मनोवैज्ञानिक शोध का Means And विशेषताएँ

शिक्षा, मनोविज्ञान तथा समाजशास्त्र ऐसे व्यवहारपरक विज्ञान (Behavioural Science) है जिनमें वैज्ञानिक विधियों द्वारा ही अनेकों प्रकार के शोधकार्य किये जाते हैं । ऐसी विधियों द्वारा लिये गये शोध कार्यो को वैज्ञानिक शोध कहते हैं। वैज्ञानिक शोध क्या है ? इस पर Discussion करने से पूर्व ये जान लेना आवश्यक है कि विज्ञान किसे कहते हैं And वैज्ञानिक विधि क्या है ?

स्थिर दृष्टिकोण में वैज्ञानिक वर्तमान सिद्धान्तों, नियमों, परिकल्पनाओं (Hypothesis) आदि के ज्ञान भण्डार में नये-नये तथ्यों की खोज कर उस ज्ञान भण्डार का विस्तार करता है जबकि गतिमान दृष्टिकोण में समस्या समाधान के नये-नये तरीकेां पर जोर दिया जाता है Meansात किसी भी समस्या के समाधान में नर्इ-नर्इ विधियेां को प्रयोग Reseller जाता है। यह विज्ञान का क्रियाशील पक्ष है, इसे स्वानुभाविक दृष्टिकोण (Heuristic view) भी कहते हैं। कुल मिलाकर विज्ञान का मूल उद्देश्य प्राकृतिक घटनाओं की वैज्ञानिक व्याख्या करना है। इस वैज्ञानिक व्याख्या को ही वैज्ञानिक सिद्धान्त कहते हैं।

विज्ञान क्या है ? ये जानने के बाद अब हम वैज्ञानिक विधि के बारे में Discussion करेंगे । वैज्ञानिक विधि उस विधि को कहते हैं जिसमें किसी भी विशयवस्तु का अध्ययन नियंत्रित परिस्थिति में Reseller जाता है तथा उससे प्राप्त परिणामों का वैध एवम् विस्तश्त सामान्यीकरण Reseller जाता है।

उपरोक्त परिभाषा से स्पष्ट है कि किसी भी वैज्ञानिक विधि में दो बातें प्रमुख होती है, पहली यह कि अध्ययन नियंत्रित परिस्थति में हो और दूसरी यह कि अध्ययन से प्राप्त परिणाम का सामान्यीकरण वैध (Valid) And विस्तृत हो। यहाँ नियन्त्रित परिस्थिति से तात्पर्य ऐसी परिस्थिति से है जिसके अन्तर्गत हम सिर्फ उसी चर के प्रभाव का अध्ययन करेंगे जिसका प्रभाव हम देखना चाहते हैं तथा अन्य चरों के प्रभाव को नियंत्रित कर देगे ताकि उनका केार्इ भी प्रभाव उस अध्ययन पर न पड़ सके। इसके अलावा अध्ययन से प्राप्त परिणाम का विस्तृत And वैध सामान्यीकरण से तात्पर्य है कि उन परिणामों को उन All लोगों पर लागू Reseller जा सके जो उस अध्ययन में सम्मिलित तो नहीं किये गये परन्तु जिनकी विषेशताएं उन व्यक्तियों से मिलती-जुलती है जिन्हें अध्ययन में शामिल Reseller गया था।

वैज्ञानिक विधि के सोपान 

कोर्इ भी विधि वैज्ञानिक विधि तभी हो सकती है जब उसमें निष्चित And उपयोगी चरणों का समावेश आवश्यक Reseller से Reseller जाय –

1. समस्या की पहचान – 

किसी भी वैज्ञानिक विधि में First समस्या की निष्चित पहचान कर ली जाती है। Meansात् वास्तव में हम जिस समस्या या उससे सम्बन्धित चरों का अध् ययन करना चाहते हैं वो वही है या नहीं। तत्पष्चात् अपने अध्ययन के अनुReseller समस्या में सम्मिलि Wordों का परिभाशीकरण Reseller जाता है। ऐसा करने के लिए शोधकर्ता समस्या से सम्बन्धित ज्ञान And सूचनाओं की आलोचनात्मक व्याख्या करता है।

2. परिकल्पना का निर्माण – 

समस्या पहचान के बाद परिकल्पना का निर्माण Reseller जाता है। किसी भी समस्या की परिकल्पना उसका सम्भावित समाधान होती है।

3. निगमनात्मक चिंतन द्वारा परिकल्पना से Single आशय तक पहुँचना- 

वैज्ञानिक विधि के इस Third चरण में निगमनात्मक चिंतन द्वारा प्रस्तावित परिकल्पना के Reseller में समस्या के सुझावात्मक समाधान (Suggestedsolution of the problem) पर पहुँचने की कोशिश की जाती है। यहाँ यह तय Reseller जाता है कि यदि परिकल्पना सच हुर्इ, तो किन तथ्यों का प्रेक्षण Reseller जायेगा तथा किन-किन तथ्यों का प्रेक्षण नहीं Reseller जायेगा।

4. सम्बन्धित प्र्रमाणों And कारणों का संग्रह And विश्लेषण – 

इस चरण में प्रस्तावित परिकल्पना से सम्बन्धित संग्रहीत कारणों And प्रमाणों का निगमन विधि (Deductive Method) द्वारा विष्लेशण Reseller जाता है।

5. परिकल्पना की जाँच – 

वैज्ञानिक विधि के इस चरण में चतुर्थ सोपान से प्राप्त आँकड़ो के आधार पर परिकल्प्ना की जाँच की जाती है। यदि परिकल्पना जाँच के आधार पर सही सिद्ध होती है तो उसे स्वीकार कर लेते हैं और यदि परिकल्पन जाँच के आधार पर सत्य सिद्ध नहीं होता है या उसमे कुछ कमी हेाती है तो उस कमी केा दूर कर सही परिकल्पना का निर्माण करने के लिए उसका परिमार्जन Reseller जाता है।

अत: उपरोक्त चरणों के आधार पर यह समझा जा सकता है कि केार्इ भी वैज्ञानिक विधि उपरोक्त चरणों पर ही आधारित होगी।

वैज्ञानिक शोध का Means And विशेषताएँ

जब किसी समस्या या प्रष्न को क्रमबद्ध And वस्तुनिष्ठ (Objective) ढ़ंग से सुलझाने का प्रयास Reseller जाता है तो इस क्रिया केा ही वैज्ञानिक शोध कहते हैं। करलिंगर ने शोध के Means को स्पष्ट करते हुये कहा कि – ‘‘स्वभाविक घटनाओं का क्रमबद्ध, नियंत्रित आनुभाविक And आलोचनात्मक अनुसन्धान जो घटनाओं के बीच कल्पिन संबंधों के सिद्धान्तों And परिकल्पनाओं द्वारा निदेशित होता है, केा वैज्ञानिक शोध कहा जाता है।’’

इसी प्रकार बेस्ट And काहन ने वैज्ञानिक शोध को इस प्रकार से परिभाषित Reseller है – ‘‘वैज्ञानिक शोध किसी नियंत्रित प्रेक्षण का क्रमबद्ध And वस्तुनिष्ठ अभिलेख And विष्लेशण है जिनके आधार पर सामान्यीकरण, नियम या सिद्धान्त विकसित Reseller जाता है तथा जिससे बहुत सारी घटनाओं, जो किसी खास क्रिया का परिणाम या कारण हो सकती है, को नियंत्रित कर उनके बारे में पूर्वकथन Reseller जाता है।’’

  1. अत: कहा जा सकता है कि (वैज्ञानिक) शोध से तात्पर्य उस क्रिया या क्रियाओं से है जिनके माध्यम से व्यवस्थित Reseller से किसी समस्या का निराकरण करने का प्रयास Reseller जाता है तथा प्राप्त निराकरण किसी नये सिद्धान्त का प्रतिपादन या पुश्टि करता है। वैज्ञानिक अनुसंधान की उपरोक्त परिभाषाओं के अतिरिक्त इसकी विशेषतायें है – अनुसन्धान का उद्देश्य किसी समस्या का समाधान ढँढ़ना अथवा दो या दो से अधिक चरों के आपसी सम्बन्धों को ज्ञात करना है। 
  2. अनुसन्धान केवल सूचनाओं की पुन: प्राप्ति या संग्रहण नहीं है अपितु अनुसन्धान में व्यापीकरण, नियमों या सिद्धान्तों के विकास पर बल दिया जाता है। 
  3. अनुसन्धान किसी दैव वाणी या मत को ज्ञान प्राप्ति की विधि नहीं मानता है बल्कि ये उन बातों को स्वीकार करता है जिन्हें प्रेक्षण द्वारा परखा जा सके। 
  4. अनुसन्धान में आँकड़ो के संग्रहण के लिए वैध उपकरणेां And विधियों का प्रयोग Reseller जाता है तत्पष्चात् इन आँकड़ो का शोधन, संलेखन, अभिकलन व विश्लेषण Reseller जाता है। 
  5. अनुसंधान, प्राथमिक सूत्रों से प्राप्त नर्इ सूचनायें प्राप्त करना या विद्यमान सूचनाओं से नया प्रयोजन प्रस्तंुत करता है। 
  6. अनुसंधान में निपुणता की Need होती है। अनुसंधानकर्ता केा यह ज्ञान होना चाहिये कि समस्या के बारे में First से कौन-कौन सा ज्ञान या सूचनायें मौजूद है। वह संबंधित साहित्य का अध्ययन करता है। उसे All पारिभाशिक Wordों, धारणाओं और तकनीकी कुषलता का पूर्णज्ञान होता है ताकि वह संकलित सूचनाओं And आँकड़ों का विश्लेषण कर सके। 
  7. वैज्ञानिक अनुसंधान वस्तुनिष्ठ And तर्कसंगत हेाता है। परिकल्पना को सिद्ध करने के स्थान पर उसके परीक्षण पर बल दिया जाता है।
  8. इससे पुनरावृत्ति की संभावना होती है। उपरोक्त विशेषताओं के अवलेाकन से यह स्पष्ट है कि वैज्ञानिक अनुसंधान द्वारा प्राप्त ज्ञान अति उच्च स्तर का होता है। यह कल्पनाओं, विश्वास And अप्रमाणित बातों पर आधारित नहीं होता है। ऐसे ज्ञान अर्जन के लिये अनुसंधानकर्ता को अपनी विद्धता का विकास करना व सही प्रेक्षण व कर्मठता का परिचय देना चाहिये। साक्ष्यों को Singleत्रित कर उनका अध्ययन करने, तार्किक विश्लेषण कर सम्बन्धों को पहचानने, विचारों में मौलिकता और स्पष्ट उद्देश्य के साथ अपने लक्ष्य को निर्धारित कर उसे प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिये।

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