मृदा प्रदूषण के कारण, दुष्प्रभाव, रोकने के उपाय

भूमि अथवा भू Single व्यापक Word है, जिसमें Earth का सम्पूर्ण धरातल समाहित है किन्तु मूल Reseller से भूमि की ऊपरी परत, जिस पर कृषि की जाती है And Human जीविका उपार्जन की विविध क्रियाएँ करता है, वह विशेष महत्व की है। इस परत अथवा भूमि का निर्माण विभिन्न प्रकार की शैलों से होता है, जिनका क्षरण मृदा को जन्म देता है। जिसमें विभिन्न कार्बनिक तथा अकार्बनिक यौगिकों का सम्मिश्रण होता है। जब Humanीय And प्राकृतिक कारणों से भूमि का प्राकृतिक स्वReseller Destroy होने लगता है, वहीं से भू-प्रदूषण का आरम्भ होता है। इसे पारिभाषिक Reseller में हम कह सकते हैं कि, भूमि के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में ऐसा कोर्इ अवांछित परिवर्तन, जिसका प्रभाव मनुष्य And अन्य जीवों पर पडे़ या भूमि की प्राकृतिक गुणवत्ता तथा उपयोगिता Destroy हो, भू-प्रदूषण कहलाता है। डोक्याशेव के According ‘‘मृदा मात्र शैलों, पर्यावरण, जीवों व समय की आपसी क्रिया का परिणाम है।’’ मिट्टी में विविध लवण, खनिज, कार्बनिक पदार्थ, गैसें And जल Single निश्चित अनुपात में होते हैं, लेकिन जब इन भौतिक And रासायनिक गुणवत्ता में अतिक्रम आता है, तो इससे मृदा में प्रदूषण हो जाता है।

मृदा प्रदूषण के कारण 

  1. भू-क्षरण द्वारा मृदा प्रदूषण : भू-क्षरण मृदा का भयानक शत्रु है, क्योंकि गौरी के According, ‘‘भू-क्षरण मृदा की चोरी And रेंगती मृत्यु है।’’ भू-क्षरण द्वारा कृषि क्षेत्र की ऊपरी सतह की मिट्टी कुछ ही वर्षों में समाप्त हो जाती है, जबकि 6 से.मी. गहरी मिट्टी की पर्त के निर्माण में लगभग 2,400 वर्ष लगते हैं। 
  2. कृषि द्वारा मृदा प्रदूषण : बढ़ती जनसंख्या की खाद्यान्न संबंधी Need की पूर्ति की दृष्टि से गहन कृषि द्वारा अन्न उत्पादन पर बल दिया जा रहा है। 
  3. कीटनाशक और कृत्रिम उर्वरक के द्वारा प्रदूषण : यद्यपि कीटनाशक तथा रासायनिक खाद फसल उत्पादन वृद्धि में सहयोग देते हैं, लेकिन धीरे-धीरे मृदा में जमाव से इनकी वृद्धि होने लगती है, जिससे सूक्ष्म जीवों का विनाश होता है तथा मृदा तापमान में वृद्धि से मृदा की गुणवत्ता Destroy होने लगती है। 
  4. घरेलू तथा औद्योगिक अपशिष्ट : घरेलू तथा औद्योगिक संस्थानों से निकले अपशिष्ट पदार्थ, जैसे-सीसा, ताँबा, पारा, प्लास्टिक, कागज आदि मृदा में मिलकर इसे दूषित करते हैं। 
  5. वनोन्मूलन द्वारा मृदा प्रदूषण : वन मृदा निर्माण में जैविक तत्व प्रदान करते हैं और भू-क्षरण को नियंत्रित करते हैं। जिन क्षेत्रों में वनों का विनाश बडे़ स्तर पर हुआ है, वहाँ की मृदा के जैविकीय गुण समाप्त होते जा रहे हैं।
  6. अधिक सिंचार्इ द्वारा मृदा प्रदूषण : कृषि में सिंचार्इ की नहरों का अधिक महत्व है, लेकिन कृषि के लिए वरदान देने वाली नदियाँ व नहरें ही अभिशाप सिद्ध हो रही हैं।
  7. मरूस्थलीयकरण : मरूस्थलों की रेत हवा के साथ उड़ जाती है और दूर तक उर्वरक भूमि पर बिछ जाता है। इस प्रकार बलुर्इ धूल के फैलाव से मरूस्थलों का विस्तार होता है। इस प्रकार धूल उर्वरा भूमि का विनाश कर उसकी उत्पादकता को घटाती है।

मृदा प्रदूषण के दुष्प्रभाव 

भू-प्रदूषण के दुष्प्रभाव बहुआयामी हैं। Single ओर इससे पर्यावरण प्रदूषित होता है, तो दूसरी ओर मनुष्य के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ता है। भू-प्रदूषण के दुष्प्रभाव हैं-

  1. भू-प्रदूषण अन्य प्रकार के प्रदूषणों का कारक है। विशेषकर वायु And जल प्रदूषण में इसके द्वारा वृद्धि होती है। 
  2. कूड़े-करकट के सड़ने-गलने से अनेक प्रकार की गैसें And दुर्गन्ध निकलती है, जो चारों ओर के वातावरण को प्रदूषित कर देती है। इस गन्दगी में यदि रसायन मिश्रित होते हैं, तो उनसे भी हानिकारक गैसें निकलती हैं।
  3. विभिन्न प्रकार के अपशिष्ट पदार्थ शहर की नालियों से बहकर जल स्त्रोतों में पहुँच जाते हैं या सीधे ही इनमें डाल दिये जाते हैं, जिससे जल प्रदूषण अत्यधिक होता है। 
  4. अपशिष्ट पदार्थों को समुद्रों में डाल देने की प्रवृत्ति सामान्य है, किन्तु इनका निरन्तर उनमें डालना And मात्रा में वृद्धि के कारण सामुद्रिक पारिस्थितिक तंत्र में असंतुलन आता जा रहा है। 
  5. भू-प्रदूषण का विपरीत प्रभाव भूमि की उर्वरा शक्ति पर पड़ता है। विशेषकर औद्योगिक अपशिष्टों द्वारा, क्योंकि उसमें अनेक अघुलनशील And हानिकारक तत्व होते हैं। 
  6. कूड़ा-करकट के कारण अनेक बीमारियों को फैलाने वाले जीवाणुओं का जन्म होता है, जिनसे टी.बी., मलेरिया, हैजा, मोतीझरा, पेचिश, आँखों के रोग, आन्त्रशोध आदि बीमारियों का जन्म होता है।

मृदा प्रदूषण को रोकने के कुछ उपाय

  1. फसलों पर छिड़कने वाली विषैली दवाओं का प्रयोग प्रतिबंधित Reseller जाये। 
  2. गाँव तथा नगरों में मल And गन्दगी को Singleत्रित करने के लिए उचित स्थान होने चाहिए। 
  3. कृत्रिम उर्वरकों के स्थान पर परम्परागत खाद का प्रयोग कृषि भूमि में होना चाहिए। 
  4. खेतों में पानी के निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। नहरों व नालियों को पक्का Reseller जाये। नहरों के निर्माण के समय पारिस्थितिक को ध्यान में रखा जाये। 
  5. वनों के विनाश पर प्रतिबंध लगाया जाये, साथ ही वृक्षारोपण को प्रोत्साहन देकर मिट्टी निर्माण प्रक्रिया में आये गतिरोध को दूर Reseller जाये। 
  6. भू-क्षरण को रोकने के All उपायों पर कार्य प्रारम्भ हो। 
  7. बाढ़ नियंत्रण के लिए योजना बनार्इ जाये।  
  8. प्रदूषित जल का वृहत भूमि पर बहाव नियंत्रित करना चाहिए। 
  9. ढालू भूमि पर सीढ़ीनुमा कृषि पद्धति अपनाने पर बल देना चाहिए

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *