श्रवण बाधित की परिभाषा, प्रकार And पहचान

जब कोर्इ व्यक्ति सामान्य ध्वनि को सुनने में असक्षम पाया जाता है, तो हमें उसे अक्षम कहा जा सकता है और इस अवस्था को श्रवण क्षतिग्रस्तता कहा जाता है। हमारे देश में इस प्रकार की समस्या से ग्रसित प्राय: हर आयु वर्ग के लोग पाये जाते हैं, जिसके अनेकों कारण हैं। इसका सबसे बड़ा कारण ध्वनि प्रदूषण And अनेकों प्रकार की बीमारियों हैं। श्रवण क्षतिग्रस्तता को समझने के लिए यह अत्यंत आवश्यक होता है कि इस सामान्य श्रवण प्रक्रिया के विषय में जानकारी रखें।

भारत Single विशाल क्षेत्र वाला देश है। जिसमें 1 अरब से अधिक जनसंख्या निवास करती है। इस जनसंख्या के कुछ प्रतिशत लोग किसी-न -किसी विकलांगता से ग्रसित हैं। देखा जाये तो देश की स्वतंत्रता के बाद भी विकलांगता के क्षेत्र में अप्रत्याशित परिवर्तन हुए हैं। जनगणना 1931 के According मूक बधिर व्यक्तियों की जनसंख्या 2,31,000 थी। देश की भौगोलिक संCreation के आधार राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन 1991 के आंकड़ों के आधार पर लगभग 32,42,000 व्यक्ति श्रवण अक्षमता से ग्रसित पाये गये। आंकड़ों के According श्रवण बाधिता 60 वर्ष या उससे अधिक उम्र के व्यक्तियों में अधिक पायी गयी। विभिन्न सर्वेक्षणों के According पता चलता है कि 1 प्रतिशत बच्चे जन्मजात श्रवण दोष से ग्रसित होते हैं। इस प्रकार हमारे देश में अति अल्प, 25 प्रतिशत अलप, 19 प्रतिशत अल्पतम् 42 प्रतिशत गंभीर And 12 प्रतिशत अति गंभीर होते है। इस प्रकार चलित श्रवण क्षति, संवेदी श्रवण क्षति, केन्द्रीय श्रवण क्षति And मिश्रित श्रवण क्षति All वर्ग के बच्चे पाये जाते हैं। इनके शिक्षण And प्रशिक्षण हेतु Human संसाधन विकसित किये जा रहे हैं। सिससे इनका पुनर्वास Reseller जा सके।

श्रवण क्षतिगस्तता को विभिन्न संगठनों द्वारा समय-समय पर परिभाषित Reseller गया है –

उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट होता है कि जब व्यक्ति सुनने में असक्षम हो तथा दूसरों की सहायता लेता है, उससे यह ज्ञात होता है कि व्यक्ति को श्रवण दोष है। श्रवण दोष Single अदृश्य And छुपी हुर्इ विकलांगता है, जो देखने से नहीं दिखार्इ देती है। कोर्इ व्यक्ति हाथ या पैर से विकलांग है तो वह बैसाखी, व्हील चेयर, ट्रार्इसाइकिल आदि का प्रयोग करता है। जिससे उसकी शारीरिक विकलांगता का पता चलता है तथा Single मानसिक विकलांग बच्चा अपने हाव-भाव, क्रिया-कलापों तथा व्यवहार यह साबित करता है कि वह मानसिक मन्द है।

श्रवण बाधिक बालकों में अनेक विशेषताएं पायी जाती हैं । 1. भाषा संबंधी विशेषताएं 2. शैक्षिक विशेषताएं 3. बौद्धिक योग्यता संबंधी विशेषताएं 4. सामाजिक व व्यावसायिक विशेषताएं 5. अन्य महत्वपूर्ण विशेषताएं।

कुछ शोध अध्ययनों के फलस्वReseller यह पता चला है कि श्रवण बाधित बालकों की मानसिक योग्यता कम होती है तथा इनकी शैक्षिक योग्यता And समायोजन भी उत्तम नहीं होता है।

बच्चों में सामान्य विकास हो रहा है अथवा नहीं, जानने के लिए नीचे दिये गये निर्देशों पर ध्यान देना चाहिए। यदि बच्चे द्वारा इस प्रकार की अनुक्रियाएं नहीं ही जा रही है, तो श्रवण दोष की आशंका की जानी चाहिए। यदि ताली की आवाज जोर से दी जाय तो बच्चा चौंकता है। सामान्यत: बच्चे अपने मां की आवाज को पहचानते हैं और उनकी आवाज सुनने पर चुप हो जाते हैं। बच्चों के साथ बात की जाये, तो वे मुस्कुराते भी हैं और यदि खेल रहे हैं तो आवास होने पर खेलना बंद कर देते हैं। यदि उनके पास सुखदायी And नर्इ आवाज उत्पन्न की जाये, तो वे अच्छी तरह सुनते हैं। इस उम्र के बच्चे आवाज होने पर उस दिशा में गर्दन घुमाकर देखते हैं। इस उम्र के बच्चे बुलाने पर देखते हैं तथा कुछ Wordों को समझते भी हैं, जैसे – मुंह बंद करो, मुंह खोलो इत्यादि। साधारण निर्देश को समझते हैं। ½½ -वर्ष  आग्रह करने पर बच्चे उस पर प्रतिक्रिया करते हैं, जैसे – मुझे गुड़िया दो। यदि बच्चे का व्यवहार का सावधानीपूर्वक आकलन करते हैं, तो प्राय: श्रवण दोष की पहचान की जा सकती है।

श्रवण बाधित के प्रकार

जिन बालकों को सुनने में अत्यंत कठिनार्इ का सामना करना पड़ता है, वह श्रवण बाधित कहलाते हैं। इनमें ध्वनि को सुनने की क्षमता से 1 से 130 डेसीवल्स (Desibles) तक होती है। यदि वह 130 डी.बी. से ऊपर आये, तो यह ध्वनि दर्द की संवेदना देती है। श्रवण बाधित बालकों को चार वर्गों में बांटा जाता है –

  1. कम श्रवण बाधित बालक – कम श्रवण बाधित बालक होते हैं, जिन्हें सामान्य स्तर पर बोलने पर सुनायी देता है, परंतु यदि बहुत धीमी बोला जाये, तो यह सुन नहीं पाते हैं। इनकी बातचीत को सामान्य स्तर 65 डी.बी. होता है। यह बालक किंचित श्रवण बाधित बालकों को 31 से 51 डी.बी. की श्रवण बाधिता एि हुए होते हैं। यानि कि यह बालक 54 डी.बी. तक की ध्वनि नहीं सुन पाते हैं, इसलिए इन्हें कम श्रवण बाधितों की श्रेणी में माना जाता है।
  2. मंद श्रवण बाधित बालक – यह बालक मंद Reseller से श्रवण बाधितों की श्रेणी में इसलिए आते हैं क्योंकि वह बालक 55 से 69 डी.बी. का क्षय रखते हैं। अत: सामान्य स्तर 65 डेसीवल्स पर यह नहीं सुन पाते हैं। अत: यह बालक ऊंचा सूनते हैं।
  3. गंभीर श्रवण बाधित बालक – इन बालकों में 70-89 डी.बी. तक की श्रवण बाधिता होती है तथा वे बालक काफी ऊंचा सुनते हैं।
  4. पूर्ण बाधित बालक – यह बालक बिल्कुल नहीं सुन पाते हैं। इसकी श्रवण बाधिता 90 डी.बी. तथा इससे आगे के स्तर की जोती है। यह बहुत ऊंचा बोलने पर थोड़ा – सा ही सुन पाते हैं। यह बालक बधिर (Deaf) की श्रेणी में आते हैं।

श्रवण प्रक्रिया

व्यक्ति विशेष की वैसी अक्षमता जो उस व्यक्ति में सुनने की बाधा उत्पन्न करती है। श्रवण अक्षमता कहलाती है। इसमें श्रवण-बाधित व्यक्ति अपनी श्रवण शक्ति को अंशत: या पूर्णत: गंवा देता है तथा उसे सांकेतिक भाषा पर निर्भर रहना पड़ता है। श्रवण अक्षमता को सही तरीके से समझने के लिए यह आवश्यक है कि First श्रवण प्रक्रिया (Hearing procedure) को समझने का प्रयास Reseller जाये कि वास्तव में श्रवण प्रक्रिया किस प्रकार संचलित होती है। श्रवण प्रक्रिया कर्इ चरणों में होकर सम्पन्न होती है जो कि है –

श्रवण प्रक्रिया में कान के द्वारा आवाज को ग्रहण करना और संदेश को केन्द्रीय तांत्रिका तंत्र (सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम) में भेजना सम्मिलित है। श्रवण प्रक्रिया से लोग अपने आस-पास के वातावरण से संबंध रखते हैं। जो भाषा को सीखने का Single प्रमुख मार्ग हे। श्रवण हमें खतरों से भी सावधान करता है। जन्म से लेकर जीवनपर्यन्त श्रवण प्रक्रिया हमें वातावरण पर नियंत्रण करने के लिए सहयता करती हैं।

श्रवण प्रक्रिया कर्इ चरणों से होकर सम्पन्न होती है। इसमें सर्वप्रािम बाह्य वातावरण की ध्वनि कर्ण से टकराकर वाह्य कर्ण नलिका में प्रवेश करती है, जो कान के पर्दे के सम्पर्क में आकर विशेष प्रकार के तंतुओं से जुड़ी मध्य मर्ण की अस्थियों से टकराती है और आगे बढ़ती हुर्इ, वहीं ध्वनि फेनेस्ट्रो ओवलिस में पहुंचती है। इससे स्कैला बेस्टीबुला में कम्पन्न होने लगता है।

इस कम्पन्न के फलस्वReseller कण। के अन्त: भाग के रिनर्स झिल्ली से होते हुए ध्वनि टेक्टोरियस झिल्ली मे पहुंचती है, जिससे हलचल उत्पन्न होती है। यह झिल्ली हलचल को समायोजित करके ध्वनि को आगे की तरफ प्रेषित करती है। इसे काटांर्इ नामक अंग ग्रहण करके 8वीं श्रवण तंत्रिका में भेज देता है। श्रवण तंत्रिका उपयुक्त ध्वनि को मस्तिष्क में भेज देती है, जिसके फलस्वReseller व्यक्ति को ध्वनि का प्रत्यक्षण होता है। इस सम्पूर्ण श्रवण प्रक्रिया को दिये गये निम्नलिखित सूत्र And चित्र द्वारा आसानी से समझा जा सकता है।

श्रवण दोष बच्चे की वाक् उत्तेजना में बाधा डालता है। जबकि भाषा – विकास के लिए सामान्य श्रवण का होना आवश्यक होता है। श्रवण दोष का अंश जो Single सामान्य बुद्धि वाले व्यक्ति में समस्या नहीं उत्पन्न करता, वहीं मानसिक मंद बच्चे में बड़ी समस्या खड़ी कर सकता है। डाउन सिड्रोम से ग्रसित अधिकांश बच्चों में श्रवण दोष और कान के संक्रामक रोग देखे गये हैं।

1. सुनना

श्रवण प्रक्रिया और सुनना Single ही प्रक्रियाएं नहीं है। सुनना Single श्रवण प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य Means निकलना है या Wordों के Means देने के उद्देश्य से Word ग्रहण करना होता है। इसमें मुख्य Reseller से सम्मिलित प्रक्रिया है। इसकी तुलना में श्रवण प्रक्रिया Single शारीरिक क्रिया है।

2. श्रवण दोष

श्रवण दोष के तात्पर्य सुनने की अक्षमता है। श्रवण दोष व्यक्ति में दूसरों की बात और वातावरण की अन्य ध्वनियों को सुनने में कठिनार्इ उत्पन्न होती है।

श्रवण क्षतियुक्तता के कारण –

बालकों के विकास को जन्म से पूर्व, जन्म के समय तथा जन्म के बाद विभिन्न कारक प्रभावित करते हैं श्रवण क्षतियुक्तता के कारण हैं –

श्रवण क्षतियुक्तता के कारण 

जन्म से पूर्व, जन्म के समय जन्म के बाद
जाननिक कारण  बीमारी
जर्मन खसरा  दुर्घटना
गर्भावस्था में श्रवण शक्ति  उच्च ध्वनि
असामयिक प्रसव आयु
अWindows Hosting प्रसव असंतुलित आहार

    1. जाननिक कारण 

    आनुवंशिकता श्रवण संबंधित दोषों का प्रमुख कारण है। साधारणतया यह देखा गया है कि जिन बालाकों के माता-पिता बहरे होते हैं उन्हें श्रवण दोष देखने को मिलता है। यदि अत्यंत निकट संबंधी आपस में विवाह करते हैं तब इस तरह के दोष की संभावना रहती है। जन्मजात श्रवण दोष का कारण जाननिक तब भी सकता है जब माता-पिता और अन्य भार्इ बहनों में यह दोष न हो क्योंकि यहां श्रवण दोष का कारण माँ या पिता या दोनों में विद्यमान जीन्स हो सकते हैं। श्रवण दोष जीन्स की विशेषताओं के कारण होती है :

    1. माता और पिता दोनों में विद्यमान Single अपगामी जीन्स
    2. माता और पिता दोनों में से किसी में विद्यमान प्रबल जीन्स 
    3. लिंग संबंधी जीन्स जो केवल माँ में होता है और केवल पुत्र को प्रभावित करता है।

    2. जर्मन खसरा

    1980 में जर्मन खसरा Single महामारी के Reseller में फैला यह देखा गया कि जो गर्भवती माताएं इस बीमारी से पीड़ित हुर्इ उनकी सन्तानें श्रवण क्षतियुक्त हुर्इ। तब यह निष्कर्ष निकाला गया है कि जर्मन खसरा भी श्रवण विकलांगता का Single कारण है।

    3. गर्भावस्था में क्षतियुक्तता

    जब बालक गर्भ में होता है तब उस समय श्रवण दोष होने की संभावना होती है। इसके कारण हो सकते हैं –

    1. माँ कोर्इ जहरीले पदार्थ का सेवन कर ले। 
    2. शराब का सवेन करें।
    3. असंतुलित भोजन ग्रहण करें। 
    4.  दूषित भोजन करें। 
    5. बीमार रहे।

    4. असामयिक प्रसव  

    असामयिक प्रसव की श्रवण दोष उत्पन्न करता है हालांकि यह अभी निश्चित Reseller से नहीं कहा जा सकता है। कभी-कभी इससे उत्पन्न बालक में श्रवण दोष दिखार्इ पड़ता है।

    5. अWindows Hosting प्रसव 

    यदि प्रसव के समय रक्त प्रवाह अधिक हो जाये या रक्त का विकृत संचार हो ऑक्सीजन का अभाव हो तो तब बालक के श्रवण यंत्र कुप्रभावित हो जाते हैं।
    अधिकतर ऐसा देखते में आता है कि जन्म के समय बालक सामान्य होता है परंतु विकास के दौरान उसका श्रवण यंत्र प्रभावित हो जाता है जिसके कारण हो सकते हैं।

    6. बीमारियां

    कुछ बीमारियां इस प्रकार की जोती है जो कि कभी-कभी श्रवण दोष उत्पन्न करती हैं। जैसे –

    1. कमफड़ा 
    2. खसरा,
    3. चेचक,  
    4. मोतीझरा 
    5. कुकर खांसी 
    6. कान में मवाद।

    7.  दुर्घटना

     कोर्इ दुर्घटना भी व्यक्ति के श्रवण यंत्र को नुकसान पहुंचा सकती है। जिससे कि श्रवण दोष हो सकता है। किसी लकड़ी या पिन के काम का मेल निकालते समय भी बालक अन्जाने में कर्ण पटल को नुकसान पहुंचा देते है। जिससे कभी-कभी श्रवण दोष हो सकता है।

    8. उच्च ध्वनि

    कभी-कभी जोर से धमाका कर्ण पटल को फाड़ देता है। इसी प्रकार निरंतर उच्च ध्वनि को सुनते रहने से कान केवल उच्च ध्वनि को ही पकड़ पाते हैं। सामान्य ध्वनि धीमी गति से बोले गये Word वह भली प्रकार से नहीं सुन पाते हैं। इस प्रकार उच्च ध्वनि भी श्रवण दोष उत्पन्न करती है।

    9. आयु

    (4) वृद्धावस्था में शारीरिक तंत्र कमजोर पड़ने लगते हैं अत: सुनार्इ कम पड़ने लगता है। अत: उम्र के साथ-साथ व्यक्ति का श्रवण यंत्र प्रभावित होता जाता है।

    10. संतुलित आहार

    यदि बालक को संतुलित आहार नहीं मिलता तब उसकी श्रवण शक्ति ऋणात्मक Reseller से प्रभावित होती हे। इस कारण यह है कि बालक के श्रवण यंत्र के कोमल तंतुओं को जिंदा रहने व विकास करने के लिए ऊर्जा नहीं मिलती है।

    श्रवण बाधिता की पहचान 

    श्रवण बाधिता की पहचान सामान्यत: माता-पिता And परिवार के सदस्यों द्वारा ही हो जाती है। जिसका सत्यापन भले ही चिकित्सक (Doctors) द्वारा जांच के उपरांत Reseller जाये।

    1. बच्चे को देखकर

    कुछ प्रकार के बहरेपन शारीरिक स्थितियां लक्षणों से जुड़े हो सकते हैं। इस प्रकार के लक्षणों को देखकर इसकी पहचान की जा सकती है, जैसे –

    1. बाह्य कान का जन्म से न बना होना इसका “एट्रीशिया” भी कहते हैं। 
    2. “वार्डन वर्ग सिन्ड्रोम” सिर पर मध्य अग्र बालों का सफेद होना। 

    इस प्रकार की स्थितियां Single प्रतिशत से भी कम बच्चों के बहरेपन के लिए उत्तरदायी हो सकती है और आमतौर पर बहरेपन को देखकर पहचान करना मुश्किल हो जाता है।

    2. व्यवहार देखकर –

    बहरेपन से ग्रस्त लोगों में कुछ विशेष प्रकार के व्यवहार देखे जा सकते हैं। और इनकी मदद से Single बड़े प्रतिशत Single बहरेपन की पहचान भी की जा सकती है।

    1. कान के पीछे हाथ लगाकर सुनने का प्रयास करना। 
    2. बहुत जोर से बोलना।
    3. बात सुनते हुए आंखों पर सामान्य से अधिक निर्भर होना। 
    4. वाचक के चेहरे और होठों पर ज्यादा ध्यान देना।
    5. बोलने में कुछ विशेष उच्चारण दोष के कारण उच्च आवाजें, जैसे- अ,र्इ,ऊ, श, स,म,च आदि । 
    6. असंगत Reseller से अपने आप में खोये रहना। 
    7. चेहरे के हाव-भाव And मुद्रा द्वारा भी आवाज दोष को पहचाना जा सकता है।
    8. पैरों से आवाज करते हएु चलने से भी इसकी पहचान की जा सकती है।

    3. श्रवण बाधितों की पहचान के कुछ संकेत

    श्रवण बाधितों की पहचान के कुछ अन्य संकेत हैं –

    1. गले में तथा कान में घाव रहता हैं। 
    2. इनमें वाणी दोष पाया जाता है। 
    3. सीमित Wordावली पायी जाती है।
    4. यह चिड़चिड़े होते हैं।
    5. भाषा का सही विकास नहीं होता है।

    श्रवण बाधित बालकों की पहचान जितना जल्द से जल्द हो सके, कर लेना चाहिए। यदि ‘शीघ्र ही बच्चे की पहचान कर ली जाये, तो उनमें वाणी व भाषा का विकास Reseller जा सकता है तथा श्रवण दोष के प्रभाव को भी कम कर सकते हैं। सामान्यत: विशेषज्ञों का मानना है कि श्रवण-दोष की पहचान जन्म के समय ही कर लेनी चाहिए। जिनती जल्दी इसकी पहचान की जोयगी, उतनी ही जल्दी इन्हें सामान्य समाज से जोड़ा जा सकता है तथा इन बच्चों में होने वाली बहुत सी- मनोवैज्ञानिक कठिनार्इयों को कम Reseller जा सकता है। आधुनिक विशेषज्ञों ने श्रवण बाधितों को चार वर्गों में बांटा है, जो कि हैं – (1) केन्द्रीय श्रवण दोष (2) मनोजैविक श्रवण बाधित (3) नाड़ी संस्थान श्रवण बाधित (4) आचरण में श्रवण बाधिता ।

    1. केन्द्रीय श्रवण दोष – यह वह बालक होते हैं, जो कि जटिल बाधिता से ग्रस्त हेाते हैं। इस प्रकार के बालक ध्वनि के बारे में जानते तो हैं, परंतु इसका Means नहीं समझ पाते तथा इसकी सम्प्रेक्षण समस्या भी काफी गंभीर होती है। यह दोष दवाओं के सेवन से आ सकते हैं, इसलिए इनके सुधार से अधिक समय लगता है।
    2. मनोजैविक श्रवण बाधित – इस प्रकार की बाधिता का कारण मनौवेज्ञानिक होता है। यह बालक अपनी समस्याओं को बढा-चढ़ा कर बताते हें। इन बालकों में किसी रोग के कारण ही बाधिता आ जाती है। कर्इ बार यह पहचानना कठित होता है कि यह दोष मनौवैज्ञानिक है अथवा जैविक। इन बालकों के उपचार में अत्यंत सावधानी रखनी चाहिए।
    3. नाड़ी संस्थान श्रवण बाधित- बालकों में नाड़ी संस्थान के दोष के कारण यह दोष आता है। अत: इसका उपचार करना संभव नहीं हो पाता है। यह बालक श्रवण यंत्रों की सहायता से सुनते हैं। इन्हें शिक्षा देने हेतु अलग-अलग प्रावधानों का प्रयोग Reseller जाता है। यह होठों की भाषा (Lip reading) के द्वारा ज्ञान प्राप्त करते हैं तथा इन्हें विशिष्ट विद्यालयों में प्रवेश दिया जाता है।
    4. आचरण में श्रवण बाधिता – साधारण Reseller में ऐसे बाधित बालक आचरण दो”ाी होते हैं। यह  दोष कान के रेागों से संबंधित होते हैं। यदि चिकित्सक इनका उपचार करें तो ठीक हो सकते हैं, परंतु कर्इ बार चिकित्सकों की गलती से यह और अधिक बाधित हो जाते हैं।

    श्रवण बाधित की पहचान हेतु परीक्षण

    श्रवण बाधित बालकों की पहचान उनके बोलने से ही हो जाती है, परंतु इन्हें पहचानने के लिए कर्इ चिकित्सकीय परीक्षण करने पड़ते हैं, क्योंकि कक्षा में श्रवण बाधित बालक आसानी से शिक्षकों की दृष्टि में नहीं आते हैं, अत: इन्हें पहचानने हेतु कर्इ प्रकार की अन्त: क्रियाएं करनी पड़ती है, जबकि बड़ी कक्षा में ऐसा होना संभव नहीं हो पाता है, अत: बालकों के प्रवेश के समय ही उनका परीक्षण करवा लेना उचित रहता है। बालकों को विद्यालय में प्रवेश दिलाने समय उन्हें अध्यापक को बालकों की श्रवण शक्ति के बारे में बता देना चाहिए। अत: श्रवण बाधितों को आधार पर पहचाना जाता है -1. चिकित्सीय परीक्षण 2. विकाSeven्मक मापनी  3. बालक का अध्ययन 4. मनो-नाड़ी परीक्षण 5. बालकीय व्यवहार का निरीक्षण

    1. चिकित्सीय परीक्षण – चिकित्सीय परीक्षण की मापनी के द्वारा श्रवण बाधितों को पहचान आसान होता है। इसमें चिकित्सक की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। श्रवण बाधिता बालकों के व्यक्तित्व को बहुत अधिक बाधित करती है।
    2. विकाSeven्मक मापनी – इन बालकों की पहचान के लिए उनकी विकाSeven्मक अवस्थाओं को ध्यान में रखना अति आवश्यक होता है। बालकों की ज्ञानेन्द्रियों तथा विकास की अवस्थाओं में प्रत्यक्ष संबंध पाया जाता है। अत: विकाSeven्मक मापनी अत्यंत उत्तम मापनी है। . 
    3. बालक का अध्ययन – यह सबसे उत्तम विधि होती है । इसके अंतर्गत बालक के जन्म से लेकर वर्तमान स्थितियों तक की All सूचनाओं को संकलित Reseller जाता है तथा इसी के आधार पर ही श्रवण बाधिता के कारणों का पता चल जाता है। इस विधि से ही समस्याओं का निदान भी निकाल लिया जाता है। इस विधि से बालकों की बीमारियों का पूरा History पता लगाया जाता जा सकता है। 
    4. मनो-नाड़ी परीक्षण – यह Single अन्य प्रकार की मापनी है। जिसकी सहायता से श्रवण बाधितों की नोड़ी की क्रियाओं का आंकलन Reseller जाता है। यह Single मानसिक दोष है। बहुत से श्रवण बाधितों में यह दोष पाया जाता है तथा Single योग्य चिकित्सकों के द्वारा ही इसका उपचार Reseller जा सकता है।  
    5. बालकीय व्यवहार का निरीक्षण – यह निरीक्षण श्रवण बाधितों की पहचान हेतु उपयुक्त माना जाता है, इसके अंतर्गत बालकों के व्यवहारों को पहचाना जाता है –
      1. बालक यदि सिर Single तरफ मोड़कर सुने तो वह बाधितों की श्रेणी में आते हैं। 
      2. वह अनुदेशन अनुसरण नहीं कर पाते हैं। 
      3. इन बालकों की दृष्टि अक्सर बोलने वाले बालकों के या शिक्षकों के मुंह की तरह होती है। 
      4. यह वाणी बाधित भी हो सकते हैं

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