समाचार का Means, परिभाषा And लेखन प्रक्रिया

मनुष्य Single सामाजिक प्राणी है। इसलिए वह Single जिज्ञासु है। मनुष्य जिस समूह में, जिस समाज में और जिस वातावरण में रहता है वह उस बारे में जानने को उत्सुक रहता है। अपने आसपास घट रही घटनाओं के बारे में जानकर उसे Single प्रकार के संतोष, आनंद और ज्ञान की प्राप्ति होती है।

आज ‘समाचार’ Word हमारे लिए कोर्इ नया Word नहीं है। मनुष्य ने घटनाओं के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए प्राचीन काल से ही तमाम तरह के तरीको, विधियो  और माध्यमों को खोजा आरै विकसित Reseller। पत्र के जरिए समाचार प्राप्त करना इन माध्यमों में सर्वाधिक पुराना माध्यम है जो लिपि और डाक व्यवस्था के विकसित होने के बाद अस्तित्व में आया। पत्र के जरिए अपने प्रियजनां,े मित्रों और शुभाकांक्षियों को अपना समाचार देना और उनका समाचार पाना आज भी मनुष्य के लिए सर्वाधिक लोकप्रिय साधन है। समाचार पत्र, रेडिया, टेलीविजन समाचार प्राप्ति के आधुनिक साधन हैं जो मुद्रण, रेडिया और टेलीविजन जैसी वैज्ञानिक खोज के बाद अस्तित्व में आए हैं। तो आइए समाचार के Means, परिभाषा, तत्व And प्रकार के बारे में विस्तार से जानें।

समाचार का Means 

सामाजिक जीवन में चलनेवाली घटनाओं के बारे में लोग जानना चाहते हैं, जो जानते हैं वे उसे बताना चाहते हैं। यह जिज्ञासा का भाव मनुष्य में प्रबल होता है। यही जिज्ञासा समाचार और व्यापक Means में पत्रकारिता का मूल तत्व है। जिज्ञासा नहीं रहेगी तो समाचार की भी जरूरत नहीं रहेगी। अपने रोजमर्रा के जीवन के बारे में सामान्य कल्पना कीजिए तो पाएंगे कि दो लोग आसपास रहते हैं और लगभग राजे मिलते हैं। इसके बावजदू वह दोनों जब भी मिलते हैं Single Second को Single सामान्य सा सवाल पूछते हैं क्या हालचाल है? या फिर क्या समाचार है? इस सवाल को ध्यान से देखा जाए तो उन दोनो में Single जिज्ञासा बनी रहती है कि जब हम नहीं मिले तो उनके जीवन में क्या क्या घटित हुआ है। हम अपने मित्रों, रिश्तेदारो  और सहकर्मियो  से हमेशा उनकी कुशलक्षेम या उनके आसपास की घटनाओं के बारे में जानना चाहते हैं। यही जानने की इच्छा ने समाचार को जन्म दिया है।

इस जानने की इच्छा ने हमें अपने पास-पड़ोस, शहर, राज्य और देश दुनिया के बारे में बहुत कुछ सूचनाएँ प्राप्त होती है। ये सूचनाएँ हमारे दैनिक जीवन के साथ साथ पूरे समाज को प्रभावित करती हैं। ये सूचनाएँ हमारा अगला कदम क्या होगा तय करने में सहायता करती है। यही कारण है कि आधुनिक समाज में सूचना और संचार माध्यमों का महत्व बहुत बढ़ गया है। आज देश दुनिया में क्या घटित हो रहा है उसकी अधिकांश जानकारियाँ हमें समाचार माध्यमो  से मिलती है।

विभिन्न समाचार माध्यमों के जरिए दुनियाभर के समाचार हमारे घरों तक पहुंचते हैं चाहे वह समाचार पत्र हो या टेलीविजन और रोड़ियो या इटंरनेट या सोशल मीडिया। समाचार संगठनों में काम करनेवाल े पत्रकार देश-दुनिया में घटनेवाली घटनाओं को समाचार के Reseller में परिवर्तित कर हम तक पहुँचाते हैं। इसके लिए वे रोज सूचनाओं का संकलन करते हैं और उन्हे  समाचार के प्राReseller में ढालकर पेश करते हैं। या यो  कहें कि व्यक्ति को, समाज को, देश-दुनिया को प्रभावित करनेवाली हर सूचना समाचार है। यानी कि किसी घटना की रिपोर्ट ही समाचार है।

समाचार Word अंग्रेजी Word ‘न्यूज’ का हिन्दी अनुवाद है। Wordार्थ की „ दृष्टि से ‘न्यूज’ Word अग्रेंजी के जिन चार अक्षरों से बनता है उनमें ‘एन’, ‘र्इ’, ‘डब्ल्यू’, ‘एस’ है। यह चार अक्षर ‘नार्थ’ उत्तर, ‘र्इष्ट’ पूर्व, ‘वेस्ट’ पश्चिम और ‘साउथ’ दक्षिण के संकेतक हैं। इस तरह ‘न्यूज’ का भाव चतुर्दिक में उसकी व्यापकता से है। अगर न्यूज को अंग्रेजी Word ‘न्यू’ के बहुबचन के Reseller में देखा जा सकता है जिसका Means ‘नया’ होता है। यानी समाज में चारों आरे जो कुछ नया, सामयिक घटित हो रहा है,उसका description या उसकी सूचना समाचार कहलाता है। यहां Historyनीय है कि कोर्इ भी घटना स्वयं में समाचार नहीं होती है, बल्कि उस घटना का वह description जो समाचार पत्रो  या अन्य माध्यमो  से पाठको  या श्रोताओं तक पहुंचता है तो समाचार कहलाता है।

हिन्दी में भी समाचार का Means भी लगभग यही है। ‘सम’ ‘आचार’ से इसे समझा जा सकता है। वृहत हिन्दी Wordकोश के According ‘सम’ का Means Single ही, अभिन्न, सृश, Single सा, बराबर, चैरस, जो दो से पूरा पूरा बंट जाए, विषम नहीं, पक्षपात रहित, निष्पक्ष, र्इमानदार, सच्चा, साधारण है। ‘आचार’ का Means चरित्र, चाल, अच्छा चाल चलन, व्यवहार, शास्त्रोक्त आचार, व्यवहार का तरीका है। और ‘समाचार’ का Means होता है समान आचरण, पक्षपात रहित व्यवहार, बराबर का आचरण, जो विषम नहीं होगा। इस तरह वृहत Wordकोश में साफ है कि सम का Means Single समान, बराबर का है और आचार का Means व्यवहार से है। Second Wordों में कहा जाए तो जो पक्षपात रहित इर्म ानदारी से All को Single सा समाज की चाल चलन, आचार व्यवहार को बांटे उसे समाचार कहा जाएगा।

समाचार की परिभाषा 

विषय कोर्इ भी हो परिभाषाएं भांति भांति की और प्रायत: अपूर्ण हुआ करती है। ठीक यही स्थिति समाचार के विषय में भी है। जिस तरह समाचार पत्र में छपी हर चीज समाचार नहीं हुआ करती है, ठीक वैसे ही प्रत्येक घटना भी समाचार की शक्ल नहीं ले सकती है। किसी घटना की रिपोर्ट समाचार है जो व्यक्ति, समाज And देश दुनिया को प्रभावित करती है। इसके साथ ही इसका उपरोक्त से सीधा संबंध होता है। इस कर्म से जुड़े मर्मज्ञ विभिन्न मनीषियों द्वारा पत्रकारिता को अलग-अलग Wordो  में परिभाषित किए हैं। पत्रकारिता के स्वReseller को समझने के लिए यहाँ कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाओं का History Reseller जा रहा है :

(क) पाश्चात्य चिन्तन 

  1. री सी हापवुड:- उन महत्वपूर्ण घटनाओं की जिसमें जनता की दिलचस्पी हा,े पहली रिपोर्ट को समाचार कह सकते हैं। 
  2. विलियम जी ब्लेयर:- किसी सामयिक घटना का description जिसका किसी समाचार पत्र के संपादकीय विभाग ने संपादन कर्मियों द्वारा चयन Reseller गया हो, क्योंिक वह पाठकों के लिए रूचिकर And महत्वपूर्ण है, अथवा उसे बनाया गया है। 
  3. हार्पर लीच:- और जान सी कैरोल समाचार Single गतिशील साहित्य है। 
  4. जान बी बोगार्ट:- जब कुत्ता आदमी को काटता है तो वह समाचार नहीं है परंतु यदि कोर्इ आदमी कुत्त को काट ले तो वह समाचार होगा। 
  5. जे जे सिडलर:- पर्याप्त सख्या में मनुष्य जिसे जानना चाहे, वह समाचार है शर्त यह है कि वह सुरूचि तथा प्रतिष्ठा के नियमों का उल्लंघन न करे। 

इस तरह टूरी सी हापवूड And विलियम जी ब्लेयर घटना की रिपोर्ट, पाठको की रूचि को महत्वपूर्ण माना है। हापर्र और जान ने जो साहित्य गतिशीलता लिए हुए उसे समाचार माना है। सामान्य से हटकर कुछ बात हो तो उसे समाचार मानते हैं जान बी बोगार्ट। जे जे सिडलर ने जिज्ञासा को शांत करनेवाला कोर्इ भी विषय जो नियम के दायरे में रहकर पाठको तक पहुंचे उसे समाचार की कोटी में माना है।

(ख) Indian Customer चिन्तन 

  1. डा. निशांत सिंह:- किसी नर्इ घटना की सूचना ही समाचार है 
  2. नवीन चंद्र पंत:- किसी घटना की नर्इ सूचना समाचार है। 
  3. नंद किशोर त्रिखा:- किसी घटना या विचार जिसे जानने की अधिकाधिक लोगों की रूचि हो समाचार है। 
  4. संजीव भवावत:- किसी घटना की असाधारणता की सूचना समाचार है 
  5. रामचंद्र वर्मा:- ऐसी ताजा या हाल की घटना की सूचना जिसके संबंध में लोगों को जानकारी न हो समाचार है। 
  6. सुभाष धूलिआ:- समाचार ऐसी सम सामयिक घटनाओ, समस्याओं और विचारों पर आधारित होते हैं जिन्हें जानने की अधिक से अधिक लोगों में दिलचस्पी होती है और जिनका अधिक से अधिक लोगों पर प्रभाव पड़ता है। 
  7. मनुकोडां चेलापति राव:- समाचार की नवीनता इसी में है कि वह परिवर्तन की जानकारी दे। वह जानकारी चाहे राजनीतिक, सामाजिक अथवा आर्थिक कोर्इ भी हो। परिवर्तन में भी उत्तेजना होती है। 
  8. केपी नारायणन:- समाचार किसी सामयिक घटना का महत्वपूर्ण तथ्यों का परिशुद्ध तथा निष्पक्ष description होता है जिससे उस समाचारपत्र में पाठकों की रूचि होती है जो इस description को प्रकाशित करता है। 

Indian Customer विद्वानों ने समाचार की परिभाषा में लगभग Single सी बात कही है। डा. निशांत सिंह And नवीन चंद्र पंत ने नर्इ घटना को समाचार माना है। नंद किशोर त्रिखा ने जिस घटना के साथ लोगों की रूचि हो उसे समाचार माना है। संजीव भवावत ने भी घटना की असाधारण की सूचना को समाचार माना है। रामचंद्र वर्मा ने घटना की सूचना जिसका लोगों से संबंधित हो को समाचार माना है। सुभाष धूलिआ ने सामयिक घटना, विचार जिसका अधिक से अधिक लोगों से संबंधित हो तो मनुकोडां चेलापति राव ने नवीनता लिए कोर्इ भी विषय हो समाचार माना है जो परिवर्तन को सूचित करता है। केपी नारायणन ने निष्पक्ष होकर किसी सामयिक घटना को पाठकों की रूचि According पेश करना ही समाचार है। इस तरह विभिन्न विद्वानों ने समाचार की परिभाषा अपने हिसाब से दिया है।

समाचार के तत्व 

समाचार के मूल में सूचनाएं होती है। और यह सूचनाएं समसामयिक घटनाओं की होती है। पत्रकार उस घटित सूचनाओं को Singleत्रित कर समाचार के प्राReseller में ढालकर पाठको ं की जिज्ञासा को पूिर्त करने लायक बनाता है। पाठको की जिज्ञासा हमेशा ही कौन, क्या, कब, कहां, क्यों और कैसे प्रश्नों का उत्तर उस समाचार में ढूढंने की कोशिश करता है। लेकिन समाचार लिखते समय इन्हीं प्रश्नों का उत्तर तलाशना आरै पाठकों तक उसके संपूर्ण Means में पहुंचाना सबसे बड़ी चुनौती का कार्य होता है। समाचारो को लेकर हाने ेवाली हर बहस का केद्रं यही होता है कि इन छह प्रश्नो का उत्तर क्या है और कैसे दिया जा रहा है। समाचार लिखते वक्त भी इसमें शामिल किए जानेवाले तमाम तथ्यों और अंतर्निहित व्याख्याओं को भी Single ढांचे या संCreation में प्रस्तुत करना होता है।

समाचार संCreation 

समाचार संCreation की बात करे  तो मुख्य Reseller से तीन खंडो  में विभाजित कर सकते हैं। First में इंट्रो होता है जिसमें ‘क्या हुआ’ के प्रश्न का उत्तर दिया जा सकता है जो क्या हुआ को स्पष्ट करता है। दूसरा में जो कुछ बचा उसे रखा जाता है। और अंत में समाचार को पूरा करने के लिए जो कुछ आवश्यक है उसे रखा जाता है। 

इस तरह समाचार में सबसे First समाचार का ‘इंट्रो’ यानी इंट्रोडक्षन होता है। यह असली समाचार है जो चंद Wordों में पाठकों को बताता है कि क्या घटना घटित हुर्इ है। इसके बाद के पैरागा्र फ में इटं्रो की व्याख्या करनी होती है। इंट्रो में जिन प्रश्नों का उत्तर अधूरा रह गया है उनका उत्तर देना होता है। इसलिए समाचार लिखते समय इंट्रो के बाद व्याख्यात्मक जानकारी देना जरूरी होता है। इसके बाद descriptionात्मक या वर्णनात्मक जानकारियां दी जानी चाहिए। घटनास्थल का वर्णन करना, इस दृष्टि से यह कहा जा सकता है कि यह घटना के स्वभाव पर निर्भर करता है कि descriptionात्मक जानकारियो  का कितना महत्व है। 

जैसे अगर कहीं कोर्इ उत्सव हो रहा हो जिसमें अनेक सांस्कृतिक और सामाजिक कार्यक्रम चल रहे हों तो निश्चय ही इसका समाचार लिखते समय घटनास्थल का description ही सबसे महत्वपूर्ण है। लेकिन अगर कोर्इ राजनेता पत्रकार सम्मेलन करता है तो इसमें description देने(पत्रकार सम्मेलन के माहौल के बारे में बताने) के लिए कुछ भी नहीं होता है।  हां Single पत्रकार यह कर सकता है कि राजनेता जो कुछ भी कहा उसके बारे में पड़ताल कर सकता है कि इस पत्रकार सम्मेलन बुलाने का मकसद क्या था। यहां यह समाचार बन सकता है कि समाचार में कुछ छिपाया तो नहीं जा रहा है। 

description के बाद पांच डब्ल्यू और Single एच को पूरा करने के लिए आवश्यक होती है और जिन्हें समाचार लिखते समय First के तीन खंडों में शामिल नहीं Reseller जा सका। इसमें पहल े तीन खंडो  से संबंधित अतिरिक्त जानकारियां दी जाती है। हर घटना को सही दिशा में पेश करने के लिए इसका पृष्ठभूमि में जाना भी आवश्यक होता है।  पाठक भी इस तरह की किसी घटना की पृष्ठभूमि भी जानने के लिए इच्छा रखता है। जैसे कि अगर किसी नगर में अWindows Hosting मकान गिरने से कुछ लोगों की मृत्यु हो जाती है तो यह भी प्रासंिगक ही होता है कि पाठकों को यह भी बताया जाए कि पिछले Single वर्ष में इस तरह की कितनी घटनाएं हो चुकी है और कितने लोग मरे हैं। प्रशासन द्वारा इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए क्या कदम उठाए गए और वे कहां तक सफल रहे हैं। और अगर सफल नहीं हुए तो क्यों? आदि। 

इस तरह कहा जा सकता है कि समाचार संCreation में यह क्रम होता है-इंट्रो, व्याख्यात्मक जानकारियां, descriptionाात्मक जानकारियां, अतिरिक्त जानकारियां और पृष्ठभूमि। 

छ ‘क’ कार 

समाचार के Means में हमने देखा समाचार का स्वReseller क्या है। उसके प्रमुख तत्वो ं को आसानी से समझा जा सकता है। शुष्क तथ्य समाचार नहीं बन सकते पर जो तथ्य आम आदमी के जीवन आरै विचारों पर प्रभाव डालते हैं उसे पसंद आते हैं और आंदोलित करते हैं, वे ही समाचार बनते हैं। समाचार के इस Need को ध्यान में रखते हुए समाचार में छह तत्वों का समावेश अनिवार्य माना जाता है । ये हैं-क्या, कहां, कब, कौन, क्यो और कैसे। 

अंग्रेजी में इन्हें पांच ‘डब्ल्यू’, हू, वट, व्हेन, व्हाइ वºे अर और Single ‘एच’ हाउ कहा जाता है। इन छह सवालों के जवाब में किसी घटना का हर पक्ष सामने आ जाता है लेकिन समाचार लिखते वक्त इन्हीं प्रश्नों का उत्तर तलाशना आरै पाठको  तक उसे उसके संपूर्ण Means में पहुंचाना सबसे बड़ी चुनौती का कार्य है। यह Single जटिल प्रक्रिया है। 

  1. क्या – क्या हुआ? जिसके संबंध में समाचार लिखा जा रहा है। 
  2. कहां – कहां? ‘समाचार’ में दी गर्इ घटना का संबंध किस स्थान, नगर, गांव प्रदेश या देश से है। 
  3. कब – ‘समाचार’ किस समय, किस दिन, किस अवसर का है। 
  4. कौन – ‘समाचार’ के विषय (घटना, वृत्तांत आदि) से कौन लोग संबंधित हैं। 
  5. क्यों – ‘समाचार’ की पृष्ठभूमि। 
  6. कैसे – ‘समाचार’ का पूरा ब्योरा। 

यह छह ककार (’’क’’ अक्षर से शुरू होनेवाले छ प्रश्न) समाचार की आत्मा है। समाचार में इन तत्वो  का समावेश अनिवार्य है। 

समाचार बनने योग्य तत्व 

छह ककार के सवालों के जवाब में किसी घटना का हर पक्ष सामने आ जाता है लेकिन समाचार लिखते वक्त इन्हीं प्रश्नों का उत्तर तलाशना और पाठकों तक उसे उसके संपूर्ण Means में पहुंचाना सबसे बड़ी चुनौती का कार्य है। यह Single जटिल प्रक्रिया है। लोग आमतौर पर अनेक काम मिलजुल कर करते हैं। सुख-दु:ख की घड़ी में वे साथ होते हैं। मेलो और उत्सवों में वे साथ होते हैं। दुर्घटनाओं और विपदाओं के समय वे साथ होते हैं। इन सबको हम घटनाओं की श्रेणी में रख सकते हैं। फिर लोगों को अनेक छोटी-बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। गांव, कस्बे या शहर में बिजली-पानी के न होने से लेकर बेरोजगारी और आर्थिक मंदी जैसी समस्याओं से उन्हे जूझना होता है। इसी तरह लोग अपने समय की घटनाओ, रुझानों और प्रक्रियाओं पर सोचते हैं। उन पर विचार करते हैं और इन सब को लेकर कुछ करते हैं या कर सकते हैं। इस तरह की विचार मंथन की प्रक्रिया के केद्रं में इनके कारणो, प्रभाव और परिणामों का संदर्भ भी रहता है। विचार, घटनाएं और समस्याओं से ही समाचार का आधार तैयार होता है। किसी भी घटना, विचार और समस्या से जब काफी लोगों का सरोकार हो तो यह कह सकते हैं कि यह समाचार बनने के योग्य है। किसी घटना, विचार और समस्या के समाचार बनने की संभावना तब बढ़ जाती है, जब उनमें निम्रलिखित में से कुछ या All तत्व शामिल हों – तथ्यात्मकता, नवीनता, जनरुचि, सामयिकता, निकटता, प्रभाव, पाठक वर्ग, नीतिगत ढांचा, अनोखापन, उपयोगी जानकारियां। 

तथ्यात्मकता 

समाचार किसी की कल्पना की उड़ान नहीं है। समाचार Single वास्तविक घटना पर आधारित होती है। Single पत्रकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह होती है कि वह ऐसे तथ्यों का चयन कैसे करे, जिससे वह घटना उसी Reseller में पाठक के सामने पेश की जा सके जिस तरह वह घटी। घटना के समूचे यथार्थ का प्रतिनिधित्च करनेवाले इस तथ्यों को पत्रकार खास तरह का बौद्धिक कौशल के जरिए पाठको  के समक्ष पेश करता है। समाचार में तथ्यो  के साथ कोर्इ छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए और न ही उनकी प्रस्तुति और लेखन में अपने विचारों को घुसाना चाहिए। 

नवीनता 

किसी भी घटना, विचार या समस्या के समाचार बनने के लिए यह बहुत जरूरी है कि वह नया हो। कहा भी जाता है न्यू है इसलिए न्यूज है। समाचार वही है जो ताजी घटना के बारे में जानकारी देता है। Single दैनिक समाचारपत्र के लिए आम तारै पर पिछले 24 घंटों की घटनाएं समाचार होती हैं। Single चौबीस घंटे के टेलीविजन और रेडियो चैनल के लिए तो समाचार जिस तेजी से आते हैं, उसी तेजी से बासी भी होते चले जाते हैं। लेकिन अगर द्वितीय विश्व Fight जैसी किसी ऐतिहासिक घटना के बारे में आज भी कोर्इ नर्इ जानकारी मिलती है जिसके बारे में हमारे पाठकों को First जानकारी नहीं थी तो निश्चय ही यह उनके लिए समाचार है। दुनिया के अनेक स्थानों पर अनेक ऐसी चीजें होती हैं जो वर्षों से मौजदू हैं लेकिन यह किसी अन्य देश के लिए कोर्इ नर्इ बात हो सकती है और निश्चय ही समाचार बन सकती है। 

जनरुचि 

किसी विचार, घटना और समस्या के समाचार बनने के लिए यह भी आवश्यक है कि लोगों की उसमें दिलचस्पी हो। वे उसके बारे में जानना चाहते हों। कोर्इ भी घटना समाचार तभी बन सकती है, जब लोगों का Single बड़ा तबका उसके बारे में जानने में रुचि रखता हो। स्वभावतरू हर समाचार संगठन अपने लक्ष्य समूह (टार्गेट ऑडिएंस) के संदर्भ में ही लोगों की रुचियो  का मूल्यांकन करता है। लेकिन हाल के वर्षों में लोगों की रुचियों आरै प्राथमिकताओं में भी ताडे -मरोड  की प्रक्रिया काफी तेज हुर्इ है और लोगों की मीडिया आदतों में भी परिवर्तन आ रहे हैं। कह सकते हैं कि रुचियां कोर्इ स्थिर चीज नहीं हैं, गतिशील हैं। कर्इ बार इनमें परिवर्तन आते हैं तो मीडिया में भी परिवर्तन आता है। लेकिन आज मीडिया लोगों की रुचियों में परिवर्तन लाने में बहुत बड़ी भूमिका अदा कर रहा है। 

सामयिकता 

Single घटना को Single समाचार के Reseller में किसी समाचार संगठन में स्थान पाने के लिए इसका समय पर सही स्थान यानि समाचार कक्ष में पहुंचना आवश्यक है। मोटे तौर पर कह सकते हैं कि उसका समयानुकूल होना जरूरी है। Single दैनिक समाचारपत्र के लिए वे घटनाएं सामयिक हैं जो कल घटित हुर्इ हैं। आमतौर पर Single दैनिक समाचारपत्र की अपनी Single डेडलाइन (समय सीमा) होती है जब तक के समाचारों को वह कवर कर पाता है। मसलन अगर Single प्रातरूकालीन दैनिक समाचारपत्र रात 12 बजे तक के समाचार कवर करता है तो अगले दिन के संस्करण के लिए 12 बजे रात से First के चैबीस घंटे के समाचार सामयिक होंगे। इसी तरह 24 घंटे के Single टेलीविजन समाचार चैनल के लिए तो हर पल ही डेडलाइन है और समाचार को सबसे First टेलीकास्ट करना ही उसके लिए दौड़ में आगे निकलने की सबसे बड़ी चुनौती है। इस तरह Single चैबीस घंटे के टेलीविजन समाचार चैनल, Single दैनिक समाचारपत्र, Single साप्ताहिक और Single मासिक के लिए किसी समाचार की समय सीमा का अलग-अलग मानदंड होना स्वाभाविक है, कहीं समाचार तात्कालिक है, कहीं सामयिक तो कहीं समकालीन भी हो सकता है। 

निकटता 

किसी भी समाचार संगठन में किसी समाचार के महत्व का मूल्यांकन यानी उसे समाचारपत्र या बुलेटिन में शामिल Reseller जाएगा या नहीं, का निर्धारण इस आधार पर भी Reseller जाता है कि वह घटना उसके कवरेज क्षेत्र और पाठक/दर्शक/श्रोता समूह के कितने करीब हुर्इ? हर घटना का समाचारीय महत्व काफी हद तक उसकी स्थानीयता से भी निर्धारित होता है। सबसे करीब वाला ही सबसे प्यारा भी होता है। यह Human स्वभाव है। स्वाभाविक है कि लोग उन घटनाओं के बारे में जानने के लिए अधिक उत्सुक होते हैं जो उनके करीब होती हैं। इसका Single कारण तो करीब होना है और दूसरा कारण यह भी है कि उसका असर उन पर भी पड़ता है। जैसे किसी Single खास कालोनी में चैरी-डकैती की घटना के बारे में वहां के लोगों की रुचि होना स्वाभाविक है। रुचि इसलिए कि घटना उनके करीब हुर्इ है और इसलिए भी कि इसका संबंध स्वयं उनकी अपनी Safty से है। 

प्रभाव 

किसी घटना के प्रभाव से भी उसका समाचारीय महत्व निर्धारित होता है। अनेक मौको  पर किसी घटना से जुड़े लोगों के महत्वपूर्ण होने से भी उसका समाचारीय महत्व बढ़ जाता है। स्वभावत: प्रख्यात और कुख्यात अधिक स्थान पाते हैं। इसके अलावा किसी घटना की तीव्रता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जाता है कि उससे कितने सारे लोग प्रभावित हो रहे हैं या कितने बड़े भू भाग पर असर हो रहा है, आदि। सरकार के किसी निर्णय से अगर दस लोगो  को लाभ हो रहा हो तो यह उतना बड़ा समाचार नहीं जितना कि उससे लाभान्वित होने वाले लोगों की संख्या Single लाख हो। सरकार अनेक नीतिगत फैसले लेती हैं जिनका प्रभाव तात्कालिक नहीं होता लेकिन दीर्घकालिक प्रभाव महत्वपूर्ण हो सकते हैं और इसी दृष्टि से इसके समाचारीय महत्त्व को आंका जाना चाहिए। 

पाठक वर्ग 

आमतौर पर हर समाचार का Single खास पाठक/दर्शक/श्रोता वर्ग होता है। किसी समाचारीय घटना का महत्त्व इससे भी तय होता है कि किसी खास समाचार का ऑडिएंस कौन हैं और उसका आकार कितना बड़ा है। इन दिनो  ऑडिएंस का समाचारों के महत्व के आकलन में प्रभाव बढ़ता जा रहा है। अतिरिक्त क्रय शक्ति वाले सामाजिक तबको, जो विज्ञापन उद्योग के लिए बाजार होते हैं, में अधिक पढ़े जाने वाले समाचारों को अधिक महत्व मिलता है। 

नीतिगतढांचा 

विभिन्न समाचार संगठनों की समाचारों के चयन और प्रस्तुति को लेकर Single नीति होती है। इस नीति को संपादकीय लाइन भी कहते हैं। समाचारपत्रो  में संपादकीय प्रकाशित होते हैं जिन्हें संपादक और उनके सहायक संपादक लिखते हैं। संपादकीय बैठक में तय Reseller जाता है कि किसी विशेष दिन कौन-कौन सी ऐसी घटनाएं हैं जो संपादकीय हस्तक्षेप के योग्य हैं। इन विषयो के चयन में काफी विचार-विमर्श होता है। उनके निर्धारण के बाद उनपर क्या संपादकीय क्या लाइन ली जाए, यह भी तय Reseller जाता है और विचार-विमर्श के बाद संपादक तय करते हैं कि किसी मुद्दे पर क्या रुख या लाइन होगी। यही स्टैंड और लाइन Single समाचारपत्र की नीति भी होती है। 

वैसे Single समाचारपत्र में अनेक तरह के लेख और समाचार छपते हैं और आवश्यक नहीं है कि वे संपादकीय नीति के अनुकूल हो। समाचारपत्र में विचारों के स्तर पर विविधता आरै बहुलता का होना अनिवार्य है। संपादकीय Single समाचारपत्र की विभिन्न मुद्दों पर नीति को प्रतिबिंबित करते हैं। निश्चय ही, समाचार कवरेज और लेखो-ं विश्लेषणों में संपादकीय नीति का पूरा का पूरा अनुसरण नहीं होता लेकिन कुल मिलाकर संपादकीय नीति का प्रभाव किसी भी समाचारपत्र के समूचे व्यक्तित्व पर पड़ता है। 

पिछले कुछ वर्षों में समाचार संगठनो  पर विज्ञापन उद्योग का दबाव काफी बढ़ गया है। मुक्त बाजार व्यवस्था के विस्तार तथा उपभेक्तावाद के फैलाव के साथ विज्ञापन उद्योग का जबर्दस्त विस्तार हुआ है। समाचार संगठन किसी भी और कारोबार और उद्योग की तरह हो गए हैं और विज्ञापन उद्योग पर उनकी निर्भरता बहुत बढ़ चुकी है। इसका संपादकीय-समाचारीय सामग्री पर गहरा असर पड़ रहा है। समाचार संगठन पर अन्य आर्थिक सामाजिक और सांस्कृतिक दबाव भी होते हैं। इसी तरह अन्य कर्इ दबाव भी इसकी नीतियो  को प्रभावित करते हैं। इसके बाद जो गुंजाइश या स्थान बचता है वह पत्रकारिता आरै पत्रकारों की स्वतंत्रता का है। यह उनके प्रोफेशनलिज्म पर निर्भर करता है कि वे इस गुंजाइश का किस तरह सबसे प्रभावशाली ढंग से उपयोग कर पाते हैं। 

महत्वपूर्ण जानकारियां 

अनेक ऐसी सूचनाएं भी समाचार मानी जाती जिनका समाज के किसी विशेष तबके के लिए कोर्इ महत्त्व हो सकता है। ये लोगों की तात्कालिक सूचना Needएं भी हो सकती हैं। मसलन स्कूल कब खुलेंगे, किसी खास कालोनी में बिजली कब बंद रहेगी, पानी का दबाव कैसा रहेगा आदि। 

अनोखापन 

Single पुरानी कहावत है कि कुत्ता आदमी को काट ले तो खबर नहीं लेकिन अगर आदमी कुत्ते को काट ले तो वह खबर है यानी जो कुछ स्वाभाविक नहीं है या किसी Reseller से असाधारण है, वही समाचार है। सौ नौकरशाहों का र्इमानदार होना समाचार नहीं क्योंिक उनसे तो र्इमानदार रहने की अपेक्षा की जाती है लेकिन Single नौकरशाह अगर बेर्इमान और भ्रष्ट है तो यह बड़ा समाचार है। सौ घरों का निर्माण समाचार नहीं है। यह तो Single सामान्य निर्माण प्रक्रिया है लेकिन दो घरों का जल जाना समाचार है। 

निश्चय ही, अनहोनी घटनाएं समाचार होती हैं। लोग इनके बारे में जानना चाहते हैं। लेकिन समाचार मीडिया को इस तरह की घटनाओं के संदर्भ में काफी सजगता बरतनी चाहिए अन्यथा कर्इ मौकों पर यह देखा गया है कि इस तरह के समाचारों ने लोगों में अवज्ञै ानिक सोच और अंधविश्वास को जन्म दिया है। कर्इ बार यह देखा गया है कि किसी विचित्र बच्चे के पैदा होने की घटना का समाचार चिकित्सा विज्ञान के संदर्भ से काटकर किसी अंधविश्वासी संदर्भ में प्रस्तुत कर दिया जाता है। भूत-प्रेत के किस्से कहानी समाचार नहीं हो सकते। किसी इंसान को भगवान बनाने के मिथ गढने से भी समाचार मीडिया को बचना चाहिए। 

इस तरह देखा जाए तो उपराक्ते कुछ तत्वो या All तत्वों के सम्मिलित होने पर ही कोर्इ भी घटना, विचार या समस्या समाचार बनाने के योग्य बनते हैं। 

समाचार लेखन की प्रक्रिया 

उल्टा पिरामिड सिद्धांत समाचार लेखन का बुनियादी सिद्धांत है। यह समाचार लेखन का सबसे सरल, उपयोगी और व्यावहारिक सिद्धांत है। समाचार लेखन का यह सिद्धांत कथा या कहनी लेखन की प्रक्रिया के ठीक उलट है। इसमें किसी घटना, विचार या समस्या के सबसे महत्वपूर्ण तथ्यों या जानकारी को सबसे First बताया जाता है, जबकि कहनी या उपन्यास में क्लाइमेक्स सबसे अंत में आता है। इसे उल्टा पिरामिड इसलिये कहा जाता है क्योंकि इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना सबसे First आती है जबकि पिरामिड के निचले हिस्से में महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना होती है। इस शैली में पिरामिड को उल्टा कर दिया जाता है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण सूचना पिरामिड के सबसे उपरी हिस्से में होती है आरै घटते हुये क्रम में सबसे कम महत्व की सूचनाये  सबसे निचले हिस्से में होती है। 

समाचार लेखन की उल्टा पिरामिड शैली के तहत लिखे गये समाचारो  के सुविधा की दृष्टि से मुख्यत: तीन हिस्सों में विभाजित Reseller जाता है-मुखड़ा या इंट्रो या लीड, बाडी और निष्कर्ष या समापन। इसमें मुखड़ा या इटं्रो समाचार के First आरै कभी-कभी First और Second दोनों पैरागा्रफ को कहा जाता है। मुखड़ा किसी भी समाचार का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है क्योंि क इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्यो आरै सूचनाओं को लिखा जाता है। इसके बाद समाचार की बाडी आती है, जिसमें महत्व के According घटते हुये क्रम में सूचनाओं और ब्यौरा देने के अलावा उसकी पृष्ठभूमि का भी जिक्र Reseller जाता है। सबसे अंत में निष्कर्ष या समापन आता है। 

समाचार लेखन में निष्कर्ष जैसी कोर्इ चीज नहीं होती है और न ही समाचार के अंत में यह बताया जाता है कि यहां समाचार का समापन हो गया है। 

मुखड़ा या इंट्रो या लीड 

उल्टा पिरामिड शैली में समाचार लेखन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू मुखड़ा लेखन या इंट्रो या लीड लेखन है। मुखड़ा समाचार का पहला पैराग्राफ होता है जहां से कोर्इ समाचार शुरु होता है। मुखड़े के आधार पर ही समाचार की गुणवत्ता का निर्धारण होता है। 

Single आदर्श मुखड़ा में किसी समाचार की सबसे महत्वपूर्ण सूचना आ जानी चाहिये आरै उसे किसी भी हालत में 35 से 50 Wordो से अधिक नहीं होना चाहिये किसी मुखड़े में मुख्यत: छह सवाल का जवाब देने की कोशिश की जाती है – क्या हुआ, किसके साथ हुआ, कहां हुआ, कब हुआ, क्यों और कैसे हुआ है। आमतौर पर माना जाता है कि Single आदर्श मुखड़े में All छह ककार का जवाब देने के बजाये किसी Single मुखड़े को प्राथमिकता देनी चाहिये। उस Single ककार के साथ Single-दो ककार दिये जा सकते हैं। 

बाडी 

समाचार लेखन की उल्टा पिरामिड लेखन शैली में मुखड़े में उल्लिखित तथ्यों की व्याख्या और विश्लेषण समाचार की बाडी में होती है। किसी समाचार लेखन का आदर्श नियम यह है कि किसी समाचार को ऐसे लिखा जाना चाहिये, जिससे अगर वह किसी भी बिन्दु पर समाप्त हो जाये तो उसके बाद के पैराग्राफ में एसे ा कोर्इ तथ्य नहीं रहना चाहिय,े जो उस समाचार के बचे हुऐ हिस्से की तुलना में ज्यादा महत्वपूर्ण हो। अपने किसी भी समापन बिन्दु पर समाचार को पूर्ण, पठनीय और प्रभावशाली होना चाहिये। समाचार की बाडी में छह ककारो  में से दो क्यो  और कैसे का जवाब देने की कोशिश की जाती है। कोर्इ घटना कैसे और क्यो  हुर्इ, यह जानने के लिये उसकी पृष्ठभूमि, परिपेक्ष्य और उसके व्यापक संदभेर्ं को खंगालने की कोशिश की जाती है। इसके जरिये ही किसी समाचार के वास्तविक Means और असर को स्पष्ट Reseller जा सकता है। 

निष्कर्ष या समापन 

समाचार का समापन करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि न सिर्फ उस समाचार के प्रमुख तथ्य आ गये हैं बल्कि समाचार के मुखड़े और समापन के बीच Single तारतम्यता भी होनी चाहिये समाचार में तथ्यो  और उसके विभिन्न पहलुओं को इस तरह से पेश करना चाहिये कि उससे पाठक को किसी निर्णय या निष्कर्ष पर पहुंचने में मदद मिले। 

भाषा और शैली 

पत्रकार के लिए समाचार लेखन और संपादन के बारे में जानकारी होना तो आवश्यक है। इस जानकारी को पाठक तक पहुंचाने के लिए Single भाषा की जरूरत होती है। आमतौर पर समाचार लोग पढ़ते हैं या सुनते-देखते हैं वे इनका अध्ययन नहीं करते। हाथ में Wordकोष लेकर समाचारपत्र नहीं पढ़े जाते। इसलिए समाचारों की भाषा बोलचाल की होनी चाहिए। सरल भाषा, छोटे वाक्य और संक्षिप्त पैराग्राफ। Single पत्रकार को समाचार लिखते वक्त इस बात का हमेशा ध्यान रखना होगा कि भले ही इस समाचार के पाठक/उपभेक्ता लाखो  हों लेकिन वास्तविक Reseller से Single व्यक्ति अकले े ही इस समाचार का उपयोग करेगा। 

इस दृष्टि से जन संचार माध्यमों में समाचार Single बड़े जन समुदाय के लिए लिखे जाते हैं लेकिन समाचार लिखने वाले को Single व्यक्ति को केद्रं में रखना होगा जिसके लिए वह संदेश लिख रहा है जिसके साथ वह संदेशों का आदान-प्रदान कर रहा है। फिर पत्रकार को इस पाठक या उपभेक्ता की भाषा, मूल्य, संस्कृति, ज्ञान और जानकारी का स्तर आदि आदि के बारे में भी मालूम होना ही चाहिए। इस तरह हम कह सकते हैं कि यह पत्रकार और पाठक के बीच सबसे बेहतर संवाद की स्थिति है। पत्रकार को अपने पाठक समुदाय के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए। दरअसल Single समाचार की भाषा का हर Word पाठक के लिए ही लिखा जा रहा है और समाचार लिखने वाले को पता होना चाहिए कि वह जब किसी Word का इस्तेमाल कर रहा है तो उसका पाठक वर्ग इससे कितना वाकिफ है और कितना नहीं। 

उदाहरण के लिए अगर कोर्इ पत्रकार ‘इकनामिक टाइम्स’ जैसे अंग्रेजी के आर्थिक समाचारपत्र के लिए समाचार लिख रहा है तो उसे मालूम होता है कि इस समाचारपत्र को किस तरह के लोग पढ़ते हैं। उनकी भाषा क्या है, उनके मूल्य क्या हैं, उनकी जरूरते  क्या हैं, वे क्या समझते हैं आरै क्या नहीं? ऐसे अनेक Word हो सकते हैं जिनकी व्याख्या करना ‘इकनामिक टाइम्स’ के पाठको  के लिए आवश्यक न हो लेकिन अगर इन्हीं Wordों का इस्तेमाल ‘नवभारत टाइम्स’ में Reseller जाए तो शायद इनकी व्याख्या करने की जरूरत पड़े क्योंिक ‘नवभारत टाइम्स’ के पाठक Single भिन्न सामाजिक समूह से आते हैं। अनेक ऐसे Word हो सकते हैं जिनसे नवभारत टाइम्स के पाठक अवगत हों लेकिन इन्हीं का इस्तेमाल जब ‘इकनामिक टाइम्स’ में Reseller जाए तो शायद व्याख्या करने की जरूरत पड़े क्योंिक उस पाठक समुदाय की सामाजिक, सांस्‟तिक और शैक्षिक पृष्ठभूमि भिन्न है। 

अंग्रेजी भाषा में अनेक Wordों का इस्तेमाल मुक्त Reseller से कर लिया जाता है जबकि हिंदी भाषा का मिजाज मीडिया में इस तरह के गाली-गलौज के Wordों को देखने का नहीं है भले ही बातचीत में इनका कितना ही इस्तेमाल क्यों न हो। भाषा और सामग्री के चयन में पाठक या उपभेक्ता वर्ग की संवेदनशीलताओं का भी ध्यान रखा जाता है आरै ऐसी सूचनाओं के प्रकाशन या प्रसारण में विशेष सावधानी बरती जाती है जिससे हमारी सामाजिक Singleता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता हो।

समाचार लेखक का भाषा पर सहज अधिकार होना चाहिए। भाषा पर अधिकार होने के साथ साथ उसे यह भी जानना चाहिए कि उसके पाठक वर्ग किस प्रकार के हैं। समाचार पत्र में समाचार के विभिन्न प्रकारों में भाषा के अलग अलग स्तर दिखार्इ पड़ते हैं। अपराध समाचार की भाषा का स्वReseller वहीं नहीं होता है जो खेल समाचार की भाषा का होता है। पर Single बात उनमें समान होती है वह यह कि All प्रकार के समाचारों में सीधी, सरल आरै बोधगम्य भाषा का प्रयोग Reseller जाता है। दूसरी बात यह कि समाचार लेखक को अपनी विशेषता का क्षेत्र निर्धारित कर लेना चाहिए। इससे उस विषय विशेष से संबद्ध Wordावली से यह परिचित हो जाता है और जरूरत पड़ने पर नये Wordो  का निर्माण करता चलता है।

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