वित्तीय पूर्वानुमान क्या है ?

वित्त की उपादेयता निर्विवाद है, भावी वित्तीय Needओं का पूर्वानुमान वित्तीय पूर्वानुमान कहलाता है। वित्तीय पूर्वानुमान Single प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत कोष प्रवाह descriptionों, भूतकालीन लेखों, वित्तीय अनुपातों इत्यादि के आधार पर भावी वित्तीय दषाओं का निResellerण Reseller जाता है। इसके अन्र्तगत सम्भाव्य रोकड़ अन्तर्वाहों (Inflows) तथा रोकड़ बहिर्वाहों (Outflows) का आंकलन Reseller जाता है। वास्तविक Meansों में वित्तीय पूर्वानुमान, सम्भाव्य घटनाओं का आंकलन है जिसके माध्यम से संगठन की भावी योजनाओं को मूर्त Reseller देने में सहायता मिलती है। लुइस ए. एलेन के Wordों में ‘‘पूर्वानुमान Single ऐसा व्यवस्थित प्रयास है, जिसके द्वारा ऑकड़ों से निष्कर्ष निकालकर भविष्य की छानबीन की जाती है।’’

वित्तीय पूर्वानुमान की विशेषताएँ 

वस्तुत: वित्तीय पूर्वानुमान भावी वास्तविकताओं के लिए अनुमान होते हैं। ये अनुमान भूतकालीन घटनाओं के सांख्यिकीय विश्लेषण पर आधारित होते हैं। संक्षेप में वित्तीय पूर्वानुमान की विशेषताएॅं होती हैं ।

  1. वित्तीयपूर्वानुमान भावी घटनाओं अथवा परिस्थितियों से सम्बन्धित होते हैं। 
  2. इनके अन्र्तगत भूतकालीन घटनाओं के परिपे्रक्ष्य में वर्तमान परिस्थितियों में होने वाले परिवर्तनों को ध्यान में रखा जाता है। 
  3. वित्तीय पूर्वानुमानों का निर्माण पिछले आँकड़ों And विगत स्थितियों को दृश्टिगत रखकर Reseller जाता है। 
  4. वित्तीय पूर्वानुमान का निर्माण किसी वैज्ञानिक रीति अथवा निर्धारित सांख्यिकीय विश्लेषण के आधार पर Reseller जाता है। 

वित्तीय पूर्वानुमानों की उपादेयता 

 प्रत्येक संगठन में वित्त जीवन दायी रक्त के समान होता है वित्तीय पूर्वानुमान के अन्तर्गत संगठन की भावी वित्तीय Needओं का निर्धारण Reseller जाता है। Need से अधिक अथवा कम मात्रा में लगाया गया वित्तीय पूर्वानुमान संगठन के लिए घातक हो सकता है। अत: संतुलित पूर्वानुमान संगठन के लिए अत्यन्त आवश्यक होता है। प्राय: वित्तीय पूर्वानुमानों से संगठन को लाभ होते हैं।

  1. रोकड़ शेषो का अनुकूलतम उपयोग  – वित्तीय पूर्वानमानों के द्वारा संगठन में स्थित रोकड़ शेषो का अनुकूलतम प्रयोग Reseller जा सकता है। वित्तीय पूर्वानुमानों के अभाव में व्यवसाय की निश्क्रय रोकड़ सक्रिय नहीं की जा सकती। 
  2. उच्च साख क्षमता – वित्तीय पूवार्नमानों के द्वारा संगठन में उच्च श्रेणी की साख क्षमता का सृजन होता है। नियोजित पूर्वानमान बैंकों अथवा वित्तीय संस्थाओं से ऋण प्राप्त करने में सहायक होते हैं, वस्तुत: वित्तीय पूर्वानुमानों के माध्यम से बैंकों को संगठन की वित्तीय Needओं की मात्रा समय And लाभदेयकता तथा तरलता सम्बन्धी अध् ययन करने में सहायता मिलती है। 
  3. वित्तीय क्रियाओं पर नियत्रंण –वित्तीय पूर्वानुमान के माध्यम से संगठन की वित्तीय क्रियाओं पर नियंत्रण स्थापित Reseller जा सकता है। इसके माध्यम से रोकड़ स्तर के निश्पादन प्रमाप निर्धारित करके वास्तविक निस्पत्ति से तुलनात्मक परिणामों का मूल्यांकन Reseller जा सकता है। 
  4. वित्तीय सहायता की जॉंच  – वित्तीय पूर्वानुमानों के माध्यम से संगठन की वित्तीय सहायता का मूल्यांकन Reseller जा सकता है। वस्तुत: वित्तीय पूर्वानुमानों के निध्र्धारण न करने पर संगठन के अन्तर्गत कृत कार्योंके पश्चातवर्ती काल में परिवर्तित करना कठिन होता है। 
  5. नवीन उपक्रम की स्थापना – वित्तीय पूर्वानुमान का आकलन नवीन उपक्रम की स्थापना हेतु करना अत्यन्त आवश्यक होता है। बाजार में वस्तुओं अथवा सेवाओं की माँग के पूर्वानुमानों के आधार पर उत्पादन इकार्इ का आधार, क्षेत्र And बिक्री का लक्ष्य निर्धारित Reseller जाता है। इसके साथ ही मूल्यों And लागतों को पूर्वानुमानित करके संगठन की आर्थिक क्षमता का मूल्यांकन Reseller जाता है। 
  6. वित्तीय नियोजन में सहायक – वित्तीय नियोजन हेतु वित्तीय पूर्वानुमानों की अत्यन्त Need होती है। वस्तुत: वित्तीय आयोजन की समस्त प्रक्रियाओं का आधार वित्तीय पूर्वानुमान ही होता है। पूँजी ढाँचे का निर्माण, पूँजीकरण की राशि, And ऋण क्षमता अनुपात का निर्धारण इत्यादि वित्तीय पूर्वानुमानों के आधार पर ही किये जाते हैं। 

वित्तीय पूर्वानुमान के मूल तत्व

  1. आधार – वित्तीय पूर्वानुमानों का आधार विशेषज्ञों अथवा सूचना एजेन्सियों द्वारा प्रकाषित विष्वस्त सूचनाएं होती हैं, वित्तीय पूर्वानुमानों के निर्माण हेतु आन्तरिक And वाह्य दो प्रकार की सूचनाओं की Need होती है। आन्तरिक सूचनाएँं संगठन की क्रियाओं से उपलब्ध हो जाती है किन्तु बाह्य सूचनाएँ Kingीय, अर्द्धKingीय And अन्तर्राष्ट्रीय सूचना एजेन्सियों के माध्यम से प्राप्त होती हैं। 
  2. अवधि  – वित्तीय पूर्वानुमान, अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन हो सकते हैं। अल्पकालीन पूर्वानुमान Single वर्ष अथवा कम अवधि के होते हैं। दीर्घकालीन पूर्वानुमान 5 वर्ष या उससे अधिक अवधि हेतु होते हैं। Single वर्ष से अधिक And 5 वर्ष से कम अवधि वाले पूर्वानुमान मध् यकालीन पूर्वानुमान कहलाते हैं। 
  3. नवीनतम सूचनाए –वित्तीय पूर्वानुमान केवल भूतकालीन सूचनाओं पर आधारित न होकर बल्कि वर्तमान And नर्इ सूचनाओं पर आधारित होने चाहिए। नवीनतम सूचनाओं के अभाव में पूर्वानुमान वास्तविक से परे होते हैं। 
  4. प्रबन्धकीय सूचना तकनीक – व्यावसायिक संगठन के अन्तर्गत आँकड़ों के संकलन, विश्लेषण तथा सम्प्रेशण की Single सुव्यवस्थित सूचना प्रणाली विकसित की जानी चाहिए। जिसके माध्यम से आन्तरिक And बाह्य सूचनाओं का अनवरत संकलन And सम्प्रेशण सुनिश्चित Reseller जा सके। प्रबन्धकीय सूचना प्रणाली में संलग्न कार्मिकों का प्रशिक्षित होना आवश्यक होता है। 
  5. इलेक्ट्रानिक माध्यमों का प्रयोग –संगठन की सूचना प्रणाली को त्वरित करने हेतु इलेक्ट्रानिक माध्यमों का प्रयोग करना आवश्यक हो चुका है। वर्तमान समय में कम्प्यूटर, फैक्स, इण्टरनेट, टेलीफोन, मोबाइल इत्यादि सूचना माध्यमों के प्रयोग द्वारा वित्तीय पूर्वानुमानों में नवीनतम सूचनाओं को समाहित करके अधिक उपयोगी बनाया जा सकता है। 

वित्तीय पूर्वानुमान की तकनीकें

सामान्य तौर पर हम पूर्वानुमान के निर्माण हेतु निम्नलिखित तकनीकों का प्रयोग करते हैं।

  1. प्रक्षेपित वित्तीय description (Projected financialstatement) 
  2. रोकड़ बजट (Cash Budget) 
  3. अनुResellerण (Simulation) 
  4. रेखीय And बहुमुखी प्रतीयगमन (Linear and multiple Regression) 
  5. सूक्ष्म ग्राह्यता विश्लेषण (Sensitivity Analysis) 

उपर्युक्त विधियों में केवल प्रक्षेपित वित्तीय description, रोकड़ बजट विक्षिा प्रबन्धे प्रत्यक्षत: सम्बन्धित हैं अत: हम इस अध्याय में केवल उक्त दोनों विन्धि का अध्ययन करेंगें।

1. प्रक्षेपित वित्तीय description 

प्रक्षेपित वित्तीय description वे description हैं जो भावी प्रभावों को अभिव्यक्त करने हेतु भावी अवधि के लिए बनाये जाते हैं। इन descriptionों के माध्यम से आगम लागत, लाभ, कर कोषों के उपयोग, And स्रोत लाभाषों इत्यादि के विशय में पूर्वानुमान प्रस्तुत किये जाते हैं। इन descriptionों को तैयार करने हेतु कोर्इ ठोस आधार व नियम नहीं है। इसके निर्माण हेतु आकड़े भूतकालीन तथ्यों पर आधारित होते हैं। इन descriptionों के अन्तर्गत प्रक्षेपित आय description तथा प्रक्षेपित आर्थिक चिट्ठा सम्मिलित Reseller जाता है।

  1. प्रक्षेपित आय description  – प्रक्षेपित आय description का निर्माण पूर्वानुमानित अवधि के लिए सम्भाव्य विक्रय के आधार पर Reseller जाता है। सम्भाव्य विक्रय मात्रा का अनुमान आर्थिक शोध And विश्लेषण, बाजार सर्वेक्षण, प्रतिस्पध्र्ाी संस्थानों द्वारा किये जाने वाले विक्रय अथवा अनुमानित विक्रय के आधार पर Reseller जा सकता है। इसके अन्तर्गत विक्रीत माल की लागत, विक्रय लागत, प्रषासनिक व्यय, And अन्यमदों से सम्बन्धित अनुमान लगाये जा सकते हैं।
  2. प्रक्षेपित चिट्ठ्ठा – प्रक्षेपित चिट्ठ्ठा वह description पत्र है जिसके माध्यम से आगामी वर्ष के अंत में फर्म की वित्तीय स्थिति का पूर्वानुमान प्रस्तुत Reseller जाता है प्रक्षेपित चिट्ठे का निर्माण संगठन में तत्कालीन कार्य निश्पादन And प्रगति के आधार पर Reseller जाता है। इसके अन्तर्गत सम्भावित विक्रय आय में सम्भावित सकल लाभ की राशि घटाकर विक्रय की लागत की गणना कर ली जाती है। प्रक्षेपित चिट्ठे के निर्माण में प्रक्षेपित आय description तथा संलग्न अनुसूचियों And बजट प्राविधानों की सहायता ली जाती है। सामान्य तौर पर प्रक्षेपित चिट्ठे के निर्माण में चरण होते हैं।

    1. प्रत्येक सम्पत्ति में आवश्यक शुद्ध विनियोग राशि की गणना निर्धारित तिथि पर नियोजित उत्पादन स्तर को चालू रखने हेतु करनी चाहिए।
    2. जिन दायित्वों पर किसी भी प्रकार का समझौता (Agreement) करना आवश्यक नहीं होता, उन दायित्वों की अलग सूची निर्मित कर लेना चाहिए। 
    3. पूर्वानुमानित अवधि के शुद्ध मूल्य में प्रक्षेपित आय को समायोजित करके शुद्ध मूल्य (Networth) की गणना कर लेना चाहिए। 
    4. प्रक्षेतिप सम्पत्तियों की कुल कोषों (दायित्व + शुद्ध मूल्य) से तुलना करनी चाहिए। सम्पत्तियों की मात्रा कुल कोषों से अधिक होने पर अन्तर की राशि अतिरिक्त साधनों की मात्रा को व्यक्त करती है।  सम्पत्तियों के साधन Meansात दायित्वों की मात्रा अधिक होने पर यह आधिक्य न्यूनतम वॉछनीय नकद स्तर से आधिक्य को प्रकट करता है। इसके लिए अग्रिमों व ऋणों की मात्रा कम करनी चाहिए।

सीमाएँ  – प्रक्षेपित चिटठ Single तिथि विशेष के कोषों की Need को इंगित करता है। इसके अन्तर्गत वित्तीय वर्ष के दौरान होने वाले वित्तीय परिवर्तनों And Needओं की पूर्णतया उपेक्षा की जाती है।

2. रोकड बजट 

रोकड़ की आवष्यताओं का पूर्वानुमान And नियंत्रण स्थापित करने हेतु रोकड़ बजट Single महत्वपूर्ण तकनीक है इसके अन्तर्गत किसी अवधि विशेष हेतु रोकड़ प्राप्ति And भुगतान का अनुमान लगाया जाता है। रोकड़ प्राप्ति And भुगतान का अनुमान लगाने हेतु व्यवसाय की दीर्घकालीन प्रकृतियों वर्तमान Needओं And भावी सम्भावनाओं तथा अनुसंधान And विकास आदि को आधार बनाया जाता है। गुथमैन मैन व डूगल के Wordों में ‘‘रोकड़ बजट भावी अवधि के लिए, रोकड़ प्राप्तियों And भुगतान का अनुमान है।’’ Meansात रोकड़ बजट संगठन के वित्तीय आइने के समान है। जिसके माध्यम से संगठन में वाँक्षित रोकड़ आगम And निर्गम का description प्रस्तुत Reseller जाता है। रोकड़ बजट तैयार करने की पद्धतियाँ – सामान्य तौर पर रोकड बजट तैयार करने की  पद्धतियाँ हैं।

  1. प्राप्ति And भुगतान विधि – रोकड  पा्रप्ति And भगु तान विधि सवार्प्तिाक सरल And प्रचलित विधि है, इसके अन्तर्गत रोकड़ बजट को दो भागों में वर्गीकृत Reseller जाता है। First भाग के अन्तर्गत रोकड़ प्रात्ति के मदों, राशियों And समय को दर्षाया जाता है। जबकि Second भाग के अन्तर्गत रोकड़ भुगतान के मदोंं, धनराशियों तथा भुगतान के समय का History Reseller जाता है। परिचालन के माध्यम से सृजित रोकड़ राशियाँ, गैर परिचालन राशियाँ, And पूंजीगत सौदों से होने वाली रोकड़ प्राप्तियाँ First पक्ष की महत्वपूर्ण मदें होती हैं द्वितीय भाग के अन्तर्गत नकद क्रय, लेनदार, देयविपल, मजदूरी, वेतन, ब्याज, किराया,लाभांश, आयकर, सम्पत्तिकर, स्थायी सम्पत्तियों का क्रय इत्यादि मदों को सम्मिलित Reseller जाता है। प्रत्येक अवधि की आरम्भिक रोकड़ शेष में उस अवधि की सकल प्राप्तियों को जोड़कर सकल भुगतानों को घटाया जाता है, अन्तर की राशि रोकड़ की अन्तिम शेष होती हैं वर्तमान वर्ष की अंतिम बाकी अगले वर्ष की आरम्भिक बाकी होती है।
  2. समायोजित लाभ हानि विधि –जिन संगठनों में रोकड़ के दीर्घकालीन पूर्वानुमान तैयार किये जाते हैं उनके लिये यह विधि उपयुक्त मानी जाती है यह विधि इस मान्यता पर आध् ाारित है कि संगठन में होने वाले लाभों से रोकड़ की धनराशि में अभिवृद्धि होती है। इस विधि के अन्तर्गत लाभ हानि खाते द्वारा आकलित राशि के आध् ाार पर रोकड़ अन्र्तवाह And रोकड़ बर्हिवाह का समायोजन करते हुए रोकड़ बजट का निर्माण Reseller जाता है। इस विधि को हम रोकड़ प्रवाह description विधि (Cash flow statement method) के नाम से भी जानते हैं। इस विधि के अन्तर्गत रोकड़ बजट का निर्माण करने हेतु प्रत्याषित प्रारम्भिक रोकड़ शेष, समायोजित शुद्ध लाभ, चालू सम्पत्तियों And दायित्वों में परिवर्तन, पूँजीगत प्राप्तियॉं And भुगतान,ऋणपत्रों पर देय ब्याज,And लाभांश इत्यादि मदों सम्बन्ध् ाी सूचनाएं आवश्यक होती हैं। समायोजित लाभ हानि विधि में रोकड़ बजट का निर्माण करने हेतु रोकड़ के शेष में निम्नलिखित मदों को जोड़ने And योगफल में से कतिपय मदों के घटाने के उपरान्त रोकड़ का अन्तिम शेष प्राप्त होता है। रोकेकड़ बजट नमूनूना description Resellerया Resellerया प्रारम्भिक बाकी जोड़िये – अनुमानित शुद्ध लाभ संचय And प्रावधान उपार्जित व्यय ह्रास चालू सम्पत्तियों में कमी चालू दायित्वों में वृद्धि अंशपूजी And ऋण पत्रों का निर्गमन स्थायी सम्पत्तियों के विक्रय से प्राप्त राशि घटाइये – पूंजीगत भुगतान चालू सम्पत्तियों में वृद्धि चालू दायित्वों में कमी लाभांशों का भुगतान स्थायी सम्पत्तियों का क्रम अंतिम रोकड़ वाकी
  3. आर्थिक चिट्ठा विधि  – इस विधि से रोकड़ बजट तैयार करने हेतु बजट आदि की अन्तिम तिथि पर Single प्राक्कलित आर्थिक चिट्ठा तैयार Reseller जाता है इसके अन्तर्गत रोकड़ के अलावा प्राय: All सम्बन्धित मदों का समावेष Reseller जाता है, सम्पत्ति And दायित्व पक्ष का योग करके बाकी ज्ञात की जाती है। यही बाकी रोकड़ की अनुमानित ध् ानराशि होती है। दायित्व पक्ष का योग सम्पत्ति पक्ष के अधिक होने पर अंतर की राशि बैंक शेष प्रस्तुत करता है। यदि दायित्व पक्ष का योग सम्पत्ति पक्ष में कम है तो यह अंतर बैंक अधिविकर्श से (Bank overdraft) की स्थिति को प्रकट करता है।

रोकड  बजट की महत्ता  –

कायशील पूॅंजी के नियोजन निर्देशन And नियंत्रण हेतु रोकड़ बजट Single “ास्त्र के समान है जिसका प्रयोग करके प्रबन्ध तंत्र कोषों के समुचित And मितव्ययी उपयोग को सुनिश्चित कर सकता है। संगठन में उपलब्ध कोषों का अधिकतम कुशलता उपयोग करके संगठन की लाभदेयकता में वृद्धि की जा सकती है। संक्षेप में हम रोकड़ बजट की महत्ता को निम्न Reseller में प्रस्तुत कर सकते हैं।

  1. रोकड़ बजट के माध्यम से हम संगठन की भावी योजनाओं का पूर्वानुमान लगा सकते हैं। 
  2. रोकड़ बजट के माध्यम से संगठन की रोकड़ सम्बन्धी Needओं का नियोजन करके आवश्यक रोकड़ की व्यवस्था अल्पकालीन माध् यमों से की जा सकती है। 
  3. रोकड़ बजट के माध्यम से हम रोकड़ व्ययों पर आसानी से नियन्त्रण स्थापित कर सकते हैं। 
  4. संगठन में प्रबन्धन की वित्तीय कुशलता And अकुशलता का मापन रोकड़ बजट के माध्यम से Reseller जा सकता है।

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