व्यावसायिक निर्देशन क्या है ?

यूरोप तथा पश्चिम के अन्य देशों में औद्योगिक क्रान्ति के कारण भौतिकता की लहर समग्र विश्व में दौड़ गयी। अमेरिका जैसे सुविकसित महादेश ने प्रयोजनवादी दर्शन अपनाया जिसके कारण उसके सम्मुख मुख्य समस्या राष्ट्र की सम्पत्ति के पूर्ण उपभोग की हुर्इ। किसी भी राष्ट्र के विकास के लिए आवश्यक है कि उसकी Humanीय And प्राकृतिक पूँजी का पूर्णत: सदुपयोग Reseller जाय। अत: प्रत्येक बालक And बालिका की बौद्धिक And शारीरिक शक्ति का अन्वेषण करके इसे उचित दिशा में ले जाना राष्ट्र का महान् दायित्व बन जाता है क्योंकि सूझ-बूझ, ज्ञान तथा उचित निर्देशन के अभाव में बहुधा व्यक्ति ऐसे व्यवसाय पकड़ लेता है जिसमें न तो वह अपनी सर्वोत्तम शक्ति लगाकर अधिकतम उत्पादन कर पाता है और न अपना विकास ही कर पाता है। व्यवसाय की उत्पादकता पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अत: मनुष्य की शारीरिक And बौद्धिक शक्ति के संरक्षण And सदुपयोग के लिये तथा व्यवसायों में अधिकतम उत्पादन के लिए व्यावसायिक निर्देशन आवश्यक है।

जिस प्रकार Human में व्यक्तिगत भिन्नता पायी जाती है और Single व्यक्ति Second से भिन्न होता है, उसी प्रकार व्यवसायों में भी भिन्नता पायी जाती है। Single व्यवसाय Second व्यवसाय से अपनी प्रकृति, माँग और अपेक्षा में भिन्न होता है। इसी मनुष्यगत And व्यवसायगत भिन्नता पर व्यावसायिक निर्देशन की आधारशिला रखी हुर्इ है। वर्तमान शताब्दी में मनोविज्ञान का साहित्य बहुत ही तीव्रगति से समृद्ध हुआ है। मनोविज्ञान के प्राय: All शोधों, प्रयोगों तथा अनुसंधानों का बाहुल्य हो गया है। व्यक्तिगत भेद के सिद्धान्त का प्रतिपादन इसी युग की देन है। प्रत्येक व्यक्ति बौद्धिक क्षमता, रूझान, अभिरूचि तथा अन्य मानसिक शक्तियाँ लेकर जन्म लेता है जो Second व्यक्ति की शक्तियों से भिन्न होती है। यही नहीं, अपनी इस जन्मजात पूँजी में परिवर्तन भी प्रत्येक व्यक्ति अपने ढंग से करता है। अत: दो व्यक्ति सर्वथा समान नहीं होते। व्यावसायिक निर्देशन के सम्पूर्ण कार्यक्रम का यही आरम्भ बिन्दू है। निर्देशन के पूर्व First व्यक्ति की बुद्धिलब्धि, रूचि, रूझान, दृष्टिकोण तथा उसके सामान्य व्यक्तित्व का अध्ययन कर लेना आवश्यक होता है। सारांशत: यह जान लेना होता है कि व्यक्ति क्या है, उसकी जन्मजात शक्तियाँ क्या हैं, उसके दायित्व क्या हैं और उसकी पूँजी क्या है।

Human के प्रति दार्शनिक दृष्टिकोण में भी परिवर्तन आ चुका है। अब मनुष्य को कार्य, व्यवसाय And संपत्ति के परिवेश में आंका जाता है। समाज उसे उपादेयता की दृश्टि से देखता है। उपादेयता विहीन व्यक्ति समाज पर बोझ है, परोपजीवी है। व्यवसायों के क्षेत्र में अनेक प्रकार के विशिष्टीकरण के कारण समृद्धि आ चुकी है, उनमें भेद-उपभेद हो चुके हैं, और कितने व्यवसायों ने तो सर्वथा नये Reseller से जन्म ले लिया है। अत: उपयुक्त व्यक्ति को उपयुक्त कार्य में लगाने के लिए व्यवसायों का विषद् अध्ययन वांछित है। मनुष्य Single ऐसा प्राणी है जिसके विषय में कोर्इ पूर्व कथन सरलता से नहीं Reseller जा सकता। रूचि, रूझान, संवेग, स्थायी भाव आदि उसके व्यक्तित्व के प्रमुख निर्धारण तत्व होते हैं। अत: व्यक्ति का सुनियोजित अध्ययन Single कठिन कार्य हो जाता है। मनुष्य के विषय में समुचित जानकारी के लिए Single सुव्यवस्थित प्रक्रिया का अनुसरण आवश्यक है। इस प्रकार हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि व्यक्ति And व्यवसाय निर्देशन Resellerी तराजू के दो पलड़े हैं जिनमें सामंजस्य स्थापित करना व्यावसायिक निर्देशक का प्रमुख कार्य है।

व्यावसायिक निर्देशन की परिभाषा

‘‘व्यावसायिक निर्देशन के सिद्धान्त And तकनीक’’ नामक पुस्तक के सुप्रसिद्ध लेखक र्इ0 डब्ल्यू0 मायर्स ने उक्त पुस्तक के First पृष्ठ पर व्यावसायिक निर्देशन के समारम्भ का description देते हुए लिखा है कि ‘निर्देशन’’ Word के साथ जिनते विश्लेषण जोडे़ गये उनमें First ‘व्यावसायिक’ Word ही था। 1 मर्इ सन् 1809 र्इ0 को बोस्टन के व्यावसायिक संस्थान के संचालक फ्रैंक पार्सन्स के लेख में ‘‘व्यावसायिक निर्देशन’’ जैसी युक्ति First बार देखने को मिली। साथ ही निर्देशन सम्बन्धी अन्य विचार पद्धतियों का विकास भी आरम्भ हो गया था। फलस्वReseller व्यावसायिक निर्देशन के अतिरिक्त शैक्षिक निर्देशन, नैतिक निर्देशन तथा स्वास्थ्य-निर्देशन सम्बन्धी विचारधारायें पृथक Reseller से प्रयोग में आने लगीं। सन् 1921 र्इ0 में ‘‘नेशनल वोकेशनल गाइडेंस एसोसिएशन’’ ने व्यावसायिक निर्देशन की Single सुव्यवस्थित परिभाषा देने का प्रयास Reseller जिसे सन् 1924 र्इ0 में संषोधित कर दिया गया। संशोधित परिभाषा के According ‘‘किसी भी व्यवसाय के चयन, प्रशिक्षण, उसमें प्रवेश और विकास के हेतु उपयुक्त परामर्श, अनुभव तथा सूचना प्रदान करना ही व्यावसायिक निर्देशन है।’’ किन्तु इस परिभाषा को यथातथ्य स्वीकार नहीं Reseller गया और इसमें परिवर्तन किये जाते रहे। लगभग पन्द्रह वर्शो के सुविचारित प्रयास के उपरान्त इसी संस्थान ने व्यावसायिक निर्देशन को पुन: नवीन Reseller से परिभाषित Reseller जिसके According ‘‘व्यावसायिक निर्देशन किसी भी व्यक्ति को व्यवसाय चुनने, उसके लिए तैयारी करने, उसमें प्रवेश करने तथा दक्षता प्राप्त करने में सहायता प्रदान करने की प्रक्रिया है।’’

प्रस्तुत परिभाषा के विषय में कुछ बातें विचारणीय हैं। First, यह परिभाषा किसी Single व्यक्ति द्वारा नहीं दी गयी है, प्रत्युत् Single संस्थान द्वारा धैर्य And विवेक से निर्धारित की गयी है, अत: अधिक विष्वसनीय है। साथ ही यह परिभाषा सन् 1924 र्इ0 में दी गयी परिभाषा से मूलत: भिन्न भी है।

First परिभाषा में मुख्य बल ‘व्यवसाय का चुनाव करने के लिए सूचना’, अनुभव तथा परामर्श प्रदान करने पर है जिससे स्पष्ट होता है कि सम्पूर्ण दायित्व व्यावसायिक निर्देशक पर ही है। प्रत्याशी को स्वयं कोर्इ भी उपक्रम करने की Need नहीं है। इसके प्रतिकूल दूसरी परिभाषा का बल व्यावसायिक निर्देशक की ओर से सहायता मात्र प्रदान करने से है ताकि व्यक्ति स्वयं अपने लिये ‘‘व्यवसाय चुनने’’ का प्रयास कर सकें। इस प्रकार व्यावसायिक निर्देशन पहली परिभाषा में जहाँ व्यक्ति को Single तटस्थ प्रतीक्षाथ्री बना देता है वही दूसरी परिभाषा में उसे सम्पूर्ण प्रक्रिया में भागीदार बना देता है। निर्देशक के इंगित पर प्रत्याशी सक्रिय Reseller से कर्मशील हो जाता है और अपने को सम्पूर्ण कार्य पद्धति का Single अंग मानने लगता है। किसी विद्वान ने उभय परिभाषाओं के अन्तर को बड़ी ही निपुणता से व्यक्त Reseller है। First परिभाषा के According कहा जा सकता है कि निर्देशक प्रत्याशी, को First भलीभाँति समझता है, तत्पष्चात् व्यवसाय में उसे सफल बनाने का प्रयास करता है। Meansात् को व्यवसाय में लगाने और उसे सफल बनाने का दायित्व निर्देशक उसी प्रकार इस कथन में भी ले लेता है जिस प्रकार उसने सन् 1924 र्इ0 की First परिभाषा में ली थी। प्रत्याशी को न तो यह चिन्ता है कि उसकी कार्यक्षमता, योग्यता और बुद्धि कितनी है, उसका रूझान किधर है और न उसे व्यवसाय ढूँढ़ने, स्वीकारने तथा उसमें सफलता प्राप्त करने की ही चिन्ता है। वह Single निष्क्रिय यंत्र की भाँति है, जिसे जहाँ भी नियुक्त कर दिया जाता है, वहाँ वह कार्यरत हो जाता है। प्रत्याशी सचेष्ट न होकर Single निष्चेष्ट प्राणी बन जाता है। परन्तु 1940 र्इ0 की परिभाषा के अनुकूल व्यक्त करने पर उपर्युक्त कथन का स्वReseller बदल गया जिसमें निर्देशक का दायित्व प्रत्याशी को इस प्रकार सहायता प्रदान करना है कि वह अपना आत्म विश्लेषण स्वयं कर सके और व्यवसाय चुन कर उसमें सफलता प्राप्त करने का प्रयास भी स्वयं ही करे। इस दूसरी परिभाषा में निर्देशक प्रत्याशी को उन समस्त साधनों, तकनीकों तथा आँकड़ों के संग्रह एंव प्रयोग के लिए प्रेरित करता है जिनसे वह आत्म-विवेचन कर सके। वह यह भी समझ सके कि उसकी वास्तविक कार्यक्षमता कितनी है। तदुपरान्त वह उस व्यवसाय का अध्ययन करे जिसे उसने अपनी जीविका हेतु चुना है। निर्देशक का कार्य प्रत्याशी को उत्साहित करना, उसे व्यवसाय सम्बन्धी सामग्री उपलब्ध कराना और अनुपलब्ध सामग्री को सुलभ बनाने हेतु परामर्श देना है। इस प्रकार दूसरी परिभाषा में प्रत्याशी Single कर्मठ एव सचेष्ट व्यक्ति है जो निर्देशक की सहायता से अपने भावी मार्ग का निर्धारण स्वयं करता है। वह जो भी है, स्व-निर्मित है, परोपजीवी नहीं है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि संक्षेप में व्यावसायिक निर्देशन वह सोपान है जिस पर खड़ा होकर व्यक्ति अपने भविश्य का मार्ग स्वयं ढूँढ़ता है। व्यावसायिक निर्देशन के अध्यापक और अध्येता मुख्यतया द्वितीय परिभाषा को मान्यता देते हैं, किन्तु अन्य विचारकों द्वारा भी व्यावसायिक निर्देशन की परिभाषायें दी गयी हैं जिन पर यहाँ विचार करना असंगत न होगा। ‘सुपर’ ने अपनी पुस्तक में व्यावसायिक निर्देशन की परिभाषा देते हुए कहा कि व्यावसायिक निर्देशन का प्रधान लक्ष्य ‘‘व्यक्ति को इस योग्य बनाना है कि वह अपने व्यवसाय से उचित समायोजन स्थापित कर सके, अपनी शक्ति का प्रभावशाली ढंग से उपयोग कर सके तथा उपलब्ध सुविधाओं से समाज का आर्थिक विकास करने में सक्षम हो सकें।’’ यहाँ लेखक ने व्यावसायिक निर्देशन का Singleांगी दृष्टिकोण लिया है। व्यक्तिगत भेद तथा व्यावसायिक वैशम्य जैसी जटिल समस्याओं पर विचार नहीं Reseller गया। इससे स्पष्ट होता है कि व्यक्तिगत भेद तथा व्यावसायिक निर्देशन का कार्य मात्र जैसे-तैसे व्यक्ति को किसी कार्य में लगा देना है। जिस प्रकार Meansशास्त्री देश की संपत्ति का पूर्ण उपभोग अपना लक्ष्य मानता है, उसी प्रकार सुपर ने भी Humanीय शक्ति का सीधा-सादा उपयोग ही व्यावसायिक निर्देशन का लक्ष्य माना है। इसके प्रतिकूल व्यावसायिक निर्देशन Single जीवनपर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है जिसका समापन व्यवसायरत हो जाने पर ही नहीं हो जाता।

सन् 1949 र्इ0 में अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने व्यावसायिक निर्देशन की परिभाषा प्रस्तुत करने हुए लिखा है कि ‘व्यावसायिक निर्देशन किसी व्यक्ति को उसकी व्यवसाय-चयन सम्बन्धी समस्याओं के समाधान तथा उसकी समृद्धि हेतु दी गयी सहायता है जो उसके व्यावसायिक सुअवसरों सम्बन्धी क्षमताओं को ध्यान में रख कर दी जाती है।’’ प्रस्तुत परिभाषा आधुनिक होते हुए भी उन अनेक प्रमुख गुणों का अपने में समावेश नहीं करती जो वस्तुत: व्यावसायिक निर्देशन में है। व्यावसायिक निर्देशन Single जीवन्त प्रक्रिया है। उसका सम्बन्ध चैतन्य Human से है। जिस प्रकार Single नदी अपनी सहायक नदियों से जल लेकर विकसित होती जाती है और अन्त तक Single बड़ी नदी बन जाती है, उसी प्रकार व्यावसायिक निर्देशन भी निर्देशक, नियोजन, स्वामी तथा अभिभावक के सहयोग से Single पुष्ट, जीवन्त तथा विशाल प्रक्रिया बन जाता है। संक्षेप में, व्यावसायिक निर्देशन का प्रष्न उठते ही निर्देशक के सम्मुख Single विशाल And जटिल प्रक्रिया खड़ी हो जाती है। Single ओर व्यक्ति और दूसरी ओर व्यवसाय के अध्ययन से ही निर्देशक आगे बढ़ता है। व्यावसायिक निर्देशन का विषद विवेचन करने के उपरान्त मायर्स ने समाहार Reseller में कहा है कि ‘‘व्यावसायिक निर्देशन व्यक्ति की जन्मजात शक्तियों तथा विद्यालयों में प्रदत्त प्रशिक्षण से अर्जित बहुमुल्य क्षमताओं को संरक्षित रखने का Single मूल प्रयास है। इस संरक्षण हेतु वह व्यक्ति को उन All साधनों से सम्पन्न करता है जिनसे वह अपनी तथा समाज की तुश्टि के लिए अपनी उच्चतम शक्तियों का अन्वेषण कर सकें’’।

व्यावसायिक निर्देशन व्यक्ति, व्यवसाय तथा सेवा-नियोजन के मध्य उपयुक्त गठबन्धन कराने की प्रक्रिया है जिसमें निर्देशक Single सक्रिय घटक रहता है। वह देखता है कि व्यक्ति और व्यवसाय के मध्य सम्बन्ध सुखमय हों और दोनों का समायोजन संतोषजनक हो।

व्यावसायिक निर्देशन वह निर्देशन है जो व्यक्ति को मुख्यत: व्यावसायिक समस्याओं के सम्बन्ध में दिया जाता है। व्यक्ति और उसकी समस्याओं को Single-Second से पृथक करना सम्भव नहीं। अत: व्यावसायिक निर्देशन किसी व्यक्ति के शैक्षिक, नैतिक And सामाजिक पक्षों को भी पृथक नहीं कर सकता। वास्तव में व्यावसायिक निर्देशन की प्रक्रिया व्यक्तित्व के समन्वित And उपयुक्त विकास में सहायता देती है। व्यावसायिक निर्देशन का लक्ष्य किसी व्यक्ति को इस उद्देश्य से सहायता प्रदान करना है कि वह अपना Single समन्वित And सच्चा चित्र विकसित कर सके और उसे समझ सके, व्यवसाय जगत के यथार्थिक धरातल पर अपनी उक्त अवधारणा को परख सके और आत्म संतोष And समाज के हित में अपनी अवधारणा को वास्तविक Reseller दे सकें। इस परिभाषा का महत्वपूर्ण आधार यह है कि व्यावसायिक निर्देशन व्यक्ति के पूर्ण विकास का अभिन्न अंग है और व्यक्ति का व्यावसायिक विकास उसके व्यक्तित्व के विकास में सहायक होता है। इस प्रकार व्यावसायिक निर्देशन व्यक्ति के विकास और उसके स्व-प्रत्यय (Self-concept) के विकास में सहायता की प्रक्रिया है। इससे Single ऐसे व्यावसायिक स्व-प्रत्यय (Vocational Self-Concept) का विकास होता है जो व्यक्ति के स्व-प्रत्यय की व्यवस्था के अनुReseller हो। इस प्रत्यय के अधिक से अधिक विकास में सहायता प्रदान करना निर्देशन का कार्य है। बौद्धिक तथा भावात्मक दृष्टिकोण से व्यावसायिके अवधारणा को स्वीकार करने में व्यक्ति को सहायता प्रदान करना व्यावसायिक निर्देशन का कार्य है। व्यावसाय का निर्देशन की आधुनिक अवधारणा यही है। ‘‘मार्गरेट बनेट’’ के According ‘‘Human के विकास तथा उसके उपजीविकीय जीवन के क्षेत्र में अनुसंधानों ने व्यावसायिक निर्देशन को समझने की दिषा में नये क्षितिज खोल दिये है। किसी भी उपजीविका के चयन, उसके प्रवेश तथा समायोजन के निमित्त Human व्यक्तित्व सम्बन्धी Needओं और व्यवसायों की Needओं के अध्ययन की पुरानी अवधारणा भी अब बदल रही है और व्यावसायिक निर्देशन Single ऐसे कार्य के Reseller में उभर रहा है जो यह बताये कि व्यक्ति अपने समन्वित व्यक्तित्व को किस प्रकार संवारे कि उसे आत्मबोध हो सके और वह समाज के कल्याण में सहायता प्रदान कर सके।’’ इस प्रकार स्पष्ट है कि व्यावसायिक निर्देशन की धारणा तथा विधि में क्रमश: परिवर्तन तथा विकास होता रहा है।

व्यावसायिक निर्देशन के क्षेत्र

व्यावसायिक निर्देशन का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है क्योंकि इसके अध्ययन क्षेत्र के अन्तर्गत व्यक्ति और व्यवसाय प्रमुख Reseller से आते हैं। व्यक्ति (मनुष्य) के अध्ययन के सम्बन्ध में Human सम्बन्धी All शास्त्रों का सम्पर्क व्यावसायिक निर्देशन से होता है। मनुष्य की व्यवसाय के प्रति विभिन्न रूचियों, दृष्टिकोणों, मनोभावों, बुद्धि तथा योग्यता का ज्ञान प्राप्त करने के लिए व्यावसायिक निर्देशन मनोविज्ञान से सम्पर्क स्थापित करता है। मनुष्य के मनोभाव और उसकी जीवन पद्धति का कोर्इ न कोर्इ दार्शनिक आधार होता है। व्यावसायिक निर्देशन मनुष्य की प्रकृति, उसका स्वभाव और व्यक्तित्व पहचानने के लिए दर्शनशास्त्र का सहारा लेता है। दर्शनशास्त्र की आधारशिला पर ही Humanीय विज्ञानों And शास्त्रों का प्रासाद खड़ा है। इसलिए व्यावसायिक निर्देशन तथा दर्शनशास्त्र का सम्बन्ध घनिष्ठ है। Meansशास्त्र, समाजशास्त्र तथा शिक्षा शास्त्र जैसे विषय भी व्यावसायिक निर्देशन के अध्ययन क्षेत्र के अन्तर्गत आते है क्योंकि Human जीवन से इन शास्त्रों का निकट का सम्बन्ध है।

जहाँ तक व्यवसाय का प्रश्न है, इसका अध्ययन व्यावसायिक निर्देशन विज्ञान के माध्यम से करता है। विभिन्न व्यवसायों के विश्लेषण, उनकी अपेक्षाओं तथा माँगों के निराकरण के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण की Need पड़ती है। इन पाठ्यक्रमीय विशयों के अतिरिक्त व्यावसायिक निर्देशन का सम्बन्ध अनेक पाठ्येत्र क्रियाओं से भी होता है, यथा पत्रकारिता, पुस्तकालय, वाद-विवाद, चलचित्र आदि। इन सबका उपयोग व्यावसायिक निर्देशक प्रत्याशी को व्यावसायिक सूचना प्रदान करने में करता है। अत: हम देखते हैं कि व्यावसायिक निर्देशन का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है।

व्यावसायिक निर्देशन के उद्देश्य

मूल Reseller से व्यावसायिक निर्देशन का उद्देश्य व्यक्ति को उपयुक्त व्यवसाय में लगने के लिए सहायता प्रदान करना है। इसी प्रकार किसी व्यवसाय के लिए उसकी Needओं के अनुReseller उपयुक्त व्यक्ति को ढूँढ़ना भी व्यावसायिक निर्देशन का कार्य है। किन्तु जोन्स ने व्यावसायिक निर्देशन के उद्देश्यों की सूची निम्नलिखित प्रकार से दी है-

  1. विद्यार्थी को उन व्यवसाय समूहों की विशेषताओं, कार्यों, कर्तव्यों और पुरस्कारों से अवगत कराना जिनमें से उसे अपने व्यवसाय का चयन करना है।
  2. उसे यह पता लगाने में सहायता देना कि विचाराधीन व्यवसाय समूह के लिए किन विशिष्ट योग्यताओं तथा चातुर्यो की Need है और उक्त व्यवसाय में प्रवेषार्थ कितनी उम्र, कितनी तैयारी और किस लिंग (पुरुष अथवा स्त्री) की 
  3. विद्यालय के भीतर तथा बाहर विद्यार्थी को ऐसे अनुभव प्राप्त कराना जिनसे उसे ऐसी सूचना मिले कि किसी व्यवसाय की क्या परिस्थितियाँ हैं जिनके योग्य उसे अपने को बनाना है। 
  4. व्यक्ति को ऐसे दृष्टिकोण के विकास में सहायता प्रदान करना कि All र्इमानदारी का परिश्रम उत्तम है और किसी भी व्यवसाय के चयन के प्रमुख आधार निम्न हैं-
  1.  व्यक्ति समाज की क्या सेवा कर सकता है ? 
  2.  व्यवसाय में उसे कितनी संतुष्टि मिलती है ? 
  3. व्यवसाय के लिए किस प्रकार के दृष्टिकोण की अपेक्षा होती है ? 
  1. व्यक्ति को व्यावसायिक सूचना के विश्लेषण की विधि से परिचित होने में सहायता प्रदान करना तथा व्यवसाय के चयन सम्बन्धी अन्तिम निर्णय लेने के पूर्व इन सूचनाओं का विश्लेषण करने की आदत का विकास करना।
  2. ऐसी सहायता प्रदान करना कि व्यक्ति अपनी विशिष्ट तथा व्यापक योग्यताओं, रूचियों तथा क्षमताओं के विषय में अपेक्षित जानकारी प्राप्त कर सकें। 
  3. आर्थिक दृष्टि से पिछड़े बालकों को विभिन्न प्रकार की आर्थिक सहायता प्रदान करना जिससे वे अपनी व्यावसायिक योजनाओं के According शिक्षा प्राप्त कर सकें। 
  4. विभिन्न शैक्षिक संस्थाओं द्वारा प्रदत्त व्यावसायिक प्रशिक्षण के निमित्त अपेक्षित धन के विषय में जानकारी प्राप्त करने में सहायता प्रदान करना। 
  5. जिस व्यवसाय में व्यक्ति लगा है उससे समायोजन स्थापित करने, उसी व्यवसाय तथा अन्य व्यवसायों में लगे अन्य कार्यकर्ताओं से सम्बन्ध स्थापित करने में सहायता प्रदान करना। 
  6. विद्यार्थियों को इस विषय में विष्वसनीय सूचनाएँ प्रदान करना कि अपने भाग्य जानने तथा सुधारने की विभिन्न अवैज्ञानिक विधियाँ, जैसे हस्तरेखा विज्ञान आदि कितनी अनुपयुक्त है तथा उनकी अपेक्षा विषेशज्ञों से परामर्श करके वैज्ञानिक विधियों का अनुसरण कितना लाभकर है।

क्रो0 तथा क्रो0 ने अपनी पुस्तक में व्यावसायिक निर्देशन के निम्न उद्देश्यों का History Reseller है- 

  1. विद्यार्थी जिन व्यवसायों का चयन कर सकते हैं, उनके कार्य, कर्त्तव्य तथा उत्तरदायित्वों से अवगत कराना।
  2. स्वयं अपनी योग्यताओं आदि का पता लगाने में विद्यार्थी की सहायता करना तथा विचाराधीन व्यवसाय से उनका सामन्जस्य स्थापित करना। 
  3. स्वयं अपने तथा समाज के हित की दृष्टि  से विद्यार्थी की योग्यता तथा रूचियों का मूल्यांकन करना।
  4. कार्य के प्रति ऐसे दृष्टिकोण के विकास में विद्यार्थी की सहायता करना कि वह जिस प्रकार के भी व्यवसाय में प्रवेश लेना चाहे, उसका मान बढ़ाए।
  5.  विद्यालय शिक्षण के विभिन्न क्षेत्रों में इस बात का अवसर प्रदान करना कि विद्यार्थी को विभिन्न प्रकार के कार्यों का अनुभव प्राप्त हो सकें। 
  6. विद्यार्थी को आलोचनात्मक दृष्टि से विभिन्न प्रकार के व्यवसाय पर विचार करने में सहायता प्रदान करना और प्राप्त व्यावसायिक सूचनाओं के विष्लेशण की विधि सिखाना।
  7. मानसिक, शारीरिक तथा आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए व्यक्तियों की सहायता प्रदान करना जो उनके तथा समाज के हित में सर्वोत्तम समायोजन स्थापित करने में सहायता दे। 
  8. विद्यार्थियों में शिक्षकों तथा अन्य निर्देशन कार्यकर्ताओं के प्रति विश्वास उत्पन्न करना जिससे वे उनसे अपनी समस्याओं पर विचार विमर्श करने में उत्साहित हों। 
  9. विभिन्न शैक्षिक संस्थाओं द्वारा जो व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जाता है उसके विषय में आवश्यक सूचनायें प्राप्त करने में विद्यार्थी की सहायता करना।
  10. उच्चतर शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश की शर्तों, प्रशिक्षण की अवधि तथा व्यय आदि के विषय में सूचनायें प्रदान करना।
  11. विद्यालय शिक्षण की अवधि में ऐसी सहायता देना कि व्यक्ति आगे चलकर अपने कार्य की परिस्थितियों तथा अन्य कार्यकर्ताओं से समायोजन स्थापित कर सके।
  12. विद्यार्थी की सहायता करना कि वह कार्यकर्ताओं के मध्य अपना स्थान बना सकें। 
  13. कार्य में दक्षता प्राप्त करने के लिए दीर्घकालीन प्रशिक्षण की Need के प्रति विद्यार्थी को सचेष्ट करना। 
  14. प्रत्येक विद्यार्थी को व्यावसायिक दक्षता प्राप्त करने की अवैज्ञानिक विधियों से सावधान करना।
  15. यह अनुभव करने में शिक्षाथ्री को सहायता प्रदान करना कि प्रयत्न द्वारा ही सफलता प्राप्त हो सकती है और अपना कार्य योग्यता And र्इमानदारी से करने में ही संतोष मिलता है।

व्यावसायिक निर्देशन की Need

व्यावसायिक निर्देशन के संघटन And संचालन का मूल आधार व्यक्ति तथा व्यवसाय के मध्य चलने वाली विषमता है। यदि All व्यक्ति अभिरूचि बुद्धि, व्यक्तित्व, प्रतिभा तथा क्षमता में समान होते तो यह समस्या ना उठती। इसके प्रतिकूल यदि All व्यवसाय अपनी माँग, कार्य पद्धति उपादेयता में समान होते तो भी व्यावसायिक निर्देशन की Need ना होती। व्यक्ति के अनुReseller व्यवसाय और व्यवसाय के अनुReseller व्यक्ति निश्चित करने की Need है। व्यक्ति And समाज की Needएँ प्रतिदिन नवीन होती जा रही है। आज हमारी Needएँ All सीमाओं को लांघ चुकी है। समाज का जीवन आज विभिन्नता से परिपूर्ण है। इसके लिए प्रशिक्षित व्यक्तियों की माँग है। जिसमें अपेक्षित प्रतिभा, क्षमता And बुद्धि हो। यह व्यवसायिक निर्देशन से सम्भव है। व्यवसायों की Need ने विभिन्नता को जन्म दिया है। यह व्यक्ति क्रम, व्यवसायिक निर्देशन की Need को जन्म देता है। जिसके कारण है-

  1. Human की मूलभूत Need –सर आर्थर जोन्स ने अपनी पुस्तक में Single उदाहरण देते हुए Single संकेत दिया कि सुअवसर And उचित निर्देशन ना मिलने के कारण मिल्टन और क्रामवेल गॉव में लुप्त हो गये। इस वाक्य से ही स्पष्ट है कि निर्देशन की आधारशिला Human शक्ति And Human जीवन के संरक्षण पर निहित है। और इसकी Need ही इसका प्रमुख आधार है।
  2. परिवार की परिवर्तनशील संCreation –परिवार समाज का लघु Reseller है। परिवर्तित समय के साथ शासन और परिवार की प्रकृति And आकार बदलता चला गया। आज से First विभिन्न व्यवसायों का प्रशिक्षण अनायास ही प्राप्त हो जाता था किन्तु अब व्यवसायों की अधिकता ने प्रशिक्षण को भी प्राप्त करना आसान नही रखा। अब शिक्षा के प्रचार-प्रसार ने अच्छा जीवन स्तर प्राप्त करना And क्षमता और रूचि के According व्यवसाय प्राप्त करने के रूझान को बढ़ावा दिया है। इससे उचित निर्देशन की Need बढ़ी।
  3. उद्योग की परिस्थितियों में परिवर्र्तन –स्वतत्रंता प्राप्ति के बाद‌ हमारे देश में औद्योगिक विकास बहुत ही तेजी से हुआ। अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में हमारा देश भी अपनी पहुच बनाने के लिए विशिष्ट वस्तुओं के उत्पादन में रूचि दिखा रहा है। और इस प्रकार की प्रकृति ने श्रम में विशिष्ट प्रशिक्षण And दक्षता को अनिवार्य बना दिया है। विशिष्ट क्षमता, बुद्धि, धारणा And रूचि के व्यक्ति के खोज के लिए निर्देशन सेवा की Need है।
  4. जनसंख्या में वृद्धि –जनसख्ंया वृद्धि ने विश्व के परिस्थितियों को विस्फाटे क बना दिया। First जीवन बहुत की सरल-सहज, सादा And सीमित Needओं वाला था। अब जनसंख्या वृद्धि के साथ लोगों को मूलभूत Needएॅ भी पूरी करने के लिए भी संघर्श करना पड़ता है। जिससे उसका पूरा जीवन संघर्शमय And भटकाव के साथ व्यतीत होने की सम्भावना रहती है। इससे आवश्यक निर्देशन की मॉग बढ़ी।
  5. शिक्षा की मॉग में वृद्धि –स्वतत्रं ता प्राप्ति के बाद‌ सम्पूर्ण साक्षरता, सबके लिए शिक्षा And शिक्षा सार्वजनिकरण And All स्तरों पर शिक्षा को सर्वसुलभ बनाये जाने से शिक्षित लोगों के समूह में वृद्धि हुयी है और उन्हे आवश्यक व्यवसाय प्रदान करना व्यवसायिक शिक्षा का प्रमुख उद्देष्य बन गया।
  6. जन्म-मृत्यु संख्या में परिवर्तन –पूरे विश्व मे वैज्ञानिक खोजों ने Human जीवन को सुविधा को परिपूर्ण कर दिया इससे मृत्यु संख्या घटी और जीवन आयु बढ़ी है इससे जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि हुर्इ है। जनसंख्या वृद्धि ने व्यवसायिक खोजने और चाहने वाले व्यक्तियों की संख्या बढ़ा दी हैं। उनकी Needओं की प्रत्यक्ष And परोक्ष पूर्ति नए व्यवसायों का जन्म होना भी सम्भव हो रहा है। इससे व्यवसायिक निर्देशन की Need बढ़ती जा रही हैं।
  7. धार्मिक तथा नैतिक आदर्शों में परिवर्तन –हमारे देश की अनेक रूढ़िगत मान्यतायें थीं जिनका अब धीरे-धीरे विघटन हो रहा है। उदाहरण के लिए किसी उच्च जाति अथवा वर्ग का व्यक्ति दर्जीगिरी अथवा जूते का व्यापार नहीं करता था। ब्राह्मण क्षत्रिय And कायस्थ हल ग्रहण नहीं करते थे, अत: कुछ ऐसे व्यवसाय थे जिन पर समाज के किसी विशिष्ट वर्ग का ही दबाव रहा करता था। किन्तु अब इन धारणाओं तथा पूर्वाग्रहों में शिथिलता आती जा रही है। अत: निर्देशन की Need भी बढ़ती जा रही है।
  8. परिवर्तित शिक्षा दर्शन –शिक्षा दर्शन मे भी उत्तरोत्तर परिवर्तन होता जा रहा है। हमारे देश की शिक्षा तथा जीवन-दर्शन का आधार आदर्शवादी था। धर्म तथा नैतिकता ही इस देश की संस्कृति के प्राण हैं। किन्तु पाश्चात्य देशों के प्रयोजनवादी दर्शन तथा वर्तमान सामाजिक परिस्थितियों के कारण भौतिकवादी दर्शन हमारी शिक्षा तथा जीवनषैली में शनै:- शनै: प्रवेश करते जा रहे हैं। अत: इस प्रकार व्यवसाय तथा जीविकोपार्जन का भी महत्व बढ़ता जा रहा है।
  9. अवकाश का सदुपयोग –वैसे तो अन्य देशों मे भी यह समस्या है कि अवकाश का सदुपयोग कैसे Reseller जाये। छात्र जीवन के अतिरिक्त भी उद्योग धन्धों में, कृशि में, सेवाओं में, सर्वत्र अवकाश की समस्या आ खड़ी होती है। हमारे देश में इसका विशेष महत्व है। हमारे देश के जलवायु में बहुत अधिक विविधता है जिसका प्रभाव जीवन शैली And शरीर तथा मन पर भी पड़ता है। अवकाश के समय में भी उपयोगी कार्य किये जा सके इसके लिए व्यवसायिक निर्देशन की नितान्त Need प्रतीत होती है। कुछ विद्वान व्यसवसायिक निर्देशन की बढ़ती हुर्इ Need के लिए इन घटकों को उत्तरदायी मानते हैं-
    1. समाज की परिवर्तनशील संCreation –समाजवादी समाज के गठन की आरे हमारा देश धीरे-धीरे बढ़ रहा है। धनी और निर्धन के बीच की खार्इ पटती जा रही हैं समाज का वह वर्ग जो कुछ दशकों पूर्व अपने को King मानता था और किसी भी प्रकार का व्यवसाय अपनाना या नौकरी करना हेय मानता था, वह भी अब व्यवसाय के क्षेत्र में उतर रहा है। इसी प्रकार सवर्णेतर जातियों के लोग जो किसी विशेष प्रकार के व्यवसाय अथवा नौकरियॉ करते थे, अब All व्यवसायों की ओर बढ़ रहे हैं। अत: व्यावसायिक निर्देशन के सम्मुख Single नयी चुनौती आ रही है।
    2. राजनीतिक परिवर्तन-स्वतत्रं ता प्राप्ति के उपरान्त देश में समाजवाद लाने के लिए राजनीतिक दल सामने आये जो पूजीवाद तथा वर्गवाद के भी समर्थक थे। परन्तु धीरे-धीरे जन-चेतना जाग्रत हुर्इ और All राजनीतिक दलों तथा वर्गवाद के भी समर्थक थे। परन्तु धीरे-धीरे जन-चेतना जाग्रत हुर्इ और All राजनीतिक दलों ने यह अनुभव Reseller कि देश के लिए समाजवादी व्यवस्था ही Single उपयुक्त व्यवस्था है। सम्प्रति देश में जो महानिर्वाचन हो रहे हैं, उस सम्बन्ध में विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपने जो कार्यक्रम प्रकाशित किये है; उन All में श्रमिकों, मजदूरों, कर्मचारियों तथा किसानों के कल्याण की बात जोरदार Wordों में कही गयी है। अत: स्पष्ट है कि व्यावसायिक निर्देशन का आयाम उत्तरोत्तर बढ़ रहा है।
    3. नगरीकरण –नगरीकरण की भी समस्या देश के सम्मुख उपस्थित हा े रही है। शिक्षित समुदाय गॉव छोड़कर नगरों की ओर खिसक रहा है। परिणामस्वReseller व्यवसायों पर बोझ बढ़ रहा है। इसके समाधान के लिए नये व्यवसायों का जन्म हो रहा है तथा नगरों में बसने वाले व्यक्तियों के लिए नये व्यवसाय उपलब्ध कराने की भी समस्या हो रही है।
    4. पाश्चात्य देशों का प्रभाव –हमारे देश की जीवन पद्धति पर पाश्चात्य देशों का जो पदार्थवादी तथा भौतिकवादी प्रभाव पड़ा है उसकी Discussion इसके पूर्व की जा चुकी है।
    5. विज्ञान तथा Human –शास्त्रों का विकास-नित्य नये आविश्कार तथा खोज विज्ञान And Human शास्त्रों को अधिक समृद्ध बना रहे हैं। विज्ञान के क्षेत्र में अन्तरिक्ष यात्रा जैसे अनेक नवीन विज्ञानों का उदय अत्यन्त आधुनिक है। इसी प्रकार Humanषास्त्रों के क्षेत्र में ऐसे विचार सामने आ रहे हें जिनका नाम भी वर्तमान शताब्दी के आरम्भ में किसी ने नहीं सुना था। अत: नवीन शास्त्रों तथा विज्ञानों के उदय से व्यावसायिक निर्देशन की सम्भावनाओं में भी वृद्धि हो गयी है।
    6. विशिष्टीकरण पर बल –सभ्यता के विकास तथा आविश्कारों के फलस्वReseller व्यवसायों के विशिष्टिकरण को बल मिल रहा है। समाज व्यवसायों के स्थूल Reseller से ही अब संतुश्ट नहीं है, वरन् वह उनके सूक्ष्म विवेचन में लगा है। किसी भी व्यवसाय के विशिष्ट पहलू पर शोध हो रहे हैं और फलस्वReseller नयी दिषायें सामने आ रही हैं। अत: विशिष्टिकरण के लिए विशेष प्रकार की प्रतिभाओं को खोजने की समस्या है। प्रतिभावान व्यक्तियों को उनकी रूचि तथा योग्यता के अनुReseller व्यवसाय खोजने की भी समस्या है। जोन्स ने व्यावसायिक निर्देशन की Need के संदर्भ में  घटकों की Discussion की है-
      1. व्यवसायों में विभिन्नता –व्यवसायो मे भिन्नता की Discussion हम कर चुके है। First की अपेक्षा अब व्यवसायों की संख्या बहुत बढ़ गयी है। अत: युवकों को इन नवीन व्यवसायों से परिचित कराने तथा नये व्यवसायों के लिए अच्छे कर्मचारी खोजने के लिए व्यावसायिक निर्देशन की Need है।
      2. छात्रों के जीवन में स्थिरता का प्रश्न-वर्तमान शिक्षा, जिसका सम्बन्ध यथार्थ जीवन से नहीं हैं विद्याथ्री को निराधार समाज में खड़ा कर देती है। अज्ञात वातावरण में समायोजन ढूढ़ना उसके लिए समस्या बन जाती है। अत: यह आवश्यक है कि विद्यार्थियों को छात्र-जीवन में ही व्यवसाय जगत का पर्याप्त ज्ञान करा दिया जाय ताकि विद्याथ्री-जीवन समाप्त होने के उपरान्त उनके जीवन में स्थिरता आ सके।
      3. व्यक्तिगत भिन्नताए –व्यवसायगत भिन्नताओं के समान ही व्यक्ति में भी भिन्नतायें पायी जाती हैं। प्रत्येक व्यक्ति कार्य नहीं कर सकता। इसी प्रकार प्रत्येक कार्य के लिए प्रत्येक व्यक्ति भी योग्य नहीं होता। अत: प्रत्येक व्यक्ति को उसके योग्य कार्य का ज्ञान देने की Need हैं।
      4. आर्थिक दृष्टिकोण –उचित निर्देशन के अभाव में आज का शिक्षित युवक जो भी व्यवसाय पाता है, उसी में लग जाता है। इसके लिए उसकी आर्थिक परिस्थिति तथा बेकारी की समस्या उत्तरदायी होती और जिसमें वह मन लगाकर काम नहीं कर पाता। अत: शिक्षितों के लिए उचित व्यावसायिक निर्देशन की Need हैं।
      5. स्वास्थ्य का दृष्टिकोण –स्वास्थ्य की दृष्टि से भी व्यावसायिक निर्देशन की Need होती है। अरूचिकर व्यवसाय का श्रमिक के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। वह बिना उत्साह के कार्य करता है और अपने जीवन में नीरसता का अनुभव करता है। यदि व्यवसाय रूचिकर है तो श्रमिक प्रसन्नता और सन्तोश का अनुभव करता है जो उसके स्वास्थ्य के लिये सुखकर होता है।
      6. व्यक्तित्व का दमन –अरूचिकर तथा उपयुक्त व्यवसाय में लग जाने पर व्यक्ति को आर्थिक हानि तो होती ही है, साथ ही उसके व्यक्तित्व का भी ह्यस होने लगता है। उसमें Single प्रकार की हीन-भावना समा जाती है और वह जीवन से धीरे-धीरे अन्यमनस्क होने लगता हैं व्यवसाय निर्देशन से ही व्यक्ति को उसके रूचि के अनुकूल व्यवसाय में डाला जा सकता है।
      7. व्यावसायिक निर्देशन के व्यक्तिगत तथा सामाजिक मूल्य –उपयुक्त व्यवसाय वही है जहा कर्मचारी अधिकतम सन्तोश, सुख, उत्साह तथा आषा का अनुभव करता है। ऐसे व्यवसाय म ही उसके व्यक्तित्व का विकास सम्भव है। मनुष्य का सामाजिक इकार्इ के Reseller में मूल्य तभी है जब वह अधिकतम सामाजिक कल्याण करता है। वह हितैशी तभी माना जा सकता है जब वह संसार का अधिकतम भला कर सके। कोर्इ भी व्यक्ति जीविका जगत से बाहर रहकर यह कार्य नहीं कर सकता और जीविका में उसकी सफलता तभी सम्भव है जब जीविका व्यक्ति के उपयुक्त हो। जब मनुष्य उपयुक्त कल्याणकारी कार्यो को सफलतापूर्वक करता है तो यह स्पष्ट हो जाता है कि वह उपयुक्त व्यवसाय में नियुक्त है। यदि ऐसा नहीं है तो उसे व्यवसाय निर्देशन की Need है।
      8. Human शक्ति का उपयुक्त उपयोग –Human की छिपी हुर्इ क्षमताओं को व्यवसाय के माध्यम से व्यक्त Reseller जा सकता है। प्रसिद्ध किव ग्रे के Wordों में अवसर न मिलने के अभाव में अनेक विभूतियॉ Destroy हो गयी। उचित निर्देशन के माध्यम से व्यक्ति की प्रच्छत्र शक्तियों को सुविकसित Reseller जा सकता है।
      9. परिवर्तन परिस्थितियॉ –सामाजिक तथा आर्थिक परिस्थितियों के नित्यश: परिवर्तित होने के कारण व्यावसायिक-निर्देशन की Need और बढ़ जाती है। परिवर्तन के कारण नये व्यवसाय जन्म लेते है और उनकी मॉगें नयी होती है और इन मॉगों और अपेक्षाओं के अनुकूल व्यक्ति खोजने के लिए व्यवसायिक निर्देशन की Need होती है। व्यावसायिक निर्देशन की व्यापकता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।

व्यावसायिक निर्देशन देने की विधि 

व्यावसायिक निर्देशन देते समय निर्देशन को दो तत्व सामने रखकर चलना पड़ता है : First-व्यवसाय के लिए वांछित योग्यताओं की सूची Meansात् अमुक व्यवसाय के लिए किस स्तर के स्वास्थ्य की जरूरत पड़ती है, कितनी तथा किस प्रकार की बुद्धि की Need होती है; किस प्रकार की अन्य क्षमताओं, रूचियों तथा अभिरूचियों, शिक्षा, अनुभव आदि की जरूरत होती है; द्वितीयत:-उस व्यक्ति में व्यवसाय के योग्य कितनी अनुकूलता है। जहॉ तक व्यवसाय के अध्ययन की जरूरत है, इसके लिए First से ही Single सूची निर्धारित कर दी जाती है कि उसके लिए किस स्तर के स्वास्थ्य, बुद्धि, अनुभव, शिक्षा आदि की Need होती है। प्रत्येक व्यवसाय के सम्बन्ध में प्रत्येक निर्देशन को इस प्रकार की सूचनाएँ तैयार रखनी चाहिए। जहॉ तक व्यक्ति के अध्ययन का प्रश्न है, यह प्रश्न बड़ा जटिल है। व्यक्ति का अध्ययन बड़ी सावधानी से करना चाहिए। व्यक्ति के अध्ययन हेतु निम्न प्रणाली अपनायी जा सकती है।:-

(1) प्राथमिक साक्षात्कार

निर्देशक को First बालक का Single प्राथमिक साक्षात्कार करना चाहिए। इस साक्षात्कार के द्वारा निर्देशन बालक के सामाजिक तथा आर्थिक वातावरण का अध्ययन कर सकेगा। साथ ही साथ वह बालक के स्वास्थ्य, नेत्र-ज्योति, स्वर, श्रवण-शक्ति, उसका दिखावा उसके बाह्य सम्बन्ध आदि का ज्ञान सरलतापूर्वक प्राप्त कर सकता है। सामान्य निर्देशन को इस साक्षात्कार में निम्नांकित तथ्यों की जानकारी प्राप्त करने की चेष्टा करनी चाहिए: (1) बालक का नाम, (2) जन्म तिथ तथा आयु (3) माता-पिता के नाम जाति, धर्म, (4) माता-पिता का व्यवसाय, (5) अन्य भार्इ-बहिनों की संख्या, (6) भार्इ-बहिनों में उसका क्रम, (7) माता-पिता तथा भार्इ-बहिनों की संख्या, (8) परिवार की कुल आय, (9) आय के कुल साधन, (10) वंशानुक्रमिक रोग, (11) शारीरिक अस्वस्थता, (12) विद्यालय जिनमें शिद्वाा प्राप्त की, (13) मित्र, (14) रूचिकर खेल, (15) हॉबीज (16) अन्य तथ्य।

(2) बौद्धिक स्तर की माप

बालक के आर्थिक व सामाजिक वातावरण का ज्ञान प्राप्त कर लेने के पश्चात निर्देशन को चाहिए कि वह बालक के बौद्धिक स्तर का माप करें। निर्देशन में बौद्धिक स्तर का बड़ा महत्व है। कभी-कभी तो केवल बौद्धिक स्तर के आधार पर भी व्यक्तियों का श्रेणी-विभाजन करते हुए देखा जाता है। उदाहरण के लिए, हम बर्ट के श्रेणी-विभाजन को ले सकते हैं। वे कहते हैं कि 150 बुद्धि-लब्धि वाले अच्छे प्रKing, 130-150 बु0ल0 वाले अच्छे टेक्नीशियन, निम्न श्रेणी के अच्छे प्रKing, 115-130 बु0 ल0 वाले अच्छे दक्ष श्रमिक होते हैं। बुद्धि के सम्बन्ध में माप करते समय ध्यान रखना चाहिए कि बुद्धि के दो तत्व होते हैं-(1) सामान्य बुद्धि-तत्व तथा (2) विशिष्ट बुद्धि-तत्व। निर्देशक को दोनों ही तत्व की माप अनेक बुद्धि परीक्षणों द्वारा कर सकता है। इसके लिए निर्देशक को विभिन्न प्रकार के परीक्षणों का सहारा लेना चाहिए। उसे मौखिक बुद्धि-परीक्षण, सामूहिक बुद्धि-परीक्षण, शक्ति व गति परीक्षणों के अलावा क्रियात्मक परीक्षणों आदि All प्रकार के परीक्षणों की सहायता लेनी चाहिए। निर्देशक निम्नांकित परीक्षणों का प्रयोग कर सकता हैं-डॉ0 सोहन लाल का सामूहिक बुद्धि-परीक्षण विशिष्ट तत्वों की माप के लिए निर्देशक को निम्नलिखित विशिष्ट योग्यताओं की माप हेतु अलग-अलग से परीक्षण अपनाने चाहिए:-

  1. यांत्रिक योग्यता-यांत्रिक योग्यता हेतु निर्देशक इन परीक्षण का प्रयागे कर सकता है –
    1. Minnesota Mechenical Assembly Test
    2. Detroit Mechenical Aptitude test
    3. Paper and Pencil Test of Mechenical Aptitude
    4. Stenquist test for Mechenical Aptitude
    5. O’ Rourke Mechenical Aptitude Test
  2. लिपिक योग्यता- इसके लिए इन परीक्षण प्रमुख है :-
    1. Minnesota Vocational Test for Clercial Works
    2. Thurstone Examination in Clerical Works
    3. Centroit Clerical Aptitude Examination
  3. संगीत योग्यता-इसके लिए का नाम Historyनीय है।
  4. कला-योग्यता- इसके लिए का नाम Historyनीय हैं।

इस प्रकार विभिन्न विशिष्ट योग्यताओं का माप करने के पश्चात निर्देशक गेंस Reseller से बालक की बुद्धि का पता लगा लेगा।

(3) व्यक्तित्व की माप-

बुद्धि के दोनों पहलुओं का माप करने के पश्चात निर्देशक को बालक के व्यक्तित्व का माप करना चाहिए। व्यक्ति की माप किस प्रकार तथा किन परीक्षणों के द्वारा की जानी चाहिए, इसका History आगे विस्तृत Reseller से कर दिया गया है।

(4) रूचि की माप-

निर्देशक को निर्देशन कार्य के लिए बालक की रूचि का भी पता लगा लेना चाहिए। इसके लिए उनकी रूचि का माप करना चाहिए। रूचि की माप के विषय में आगे विस्तृत विवेचना की गर्इ है।

इस प्रकार बालक का अध्ययन विभिन्न पहलुओं से करके Single निष्कर्ष निकालना चाहिए। यदि हम बालक की विभिन्न मापों को ग्राफ पर अंकित करें तो Single छवि बन जायेगी। इसे हम पाश्व-चित्र कहते है। इसका Single काल्पनिक नमूना नीचे दिया गया है :-

व्यक्ति का मनोवैज्ञानिक पाश्व-चित्र

  1. बुद्धि के मौखिक परीक्षण
  2. Word-भण्डार परीक्षण
  3. भाटिया परफॉरमेन्स
  4. संगीत परीक्षण
  5. यांत्रिक परीक्षण
  6. निश्पित्त परीक्षण
  7. चित्र निर्माण परीक्षण
  8. सामूहिक बुद्धि-परीक्षण
  9. व्यक्तित्व परीक्षण
  10. शारीरिक क्षमता परीक्षण
  11. स्थिरता परीक्षण
  12. टरमन-मैरिल स्केल

व्यक्ति के इस पाष्र्व चित्र की तुलना विभिन्न व्यवसायों के पाश्व-चित्र से करनी चाहिए। जिस व्यवसाय के पाश्व-चित्र के साथ पाश्व-चित्र की सर्वाधिक अनुResellerता हो, समझना चाहिए कि व्यक्ति उसी व्यवसाय के सर्वाधिक उपयुक्त है। यहाँ यह ध्यान रखना चाहिए कि कभी भी व्यक्ति तथा व्यवसाय पाश्व-चित्र शत-प्रतिशत अनुReseller नहीं होते हैं।

(5) अन्तिम साक्षात्कार

समस्त प्रकार के मापन के पश्चात अन्त में पुन: Single साक्षात्कार करना चाहिए। इस साक्षात्कार के यदि निर्देशन की कोर्इ शंका रह गर्इ है, तो उसका समाधान करना चाहिए। अपनी शंकाओं के समाधान, छात्र के सामाजिक व आर्थिक वातावरण तथा विभिन्न मापों के आधार पर अन्त में निर्देशक को अपना description लिखकर प्रस्तुत करने चाहिए।

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