भारत में तुर्की शासन की स्थापना

इस काल से संबंधित कुछ विशिष्ट मुद्दों को उठाया है । आप अध्ययन कर निष्कर्ष निकाल सकेंगे कि दोनों ही आक्रमणकारी महमूद गजनबी और मुहम्मद गोरी के आक्रमणों के उद्देश्य अलग थे, इसलिये उनके परिणाम भी अलग हुए । Single ने जन सम्पदा लुटकर भारत को आर्थिक आघात पहुंचाया तो Second ने भारत में स्थायी Reseller से तुर्की राज्य स्थापित Reseller । आप अध्ययन करेंगे कि भारत की राजनीतिक और सामाजिक दशा गिरवार्इ थी जिसके कारण भारत के लोग तुर्को के आगमन को नहीं रोक सके । अन्त में आप दिल्ली सल्तनत के उन दो महान Kingों की उपलब्धियों का अध्ययन करेंगे- अल्तमश जो दिल्ली सल्तनत का संस्थापक माना जाता है और दलबन जिसने Single सुदृढ़ राजस्व सिद्धांत प्रदान करने के साथ-साथ, सल्तनत में Single सुव्यवस्थित शासन व्यवस्था भी स्थापित की ।

महमूद गजनबी और मुहममद गोरी की उपलब्धियों का तुलनात्मक अध्ययन

महमूद गजनबी और मुहममद गोरी की उपलब्धियों का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिए आपको उनके भारत अभियानों के राजनीतिक, आर्थिक और सैनिक उद्देश्यों को ध्यान में रखना होगा । साथ ही आपको भारत और मध्य एशिया की उन राजनीतिक परिस्थितियों को भी ध्यान में रखना होगा जिनका उन्हें सामना करना पड़ा था ।  महमूद गजनबी ने 1000-1030 र्इ. और मुहम्मद गोरी ने 1175-1205 र्इ. के मध्य भारत पर आक्रमण किए थे । इसलिए आपको महमूद गजनबी और मुहम्मद गोरी के सैनिक अभियानों के बीच लम्बे अन्तराल को भी ध्यान में रखना होगा ।

महमूद गजनबी और मुहम्मद गोरी के भारत आक्रमणों के उद्देश्य भिन्न थे । महमूद गजनबी का भारत में राज्य स्थापित करने का कोर्इ उद्देश्य नहीं था । उसका मुख्य उद्देश्य भारत से अपार धन-सम्पदा लूटकर गजनी ले जाना था । इस लूट के धन से गजनी के राजकोष को सम्पन्न कर वह अपने खुरासान (मध्य-एशिया) राज्य को संगठित कर उसका विस्तार करना चाहता था । इसके विपरीत शहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी का उद्देश्य भारत को केवल लूटना ही नहीं था, वरन् भारत में Single राज्य स्थापित करना भी था । ख्वारजम King से बुंरी तरह पराजित होकर उसकी मध्य-एशिया में विस्तार की महात्वाकांक्षा को गहरा धक्का लगा था । इसलिए मुहम्मद गोरी के पास भारत में राज्य स्थापित करने के अतिरिक्त और कोर्इ चारा नहीं था । महमूद गजनवी को भारत में आक्रमण के समय कम कठिनाइयों का समना करना पड़ा था क्योंकि Indian Customer राज्य निर्बल होने के साथ आक्रमण का सामना करने के लिए तैयार नहीं थे । उत्तर भारत पर बहुत समय से कोर्इ आक्रमण नहीं हुआ था । भारत हुणों के आक्रमण के प्रभाव को भूल चुका था और वह अरब वालों के आक्रमणों का सफलतापूर्वक सामना कर चुका था । लगभग चार शताब्दी से Indian Customer राज्य अपने आन्तरिक Fightों में फंस रहे थे । यद्यपि Indian Customer राज्य उत्तर पश्चिम की ओर से मुहम्मद गोरी के आक्रमण के लिए तैयार नहीं थे फिर भी मुहम्मद गोरी को महमूद गजनबी की अपेक्षा अजमेर के चौहान, मालवा के परमार, कन्नौज के गहड़वार और गुजरात के चालुक्य जैसे शक्तिशाली Kingों का सामना करना पड़ा था । उनके भिन्न उद्देश्यों और बदली हुर्इ राजनीतिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए ही महमूद गजनबी और मुहम्मद गोरी की उपलब्धियों का सही आंकलन Reseller जा सकता है । महमूद गजनबी, मुहम्मद गोरी की अपेक्षा, Single सफल योद्धा और सेनानायक था । महमूद गजनबी ने 1001-1026 र्इ. के मध्य लगभग प्रति वर्ष भारत पर आक्रमण Resellerा परन्तु वह किसी भी आक्रमण में भारत या मध्य एशिया में पराजित नहीं हुआ । उज्जैन, ग्वालियर, कालिंजर, दिल्ली और अजमेर के King संगठित हो कर भी उसे पराजित नहीं कर सके थे । वह अपार उत्साह और सफलतापूर्वक भारत और मध्य एशिया में निरन्तर आगे बढ़ता रहा । इसके विपरित मुहम्मद गोरी के All भारत आक्रमण सफल नहीं रहे, उसे पराजित भी होना पड़ा था। उदाहरण सReseller कहा जा सकता है कि 1178 र्इ. में गुजरात के चालुक्य King ने उसे अन्हिलवाड़ा के Fight में पराजित Reseller था । तराइन के First Fight 1191 र्इ. में Earthराज चौहान ने उसकी सेना को पराजित Reseller और मुहम्मद गोरी बहुत ही कठिनार्इ से अपने प्राणों की रक्षा कर सका था ।

महमूद गजनबी की अपेक्षा मुहम्मद गोरी की राजनीतिक सफलताएं महान है । मुहम्मद गोरी की भारत में तुर्की राज्य की स्थापना का श्रेय है । उसका विजय श्रेय व्यापक है । उसने आकसन से यमुना नदी तक का श्रेय विजय Reseller था, अन्हिलवाड़ा और तराइन के Fight में पराजित होने पर भी मुहम्मद गोरी अपने दृढ़ संकल्प के कारण भारत में अपना राज्य स्थापित करने के उद्देश्य में सफल रहा । मुहम्मद गोरी की मृत्यु यह प्रमाणित नहीं करती है कि उसका भारत में प ्रभाव समाप्त हो गया था । उसका दृढ़ संकल्प था कि वह भारत के विजित प्रदेशों को अपनी अधीन रखे, इसी उद्देश्य पूर्ति के लिए कुतुबुद्दीन ऐबक नामक अपने दास को भारत में अपने प्रतिनिधि (वायसराय) के Reseller में छोड़ गया था । आप First ही पढ़ चुके है कि कुतुबुद्दीन ऐबक और अल्तमश ने मुहम्मद गोरी की भारत विजय का अधूरा कार्य पूरा Reseller था । उन्होंने ही उत्तर भारत में दिल्ली सल्तनत की नींव रखी थी ।

महमूद गजनबी के सैनिक अभियानों का स्वReseller वार्षिक आक्रमण का था, इसलिए इनका कोर्इ स्थायी प्रभाव नहीं हुआ । निर्विवाद है कि उसका पंजाब और मुल्तान पर अधिकार हो गया था जो बाद में लगभग 1050 र्इ. तक उसके उत्तराधिकारियों के अधीन रहे । उसने कन्नौज पर आक्रमण तो Reseller परन्तु गंगा घाटी पर इसका प्रभाव नहीं पड़ा । महमूद गजनबी का उद्देश्य भारत विजय को स्थायी बनाना नहीं था दरसल उसने विजय प्रदेशें को संगठित करने का प्रयास नहीं Reseller । यही कारण है कि उसके आक्रमणों का Indian Customer गांव और प्रशासन पर कोर्इ प्रभाव नहीं पड़ा तथापि यह याद रखना चाहिए कि महमूद गजनबी की पंजाब विजय से मुहम्मद गोरी की विजय के लिए मार्ग खुल गया था । महमूद गजनबी के नेतृत्व में तुर्क भारत की उत्तर पश्चिमी सीमा रक्षक पर्वत श्रेणी को पार कर आये थे और अब वे किसी भी समय गंगा घाटी की ओर बढ़ सकते थे । अक्सर धार्मिक उद्देश्यों को महमूद गजनबी और मुहम्मद के आक्रमणों का कारण कहा जाता है दोनों ने ही अपने आक्रमणों का औचित्य सिद्ध करने सैनिक में उत्साह भरने और अपने तुर्की, र्इरानी और अफगान सैनिकों को संगठित करने के लिए जिहाद (धर्म Fight) के नारे का उपयोग Reseller था । वास्तव में देखा जाए तो दोनों के ही आक्रमण राजनीतिक और धन की लूट से प्रेरित थे । दानों में से किसी के भी आक्रमण का उद्देश्य भारत में इस्लाम धर्म फैलाना नहीं था । महमूद गजनी और मुहम्मद गोरी दोनों ने ही भारत में मूर्तिपूजकों को लूटा और मारा था । साथा ही उन्होंने मध्य-एशिया में अपने सह धार्मिकों को लूटा और उनका संहार Reseller । दोनों ने ही मुसलमानों और गैर-मुसलमानों को समान Reseller से देखा और दोनों ही धर्मावलम्बी सताए गए। इस प्रकार कहा जा कसता है कि महमूद गजनबी ने थानेश्वर, मथुरा, कन्नौज और सोमनाथ के मन्दिर पर आक्रमण विशेष Reseller से इसलिए Reseller क्योंकि वे धन और सम्पदा के बड़े केन्द्र थे । शिक्षा और संस्कृति के संरक्षक के Reseller में मुहम्मद गोरी का अल्प स्थान है, परन्तु गजनबी का ऊँचा स्थान है । उसके दरबार में मध्य-एशिया के प्रसिद्ध विद्वान अल्बरूनी, फिरदौसी, उतबी और फरावी थे । उसने पुस्तकालय और अजायबघर बनाए । महमूद गजनबी ने उस समय प्रचलित इस्लामिक वास्तुकला में Single मस्जिद का निर्माण कराया ।

महमूद गजनबी का उद्देश्य य भारत में राज्य स्थापित करना नहीं था । उसका मुख्य उद्देश्य भारत से धन लूट कर गजनी ले जाना था । मुहम्मद गोरी का मुख्य उद्देश्य और उसकी सफलता भारत में तुर्की राज्य स्थापना था ।

तुर्को की उत्तर भारत में विजय और राजपूतों के प्रतिरोध करने की असफलता के कारण तुर्को की सफलता और राजपूतों के प्रतिरोध न कर सकने के कारण भारत की सामाजिक, राजनीतिक शिथिलता और आर्थिक तथा सैनिक पिछड़े पन निहित थे । राजपूत राज्यों के राजनीतिक ढांचे में कुछ विशेष कमियॉं थी ।  ग्यारहवीं और बारहवीं शताब्दी में उत्तर भारत छोटे-छोटे राज्यों में बंटा हुआ था । इसके King राजपूत थे जो परस्पर Fight में व्यस्त रहते और सदा ही Single Second को नीचा दिखाने के लिए सोचते रहते थे । इन Fightों के कारण प्रत्येक राज्य की शक्ति घटी और धन की हानि हुर्इ । इन Fightों का कारण साम्राज्य विस्तार या महत्वाकांक्षा ही नहीं था वरन् पारिवारिक छोटी-छोटी बातें भी थे। वास्तव में Fight लड़ना राजपूतों में शक्ति प्रदर्शन करने के साथ-साथ Single शौक भी था।  सामन्ती प्रणाली के विकसित होने से राजपूत राज्यों की निर्बलता और भी बढ़ी इसके साथ ही King की सत्ता में भी कमी आर्इ । King सैनिक और वित्तीय मामलों में सामन्तों पर निर्भर हो गए । King का अपनी प्रजा से सीधा संपर्क समाप्त हो गया । इसके फलस्वReseller प्रजा की स्वामीभक्ति भी सामन्तों के प्रति हो गर्इ । सामन्तों की अपनी सेनाएं थी जिसका प्रयोग वह King की अवहेलना करने के लिए कर सकते थे । बढ़ते उप-सामन्तवाद का Means था कि भूमि से प्राप्त आय में उप सामन्त भी भागीदार होंगे । इस प्रकार आय में और भी कमी होने से Kingओं की स्थिति First से भी खराब हो गर्इ । तुर्को से Fight में पराजय का महत्वपूर्ण कारण केन्द्रीय सत्ता का पतन और स्थानीय शक्ति का बढ़ना था ।

सैनिक दृष्टि से तुर्की सेना राजपूत सेना से कर्इ गुना अच्छी थी । तुर्की घुड़सवारों को मध्य-एशिया से अच्छी नस्ल के तेज दौड़ने वाले घोडे उपलब्ध थे । Indian Customer सेना में अच्छी नस्ल के घोड़ों की कमी थी जिससे वे सफलता पूर्वक शत्रु का पीछा नहीं कर पाते थे । दसवीं शताब्दी में मध्य-एशिया के अश्वारोहियों और तीरन्दाजों ने रणनीति और Fight के दांव पेच में आमूल परिवर्तन ला दिया था । तुर्क Fight की इस नर्इ नीति को अपना चुके थे- इस प्रणाली में तेज दोडने वाले घोड़ों और हल्के साज-समान पर बल दिया जाता था । इसके विपरीत राजपूत राणनीति में मन्दगति से चलने वाले विशालकाय हाथियों पर बल दिया जाता था । इसीलिए राजपूत अभी भी हाथियों और पैदल सैनिकों पर निर्भर थे जो मध्य-एशिया के तेज दोड़ने वाले घोड़ों का सामना नहीं कर सकते थे ।
राजपूतों की Single अन्य दुर्बलता उनका सैनिक संगठन था । अधिकांश सेना सामन्ती थी जो संगठित होकर या निष्ठापूर्वक कभी नहीं लड़ी । इस प्रकार राजपूत सेना में SingleResellerता का अभाव था और उनकी निष्ठा भी विभाजि थी । विभिन्न सेनानायकों में समन्वय (ताल-मेल) का अभाव था और Fight के बाद वे अपने-अपने क्षेत्र में वापिस चले जाते थे । दूसरी और तुर्की सेना विशाल थी और उसमें संगठन था । सैनिक Single केन्द्र द्वारा भर्ती किए जाते थे । उन्हें नकद वेतन मिलता था।

इसके अतिरिक्त तुर्की सेना लूट में मिलने वाले अपार धन के लालच में भारत में उत्साह पूर्वक लड़ी थी । राजपूत सैनिकों के सामने ऐसा कोर्इ आदर्श नहीं था । राजपूत सैनिक आन्तरिक Fightों के कारण थक भी चुके थे ।

Indian Customer King उत्तर-पश्चिमी दरों की Safty के प्रति उदासीन रहे । उन्होंने महमूद गजनबी के आक्रमणों से उत्तर भारत पर आक्रमण करने के लिए खोले गए मार्ग से भी दरों के महत्व को नहीं समझा । यह इस बात से समझा जा सकता है कि शताब्दियों से पंजाब, मध् य-एशिया और अफगानिस्तान की राजनीति में उलझा रहा । आपको याद होगा कि शकों, कुषाणों और हूणों ने इसी ओर से भारत पर आक्रमण किए थे । वे भारत में बसे और कालान्तर में Indian Customer समाज में मिल गए । भारत के लोगो ंने तुर्को को भी उन जैसा ही समझा । Indian Customer King भूल गए कि पंजाब पर नियन्त्रण करने वाले तुर्क भारत के आन्तरिक भागों में भी फैल सकते थे । राजपूत राज्यों ने तुर्को के विरूद्ध Single संघ बनाया था परन्तु संघ ने राष्ट्रीय स्तर पर तुर्को का सामना करने का कोर्इ लक्ष्य नहीं रखा था । इनका लक्ष्य केवल Kingओं के अपने हितों के लिए सहयोग देना था । मुहम्मद गोरी और कुतुबुद्दीन ऐबक 1193 और 1203 र्इ. अपने आप को भारत में अWindows Hosting अनुभव कर रहे थे । यही अवसर था कि राजपूत संगठित Reseller में प्रतिरोध कर उन्हें भारत से उखाड़ सकते थे, परन्तु राजपूतों ने यह अवसर खो दिया ।

राजपूतों की हार का Single महत्वपूर्ण कारण सामाजिक तंत्र और जातीयता था । जातीयता और भेदभाव के कारण देश में सामाजिक और राजनीतिक Singleता को भुला दिया गया था । जाति प्रथा का राजपूत राज्यों की सैनिक कुशलता पर बुरा प्रभाव पड़ा । Fight में भाग लेना विशेष जातियों का Singleाधिकार समझा जाता था । इसलिए अन्य जाति के लोगों ने सैनिक कार्य नहीं Reseller । जाति प्रथा ने भारतवासियों में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करने में अवरोध Reseller । अधिकांश जनता को राजवंश से कोर्इ लगाव न था । विदेशी आक्रमण केवल Single और राजवंश का परिवर्तन था जिसका जनता के जीवन पर कोर्इ गहरा प्रभाव नहीं होता था ।

ग्यारहवीं और बारहवीं शताब्दी में उत्तर भारत के सामाजिक जीवन की विशेषता थी कि शिक्षित वर्ग Singleाकी और रूढ़िवादी था जिसके कारण भारत पिछड़ा हुआ था। ब्राम्हणों को अपने प्राचीन ज्ञान पर गर्व था। भारत के लोग विश्व में वैज्ञानिक, सांस्कृतिक और रणनीति में होने वाले सुधारों के प्रति उदासीन रहे । मध्य-एशिया का प्रसिद्ध विद्वान अल्बरूनी ग्यारहवीं शताब्दी के प्रारंभिक काल में 10 वर्ष तक भारत म ें रहा । उसके लख्े ाों में इसका स्पष्ट संकते ह ै । उसका कहना था कि भारतवासियों का विश्वास था कि संसार को कोर्इ भी देश, धर्म और विज्ञान उनके देश ध् ार्म और विज्ञान के समान नहीं है । वे अपना ज्ञान दूसरी जाति और विदेशियों को नहीं देते थे । ग्यारहवीं और बारहवीं शताब्दी के उत्तर भारत में सामाजिक क्षेत्र के अतिरिक्त आर्थिक क्षेत्र में भी आर्थिक क्षेत्र में Singleाकिपन दिखार्इ देता था । भारत का व्यापार घटा, छोटे राज्यों ने व्यापार को हतोत्साहित Reseller और स्वावलम्बी ग्रामीणी Means व्यवस्था को प्रोत्साहन दिया । इसी Singleाकीपन का परिणाम था कि तुर्को के आगमन से भारत को गहरा धक्का लगा । सौभाग्य से इसका परिणाम घातक नहीं हुआ । इससे राष्ट्रीय जीवन में नर्इ शक्ति आर्इ ।

अल्तमश की उपलब्धियां 

दिल्ली सल्तनत का कार्यभार संभालते ही अल्तमश को नाजुक स्थिति का सामना करना पड़ा । सल्तनत की सीमायें अनिश्चित थी । शासन व्यवस्था और राजस्व सिद्धान्त अस्पष्ट थे । गजनी में मुहम्मद गोरी का उत्तराधिकारी यल्दौज भारत में मुहम्मद गोरी के चित्रित प्रदेशों पर अपना अधिकार जमाना चाहता था । बंगाल में अमीमर्दन खां ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी थी । सिंध में कुबाचा स्वतंत्र हो गया था और वह पंजाब पर अपना अधिकार जमाना चाहता था । दिल्ली के कुछ असन्तुष्ट अमीर विद्रोह करने के लिए तैयार थे । ग्वालियर, रणथम्भौर, कार्लिजर के राजपूत King और अजमेर तथा बदाना सहित समस्त पूर्वी राजपूताना तुर्को से मुक्त हो चुका था । अल्तमश के शासन काल में ही First बार मंगोल आक्रमण का भय हुआ था । इस प्रकार संक्षेप में कहा जा सकता है कि अस्त व्यस्त दिल्ली सल्तनत को Single राजनैतिक इकार्इ के Reseller में बनाए रखना Single बड़ी समस्या थी ।

अल्तमश ने नाजुक स्थिति का बहुत ही वीरता और उत्साह से सामना Reseller । उसने दिल्ली को सल्तनत की Single राजधानी बनार्इ, राज्य को Single स्वतंत्र दर्जा दिलाया । उसने ही स्वतंत्र और प्रKing वर्ग की स्थापना की । उसने मुहम्मद गोरी की अस्त व्यस्त विजयों को संगठित कर दिल्ली सल्तनत का Reseller दिया । वास्तव में दख्े ाा जाए तो अल्तमश स े ही भारत में तुर्की शासन का History प्रारम्भ हेाता है ।

अल्तमश ने First दिल्ली के असन्तुष्ट अमीरों का दमन Reseller । उसने दिल्ली, अवध, बदायूं, बनारस और शिवलिंक क्षेत्र में अपना अधिकार जमाया । उसने 1216 र्इ. में यल्दौज को पराजित कर लाहौर पर अपना अधिकार जमाया । यह विजय महत्पूर्ण सिद्ध हुर्इ । इसका Means था कि अब दिल्ली सल्तनत गजनी, गोरी और मध्य एशिया से अलग हो गया है । इसलिए अब सल्तनत अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाने के लिए स्वतंत्र थी । उसने सुल्तान और उच्छ में कुबाचा को पराजित Reseller । उसने 1224-1229 र्इ. के मध्य बंगाल की खलजी वंश की सत्ता को समाप्त करने के लिए तीन अभियान छेड़े । इसके बाद अल्तमश ने बयाना, रणथम्भौर, ग्वालियर आदि पर अपना अधिपत्य स्थापित Reseller । परन्तु वह गुजरात और मालवा को अपने अधीन न कर सका, गुजरात के चालुक्यों ने उसके आक्रमण को विफल कर दिया । इसी प्रकार मालवा के परमार अधिक शक्तिशाली सिद्ध हुए । फिर भी उसने मिलसा का किला विजय कर लिया और उज्जैन को लूटा ।

1229 र्इ. में बगदाद के अब्बासी खलीफा ने अल्तमश को भारत के विजित प्रदेशों पर King स्वीकार कर उसे सम्मानित Reseller । इस सर्वोच्च इस्लामी शक्ति (खलीफा) द्वारा अल्तमश को राज्य का अनुमोदन करने के कारण All विरोधियों के मुंह बन्द हो गए और दिल्ली सल्तनत को वैध्य राज्य का दरजा मिल गया था ।

अल्तमश ने कुशल राजनीतिज्ञ की भांति मंगलों से छुटकारा पाया । मंगोल चंगेज खां के नेतृत्व में मध्य-एशिया को Destroy कर सिंध तक आ पहुंचे थे । वह ख्वारजम के शाह जलालुद्दीन का पीछा कर रहा था । जलालुद्दीन ने अल्तमश से शरण मांगी । अल्तमश ने बुद्धिमता का परिचय दिया । उसने जलालुद्दीन को यह कह कर टाल दिया कि पंजाब की जलवायु उसे स्वास्थ्य के लिए उपयुक्त नहीं रहेगी । इस प्रकार अल्तमश ने दिल्ली सल्तनत को मंगोलों से बचा लिया ।

अल्तमश ने राजकतापूर्ण राजनीतिक वातावरण में वंशानुगत राजतंत्र की स्थापना कर स्थिति को संभाला । उसने राजतंत्र को शक्तिशाली बनाने और उसकी सहायता के लिए Single संगठन बनाया । जिसे तुर्क-ए-चहलगानी या चालीस का दल गहा गया । इस दल के सदस्य तुर्की दास अधिकारी थे । उसने इनके प्रति सम्मान प्रदर्शित Reseller । उसने प्रKing वर्ग में उन गैर तुर्की विदेशियों को भी शामिल Reseller जो उच्च कुल के थे । उसने उन स्थानीय सरदारों से सहयोग प्राप्त Reseller जो नजराना देते और सैनिक सेवा प्रदान करते थे । उसने उन्हें वंशानुगत अधिकार दिए। उन्हें केवल नजराना न देने का विद्रोह करने की दशा में ही हटाया जा सकता था । इस प्रकार अल्तमश ने महत्वपूर्ण घटकों में संबंध स्थापित कर उन्हें प्रशासन में शामिल Reseller । अल्तमश द्वारा संगठित चालिस के दल ने उसके जीवन काल में दिल्ली सल्तनत को स्थायित्व प्रदान Reseller । परन्तु उसकी मृत्यु के बाद वह दल राजतंत्र को शक्तिशाली बनाने का कार्य नहीं कर सका । वह दल समस्त सत्ता अपने हाथों में Singleत्र करने लगा और दरबार की दलबन्दी तथा आपसी झगड़ों में फंस गया । अन्त में इस दल के ही सदस्य बलबन ने इस दल को समाप्त Reseller । इस संबंध में आप आगे के पृष्ठों में पढेंगे ।

अल्तमश ने सल्तनत इक्ता, सेना और मुद्रा जैसे सल्तनत के प्रKingीय संस्थओं के विकास म ें महत्वपूर्ण यागे दान दिया । उसने ही चांदी के टका और ताबं े के जीतल नामक दा े सिक्के चलाए।

अल्तमश ने तुर्को को बड़े पैमाने पर नकद वेतन के स्थान पर भू-खंड दिए जो इक्ता कहलाते थे। इक्ता प्राप्त करने वाले इक्तादार कहलाते थे । वे राज्य को इक्ता से दिए जोन वाला लगान वसूल करते थे । इससे ही वे अपनी सेना रखने, राज्य में शान्ति बनाए रखने के लिए धन व्यय करते थे। अल्तमश ने दोआब क्षेत्र के आर्थिक महत्व को समझा और इसी लिए उसने इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर इक्ता बांटे । इस प्रकार उत्तर भारत के Single बहुत ही सम्पन्न प्रदेश पर उसका आर्थिक तथा प्रशासनिक नियंत्रण स्थापित हो गया । इक्ता प्रणाली में कुछ कमजोरियां भी थी ।

अल्तमश की नीतियों पर रूढ़िवादी उलेमाओं का कोर्इ प्रभाव नहीं था । इसका Single उदाहरण कि जब उलेमाओं ने सुल्तान से हिन्दूओं पर मुस्लिम कानून लागू करने के लिए प्रार्थना की तो सुल्तान ने उनकी प्रार्थना को व्यावहारिक दृष्टि से अनुपयुक्त कहकर अस्वीकार कर दिया। अल्तमश ने अनुभव कर दिया था कि मुसलमान अल्प संख्या में हैं इसलिए मुस्लिम कानूनों को बहुसंख्यक गैर-मुसलमानों पर लागू करना उन्हें असन्तुष्ट करना होगा व अल्प विकसित सल्तनत के लिए हानिकारक सिद्ध होगा ।

अल्तमश ने तुर्क-ए-चहलगामी या चालीसा का दल बनाया था । उसकी मृत्यु के बाद अधिक शक्ति चालीस के दल के सदस्यों के हाथ में आ गर्इ जिसका प्रयागे उन्होंने सुल्तान के विरूद्ध Reseller । बलबन ने इस दल को समाप्त Reseller ।

बलबन की उपलब्धियां 

1246र्इ. में जब बलबन दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर बैठा तो उसे अनेक कठिनार्इयों का सामना करना पड़ा । First उसे सुल्तान और अमीरों और सरदारों के संबंध सुधारने थे । सरदार महत्वकांक्षी हो गये थे और मनमानी करने लगे थे । अल्तमश की मृत्यु के बाद संघर्ष शुरू हो गया था । वास्तव में बलबन स्वयं इस संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुका था । इसलिये बलबन का First कार्य था कि वह इन सरदारों को समझाये कि सुल्तान उनसे बहुत ऊँचा है और वे सुल्तान को हटाने का प्रयास न करें । Second विद्रोही राजपूत Kingों को सल्तनत के अधीन लाना था । Third उन मंगोलों को रोकना था जो दिल्ली के समीप व्यास नदी तक आ गए थे । Fourth दिल्ली के आस-पास के क्षेत्र और दोआब में फैली अराजकता को समाप्त करना था । सारांश यह है कि दिल्ली सल्तनत के मान-सम्मान को हानि पहुंची थी और लोगों के मन में सरकार का डर नहीं रहा था ।

समय की मांग थी कि दिल्ली में तुर्की शक्ति को संगठित Reseller जाए । सुल्तान बलबन ने दृढ़ संकल्प और पूरी शक्ति से इस दिशा में सफलता प्राप्त की । उसने सल्तनत विस्तार का विचार छोड़ दिया क्यों विजित प्रदेशों की व्यवस्था के लिए योग्य अधिकारियों और सेना की Need थी और वह उपलब्ध नहीं हो सकती थी । इसके अतिरिक्त सुल्तान का दिल्ली से दूर जाना बुद्धिमतापूर्ण कार्य नहीं था क्योंकि मंगोल अवसर का लाभ उठा दिल्ली और दोआब को लूट सकते थे और सल्तनत को विद्रोही अमीरों और राजपूत सरदारों से भय था । इसलिए उसने उस क्षेत्र को संगठित करने का निश्चय Reseller जो उस समय सल्तनत के अधीन था ।

राज्य को संगठित करने की दिशा में First बलबन ने दिल्ली के आस-पास के क्षेत्र, दोआब और अवध में अराजकता समाप्त कर शान्ति स्थापित की । उसने मेवाती लुटेरों का पीछा करके उन्हें मृत्यु दण्ड दिया । उसने बदायूं के आस-पास राजपूत गढ़ों को Destroy Reseller और दोआब क्षेत्र में जंगल साफ कराकर सड़के बनवार्इ तथा उस क्षेत्र में अफगान सैनिकों की बस्तियां और चौResellerं स्थापित की जिससे सड़कों को Windows Hosting रखा जा सके और जब भी राजपूत जमीदार सल्तनत के विरूद्ध सिर उठाएं तो उन्हें कुचला जा सके । बरनी ने लिखा कि इन कठोर कदमों का ही परिणाम था कि उसके 60 वर्ष बाद भी सड़के लुटेरों और डाकूओं से Windows Hosting थी । बलबन ने 1281 र्इ. में बंगाल में तुगरिल बेग के विद्रोह को कठोरता से दबाया और बलबन ने अपने बेटे बुगरा खां को यहां का King नियुक्त Reseller ।

बलबन ने सुल्तान क े पद की गरिमा बढ़ाने का भी प्रयास Reseller । उसने राजस्व का सिद्धान्त प्रतिपादित Reseller जिसमें कहा गया कि King को गद्दी र्इश्वर द्वारा प्रदत्त है । King Earth पर र्इश्वर का प्रतिनिधि है और पैगम्बर के बाद उसका ही गौरव पूर्ण स्थान है । इसलिए King की शक्ति का स्त्रोत अमीर और सरदार न होकर र्इश्वर है । यही कारण है कि वह प्रजा के प्रति उत्तरदायी नहीं है । इससे बलबन ने स्वेच्छाधारी सत्ता का उपयोग करने के लिए सहारा लिया था ।

बलबन ने King के पद का गौरव बढ़ाने के लिए अनेक कार्य किए । उसने अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए फिरदौसी के शाहनामा के नायक की वंशावली से अपना संबंध स्थापित Reseller । उसने शानदार दरबार लगाना आरम्भ Reseller जिसके नियम कठोर थे । वह दरबार में सदा गम्भीर रहता और बाहर जाते समय उसके साथ नंगी तलवार लिए अंगरक्षक चलते थे । अमीरों और सरदारों को यह आभास कराने के लिए कि वे सुल्तान के बराबर नहीं हैं, उन्हें सिजदा (सुल्तान के सामने झुकना) और पैयोस (सुल्तान के पैर चूमना) करने के लिए विवश Reseller गया । इन कठोर नियमों के कारण लोगों में भय (आतंक) बैठा और विद्रोही अमीर विनीत हो गए ।

बलबन तुर्की अमीरों का समर्थक था । उसने All महत्वपूर्ण सरकारी पदों से उन अधिकारियों को हटा दिया जो निम्नवंश में जन्में थे । बरनी के According बलबन कहा करता था कि जब भी मैं किसी निम्न वंश में जन्में व्यक्ति को देखता हूं तो मेरी आंख क्रोध से जलने लगती है और मेरा हाथ तलवार पर चला जाता है । इस नीति के अधीन ही Indian Customer मुसलमान शासन और सत्ता से अलग कर दिए गए । राजनीतिक सत्ता में उनके प्रभाव को कम करने के लिए ही यह Reseller गया था ।

इमानुद्दीन रैहान नामक Single गैर-तुर्की ने 1252-53 र्इ. में नसिरूद्दीन मुहम्मद के शासन काल में बलबन को नाइब के पद से हटवाया था। बलबन ने इससे ही यह शिक्षा ली थी । बलबन तकुर् ी अमीरों का समर्थक होते हुए भी उन्हें सत्ता में भागीदार नही  बनाना चाहता था। इसलिए उसने चालीस के दल के मुख्य सदस्यों, अल्तमश के परिवार के सदस्यों, योग्य अमीरों और शेर खां जैसे अपने संबंधियों को भी सत्ता से अलग रखा क्योंकि वे चालीस के दल के सहयोग से उनके उत्तराधिकारियों के अधिकार को चुनौती दे सकते थे । बलबन की नीति के कारण तुर्की अमीर निर्बल हुए और बाद में वे खलजी वंश के King से पराजित हुए जिसने गद्दी पर अधिकार जमाया था ।

जनता का विश्वास प्राप्त करने और अमीरों व सरदारों को अपनी शक्ति तथा सत्ता की बार-बार याद दिलाने के लिए बलबन ने निष्पक्ष न्याय पर बल दिया । बड़े से बड़े अधिकारी को भी उल्लघंन करने पर क्षमा नहीं Reseller गया । यही दिखाने के लिए उसने बदायूं के मलिक बकबक और अवध के इक्तादार हैबतखां को उस समय कठोर दण्ड दिया जब उन्होंने अपने दासों पर अत्याचार Reseller था ।

बलबन से शक्तिशाली केन्द्रीय शासन का युग शुभारंभ हुआ । उसने वजीर से वित्तीय और सैनिक शक्ति अपने हाथ में ले ली । (यह Single रोचक तथ्य है कि बलबन ने सुल्तान बनने से पूर्व सुल्तान की शक्ति कम करने के लिए नाइब का पद स्वयं बनाया था) अधिकांश Appointmentयां बलबन स्वयं करता था । प्रान्तीय सुबेदार अपने ब्योरे उसी के भेजते थे । राज्य के किसी भी भाग में उसने किसी भी अमीर को इतनी शक्ति Singleत्र करने का अवसर नहीं दिया कि वह उसके लिए समस्या बन जाता जैसा की बंगाल के तुगरिल बेग ने Reseller था । बलबन ने अपनी गुप्तचर प्रणाली की सहायता से अपना तानाशाह शासन चलाया ।

जब बलबन नाइब था उसने सशक्त सरकार चलाने के लिए शिक्शाली सेना की Need को अनुभव कर लिया था । उसने सेना विभाग दीवान-ए-अर्ज का पूर्नगठन Reseller । उसने सैनिकों की संख्या बढ़ार्इ, उनके वेतन बढ़ाए उसने अवस्वस्थ या निर्बल सैनिकों को सेवा निवृत्त कर दिया। परन्तु वह इक्ता प्रथा में कोर्इ सुधार नहीं कर सका यद्यपि उसमें बहुत से दोष थे । फिर भी उसने खराज नामक विभाग बनाया । यह विभाग इक्ता की आय को जांच-पड़ताल करता था । यह अधिशेष रकम निश्चित करता जिसे सरकार के पास जमा करना होता था ।

बलबन ने मंगोलो से निपटने के लिए शक्ति और कूटनीति का सहारा लिया । उत्तर पश्चिम सीमा की Safty के लिए कदम उठाये गए । मंगोलों के मार्ग में पुराने किलों की मरम्मत करार्इ गर्इ और नये किले बनवाये । समाना और दीपलपुर जैसे सीमान्त स्थानों पर सैनिक रखे गए । सीमा Safty का कार्य कुशल सेना नायकों के अधीर रखा गया । मंगोलों के आकस्मिक आक्रमण का सामना करने के लिए वह सदा दिल्ली में रहा । बनबन की नीति की सफलता इस बात से सिद्ध होती है कि उसने मंगोलों से मुल्तान छीन लिया था और उसका उत्तरदायित्य अपने पुत्र मुहम्मद खां को सौपा था ।

निसंदेह बलबन दिल्ली सल्तनत के संस्थापकों में Single बहुत ही महत्वपूर्ण व्यक्ति था क्योंकि उसने राजसत्ता का विस्तार Reseller था । बलबन ने ही दिल्ली सल्तनत को सशक्त बनाया था । तथापि उसने गैर-तुर्को को सत्ता से अलग रख राजतन्त्र को सीमित बना दिया । इस प्रकार बहुत से गैर-तुर्क असन्तुष्ट हो गए । इसकी मृत्यु के बाद यही अराजकता और समस्या का कारण बना।

बलबन ने विस्तार के स्थान पर संगठन की नीति को अपनाया । उसने राजस्व के नये सिद्धान्त का प्रतिपादन Reseller । उसने ही सुल्तान और अमीरों के बीच नए संबंध बनाए । बलबन से Single शक्तिशाली केन्द्रीय शासन के युग का सूत्रपात हुआ ।

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