जनसांख्यिकी का Means, परिभाषा, क्षेत्र, प्रकृति And महत्व

‘Demography’ Word जिसका हिन्दी में Means जनसांख्यिकी होता है की उत्पत्ति ग्रीक भाषा से हुई है। ‘Demography’ ग्रीक भाषा के दो Wordों से मिलकर बना है। First Word है- Demas (डिमास) जिसका Means होता है- मनुष्य (People) और दूसरा Word है Grapho (ग्राफो) जिसका Means होता है- लिखना या अंकित करना (To draw or write about people) इस प्रकार Demography का शाब्दिक Means हुआ- मनुष्य या जनता के विषय में लिखना या अंकित करना हुआ। (To draw or write about people) जैसा कि अशिले गुइलार्ड ने संक्षेप में कहा है “It is the science which studies the number of people”- Achille Guillard Meansात् यह वह विज्ञान है, जो मनुष्यों की संख्या के विषय में अध्ययन करता है।

‘डिमोग्राफी’ (जनसांख्यिकी) Word का First प्रयोग फ्रांसीसी विद्वान ‘अशिले गुइलार्ड’ द्वारा 1855 में अपनी पुस्तक ‘Elements destatique human on demographic compare’ में Reseller गया। लेकिन Single विशिष्ट और स्वतंत्र विज्ञान के Reseller में इसकी नींव इंग्लैण्ड के विद्वान जॉन ग्रान्ट (John Graunt) द्वारा 1662 में रखी जा चुकी थी। जॉन ग्रान्ट ने 1662 में अपनी महत्वपूर्ण कृति जिसका नाम ‘Natural and Political observation made upon the bills of mortality’ था द्वारा जनसांख्यिकी का सूत्रपात कर दिया था। यही कारण है कि इन्हें जनसांख्यिकी के जनक की संज्ञा प्राप्त है।

डिमोग्राफी Word के जन्म के पूर्व जनसंख्या सम्बन्धी अध्ययनों के लिए कुछ अन्य नाम भी समय-समय पर प्रचलित रहे हैं यथा डिमोलाजी (Demology) व जनसंख्या का अध्ययन (Population studies) आदि पर ये Word अधिक दिन तक नहीं चल सके, और न ही लोकप्रिय हो सके। अत: 1662 में अशिले गुइलार्ड द्वारा ग्रीस भाषा का Word ‘डिमोग्राफी’ ही अधिक लोकप्रिय And प्रचलित है।

इस प्रकार संक्षेप में शाब्दिक Means से हमें demography का आशय विदित हो जाता है कि डिमोग्राफी जनसंख्या की विशेषताओं का अध्ययन और विश्लेषण करने वाला विज्ञान है। विभिन्न विद्वानों ने ‘जनसांख्यिकी’ से क्या आशय समझा है यह भी जानना आवश्यक है क्योंकि विद्वानों की दृष्टि Means के समत्व को हमें ठीक से समझाता है। जनसांख्यिकी की परिभाषाओं पर यदि दृष्टि डाली जाय तो स्पष्ट होता है कि समाजशास्त्रियों, Meansशास्त्रियों And शिक्षाविदों द्वारा जनसांख्यिकी की परिभाषा पर दिये गये विचारों में Singleत्व नहीं है। कुछ विद्वानों ने इस शास्त्र के विषय-वस्तु को आधार मानकर परिभाषा दी है तो कुछ विद्वान ने इसकी वैज्ञानिकता, उपयोगिता And महत्ता को ध्यान में रखकर इसे परिभाषित Reseller है। Single Meansशास्त्री जनसंख्या को श्रमपूर्ति के Reseller में उपभोक्ता के Reseller में देखता है और जनसांख्यिकी के अध्ययन को विकास के Meansशास्त्र का अंग मानता है। समाजशास्त्रियों द्वारा जनसांख्यिकी में जनसंख्या के सामाजिक पहलुओं का अध्ययन Reseller जाता है। जीव शास्त्री तथा भूगोलशास्त्री जनसांख्यिकी में जैविक तथ्यों And भौगोलिक वितरण का अध्ययन करते हैं। यही कारण है कि किसी Single परिभाषा में All तत्त्वों को Single साथ समावेश कर प्रस्तुत करना कठिन है।

जनसांख्यिकी की परिभाषा

अध्ययन सरलता की दृष्टि से विभिन्न जनसांख्यिकीविदों द्वारा दी गई परिभाषा को आइये हम दो शीर्षकों में वर्गीकृत कर अध्ययन करते हैं-

  1. संकुचित दृष्टिकोण।
  2. व्यापक दृष्टिकोण।

संकुचित दृष्टिकोण –

संकुचित दृष्टिकोण की परिभाषाओं में जनसंख्या के परिमाणात्मक पहलू को सम्मिलित Reseller जाता है तथा जीवन समंकों के अध्ययन And विश्लेषण में सांख्यिकीय पद्धतियों को महत्त्व प्रदान Reseller जाता है। प्राय: जनसंख्या को प्रभावित करने वाले पांच कारकों- प्रजनन, विवाह, मृत्यु, प्रवास And सामाजिक गतिशीलता का अध्ययन दो शीर्षकों जनसंख्या की संCreation अथवा गठन तथा समयानुसार परिवर्तन के अन्तर्गत Reseller जाता है। यह पांचों कारक जनसंख्या के आकार, प्रादेशिक वितरण, संCreation के निर्धारण में सदैव सक्रिय रहते हैं और जनसंख्या को गतिशील बनाये रखते हैं। संकुचित दृष्टिकोण वाली जनसांख्यिकी की प्रमुख परिभाषाएं हैं-

  1. अशिले गुइलार्ड (Achille Guillard) के According, ‘‘यह (जनसांख्यिकी) जनसंख्या की सामान्य गति और भौतिक, सामाजिक तथा बौद्धिक दशाओं का गणितीय ज्ञान है।’’
  2. लिवासियर (Levasseur) के According, ‘‘यह (जनसांख्यिकी) साधारणतया जनसंख्या का विज्ञान है जो मुख्यतया जन्मों, विवाहों, मृत्युओं तथा जनसंख्या के प्रवास की गति को सुनिश्चित करने के साथ ही साथ उन नियमों की खोज कराने का भी प्रयास करता है जो इन गतियों को नियमन करते हैं।’’ लिवासियर ने अपनी परिभाषा जीवन समंकों (Vital Statistics) से सम्बद्ध करने का प्रयास करके ऐतिहासिक महत्ता को रेखांकित Reseller है।
  3. बेन्जामिन बी (Benjamin , B) के According, ‘‘जनसांख्यिकी, सामूहिक Reseller में Human जनसंख्या की वृद्धि, विकास तथा गतिशीलता से सम्बन्धित अध्ययन है।’’
  4. हिप्पल, जी0सी0 (Whipple, G.C.) के According, ‘‘जनसांख्यिकी वह विज्ञान है जो Human पीढ़ी, उसकी वृद्धि, हृास तथा मृत्यु का सांख्यिकीय पद्धति से अध्ययन करता है।
  5. वान मैयर, जी0 (Von Mayer, G.) के According, ‘‘जनसांख्यिकी, जनसंख्या की दशा And गतिशीलता का सांख्यिकीय विश्लेषण है, जिसके अन्तर्गत जनगणना And जैवकीय घटनाओं का पंजीकरण Reseller जाता है तथा इस प्रकार जनगणना And पंजीकरण से प्राप्त मौलिक आंकड़ों के आधार पर जनसंख्या की दशा And गतिशीलता का सांख्यिकीय विश्लेषण Reseller जा सकता है।’’ इस परिभाषा में जनसांख्यिकी को Human-जीवन का लेखा-जोखा रखने वाली सांख्यिकीय पद्धति के Reseller में विकसित Reseller गया है जिसके अन्तर्गत जनसंख्या और प्रमुख जैवकीय घटनाओं का नियमित Reseller से अध्ययन And विश्लेषण होता रहता है।
  6. पी0आर कॉक्स (P.R. Cox) के Wordों में जनसांख्यिकी वह विज्ञान है जिसमें Human जनसंख्या के अध्ययन में सांख्यिकीय पद्धतियों का प्रयोग Reseller जाता है तथा यह मुख्यतया जनसंख्या के आकार, वृद्धि अथवा ह्रास, जीवित व्यक्तियों की संख्या तथा अनुपात, किसी क्षेत्र विशेष में जन्में तथा मृत तथा ऐसे फलनों की माप जैसे प्रजननशीलता, मृत्यु तथा विवाह दरों से सम्बन्धित है।’’ इस तरह कॉक्स ने जनसांख्यिकी के अध्ययन में सांख्यिकीय पद्धतियों के प्रयोग को महत्व प्रदान Reseller है और जीवन समंकों के अध्ययन And विश्लेषण की सार्थकता की विवेचना की है।

व्यापक दृष्टिकोण –

व्यापक दृष्टिकोण वाली परिभाषाओं में जनसंख्या के परिमाणात्मक अध्ययन And विश्लेषण के साथ-साथ गुणात्मक पहलू पर भी ध्यान दिया गया है। ऐसा करके जनसांख्यिकी को Single विस्तृत सामान्य And व्यावहारिक विज्ञान के Reseller में विकसित करने का प्रयास Reseller है। इससे सम्बन्धित कुछ परिभाषाएं इस प्रकार हैं :-

  1. हाउजर And डंकन (Hauser and Dancan) के According, ‘‘जनसांख्यिकी जनसंख्या के आकार, क्षेत्रीय वितरण, गठन व उनमें परिवर्तन के घटक, जो कि जन्म, मृत्यु क्षेत्रीय गमन (प्रवास) And सामाजिक गतिशीलता (स्तर में परिवर्तन) के Reseller में जाने-जाते हैं, का अध्ययन करता है।’’ इस परिभाषा में जनसंख्या की संCreation के अन्तर्गत जनसंख्या के परिणात्मक तथा गुणात्मक दोनों पक्षों का समावेश है। परिभाषा में सामाजिक गतिशीलता के अध्ययन पर विशेष बल दिया गया है क्योंकि जनसंख्या के जन्म, मृत्यु से ही परिवर्तन नहीं आता वरन् सामाजिक स्तर में परिवर्तन जैसे अविवाहित से विवाहित हो जाना, विवाहित से विधुर/विधवा, बेरोजगार से रोजगार होना आदि भी महत्वपूर्ण कारक है जो जनसंख्या को प्रभावित करते हैं।
  2. थाम्पसन And लेविस (Thompson and Lewis) के According, ‘‘इसकी (जनसांख्यिकी) रूचि वर्तमान समय की जनसंख्या के आकार, संCreation तथा वितरण में ही नहीं बल्कि समय-समय पर इन पक्षों में हो रहे परिवर्तनों And इन परिवर्तन के कारणों में भी है।’’ उपरोक्त परिभाषा का History दोनो अमेरिकन जनसांख्यिकीविदों ने 1930 में अपनी पुस्तक “Population Problems” में Reseller था। इन्होंने अपने Population Study में जनसंख्या का आकार (Size of Population), जनसंख्या की संCreation (Composition of Population) And जनसंख्या का वितरण (Distribution of Population) को शामिल कर जनसांख्यिकी के अध्ययन को व्यापक बनाने का प्रयास Reseller।
  3. प्रो0 डोनाल्ड जे. बोग (Prof. Donold J. Bogue)- प्रो0 बोग अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र के प्राध्यापक रहे हैं। 1969 में प्रकाशित अपनी पुस्तक Principles of demography में जनसांख्यिकी के आधारभूत नियमों, प्रक्रियाओं And विषयवस्तु की विधिवत् विवेचना प्रस्तुत की। प्रो0 बोग के According, ‘‘जनसांख्यिकी पांच प्रकार की जनसांख्यिकी प्रक्रियाओं, प्रजननशीलता, मृत्युकम, विवाह, प्रवास तथा सामाजिक गतिशीलता का परिणामात्मक अध्ययन है।

कुछ अन्य परिभाषाएं-

  1. बर्कले (Barclay) के According, ‘‘जनसंख्या के आंशिक चित्रण को कभी-कभी जनसांख्यिकी के Reseller में जाना जाता है तथा इसमें कुछ विशिष्ट प्रकार के समंकों के द्वारा निResellerित व्यक्तियों का समग्र दृष्टिकोण से अध्ययन Reseller जाता है। जनसांख्यिकी का सम्बन्ध समूह व्यवहार से होता है न कि किसी व्यक्तिगत व्यवहार से।’’
  2. स्पेंगलर And डंकन (Spengler and Duncan) के According, ‘‘बहुत से अन्य विषयों की भांति जनसांख्यिकी भी अपने में विविध विषयों को समेटे हुए है, परन्तु आज इसका क्षेत्र समन्वित ज्ञान के निकाय तक ही सीमित है जो कुल जनसंख्या तथा उसमें परिमार्जन करने वाले तत्वों से सम्बन्धित है। इन तत्वों के अन्तर्गत समुदायों का आकार, जन्म, विवाह तथा मृत्यु दरें, आयु संCreation तथा प्रवास को सम्मिलित Reseller जाता है।’’
  3. विक्टर पेट्रोव (Victor Petrov) के According, ‘‘जनसांख्यिकी वह विज्ञान है जो जनसंख्या की संCreation तथा आवागमन का अध्ययन करता है।’’

उपर्युक्त परिभाषाओं से हम जनसांख्यिकी का Means या आशय को व्यापक Reseller में जान गये हैं कि जनसांख्यिकी के अन्तर्गत जनसंख्या के समस्त निर्धारक तत्वों तथा उनके परिणामों का अध्ययन Reseller जाता है। इसके अन्तर्गत जनसंख्या के परिमाणात्मक तथा गुणात्मक दोनों ही पक्षों का अध्ययन व विश्लेषण Reseller जाता है।

जनसांख्यिकी का क्षेत्र

जनसांख्यिकी के छात्र के Reseller में इस तथ्य से आप परिचित हैं कि जनसांख्यिकी Single गतिशील विज्ञान है। अत: इसके क्षेत्र में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है। प्रसिद्ध Meansशास्त्री डॉ0 जॉन मेनार्ड कीन्स ने कहा है कि क्षेत्र (Scope) के अध्ययन में तीन बातें शामिल होना चाहिए-

जनसांख्यिकी की विषय सामग्री

जनसांख्यिकी के विषय में अध्ययन करने पर आपको ज्ञात हो गया है कि जनसांख्यिकी की सर्वसम्मत या सर्वमान्य परिभाषा देना बहुत की कठिन है। इसके क्षेत्र और विषय सामग्री का कोई सर्वसम्मत तथ्य प्राप्त नहीं है। इस सन्दर्भ में दो दृष्टिकोण है यथा- व्यापक दृष्टिकोण- जिसके अन्तर्गत प्रमुख Reseller से स्पेंग्लर (Spangler), वॉन्स (Vance), राइडर (Ryder), लोरिमेर ;स्वतपउमतद्ध तथा मूरे (Moore) आदि के विचारों को सम्मिलित Reseller जा सकता है। दूसरा दृष्टिकोण संकुचित दृष्टिकोण- जिसके अन्तर्गत प्रमुख Reseller में हाउजर And डंकन (P.H. Houser and D. Duncan), बर्कले (Barclay), थाम्पसन तथा लेविस (Thompson and Lewis) व आइरीन टेउबर (Irene Teauber) आदि के विचारों को सम्मिलित Reseller जा सकता है।

वर्तमान समय में जनसांख्यिकी विज्ञान की व्यापकता And उपादेयता के आधार पर इस शास्त्र की विषय सामग्री को विद्वानों ने पांच भागों में विभाजित Reseller है-

  1. जनसंख्या का आकार (Size of Population)
  2. जनसंख्या की संCreation अथवा गठन (Composition of Population)
  3. जनसंख्या का वितरण (Distribution of Population)
  4. जनसंख्या को प्रभावित करने वाले तत्व (Factors Influencing Change in Population)
  5. जनसंख्या नीति (Population Policy)।

जनसंख्या का आकार

किसी समय, किसी स्थान विशेष में रहने वाली Human समुदाय की सम्पूर्ण जनसंख्या को उस स्थान विशेष की जनसंख्या का आकार कहा जाता है। कहने में तो यह आसान लगता है लेकिन ऐसा है नहीं। यह Single जटिल प्रक्रिया के अन्तर्गत आता है। जनसंख्या का आकार जानने के लिए First स्थान (Place), समय (Time) तथा व्यक्ति (Person) को स्पष्ट Reseller से परिभाषित Reseller जाता है उसके बाद पंजीकरण (Registration) अथवा निदर्शन (Sample) अथवा जनगणना (Census) के आधार पर जनसंख्या के आकार का आकलन Reseller जाता है। इस प्रक्रिया में मात्र आकार (Size) ही जान लेना पर्याप्त नहीं होता वरन् जनसंख्या में परिवर्तन- वृद्धि, ह्रास या स्थिरता भी जानना आवश्यक होता है। परिवर्तन के साथ परिवर्तन की दर And भविष्य में उसके वृद्धि या घटने की दर का अनुमान भी लगाया जाता है।

इसके अलावा इस तथ्य का विश्लेषण करना आवश्यक होता है कि जनसंख्या परिवर्तन के लिए कौन-कौन से कारक महत्वपूर्ण हैं? ये कारक प्रमुख Reseller से जन्म (Natality), मृत्यु (Mortality) तथा प्रवास (Migration) है जिन्हें जनसांख्यिकी प्रक्रिया के Reseller में अध्ययन Reseller जाता है। Single ओर जनसंख्या जहाँ जैविकीय तत्वों से प्रभावित होती है तो दूसरी ओर उस देश के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक तत्व भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं। यही कारण है कि जनसांख्यिकीविद् को जीवविज्ञानी, समाजशास्त्री Meansशास्त्री, गणितज्ञ और सांख्यिकीवेत्त्ाा की भी भूमिका निभानी पड़ती है।

जनसंख्या की संCreation अथवा गठन

जनसंख्या की संCreation अथवा गठन का अध्ययन करना जनसांख्यिकी का दूसरा महत्वपूर्ण विषय है। जनसंख्या का आकार जहां परिमाणात्मक व्याख्या करता है। वहीं जनसंख्या की संCreation से गुणात्मक विश्लेषण संभव हो पाता है। इसके अध्ययन से हमें उस स्थान विशेष की जनसंख्या की विशेषताओं की स्पष्ट जानकारी हो पाती है। दो स्थानों की जनसंख्या का आकार समान होने पर भी उनमें आयु, लिंग, जाति, धर्म तथा निवास आदि की भिन्नता हो सकती है। सामाजिक संCreationगत विकास, भिन्नता, समानता, विशेषता ऐसे महत्वपूर्ण तथ्य सामने आते हैं जो गुणात्मक व्याख्या को स्पष्ट समझाते हैं। इस तरह जनसंख्या का आकार व्यष्टिगत व्याख्या (Macro Analysis) करता है तो जनसंख्या की संCreation व्यक्तिगत व्याख्या (Micro Analysis) करता है।

प्रो0 हाले के According जनसंख्या की संCreation के अध्ययन से प्रमुख चार उद्देश्य प्राप्त होते हैं-

  1. इससे विभिन्न जनसमुदाय में परस्पर तुलना (Inter Population Composition) संभव हो पाता है।
  2. किसी समाज में श्रमशक्ति (Labour Force) का अनुमान लगाया जा सकता है।
  3. जनसंख्या संCreation को जानने के बाद ही जनसांख्यिकी प्रक्रिया को समझ सकते हैं। यथा जन्म दर And मृत्यु दर जानने के लिए आयु संCreation तथा लैंगिक संCreation जानना आवश्यक है।
  4. संCreation सम्बन्धी सूचनाओं द्वारा सामाजिक व्यवस्था और उसमें संभावित परिवर्तन का अनुमान लगा सकते हैं।

जनसांख्यिकी विशेषताओं के आधार पर जनसंख्या का वर्गीकरण (Classification) Reseller जा सकता है जैसे-

  1. आयु संCreation (Age Composition)
  2. लैंगिक संCreation (Sex Composition)
  3. कार्यशील जनसंख्या (Working Population)
  4. वैवाहिक प्रस्थिति (Marital Status)
  5. शैक्षणिक स्तर (Educational Standard)
  6. धर्मानुसार या जाति के According वितरण

आयु And लैंगिक वितरण जनसांख्यिकी में अत्यन्त महत्वपूर्ण कारक हैं। यदि समाज में बच्चों की संख्या अधिक होगी तो मृत्यु दर अधिक होगी, श्रमशक्ति कम होगी। फलत: राष्ट्रीय विकास में, उत्पादन में योगदान नगण्य होगा। वृद्ध अधिक होंगे तब भी यही बात होगी। लेकिन युवा शक्ति अधिक है तो उसका योगदान विशिष्ट होगा। इसके अलावा ग्रामीण व शहरी जनसंख्या, वैवाहिक स्थिति, कार्य, व्यवसाय, शिक्षा तथा धर्म जाति ऐसे घटक हैं जो जन्मदर, मृत्युदर And प्रवास को प्रभावित कर जनसंख्या को निर्धारित करते हैं। जनसंख्या की संCreation And जनसंख्या की प्रक्रिया परस्पर Single Second को प्रभावित करते रहते हैं।

थाम्पसन तथा लेविस के Wordों में, ‘‘जनसंख्या की संCreation तथा उसकी मृत्युदर, प्रजनन दर तथा शुद्ध प्रवास के मध्य परस्पर अनुक्रमात्मक (Reciprocal) सम्बन्ध पाया जाता है। Meansात् संCreation, आयु तथा लिंग की संCreation के माध्यम से प्रभावित करती है।’’

जनसंख्या की संCreation के सम्बन्ध में डंकन तथा हाउजर कहते हैं, ‘‘जनसंख्या संCreation के अन्तर्गत जनसंख्या की आयु, लिंग तथा वैवाहिक स्थिति जैसे पहलू ही नहीं आते, बल्कि स्वास्थ्य स्तर, बौद्धिक स्तर, प्रशिक्षण से प्राप्त तकनीकि की क्षमता आदि गुण भी शामिल किये जाते हैं।’’

जनसंख्या का वितरण

जनसंख्या का वितरण, जनसांख्यिकी के अध्ययन क्षेत्र का तीसरा महत्वपूर्ण भाग है। इसके अन्तर्गत यह अध्ययन Reseller जाता है कि विश्व अथवा उसके किसी भू-भाग में जनसंख्या का वितरण कैसा है? तथा इस वितरण में परिवर्तन का स्वReseller कैसा है? प्रो0 डोनाल्ड जे0 बोग का मत है कि किसी देश की जनसंख्या का अध्ययन दो प्रकार से Reseller जा सकता है-

  1. समग्रात्मक विधि (Aggregative Method)- इस विधि के According देश को Single समग्र इकाई मानकर उसकी जनसंख्या के आकार, गठन व परिवर्तनों का अनुमान लगाया जाता है।
  2. वितरणात्मक विधि (Distribution Method)- इस विधि के According किसी भी देश के छोटे-छोटे खण्डों की जनसंख्या के आकार व गठन का अध्ययन Reseller जाता है तदोपरान्त निष्कर्ष निकालना चाहिए। वास्तव में दोनों विधियाँ Single Second के विरोधी नहीं वरन् पूरक हैं।

जनसंख्या सम्बन्धी आंकड़े दो आधार पर Singleत्रित किये जाते हैं (1) भौगोलिक इकाई यथा- महाद्वीप, रेगिस्तानी क्षेत्र, पर्वतीय तथा सम्पूर्ण विश्व का आधार मानकर तथा (2) प्रशासनिक इकाई यथा- देश, प्रदेश, जिला, शहर, ब्लॉक, नगर निगम, जिला परिषद, नगरपालिका, ग्राम व मुहल्ले आदि को आधार मानकर।
थाम्पसन तथा लेविस ने विश्व की जनसंख्या के वितरण का अध्ययन करने के लिए नगरीकरण तथा औद्योगीकरण के आधार पर तीन श्रेणियाँ बनाई है

  1. उन्नत नगरीय औद्योगिक क्षेत्र (Advanced Urban Industrial Region)
  2. नव-नगरीय औद्योगिक क्षेत्र (New-urban Industrial Region)
  3. नगरीय And औद्योगिक विकास से पूर्व की स्थिति

जनसंख्या के वितरण का अध्ययन जनघनत्व के आधार पर आसानी से Reseller जा सकता है। विभिन्न उद्देश्यानुसार घनत्व जानकर जनसंख्या का दबाव का अनुमान कर सकते हैं, जैसे- जनघनत्व, कृषि घनत्व, आर्थिक घनत्व आदि। जन घनत्व के निर्धाय तत्वों को तीन भागों में बांट सकते हैं-

  1. भौगोलिक और प्राकृतिक कारक- जलवायु, वनस्पति, भू-संCreation पर्वत, पठार, मैदान, हिम क्षेत्र, वन क्षेत्र, रेगिस्तानी क्षेत्र इत्यादि।
  2. सांस्कृतिक, सामाजिक And आर्थिक कारक- उद्योग, व्यापार, व्यवसाय, शहरीकरण, रोजगार आदि।
  3. जनसांख्यिकीय कारक- इसके अन्तर्गत जन्मदर, मृत्युदर तथा प्रवास दर को सम्मिलित Reseller जाता है।

जनसंख्या को प्रभावित करने वाले तत्व

उपर्युक्त अध्ययन से हम यह जान गये है कि विभिन्न तत्वों से प्रभावित जनसंख्या में सतत् परिवर्तन होता रहता है। इन परिवर्तनों की गति, दिशा, दशा के According भावी जनसंख्या का अनुमान लगाना जनसांख्यिकी के अध्ययन क्षेत्र का Single महत्वपूर्ण हिस्सा है। जनसांख्यिकी प्रवृत्तियों के साथ-साथ सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक परिवर्तन भी जनसंख्या की संCreation तथा आकार को प्रभावित करते हैं।

जनसंख्या नीति

आप समझ गये होंगे कि आधुनिक जगत् में जनसंख्या नीति जनसांख्यिकी के अध्ययन क्षेत्र का Single महत्वपूर्ण अंग बन गया है। जनसंख्या नीति, जनसांख्यिकी के प्रति सरकारी चिन्तन And निर्धारण-नियंत्रण हेतु दस्तावेज होता है। जनसंख्या का आकार देश के साधनों के अनुReseller कैसे सामंजस्य बैठाये, वृद्धि या ह्रास की दर कितनी रहे? कैसे परिमाणात्मक या गुणात्मक सुधार लाया जाय इस पर जनसंख्या नीति में विचार प्रस्तुत होता है। परिवार कल्याण या नियोजन प्रभावी ढंग से क्रियान्वित हो? कौन-कौन से नियंत्रण हेतु सरकारी उपाय हो, प्रोत्साहन या दण्ड का स्वReseller कैसा हो इत्यादि नियोजन की विशद व्याख्या नीति में निResellerित रहती है।

विश्व जनसंख्या सम्मेलनों And क्षेत्रीय जनसंख्या अध्ययन केन्द्रों में जनसंख्या सम्बन्धी निम्न विषयों का अध्ययन व विश्लेषण Reseller जाता है जिसे जनसांख्यिकी क्षेत्र (Scope of Demography) के अन्तर्गत सम्मिलित कर सकते हैं यथा –

  1. प्रजनन शक्ति And प्रजनन दर
  2. मृत्युक्रम And अस्वस्थता
  3. विवाह And वैवाहिक दरें-प्रस्थिति
  4. आयु तथा लैंगिक संCreation
  5. आवास And प्रवास
  6. प्रक्षेपण (Population Projection)
  7. जनसंख्या And साधन
  8.  जनसंख्या का आकार, गठन And वितरण
  9. परिवार कल्याण, नियोजन
  10. जनसांख्यिकीय मापन
  11. जनसांख्यिकीय शोध
  12. प्रशिक्षण
  13. श्रमपूर्ति के जनसांख्यिकी पहलू
  14. जनसंख्या के गुणात्मक स्तम्भ- शिक्षा, आवास, जीवन शैली
  15. जनसंख्या And सामाजिक आर्थिक विकास

 जनसांख्यिकी की प्रकृति

आइये जनसांख्यिकी की प्रकृति समझने में आपकी मदद करें- यह (जनसांख्यिकी) वह विज्ञान है जो Human जनसंख्या के विषय में अध्ययन करता है। चूँकि यह मनुष्य की संख्या And Humanीय विशेषताओं का अध्ययन करता है अत: यह सतत् परिवर्तनशील प्रवृित्त्ायों का अध्ययन करता है क्योंकि किसी भी क्षेत्र यथा- देश, राज्य, जिला, नगर या गांव की जनसंख्या जन्म And अन्त: प्रवास (In-migration) से बढ़ती है और मृत्यु और वाह्य प्रवास (Out-migration) से घटती है। इस प्रक्रिया में जनसंख्या के निर्धारक तत्व लैंगिक स्वReseller, आयु- संCreation, वैवाहिक प्रस्थिति, शैक्षिक प्रगति, श्रमिकों का वर्गीकरण व आर्थिक क्रियाओं में भी परिवर्तन होता रहता है। इससे सम्बन्धित समस्त सूचनाएं या आंकड़े तभी मिलते है जब सतत् अधिकार सम्पन्न संस्थायें इस कार्य को सावधानीपूर्वक पंजीकरण करते हुए करती हैं।

जनसांख्यिकी विज्ञान है। वैज्ञानिकता ही इसकी प्रकृति है। क्रमबद्ध अध्ययन ही विज्ञान है। विज्ञान ज्ञान का वह क्रमबद्ध Reseller है जो किसी विशेष घटना या तथ्य के कारण तथा परिणामों के पारस्परिक सम्बन्ध को प्रकट करता है। यहां स्मरणीय है कि तथ्यों को केवल इकट्ठा करना ही विज्ञान नहीं है बल्कि विज्ञान होने के लिए तथ्यों का क्रमबद्ध Reseller में Singleत्रित करना, उनका वर्गीकरण व विश्लेषण करना और उसके फलस्वReseller कुछ नियमों And सिद्धान्तों का प्रतिपादन करना होता है। संक्षेप में आइये जानते हैं कि विज्ञान होने के लिए निम्न बातों का ज्ञान होना आवश्यक है-

  1. ज्ञान का अध्ययन क्रमबद्ध होना चाहिए।
  2. विज्ञान के अपने नियम और सिद्धान्त होने चाहिए।
  3. यह सिद्धान्त कारण और परिणाम के सम्बन्ध के आधार पर निर्मित होने चाहिए।
  4. ये नियम सार्वभौमिक Reseller से सत्य होने चाहिए।

जनसांख्यिकी को Single विज्ञान माना जाता है जिसके पक्ष में तर्क दिये जाते हैं-

  1. वैज्ञानिक तकनीकि का प्रयोग- जनसांख्यिकी में अध्ययन की वैज्ञानिक तकनीकि का प्रयोग Reseller जाता है। इसमें तथ्यों का संकलन प्रश्नावली And अनुसूची के माध्यम से Reseller जाता है तथा तथ्यों के विश्लेषण द्वारा सामान्य सिद्धान्तों का प्रतिपादन Reseller जाता है।
  2. तथ्यपरक अध्ययन- जनसांख्यिकी के अन्तर्गत जनगणना की सहायता से जनसंख्या का तथ्यपरक अध्ययन Reseller जाता है। जनगणना में जनसंख्या की वस्तुगत गणना की जाती है।
  3. कारण-परिणाम- इसके अन्तर्गत कारण-परिणाम सम्बन्धों का विश्लेषणात्मक अध्ययन Reseller जाता है।
  4. सार्वभौमिकता- इसके द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तों की सत्यता सार्वभौमिक होती है।
  5. सत्यता का परीक्षण- जनसांख्यिकी सिद्धान्तों की सत्यता का परीक्षण Reseller जा सकता है। 6. पूर्वानुमान- जनसांख्यिकी विधियों के विश्लेषणात्मक अध्ययन से भविष्य की घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। 

जनसांख्यिकी Single स्थैतिक विज्ञान (Static Science) नहीं है अपितु प्रावैगिक विज्ञान है। इसमें Single अवधि के अन्तर्गत जनसंख्या में होने वाले परिवर्तनों तथा भविष्य में जनसंख्या के परिवर्तनों का अनुमान लगाया जाता है। चूंकि यह समय And परिवर्तनों का अध्ययन करता है। अत: यह प्रावैगिक विज्ञान (Dynamic Science) है। अन्तत: इस तरह कहा जा सकता है कि जनसांख्यिकी न केवल सैद्धान्तिक विज्ञान है वरन् इसे व्यावहारिक विज्ञान की भी संज्ञा प्रदान की जा सकती है।

जनसांख्यिकीय विश्लेषण की रीतियां 

जनसांख्यिकी के अन्तर्गत जनसंख्या की स्थिति तथा उसमें होने वाले परिवर्तनों के माप का अध्ययन And विश्लेषण Reseller जाता है। जनसांख्यिकी के All तत्व गतिशील होते हैं तथा इनमें निरन्तर परिवर्तन होता रहता है फलत: निरन्तर आंकड़े इकट्ठा करना, वर्गीकरण, सम्पादन, विश्लेषण होता रहता है। सामान्यतया, जनसांख्यिकी के अध्ययन हेतु दो प्रमुख रीतियों से Reseller जाता है- (1) विशिष्ट रीति (2) व्यापक रीति।

व्यक्ति, विशिष्ट या सूक्ष्म जनसांख्यिकी रीति

इस रीति के अन्तर्गत किसी देश के व्यष्टि या विशिष्ट समूहों, घटकों तथा उनसे सम्बन्धित समस्याओं And घटनाओं का अध्ययन Reseller जाता है। इस विश्लेषण में संCreation का अध्ययन महत्वपूर्ण होता है। सूक्ष्म या व्यष्टि विश्लेषण की सहायता से Single सीमित क्षेत्र की जनसांख्यिकीय विशेषताओं का गहनता से अध्ययन करना सम्भव हो जाता है। अनुसन्धान की दृष्टि से यह विश्लेषण अत्यन्त उपयोगी है क्योंकि इसकी सहायता से किसी छोटे से क्षेत्र की सम्यक् जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

व्यापक या समष्टि जनसांख्यिकीय रीति

व्यापक या समष्टि विश्लेषण जनसांख्यिकीय रीति के अन्तर्गत किसी देश के विभिन्न समुदायों And क्षेत्रों की जनसांख्यिकीय घटनाओं को पृथक-पृथक करके सामूहिक Reseller से अध्ययन Reseller जाता है। इससे विभिन्न देशों की जनसांख्यिकीय स्थिति का तुलनात्मक अध्ययन करने में सहायता मिलती है। यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व के समस्त देशों से जनगणना (Census) को Single ही समय से सम्बन्धित करने का आग्रह Reseller है। इस रीति से जनसंख्या की वृद्धि-दर, जन्म-दर, मृत्यु-दर, विवाह की दर, जीवन तालिका, जनसंख्या पिरामिड, राष्ट्रीय जनसंख्या नीति का विश्लेषण आसान हो जाता है। इस रीति से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर तुलनात्मक अध्ययन सहज हो जाता है।

जनसांख्यिकीय विश्लेषण के लिए दोनों रीतियों का प्रयोग आवश्यक है- वास्तव में उपर्युक्त दो रीतियाँ भिन्न-भिन्न अवश्य हैं लेकिन दोनों अन्तरविरोधी नहीं वरन् Single दूसरी के पूरक हैं। विश्लेषण के लिए Single ही रीति नहीं वरन् दोनों रीतियों का प्रयोग जनसांख्यिकी के लिए श्रेयस्कर होगा। इस दृष्टि से यदि यह कहा जाय कि इन दोनों दृष्टिकोणों से तथ्य का सम्मिलित अध्ययन विषय के ज्ञान को पूर्णता प्रदान करता है तो गलत न होगा। अमेरिकी जनसांख्यिकीविद् थाम्पसन And लेविस ने अपनी पुस्तक Population problems में स्पष्ट Reseller है कि जनसंख्या के विभिन्न पक्षों के अध्ययन को जनसंख्या अध्ययन (Population study) कहा जाता है। ‘‘इसकी (जनसांख्यिकी की) रूचि केवल वर्तमान जनसंख्या के आकार, संCreation तथा वितरण में ही नहीं, बल्कि समय-समय पर इन पहलुओं में होने वाले परिवर्तनों तथा इन परिवर्तनों के कारकों में भी है।’’

जनसांख्यिकी का महत्व

आप क्या जनसांख्यिकी महत्त्व से परिचित हैं? इसका तात्पर्य यह है कि इस विषय का अध्ययन क्यों Reseller जाता है? इस विषय के अध्ययन से क्या लाभ है? व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में जनसांख्यिकी की क्या उपयोगिता है इन्हीं प्रश्नों का उत्तर इस शीर्षक के अन्तर्गत जानने का प्रयास करेंगे।

जनसांख्यिकी जनसंख्या के व्यवस्थित description की वैज्ञानिक शाखा है। जनसंख्या समाज की महत्त्वपूर्ण इकाई है। सामाजिक And व्यक्तिगत दोनों दृष्टिकोण से इसका ज्ञान उपयोगी है। जनसंख्या के महत्त्व And समस्याओं के प्रति विश्व का ध्यान प्राचीन काल से ही मनुष्य के मस्तिष्क में रहा है लेकिन लोगों ने गम्भीरता से विचार करना तब शुरू Reseller जब 1798 में प्रो0 राबर्ट माल्थस ने जनसंख्या समस्या को Single वृहद् दृष्टिकोण से देखा और उसकी गंभीरता के प्रति दुनिया को सचेत Reseller। अपने विचारों में माल्थस ने जनसंख्या वृद्धि And खाद्यान्न उत्पादन में गणितीय विधाओं का परिचय देते हुए संभावित असन्तुलन की ओर संकेत करते हुए सचेत Reseller कि प्रकृति ने खाने की मेज पर निश्चित लोगों को बुलाया है। यदि उसे ज्यादा लोग खाने आयेंगे तो लोग भूखों मरेंगे। माल्थस के विचार, क्रान्तिकारी थे फलत: विवादों के कारण उपेक्षित रहे। प्रतिष्ठित Meansशास्त्री इस बात के लिए भी निश्चित रहे कि Meansव्यवस्था में सदैव पूर्ण रोजगार रहता है और अतिउत्पादन हो ही नहीं सकता। यदि होता है तो मात्र अल्पकालिक होगा जो स्वत: संतुलित हो जायेगा। परन्तु माल्थस के बाद की शताब्दी के Third दशक में लोगों को विश्व में आयी सर्वव्यापी मन्दी ने लोगों को पुन: सोचने पर मजबूर कर दिया कि व्यापार चक्रों की खोज Reseller जाय। प्रतिष्ठित Meansशास्त्र को मंदी ने ध्वस्त कर दिया। केन्द्रीय युग का सूत्रपात होता है जिसमें हस्तक्षेप की नीति पर मन्दी से उबरने के लिए बल दिया गया। जॉन मेनार्ड कीन्स ने स्पष्ट Reseller कि मंदी का प्रमुख कारण प्रभावपूर्ण मांग (effective demand) में भी Meansात् उपभोगत वस्तुओं की मांग में कमी होना भी है। इसी समय से जनसंख्या के संCreationत्मक परिवर्तनों का अध्ययन Reseller जाने लगा।

द्वितीय विश्व Fight के बाद अविकसित देशों ने विकास की गति तीव्र करने के लिए नियोजन पद्धति का आश्रय लिया। भारत ने भी पंचवर्षीया योजना को विकास का माध्यम बनाया। इन देशों के सम्मुख बढ़ती जनसंख्या नियोजन के सम्मुख बाधा बनकर खड़ी हो गयी। नियोजन से इन राष्ट्रों को लाभ तो हुआ। स्वास्थ्य सेवाओं की दशाओं में सुधार हुआ। मृत्यु-दर में कमी आयी लेकिन उच्च जन्म दर की स्थिति यथावत् रही। बढ़ती जनसंख्या ने विकास को निगल लिया। बढ़ती जनसंख्या ने उपभोग तो बढ़ाया लेकिन बचत की दर घटने से विनियोग And पूंजी निर्माण की गति को प्रभावित कर विकास रोक दिया। इन अविकसित देशों में मंदी की स्थिति उतनी भयानक नहीं रही जितनी विकसित देशों में रही क्योंकि यहां सीमान्त उपभोग प्रवृति वैसे ही अधिक रहती है। फलत: प्रभावी मांग (effective demand) की समस्या उतनी नहीं रही। विकसित देशों की स्थिति भिन्न रही। Fight में अत्यधिक प्रभावित तो अवश्य हुए लेकिन शिक्षा का स्तर And तकनीकि प्रौद्योगिकी के ज्ञान ने उन्हें शीघ्र ही संभलने में मदद भी Reseller। फलत: विकसित राष्ट्रो ने कम समय में ही विकास की पूर्व स्थिति प्राप्त कर ली जबकि अविकसित देश उतना अपेक्षित विकास की गति नहीं प्राप्त कर सके। इस तरह विकसित राष्ट्रों के यहां जनसांख्यिकी का गुणात्मक पक्ष को अधिक महत्ता मिली जबकि अविकसित राष्ट्रों के यहाँ परिमाणात्मक पद के अध्ययन से महत्ता अधिक मिली।

आज जनसांख्यिकी विज्ञान व्यावहारिक कार्यक्रमों में अपनी Historyनीय भूमिका निभा रहा है। प्रो0 अशोक मित्रा के According जनसांख्यिकी के महत्व का अध्ययन करने की दृष्टि से समस्त Meansव्यवस्थाओं को तीन भागों में विभक्त Reseller जा सकता है:-

विकसित Meansव्यवस्थाएँ

विकसित राष्ट्रों मेंं जनसंख्या की कुल मांग को पूर्ण रोजगार स्तर पर बनाये रखने का Single साधन माना जाता है। विकसित देशों में समस्या पूर्ति दक्ष थी नहीं वरन् मांग पक्ष की होती है। अत: वहां बढ़ती हुई जनसंख्या वस्तुओं And सेवाओं के प्रभावपूर्ण मांग में वृद्धि करती है जिससे उत्पादन And रोजगार में वृद्धि होती है। इसके अतिरिक्त जनसंख्या वृद्धि से श्रमशक्ति में वृद्धि हो जाती है जिससे उद्योगों में अतिरिक्त क्षमता का उपयोग Reseller जा सकता है। यही कारण है कि इन Meansव्यवस्थाओं मेंं जनसंख्या के गुणात्मक पक्ष : जनस्वास्थ्य; आवास, बीमा, शिक्षा, सामाजिक सुविधाएं आदि पर विशेष ध्यान दिया जाता है। प्रो0 अशोक मित्रा के According ‘‘विकसित बाजार Meansव्यवस्थाओं में जनसांख्यिकीय समंको का उपयोग सामान्यतया श्रमिकों की संख्या तथा उसकी विशेषताओं का उत्पादन फलन तथा बचत फलन से सम्बद्ध परिवारों की संख्या तक सीमित रहता है।’’ इस तरह स्पष्ट है कि विकसित देशों के आर्थिक विकास के मॉडल में जनसांख्यिकी चर को महत्व प्रदान Reseller जाता है।

नियंत्रित And केन्द्रीय नियोजित Meansव्यवस्थाएं

साम्यवादी And समाजवादी Meansव्यवस्थाओं में जनसंख्या न तो मांग को प्रभावित करती है और न ही उपभोग की प्रकृति And दिशा को, क्योंकि इन Meansव्यवस्थाओं में उपभोक्ता की स्वयं की अपनी स्वतंत्र सत्ता नहीं होती है। परन्तु इन राष्ट्रों में कार्यशील जनसंख्या, महिलाओं का आर्थिक क्रियाओं में योगदान, राष्ट्रीय आय, प्रति व्यक्ति आय, प्रजननशीलता, मृत्युक्रम, परिवार का आकार, स्वास्थ्य, शिशु-शिक्षा इत्यादि All जनसांख्यिकी के ही अवयव हैं।

विकासशील Meansव्यवस्थाएं

प्रो0 अशोक मित्रा का विचार है कि जनसांख्यिकी विकासशील देशों में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है। आंकड़ों में बाजीगरी से अभी बहुत उपयोगी परिणाम नहीं प्राप्त हो पा रहे हैं परन्तु इससे विषय की महत्ता कम नहीं हुई है। विकासशील राष्ट्रों में श्रम नियोजन And आर्थिक नियोजन में जनसांख्यिकी की महत्ता अत्यधिक बढ़ी है। आर्थिक विकास इस प्रकार की Meansव्यवस्थाओं में प्रमुख लक्ष्य होता है। फलत: आर्थिक विकास की प्रवृत्ति, व्यावसायिक ढांचा, ग्रामीण And नगरीय जनसंख्या वृद्धि की दर, परिवार नियोजन, खाद्य समस्या, बेरोजगारी समस्या, श्रमिक समस्याएं And आर्थिक नीतियों का अध्ययन महत्त्वपूर्ण हो गया है। जनसांख्यिकी के महत्त्व की विवेचना करते हुए किंग्सले डेविस ने लिखा है कि, ‘‘Human समाज के आधार को समझने में जनसांख्यिकी महत्त्वपूर्ण उपागम है।’’ प्रो0 थाम्पसन And लेविस ने लिखा है कि जनसांख्यिकी Single ज्ञानदायक विज्ञान ही नहीं वरन् फलदायक विज्ञान भी है।’’ उन्होंने तीन लाभों का History Reseller है।

  1. जनसांख्यिकी के अध्ययन से व्यक्ति यह समझ सकता है कि किस प्रकार समाजशास्त्रीय क्षेत्र में आंकड़ों का प्रयोग कर निष्कर्ष निकाला जाता है।
  2. विश्व जनसंख्या; उसकी प्रवृत्तियों And महत्त्वपूर्ण जनसांख्यिकीय चरों व सूचनाओं का ज्ञान प्राप्त होता है।
  3. अध्ययनकर्ता अनेकानेक जनसांख्यिकीय तकनीकि घटकों जैसे- प्रजननता, पुनरुत्पादन दर, मृत्युदर, जन्मदर व जीवन प्रत्याशा आदि को समझ जाता है।

जनसांख्यिकी के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए ओरगेन्स्की लिखते हैं कि, ‘‘यदि आप यह जानना चाहते हैं कि राष्ट्र कितनी तेजी से अपने आर्थिक आधुनिकीकरण में प्रगति कर रहा है, तब कृषि, उद्योग तथा सेवाओं में कार्यरत जनसंख्या के प्रतिशत अनुपात पर दृष्टि डालिए। उनके रहन-सहन के स्तर को जानने के लिए जीवित रहने की प्रत्याशा पर दृष्टिपात कीजिए, क्योंकि इससे अच्छा जीवन स्तर का क्या माप हो सकता है कि कोई सभ्यता प्रत्येक व्यक्ति को जीवन के कितने वर्ष देती है। यदि आप राष्ट्रीय संस्कृति की अवस्था जानना चाहते हैं तो साक्षरों की संख्या तथा उनके शैक्षिक स्तर इस विषय में कुछ जानकारी दे सकेंगे और जातीय भेदभाव के लिए जातिवार व्यवसायों, आय-स्तरों, शिक्षा तथा जीवन अवधि के स्तरों को देखिए। इसी प्रकार राष्ट्रीय शक्ति के अनुमान का आधार जनसंख्या के आकार के साथ-साथ आय तथा व्यवसाय की संख्याओं से लगाया जा सकता है।’’

वास्तव में Single प्रबुद्ध और कर्त्तव्यशील नागरिक के लिए जनसंख्या का ज्ञान आवश्यक है। आज के विश्व की अनेक गम्भीर समस्याओं में से तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या की आधार भूत समस्या है। इसके समाधान व अन्य क्षेत्रों में इसके सह-सम्बन्ध को जानने के लिए जनसांख्यिकी का अध्ययन और ज्ञान समय की Single बहुत बड़ी मांग है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *