भारत सरकार की विभिन्न योजनाएं

इस में हम भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों की उन योजनाओं की जानकारी प्राप्त करेगें जो कि विभिन्न योजनाओं के माध्यम से गैर सरकारी संगठनों को अनुदान राशि प्रदान करते हैं और जिनका मकसद् विभिन्न योजनाओं का लाभ आम जन तक पहॅुचाना होता है जिसमें मध्यस्थ की भूमिका में गैर सरकारी संगठन रहते हैं। यहॉ हमने भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों की अनेक योजनाओं की Discussion की है परन्तु अत्यन्त विस्तृत Discussion सम्भव न हो सकी है। इस पर विस्तृत Discussion हेतु आपको इन योजनाओं को विस्तार में पढ़ना होगा परन्तु यहॉ आप इन योजनाओं And इनके कार्यकलापों से अवश्य अवगत हो सकेगें।

कृषि मंत्रालय की योजनायें 

कपास समबंधी तकनीकी मिशन के मिनी-मिशन-दो के अन्तर्गत सघन कपास विकास कार्यक्रम के उद्देश्य : (क) तकनोलॉजी के हस्तांतरण, (ख) बढ़िया बीजों की आपूर्ति (ग) IPM , एगतिविधियों में उन्नति की पर्याप्त मात्रा में और समय पर आपूर्ति उपलब्ध कराने के माध्यम से प्रति यूनिट क्षेत्र पैदावार बढ़ाना। कृषि और सहकारिता विभाग देश में तेलहनों, दालों, मक्का और खजूर-तेल का उतपादन बढ़ाने के लिये ज्डव्च्-ड के तहत केन्द्रीय प्रायोजित योजना का कार्यान्वयन कर रहा है: ;

  1.  तेलहन उत्पादन कार्यक्रम (OPP) ;
  2.  राष्ट्रीय दाल विकास परियोजना (NPDP) ;
  3.  तीव्र गति युक्त (Accelerated) मक्का विकास कार्यक्रम (AMDP) ;
  4.  खजूर तेल विकास कार्यक्रम (OPDP) 

दसवीं पंचवष्र्ाीय योजना में इन्हें Single केन्द्रीय प्रायोजित सघन योजना (ISOPOM) में मिला दिया गया है।

बायोफर्टिलाइजर्स के विकास And उपयोग सम्बंधी राष्ट्रीय परियोजना के उद्देश्य :
बायोफर्टिलाइजर्स का उत्पादन And वितरण ;

  1. विभिन्न प्रकार के बायो-फर्टिलाइजर्स के मानकों का विकास तथा इसकी गुणवता को बेहतर बनाना ;
  2. बायोफर्टिलाइजर्स के कारखानों की स्थापना के लिए अनुदान देना ;
  3.  प्रशिक्षण And प्रचार 

कृषि संबंधी विस्तार सेवाओं को मजबूत बनाने के उप घटक:स्वैच्छिक संगठनों के माध्यम से कृषि विस्तार-

  1. किसान संगठनों के माध्यम से कृषि-विस्तार 
  2. स्वदेशी तकनीकी जानकारी को मजबूत बनाना 
  3. कृषि विस्तार की निगरानी और मूल्यांकन को मजबूत बनाना 

लघु-कृशक कृषि-व्यापार संघ के उद्देश्य : अलग-अलग तरह के कृषि-व्यापार को समर्थन देकर ग्रामीण इलाकों में आय और रोजगार बढ़ाने के लिये नये से विचारों को प्रोत्साहन देना। 

झूम खेती क्षेत्र के लिए वाटरषैट विकास परियोजना के अन्तर्गत ऋराज्य प्लान योजना के लिए अतिरिक्त केन्द्रीय सहायता के उद्देश्य:- 

  1. वाटर शैड बनाकर भूमि और जल का संरक्षण करके झूम खेती क्षेत्र के पहाड़ी ढ़लानों को बचाना और भूमि के क्षरण को रोकना।
  2. झूम खेती करने वालों (झूमिया परिवार ) को विकसित उत्पादक भूमि और खेती के सुधरे हुए उपायों को उपलब्ध कराना।
  3. घरेलू And भूमि आधारित गतिविधियों के माध्यम से झूम खेती करने वाले लोंगों के सामाजिक-आर्थिक स्तर में सुधार करना।
  4. भूमि की क्षमता का पर्याप्त उपयोग तथा बेहतर टेकनोलॉजी उपलब्ध कराकर झूम खेती के दुश्प्रभावों को कम करना। 

भारत में कीटनाशक प्रबन्धन प्रयास को सुदृढ़ बनाने उन्हें आधुनिक बनाने सम्बंधी योजना के उद्देश्य: रासायनिक कीट नाशकों के विवेकहीन और मनमाने उपयोग को कम करने की दृश्टि से, भारत सरकार ने Singleीकृत कीटनाशक प्रबन्धन प्रणाली अपनार्इ है जिसमें यांत्रिकी और जैविक तरीके अपनाये गये हैं और रासायनिक कीटनाशकों का Needनुसार उपयोग करने पर ध्यान दिया गया है जिससे देश में पौधा संरक्षण का उद्देश्य पूरा हो सके। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए देश में पर्याप्त संख्या में बायो कंट्रोल प्रयोगशालायें स्थापित की जानी आवश्यक है। भारत सरकार ने इन प्रयोगशालाओं को स्थापित करने के लिए गैर-सरकारी संगठनों का सहयोग लेने का निर्णय Reseller है और इस प्रयोजनार्थ उन्हें उपकरणों की खरीद के लिये सहायता- अनुदान देने का भी निर्णय Reseller है। उत्पादन और फसल के बाद प्रबन्धन के माध्यम से वाणिज्यिक बागवानी का विकास: राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड से उन परियोजनाओं को वित्तीय सहायता दी जायेगी जो बागवानी उत्पादों का उच्चस्तरीय वाणिज्यिक उत्पादन करेंगे। इसमें हार्इ डैन्सिटि प्लान्टेशन, हार्इटैक कल्टीवेशन, वर्षा आधारित उत्पादन, फलों, सब्जियों आदि के बेहतर बीज के लिये नस्ररी प्रबंधन, संकर बीजों का उत्पादन, आर्गेनिक फार्मिंग, बागवानी में प्लास्टिक का उपयोग, बायोतकनीक शामिल है। इसके अलावा विभिन्न सम्बंधित क्षेत्रों में बेहतर वैज्ञानिक प्रगति वाली परियोजनायें भी वित्तीय सहायता की पात्र होंगी। इसके साथ-साथ वे परियोजनायें भी बोर्ड की पूंजीगत निर्देश राज सहायता की पात्र होंगी जो उत्पादन के ढ़ाचे, फसलों की देखभाल करने, उनके परिश्करण And विपणन के विकास तथा बागवानी से सम्बन्धित उद्योगों के विकास में लगी हुर्इ हों। 

शीत भंडारों/बागवानी उत्पादों के लिये भंडारों के निर्माण/विस्तार/आधुनिकीकरण के लिये पूंजीगत निवेष राजसहायता: शीत भंडारों में नियंत्रित वातावरण और संशोधित वातावरण भंडार भी शामिल हैं जो प्याज आदि के लिये मदर-स्टोरेज के Reseller में काम करते हैं। 

बागवानी को बढ़ावा देने के लिये तकनोलॉजी का विकास और इसका अन्तरण : इस योजना में निम्नलिखित कार्यो के लिये सहायता दी जाती है: 

  1. नर्इ तकनोलॉजी (संकल्पना ) को लागू करना। 
  2. प्रगतिशील कृशकों के दौरे
  3. बढ़ावा देने वाली और विस्तार सम्बंधी गतिविधियां
  4. भातर/विदेश से विशेषज्ञों की संवायें 
  5. तकनोलॉजी की जानकारी 
  6. सेमीनारों/प्रदर्शनियों में भाग लेना 
  7. उद्यान पंडित प्रतियोगिताएं 
  8. प्रचार और फिल्में 
  9. विदेशों में अध्ययन दौरे 
  10. तकनोलॉजी का प्रभावी अन्तरण के लिये वैज्ञानिकों को मानदेय 

बागवानी फसलों के लिये सूचना-सेवा : इस समय All 33 बाजार सूचना केन्द्र अपने अपने बाजारों में बागवानी उत्पाद पहंचु ने और उनकी कीमतों के बारे में सूचना इक्कठठ् ा कर रहे हैं और ये केन्द्र बोर्ड के गुड़गांव मुख्यालय को यह सूचना भेज रहे है। र्इ-मेल और फैक्स से आने वाली सूचनायें भी Singleत्रित की जाती हैं और इसका विष्लेशण Reseller जाता है। इस समय All वाणिज्यिक और मौसमी फलों And सब्जियों को इस प्रक्रिया में शामिल Reseller जाता है। इन सूचनाओं के आधार पर बोर्ड आगे आने वाले वर्ष के लिये फसल उत्पादन की भविश्यवाणी करता है। 

बागवानी प्रोत्साहन सेवा : अध्ययन/सर्वेक्षण 

  1. बागवानी के विकास के लिये तकनीकी व आर्थिक सम्भाव्यता अध्ययन।
  2. बाजारों का अध्ययन। 
  3. परियोजना बनाना, उसको कार्यान्वित करना और उसका मूल्यांकन करना, आदि। 
  4. राष्ट्रीय बोर्ड द्वारा अध्ययन। 

सहायता का स्वReseller :इन अध्ययनों के लिये राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड लागत की 100: सहायता करता है। परम्परागत उद्योगों के पुनरूद्धार के लिये धनराशि सम्बंधी योजना के उद्देश्य : वर्ष 2005-06 से शुरूआत करके 5 वर्ष की अवधि में देश के विभिन्न भागों में परमपरागत उद्योगों को सामूहिक विकसित करना। 

  1. परमपरागत उद्योगों को अधिकाधिक प्रतिस्पर्धा जनक बनाना ताकि उनके उत्पाद बाजार में लाभप्रद मूलय में अधिक बिक सकें तथा इनमें काम करने वाले कारीगरों और उद्यमियों को निरन्तर रोजगार प्राप्त हो सके। 
  2. स्थानीय उद्यमियों की भागीदारी से उद्योग समूह की स्थानीय प्रशासन प्रणाली को मजबूत बनाना ताकि वे स्वयं ही विकास की पहल कर सकें। 
  3. नवीन और परमपरागत कार्यकुशलता, बेहतर तकनोलॉजी, बेहतरीन प्रक्रिया, बाजार की सूचना और सरकारी, गैर-सरकारी साझेदारी के नये तरीके विकसित करना ताकि इनका लाभ प्राप्त Reseller जा सकें। 

इस योजना से कारीगरों, कामगारों, मषीन बनाने वालों, कच्चा माल उपलब्ध कराने वालों, उद्यमियों, परम्परागत उद्योगों में लगे हुये संस्थागत और निजी व्यापार विकास सेवा उपलब्ध कराने वालों और चमड़ा तथा मिट्टी के बर्तन बनाने के उद्योग सहित खादी, जूट और ग्राम उद्योगों के चुने हुये समूह में काम करने वालों आदि को लाभ प्राप्त होगा। इस योजना में उन समूहों का चयन Reseller जाएगा जहां 500 लाभाथ्र्ाी परिवार रहते हैं और जिनके सदस्य कारीगर छोटे-छोटे उद्यमी, कच्चे माल की सप्लार्इ करने वाले व्यापारी सेवा उपलब्ध कराने वाले व्यक्ति आदि हों। 

नोडल ऐजेंसी: इस योजना के लिए खादी और ग्रामोद्योग आयोग और जूट बोर्ड को नोडल एजेन्सी के Reseller में नामित Reseller जायेगा। फिर ये एजेन्सियां कार्यान्वयन एजेंसियों ( IA ) का चयन करेंगी। नोडल एजेंसी चुनी गर्इ कार्यान्वयन एजेंसियों को धनराशि वितरण के लिये और योजना की निगरानी के लिए जिम्मेदारी दें। 

कार्यान्वित ऐजेंसियां : वे गैर-सरकारी संगठन केन्द्र और राज्य सरकार की संस्थायें तथा अर्ध-सरकारी संस्थायें 

ग्राम उद्योग समूह को बढ़ावा देने के कार्यक्रम ग्रामीण उद्योग सेवा केन्द्र उद्देश्य : इसका उद्देश्य समूह में खादी और ग्रामोद्योग गतिविधियों में पिछड़े-अगड़े सम्पर्क उपलब्ध कराना तथा ग्रामीण समूहों को सुदृढ़ बनाने के लिये कच्चे माल सम्बन्धी सहायता देना, कार्य कुशलता का स्तर बढ़ावा, प्रशिक्षण, क्वालिटी कंट्रोल, जाँच सुविधायें आदि उपलब्ध कराना है। 

प्रधान मंत्री रोजगार योजना : आर्थिक Reseller से कमजोर वर्गो के शिक्षित युवाओं को स्वरोजगार उपलब्ध कराने के लिये 2 अक्तूबर 1993 को यह योजना शुरू की गर्इ थी। इस योजना का उद्देश्य उद्योग, सेवा और व्यापार क्षेत्र में स्वरोजगार उद्यम स्थापित करने के लिये पात्र युवकों को सहायता प्रदान करना है। यह योजना शहरी और ग्रामीण क्षेत्र दोनों के लिये है। 

इस योजना के अन्तर्गत पात्र युवकों की आयु, शैक्षिक योग्यता, पारिवारिक आय तथा उनके निवास स्थान आदि को ध्यान में रखते हुये सहायता दी जाती है। उद्योग क्षेत्र में 5 लाख रू तक की कोर्इ परियोजना चलाने के लिये कोलेटरल की Need होगी। धनराशि की वापसी सामान्य ब्याजदर के आधार पर 3 से 7 वर्ष की अवधि में दी जायेगी। महिलाओं सहित कमजोर वगांर् े को पा्र थमिकता दी जायेगी। इस योजना में (SC/ST ) के लाभार्थियों की संख्या 22.5: तथा अन्य पिछड़ा वर्ग की संख्या 27: से कम नहीं होनी चाहिये। प्रत्येक ऋण प्राप्त उद्यमी को समुचित प्रशिक्षण दिया जायेगा। ग्राम पंचायतों जैसी संस्थाओं को सम्बंधित क्षेत्र में स्थित उम्मीदवारों को चुनने और उनकी सिफारिश करने का अधिकार होगा ताकि सही व्यक्ति को ऋण प्राप्त हो सके और ऋण वसूली भी समुचित Reseller् से हो सके। बैंक ों के साथ-साथ जिला उद्योग केन्द्र और उद्योग निदेशालय इस योजना के कार्यान्वयन के लिये मुख्य Reseller से जिम्मेदार होंगे। 

ग्रामीण रोजगार सृजन कार्य : मर्इ 1994 में प्रस्तुत की गर्इ उच्चाधिकार प्राप्त समिति की सिफारिषों के आधार पर खादी And ग्रामोद्योग आयोग के 1 अप्रैल 1995 से ( KVI ) क्षेत्र में 20 लाख रोजगार उत्पन्न कराने के लिये इस योजना की शुरूआत की थी। 

उद्देश्य : 

  1. ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन करना, 
  2. ग्रामीण बेरोजगार युवकों में उद्यमीय क्षमता और दृश्टिकोण विकसित करना, 
  3. ग्रामीण औद्योगीकरण का लक्ष्य प्राप्त करना, 
  4. ग्रामीण उद्योगों के लिये अधिकाधिक ऋण उपलब्ध कराने के लिये वित्तीय संस्थाओं की भागीदारी को सुलभ बनाना। 

उपभोक्ता सभा : यह योजना 2002 में प्रारम्भ की गर्इ थी। इसके According सरकार से मान्यता प्राप्त बोर्डो/विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध प्रत्येक मिडिल/हार्इ/हायर सेकेन्ड्री स्कूल/कालेज में Single उपभोक्ता क्लब स्थापित Reseller जायेगा। इस योजना को 1.4. 2004 से विकेन्द्रीकृत करके राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों की सरकारों को सांपै दिया गया है। इस योजना के अधीन प्रत्येक उपभोक्ता क्लब का 10,000रू का अनुदान दिया जा सकता है। All इच्छुक गैर-सरकारी संगठन ( छळव्ेध्टण्ब्ण्व्े ) अपने-अपने राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के खाद्य, सार्वजनिक वितरण और उपभोक्ता कल्याण विभाग में तैनात नोडल अधिकारी को आवेदन दे सकेंगे। 

उपभोक्ता संरक्षण और उपभोक्ता कल्याण में अनुसंधान संस्थाओं/विश्वविद्यालयों/ कालेजों के सहयोग को बढ़ावा देने की योजना उद्देश्य : –

  1. उपभोक्ता कल्याण के क्षेत्र में अनुसंधान And मूल्यांकन अध्ययन प्रायोजित करना। 
  2. उपभोक्ताओं की व्यवहारिक समस्याओं का पता लगाना।
  3. उपभोक्ताओ के सामने आने वाली व्यवहारिक समस्याओं का हल उपलब्ध कराना। 
  4. उपभोक्ताओं के संरक्षण Andकल्याण हेतु नीति/कार्यक्रम/योजना बनाने के लिये अपेक्षित जानकारी उपलब्ध कराना।
  5. अनुसंधान और मूल्यांकन अध्ययनों के परिणामों तथा अन्य संबंधित साहित्य के प्रकाशन के लिये सहायता उपलब्ध कराना।
  6. उपभोक्ताओं से सम्बंधित मामलों पर सेमीनारों/कार्यशालाओं/सम्मेलनों को प्रायोजित करना तथा इनके लिये सहायता मंजूर करना। 

ग्रामीण अनाज बैंक योजना उद्देश्य : इस योजना का मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक आपदा अथवा कमी वाले मौसम के दौरान होने वाली भूखमरी से Safty प्रदान करना है। 

मुख्य विशेषतायें : 

  1. अनाज बैंक ों को जैसा कि बाढ़ बहुल, गर्म और सर्द रेगिस्तानी, आदिवासी And दूरस्थ पहाड़ी क्षेत्रों में स्थापित Reseller जाना है। ग्रामों में अनाज की कमी वाले क्षेत्रों में गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले All इच्छुक परिवारों को इसमें शामिल Reseller जायेगा।
  2. ग्राम पंचायतें/ग्राम सभा अथवा राज्य सरकारों द्वारा अनुमोदित गैर-सरकारी संगठन इन बैंक ों का संचालन करने के पात्र होंगे। ऐसी प्रत्येक कार्यकारी समिति में Single महिला सदस्य अवश्य रहेगी। 

घटक:Single अनाज बैंक को तैयार करने की अनुमानित लागत 60,000 Resellerये है। छात्रावासों और कल्याणकारी संस्थाओं को अनाज भेजने की योजना: छात्रावासों/कल्याण संस्थाओं Meansात् ऐसे गैर-सरकारी संगठन/धर्मार्थ संस्थाओं, जो बेघर लोगों की सहायता करती है की Needओं को पूरा करने के लिये राज्यों आदि को “ गरीबी रेखा के नीचे” के अन्तर्गत आवंटित कोटे से 5: और अधिक अनाज दिया जाता है। यह योजना 2002-03 में शुरू की गर्इ थी। 

भवन निर्माण और उपकरणों के लिये सांस्कृत व स्वैच्छिक संस्थानों को दी जाने वाली वित्तीय सहायता की योजना के उद्देश्य : भवन निर्माण और उपकरणों को खरीदने के लिये अनुदान उन सांस्कृतिक संस्थाओं को देना जो कि डांस, ड्रामा, थियेटर, संगीत, ललित कला जैसे क्षेत्रों में कार्यरत हैं। 

बौद्ध और तिब्बती संस्कृति And कला के संरक्षण के लिये वित्तीय सहायता योजना के उद्देश्य : इस योजना का उद्देश्य बौद्ध/तिब्बती संस्कृति और परम्पराओं को बढ़ावा देने और इसके वैज्ञानिक विकास में लगे हुये मोनास्ट्रीज सहित स्वैच्छिक बौद्ध/तिब्बती संगठनों को तथा सम्बंधित क्षेत्रों में अनुसंधान कार्यक्रमों के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करना है। 

हिमालय की सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण और विकास की योजना के उद्देश्य : इस योजना का उद्देश्य हिमालय की सांस्कृतिक धरोहर को बढ़ावा देना इसका संरक्षण करना और इसको Windows Hosting करना हैं, जिसके लिये संस्थाओं And स्वैच्छिक संगठनों को वित्तीय सहायता उपलबध करार्इ जायेगी। इस योजना में निमनलिखित कार्य शामिल हैं:- 

  1. सांस्कृतिक धरोहर के All पहलुओं का अध्ययन And अनुसंधान। 
  2. लोक नृत्य, संगीत, नृत्य And साहित्य सहित सांस्कृतिक कला के दस्तावेज तैयार करना और कलात्मक वस्तुओं का संग्रहण करना। 
  3. कला और संस्कृति के कार्यक्रम के माध्यम से प्रसार।
  4. लोक कला और परमपरागत कलाओं में प्रशिक्षण। 
  5. संग्रहालयों And पुस्तकालयों की स्थापना में सहायता देना। 

आदिवासी/लोककला और संस्कृति के प्रचार/प्रसार और बढ़ावा देने के लिए वित्तीय सहायता योजना के उद्देश्य : इस योजना के उद्देश्य इस प्रकार हैं:- 

  1. आदिवासियों को अपनी-अपनी सांस्कृतिक गतिविधियों, जैसे कि उत्सवों का आयोजन आदि को चलाने का अवसर प्रदान करना और उनकी कला और शिल्प का संग्रह And संरक्षण करना ताकि यह निस्तर चलता रहे। 
  2. ऐसी कलात्मक और शिल्पकारी के दस्तावेज तैयार करना, अनुसंधान And सर्वेक्षण को बढ़ावा देना, विशेष Reseller से उनकी फोटोग्राफिक रेकार्ड तैयार करना जिससे कि तीव्र विकास के परिणामस्वReseller लुप्त होती हुर्इ ग्रामीण भारत की विरासत को संजोया जा सके। 
  3. सम्बंधित राज्य सरकारों की शैक्षिक प्राधिकारियों को उन परियोजनाओं का पता लगाने में सहायता देना जो आदिवासी और ग्रामीण लागों की सांस्कृतिक परम्पराओं को प्रोत्साहित करने में सहायक हों। 
  4. आदिवासी/ग्रामीण संस्कृति के महत्व की जानकारी प्रदान करना खासकर शहरी इलाके के लोगों में, ताकि उन्हें भी आदिवासी संस्कृति के विभिन्न पहलुओं की जानकारी हो सके और वे इसके महत्व को भी समझ सकें 
  5. अन्य All साधनों से आदिवासी कला और शिल्प तथा आदिवासी संस्कृति के अन्य पहलुओं के संरक्षण और विकास को बढ़ावा देना।
  6. क्षेत्रीय और स्थानीय संग्रहालों के प्रोत्साहन हेतु और इन्हें सुदृढ़ बनाने के लिये 

वित्तीय सहायता योजना के उद्देश्य : इस योजना का उद्देश्य क्षेत्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर पर व्यवसायिक Reseller में संग्रहालयों की स्थापना और उनके आधुनिकीकरण को बढ़ावा देना है। इस योजना के अन्तर्गत सोसाइट/पंजीकरण संचार And सूचना प्रौघोगिकी मंत्रालय की योजनाओं के अन्तर्गत पात्र संस्थाओं And उनसे सम्बन्धित प्रमुख शर्ते आती है। 

  1. उपभोक्ता मामलों , खाद्य And सार्वजनिक वितरण मंत्रालय की योजनाएं उपभोक्ता मामलो का विभाग इसके अन्तर्गत उपभोक्ता कल्याण निधि , आर्थिक सहयोग की योजनाए व प्रोजेक्ट, उपभोक्ता सभा, संरक्षण , कल्याण मे अनुसंधान संस्थाओं / विश्वविद्यालयों कलेजो के सहयोग को बढावा देने की येाजना 
  2. संस्कृत मंत्रालय की योजनाए 
  3. पर्यावरण और वन मंत्रालय की योजनाएं 
  4. खाद्य परिश्करण उद्योग मंत्रालय की योजनाए मदर एन0 जी0 ओ0 योजना
  5. सर्विस एन0जी0 ओ0 योजना 
  6. स्ट्ररीलाइजिंग बेड्स योजना 
  7. स्वास्थय और परिवार कल्याण मंत्रालय की योजना
  8. इसके अन्तर्गत कुश्ठ रोग सर्वेक्षण, शिक्षा और उपचार , राष्ट्रीय अंधता नियंत्रण कार्यक्रम 
  9. राष्ट्रीय कैसर निंयत्रण कार्यक्रम 
  10. पोलियो पीड़ित बच्चों की Currective Surgery और पुर्नवास के लिये 
  11. वित्तीय सहायता की योजना 
  12. राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन के कार्यक्रम 
  13. आयुश विभाग की योजनाएं 
  14. राष्ट्रीय चिकित्सा पौधा बोर्ड 
  15. गृह मंत्रालय की योजनाएं 
  16.  प्रयोजक अनुसंधान के लिये राष्ट्रीय Human अधिकार आयोग के दिशानिर्देष 
  17. साम्प्रदायिक सद्भावना के लिए राष्ट्रीय फाउन्डेशन की योजना 
  18. आवास And शहरी निर्धनता उन्मूलन की योजनाएं 
  19. शहरी बेघर लोगों के लिए रैन बसेरा योजना

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