नही बनार्इ गर्इ है। समान्यतया संस्थाओं में सेवा की शर्ते बहुत ही असंतोषजनकहै।  विशेष कर वेतनमान इतने अधिक नही है कि अच्छे कार्यकत्त्ाार् इन संस्थाओं में सेवा के लिए आगे आएँ। जो व्यक्ति इन संस्थाओं में भर्ती भी होते है, वे शीघ्र ही सेवामुक्त होने का प्रयत्न करते है। संस्थाओं में योग्य और अनुभवी कर्मचारियों के अभाव का मुख्य कारण उनकी सेवा की असंतोषजनक शर्ते है। इसके अतिरिक्त चूँकि स्वैच्छिक संस्थाओं में पर्यवेक्षक का कार्य स्वैच्छिक कार्यकर्त्त्ाा करते है, इसलिए भी बहुत से प्रशिक्षित स्वैच्छिक संस्थाओं में नौकरी के लिए प्राथ्र्ाी नही होते है। इसलिए यह आवश्यक है कि स्वैच्छिक संस्थाओं में कार्मिक नीति के अंतर्गत कर्मचारियों की सेवा की शर्तो का description होना चाहिए। इन शर्तो में वेतनमान तथा भत्त्ाा, Appointment, प्रोन्नति, काम का समय, अवकाश की शर्ते, सेवा-विमुक्ति दंड, परीविक्षा काल आदि सम्मिलित होने चाहिए। वे शर्ते संस्था की नियम पुस्तिका में दर्ज होनी चाहिए।

    8. उपस्थिति And कार्यकाल 

    कर्इ बार देखा गया है कि स्वैच्छिक संस्थाओं के कर्मचारियों के लिए काम की कोर्इ अनिश्चित अवधि नही है। कही-कहीं तो वे 10-12 घंटे तक कार्य करते है और कहीं-कहीं 6 घंटे से भी कम। कर्मचारियों के काम के समय का निर्धारण कर देना चाहिए ताकि वे लगभग 8 घंटे तक कार्य कर सके, जिसमें Single घंटे का विश्राम भी सम्मिलित हो। क्षेत्रीय कार्यकत्त्ााओं के कार्य का समय उनके काम के स्वReseller पर निर्भर करता है। प्रत्येक अनुभाग अथवा शाखा में यदि आवश्यक हो तो संस्था के कर्मचारियों के लिए Single हाजिरी रजिस्टर भी रखना चाहिए, जिसमें काम पर पहुँचने के निर्धारित समय के अधिक से अधिक 10 मिनट बाद तक कर्मचारी अपने हस्ताक्षर कर दे। यदि कोर्इ कर्मचारी समय पर नही पहुँचता है तो उसके नाम के समाने अनुपस्थिति का चिह्न लगा देना चाहिए। तीन बार से अधिक समय पर न पहुँचने पर Single दिन की छुट्टी काट लेनी चाहिए। अनुपस्थिति का ब्यौरा रखने कि लिए और इस बात पर ध्यान रखने के लिए कि कर्मचारी काम पर निर्धारित समय पर पहुँचते है, संस्था के पर्यवेक्षक को हाजिरी रजिस्टर निर्धारित समय के 15 मिनट के बाद देख लेना चाहिए। जो कर्मचारी आदतन देर से आते हों, उन पर नजर रखनी चाहिए और उनकी कठिनार्इयों को दूर करने में सहायता करनी चाहिए। कार्यकर्त्त्ाा को यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि उनका काम निर्धारित समय से आरंभ हो जाना चाहिए। हाजिरी-रजिस्टर Single आवश्यक अभिलेख है। इसके आधार पर ही कर्मचारियों के वेतन बिल बनते है। इसलिए इसके अनुरक्षण के लिए पर्यवेक्षक को विशेष ध्यान देना चाहिए।

    9. मध्याहृन-अवकाश

    तीन-चार घंटे कार्य करने के बाद कमचारियों को आधे घंटे के लगभग मध्याहृ-अवकाश मिलना चाहिए तीन घंटे लगातार कार्य करने के उपरांत यह विश्राम अत्यावाश्यक है। इससे कार्यकर्त्त्ाा की दक्षता बढ़ती है। पर्यवेक्षक को इस बात को भी ध्यान में रखना चाहिए कि All कर्मचारी इस समय का सदुपयोग करे।

    10. अवकाश नियम

    संस्था को अवकाश नियम बनाने चाहिए, जिनकी जानकारी कर्मचारियों को होंनी चाहिए। यह कोर्इ जरूरी नही है कि प्रत्येक संस्था सरकारी अवकाश-नियमों का पालन करे। किन्तु संस्था को कुछ सरल नियम बना ही लेने चाहिए, जिसमें अल्प और दीर्घकालीन अवकाश की व्यवस्था होनी चाहिए। कर्मचारियों के अवकाश की व्यवस्था के लिए निम्नलिखित मोटी-मोटी बातों का ध्यान रखना चाहिए:-

    1. अवकाश स्थानीय सरकार के द्वारा स्वीकृत अवकाश-सूची संस्थाओं को अपनानी चाहिए। इसके अतिरिक्त सप्ताह में किसी Single दिन संस्था को पूर्ण अवकाश रखना चाहिए और उससे Single दिन First अर्द्ध-अवकाश की व्यवस्था करनी चाहिए। 
    2. आकस्मिक छुट्टी अल्पावधि की बीमारी, निजी आवश्यक कार्य आदि के लिए प्रत्येक कर्मचारी को दस से पन्द्रह दिन तक की आकस्मिक छुट्टी मिलनी चाहिए। यह छुट्टी कर्मचारी की प्रार्थना पर स्वीकृत की जानी चाहिए । 
    3. अर्जित छुट्टी आकस्मिक छुट्टी के अतिरिक्त, कर्मचारियों की लम्बी बीमारी, निजी काम, विश्राम और मंनोरजन के लिए प्रत्येक मास की सेवा बाद Single दिन और वर्ष पूरा होने के बाद 20 दिनों की अर्जित छुट्टी मिलनी चाहिए। प्राय: तीन मास से अधिक छुट्टी जमा करने की अनुमति नही होनी चाहिए। 
    4. विषेश अवकाश कर्इ संस्थाओं में Single मास के अनिवार्य वार्षिक अवकाश की व्यवस्था होती है। इन संस्थाओं में आकस्मिक तथा अर्जित अवकाश की दर कम कर दी जाती है। कर्इ संस्थाओं में आकस्मिक अवकाश तथा अर्जित अवकाश के एवज में वेतन दिया जाता है। यदि कर्मचारी अपनी अर्जित अवकाश का उयोग नही करते है तो उसे उसके सामान्य दर के वेतन से उतने दिनों का वेतन दे दिया जाता है। कर्इ संस्थाओं में विष्ेाश अवकाश, बीमारी की छुट्टी, अध्ययन अवकाश अथवा अर्ध-वेतन अवकाश की व्यवस्था भी है। 

    यह देखा गया है कि हमारी सामाजिक संस्थाओं ने कर्मचारियों के अवकाश की ओर कोर्इ विशेष ध्यान नही दिया है। यदि संस्था लंबे चौडे़ अवकाश न बनाना चहाती हो तो मोटे तौर पर उसे वर्ष में कम से कम कुल मिलाकर Single मास के अवकाश की व्यवस्था तो कर ही देनी चाहिए। जिस कर्मचारी को अवकाश की सुविधा मिलेगी, उसकी दक्षता बढे़गी और वह अधिक कार्य करेगा।

    11. कार्य की परिस्थितियाँ 

    कार्य की परिस्थितियों का प्रभाव कर्मचारियों के स्वास्थ्य, दक्षता और निष्पादन पर पड़ता है। प्रत्येक ऐसी संस्था को, जो कि वैतनिक कार्यकत्त्ााओं को Appointment करती है अपने कर्मचारियों के लिए कार्य की समुचित परिस्थितियों की व्यवस्था करनी चाहिए। कार्य की परिस्थितियों में शामिल है- कार्य स्थल का पर्यावरण, जैसे प्रकाश, उचित तापमान, पानी, सफार्इ, शौचालय, आग से बचाव का प्रबंध, कैंटीन, विश्राम की सुविधा आदि। सेवाार्थियों के साथ भेंट करने और गुप्त वार्त्त्ाालाप के लिए संस्था में व्यवस्था होनी चाहिए।

    परिवीक्षा काल:Appointment के बाद कर्मचारियों के लिए परिवीक्षा काल को संतोषजनक ढ़ग से पूरा करना अनिवार्य होता है। इस व्यवस्था ये कर्मचारी तथा दोनों को Single Second के विषय में समुचित ज्ञान हो जाता है। यदि कोर्इ कर्मचारी परिवीक्षा-अवधि में संतोषजनक कार्य करता है तो उसकी नौकरी पक्की कर दी जाती है। किन्तु, परिवीक्षा संबंधी नियम विभिन्न संस्थाओं में विभिन्न पदों के लिए विभिन्न है। संस्थाओं को चाहिए कि नौकरी की शर्ते निर्धारित करते समय वे निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखे:-

    1. किन पदों के लिए परिवीक्षा काल की शर्त हो। 
    2. परिवीक्षा की अवधि कितनी हो। 
    3. इस अवधि को बढ़ाने की विधि। 
    4. परिवीक्षा काल में कर्मचारी के कार्य का मूल्यांकन और उसके पक्का करने की पद्धति। 

    नौकरी के स्वReseller और प्रकारों को ध्यान में रखकर परिवीक्षा काल तीन मास से दो वर्ष तक होता है। यह शर्त संस्था के उन कर्मचारियों पर भी लागू होनी, चाहिए जिनकों प्रोन्नति दी गर्इ हो।

    प्रोन्नति तथा पद पर पुष्टि :संस्था को प्रोन्नति तथा पुष्टि की शर्तो और विधि के विषय में नियम बनाने चाहिए, जिनकी जानकारी सब कर्मचारियों को हो। प्रोन्नति और पद पर पुष्टि शिक्षा स्तर, कार्य के अनुभव, कार्य निष्पादन के मूल्यांकन और अधिक दायित्व उठाने की क्षमता आदि के आधार पर होनी चाहिए। नये पदों को भरने के लिए संस्था में कार्य कर रहें कर्मचारी को प्रोन्नति के अवसर भी दिये जाने चाहिए। 

    वेतन तथा भत्ते:पदों के वेतनमान, उनके लिए निर्धारित शिक्षा स्तर कार्य के अनुभव की अवधि, दायित्व के स्वReseller आदि बातों को ध्यान में रखकर नियत करने चाहिए। प्रत्येक पद के लिए वेतनमान की न्यूनतम और अधिकतम सीमा होनी चाहिए, जिसमें अच्छे निष्पादन अथवा कार्य के फलस्वReseller वेतन-वृद्धि की व्यवस्था हो। कर्मचारियों के संतोषजनक कार्य के फलस्वReseller उनकी Appointment बनाये रखने और उसके वेतन में वृद्धि के लिए व्यवस्था होनी चाहिए। किसी पद के लिए वेतनमान निर्धारित करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए-

    1. कर्मचारी के दायित्व की मात्रा
    2. सेवा को समुदाय का लाभ
    3. दायित्व निभाने के लिए कुशलता की मात्रा। 
    4. सरकारी तथा स्वैच्छिक संस्थाओं में ऐसे तुलनात्मक पदों के लिए नियत वेतनमान, 
    5. पद के लिए निर्धारित शिक्षा, प्रशिक्षण तथा पिछले अनुभव की शर्ते। 

    सरकारी संस्थाओं में कर्मचारियों को दिये जाने वाले महँगार्इ भत्त्ो, मकान किराया, प्रतिपूरक भत्त्ो आदि की दरों के According स्वैच्छिक संस्थाओं में भी भत्ते देने का प्रयत्न करना चाहिए। वेतन और भत्ते का भुगतान मास के समाप्त होने के Single सप्ताह के भीतर कर्मचारियों को कर देना चाहिए। कर्इ संस्थाएँ कर्मचारियों को वेतन और भत्त्ाा देने में विलम्ब कर देती है। जहाँ तक सम्भव हो वेतन और भत्त्ों के भुगतान में विलम्ब नही करना चाहिए। इसके अतिरिक्त भविष्य निधि और सेवा निवृत्ति उपदान की व्यवस्था करने का यत्न भी संस्था को करना चाहिए। ऐसी सुविधाएँ देने से कर्मचारियों मे कार्य के प्रति रूचि बनी रहेगी और वे संस्था संस्था की सेवा में टिके रहेगें।

    दण्ड, सेवा-निवृित्त्ा तथा छँटनी :प्राय: यह देखने में आया है कि स्वैच्छिक संस्थाओं में कार्यकर्त्त्ाा इसलिए काम नही करना चाहते है कि वहाँ सेवा Safty नही है। संस्था के लिए सुनिश्चितकार्यकत्त्ााओं की Appointment के लिए यह जरूरी है कि संस्था में दंड़ देने, सेवा निवृित्त्ा, छटनी और त्याग पत्र देने के लिए नियम बनाये जायें। इन नियमों में निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए:- 

    1. किस कर्मचारी को कौन अधिकारी, कब, कैसे और कितना दंड दे सकता है, 
    2. अपनी सेवा की शर्तो के विषय में वह किस अधिकारी से अपील कर सकता है। 
    3. उसे त्याग-पत्र किसको देना चाहिए और उसकी सूचना अवधि कितनी होनी चाहिए। 
    4.  कर्मचारियों की छँटनी किन परिस्थितियों में हो सकती है और उसे मुआवजा किस दर से मिलना चाहिए, 
    5. कर्मचारी की किस आयु में सेवा-निवृित्त्ा होनी चाहिए और उसे क्या-क्या सुविधाएँ दी जानी चाहिए। 

    इन शर्तो का History संस्था की नियम पुस्तिका में होना चाहिए ताकि प्रत्येक कर्मचारी को इसकी जानकारी प्राप्त हो सके। 

    मूल्यांकन और पर्यवेक्षण :कर्मचारियों के निष्पादन और उनके विकास के विषय में मूल्यांकन की व्यवस्था प्रत्येक संस्था को करनी चाहिए। कर्मचारियों को इस मूल्यांकन में भागीदार होना चाहिए। मूल्यांकन अभिलेख गुप्त रखना चाहिए। यदि कार्यकर्त्त्ाा में कुछ भी कमी का अनुभव हो तो उसके विषय में उसे बता देना चाहिए। मूल्यांकन का अधिकार Single से अधिक व्यक्ति को होना चाहिए। मूल्यांकन और पर्यवेंक्षण, कार्यकर्त्त्ाा के विकास और दायित्व को बेहतर तरीके से निभाने में उसके लिए सहायक सिद्ध होते है। 

    कार्मिक विधि :स्वैच्छिक संस्थाओं के नेताओं के विषय में प्राय: यह शिकायत की जाती है कि वे कार्मिको के काम की शर्तो के विषय में कोर्इ कायदा-कानून प्रयोग में नही लाते और अपने व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों तथा पक्षपात के According कार्मिकों के विषय में सोंचते है। अब यह सम्भव नही है, क्योकि कार्मिकों के कार्य की शर्ते, वेतनमान, सेवा निवृित्त्ा, मुआवजा आदि के विषय में सरकार ने कानून बना दिये है। अब कार्मिकों के लिए श्रम-न्यायालयों के दरवाजे खुले है और वे संस्था से संतुष्ट न होने पर अपनी व्यथा निवारण के लिए कानून का सहारा ले सकते है। इसलिए यह आवश्यक है कि संस्थाओं को इन श्रम विधियों की जानकारी होनी चाहिए। 

    कार्मिक अभिलेख :संस्थाओं के लिए श्रम-विधियों का पालन करना अनिवार्य है। इसलिए उनकों चाहिए कि प्रत्येक कर्मचारी के विषय में कानून के According अभिलेख तैयार करे। कार्यकर्त्त्ाा की व्यक्तिगत फाइल में उसका प्रार्थना पत्र, Appointment पत्र, उसकी शिक्षा और पिछले अनुभवों के विषय में प्रमाण-पत्रों की प्रमाणित प्रतिलिपियाँ, उसका अवकाश अभिलेख और सम्बन्धित पत्र व्यवहार, कर्मचारियों के मूल्यांकन का प्रतिवेदन आदि सम्मिलित होने चाहिए। कार्मिक अभिलेख कर्मचारी के साथ विवाद की हालत में बहुत उपयोगी सिद्व होगे। 

    सुनिश्चित और अनुभवी कर्मचारी प्राप्त करने के लिए प्रत्येक संस्था को कार्मिक नीति निर्धारण करनी चाहिए, जिसमें काम काज की ऐसी शर्ते सम्मिलित हो, जो कार्यकत्त्ााओं को आकर्षित करे। वेतन, भत्त्ो, काम का समय, Appointment, दंड देने आदि की शर्ते उस क्षेत्र में कार्य करने वाली दूसरी संस्थाओं की नीति और शर्तो से कम नही होनी चाहिए ताकि संस्था के कर्मचारी दूसरी संस्थाओं के कर्मचारियों से तुलना करके हीन भावना का अनुभव न करे।

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