फ्रेडरिक फ्रोबेल का जीवन परिचय

फ्रेडरिक फ्रोबेल का जन्म 21, अप्रैल, 1782 को दक्षिणी जर्मनी के Single गाँव में हुआ था। जब वह नौ महीने का ही था उसकी माता का देहान्त हो गया। पिता से बालक फ्रोबेल को उपेक्षा मिली। विमाता उससे घृणा करती थी। इससे फ्रोबेल प्रारम्भ से ही नितान्त Singleाकी हो गया। फ्रोबेल पर इस Singleाकीपन का प्रभाव पड़ा और वह आत्मनिष्ठ हो गया। वह प्रकृति के सान्निध्य में अपना समय व्यतीत करने लगा। इसके दो परिणाम हुए : पहला, उसमें अन्तदर्शन की क्षमता विकसित हो गर्इ। दूसरा, जड़ और प्रकृति में भी उसे अपना स्वReseller दिखने लगा। इसी के आधार पर उसने ‘अनेकता में Singleता’ के सिद्धान्त का प्रतिपादन Reseller।

कुछ समय फ्रोबेल ने अपने मामा के साथ बिताये। इस दौरान उसे विद्यालय जाने का अवसर मिला पर शिक्षा में उसकी प्रगति असन्तोषजनक रही। पन्द्रह वर्ष की अवस्था में Single फोरेस्टर के अधीन कार्य सीखने का अवसर मिला पर प्रकृति-प्रेम के अतिरिक्त वह कोर्इ प्रशिक्षण नहीं ले सका। सत्रह वर्ष की अवस्था में फ्रोबेल ने जेना विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया पर अपनी निर्धनता के कारण वह शिक्षा पूरी नहीं कर पाया। घर वापस आकर कृषि-कार्य में हाथ बटाँने लगा। 1802 में पिता की मृत्यु के बाद फ्रोबेल ने इधर-उधर भटकते हुए विभिन्न तरह की नौकरियाँ की पर वह सफल नहीं हुआ। अंतत: फ्रेंकफर्ट में हेर ग्रूनर के निमन्त्रण पर Single नार्मल स्कूल में ड्राइंग का अध्यापक बन गया। सन् 1808 में फ्रोबेल पेस्टोलॉजी की शिक्षा व्यवस्था के अवलोकन हेतु वरडेन पहुँचा। उसने वहाँ बच्चों के संदर्भ में दो बातों को गहरार्इ से महसूस Reseller। पहला, बच्चों के आत्मभाव प्रकाशन हेतु संगीत आवश्यक है, तथा, दूसरा, बच्चों की ड्राइंग में विशेष रूचि होती है।

फ्रोबेल की रूचि वैज्ञानिक सिद्धान्तों में बढ़ती जा रही थी। उसने गणित और खनिज विज्ञान में उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु First गोरिन्जन विश्वविद्यालय और बाद में बर्लिन विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। बर्लिन में उन्होंने प्रख्यात विद्वान प्रोफेसर वीज के संरक्षण में गहन अध्ययन Reseller। नेपोलियन ने जब जर्मनी पर आक्रमण Reseller तो फ्रोबेल उसके विरूद्ध जर्मनी की सेना में भर्ती हुआ। 1814 र्इ0 में फ्रोबेल बर्लिन म्यूजियम का सहायक क्यूरेटर नियुक्त हुआ। वह खनिज-विज्ञान का अध्यापक नियुक्त हुआ।

फ्रोबेल के जीवन का सर्वाधिक Creationत्मक काल की शुरूआत 1817 र्इ0 में होती है जब उसने अपने दो भतीजों And कुछ अन्य लड़को को लेकर कीलहाऊ में Single विद्यालय की स्थापना की। यहीं पर 1826 र्इ0 में फ्रोबेल ने विल्हेमिन होफमिस्टर नामक सम्पन्न महिला से विवाह Reseller। इससे फ्रोबेल के सारे आर्थिक संकट समाप्त हो गए। कीलहाऊ में ही उसने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘एडुकेशन ऑफ मैन’ की Creation की। इसके उपरान्त स्विटजरलैंड में फ्रोबेल ने कर्इ संस्थाओं का संचालन Reseller। अब फ्रोबेल पूर्व विद्यालय शिक्षा में सुधार हेतु व्यावहारिक कार्य करना चाहता था। इस उद्देश्य से 1837 र्इ0 में जर्मनी के पहाड़ी क्षेत्र के ब्लैकनवर्ग नामक गाँव में First ‘किण्डरगार्टेन’ की स्थापना की। इसके उपरान्त फ्रोबेल जीवन पर्यन्त ‘किण्डरगार्टेन’ के आन्दोलन को आगे बढ़ाने में लगा रहा। अन्तत: 1852 में इस महान शिक्षाशास्त्री की मृत्यु हो गर्इ।

फ्रोबेल के दार्शनिक विचार 

फ्रोबेल के दार्शनिक विचारों पर पश्चिम के कर्इ आदर्शवादी दार्शनिकों यथा काण्ट, फिक्टे, शैलिंग, हीगल आदि के विचारों का व्यापक प्रभाव है। काण्ट के According दो जगत है, Single जो हमें विभिन्न इन्द्रियों के माध्यम से दिखता है तथा दूसरा सारभूत या वास्तविक जगत जिसका ज्ञान आत्मबोध से होता है। फिक्टे ने प्राकृतिक जगत को मिथ्या घोषित करते हुए सारभूत जगत को ही Only सत्य जगत माना। शैलिंग ने प्रकृति And आत्मा दोनो में ही ‘पूर्ण’ को समान Reseller से देखा। हीगल भी आत्म And अनात्म यानि प्रकृति में Single ही सार तत्व पाता है।

दार्शनिक विचारधारा के विकास के इस बिन्दु पर फ्रोबेल के विचारों का प्रादुर्भाव हुआ। शैलिंग And हीगल के दर्शन के आधार पर फ्रोबेल ने अपना ‘Singleता का सिद्धान्त’ का विकास Reseller। वह ‘एडुकेशन ऑफ मेन’ में लिखता है ‘‘यह Singleता का सिद्धान्त बाह्य-प्रकृति And आत्म-प्रकृति में Single-सा ही व्यक्त है। जीवन भौतिक And आत्मन् के समन्वय का परिणाम है। बिना पदार्थ के आत्मन् आकारहीन है और बिना मनस् के पदार्थ प्राणहीन है।’’

फ्रोबेल पर हीगल के द्वन्द्वात्मक विचारों का भी प्रभाव दिखता है। फ्रोबेल कहते हैं ‘‘प्रत्येक सत्ता तभी प्रत्यक्ष होती है जब वह अपने से भिन्न सत्ता के साथ उपस्थित होती है और जब उस तत्व से उसकी समानता-असमानता स्पष्ट हो चुकी होती है।’’ फ्रोबेल पर जर्मन दार्शनिक के0सी0एफ0 क्राउस का भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। जिसने ज्ञान की विभिन्न विधियों And क्षेत्रों में समन्वय स्थापित Reseller। क्राउस प्रकृति And तर्क (विचार) दोनों में ही र्इश्वर का दर्शन करता है।

फ्रोबेल पर आधुनिक विज्ञान के अध्ययन का भी प्रभाव पड़ा। साथ ही उन्होंने प्रगतिशील शिक्षाशास्त्रियों जैसे कमेनियस, रूसो आदि के कार्यों का अध्ययन Reseller तथा पेस्टोलॉजी के प्रयोगों का स्वयं निरीक्षण Reseller। इन सबने फ्रोबेल के दर्शन को प्रभावित Reseller। इतने व्यापक अध्ययन, निरीक्षण And अनुभवों ने फ्रोबेल के विचारों में जटिलता भरी है पर इन सबमें उसकी निरीक्षण शक्ति सर्वाधिक प्रभावशाली सिद्ध हुर्इ। फ्रोबेल प्रारम्भ से ही शिशुओं And बच्चों की स्वप्रेरित क्रियाओं का निरीक्षण करता था। बाद में उसने इसे अधिक व्यवस्थित Reseller दिया। बच्चों के स्वभाविक Reseller से कार्य करने And सीखने की विधियों का फ्रोबेल ने सूक्ष्म निरीक्षण Reseller और इसी का परिणाम फ्रोबेल के दार्शनिक सिद्धान्त हैं।

Singleता का सिद्धान्त 

फ्रोबेल के According र्इश्वर Single है। जिस प्रकार पत्ते, फूल, फल, शाखायें पेड़ के तने से जुड़ी रहती हैं उसी तरह से हम All र्इश्वर से जुड़े हैं।

फ्रोबेल शिक्षा को सृष्टि की विकास-प्रक्रिया का Single महत्वपूर्ण अंग And माध्यम मानता है। शिक्षा ही व्यक्ति में आत्म-चेतना को जागृत करती है। आत्म-जागृत व्यक्ति प्राकृतिक पशुजीवन से ऊपर उठ जाता है। फ्रोबेल के According सृष्टि प्रक्रिया का Single संचालक है जो स्वयं में पूर्ण है। भौतिक जगत में वह ‘भौतिक शक्ति’ के Reseller में तथा चेतनायुक्त मनुष्य में ‘चिन्तन शक्ति’ के Reseller में उपस्थित है। दोनों में वही कर्त्ता है। फ्रोबेल ने इसे ‘अनेक में व्याप्त Singleता’ के नाम से पुकारा। उदाहरण स्वReseller वह कहता है अँगुली अपने में पूर्ण होते हुए भी हाथ का अंश है, हाथ शरीर का, शरीर प्राणी जगत का और प्राणी जगत ब्रह्माण्ड का अंश है। ब्रह्माण्ड र्इश्वर का अंश है। र्इश्वर अनेक Reseller होते हुए All चीजों में Singleता कायम रखता है।

इसी तरह की Singleता फ्रोबेल मन और शरीर में देखता है। मन शरीर से भिन्न नहीं है। जो भी उत्पादक काम होता है मन और शरीर की Singleता से होता है। किसी भी वस्तु के निर्माण में व्यक्ति की स्मृति, कल्पना, प्रत्यक्षीकरण, तर्क के साथ-साथ स्नायु, मांसपेशियां, इन्द्रियां And सारा शरीर कार्यरत होता है।

फ्रोबेल के According संस्कृति Human की Singleता का द्योतक है क्योंकि यह सामाजिक जीवन का फल है। स्वंय में पूर्ण होते हुए भी Human समाज का अविभाज्य हिस्सा है। वह सामाजिक Singleता हेतु विशिष्ट मूल्यों की सृष्टि करता है तथा भौतिक प्रगति के द्वारा जीवन को आसान बनाता है। इस प्रकार Human के व्यक्तिगत And सामाजिक जीवन में Single अन्तर्निहित Singleता है।

आत्माभिव्यक्ति का सिद्धान्त 

फ्रोबेल के According बच्चे को आत्माभिव्यक्ति का अवसर मिलना चाहिए। Human किसी न किसी Reseller में अपने को निरन्तर अभिव्यक्त करना चाहता है। उसकी अभिव्यक्ति सामान्यत: आत्मप्रेरित And स्वचालित क्रिया के माध्यम से होती है। इसी का व्यावहारिक Reseller आत्मक्रिया विधि है। बच्चे स्वयं कार्य करके बेहतर ढंग से सीखते हैं। इस प्रकार उन्होंने बच्चों के आत्माभिव्यक्ति के नियम को सीखने की अच्छी विधि माना है।

विकास का सिद्धान्त 

फ्रोबेल ने शिक्षा का उद्देश्य बच्चे का विकास माना। उनके According बच्चों के विकास में वातावरण का बहुत प्रभाव पड़ता है। जिस प्रकार पौधा बीज के छोटे आकार में सम्पूर्ण वृक्ष को समाहित किये रहता है और उचित धरातल And जलवायु पाते ही भीतर से बाहर की ओर प्रस्फुटित होने लगता है, इसी तरह से मनुष्य भीतर से ही स्वसंचालन के माध्यम से उपयुक्त वातावरण पाकर विकास की ओर अगसर होता है। विकास का यही नियम बौद्धिक, नैतिक, कौशल And अन्य क्षेत्रों में काम करता है। विकास का यह सिद्धान्त गत्यात्मक है जो कि हीगल के द्वन्द्वात्मक सिद्धान्त क्रिया, प्रतिक्रिया और समन्वय (थीसिस, ऐण्टीथीसिस तथा सिन्थिसिस) पर आधारित है।  फ्रोबेल के According प्रत्येक व्यक्ति विकास की पाँच भिन्न-भिन्न अवस्थाओं से गुजरता है। ये हैं-

  1. शैशव काल (जन्म से तीन वर्ष की अवधि)- इस काल में बच्चे के इन्द्रिय या संवेदी विकास पर जोर दिया जाना चाहिए। 
  2. बाल्यकाल (तीन से पाँच वर्ष तक की अवधि)- इस काल में भाषा का विकास होता है। शरीर की जगह मस्तिष्क पर ध्यान दिया जाने लगता है। All वस्तुओं का सही नाम बच्चों को इस काल में बताया जाना चाहिए। साथ ही सही उच्चारण का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। 
  3. कैशोर्य (छह से Fourteen वर्ष तक की अवधि), 
  4. तरूण (Fourteen से अठारह वर्ष तक की कालखंड), तथा 
  5. प्रौढ़ (अठारह वर्ष के बाद की अवधि)। प्रत्येक भावी स्तर का विकास बहुत हद तक पिछले स्तर के विकास पर निर्भर करता है।

स्वत: क्रिया का सिद्धान्त 

फ्रोबेल के According बच्चे को अगर स्वप्रेरित सृजनात्मक क्रियाओं का अवसर मिले तो उनमें भावनाओं And क्षमताओं का विकास होता है। फ्रोबेल के According Human निर्माण कार्य इसलिए करता है क्योंकि परमेश्वर ने अपनी ही तरह उसे भी सृष्टा And कर्ता बनाया है। वह क्रियाशील केवल भौतिक Needओं को पूरा करने हेतु नहीं रहता वरन् वह क्रियाशील इसलिए रहता है कि उसका दिव्य-स्वभाव प्रकट हो सके और दैवी कार्य को पूरा कर सके।

फ्रोबेल को Human की जन्मजात उच्चता में विश्वास था। वह Human को शुद्ध और विकार रहित मानता है। अत: वह Humanीय शक्तियों के स्वभाविक विकास में हस्तक्षेप का विरोधी है।

फ्रोबेल का शिक्षा-दर्शन 

जैसा कि हमलोग देख चुके हैं फ्रोबेल इस सिद्धान्त पर विश्वास करते हैं कि सारी संभावनायें, क्षमतायें And शक्तियाँ बालक के अन्दर निहित है। शिक्षा व्यवस्था का कार्य विद्यार्थियों को उपयुक्त वातावरण And अवसर प्रदान करता है ताकि विद्याथ्र्ाी अन्तर्निहित संभावनाओं And क्षमताओं के अनुReseller अधिक से अधिक विकास कर सके। विकास वस्तुत: अन्दर से आरम्भ होता है। बाहर से इसे थोपा नहीं जा सकता है। शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में बालक को बाहर से उतना नहीं देना पड़ता है जितना अन्तर्निहित शक्तियों का प्रकाशन करना। बिना Need अनुभव किए बालक शायद ही कुछ सीख सके। इन्हीं सिद्धान्तों पर फ्रोबेल ने शिक्षा के उद्देश्यों का निर्धारण Reseller है।

शिक्षा का उद्देश्य 

फ्रोबेल ने शिक्षा के द्वारा लक्ष्यों की प्राप्ति का उद्देश्य निर्धारित Reseller:

  1. Singleता या सामन्जस्य का बोध- सर्वेश्वरवादी होने के नाते फ्रोबेल का यह मानना है कि र्इश्वर सबमें व्याप्त है। जीवन-प्रकृति के All अंगों में व्याप्त Singleता And सामन्जस्य का बोध करवाना ही शिक्षा का उद्देश्य है। इससे जीवन And संस्कृति की पूर्णता का बोध होता है And बहुमुखी विकास की प्रक्रिया तीव्र होती है। 
  2. व्यक्ति में आध्यात्मिक प्रकृति को जागृत करना- शिक्षा का उद्देश्य Human में उसकी आध्यात्मिक प्रवृति को जागृत करना है। रूसो की ही तरह फ्रोबेल Human को जन्मजात अच्छा मानता है। वह मनुष्य की जन्मजात उच्चता यानि देवत्व में आस्था रखता है। उसके According मनुष्य के विकार या पतन के नीचे Single दमित भलार्इ छिपी है। विकार को दूर करने का उपाय है मनुष्य की मौलिक उच्चता की खोज कर पुन: स्थापित Reseller जाय। शिक्षा का यह Single महत्वपूर्ण उद्देश्य है। 
  3. स्वतंत्रता And आन्तरिक संकल्प शक्ति का विकास- फ्रोबेल सही शिक्षा And प्रशिक्षण हेतु बच्चे की स्वतंत्रता को आवश्यक मानता है। शिक्षा हेतु बच्चे का सहयोग प्राप्त करना आवश्यक है। साथ ही शिक्षा का Single महत्वपूर्ण उद्देश्य है बालक में आन्तरिक संकल्प शक्ति का विकास करना। संकल्प चरित्र और व्यक्तित्व के गठन का आधार है। अत: शिक्षा का उद्देश्य संकल्प विकास है। 
  4. सामाजिक भावना का विकास- फ्रोबेल बच्चों में सामाजिकता का विकास शिक्षा का Single महत्वपूर्ण उद्देश्य मानते हैं। बच्चा परिवार, समुदाय, समाज And विद्यालय से सीख लेकर सामाजिक भावना का विकास करते हैं। 

फ्रोबेल ने सामाजिक शिक्षा पर बल दिया जो कि उसकी ‘Singleता’ के सिद्धान्त के अनुReseller है। फ्रोबेल ने अपने किण्डरगार्टनों में सामूहिक क्रियाओं पर विशेष बल दिया। किण्डरगार्टेन के केन्द्रीय कक्ष में फर्श पर वृत्त या गोला बना होता है। इस गोले में बैठकर बालक समूह का अंश बन कर शिक्षा पाता है। इस वृत्त को फ्रोबेल ने समूह-भावनाओं का प्रतीक माना है। परिवार, समाज And विद्यालय से बच्चे को भाषा, सहयोग, प्रेम, सहानुभूति आदि सामाजिक गुण प्राप्त होते है।

चरित्र निर्माण- फ्रोबेल शिक्षा के द्वारा बच्चे की मौलिक अच्छार्इ को बनाये रखने के पक्ष में था पर जहाँ विकार आ गया हो वहाँ उचित शिक्षा और प्रशिक्षण द्वारा चरित्र की मौलिक अच्छार्इ को पुन: प्राप्त करना शिक्षा का Single महत्वपूर्ण उद्देश्य है। 

इस प्रकार फ्रोबेल ने शिक्षा के अत्यन्त व्यापक उद्देश्य निर्धारित किए।

शिक्षा की योजना 

फ्रोबेल ने बच्चों की शिक्षा के लिए व्यापक योजना बनार्इ। अपनी शैक्षिक योजना में फ्रोबेल ने बच्चे की आत्म-क्रिया And खेल को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना।

फ्रोबेल के According शिक्षा वस्तुत: विकास की प्रक्रिया है। बालक निरन्तर विकासशील रहता है। उसका विकास ज्ञान पक्ष में, संवेदना से सुव्यवस्थित चेतना की ओर कार्य-क्षेत्र में प्रवृति मूलक क्रियाओं से संकल्प-युक्त आचरण की ओर होता है। आत्मप्रेरित क्रियायें ही उपयोगी होती हैं। विकास के परिणाम स्वReseller बच्चे नवीन क्रियाओं में संलग्न होते हैं पर इन सबमें Single कार्यमूलक Singleता बनी रहती है। क्रियाओं के परिणामस्वReseller अभिरूचियों का विकास होता है। अभिरूचि शिक्षा के लिए आवश्यक है। इस प्रकार फ्रोबेल के According सीखने का आधार क्रिया ही है।

शैक्षिक प्रक्रिया में क्रिया का स्थान 

फ्रोबेल ने शिक्षा में तीन प्रकार की क्रियाओं का History Reseller है :-

  1. आवश्त्यात्मक या लयात्मक क्रियायें 
  2. वस्तुओं पर आधारित क्रियायें 
  3. कार्य And व्यवसाय 

आवश्त्यात्मक या लयात्मक क्रियाओं से अवयवों का विकास होता है। ध्वन्यात्मक क्रियाओं द्वारा आत्मा का विकास होता है तथा अन्य आवश्त्यात्मक क्रियाओं द्वारा इन्द्रियों को विकसित Reseller जाता है।

वस्तुओं पर आधारित क्रियाओं से विभिन्न अंगों (अवयवों) की शक्ति बढ़ती है। अगर बच्चों को वस्तु न मिले तो उनके काल्पनिक And अन्र्तमुखी होने का खतरा रहता है। अत: शिशुओं And बच्चों को विभिन्न तरह के वस्तु दिये जाने चाहिए। किस समय किस तरह के पदार्थ दिये जायें, इस पर फ्रोबेल ने गम्भीर विचार करते हुए तीन आकार के वस्तुओं को देने का सुझाव दिया। जिन्हें वह गिफ्ट या उपहार कहता है। ये तीन आकार के होते हैं- गोला, घन And बेलनाकार। फ्रोबेल के According सम्पूर्ण सृष्टि का निर्माण इन तीन आकारों पर आधारित है।

बच्चे को सबसे First गेंद देना चाहिए। फ्रोबेल के According गेंद All चीजों का केन्द्र या धुरी है। फ्रोबेल गेंद को अपने में पूर्ण मानता है जो स्थिरता, गति, समग्रता, SingleResellerता, बहुपाश्र्व, Singleपाश्र्व, दृश्य-अदृश्य आदि गुणों को अपने में संजाये रहता है। इस प्रकार गेंद फ्रोबेल के प्रिय सिद्धान्त ‘अनेकता में Singleता’ का प्रतिनिधित्व करता है। बच्चे गेंद का उपयोग कर्इ तरह से कर सकते हैं- उछाल कर, रस्सी से लटकाकर, रबर में बाँधकर आदि। इन गतिविधियों से विज्ञान के कर्इ मूलभूत सिद्धान्तों को आसानी से समझा जा सकता है। भिन्न-भिन्न रंग के गेंदों को उपहार के Reseller में देकर बच्चों को रंग का व्यावहारिक ज्ञान दिया जाना चाहिए। ये रंग हैं : नीला, लाल पीला, बैंगनी, हरा And नारंगी। विभिन्न वस्तुओं की जैसे ऊन, मखमल आदि की गेंद देनी चाहिए। इनसे बच्चा स्पर्श, गति, दिशा आदि को समझता है।

उपहारों की दूसरी श्रृंखला में ठोस, गोलों, बेलनों And घनों को दिया जाना चाहिए। अधिक भारी And अपेक्षाकृत स्थिर रहने के कारण इससे खेलने में अधिक शक्ति And कौशल की Need पड़ती है। इससे बालक को समानता-असमानता, हल्का-भारी, गति आदि का बोध होता है। अन्य All उपहार घनों से सम्बन्धित है। इन्हें विभिन्न संख्याओं में विभाजित कर या Singleत्रित कर बच्चे विभिन्न आकारों का निर्माण करते हैं। घन बड़े And छोटे दोनों ही आकार के होते हैं। इनसे बच्चों में क्रियाओं द्वारा सृजनात्मकता का विकास Reseller जाता है। इनसे गणित विशेषत: रेखागणित का प्रारम्भिक ज्ञान प्राप्त होता है।

फ्रोबेल ने Third तरह की क्रिया कार्य And व्यवसाय को माना है। व्यवसाय को परिभाषित करते हुए फ्रोबेल ने कहा ‘‘व्यवसाय से तात्पर्य बालक की उस क्रिया से है जो उत्पादक और सामाजिक जीवन के किसी उपयोगी कार्य के समान हो।’’ कार्य मांसपेशियों And बुद्धि दोनों को क्रिया का अवसर देता है। शारीरिक And बौद्धिक क्षमताओं का विकास उत्पादन कार्य के लिए आवश्यक है। लेकिन फ्रोबेल के कार्य And व्यवसाय का उद्देश्य धन उपार्जन नहीं है। इनकी उपयोगिता क्रिया का अवसर देने में है। फ्रोबेल ने कार्यों And व्यवसायों में बालू से खेलना, कागज काटना, मिÍी के मॉडल बनाना, ड्राइंग बनाना, सिलार्इ, कतार्इ, बुनार्इ आदि को स्थान दिया है। इन कायोर्ं से बच्चा जीवन के समीप आता है।

इस प्रकार हम पाते हैं कि फ्रोबेल का शिशु क्रिया सम्बन्धी सिद्धान्त बालक के मनोविज्ञान के गहन और व्यवस्थित निरीक्षण का परिणाम है। फ्रोबेल First शिशुओं को शिशु-गीतों And आवश्त्यात्मक क्रियाओं में व्यस्त रखता है। इसके उपरांत बच्चों को क्रिया And व्यवसाय के द्वारा व्यावहारिक प्रशिक्षण मिलता है। इस तरह से आत्मप्रेरित क्रियायें क्रमश: आत्म-नियन्त्रित क्रियाओं का Reseller ले लेती है। बच्चे अपनी स्वतंत्रता And दायित्व की सीमायें महसूस करने लगता है।

खेल 

फ्रोबेल खेल को बालक की शिक्षा का Single अत्यन्त ही महत्वपूर्ण हिस्सा मानता है। फ्रोबेल ने खेल के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा ‘‘खेल मनुष्य के लिए, विशेषत: बालक के लिए उसके अन्त:जगत And बाह्य-जगत का दर्पण है और इस दर्पण की भीतर से Need है। अत: यह जीवन And लगन-शक्ति को व्यक्त करने वाली प्रवृति है।’’ इस प्रकार Human-शिक्षा के History में फ्रोबेल पहला व्यक्ति है जिसने खेल के शैक्षिक महत्व को समझा और इसे शिक्षा का माध्यम बना दिया। फ्रोबेल ने खेल को आत्मप्रेरित, आत्मनियन्त्रित And स्वचालित क्रिया माना। ‘उपहार’ भी खेल साम्रगी है। फ्रोबेल के According प्रारम्भिक जीवन में मनोरंजनात्मक खेल उपयोगी है। Second स्तर पर Creationत्मक And उत्पादक खेलों को बौद्धिक And कलात्मक विकास हेतु आवश्यक माना गया। साथ ही समाजिकता के विकास हेतु समूह नृत्य, समूह गायन जैसे सामूहिक खेलों का भी आयोजन Reseller जाता है। शारीरिक, बौद्धिक And मानसिक विकास हेतु ‘उपहारों’ से सम्बन्धित खेल महत्वपूर्ण हैं।

फ्रोबेल ने खेल को अध्यापिकाओं या अध्यापकों के निर्देशन में आयोजित करने का सुझाव दिया। बच्चों के मनमाने ढंग से खेलने से शैक्षिक उद्देश्य पूरे नहीं होते हैं। बच्चों को किण्डरगार्टन में इस तरह से खेलने के लिए प्रेरित करना चाहिए कि प्रकृति द्वारा निर्धारित लक्ष्य यानि बच्चे के विकास के उद्देश्य को प्राप्त Reseller जा सके।

बचपन में खेल बच्चे की सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्रिया है तो किशोरावस्था में कार्य। अब प्रक्रिया की जगह किशोर की रूचि उत्पादन में होती है। अब उसके सामने Single निश्चित उद्देश्य रहता है। ये कार्य उसके वातावरण पर आधारित होते हैं। फ्रोबेल कार्य को र्इश्वरीय Reseller का बाह्य स्वReseller मानता है। वह कहता है ‘‘आदमी अपने दैवीय अस्तित्व को बाह्य स्वReseller प्रदान करने के लिए कार्य करता है जिससे वह अपनी अध्यात्मिक And दिव्य प्रकृति को पहचान सके। यह वस्तुत: आत्म-साक्षात्कार की प्रक्रिया है।’’

फ्रोबेल खेल, उपहार And अन्य वस्तुओं के व्यावहारिक उपयोग के अतिरिक्त उन्हें प्रतीक के तौर पर भी महत्वपूर्ण मानते हैं। उपहार विकास के नियमों का प्रतिनिधित्व करता है तो किण्डरगार्टन के फर्श पर का वृत्त सामूहिक जीवन का। फ्रोबेल का यह मानना था कि बच्चों में प्रतीकों के माध्यम से असीम कल्पनाशक्ति है। जैसे खेल में बच्चे डंडे को जांघों के मध् य रखकर घोड़े पर बैठने की कल्पना करता है। फ्रोबेल के According इस कल्पनाशक्ति का प्रयोग शिक्षा में कर बच्चे की सृजनशीलता बढ़ायी जानी चाहिए। प्रतीकों को महत्वपूर्ण मानने के कारण फ्रोबेल को रहस्यवादी माना जाता है।

विद्यालयी पाठ्यक्रम 

फ्रोबेल विभिन्न विषयों के अध्ययन-अध्यापन को साध्य न मानकर बच्चे के व्यक्तित्व के पूर्ण विकास का साधन माना है। इनसे बच्चा अपनी क्षमताओं को जान पाता है। फ्रोबेल का कहना है कि जीवन में चाहे जो स्थान हो प्रत्येक बच्चे लड़के और जवान को कम से कम Single-दो घंटे किसी Meansपूर्ण उत्पादन कार्य में लगाना चाहिए। वर्तमान में विद्याथ्र्ाी और अभिभावक काम को भावी जीवन हेतु हानिप्रद मानते हैं। शैक्षिक संस्थाओं का यह कर्तव्य है कि उनके इन पूर्वाग्रहों को समाप्त करे। वर्तमान बौद्धिक शिक्षा बच्चों आलसी बनाती है और Human शक्ति के बड़े हिस्से का उपयोग नहीं हो पाता है और वह बेकार जाता है। अत: उत्पादक कार्य को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

अन्य विषय जिनका अध्यापन Reseller जाना चाहिए वे हैं कला, प्रकृति अध्ययन तथा विद्यालय बगवानी। फ्रोबेल पाठ्यक्रम का विभाजन चार प्रमुख भागों में करते हैं: (अ) धर्म And धार्मिक शिक्षा (ब) प्राकृतिक विज्ञान And गणित (स) भाषा And (द) कला And कलात्मक वस्तु। इन विषयों के अध्ययन से छात्रों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास संभव हो सकता है। शिक्षा के History में फ्रोबेल पहला व्यक्ति था जिसने ‘क्रिया’ को पाठ्यक्रम में महत्वपूर्ण स्थान दिया।

किण्डरगार्टन 

अपने जीवन के बाद के वर्षों को फ्रोबेल ने किण्डरगार्टन की स्थापना की और विकास में लगाया। यही उसकी प्रसिद्धि का कारण भी है। किण्डरगार्टन Word जर्मन भाषा का Word है जिसका शाब्दिक Means ‘किण्डर’ Meansात् बालक तथा ‘गार्टन’ Meansात बाग होता है। फ्रोबेल के सिद्धान्त के According इस उद्यान में बालक पौधे, पाठशाला बगीचा तथा शिक्षक माली होता है।

‘किण्डरगार्टन’ नाम फ्रोबेल के मस्तिष्क में 1840 र्इ0 में आया जब वह बसन्त ऋतु में Single दिन अपने मित्रों के साथ किलहाउ से बेन्कनड्रग जा रहा था। उसने Single पहाड़ी से रीने नदी की घाटी को देखा जो उसे Single अतिसुन्दर बगीचे की तरह मनमोहक लगी। वह चिल्ला उठा ‘‘मुझे मिल गया। मेरी संस्था का नाम किण्डरगार्टन होगा।’’ यद्यपि वास्तविक Reseller में 1843 र्इ0 के First किण्डरगार्टन की स्थापना नहीं की गर्इ पर उपर्युक्त घटना के आधार पर किण्डरगार्टन की स्थापना का वर्ष 1840 बताया जाता है।

शिक्षण-विधि 

फ्रोबेल ने शिक्षण विधियों के प्रयोग पर जोर दिया-

  1. खेल विधि : फ्रोबेल First शिक्षाशास्त्री हैं जिन्होंने शिक्षा में खेल को महत्व को समझते हुए उसका उपयोग Reseller। उनके According खेल बालक की स्वभाविक क्रिया है और इसमें उन्हें आत्माभिव्यक्ति का अवसर मिलता है। फ्रोबेल के According खेल के द्वारा ही शिशु First संसार में अपने मौलिक Reseller को प्रस्तुत करता है। 
  2. आत्मक्रिया विधि : फ्रोबेल आत्मक्रिया विधि या स्वयं कर के सीखने की विधि को शिक्षा में महत्वपूर्ण मानता है। इसमें बालक स्वयं क्रिया करता है और सीखता है। इसके लिए उन्होंने अपनी किण्डरगार्टन पद्धति में अनेक प्रकार के उपहारों का विकास Reseller जिनमें गोलाकार, आयताकार, बेलनाकार, घनाकार, वर्गाकार तथा त्रिभुजाकार आकृति के लकड़ी, लोहे And ऊन से बनी वस्तुएं मुख्य हैं। 
  3. स्वतंत्र And निरन्तर सीखने की विधि : फ्रोबेल सीखने के लिए स्वतंत्रता And निरन्तरता को आवश्यक मानता है। उसके According बच्चों को स्वयं सीखने के लिए प्रेरित करना चाहिए तथा इनकी स्वतंत्रता में बाधा उत्पन्न नहीं करना चाहिए। 
  4. वस्तुओं से सीखने की विधि : फ्रोबेल की यह विधि मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों पर आधारित है। उसके According बच्चे अमूर्त संप्रत्ययों की तुलना में मूर्त And ठोस वस्तुओं से कम ही समय में प्रभावशाली ढंग से सीखते हैं। वर्तमान समय में श्रव्य-दृश्य सामग्रियों का शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में उपयोग Reseller जाता है। फ्रोबेल ने इसके स्थान पर उपहारों का उपयोग Reseller। 

अध्यापक का कार्य 

किण्डरगार्टन या बालोद्यान के प्रवर्तक फ्रोबेल के According अध्यापक का कार्य है- गीतों, खेलों और चित्रों आदि का सही चयन करना। गीत गाते हुए, खेल खेलते हुए, चित्रों को देखते तथा बनाते समय, बालक-बालिकाएं भी भाषा का प्रयोग करते हैं। फ्रोबेल का यह मानना था कि विद्यार्थियों को शिक्षण-अधिगम में गीत, गति और Creation तीन स्वतंत्र इकाइयाँ नहीं है। ये Single-Second से अलग महत्वहीन हैं।

फ्रोबेल के According बालक की खेल प्रवृतियों का ठीक दिशा में संचालन Reseller जाना चाहिए। समुचित निर्देशन के आभाव में खेल Single उद्देश्यहीन क्रिया बनकर रह जाती है। खेल का उचित दिशा में संचालन में अध्यापकों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। शिक्षक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किण्डरगार्टन (बालोद्यान) पद्धति में बालक-बालिकाएं इस प्रकार खेलें कि उनका स्वभाविक विकास हो सके।

फ्रोबेल के शिक्षा-दर्शन की सीमाएं 

फ्रोबेल ने शिक्षा के दार्शनिक पक्ष पर अत्यधिक जोर देकर शिक्षा की दार्शनिक संकल्पना को अध्यापकों And छात्रों के लिए अत्यधिक जटिल बना दिया है। डीवी के According ‘‘Single निष्पक्ष निरीक्षक को उसके (फ्रोबेल के) अधिकांश कथन बड़े विचित्र And असम्बद्ध लगेंगे इनमें उसने व्यर्थ में ही साधारण सरल तथ्यों को आत्मगत दार्शनिक तर्कों के आधार पर समझाया है।

फ्रोबेल ने आन्तरिक विकास पर बहुत अधिक जोर दिया है। इससे बाह्य विकास की उपेक्षा हुर्इ। वस्तुत: आन्तरिक And बाह्य दोनों पक्षों का ही समन्वित विकास होना चाहिए।

फ्रोबेल के द्वारा प्रस्तावित चित्र और गीत बहुत पूराने हो गये हैं। All स्थानों और संदर्भों में उनका उपयोग नहीं Reseller जा सकता है। उपहारों और कार्यों को उपस्थित करने में जड़ता And नियन्त्रण है। ‘उपहार’ आधुनिक युग की Need के अनुReseller नहीं है। डीवी ने इस तथ्य का History करते हुए कहा ‘‘वस्तुओं को यथासंभव वास्तविक जीवन से सम्बन्धित होना चाहिए।’’

साथ ही किण्डरगार्टन के गीत, खेल उपहारों के प्रयोग में अनुकरण And निर्देश पर काफी जोर है। वस्तुत: बच्चों को स्वत: क्रिया करने का अवसर मिलना चाहिए।

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