बवासीर के कारण, लक्षण And वैकल्पिक चिकित्सा

बवासीर या अर्श जिसे अंग्रेजी मे (Piles) कहा जाता है, अर्श Word संस्कृत का है, इसे आयुर्वेद में अर्श, यूनानी चिकित्सा बवासीर, अंग्रेजी मे होमोरायड्स या पाइल्स, ये All Single ही रोग के पर्यायवाची Word हैं, अष्टाग हदय में अर्श के बारे में निम्न प्रकार से वर्णन मिलता है, – अखित प्राणिनो मांसकीलका विशसन्तियत्। अर्शासि तस्मादुच्यते गुदमार्ग निरोधत:।। Meansात जो मांसाकुर गुदा मार्ग का अवरोध कर शत्रु की भाँति पीड़ा पहुॅचाते है, उन्हे अर्श कहते हैं। इस रोग मे शौच जाना

बवासीर के कारण-

  1. कब्ज बवासीर रोग का प्रधान कारण है। 
  2. आनुवंशिकी भी इस रोग का Single प्रमुख कारण है। कर्इ व्यक्तियों में ये रोग उन्हे पैतृक Reseller में मिलता है। 
  3. पुर:स्थ ग्रन्थि की सूजन भी बवासीर रोग का Single कारण है। 
  4. गरम, गरिष्ठ भोजन के अत्यधिक सेवन से भी यह रोग होता है। 
  5. कार्बोहाइड्रेड युक्त मीठी चीजों का अधिक सेवन करने से भी बवासीर रोग हो जाता है। 
  6. त्रिदोषो को संतुलित करने वाले आहार का लगातार अधिक मात्रा में सेवन करने से भी यह रोग होता है। 
  7. समय पर भोजन ना करना भी इस रोग का Single कारण है। 
  8. कर्इ व्यक्तियों में अत्यधिक उपवास करने से भी यह रोग हो जाता है। 
  9. विकार ग्रस्त यकृत भी बवासीर रोग का Single कारण है। 
  10. बार-बार मल-मूत्र के वेग को रोकने से भी बवासीर रोग हो जाता है। 
  11. सामथ्र्य से अधिक व्यायाम कसरत करने से भी यह रोग हो जाता है। 
  12. कब्ज की स्थिति में मल त्याग के समय अत्यधिक जोर लगाकर मल को बाहर निकालने की कोशिश करने से भी यह रोग हो जाता है। 
  13. स्त्रियों में अधिकतर यह रोग गर्भ के भार से हो जाता है, प्रसव के उपरान्त स्वयं ठीक भी हो जाता है।

बवासीर के लक्षण-

बवासीर की प्रारम्भिक अवस्था में गुदाद्वार की भितरी व बहारी भाग में खुजली व जलन अनुभव होती है। शौच में कठिनार्इ होती है।

  1. वहॉ पर छोटी छोटी गाठे सी बन जाती है, जिन्हे मस्से कहते हैं, ये मस्से ही रोग बढ़ने पर बढ़ जाते है।
  2. रक्तहीन बवासीर जिसे वादी बवासीर कहते हैं, मे मस्सो में दर्द होता है। 
  3. रोगी का प्यास अधिक लगती है। 
  4. रोगी कमजोर हो जाता है, शरीर शिथिल हो जाता है। 
  5. कुछ रोगियों में हाथ, पैर मुँह आदि पर भी सूजन आ जाती है। 
  6. कुछ रोगियों में ºदय तथा पसलियों मे दर्द होता है, मूर्छा तथा कै तक हो जाती है, बुखार रहने लगता है। यह बवासीर की बहुत कष्टकारी स्थिति है।

बवासीर की वैकल्पिक चिकित्सा

बवासीर रोग हेतु एलौपेथी का प्रयोग ना करके विभिन्न वैकल्पिक चिकित्सा द्वारा उपचार Reseller जा सकता है, ये वैकल्पिक चिकित्सा निम्न है।

1. यौगिक चिकित्सा-

बवासीर रोग के उपचार में यौगिक चिकित्सा अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बवासीर रोग में यौगिक चिकित्सा द्वारा उपचार हेतु निम्न क्रियाओ का अभ्यास कराना चाहिए- यौगिक चिकित्सा में First कब्ज के निराकरण के लिए चिकित्सा करनी आवश्यक है, यौगिक चिकित्सा को दो भागो में विभाजित Reseller जाता है-

(i) कब्ज निवृत्ति हेतु चिकित्सा-

कब्ज की चिकित्सा उचित आहार-विहार व योग की क्रियाओं के अभ्यास के द्वारा की जा सकती है। यौगिक क्रियाओं में निम्न अभ्यास कब्ज से मुक्ति दिला सकते है।

  1. षट्कर्म- अग्निसार क्रिया,वस्ति कर्म And नौलि का अभ्यास। Needनुसार 15 दिन में Single बार लघु शंखप्रक्षालन भी Reseller जा सकता है। शंखप्रक्षालन उचित मार्गदर्शन में ही करवायें। 
  2. आसन- पवनमुक्तासन, कौआचालासन, त्रिकोणासन, ताड़ासन, कटि चक्रासन, उदराकर्षण, तिर्यक भुजंगासन, मत्स्यासन, अर्द्ध मत्स्येन्द्रासन, हलासन आदि आसन कब्ज रोगियो के लिए अति उत्तम है। कब्ज के रोगी को भोजन के तुरन्त बाद 10 मिनट तक वज्रासन में बैठना चाहिए। Ultra siteनमस्कार- Ultra siteनमस्कार का प्रतिदिन Ultra siteोदय के समय 12 आवृतियो तक अभ्यास करना चाहिए। 
  3. प्राणायाम- प्रतिदिन भ्रस्त्रिका प्राणायाम, Ultra siteभेदी प्राणायाम And नाड़ीशोधन प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए। 
  4. मुद्रा And बध- कब्ज रोगियो के लिए योगमुद्रा, पाानी मुद्रा, अश्विनी मुद्रा And बन्धो में उड्डियान बंध और महाबन्ध का अभ्यास करना चाहिए। 
  5. ध्यान- कब्ज के रोगियो को ध्यान के माध्यम से अन्तमौन का अभ्यास करना चाहिए।

(ii) बवासीर की यौगिक चिकित्सा-

  1. षट्कर्म- षट्कर्मो के अन्तर्गत नौलि व मूलशोधन का अभ्यास करना चाहिए। 
  2. आसन- सर्वाग आसन तथा विपरीत करणी मुद्रा का अभ्यास (यह अभ्यास रक्त को मलद्वार से हटाने में सहायता करते हैं)। 
  3. प्राणायाम- नाड़ी शोधन अनुलोम विलोम, (भावना के साथ)। 
  4. मुद्रा व बंध- अश्विनी मुद्रा And मूल बंध का अभ्यास करना चाहिए। 
  5. ध्यान- ध्यान के माध्यम से मन को शान्त करने का प्रयास करना चाहिए। 
  6. प्रार्थना- प्रार्थना के माध्यम से सकारात्मक भाव उत्पन्न होकर रोग से मुक्ति मिलती है।

2. प्राकृतिक चिकित्सा-

बवासीर रोग के उपचार हेतु First् कब्ज को दूर करना अति आवश्यक है जब तक कब्ज दूर नहीं होगी बवासीर रोग भी दूर नहीं हो सकता, क्योंकि कब्ज बवासीर रोग का प्रधान कारण है।

  1. कब्ज दूर करने के लिए रोगी को तरल पदार्थो का सेवन करना चाहिए। अपने आहार में प्रतिदिन रेशो युक्त आहार का सेवन करना चाहिए। 
  2. रोगी को प्रतिदिन एनिमा देना चाहिए। रोगी को First नींबू मिले गुनगुने पानी का, तत्बाद ठण्डे पानी का एनिमा देना चाहिए। 
  3. रोगी को रात भर के लिए कटि-प्रदेश, जंघा तथा पेडू पर ऊनी कपड़े का पैक देना चाहिए। 
  4. रोगी के पेट की हल्की मसाज करने के बाद पेट पर गर्म-ठण्डा सेंक करना चाहिए, तत्बाद गर्म-ठण्डा कटि स्नान देना चाहिए। 
  5. प्रतिदिन दो बार 15 मिनट के लिए मस्सो पर स्थानीय भाप दी जा सकती है। 
  6. मस्सो पर स्थानीय भाप स्नान के पश्चात 3-5 मिनट तक गर्म कटि स्नान लेना चाहिए।
  7. गर्म कटि स्नान लेने के तुरन्त बाद 1-2 मिनट ठण्डा कटि स्नान लेना चाहिए। 
  8. रोगी को प्रतिदिन दो बार जुस्ट का प्राकृतिक स्नान भी लेना चाहिए। 
  9. खूनी बवासीर में हरी रंग की बोतल का Ultra site तप्त जल 50 ग्राम और बादी बवासीर में नारंगी रंग की बोतल का Ultra site तप्त जल 50 ग्राम में पीना चाहिए। 
  10. रोगी को नाभि से लेकर मूत्रेन्द्रिय तक मिट्टी की पट्टी लगानी चाहिए। साथ ही साथ गुदा पर भी मिट्टी की पट्टी लगानी चाहिए।

3. चुम्बक चिकित्सा-

  1. रोगी को लौह चुम्बक युक्त गद्दी पर भी 20 से 30 मिनट तक बिठाया जा सकता है, अवश्य लाभ होता है।
  2. प्रभावित भाग पर लौह चुम्बक का प्रयोग करना चाहिए। 
  3. चुम्बक का दक्षिणी ध्रुव का प्रयोग 30 से 45 मिनट तक दिन में 3 से 4 बार करना चाहिए। 
  4. पैर के टखने से 3-4 इंच ऊपर उत्तरी ध्रुव का प्रयोग करना चाहिए। 
  5. चुम्बकीय जल (दोनो ध्रुवो से प्रभावित जल) का प्रयोग दिन में 4 से 5 बार करना चाहिए। 
  6. Single बार में चुम्बकीय जल 50 मिली तक लिया जा सकता है, कम आयु के व्यक्तियों को कम से कम 25 मिली तक लिया जा सकता है,

सावधानी- चुम्बकीय जल, चुम्बकत्व आ जाने से वह औषधी बन जाता है। इसलिए इस जल का प्रयोग बार बार एंव अधिक मात्रा में नही पीना चाहिए।

4. जड़ी बूटी चिकित्सा-

  1. भोजन के साथ 3 ग्राम इसबगोल की भूसी खाने से भी लाभ मिलता है। 
  2. बवासीर के रोगी के मस्से बाहर दिखते हो तो सेंहुड़ के दूध में हल्दी का चूर्ण मिलाकर उसकी बूँदो को मस्सो पर डालना चाहिए। 
  3. बवासीर के रोगियों को मट्ठे का सेवन करते रहना चाहिए। 
  4. यदि रोगी के मस्से फूले हुए होने के कारण उसे तकलीफ हो रही हो तो उसे प्रतिदिन दो बार अलसी के तेल का सेवन करना चाहिए। 
  5. मस्सों की जलन और पीड़ा को दूर करने के लिए कुचले को घिसकर मस्सों पर लगाना चाहिए। 
  6. खूनी बवासीर के रोगियों को पानी में भिगे हुए 4-5 मुनक्कों का प्रतिदिन 11 दिन तक सुबह- शाम सेवन करना चाहिए। 
  7. बवासीर रोगी उचित लाभ हेतु 6 ग्राम अपामार्ग के पत्ते और 5 कालीमिर्च के दानों को पानी में पीस ले। छानकर इसका सेवन करें। 
  8. बादी और खूनी दोनो प्रकार की बवासीर में 50 ग्राम अमरबेल के स्वरस में 5 कालीमिर्च को पीसकर घोटकर प्रतिदिन पीयें। 
  9. हरड़, मिश्री, कालीदाख और अंजीर को समान मात्रा में लें और कूट पीसकर गोलियाँ बना ले। प्रतिदिन दो बार इस गाली का सेवन करने से बवासीर रोग में लाभ मिलता है। 
  10. प्याज के महीन टुकड़े काटकर उसे धूप में सूखा ले। तत्बाद 10 ग्राम प्याज को घी में तलकर उसमें 20 ग्राम मिश्री और 1 ग्राम तेल मिलाकर सेवन करे। 
  11. लाल फिटकरी पानी में घिसकर मस्सों पर इसका लेप करने से लाभ मिलता है। 
  12. बबूल की बाँदा को काली मिर्च के साथ मिलकर पीने से खूनी बवासीर रोग में लाभ मिलता है। 
  13. बवासीर में 2 तोला तिल को चबा-चबाकर खाये और तुरन्त पानी पी ले। 
  14. गाँजे को पीसकर गाय के घी में मिला लें फिर इस लेप को मस्सों पर लगाये। 
  15. 10 वर्ष पुराना घी पीने से बवासीर के मस्से समाप्त हो जाते हैं। 
  16. स्वमूत्र द्वारा गुदा को धोने से खूनी बवासीर में लाभ मिलता है। 
  17. सूखे धनिये को दूध और मिश्री के साथ औटाकर पीने से खूनी बवासीर में लाभ मिलता है। 
  18. चार प्याले गाय का दूध लें इनमें Single-Single करके आधा-आधा नींबू निचोड़े और तुरन्त पी ले। 
  19. बाहर लटकते हुए मस्सों में कालीजीरा की पुल्टिस बाँधने से लाभ मिलता है।

5. प्राण चिकित्सा-

प्राण चिकित्सा के According बवासीर रोग में गुहृय प्रदेश के छोटे चक्रों पर प्राण शक्ति का घनापन बढ़ जाता है। यह चक्र मटमैले लाल रंग का होता है। यह चक्र मूलाधार और गुदा के बीच में, हल्का-सा गुदा की ओर स्थित होता है। प्राण चिकित्सा द्वारा उपचार प्रReseller में बवासीर के रोगी हेतु निम्न उपचार क्रम अपनाना चाहिए-

  1. गुहृय प्रदेश के घनेपन को दूर करने के लिए गुदा पर स्थानीय झाड़- बुहार करनी चाहिए। इस रोग में झाड़- बुहार की प्रReseller नितान्त आवश्यक है। अत: झाड़- बुहार पर विशेष ध्यान देना चाहिए। 
  2. झाड़- बुहार के बाद गुदा को ऊर्जित करना चाहिए। 
  3. तत्बाद उदर के ऊपर और नीचे स्थानीय झाड़- बुहार करनी चाहिए। 
  4. बवासीर बड़ी आँत की निष्क्रियता से उत्पन्न रोग माना जाता है। सौर जालिका चक्र और नाभि चक्र , बड़ी आँत और गुदा को नियंत्रित और ऊर्जित करते है। 
  5. अत: सौर जालिका चक्र की सफार्इ अति आवश्यक है। अग्र और पश्च सौर जालिका चक्र की स्थानीय झाड़- बुहार करनी चाहिए। 
  6. स्थानीय झाड़- बुहार करने के बाद सौर जालिका चक्र को ऊर्जित करते है। 
  7. इसी प्रकार नाभि चक्र सफार्इ भी नितान्त आवश्यक है। नाभि चक्र की स्थानीय झाड़- बुहार करे। 
  8. स्थानीय झाड़- बुहार करने के पश्चात इसे ऊर्जित करते है।

इस उपचार क्रम को सप्ताह में 2-3 बार दोहराए या रोग की तीव्रता के आधार पर प्रतिदिन Single बार रोगी को इस उपचार क्रम द्वारा उपचारित करना चाहिए।

6. आहार चिकित्सा-

  1. गेहुॅ का दलिया, चोकर समेत आटे की रोटी लेनी चाहिए। 
  2. सब्जियों मे पालक, तोरर्इ, बथुआ, परवल, मूली, पत्तागोभी आदि हरी सब्जियॉ लेनी चाहिए। 
  3. फलो मे पका पपीता, पका केला, खरबूज, सेव, नाशपाती, पका बेल, आलू बुखारा, अंजीर लेने चाहिए।
  4. आहार के साथ, दूध के साथ मुनक्के, का प्रयोग रात्री को सोते समय करना चाहिए, 
  5. दिन के भोजन मे तक्र मटठा का प्रयोग करना चाहिए। 
  6. पुराने बवासीर में कब्ज की निवृत्ति हेतु तीन से पाँच दिन उपवास रखा जा सकता है, उपवास के दिनो मे सिर्फ नांरगी (संतरे) या कागजी नीबू का रस दिन में दो-दो घंटे के अंतराल मे लेना चाहिए। 
  7. उपवास तोडने के बाद कुछ दिन फलाहार रहना चाहिए। 
  8. फिर कुछ दिन Single समय फलाहार तत्पश्चात धीरे धीरे सामान्य भोजन मे आना चाहिए।

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *