यथार्थ का Means और परिभाषा

यथार्थ का Means और परिभाषा


By Bandey

यथार्थ का सामान्यत: Means-सत्य, वास्तविक वस्तु स्थिति है, किन्तु यथार्थ का विग्रह करने पर यथा + Means, यथा का Means है जिसका जो Means हो, जिसकी जो स्थिति है, जो Reseller है, जो दशा है, जो सत्य है, वही यथार्थ है। ‘यथार्थ’ Word दो पदों के योग से बना है : ‘यथा’ और ‘Means’‘यथा’ अव्यय है जिसका हिन्दी समानार्थी पद है ‘जैसा’ और ‘Means’ वस्तु का द्योतक है। इस प्रकार यथार्थ का शाब्दिक Means हुआ ‘यथावस्तु’। अंग्रेजी में यथार्थ के लिए ‘Fact’ Word समानार्थी है। यथार्थ के पर्याय Reseller में सत्य, वास्तविकता, यथातथ्य आदि पदों का भी प्रयोग Reseller जाता है।

यथार्थ की परिभाषा

रामचन्द्र वर्मा के According यथार्थ का Means है- “जो अपने Means आदि के ठीक अनुReseller हो, ठीक, वाजिब, उचित, जैसा होना चाहिए वैसा, सत्यपूर्वक।” डॉ. हरदेव बाहरी के According यथार्थ का Means “जैसा होना चाहिए ठीक वैसा, वाजिब, उचित, सत्यपूर्वक” है। डॉ. रामस्वReseller रसिकेश ने यथार्थ का Means “सत्य, अवितथ, निर्दोष, निभ्रान्त और उचित” को माना है।

वैब्शटर के According यथार्थ का Means है, “The state or fact of being real, having actual existence, or having actually occurred; a real thing or fact” अंग्रेजी कोश में कामिल बुल्के यथार्थ का Means स्पष्ट करते हुए लिखते हैं- “वास्तविकता, असलियत, यथार्थता, सच्चाई, यथार्थवादिता, यथार्थसत्ता, यथार्थतत्त्व।”  डेनियल ग्रांट यथार्थ के विषय में विचार प्रकट करते हुए लिखते हैं कि “यथार्थ से अभिप्राय ऐसी वस्तु से है जिसे उपलब्ध Reseller जाता है और उपलब्धि Single निरंतर प्रक्रिया है, जिसके कारण उसकी अवधारणा कभी स्थिर नहीं हो सकती।”

पाश्चात्य विचारक हावर्ड फास्ट के According, “यथार्थ रूचि की जगह रुढ़ि, कविता की जगह कुकविता, Creationत्मकता के पूर्ण विकास की जगह कोई लीक नहीं है। यथार्थवाद प्यार, गर्मजोशी, संवेदनशीलता का दुश्मन नहीं इन गुणों का अनुचर है।” एंगेल्स का मत है, “मेरे विचार से यथार्थवाद का आशय लेखक descriptionों और ब्यौरों के सत्य प्रस्तुतीकरण के अलावा प्रतिनिधि पात्रों को प्रतिनिधि परिस्थितियों में सच्चाई के साथ चित्रित करें।” कजामियाँ के According, “यथार्थवाद साहित्य में Single पद्धति नहीं बल्कि Single विचारधारा है।”

Indian Customer विचारक डॉ. नगेन्द्र के According, “यथार्थवाद अंग्रेजी Word ‘रियलिज्म’ का हिन्दी पर्याय है। इसके According साहित्य में जीवन और जगत का यथातथ्य अंकन होना चाहिए।… यह वाद लेखक से निर्वैयक्तिक And निस्संग दृष्टि तथा तटस्थ निरुपण की मांग करता है।”

कालिका प्रसाद का मत है कि “यथार्थवाद, यथार्थ चित्रण का आग्रह करने वाली साहित्यिक विचारधारा है।” त्रिभुवन सिंह जी कहते हैं, “जीवन की सच्ची अनुभूति यथार्थ है, पर इसका कलात्मक अभिव्यक्तिकरण यथार्थवाद है।” Single अन्य स्थान पर त्रिभुवन सिंह कहते हैं, “यथार्थवाद का यदि विस्तृत Means लगाया जाये तो यह साहित्य की वह शैली अथवा प्रवृत्ति है जो सदैव Creationत्मक साहित्य की मूल भित्ति रही है। परन्तु आजकल साहित्य में इसका जिन Meansों में प्रयोग Reseller जा रहा है वह नितान्त इससे भिन्न है।” डॉ. बैजनाथ सिंघल के According, “यथार्थ Single ऐसा भौतिक या व्यावहारिक अनुभव है जो कल्पना, अनुमान अथवा सिद्धांत से अलग हो।”

प्रसिद्ध Indian Customer विद्वान डॉ. गणपतिचन्द्र गुप्त का मत है, “यथार्थवाद का शाब्दिक Means है- ‘जो वस्तु जैसी हो, उसे उसी Means में ग्रहण करना। दर्शन, मनोविज्ञान, सौन्दर्यशास्त्र, कला And साहित्य के क्षेत्र में वह विशेष दृष्टिकोण जो सूक्ष्म की अपेक्षा स्थूल को, काल्पनिक की अपेक्षा वास्तविक को, भविष्य की अपेक्षा वर्तमान को, सुंदर के स्थान पर कुरुप को, आदर्श के स्थान पर यथार्थ को ग्रहण करता है- यथार्थवादी दृष्टिकोण कहलाता है।”

नन्ददुलारे वाजपेयी जी का मत है कि, “यथार्थवाद वस्तुओं की पृथक सत्ता का समर्थक है। वह समष्टि की अपेक्षा व्यष्टि की ओर अधिक उन्मुख रहता है। यथार्थवाद का सम्बन्ध प्रत्यक्ष वस्तुजगत से है।” प्रसिद्ध विद्वान शिवदान सिंह चौहान के According, “महान् साहित्य और कला सदा निर्विकल्प Reseller से जीवन की वास्तविकता को ही प्रतिबिंबित करती है, अत: उसकी Only कसौटी भी उसका यथार्थवाद ही है।”

डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी के According, “कला के क्षेत्र में यथार्थवाद किसी विशेष प्रकार की प्रकाशन-भंगिमा का नाम नहीं है, बल्कि वह Single ऐसी मानसिक प्रवृत्ति है जो निरंतर अवस्था के अनुकूल परिवर्तित और Resellerायित होती रहती है।”

डॉ. रामविलास शर्मा के मतानुसार, “यथार्थवाद को सीमित Means में लेना अनुचित है। उसमें सामाजिक समस्याओं के चित्रण के अलावा प्रकृति-चित्रण भी हो सकता है, संघर्ष के चित्रण के अलावा प्रेम के मुक्तक भी लिखे जा सकते हैं।”

डॉ. मैथिली प्रसाद भारद्वाज का मत है कि, “यथार्थवाद Single चिन्तन प्रक्रिया और विशिष्टकालीन कला-साहित्य के आंदोलन दोनों Reseller में प्राप्त होता है। इस सिद्धांत के According कलाकार को अपनी Creation में यथार्थ का, वस्तु-सत्य का और जीवन-वास्तव का ही चित्रण करना अपेक्षित होता है यथार्थवादी कलाकार असम्भाव्य और अद्भुत को प्रकृति-विरुद्ध मान कर अपनी Creationओं में उन्हें कोई स्थान नहीं देता।”

प्रसिद्ध Indian Customer विद्वान धीरेन्द्र वर्मा भी यथार्थ के सम्बन्ध में अपने विचार प्रकट करते हुए कहते हैं कि, “अपने पारिभाषिक Means में यथार्थवाद जीवन की समग्र परिस्थितियों के प्रति र्इमानदारी का दावा करते हुए भी प्राय: सदैव मनुष्य की हीनताओं तथा कुरुपताओं का चित्रण करता है। यथार्थवादी कलाकार जीवन के सुंदर अंश को छोड़कर असुंदर अंश का अंकन करना चाहता है। यह Single प्रकार से उसका पूर्वाग्रह है।” प्रसिद्ध हिन्दी लेखक प्रेमचंद के विचार भी धीरेन्द्र वर्मा से समानता लिए हुए है।

प्रेमचंद के मतानुसार, “यथार्थवाद चरित्रों को पाठक के सामने उनके यथार्थ नग्न Reseller में रख देता है उसे इससे कुछ मतलब नहीं कि सच्चरित्रता का परिणाम अच्छा होता है या कुचरित्रता का परिणाम बुरा। उसके चरित्र अपनी कमजोरियां और खूबियां दिखाते हुए अपनी जीवन-लीला समाप्त करते हैं। यथार्थवादी अनुभव की बेड़ियों में जकड़ा रहता है। चूँकि संसार में बुरे चरित्रों की प्रधानता है, यहाँ तक की उज्ज्वल से उज्ज्वल चरित्र में भी कुछ दाग दबा रहता है; इसलिए यथार्थवाद हमारी दुर्बलता, हमारी विषमताओं और हमारी क्रुरताओं का नग्न चित्र होता है।” इनसे मिलते-जुलते विचार ही डॉ. सुरेशचन्द्र गुप्त के हैं। उनके According, “यथार्थवादी साहित्य में जीवन की सहजता के अतिरिक्त उसकी कुResellerता और संघर्ष की भी यथानुReseller स्थिति रहती है। साहित्य में जीवन के यथार्थ का अपूर्ण चित्रण नहीं होना चाहिए, अन्यथा उसमें described विषय समाज को अवनति की ओर ले जाने वाले सिद्ध होंगे।”

जयशंकर प्रसाद के According, “यथार्थवाद की विशेषताओं में प्रधान है लघुता की ओर साहित्यिक दृष्टिपात। उसमें स्वभावत: दु:ख की प्रधानता और वेदना की अनुभूति आवश्यक है। लघुता से मेरा तात्पर्य है, साहित्य के माने हुए सिद्धान्त के According महत्ता के काल्पनिक चित्रण से अतिरिक्त व्यक्तिगत जीवन के दु:ख और अभावों का वास्तविक History।”

Indian Customer विद्वानों में डॉ. नगेन्द्र यथार्थवाद को जीवन और जगत का यथातथ्य अंकन मानते हैं; त्रिभुवन सिंह ‘यथार्थ’ को जीवन की सच्ची अनुभूति स्वीकार करते हैं; डॉ. बैजनाथ सिंहल यथार्थ को कल्पना, अनुमान तथा सिद्धान्त से अलग भौतिक या व्यवहारिक अनुभव मानते हैं; डॉ. गणपतिचन्द्र गुप्त के According यथार्थवादी दृष्टिकोण सूक्ष्म की अपेक्षा स्थूल को, काल्पनिक की अपेक्षा वास्तविक को, भविष्य की अपेक्षा वर्तमान को, सुंदर के स्थान पर कुReseller को, आदर्श के स्थान पर यथार्थ को ग्रहण करता है; आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी ‘यथार्थवाद’ का सम्बन्ध प्रत्यक्ष वस्तु-जगत से जोड़ते हैं; डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी यथार्थवाद’ को निरंतर अवस्था के अनुकूल परिवर्तित और रुपायित होती मानसिक प्रवृत्ति का नाम देते हैं; डॉ. रामविलास शर्मा‘यथार्थवाद’ को सीमित Means में लेना अनुचित मानते हैं; धीरेन्द्र वर्मा इसे मनुष्य की हीनताओं और कुResellerताओं का चित्रण स्वीकार करते हैं; श्री शिवदान सिंह चौहान इसे ‘निर्विकल्प’ Reseller से जीवन की वास्तविकता का प्रतिबिम्ब स्वीकार करते हैं; प्रेमचंद सच्चरित्रता और कुचरित्रता के परिणामों को देखे बिना ही यथार्थवाद को चरित्रगत दुर्बलताओं क्रूरताओं और विषमताओं का नग्न चित्र मानते हैं; डॉ. सुरेशचन्द्र गुप्त इसमें जीवन की सहजता के अतिरिक्त उसकी कुरुपता और संघर्ष को भी स्वीकार करते हैं तथा जयशंकर प्रसाद इसे ‘जीवन के दु:ख अभावों’ का History मानते हैं।

विभिन्न मान्यताओं पर विचार करने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि यथार्थ वह अवधारणा है जिसके अंतर्गत किसी वस्तु, स्थिति, घटना And मान्यता को उसके दृश्य Reseller के According जैसे का तैसा प्रकट कर दिया जाता है। विभिन्न स्थितियों के मध्य केवल यथास्थिति को ही महत्ता प्रदान की जाती है। जीवन में जो सत्य हम अनुभव करते हैं वास्तव में वो ही यथार्थ है।

वस्तुत: यथार्थवाद जीवन का यथावत् Reseller प्रस्तुत करने वाली, साहित्यिक विचारधारा अथवा प्रवृत्ति है। यथार्थवादी कलाकार Single प्रकार से Human-समाज और जीवन का अनासक्त और निष्पक्ष फोटोग्राफर होता है। वह कृति को व्यक्तिगत विचारों के प्रचार-प्रसार का साधन नहीं मानता, वरन् जो कुछ उसके आस-पास घटित हो रहा है, उसके प्रकाशन का माध्यम मानता है। उसका प्रयत्न हमेशा ही उन घटनाओं और पात्रों का प्रस्तुतीकरण होता है, जो वास्तविक जगत की प्रतिच्छाया हों। वह असम्भव, वायवी तथा अद्भुत को प्रकृति-विरुद्ध मानकर, उसके चित्र को अनुचित समझकर अपने साहित्य से बहिष्कृत करता है।

अत: समग्रता से सार Reseller में कहा जा सकता है कि सृष्टि में प्रत्यक्ष ज्ञान, वस्तु, स्थिति And वास्तविकता ही यथार्थ है।

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