संयुक्त परिवार के पतन के कारण And उसके परिणाम

संयुक्त परिवार के पतन के कारण And उसके परिणाम

By Bandey

अनुक्रम



परम्परागत (संयुक्त) परिवार व्यवस्था के विखण्डन के लिए कौन-कौन से कारक उत्तरदायी हैं? परिवार में परिवर्तन किसी प्रभावों के Single समुच्चय (set of influences) से, नहीं आया है, और न यह सम्भव है कि इन कारकों में से किसी Single को प्राथमिकता दी जा सके। इस परिवर्तित होते हुए परिवार के लिए कई कारक उत्तरदायी है। औद्योगीकरण और उसके सार्वभौमिक मापदण्ड (universalistic criteria) जो निरन्तर विस्तृत क्षेत्र को प्रभावित कर रहे हैं, व्यक्तिवाद के आदर्श, समानता और आजादी, तथा वैकल्पिक जीवन पमदति की सम्भावना जैसे कारणों के सम्मिलन से ही ‘‘संक्रमणकालीन’’ (transitional) परिवार उदय हुआ है। मिल्टन सिंगर ने परिवार में परिवर्तन के लिए चार कारकों को उत्तरदायी माना है- आवासीय गतिशीलता, व्यावसायिक गतिशीलता, वैज्ञानिक तथा तकनीकी शिक्षा और द्रव्यीकरण (monetization)। इस लेखक ने भी ऐसे पांच कारकों को पहचान की है जिन्होंने परिवार को बहुत अधिक प्रभावित Reseller है। ये हैं- शिक्षा, नगरीकरण, औद्योगिकरण, विवाह संस्था में परिवर्तन ;आयु के सन्दर्भ मेंद्ध, तथा वैधानिक उपाय।

शिक्षा

शिक्षा ने परिवार को कई प्रकार से प्रभावित Reseller है। शिक्षा से न केवल व्यक्तियों की अभिवृनिया!, विश्वास, मूल्य And आदर्श विचारधाराएं बदली हैं, बल्कि इसने व्यक्तिवादिता की भावना को भी उत्पन्न Reseller है। भारत में शिक्षा न केवल पुरुषों में बढ़ रही है, बल्कि स्त्रियों में भी। पुरुष साक्षरता की दर में वृद्धि 1901 से 1931 तक 9.8 से 15.6 तक हुई, 1961 में 34.4, 1981 में 46.9 तथा 1991 में 55.07 तक हुई, जबकि स्त्रियों की साक्षरता दर में वृद्धि 1901 में 0.6 से 1931 में 2.9, 1961 में 13.0, 1981 में 24.8 तथा 1991 में 30.09 तक हुई। मान्यता प्राप्त शैक्षिक संस्थाओं की संख्या में वृद्धि 1951 में 2.31 लाख (2.09 लाख प्राथमिक विद्यालय, 13,600 मिडल और 8,300 सैकेण्डरी व हायर सैकेण्डरी विद्यालय) से 1985 में 7.55 लाख हो गई (5.28 लाख प्राथमिक, 13.4 लाख मिडल तथा 93,000 सैकेण्डरी व हायर सैकेण्डरी विद्यालय)। इसी अवधि में छात्रों के प्रवेश की संख्या 240 लाख से बढ़कर 1320 लाख हो गई। शिक्षा की दर में इस प्रकार की वृद्धि स्त्री पुरुषों के ने केवल जीवन-दर्शन में परिवर्तन करती है, बल्कि स्त्रियों को रोजगार के नये आयाम भी उपलब्ध कराती है। आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद स्त्रियां पारिवारिक मामलों में मताधिकार की मांग करता हैं और अपने ।पर किसी का भी प्रभुत्व स्वीकार करने से इन्कार करती हैं। यह दर्शाता है कि शिक्षा किस प्रकार पारिवारिक सम्बन्धों में परिवर्तन लाती है जो कि बाद में संCreationत्मक परिवर्तन भी लाती है। आई.पी. देसाई And एलिन रास ने भी शिक्षा व्यवस्था तथा परिवार व्यवस्था के पारस्परिक प्रभाव को इंगित Reseller है। देसाई ने बताया है कि शिक्षा संयुक्त परिवार के विरुद्ध दो प्रकार से कार्य करती है- First तो व्यक्तिवाद पर बल देकर यह लोगों के सामने परिवार के स्वReseller की वह धारणा प्रस्तुत करती है जो वर्तमान संयुक्त परिवार की धारणा के विपरीत है, तथा Second यह लोगों को उन व्यवसायों के लिए तैयार करती है जो उनके अपने मूल स्थान में नहीं होते जिसके फलस्वReseller वे अपने पैतृक परिवार से पृथक होकर ऐसे क्षेत्रों में रहने लगते हैं जो उनकी शिक्षा के अनुकूल उन्हें व्यवसाय के अवसर प्रदान करते हैं। कालान्तर में इन लोगों का सम्पर्वफ पैतृक परिवार से टूट जाता है और जीवन तथा विचार के नये तरीकों को अपनाते हैं जो कि संयुक्त परिवार की भावनाओं के विरुण् तथा Singleाकी परिवार के अनुकूल होते हैं।


लेकिन देसाई ने महुवा के 423 परिवारों के अपने ही अध्ययन में पाया कि शिक्षा के स्तर में वृद्धि के साथ संयुक्तता में वृद्धि तथा Singleाकिता में गिरावट आई। शिक्षा के स्तर तथा संयुक्तता की सीमा का अनुपात देखने में उन्होंने पाया कि शिक्षा के लिए संयुक्तता अनुकूल है, और शिक्षा को प्रोत्साहित करके संयुक्तता स्वयं का विघटन करती है। देसाई का मत है कि बहुत कम लोग अखबार व पुस्तके खरीदते हैं तथा लोगों के विचार And विश्वास समाचार पत्रों, अंग्रेजी पुस्तकों तथा पत्रिकाओं के सामान्य पठन-पाठन से या पश्चिमी शिक्षा पण्ति से सीधे प्रभावित नहीं होते हैं। शिक्षा का जो कुछ भी प्रभाव लोगों पर होता है वह उन व्यक्तियों के प्रभाव के कारण है जिन्हें हम अभिजन (elite) कह सकते हैं, और या फिर परिवार तथा विद्यालय के पर्यावरण के प्रभाव के कारण होता है। अत: परिवार के मुखिया या घर के अन्य सदस्यों की शिक्षा का स्तर नये और भिन्न प्रकार की विचाराधाराओं और विश्वासों पर प्रभाव नहीं सुझाता, अपितु यह (प्रभाव) नये विचारों वाले व्यक्तियों की प्रस्थिति And क्षेत्र में संचार के प्रतिReseller के कारण मिलता है। देसाई के कथन में कोई तर्वफ दिखाई नहीं देता। यह सत्य है कि परिवार से बाहर के सम्पर्वफ व्यक्ति की अभिवृनियों And विचारों पर प्रभाव डालते हैं परन्तु उसके स्वयं का तथा उसके परिवार जनों का शिक्षा स्तर भी उनके विश्वासों और आदर्शो में परिवर्तन के कारक होते हैं। अत: जैसा कि देसाई मानते हैं यह नहीं कहा जा सकता कि परिवार के सदस्यों की शिक्षा, परिवार की संCreation And संगठन में आ रहे परिवर्तनों में महत्वपूर्ण नहीं है। इसी तरह देसाई का यह निष्कर्ष कि शिक्षा के स्तर में वृद्धि के साथ संयुक्तता में वृद्धि होती है और Singleाकिता (nuclearity) में कमी आती और सत्य प्रतीत नहीं होता। सम्भवत: उनका यह निष्कर्ष परिवार का शिक्षा-स्तर ज्ञात करने के लिए अनुसन्धान में उपयोग की गयी गलत पण्ति का ही पफल है। उन्होंने परिवार के न पढ़ने वाले सदस्यों (non-educants) ;यानि कि, वे वयस्क व बालिग बालक जिनके आगे पढ़ने की सम्भावना नहीं हैद्ध के औसत स्कूल जाने के समय को आधार मानकर परिवार की औसत शिक्षा की गणना की है। इस प्रकार इन सदस्यों के स्कूल जाने के कुल वर्षो को सदस्यों की संख्या से भाग देकर परिवार की औसत शिक्षा निकाली गयी। परिवार की शिक्षा का आंकलन करने की यह विधि निश्चित Reseller से प्रश्न करने योग्य है। यदि वे (देसाई) अन्य विद्वानों द्वारा उपयोग की गयी विधि का प्रयोग करते तो नतीजे निश्चित ही भिन्न आते। पिफर यदि बहस के तर्वफ पर हम यह मान भी लें कि परिवार की पढ़ाई का स्तर ज्ञात करने का देसाई का तरीका सही था तो उन All परिवारों की, जिनके सदस्य स्नातक थे, संCreation Singleाकी क्यों थी तथा Single भी परिवार संयुक्त क्यों नहीं था? यदि उच्च शिक्षा संयुक्त परिवार के प्रति अभिरुचि को बढ़ाती है तो स्नातक परिवारों में फ्मैटिंकुलेशन व उससे कम परिवारों, की तुलना में संयुक्त परिवारों की संख्या अधिक होती। अत: इन तर्को के आधार पर हम देसाई के उस सम्बन्ध को जो उन्होंने शिक्षा और पारिवारिक संCreation के मध्य बताया है, स्वीकार नहीं कर सकते। हमारी मान्यता है कि शिक्षा संयुक्त परिवार को नहीं परन्तु Singleाकी परिवार की पसन्द को बढ़ाती है।

रास (1961) ने कहा है कि वर्तमान व्यवसाय इस प्रकार के हैं कि उनके लिए विशेष शिक्षा, दक्षता And टेंनिग की Need होती है। अत: अपने से उपर अपने बच्चों के जीवन स्तर को उचा उठाने हेतु माता-पिता उन्हें उच्च शिक्षा देने के लिए सदा उत्सुक व महत्वाकांक्षी रहते हैं, विशेष Reseller से शहरों के मध्यवर्गीय And उच्च वर्गीय परिवार के लोग। कुछ गरीब मां-बाप तो इतने महत्वाकांक्षी होते हैं कि वे अपने को कष्ट में डालकर बड़े से बड़ा त्याग करके अनेक दु:ख, वेदना व पीड़ा सहन करते हुए भी अपने पुत्रों को उच्चतम शिक्षा दिलाने का प्रयास करते हैं। इसके लिए कभी-कभी तो वे अपने को सुख-सुविधा से, यहां तक कि खाने पहनने से भी वंचित रखते हैं। ऐसी स्थिति में अगर उनके पुत्र परीक्षा में उनीर्ण नहीं हो पाते या अपेक्षित श्रेणी प्राप्त नहीं करते तो माता-पिता में बड़ी निराशा पैदा होती हैं। कुछ मामलों में तो मा-बाप अपने बेटों को इतना डांटते पफटकारते रहते हैं, इतनी टीका-टिप्पणी व तंग करते हैं कि वे सपफलता प्राप्त करने में ही अशक्त हो जाते हैं और बामय होकर परिवार से ही पृथक हो जाते हैं। दूसरी ओर कुछ ऐसे माता-पिता भी होते हैं जो गरीबी के कारण अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने के लिए अधिक महत्वाकांक्षी नहीं होते, किन्तु उनके पुत्र अत्यधिक उच्चाकांक्षी होते हैं। अत: वे अपने मा!-बाप को छोड़कर शिक्षा प्राप्त करने विभिन्न शहरों और कस्बों में चले जाते हैं। अपनी जीविका कमाने के लिए वे ट्यूशन या नौकरी करते हैं। ये बच्चे धीरे-धीरे अपने पारिवारिक सूत्रों से कट जाते हैं। विवाह के बाद भी वे शहरों में अलग रहना जारी रखते हैं। इस प्रकार शिक्षा इनके परिवारों को प्रभावित करती है (रास, वही .208-231)। महिलाएं भी शिक्षा प्राप्त करने के बाद अपने पति, बच्चों व परिवार के प्रति भिन्न दृष्टिकोण अपना लेतीं हैं और अपनी रूढ़िवादी सास से संघर्ष में आकर पृथक घर में रहने की षिद करती हैं। यह सब परिवार के स्वReseller पर शिक्षा के प्रभाव को दर्शाता है। जैसे-जैसे शिक्षा का स्तर उठता है, वैसे-वैसे Singleाकी परिवार के पक्ष में प्रतिशत बढ़ता जाता है और संयुक्त परिवार में जीवन व्यतीत करने ;व्यवहार मेंद्ध के पक्षधर लोगों का प्रतिशत कम होता जाता है।

नगरीकरण

परिवार को प्रभावित करने वाला Single अन्य कारक नगरीकरण भी है। गत कुछ दशकों में हमारे देश की शहरी जनसंख्या में तीव्र दर से वृद्धि हुई है। अठारवीं शताब्दी के मध्य में भारत की लगभग 10% जनसंख्या ही शहरों में रहती थी। उन्नीसवीं शताब्दी में, 100 वर्षो के अन्तराल में भारत में शहरों की जनसंख्या में दस गुणा वृद्धि हुई। बीसवीं शताब्दी में समूचे देश की जनसंख्या 1901 में 23.8 करोड़ से बढ़कर 1991 में 84.63 करोड़ हो गई, शहरों में रहने वालों की संख्या में 523.0% वृद्धि हुई। 1961 में शहरी जनसंख्या समूची जनसंख्या की 17.9≫ थी, किन्तु 1971 में बढ़कर 19.9%, 1981 में बढ़कर 23.34% तथा 1991 में बढ़कर 25.72% हो गई। शहरी जनसंख्या का Single दशक के हिसाब से वृद्धि दर 1961 में 26.41: था जो 1971 में 38.23%, 1981 में 46-14% तथा 1991 में 36.19% हो गया। यथार्थ में, भारत की शहरी जनसंख्या 1961 में 7.8 करोड़, 1971 में 10.9 करोड़, 1981 में 15.9 करोड़, तथा 1991 में 21.7 करोड़ हो गई।

नगरीय परिवार ग्रामीण परिवारों से न केवल संCreation में बल्कि विचारधारा में भी भिन्न होते हैं। यह First ही कहा जा चुका है कि शहरी क्षेत्रों में Singleाकी परिवार, गैर-शहरी Singleाकी परिवार से अपेक्षाछत छोटा होता है और शहर में रहने वाला व्यक्ति Singleाकी परिवार का चयन अधिक रहता है, अपेक्षाछत ग्रामवासी के। एम.एस. गोरे (1968) की मान्यता है कि नगरीय परिवार अपने दृष्टिकोण, भूमिका-परिप्रेक्ष्य तथा व्यवहार में संयुक्त परिवार के मानदण्डों (norms) से हट रहे हैं। उदाहरणार्थ, निर्णय लेने के मामले में ग्रामीण परिवारों के विपरीत नगरीय परिवारों में बच्चों से संबंधित निर्णय परिवार का सबसे बुजुर्ग व्यक्ति ही नहीं परन्तु उनके माता-पिता लेते हैं। इसी प्रकार वे शहरी लोग जो माता-पिता की मृत्यु के उपरान्त भाईयों के इकट्ठे रहने के विचार का समर्थन करते हैं, उनकी संख्या उसी विचार वाले ग्रामीण लोगों से कम है। आई.पी. देसाई (1964) इस विचार से Agree नहीं है कि नगरीकरण संयुक्त परिवार व्यवस्था के विघटन के लिए उत्तरदायी है। संयुक्तता पर नगरीकरण के प्रभाव का विश्लेषण करते हुए उन्होंने पाया कि परम्परागत संयुक्तता तथा शहरी क्षेत्र में परिवार के रहने की अवधि के बीच महत्वपूर्ण सम्बन्ध है। उनका अनुमान था कि शहरी क्षेत्र में परिवार जितनी लम्बी अवधि तक ठहरेगा, संयुक्तता की मात्रा में भी उतनी कमी आयेगी। परन्तु उन्होंने पाया कि बहुत पुराने (50 या अधिक वर्षो तक शहर में रहने वाले) और पुराने (25 से 50 वर्षो तक शहर में रहने वाले) परिवारों में नये परिवारों (25 या इससे कम वर्ष तक शहर में रहने वाले) की अपेक्षा संयुक्तता अधिक मिलती है।

लुई विर्थ (Louis Wirth, 1938) का भी यही विचार है कि नगर परम्परागत पारिवारिक जीवन के लिए सहायक नहीं है। उनका कहना है कि सामाजिक जीवन के इकाई के Reseller में (नगरीय) परिवार बड़े नातेदारी समूह से मुक्त है, जो कि गांव की विशेषता है, तथा व्यक्तिगत Reseller में (नगरीय परिवार का) सदस्य अपनी स्वयं की शैक्षिक, व्यावसायिक, धार्मिक, मनोरंजन सम्बन्धी तथा राजनैतिक आकांक्षाओं की पूर्ति में लगा रहता है।

हमारा विचार है कि परिवार व्यवस्था के परिवर्तन में नगरीकरण का विशेष महन्व है। शहरी जीवन संयुक्त परिवार के स्वReseller को कमजोर बनाता है तथा Singleाकी परिवारों को दृढ़ बनाता है। नगरों में उच्च शिक्षा व नये व्यवसायों के चुनने के लिए अधिक अवसर होते हैं। वे लोग जो अपने परिवार के परम्परागत व्यवसाय को छोड़कर नये व्यवसाय अपनाते हैं अपने विचारों और अभिवृनियों में उन लोगों की अपेक्षा बड़ा परिवर्तन दर्शाते हैं जो अपने परम्परागत व्यवसाय को नहीं छोड़ते। इसी प्रकार, शहरों में शिक्षित व्यक्ति यद्यपि संयुक्त परिवार के मानदंडों का थोड़ा बहुत पालन करता है परन्तु उनके पक्ष में कम होता है। परन्तु यह कहा जा सकता है कि प्रवृनियों में परिवर्तन तथा शहर में रहने की अवधि में निकट का सम्बन्ध है। शहर में स्त्रियों को भी नौकरी के अधिक अवसर मिल जाते हैं और जब वे धन अर्जन करने लगती है तब वे कई क्षेत्रों में स्वतंत्रता चाहती हैं। वे अपने पति के जनक परिवार (family of orientation) से मुक्त होने की अधि क प्रयत्न करने लगती हैं। इस प्रकार नगर में रहने के कारण और समाज में परिवार के स्वReseller में Single भिन्नता दिखाई पड़ती हैं।

औद्योगीकरण

उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त तथा बीसवीं शताब्दी के First में भारत में औद्योगीकरण प्रारम्भ हो गया था। नये उद्योगों के चारों ओर शहरों का विकास हुआ। औद्योगीकरण से पूर्व हमारे पास यह व्यवस्था थी-(i) कृषिक अमुद्राहीन Meansव्यवस्था (ii) तकनीकी का वह स्तर जहां घरेलू इकाई आर्थिक विनिमय की इकाई भी थी, (iii) पिता-पुत्र व भाई-भाई के बीच व्यावसायिक भेद नहीं था, (iv) Single ऐसी मूल्य व्यवस्था थी जहां युक्तिसंगतता (v) के मानदंड की अपेक्षा बुजुर्गो का सत्ता और परम्पराओं की पवित्रता दोनों को ही महत्व दिया जाता था। लेकिन औद्योगीकरण ने हमारे समाज में सामान्य Reseller से आर्थिक व सामाजिक-सांस्छतिक परिवर्तन तथा विशेष Reseller से परिवार में परिवर्तन Reseller है। आर्थिक क्षेत्र में इसके ये परिणाम हुए हैं-कार्य विशेषज्ञता, व्यावसायिक गतिशीलता, Means व्यवस्था का द्रव्यीकरण तथा व्यावसायिक संCreationओं व नातेदारी के बीच के सम्बन्धों का टूट जाना। सामाजिक क्षेत्र में इसका परिणाम हुआ है-ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में आगमन, शिक्षा का प्रसार और Single मजबूत राजनैतिक ढाचा। सांस्छतिक क्षेत्र से इससे (औद्योगीकरण से) धर्म निरपेक्षता के विचार का विकास हुआ है।

पारिवारिक संगठन पर औद्योगीकरण के जो तीन मुख्य प्रभाव हुए हैं, वे हैं (1) परिवार जो कि उत्पादन की Single प्रधान इकाई थी, अब उपभोग की इकाई के Reseller में बदल गया है। Single Singleीछत आर्थिक व्यवस्था में लगे परिवार के All सदस्यों के Single साथ काम करने की बजाय, परिवार के कुछ पुरुष सदस्य परिवार की जीविका चलाने के लिए बाहर चले जाते हैं। इससे न केवल संयुक्त परिवार का परम्परागत स्वReseller ही प्रभावित हुआ है, बल्कि सदस्यों के बीच के सम्बन्ध भी। (2) पैफक्टिंयों में नौकरी के कारण युवक अपने पैतृक परिवारों पर सीधे निर्भर नहीं रहते। वेतन मिलने से क्योंकि वे आर्थिक Reseller से स्वतंत्र हैं, अत: परिवार के मुखिया की सत्ता: में और भी कमी आई है। शहरों में तो पुरुषों के साथ-साथ उनकी पत्नियों ने भी धन अर्जन करना शुरू कर दिया है। इससे अन्त: पारिवारिक सम्बन्धों पर प्रभाव पड़ा है। (3) बच्चे अब आर्थिक Reseller से आस्ति न होकर देय (liability) बन गये हैं। यद्यपि वैधानिक दृष्टि से बाल-श्रम वर्जित है, पिफर भी बच्चों की श्रमिकों के Reseller में Appointment तथा उनके साथ दुर्व्यवहार में वृद्धि हुई है। साथ ही शिक्षा की बढ़ती हुई Need को देखते हुए माता-पिता पर निर्भरता में वृद्धि हुई है। शहरों में आवास महंगा है और बच्चों की देखभाल भी समय मांगती है। अत: औद्योगीकरण के कारण कार्य और घर Single-Second से पृथक हो गये हैं।

कुछ समाजशास्त्रियों ने औद्योगीकरण के कारण Singleांकी परिवार के उदय के सिणन्त को हाल ही में चुनौती दी है। यह चुनौती अनुभवाश्रित (empirical) अध्ययनों पर आधारित है। एम.एस.ऐ. राव एम.एस.गोरे तथा मिल्टन  ̄सगर जैसे विद्वानों के अध्ययन यह प्रकट करते हैं कि संयुक्तता को व्यापारिक समुदायों में अिमाक वरीयता दी जाती है और यह प्रचलित भी है और बहुत से Singleाकी परिवार नातेदारी के बन्धनों को भी बहुत विस्तृत Reseller से Windows Hosting रखते हैं। पश्चिम के औद्योगिक क्षेत्रों के अनेक अध्ययन इस बात पर बल देते हैं कि नातेदारों की Single समर्थनकारी भूमिका होती है और ये परिवार और अपैसक्तिक (impersonal) वृहत विश्व के बीच Single मध्यवर्ती (buffer) का कार्य करते हैं (Abbi : 1970)। सामाजिक Historyकारों ने भी बताया है कि औद्योगीकरण से पूर्व भी अमेरिका व यूरोप में Singleाकी परिवार सांस्छतिक मानदण्ड के Reseller में प्रचलित था। लेकिन यह मयान देने योग्य है कि नातेदारों की समर्थनकारी भूमिका का कोई अनिवार्य लक्षण नहीं है जो कि Indian Customer Singleाकी परिवारों में Single पारिवारिक कर्तव्य के Reseller में पाया जाता है। Singleाकी परिवार के युवा सदस्य स्वेच्छा से अपने प्राथमिक नातेदारों ;जैसे माता-पिता व भाइयोंद्ध के प्रति अपना उत्तरदायित्व निभाते हैं तथा नजदीकी रिश्तेदारों से निकटता व परिवार में Singleता की भावना प्रकट करते हैं, भले ही वे अलग घरों में रहते हों (Leela Dube, 1974 : 311)।

इन All परिवर्तनों ने हमारी परिवार व्यवस्था को बहुत बदला है। गा!व से शहर की ओर जनसंख्या के प्रवाह के कारण सत्तावादी अधिकार में कमी और धर्मनिरपेक्षता में वृद्धि ने Single ऐसी मूल्य-व्यवस्था का विकास Reseller है जो कि व्यक्ति में पहल व उपक्रम और उत्तरदायित्व पर बल देती है। अब व्यक्ति प्रतिबंधात्मक पारिवारिक नियंत्रण के बिना ही कार्य करता है। First जब व्यक्ति परिवार में काम करता था तथा परिवार के All सदस्य उसकी सहायता करते थे, तब परिवार के सदस्यों के बीच अधिक आत्मीयता थी, लेकिन आज जब कि वह परिवार से दूर पैफक्टीं में काम करता है तो आत्मीय सम्बन्धों को बुरी तरह आघात लगा है। पारिवारिक सम्बन्धों के स्वReseller पर औद्योगीकरण के प्रभाव को इस आधार पर भी स्पष्ट Reseller से देखा जा सकता है कि परिवार की आत्म-निर्भरता में कमी आई है और परिवार के प्रति दृष्टिकोण में भी परिवर्तन आया है। औद्योगीकरण ने Single नई सामाजिक And मनोवैज्ञानिक व्यवस्थापन को जन्म दिया है जिसमें प्राधि कारवादी परिवारवादी संगठन (authoritarian familistic organisation) वाले पूर्व के संयुक्त परिवार को बनाए रखना कठिन हो गया है।

विवाह व्यवस्था में परिवर्तन

हमारी परिवार व्यवस्था को विवाह की आयु में परिवर्तन, जीवन-साथी चुनाव की स्वतंत्रता तथा विवाह के प्रति दृष्टिकोण में परिवर्तन ने भी प्रभावित Reseller है। जो बच्चे देर से विवाह करते हैं वे न तो अपने माता-पिता की सत्ता को मानते हैं और न ही सबसे बड़ी आयु के पुरुष को निर्णय लेने वाला मुख्य व्यक्ति समझते हैं। जीवन-साथी के चुनाव की स्वतंत्रता ने अन्तर्जातीय विवाह को प्रोत्साहित Reseller है जिससे पारिवारिक सम्बन्धों की संCreation प्रभावित हुई है। इसी प्रकार जब विवाह धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण नहीं रहा है तथा वैवाहिक सम्बन्धों को विच्छेद की वैमाानिक स्वीकृति मिल चुकी है, पति के अधिकार की प्रतीक परिवार की सुसंगठित सत्ता कमजोर हो गई है।

वैधानिक उपाय

वैधानिक उपायों का भी परिवार के स्वReseller पर प्रभाव पड़ा है। बाल-विवाह निषेध तथा बाल-विवाह निवारक अधिनियम, 1929 के द्वारा कम से कम विवाह की आयु का निर्धारण And हिन्दू विवाह अधिनियम 1955, ने शिक्षा की अवधि को बढ़ाया है और विवाह के बाद युगल (couple) के नयी परिस्थितियों में सामंजस्य को योगदान Reseller है। जीवन-साथी के चुनाव की स्वतंत्रता, किसी भी जाति व धर्म में माता-पिता की Agreeि बिना विवाह, जिसे विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के अन्तर्गत अनुमति प्रदान की गयी है, विधवा विवाह अधिनियम, 1856 द्वारा विधवा पुनर्विवाह की अनुमति, हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 के According विवाह-विच्छेद की अनुमति, तथा हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के अन्तर्गत पुत्रियों को माता-पिता की सम्पत्ति में हिस्साμइन All अधिनियमों ने न केवल अन्र्तव्यक्ति सम्बन्धों And परिवार संCreation को बल्कि संयुक्त परिवार की स्थिरता को भी प्रभावित Reseller है।

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