संचार की अवधारणा, परिभाषा And महत्व

संचार की अवधारणा

मनुष्य Single सामाजिक प्राणी है और संचार करना उसकी प्रकृति है । अपने भावों व विचारों का अदान-प्रदान करना उसकी जन्मजात प्रकृति है । ऐसा माना जा सकता है कि Human के अस्तित्व में आने के साथ ही संचार की Need का अनुभव हो गया हो गया होगा । जोकि मनुष्य की मूलभूत Need हो गया। संचार किसी भी समाज के लिए अति आवश्यक है । जो स्थान शरीर के लिये भोजन का है, वही समाज व्यवस्था में संचार का है । Human का शारीरिक And मानसिक विकास पूरी तरह से संचार-प्रक्रिया से Added रहता है । जन्म से मृत्यु तक मनुष्य Single Second से बातचीत के माध्यम से सम्बद्ध रहता है, Single Second को जनता है, समझता है तथा परिपक्व होता है। संचार को Human सम्बन्धों की नींव कहा जा सकता है । समाज वैज्ञानिकों का मानना है कि किसी भी परिवार, समूह, समुदाय तथा समाज में यदि मनुष्यों के बीच परस्पर वार्तालाप बन्द हो जाये तो सामाजिक विघटन की प्रक्रिया आरम्भ हो जायेगी And मानसिक विकृतियाँ जन्म लेने लगेंगी।

संचार की परिभाषा 

कम्युनिकेशन (Communication) Word लैटिन भाषा के कम्युनिस (Communis) से बना है जिसका Means है to impart, make common । मन के विचारों व भावों का आदान-प्रदान करना अथवा विचारों को सर्वसामान्य बनाकर दूसरों के साथ बाँटना ही संचार है ।संचार Word, अंग्रेजी भाषा के Word का हिन्दी Resellerान्तरण है । जिसका विकास Commune Word से हुआ है । जिसका Means है अदान-प्रदान करना Meansात बाँटना ।संचार Single आधुनिक विषय है । मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, शिक्षाशास्त्र, समाज कार्य जैसे विषयों से इसका प्रत्यक्ष सम्बन्ध है । विभिन्न विचारकों ने इसकी परिभाषा को परिभाषित करने का प्रयास Reseller है ।

  1. चेरी के According संचार उत्प्रेरक का अदान प्रदान है ।
  2. शेनन ने संचार को परिभाषित करते हुए कहा है कि Single मस्तिक का Second मस्तिक पर प्रभाव है ।
  3. मिलेन ने संचार को प्रशासनिक दृष्टिकोण से परिभाषित Reseller है । आपके According, संचाार प्रशासनिक संगठन की जीवन-रेखा है ।
  4. डा. श्यामारचरण के Wordों में :-संचार सामाजीकरण का प्रमुख माध्यम है । संचार द्वारा सामाजिक और सांस्कृतिक परम्पराए Single पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचती है । सामाजीकरण की प्रत्येक स्थिति और उसका हर Reseller संचार पर आश्रित है । मनुष्य जैविकीय प्राणी से सामाजिक प्राणी तब बनता है, जब वह संचार द्वारा सांस्कृतिक अभिवृत्तियों, मूल्यों और व्यवहार-प्रकारों को आत्मSeven कर लेता है।
  5. बीबर के According, वे All तरीके जिनके द्वारा Single Human Second को प्रभावित कर सकता है, संचार के अन्तर्गत आते है ।
  6. न्यूमैन And समर के दृष्टिकोण में, संचार दा या दो से अधिक व्यक्तियों के तथ्यों, विचारों तथा भावनाओं का पारस्परिक अदान-प्रदान है ।
  7. विल्वर के According संचार Single ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा स्रोत से श्रोता तक सन्देश पहुँचता है ।

इस प्रकार उपरोक्त परिभाषाओं के विश्लेषण के आधार पर निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि संचार Single प्रकार की साझेदारी है, जिसमें ज्ञान, विचारों, अनुभूतियों और सूचनाओं का Means समझते हुए पारस्परिक आदान-प्रदान Reseller जाता है । यह साझेदारी प्रेषक और प्राप्तिकर्ता के मध्य होती है। संचार में निहित संवाद का प्रभावकारी और Meansपूर्ण होना आवश्यक है । संचार हमें Single सूत्र में बाँधता है। संचार को समाज-निर्माण की धुरी भी कहा जा सकता है, जिसे जीवन से परित्याग करने से मनुष्य की भावनात्मक हानि हो सकती है।

संचार का महत्व 

संचार Single द्वि-मार्गीय प्रक्रिया है जहाँ पर विचारों का आदान-प्रदान होता है । बिना संचार के Humanीय संसाधनों को गतिमान Reseller जाना असंभव है । संचार को प्रेषित करने के अनेक माध्यम है । संचार को तभी सफल माना जा सकता है जब प्रेषित सन्देश को प्राप्तकर्ता MeansनिResellerण कर उसकी प्रतिपुष्टि करें । Humanीय जीवन के विभिन्न पहलुओं में संचार का अत्याधिक महत्व है । संचार को व्यावहारिक तत्व भी माना जा सकता है क्योंकि Single व्यक्ति का व्यवहार Second व्यक्ति को प्रत्यक्ष Reseller से प्रभावित करता है । प्रशासन And संगठन में संचार केन्द्रीय स्तर पर रहता है जो Humanीय And संगठन की गतिविधयों को संचालित करता है । सचांर की गतिविधियों को संचालित करता है । संचार के महत्व के सन्दर्भ में यह भी कहा जा सकता कि विश्व की All समस्याओं का कारण And समाधान है । प्रभावी संचार के अभाव में प्रबन्ध को कल्पना तक नहीं की ला सकती । प्रशासन में संचार के महत्व को स्वीकारते हुए एल्विन डाड लिखते है कि ‘‘संचार प्रबन्ध की मुख्य समस्या है ।’’ थियो हैमेन का कहना है कि ‘‘प्रबन्धकीय कार्यों की सफलता कुशल संचार पर निर्भर करती है। टेरी के Wordों में’’ संचार उस चिकने पदार्थ का कार्य करता है जिससे प्रबन्ध प्रक्रिया सुगम हो जाती है। सुओजानिन के According’ अच्छा संचार प्रबन्ध के Singleीकृत दृष्टिकोण हेतु बहुत महत्वपूर्ण है। संचार के महत्व को इन बिन्दुओं के सन्दर्भ में भली प्रकार समझा जा सकता है-

  1. नियोजन And संचार – नियोजन Single अत्यन्त महत्वपूर्ण And प्राथमिक कार्य है लक्ष्य की प्राप्ति कुशल नियोजन के प्रभावी क्रियान्वयन पर निर्भर करती है। संचार योजना के निर्माण And उसके क्रियान्वयन दोनों के लिये अनिवार्य ह। कुशल नियोजन हेतु अनेक प्रकर की आवश्यक And उपयोगी सूचनाओं, तथ्यों And आँकड़ों और कुशल क्रियान्वयन हेतु आदेश, निर्देश And मार्गदर्शन की Need होती है । 
  2. संगठन And संचार –अधिकार And दायित्वों का निर्धारण And प्रत्यायोजन करना और कर्मचारियों को उनसे अवगत कराना संगठन के क्षेत्र में आते है ये कार्य भी बिना संचार के असम्भव है। बर्नाड के Wordों में’’ संचार की Single सुनिश्चित प्रणाली की Need संगठनकर्ता का First कार्य है।’’ 
  3. अभिपे्ररणा And संचार- प्रबन्धकों द्वारा कर्मचारियों को अभिपे्ररित Reseller जाता है, जिसके लिए संचार की Need पड़ती है। ड्रकर के Wordों में’’ सूचनायें प्रबन्ध का Single विशेष अस्त्र है प्रबन्धक व्यक्तियों को हॉकने का कार्य नहीं करता वरन वह उनको अभिप्रेरित, निदेर् िशत और संगठित करता है। ये All कार्य करने हेतु मौखिक अथव लिखित Word अथवा अंकों की भाषा ही उसका Only औजार होती है ।’’ 
  4. समन्वय And संचार – समन्वय Single समूह द्वारा किये जाने वाले प्रयासों को Single निश्चित दिशा प्रदान करने हेतु आवश्यक होता है । न्यूमैन के According’’ अच्छा संचार समन्यव में सहायक होता है।’’ कुशिग नाइलस लिखती है कि समन्वय हेतु अच्छा संचार अनिवार्यता है । बर्नार्ड के Wordों में ‘‘ संचार वह साधन है जिसके द्वारा किसी संगठन में व्यक्तियों को Single समान-उद्देश्य की प्राप्ति हेतु परस्पर संयोजित Reseller जा सकता है’’ ।
  5. नियन्त्रण एंव संचार – नियन्त्रण द्वारा कुशल प्रबंधन यह जानने प्रयास करता है कि कार्य पूर्व निश्चित योजनानुसार हो रहा है अथवा नही ? इसके अतिरिक्त वह त्रुटियों And विचलनों को ज्ञात कर यथाशीध्र ठीक करने और उनकी पुनरावृत्ति को रोकने का प्रयास करता है । ये All कार्य बिना कुशल संचार प्रणाली के सम्भव नहीं होता है । 
  6. निर्णयन And संचार – सही निर्णयन लेने हेतु प्रबंन्धकों को सही समय पर सही And पर्याप्त सूचनाओं, तथ्यों And आंकड़ों का ज्ञान प्राप्त करना अनिवार्य होता है । यह कार्य भी बिना प्रभावी संचार प्रणाली के सम्भव नही होता है । 
  7. प्रभावशीलता – प्रभावी सेवाएं उपलबध करने के लिये जरूरी है कि स्टाफ के सदस्यों के बीच विचारों And मुक्त अदान-प्रदान बना रहे है । किसी संगठन की प्रभावशीलता इसी बात पर निर्भर होती है कि वहां के कर्मचारी आपस में विचारों को कितना आदान-प्रदान करते है और वे Single Second की बात कितनी समझते हैं 
  8. न्यूनतम व्यय पर अधिकतम उत्पादन- समस्त विवेकशील प्रबंधकों का लक्ष्य अधिकतम, श्रेष्ठतम् व सस्ता उत्पादन करना होता है। उत्पादकता बढा़ने के लिये आवश्यक है कि संगठन में मतभेद न हो, परस्पर सद्भाव हो , जिसमें संचार’ बहुत सहायक सिद्ध हुआ है । 

    संचार में चरण 

    1. First चरण:- प्रेषक संदेश को कूटसंकेत करता है And भेजने के लिये उपयुक्त माध्यम का चयन करता है । प्रेषत किये जाने सन्देश का प्रेषक मौखिक, अमाैि खक अथवा लिखित Reseller में उचित माध्यम से भेजना है ।
    2. द्वितीय चरण-प्रेषक Second चरण में सन्देश को भेजता है तथा यह प्रयास करता है कि सन्देश प्रेषित करते समय किसी भी प्रकार का व्यवधान न उत्पन्न हो तथा प्राप्तकर्ता बिना किसी व्यवधान के संदेश को समझ सकें ।
    3. तृतीय चरण- प्राप्तकर्ता प्राप्त सन्देष का Means निResellerण करता है तथा Need के According उसकी प्रतिपुष्टि करने का प्रयास करता है ।
    4. चर्तुथ चरण- प्रतिपुष्टि चरण में प्राप्तकर्ता प्राप्त सन्देश का MeansनिResellerण करने के बाद प्रेषक के पास प्रतिपुष्टि करता है ।

    संचार के ढंग

    वर्तमान समय में संचार की अनेक ढंगों का उपयोग Reseller जा रहा है जो कि है –

    1. ज्ञापन :- ज्ञापन विधि का प्रयोग अधिकतर आन्तरिक संचार के लिये Reseller जाता है जहाँ पर सदस्यों तथा सदस्यों से सम्बन्धित फर्म के मध्य संक्षिप्त Reseller में सूचना का अदान-प्रदान होता है। 
    2. पत्र :-वाहय संचार के अधिकतर पत्रों के माध्यमों से सूचना अथवा सन्देश का आदान-प्रदान Reseller जाता है । यथा-आदेश, व्यापार से सम्बन्धित अभिलेख इत्यादि।
    3. फैक्स :- फैक्स भी संचार की विधि है जिसके द्वारा त्वरित संन्देश प्राप्तकर्ता तक पहुँचता है ।
    4. र्इ-मेल :- सूचनाओं को हस्तांतरित करके के लिये र्इ-मेल के द्वारा त्वरित And सुविधाजनक Reseller में सन्देश को प्रेषित Reseller जाता है ।
    5. सूचना :- सूचना भी संचार की Single प्रविधि है । उदाहरण के लिये किसी संगठन में कर्मचारियों को उनसे सम्बन्धित रोजगार, Safty, स्वास्थ्य, नियम, कानून तथा कल्याणकारी सुविधायें सूचनाओं द्वारा प्रदान की जाती है । 
    6. सारांश :- सारांश प्रविधिका प्रयोग संचार के लिये अधिकतर मींिटंग में Reseller गया जाता है।
    7. प्रतिवेदन :- प्रतिवेदन भी संचार की Single प्रविधि है यथा वित्तीय प्रतिवेदन, समितियों की सिफारिशें, प्रौधोगिकी प्रतिवेदन इत्यादि । 
    8. दूरभाष :- मौखिक संचार के लिये दूरभाष का प्रयोग Reseller जाता है । दूरभाष प्रविधि का प्रयोग वहाँ पर अधिक Reseller जाता है जहाँ पर आमने-सामने सम्पर्क स्थापित नहीं हो पाता है । 
    9. साक्षात्कार :- साक्षात्कार प्रविधि का प्रयोग कर्मचारियों के चयन उनकी प्रोन्नति तथा व्यक्तिगत विचार विमर्श के लिये Reseller जाता है । 
    10. रेडियो :- Single निश्चित आवृत्ति पर रेडियो के द्वारा संचार को प्रेषित Reseller जाता है । 
    11. टी0वी0 :- टी0वी0 का भी प्रयोग संचार के लिये Reseller जाता है । जिसे Single उचित नेटवर्क के द्वारा देखा व सुना जाता है । 
    12. वीडियों कान्फ्रेन्सिंग :- वर्तमान समय में वीडियो कान्फ्रेन्सिंग Single महत्वपूर्ण विधि है । जिसमें फोन के तार के द्वारा वीडियों के साथ आवाज को सुना जा सकता है । इसके अतिरिक्त योजना, चित्र, नक्शा, चार्ट, ग्राफ आदि ऐसे ढंग है जिससे संचार को प्रेषित Reseller जाता है ।

    संचार में कारक 

    संचार में कारकों को मुख्य दो भागों में विभाजित Reseller जा सकता है । Single वे कारक जो संचार को प्रभावी बनाने में सहायक होते है Second जैसे कारक जो कि संचार व्यवस्था में नकारात्मक भूमिका निभाते है। संचार को प्रोत्साहित करने वाले कारक है :-

    1. विषय का ज्ञान: – संचारक को संचारित किये जाने वाले विषय की पूरी जानकारी होनी आवश्यक है। विषय के गहन अध्ययन के अभाव में संचार सफल नहीं हो सकता है। 
    2. संचार कौशल: – संचार प्रक्रिया के दो महत्वपूर्ण पहलू है संकेतीकरण And संकेत को समझना। संकेतीकरण के अन्तर्गत लेखन And वाक्शक्ति आते है तथा संकेत के MeansनिResellerण में पठन And श्रवण जैसी विधाए शामिल है । इसके अतिरिक्त सोचना तथा तर्क करना सफल संचार के लिये आवश्यक है ।
    3. संचार माध्यमों का ज्ञान: – संचार कार्य विन्नि माध्यमों से सम्पन्न होता है । संचार माध्यमों की प्रकृति, प्रयोज्यता And उपयोग की विधि के विषय में संचारक को ज्ञान होना चाहिए । 
    4. रूचि: – किसी भी कार्य के सफल क्रियान्वयन के लिये आवश्यक है कि कार्यकर्ता अपने कार्य में रूचि ले तथा पूरी तन्मयता के साथ उसका निर्वाह करें । रूचिपूर्वक कार्य सम्पादित करके संचारक न केवल अपनी उन्नति के द्वार खोलना है बल्कि दूसरों की प्रगति का मार्गदर्शक भी बनता है । 
    5. अभिवृत्ति – हर व्यक्ति की अपने कार्य, स्थल तथा सहकर्मियों के प्रति कुछ अभिवृत्तियाँ होती है । ये अभिवृत्तियाँ व्यक्ति की कार्य-सम्पादन शैली को प्रभावित करती है । यदि संचारक अपने कार्य, कार्य-स्थल, सहकर्मियों तथा संचार ग्रहणकर्ता के प्रति आस्थावान हो और सामान्य सौहार्दपूर्ण अभिवृत्ति रखता हो तो वह निश्चित Reseller में अपने कार्य में सफल होगा । 
    6. विश्वसनीयता – विश्वसनीयता संचारक का अति महत्वपूर्ण गुण है । संचारक के प्रति विश्वसनीयता सन्देश ग्राºयता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है । संचारक के प्रति ग्रहणकर्ताओं में जितना ही अटूट विश्वास होगा, ग्रहणकर्ता उतनी ही तत्परता, तन्मयता तथा सम्पूर्णता के साथ सन्देश को ग्रहण करेगें । 
    7. अच्छा व्यवहार – संचारक की भूमिका Single मार्ग-दर्शक की होती है । ग्रहणकर्ता के साथ उसका अच्छा व्यवहार सफल संचार-सम्बन्ध को स्थापित कर सकता है ।
    8. संदेश स्पष्ट And सरल होने चाहिये । संचार व्यवस्था में नकारात्मक भूमिका को निभाने वाले कारक निम्न है :- 1. उपयुक्त And उचित संचार प्रक्रिया का आभाव 2. वैधानिक सीमायें And अनुपयुक्त संचार नीति 3. अनुपयुक्त वातावरण 4. उचित रणनीति का आभाव 5. सरल And स्पष्ट भाषा का आभाव 6. प्रेरणा का आभाव 7. संचार कुशलता का आभाव 

    संचार-प्रक्रिया And तत्व 

    संचार Single द्विमार्गीय प्रक्रिया है जिसमें दो या दो से अधिक लोगों के बीच विचारों, अनुभवों, तथ्यों तथा प्रभावों का प्रेषण होता है । संचार प्रक्रिया में First व्यक्ति संदेश स्रोत (Source) या प्रेषक (Sender) होता है । दूसरा व्यक्ति संदेश को ग्रहण करने वाला Meansात प्राप्तकर्ता या ग्रहणकर्ता होता है । इन दो व्यक्तियों के मध्य संवाद या संदेश होता है जिसे प्रेषित And ग्रहण Reseller जाता है प्रेषित किये Wordों से तात्पर्य ‘Means’ से होता है तथा ग्रहणकर्ता Wordों के पीछे छिपे ‘Means’ को समझने के बाद प्रतिक्रियों व्यक्त करता है। सामान्यत: संचार की प्रक्रिया तीन तत्वों क्रमश: प्रेषक (Sender) सन्देश (Message) तथा प्राप्तकर्ता (Reciver) के माध्यम से सम्पन्न होती है। किन्तु इसके अतिरिक्त सन्देश प्रेषक को किसी माध्यम की भी Need होती है जिसकी सहायता से वह अपने विचारों को प्राप्तिकर्ता तक पहुंचाता है।

    अत: कहा जा सकता है कि संचार प्रक्रिया में Meansों का स्थानान्तरण होता है । जिसे अन्त: Human संचार व्यवस्था भी कह सकते है। Single आदर्श संचार-प्रक्रिया के प्राReseller को  समझा जा सकता है :-

    1. स्रोत/प्रेषक . संचार प्रक्रिया की शुरूआत Single विशेष स्रोत से होता है जहां से सूचनार्थ कुछ बाते कही जाती है। स्रोत से सूचना की उत्पत्ति होती है और स्रोत Single व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह भी हो सकता है। इसी को संप्रेषक कहा जाता है । 
    2. सन्देश . प्रक्रिया का दूसरा महत्वपूर्ण तत्व सूचना सन्देश है। सन्देश से तात्पर्य उस उद्दीपन से होता है जिसे स्रोत या संप्रेषक Second व्यक्ति Meansात सूचना प्राप्तकर्ता को देता है। प्राय: सन्देश लिखित या मौखिक Wordों के माध्यम से अन्तरित होता है । परन्तु अन्य सन्देश कुछ अशाब्दिक संकेत जैसे हाव-भाव, शारीरिक मुद्रा, शारीरिक भाषा आदि के माध्यम से भी दिया जाता है । 
    3. कूट संकेतन . कूट संकेतन संचार प्रक्रिया की तीसरा महत्वपूर्ण तथ्य है जसमें दी गयी सूचनाओं को समझने योग्य संकेत में बदला जाता है । कूट संकेतन की प्रक्रिया सरल भी हो सकती है तथा जटिल भी । घर में नौकर को चाय बनाने की आज्ञा देना Single सरल कूट संकेतन का उदाहरण है लेकिन मूली खाकर उसके स्वाद के विषय में बतलाना Single कठिन कूट संकेतन का उदाहरण है क्योंकि इस परिस्थिति में संभव है कि व्यक्ति (स्रोत) अपने भाव को उपयुक्त Wordों में बदलने में असमर्थ पाता है। 
    4. माध्यम . माध्यम संचार प्रक्रिया का चौथा तत्व है । माध्यम से तात्पर्य उन साधनों से होता है जिसके द्वारा सूचनाये स्रोत से निकलकर प्राप्तकर्ता तक पहुँचती है । आमने सामने का विनियम संचार प्रक्रिया का सबसे प्राथमिक माध्यम है । परन्तु इसके अलावा संचार के अन्य माध्यम जिन्हें जन माध्यम भी कहा जाता है, भी है । इनमें दूरदर्शन, रेडियो, फिल्म, समाचारपत्र, मैगजीन आदि प्रमुख है । 
    5. प्राप्तिकर्ता . प्राप्तकर्ता से तात्पर्य उस व्यक्ति से होता है । जो सन्देश को प्राप्त करता है । Second Wordों में स्रोत से निकलने वाले सूचना को जो व्यक्ति ग्रहण करता है, उसे प्राप्तकर्ता कहा जाता है । प्राप्तकर्ता की यह जिम्मेदारी होती है कि वह सन्देश का सही -सही Means ज्ञात करके उसके अनुReseller कार्य करे । 
    6. Meansपरिवर्तन . Meansपरिवर्तन संचार प्रक्रिया का छठा महत्वपूर्ण पहलू है । Meansपरिर्वन वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से सूचना में व्याप्त संकेतों के Means की व्याख्या प्राप्तकर्ता द्वारा की जाती है । अधिकतर परिस्थिति में संकेतों का साधारण ढंग से व्याख्या करके प्राप्तकर्ता Meansपरिवर्तन कर लेता है परन्तु कुछ परिस्थिति में जहां संकेत का सीधे-सीधे Means लगाना कठिन है । Means परिवर्तन Single जठिल And कठिन कार्य होता है । 
    7. प्रतिपुष्टि . संचार का Sevenवाँ तत्व है । प्रतिपुष्टि Single तरह की सूचना होती है जो प्राप्तिकर्ता की ओर से स्रोत या संप्रेषक को प्राप्त स्रोत है। जब स्रोत को प्राप्तकर्ता से प्रतिपुष्टि परिणाम ज्ञान की प्राप्ति होती है । तो वह अपने द्वारा संचरित सूचना के महत्व या प्रभावशीलता को समझ पाता है । प्रतिपुष्टि के ही आधार पर स्रोत यह भी निर्णय कर पाता है कि क्या उसके द्वारा दी गयी सूचना में किसी प्रकार का परिमार्जन की जरूरत है यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि केवल द्विमार्गी संचार में प्रतिपुष्टि तत्व पाया जाता है । 
    8. आवाज – संचार प्रक्रिया में आवाज भी Singleतत्व है यहॉं आवाज से तात्पर्य उन बाधाओं से होता है जिसके कारण स्रोत द्वारा दी गयी सूचना को प्राप्तकर्ता ठीक ढ़ग से ग्रहण नहीं कर पाता है या प्राप्तकर्ता द्वारा प्रदत्त पुनर्निवेशत सूचना के स्रोत ठीक ढ़ग से ग्रहण नहीं कर पाता है । अक्सर देखा गया है कि स्रोत द्वारा दी गर्इ सूचना को व्यक्ति या प्राप्तकर्ता अनावश्यक शोरगुल या अन्य कारणों से ठीक ढ़ग से ग्रहण नहीं कर पाता है । इससे संचार की प्रभावशाली कम हो जाती है । 

    उपरोक्त All तत्व Single निश्चित क्रम में क्रियाशील होते है और उस क्रम को संचार का Single मौलिक प्राReseller कहा जात है ।

    संचार नेटवर्क 

    संचार नेटवर्क (Wheel Network)– संचार नेटवर्क से तात्पर्य किसी समूह के सदस्यों के बीच विभिन्न पैटर्न से होती है । संचार नेटवक्र का अध्ययन लिमिट्ट, तथा शॉ द्वारा Reseller गया है । लिमिट्ट तथा शॉ द्वारा किये अध्ययन के आधार पर पाँच तरह के संचार नेटवर्क को पहचान की गयी है । संचार नेट वर्क इस प्रकार है ।

    1. चक्र नेटवर्क –

    इस तरह के नेटवर्क में समूह में Single व्यक्ति ऐसा होता है जिसकी स्थिति अधिक केन्द्रित होती है । उसे लोग समूह के नेता के Reseller में प्रत्यक्षण करते है ।

    चक्र नेटवर्क

    2. श्रंखला नेटवर्क – 

    श्रंखला नेटवर्क में समूह का प्रत्येक सदस्य अपने निकटमत सदस्य के साथ ही कुछ संचार कर सकता हे । इस तरह के नेटवर्क में सूचना ऊपरी तथा निचली किसी भी दिशा में प्रवाहित हो सकती है।

    श्रंखला नेटवर्क

    3. वृत्त नेटवर्क – 

    इस तरह के नेटवर्क में समूह का कोर्इ सदस्य केन्द्रित स्थिति में नहीं होता तथा संचार All दशाओं में प्रवाहित होता है।

    वृत्त नेटवर्क

    4. वार्इ नेटवर्क – 

    वार्इ नेटवर्क Single केन्द्रित नेटवर्क होता है जिसमें व्यक्ति ऐसा होता है जो अन्य व्यक्तियों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण होता है।

    वार्इ नेटवर्क

    5. कमकन नेटवर्क  –

    कमकन नेटवर्क Single तरह का खुला संचार होता है जसमें समूह का प्रत्येक सदस्य Second सदस्य से सीधे संचार स्थापित कर सकता है ।

    कमकन नेटवर्क

    संचार, सोच-विचार करने की प्रक्रिया के Reseller में 

    संचार की प्रक्रिया संचारक, सन्देश, संचार माध्यम, प्राप्तकर्ता तत्वों से मिलकर पूर्ण होती है। संचार प्रक्रिया में संचारक महत्वपूर्ण बिन्दु होता है जिसे प्रारम्भ बिन्दु भी कहा जा सकता है। किसी तथ्य या सत्य को प्रस्तुत करना और लोगों को उसके द्वारा प्रभावित करना अत्यन्त चुनौती भरा तथा दायित्वपूर्ण कृत्य है। संचारक का कर्तव्य सामाजिक जिम्मेदारियों से परिपूर्ण होता है उसकी प्रस्तुति मात्र तथ्यों, विचारों, सूचनाओं को प्रेषित ही नहीं करती वरन् लोगों को परिवर्तन की ओर अग्रसर होने को उत्पे्ररित करती है। अत: संचारक को सोच-विचार के कार्य करना पड़ता है संचारक को संतुलित व्यक्तित्व का होना चाहिए, उसे अपने विषय का विस्तृत, विविध संचार माध्यमों का ज्ञान, विवेकपूर्ण निर्णय करने की क्षमता तथा अपने काम के प्रति रूचि व र्इमानदारी होनी चाहिये।

    संचार Single सुनियोजित And व्यवस्थित प्रक्रिया है। जिसके लिए सोच-विचार से परिपूर्ण पूर्व नियोजित कार्यक्रम महत्वपूर्ण है  संचारक विषय का जन्मदाता होने कारण संचार प्रक्रिया प्रारम्भ करने से पूर्व उसे कर्इ महत्वपूर्ण निर्णय लेने होते है जो कि है :-

    1. सन्देश का चयन
    2. सन्देश की विवेचना 
    3. संचार माध्यम का चयन 
    4. प्राप्तकर्ता का चयन 

    संचार प्रक्रिया में संचारक का First कार्य संदेश या उसकी विषय वस्तु का चयन करना होता है। यह कार्य प्राय: मानसिक धरातल पर प्रारम्भ होता है एतदर्थ गहन सोच-विचार आवश्यक है। सन्देश की विषय-वस्तु महत्वपूर्ण, उपयोगी, समसामयिक तथा सर्वानुकूल होने के साथ रूचिकर भी होनी चाहिए।

    विषय-वस्तु के चयन के बाद विषय-वस्तु की विवेचना Meansात् उसकी प्रस्तुति तथा उसका प्रतिपादन महत्वपूर्ण चरण होता है। प्रस्तुति सदैव सजीव And आकर्षक होनी चाहिये जो लोगों को सहज आकर्षित कर सके। संचारक को अपनी बात नपे तुले Wordों में प्रस्तुत करनी चाहिए। विषयवस्तु के विभिन्न पक्षों को बताने के बाद All बिन्दुओं को समेटते हुए संदेश का समापन करना चाहिये जिससे पूरी प्रस्तुति Single सूत्र में बँध जाये। साथ ही, संचार मे प्रतिपुष्टि के महत्व को देखते हुए, संचारक को प्राप्तकर्ता के विचार या जिज्ञासा को आमन्त्रित करना चाहिये।

    संचार माध्यम में लोकमाध्यम जैसे- लोकगीत, लोकनाटक, लोक नृत्य, कठपुतली इत्यादि तथा आधुनिक माध्यम में रेडियो, टेलीविजन, समाचार पत्र पत्रिकायें, फिल्म पोस्टर, विज्ञापन, इत्यादि का चयन संचारक के लिए महत्वपूर्ण होता है। सफल संचार-प्रक्रिया के लिए आवश्यक है कि संचारक संचार के माध्यमों का चयन सोच-विचार के करे।

    संचार को प्राप्त करने वाले प्राय: संचार माध्यम से सम्बद्ध होते है। सन्देश प्रेषण के लिए सन्देश की भाषा और जानकारियों का स्तर सामान्य होना चाहिये। यदि सन्देश स्तरीय हो तो सन्देश माध्यम के द्वारा ज्ञानवान प्राप्तकर्ताओं का चयन Reseller जाना चाहिये।

    इस प्रकार हम कह सकते हैं कि संचारक ही वह मुख्य केन्द्र बिन्दु होता है जो संचार प्रक्रिया को सफल बना सकता है। संचारक द्वारा सोच-विचार कर Reseller गया संचार तार्किक And व्यवस्थित होता है। अत: संचार प्रक्रिया में तार्किक सोच-विचार बिंदु सफल संचार का द्योतक है।

    संचार प्रेषण के Reseller में 

    संचार Single द्विमार्गीय प्रक्रिया है जिसमें प्रेषक सूचना को प्रात्तकर्ता के पास भेजता है तथा प्राप्तकर्ता प्राप्त सूचना की प्रतिपुष्टि करता है। संचार प्रक्रिया में पे्रषण महत्वपूर्ण योगदान होता है। यह Single ऐसी क्रिया है जिसमें प्रेषक द्वारा भेजी गयी सूचना माध्यमों से पे्रषित होकर प्राप्तकर्ता को प्राप्त होती है। संचार और प्रेषण को यदि अलग-अलग Reseller में परिभाषित Reseller जाये तो संचार संकेतो के द्वारा प्रेषित होकर प्राप्त की जाती है जबकि प्रेषण में सूचना को केवल भेजा जाता है उसकी प्रतिपुष्टि नहीं हो पाती है।

    इसलिए प्रेषण को Single मार्गीय क्रिया माना जाता है। उदाहरण के लिए मोबाइल, फोन के द्वारा संचार की प्रक्रिया द्विमार्गीय होती है जिसमें संचारक तथा प्राप्तकर्ता दोनों सूचना का आदान-प्रदान करते है। जबकि रेडियों, टेलीविजन, जनसंचार के ऐसे माध्यम है, जिससे सूचना को प्रेषित Reseller जाता है परन्तु उसकी प्रतिपुष्टि नहीं हो पाती है। संचार प्रक्रिया में प्रेषण के लिए उपयुक्त माध्यम की Need होती है जिससे कि प्राप्तकर्ता बिना किसी अवरोध के सन्देश को प्राप्त कर सके। यह तभी सम्भव है जब संचारक उचित माध्यम का चयन करे। प्रेषण के लिए आवश्यक है कि संचारक आमने-सामने के सम्बन्ध के द्वारा या पत्र द्वारा या टेलीफोन द्वारा या फैक्स के द्वारा संचार करें। Single शिक्षक लिए आवश्यक है कि वह अच्छा लिखे बल्कि यह भी जरूरी है कि मौखिक संचार तथा उसके हाव-भाव All Single साथ मिलकर के पढ़ार्इ को अत्यधिक प्रभावी बना सकते हैं।

    संचार Single सांस्कृतिक उत्पादक के Reseller में 

    संचार Single सुनियोजित प्रक्रिया है। इसके निमित सूझ-बूझ से परिपूर्ण पूर्व नियोजित कार्यक्रम महत्वपूर्ण है। संचारक या प्रेषक इस प्रक्रिया का केन्द्र बिन्दु होता है। संचार को प्रारम्भ करने से पूर्व कर्इ महत्वपूर्ण निर्णय लेने पड़ते  है जो संचार को प्रभावी बनाता है।

    प्रत्येक व्यक्ति सामाजिक बन्धनों और सांस्कृतिक रीति-रिवाजों, विश्वास के दायरे में बंधा रहता है ये सब उसके जीवन में आदत का Reseller धारण कर लेते है संचारक का यह कर्तव्य होता है कि जब कोर्इ सन्देश प्रेषित करे तो व्यक्ति के सामाजिक And सांस्कृतिक विश्वासों का किसी प्रकार से हनन न हो। सन्देशों में सांस्कृतिक मान्यताओं के प्रति अनुResellerता होनी चाहिये। किसी भी सांस्कृतिक मान्यता को स्पष्ट Reseller से गलत या बुरा कहना संचार प्रक्रिया में बाधक हो सकता है। इनमें यदि परिवर्तन लाना हो तो परोक्ष तरीकों को अपनाया जाना चाहिये। संस्कृति ही Single ऐसा माध्यम होती है जो हमें नैतिकता का ज्ञान कराती है। संस्कृति Single पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी पर हस्तांतरित होती रहती है। संस्कृति के द्वारा ही मनुष्य मूल्यवान होता है। सांस्कृतिक अवमूल्यन की स्थिति में हस्तांतरण की प्रक्रिया अवरूद्ध हो जाती है। सांस्कृतिक हस्तांतरण के लिये Single उपयुक्त भाषा की Need होती है। वाचक अथवा लिखित प्राReseller के द्वारा संस्कृति निरन्तर आगे बढ़ती है। जिसके लिए Single उचित संचार माध्यम की Need पड़ती है।

    संचारक द्वारा पे्रषित Reseller जाने वाला सन्देश जन सामान्य अथवा समाज को प्रत्यक्ष Reseller से प्रभावित करता है अत: ऐसा प्रयास होना चाहिये कि जिससे सांस्कृतिक मान्यतायें And विश्वास प्रभावित न हों। संचार सामाजिक, परिवर्तन के लिए आवश्यक है। संचार प्रक्रिया में दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच विचारों, अनुभूतियों, ज्ञान, विश्वासों, मूल्यों, भावनाओं का प्रभावकारी आदान-प्रदान है। संचार में निहित संवाद का प्रभावकारी और Meansपूर्ण होना आवश्यक है। प्रेषक जिस भावार्थ के साथ सन्देश प्रेषित Reseller जाता है ग्रहणकर्ता द्वारा उस Word को उसी भावार्थ के साथ ग्रहण किये जाने पर संचार सफल होता है। लोग संचार के माध्यम से दूसरों के विचारों, मान्यताओं और व्यवहार में परिवर्तन लाने की चेष्टा करते हैं।

    पारस्परिक प्रक्रियायें लोगों को Single-Second को समीप लाती है तथा Single Second को समझने में सहायता प्रदान करती है। Humanीय संबंधों, Humanीय मूल्यों, Humanीय विश्वासों को Safty प्रदान करने तथा संस्थापित करने में संचार महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जिस प्रकार सामाजिक सम्बन्धों, मूल्यों, विश्वासों, परम्पराओं तथा संस्कृति के बिना जीवन की परिकल्पना नहीं की जा सकती है, ठीक उसी प्रकार संचार जीवन के साथ प्रारंभ होता है तथा जीवन की समाप्ति के साथ समाप्त होता जाता है। मनुष्य को सामाजिक प्राणी बनाने में तथा उसे यथोचित स्थान दिलाने में जो स्थान संस्कृति का है वहीं स्थान संचार का है। सच माना जाए तो सभ्यता And संस्कृति का उद्भव And विकास वास्तव में संचार का उद्भव And विकास है। हमारी सामाजिक मान्यतायें, आस्था And विश्वास, रीति-रिवाज जैसी धरोहरें संचार के माध्यम से ही निरन्तरता बनाये हुए हैं। तात्पर्य यह है कि संचार में अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए मनुष्य को संचार का आधार प्राप्त है और संचार के अभाव में मनुष्य के अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।

    प्रभावी संचार की विशेषताएँ

    1. संचार का उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए 
    2. संचार की भाषा बोधगम्य, सरल व आसानी से समझ में आने वाली होनी चाहिये । 
    3.  संचार यथा सम्भव स्पष्ट And All आवश्यक बातों से युक्त होना चाहिए । 
    4. संचार प्राप्तकर्ता की प्रत्याशा के अनुReseller होने चाहिए । 
    5. संचार यथासमय Meansात् सही समय पर होना चाहिये । 
    6. संचार पे्रषित करने के पूर्व सम्बन्धित विषय में पूर्ण जानकारी का ज्ञान होना आवश्यक है । 
    7. संचार करने से पूर्व परस्पर विश्वास स्थापित करना आवश्यक है । 
    8. संचाार में लोचशीलता होनी चाहिये Meansात् Needनुसार उसमें परिवर्तन Reseller जा सके । 
    9. संचार को प्रभावी बनाने के लिये उदाहरणों तथा श्रव्य दृश्य साधनों का प्रयोग Reseller जाना चाहिए । 
    10. विलम्बकारी प्रवृत्तियों अथवा प्रतिक्रियाओं को व्यवहार में नहीं लाना चाहिए । संचार सन्देशों की Single निरन्तर श्रंखला होनी चाहिये । 
    11. Single मार्गीगीय संचार की अपेक्षा द्विमार्गीय संचार श्रेष्ठ होता है । 
    12. सन्देश प्रेषित करते समय ऐसा प्रयास Reseller जाना चाहिये कि सामाजिक And सांस्कृतिक विश्वासों पर किसी प्रकार का कुठाराघात न हो । 
    13. संचार हमेशा लाभप्रद होना चाहिये क्योकि मनुष्य का स्वभाव है कि किसी भी बात में लाभप्रद सम्भावनाओं को देखता है । 
    14.  संचार में प्रयोग की जाने वाली विधियाँ या कार्य खर्चीले नहीे होने चाहिये Meansात मितव्यियता के सिद्धान्त का पालन करना चाहिए । 
    15.  संचार में विभाज्यता का गुण होना चाहिये क्योंकि प्रेषित सन्देश का उद्ेश्य पूरे समुदाय या वर्ग के कल्याण में निहित होता है । 
    16. संचार बहुहितकारी होना चाहिये Meansात बहुजन हिताय बहुजन सुखाय की भावना होनी चाहिये ।

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