वित्तीय description विश्लेषण का Means, परिभाषा, उद्देश्य, विधि And तकनीक

फिने तथा मिलर के Wordों में “वित्तीय विश्लेषण में निश्चित योजनाओं के आधार पर तथ्यों को विभाजित करने, परिस्थितियों के According, उसकी वर्ग Creation तथा सुविधाजनक सरल पठनीय And समझने लायक Reseller में उन्हें प्रयुक्त करने की क्रियाएं सम्मिलित होती हैं।” स्पाइसर तथा पेगलर के According “लेखों के निर्वचन को वित्तीय समंकों को इस प्रकार अनुवाद करने की कला And विज्ञान के Reseller में परिभाषित Reseller जा सकता है, ताकि जिससे व्यवसाय की आर्थिक तथा कमजोरी सकारण प्रकट हो सके।”

वित्तीय description विश्लेषण के उद्देश्य

(अ) सामान्य उद्देश्य –

वित्तीय description का उपयोग करने वाले प्राय: Single व्यावसायकि संस्था की वित्तीय सुदृढ़ता, लाभदायकता, कार्यकुशलता, शोधन क्षमता, And भावी सम्भावनाओं के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं। इस प्रकार वित्तीय विश्लेषण के उद्देश्य हो सकते हैं –

  1. लाभदायकता (Profitability) 
  2. Safty And शोधन क्षमता (Security and Solvency) 
  3. वित्तीय शक्ति (Financial Strength) 
  4. प्रवृत्ति (Trend) 
  5. स्वामित्व या प्रबन्धन क्षमता (Ownership or Managerial Capacity) 
  6. सूचनाओं का प्रकटीकरण (Disclosure of Information)

(ब) विशिष्ट उद्देश्य –

वित्तीय descriptionों के विश्लेषण में अनेक पक्षकारों (ऋणदाताओं, प्रबन्धकों व विनियोजकों) का हित होता है। यह हित विभिन्न पक्षकारों के दृष्टिकोण से भिन्न भिन्न होता है। इसलिए वित्तीय descriptionों के विश्लेषण के उद्देश्य भी विभिन्न पक्षकारों के दृष्टिकोण से भिन्न हो सकते हैं। सामान्यत: ये उद्देश्य हैं-

  1. अंशधारियों या विनियोगकर्ता के उद्देश्य 
  2. अंशधारियों या विनियोगकर्ता के उद्देश्य 
  3. ऋणदाताअेां द्वारा विश्लेषण के उद्देश्य 
  4. सरकार द्वारा विश्लेषण का उद्देश्य
  5. कर्मचारियों का उद्देश्य 
  6. वित्तीय संस्थाओं जैसे-बैंक, बीमा कम्पनी द्वारा विश्लेषण का उद्देश्य संस्था 
  7. अन्य पक्ष

वित्तीय description विश्लेषण की विधि

वित्तीय लेखों तथा descriptionों के सम्बन्ध में सामान्यत: प्रक्रियाएं अपनानी चाहिए-

  1. विश्लेषण सीमा का निर्धारण – विश्लेषण का कार्य आर्थिक स्थिति का ज्ञान, उपार्जन क्षमता का ज्ञान, ऋण वापसी की क्षमता का ज्ञान, संस्था की भावी सम्भावना का ज्ञान आदि से सम्बन्धित हो सकता है। यदि विश्लेषण के अध्ययन केकी सीमा आर्थिक स्थिति का ज्ञान हे,तो इसके लिए उसे स्थिति description का अध्ययन करना ही पर्याप्त होगा, यदि उसकी अध्ययन सीमा उपार्जन क्षमता है तो उसे लाभ-हानि खाते का भी अध्ययन करना होगा और यदि उसकी अध्ययन सीमा कम्पनी की भावी सम्भावनाओं का अनुमान है तो उसे पिछले कर्इ वर्षों के लेखे descriptionों के साथ-साथ संचालक के प्रतिवेदनों तथा अध्यक्ष के भाषणों का भी अध्ययन करना पड़ेगा। 
  2. वित्तीय descriptionों का अध्ययन करना – Single बार जब विश्लेषण की सीमा का निर्धारण हो जाता है तब उसके बाद आवश्यक वित्तीय descriptionों का सम्पूर्ण अध्ययन Reseller जाता है। 
  3. अत्यन्त आवश्यक सूचनाओं का संकलन-वित्तीय descriptionों के अध्ययन के साथ -ही -साथ यदि विश्लेषक को कुछ अन्य सूचनाएं जैसे-प्रबन्धकों से प्राप्त होने वाली उपयोगी सूचनाएं, बाह्य पत्र-पत्रिकाओं में छपी जानकारी आदि भी आवश्यक हो तो उन्हें संग्रहित Reseller जाता है। 
  4. वित्तीय descriptionों का पुनर्विन्यासन – सूचनाओं के संग्रह के उपरान्त वित्तीय descriptionों में प्रदश्रित मौलिक अंकों को अलग-अलग वर्गों से उचित तथा स्पष्ट Reseller से विभाजित Reseller जाता है। मौलिक अंकों को पुनर्विन्यासित करते समय उन्हें निकटतम (Approximate) अंकों में जमाया जाता है। कर्इ बार इन्हें प्रतिशत के Reseller में जमाया जाता है, कर्इ बार सम्पूर्ण राशि निकटतम हजार या लाख Resellerयों में जमा ली जाती है,ऐसा करने में समंकों की जटिलता दूर हो जाती है तथा अध्ययन का कार्य सरल हो जाता है।
  5. तुलना करना –पुनर्विन्यासन के बाद विभिन्न मदों से आपसी तुलना की जाती है। तुलना का आधार केवल Single वर्ष के समंक हो सकते हैं तथा पिछले कर्इ वर्षों के समंक भी हो सकते हैं। यदि दो कम्पिन्यों की परस्पर तुलना करनी हो तो दो कम्पनियों के समंक भी लिए जा सकते हैं। सम्पूर्ण उद्योग का अध्ययन क्षेत्र होने पर अनेक कम्पनियों के समंकों का तुलनात्मक अध्ययन Reseller जाता है। 
  6. प्रवृत्ति का अध्ययन – उपर्युक्त अध्ययन से व्यवसाय के क्रमिक विकास या पतन की प्रवृत्ति ज्ञात की जाती है। प्रवृत्ति के अध्ययन से व्यवसाय से गत कर्इ वर्षों में हुए परिवर्तनों का पता लग जाता है And प्रवृत्ति के आधार पर पूर्वानुमान लगाना सरला हो जाता है। 
  7. निर्वचन – उपर्युक्त described विधि के आधार पर व्याख्या करके अपने अध्ययन क्षेत्र के सम्बन्ध में निष्कर्ष निकाले जाते हैं। निष्कर्ष निकालने की इस क्रिया को निर्वचन कहा जाता है। 
  8. प्रस्तुतिकरण –जब निर्वचन से निष्कर्ष प्राप्त हो जाते हैं तो इन निष्कर्षों को सुव्यवस्थित Reseller से प्रबन्धकों के समक्ष प्रस्तुत Reseller जाता है। इसे लेखा समंकों का प्रस्तुतीकरण (Presentation), प्रतिवेदन (Reporting), या सूचित करना (Communications) भी कहते हैं।

वित्तीय description विश्लेषण की तकनीक

किसी व्यावसायिक उपक्रम की वित्तीय स्थिति और लाभार्जन शक्ति का ज्ञान प्राप्त करने के लिए उसके वित्तीय descriptionों की मदों में क्षैतिज अथवा लम्बवत् विश्लेषण का अध्ययन करने के लिए जिन उपायों का प्रयोग Reseller जाता है, उन्हें वित्तीय विश्लेषण की तकनीकें कहा जाता है। लेकिन जिसका अत्यधिक उपयोग Reseller जाता है वे हैं-

  1. तुलनात्मक वित्तीय description (Comparative Financial Statements),
  2. समानाकार वित्तीय description (Common size Financial Statements)
  3. प्रवृत्ति विश्लेषण (Trend Analysis)
  4. अनुपात विश्लेषण (Ratio Analysis) 
  5. कोष प्रवाह विश्लेषण (Fund-flow Analysis) 
  6. रोकड़ प्रवाह विश्लेषण (Cash-flow Analysis) 
  7. सम-विच्छेद विश्लेषण (Brek even Analysis)

1. तुलनात्मक वित्तीय description – 

यह वित्तीय descriptionों पत्रों के विश्लेषण की Single प्रमुख तकनीक है। इन descriptionों में दो या अधिक वर्षों के समंकों को दिखाते हुए उनके मध्य हुए परिवर्तनों को दर्शाया जाता है। कम्पनी अधिनियम 1956 में भी इस बात पर जो दिया गया है प्रत्येक कम्पनी अपने प्रकाशित वित्तीय descriptionों में वर्तमान वर्ष के साथ -साथ पिछले वर्ष की सूचनाएं भी प्रदर्शित करें। तुलनात्मक वित्तीय description इन उद्देश्यों को दर्शाने के लिए तैयार किये जाते हैं-

  1.  निरपेक्ष अंक (मुद्रा मूल्य में या Resellerयों में)
  2. वृद्धि या कमी को प्रतिशतों के Reseller में प्रकट करना 
  3. वृद्धि या कमी को निरपेक्ष संस्थाओं में व्यक्त करना।

2. समानाकार वित्तीय description –  

तुलनात्मक वित्तीय descriptionों के अन्तर्गत विभिन्न मदों का कुल सम्पत्तियों कुछ दायित्वों, कुल स्वामियों की समता तथा कुल विक्री में होने वाले परिवर्तनों को नहीं दर्शाया जाता है, जिससे उसकी तुलना अन्य कम्पनियों से या सम्पूर्ण उद्योग से नहीं की जा सकती है। इस कमी को दूर करने के लिए ही समानाकर वित्तीय description का निर्माण Reseller जाता है। कैनेडी And मैकमूलन के According “यदि स्थिति description And आय description के समंकों को विश्लेषणात्मक प्रतिशतों के Reseller में Meansात् कुल सम्पत्तियों, कुल दायित्वों, स्वामित्व समता तथा कुल शुद्ध बिक्री के अनुपात में दिखाया जाए तो तुलना के लिए Single समान आधार तैयार हो जाता है। इस प्रकार तैयार किए गये descriptionों को समानाकार वित्तीय descriptionों के नाम से जाना जाता है।

3. प्रवृत्ति विश्लेषण – 

प्रवृत्ति से तात्पर्य व्यावसायिक गतिविधियों के रूख से होता है जिसकी गणना उपलब्ध वित्तीय समंकों में से किसी अवधि समंकों को आधार मानकर की जाती है। सामान्यतया सबसे First वर्ष को ही आधार वर्ष माना जाता है। मदों को तुलनीय बनाने के लिए आधार वर्ष की राशि को 100 मानकर अन्य वर्षों के उन्हीं मदों को प्रतिशतों अथवा अनुपातों में परिवर्तित कर दिया जाता है। इस प्रकार प्रवृत्ति ज्ञात करने की प्रमुख विधियां हैं-

  1. प्रवृत्ति प्रतिशत (Trend Percentages) 
  2. प्रवृत्ति अनुपात (Trend Ratios) 
  3. ग्राफ And चित्रमय प्रस्तुतीकरण (Graphic & Diagrammatic Representation)

4. अनुपात विश्लेषण 

वित्तीय descriptionों के विलेषण में अनुपात विश्लेषण का विशेष महत्व है। इसमें विभिन्न प्रकार के वित्तीय अनुपातों की गणना की जाती है, जिनके माध्यम से महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले जाते हैं। इस विश्लेषण के माध्यम से संस्थान की तरलता स्थिति कार्यशीलता And कार्यकुशलता, लाभदायकता तथा पूंजी संCreation आदि की जांच की जाती है।

5. कोष प्रवाह 

विश्लेषण किसी सस्था के दो स्थिति descriptionों के बीच संस्था के कोषों में परिवर्तन के अध्याय के लिए जो description तैयार Reseller जाता है उसे कोष प्रवाह description कहते हैं। इसके द्वारा हमें इस बात की जानकारी मिलती है कि संस्थान में संसाधन (Sources) कहां-कहां से प्राप्त हुए हैं तथा उनका उपयोग (Uses) किन-किन कार्यों में Reseller गया है।

6. रोकड़ प्रवाह 

विश्लेषण रोकड़ प्रवाह description के अन्तर्गत नकद के विभिन्न स्रोतों And उपयोगों का विश्लेषण Reseller जाता है। इसके माध्यम से यह ज्ञात Reseller जाता है कि रोकड़ राशि किन-किन साधनों से प्राप्त हुर्इ तथा किन-किन मदों पर व्यय की गर्इ है।

7. सम-विच्छेद 

विश्लेषण सम-विच्छेद विश्लेषण Single ऐसी तकनीक है जिसके अन्तर्गत उत्पादन की Single निश्चित मात्रा के विक्रय करने पर उत्पादन कोन लाभ होता है न हानि। इसके अन्तर्गत लागतों को स्थायी And परिवर्तनशील श्रेणी में विभक्त कर दिया जाता है तथा लागत, लाभ And विक्रय के मध्य सम्बन्ध स्थापित Reseller जाता है। इस तकनीक के माध्यम से प्रबन्धक उत्पादन मूल्य निर्धारण विक्रय नीति, लाभ नीति के निर्धारण में मदद मिलती है।

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