जजमानी व्यवस्था क्या है?

जजमानी व्यवस्था का वर्णन अन्तर-पारिवारिक अन्तर जातीय सम्बन्ध के Reseller में Reseller गया है जिसमें संरक्षकों (patrons) तथा सेवाकर्ताओं के बीच के सम्बन्ध स्वामी तथा अधीन (superordinate-subordinate) के होते हैं। संरक्षक स्वच्छ जातियों के परिवार होते हैं, जबकि सेवाकत्र्ता निम्न तथा अस्वच्छ जाति के परिवार होते हैं। अत: यह कहा जा सकता है कि जजमानी व्यवस्था Single वितरण व्यवस्था है, जिसमें उच्च जाति के भूस्वामी परिवारों को निम्न जाति के लोगों के द्वारा सेवाएं प्रदान की जाती हैं। सेवक जाति के लोगों को ‘कमीन’ कहकर पुकारा जाता है, जबकि सेवित जातियों को ‘जजमान’ कहा जाता है। सेवक जातियों को उनकी सेवा के बदले में नकद या वस्तु के Reseller में भुगतान Reseller जाता है।

जजमानी व्यवस्था की अवधारणा

जजमानी व्यवस्था परम्परागत व्यावसायिक कर्तव्यों (occupational obligations) की व्यवस्था है। प्राचीन भारत में जातियां Single Second पर आर्थिक Reseller से निर्भर होती थीं। Single ग्रामीण व्यक्ति परम्परागत विशिष्ट व्यवसाय उसकी जाति को सौंपी गयी विशेषज्ञता के आधाार पर अपनाता था। व्यवसाय के विशिष्टिकरण ने ग्रामीण समाज में सेवाओं के आदान-प्रदान को जन्म दिया। सेवाकत्र्ता (servicing) और सेवित (served) जातियों के बीच यह सम्बन्धा व्यक्तिगत, अस्थाई सीमित तथा संविदात्मक (contractual) नहीं था, बल्कि यह जाति-अभिमुख, स्थाई और विस्तृत समर्थन देने वाला था। वह व्यवस्था जिसमें भूमिस्वामी (land owning) परिवार तथा उन भूमिहीन परिवारों में, जो उसे वस्तुएं और सेवाएं प्रदान करते हैं, स्थाई सम्बन्धा मिलते हैं, उसे जजमानी व्यवस्था कहा जाता है।

योगेन्द्र सिंह ने जजमानी व्यवस्था का वर्णन करते हुए कहा है कि यह Single ऐसी व्यवस्था है जो गांवों के अन्तर्जातीय संबंधाों में पारस्परिकता पर आधाारित संबंमा द्वारा नियंत्रित होती है। ईश्वरन ने जजमानी व्यवस्था (जिसे दक्षिण भारत में मैसूर में आया कहा जाता है) के संदर्भ में कहा है कि यह Single ऐसी व्यवस्था है जिसमें सम्पूर्ण सामुदायिक जीवन में प्रत्येक जाति को Single भूमिका निभानी होती है। इस भूमिका में आर्थिक, सामाजिक, And नैतिक कार्य होते हैं।

‘जजमान’ Word का प्रयोग मूल Reseller से उस असामी (client) के लिये Reseller जाता था जिसके लिये ब्रांण फजारी धाार्मिक पूजा व कर्मकाण्ड (rituals) Reseller करते थे किन्तु बाद में ये विशिष्ट सेवाओं को प्राप्त करने वाले व्यक्ति अथवा संरक्षक के लिये प्रयोग किये जाने लगा। बीडलमैन ने कहा है कि ‘सेवादारों’ Meansात् वस्तुएं और सेवाएं प्रदान करने वालों के लिये ‘कमीन’ Word के अतिरिक्त भिन्न क्षेत्रों में अन्य Word जैसे फरजन, परधाान, आदि भी प्रयोग Reseller जाता है।

जजमानी सम्बन्ध

कभी-कभी वस्तुओं की आपूर्ति (supply) के आधाार पर दो या दो से अिधाक जातियों के सम्बन्धा संविदात्मक हो सकते हैं, किन्तु जजमानी नहीं। उदाहरणार्थ, जिस जुलाहे को उसकी बनाई हुई और बची हुई वस्तु के लिये नकद भुगतान Reseller जाता है, वह प्रथा के According फसल में से हिस्से का अिधाकारी नहीं होता है। वह न ‘कमीन’ है और न ही खरीदने वाला उसका ‘जजमान’। फिर, जजमानी सम्बन्धाों में कुछ ऐसी सेवाएं तथा वस्तुएं हो सकती हैं जिनका अनुबन्मा (contract) होता है और पृथक से भुगतान भी उदाहरण के लिये गांव में रस्सी बनाने वाली जजमानी व्यवस्था के अन्तर्गत किसान को All आवश्यक रस्सियों की पूर्ति करते हैं, केवल उस रस्सी के जो कुएं में उपयोगी होती है और काफी लम्बी और मोटी होती है। किसान को उसके लिए अलग से भुगतान देना होता है। जजमानी सम्बन्धाों में धाार्मिक कृत्यों, सामाजिक समर्थन तथा आर्थिक आदान-प्रदान All का समावेश है। सेवक जातियां जजमान के घर जन्म, विवाह, और मृत्यु के अवसरों पर धाार्मिक संस्कारिक समारोहों में कर्नव्यों का पालन करते हैं। डी.एन.मजूमदार ने उत्तर प्रदेश के लखन। षिले के Single गांव की राजपूत जाति के ठाकुर परिवार का उदाहरण Reseller है जिसमें दस विभिन्न जातियों के परिवार जीवन चक्र-पथ के संस्कारों (life-cycle rites) की पूर्ति के लिये ठाकुर परिवार की सेवा में लगे होते हैं। उदाहरणार्थ, बालक के जन्म की दावत के समय ब्रांहण नामकरण संस्कार कराता है, सुनार नवजात शिशु के लिये स्वर्ण आभूषण उपलब्धा कराता है, धाोबी गन्दे कपड़े धाोता है, नाई सन्देश वाहन का कार्य करता है, खाती वह पट्टा बनाता है जिस पर बच्चे को नामकरण के लिये बिठाया जाता है, लोहार लोहे का कड़ा बनाता है, कुम्हार कुल्हड़ आदि पानी पीने तथा सब्जियां आदि रखने के लिये उपलब्ध कराता है, पासी भोजन के लिये पनलें जुटाता है तथा भंगी दावत के बाद सफाई का काम करता है। वे All लोग जो इस प्रकार सहयोग करते हैं उपहार Reseller में भोजन, वस्त्र और मान प्राप्त करते हैं जो आंशिक Reseller से प्रथा पर, आंशिक Reseller से जजमान के आर्थिक स्तर पर तथा आंशिक Reseller से प्राप्तकर्ता के अनुरोध पर निर्भर करता हैं

‘कमीन’ (निम्न जातियां) जो अपने ‘जजमानों’ (उच्च जातियां) को विशिष्ट कुशलता And सेवाएं प्रदान करते हैं, स्वयं भी दूसरों से वस्तुएं तथा सेवाएं चाहते हैं। हैरोल्ड गूल्ड के According ये निम्न जातियां या तो प्रत्यक्ष Reseller से श्रम के आदान-प्रदान द्वारा मान या वस्तु के Reseller में भुगतान के माध्यम से अपनी स्वयं की जजमानी व्यवस्था कर लेते हैं। मध्यम जातियां भी निम्न जातियों के समान ही या तो सेवाओं के बदले नकद भुगतान के Reseller में या सेवाओं के आदान-प्रदान के Reseller में Single Second के प्रति कर्तव्यों का पालन करती हैं।

कमीन अपने जजमानों को न केवल वस्तुएं उपलब्ध कराते हैं बलिक उनके लिये वे कार्य भी करते हैं जो उन्हें (जजमानों को) अपवित्र करती हैं उदाहरणार्थ, (धाोबी द्वारा) गन्दे कपड़ों का धाोना, (नाई द्वारा) बालों का काटना, (नायन द्वारा) बच्चे का जन्म दिलाना, तथा (भंगी द्वारा) स्नान गृह/शौच घर आदि की सफाई करना, आदि। यद्यपि धाोबी, नाई, लोहार, आदि स्वयं निम्न जाति में आते हैं फिर भी वे हरिजनों की ‘कमीन’ के Reseller में सेवा नहीं करते और न ही ब्राह्मण इन निम्न जातियों को अपना जजमान बनाते हैं, तथापि जब निम्न जाति परिवार समृद्ध हो जाते हैं तब वे दूषित व्यवसाय को त्याग देते हैं और संस्कार विशेषज्ञों (ritual specialists) की सेवाएं प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं और इसमें सफल भी हो जाते हैं।

जजमानी सम्बन्ध जातियों की अपेक्षा परिवारों में होते हैं। इस प्रकार राजपूत जाति का परिवार गांव में लोहार जाति के Single विशेष परिवार के धातु के औषार प्राप्त करता है, न कि गांव के All लोहार जातियों से। इसी विशिष्ट लोहार परिवार को ही फसल पर राजपूत परिवार की फसलों में से Single भाग मिलेगा न कि Second लोहार परिवारों को। लोहार और राजपूत दो परिवारों के बीच यह जजमानी सम्बन्ध स्थायी हैं क्यों कि लोहार परिवार उसी राजपूत परिवार की सेवा करता रहता है जिसकी सेवा उसके पिता और दादा करते थे। राजपूत परिवार भी अपने औजार और उनकी मरम्मत उसी लोहार परिवार से कराता है जिससे उसके पूर्वज कराया करते थे। यदि सम्बद्ध परिवारों में से Single परिवार समाप्त हो जाता है तो उस परिवारो वंशज उस स्थान को ग्रहण कर सकते हैं। उदाहरणार्थ, उपर्युक्त प्रकरण मे अगर लोहार के परिवार में अधिक फत्र हैं जिन All को उनका जजमान राजपूत परिवार संरक्षण नहीं दे सकता तो कुछ लोहार पुत्र Second स्थानों पर जाकर नये सहयोगी ढूंढ लेते हैं जहां लोहारों की कमी होती है।

ओरेन्सटीन ने माना है कि गांव के पदािधाकारी/कर्मचारी या ग्रामीण सेवकों के परिवार (जैसे चौकीदार) गांव में विशेष परिवारों की अपेक्षा सम्पूर्ण गांव से जजमानी सम्बन्धों को मानते हें। इस प्रकार चौकीदार के परिवार को गांव के प्रत्येक भूस्वामी क्ृषक परिवार से फसल के समय कुछ न कुछ योगदान प्राप्त होता है। गांव के सेवक गांव की जमीन का कर मुक्त प्रयोग भी कर सकते हैं। कुछ सेवक परिवार व्यक्तिगत परिवारों की अपेक्षा गांव के Single हिस्से से जजमानी सम्बन्ध बनाये रखते हें। ऐसे सेवक परिवारों को गांव के उस विशेष भाग में रहने वाले All परिवारों की सेवा करने का अधिकार होता है।

जजमानी व्यवस्था के सन्दर्भ में कोलेन्डा ने कहा है: हिन्दू जजमानी व्यवस्था को Indian Customer गांवों में Single संस्था या सामाजिक व्यवस्था के Reseller में देखा जा सकता है, जो कि भूमिकाओं तथा प्रतिमानों (norms) के जाल द्वारा बनी होती है। यह जाल भूमिकाओं तथा सम्पूर्ण व्यवस्था से गुंथा होता है जिसे सामान्य सांस्कृतिक मूल्यों द्वारा वैधता And समर्थन प्राप्त होता है। जजमानी व्यवस्था में जिन महत्वपूर्ण प्रश्नों का विश्लेषण आवश्यक है वे हैं: इस व्यवस्था का कार्य क्या है? इसमें कौन सी भूमिकाएं निहित हैं? इसके प्रतिमान और मूल्य क्या हैं? इस व्यवस्था में शक्ति और अधिकारों का वितरण किस प्रकार होता है? यह व्यवस्था दूसरी व्यवस्थाओं से किस प्रकार सम्बन्धित है? व्यवस्था बनाये रखने की क्या प्रेरणा है? व्यवस्था में क्या परिवर्तन हुए हैं?

प्रकार्य और भूमिकाएं

जजमानी व्यवस्था के कायोद्व का विश्लेषण करते हुए लीच ने कहा है कि जजमानी व्यवस्था श्रम विभाजन तथा जातियों के आर्थिक परस्पर निर्भरता को नियमित करती है और बनाये रखती है। वाइजर के According जजमानी व्यवस्था Indian Customer ग्राम को Single आत्मनिर्भर समुदाय के Reseller में बनाये रखने में सहायक होती है। हैरोल्ड गूल्ड ने कहा है कि जजमानी व्यवस्था नीच And दस्तकारी सेवाओं के बदले में छषि उत्पादन का वितरण करती है। बीडलमैन का मत है कि जजमानी व्यवस्था उच्च जातियों के सम्मान को बनाय रखती है।

जजमानी व्यवस्था में ‘जजमान’ और ‘कमीन’ की दो भूमिकाएं सम्मिलित हैं। ‘कमीन’ जातियां ‘जजमान’ जातियों के लिये कुछ व्यावसायिक, आर्थिक और सामाजिक सेवाएं प्रदान करती हैं जिसके लिये जजमान निश्चित अन्तराल में या विशेष अवसरों पर उन्हें भुगतान करते रहते हैं। परन्तु इस आपसी विनिमय में All जातियां आवश्यक Reseller से भाग नहीं लेती हैं। उदाहरणार्थ, तेली Single ऐसी जाति है जो सामान्य Reseller से इस सेवा विनिमय व्यवस्था में सम्मिलित नहीं होती। कमीन की असामियों (clientele) में उसके गांव तथा आसपास के गांवों के परिवार सम्मिलित होते हैं। कमीन अपने जजमान के प्रति अधिकारों को Second कमीन को दे सकते हैं। इस जजमान-कमीन के भूमिका सम्बन्धों में महत्वपूर्ण बात विभिन्न प्रकार की छूट रियायत देने की हैं, जैसे मुल्त भोजन, मुल्त कपड़े, मुल्त आवास, लगान मुल्त भूमि, आकस्मिक सहायता, मुकदमे में सहायता, आदि तथा जजमानों द्वारा जीवन की विविधा संकटकाल परिस्थितियों में कमीनों का संरक्षण करना भी सम्मिलित है।

तथापि, जजमानी व्यवस्था All गांवों में आदान-प्रदानात्मक (reciprocal) नहीं है। कोलेन्डा की मान्यता है कि भारत के बहुत से गांवों में इस प्रकार के सम्बन्धों में प्रबल जातियां शक्ति सन्तुलन अपनी ओर कर लेती हैं। योगेंन्द्र सिंह भी विश्वास करते हैं कि भारत के गांव आजकल आर्थिक संस्थाओं, सना संCreation और अन्तरजातीय सम्बन्धाों के Means में बदल रहे हैं। आर्थिक परिवर्तन का प्रमुख पेत भूमि सुधार है जो कि ममयस्थता उन्मूलन, किरायेदारी सुधाार, भूमि चकबन्दी, भूमि के फनर्वितरण, सहकारी खेती के विकास तथा अन्त:क्रिया, जजमानी व्यवस्था तथा सामाजिक व्यवस्था को प्रभावित Reseller है।

प्रतिमान And मूल्य

देश में लगभग All क्षेत्रों में भुगतान की परम्परागत विधि यह है कि भुगतान फसल कटने के समय Reseller जाता है, जब प्रत्येक भूस्वामी क्ृषक परिवार विभिन्न ‘कमीन’ परिवारों को अन्न के नये उत्पादन में से कुछ न कुछ देता है। फिर भी फसल के समय का यह भुगतान कमीन परिवार कोप्राप्त होने वाले भुगतानों का Single ही भाग होता है। कमीन अपने मकान बनवाने के लिए स्थान, जानवरों के चरने के लिए स्थान, लकड़ी और उपले के ईधन, औजारों का प्ण आदि के लिये अपने जजमान पर ही निर्भर करता है। इसके साथ-साथ जजमान विभिन्न समाराहों पर वस्त्र आदि की भेंट भी देता है तथा आपातकाल में ऋण के Reseller में धन से भी सहायता करता है।

वाइजर ने कमीन को जजमान से मिलने वाले सत्रह प्रकार के प्रतिफल/लब्धिया (considerations) गिनाये हैं। हैरोल्ड गूल्ड ने भी 1954-55 में उत्तर प्रदेश के पैफजाबाद षिले के शेरपुर गांव में किये गये जजमानी व्यवस्था पर अपने अध्ययन में जजमानी बन्धनों में इन उपलब्धियों’ को महत्वपूर्ण पाया। इनमें से कुछ उपलब्धिया’ इस प्रकार हैं: मुल्त आवास स्थल, परिवार के लिये मुल्त भोजन, मुल्त वस्त्र, पशुओं के लिये मुल्त भोजन, मुल्त इमारती लकड़ी, उपले, लगान-मुक्त भूमि, ऋण सुविधाएं, पूरक रोषगार के अवसर, मुल्त औषारों व जानवरों का उपयोग, मुल्त चमड़ा, मुकदमें में सहायता, मुल्त चिता की लकड़ी तथा कच्चे पदाथोन का मुल्त प्रयोग, आदि। हैरोल्ड गूल्ड ने जजमानों द्वारा ‘पूरजनों’ की सेवाओं के लिये भुगतान का भी अध्ययन Reseller। उदाहरणार्थ, ब्रांण को हर जजमान परिवार से फसल के समय पर पन्द्रह किलो अनाज मिलता था जुलाहे को प्रति जजमान पन्द्रह किलो अनाज प्रति फसल और बीस रुपया प्रति माह मिलता था, कुम्हार, नाई, लोहार को प्रति परिवार प्रति फसल आठ किलो अनाज मिलता था और धोबी को प्रत्येक फसल पर घर में प्रति स्त्री के हिसाब से चार किलो अनाज मिलता था।

Single गांव में Single कमीन परिवार को All जजमानों से प्राप्त होने वाले अनाज का उदाहरण देते हुए हैरोल्ड गूल्ड कहते हैं कि उनके गांव में उन्होंने पाया कि Single नाई को पच्चीस Singleाकी इकाइयों वाले पन्द्रह संयुक्त परिवारों से लगभग 312 किलो अनाज प्राप्त हुआ। विभिन्न जातियों में जजमानी सम्बन्धों को लेकर उन्होंने पाया कि शेरपुर गांव के All जजमानों ने Single वर्ष में भी ‘फरजन’ परिवारों को 2039 किलो अनाज दिया था। उस गांव में 228 लोगों की कुल जनसंख्या पर 43 परिवार थे। इनमें से केवल उन्नीस परिवार जजमान परिवार थे जिन्हें सेवाएं प्राप्त थीं और जो अनाज देते थे। इससे ज्ञात होता है कि आर्थिक अन्तक्रिया कितनी अधिक थी।

कमजोर फसल वाले वर्ष में क्ृषक जजमान अपने कमीन परिवारों को अधिक अन्न नहीं देता, लेकिन अच्छी फसल पर वह उन कमीन परिवारों को कुछ अतिरिक्त अनाज देने में आनाकानी नहीं करता जिन्होंने उन्हें अच्छी सेवाएं प्रदान की हैं। यदि कमीन जजमान की सेवा में कुछ धोखे वाली बात करता है (जैसे लोहार उसके औजारों की सही मरम्मत नहीं करता या धोबी उसके कपड़े खो देता है या फाड़ देता है) तो जजमान उसे अधिक नहीं देता इसी प्रकार कमीन भी प्राप्त होने वाले भुगतान के According ही जजमान की सेवा करता है। एम. एन. श्रीनिवास के According भी उन जजमानों को अधिक महत्व दिया जाता है जो भुगतान रुपयों में न करके अनाज के Reseller में करते हैं।

बीडलमैन के According जजमान और कमीन के बीच शक्ति आवंटन (allocation) में सांस्कारिक पवित्रता और अपवित्रता (ritual purity and pollution) महत्वपूर्ण नहीं है। निम्न जाति का व्यक्ति का व्यक्ति भले ही जजमान हो, उच्च जाति के कमीन से नीचे ही माना जाता है। उच्च जाति की शक्ति भू स्वामित्व और धन पर आधाारित होती है और कमीन के पास यह शक्ति नहीं होती है। हैरोल्ड गूल्ड ने माना है: कि फ्मौलिक अन्तर Single ओर भू स्वामी क्ृषक जातियों में जो सामाजिक व्यवस्था में प्रभुत्व रखती हैं और दूसरी ओर भूमिहीन नीच And दस्तकारी जातियों के बीच पाया जाता है।, पोकाक भी इसी प्रकार कहते हैं: यदि जजमानी सम्बन्ध Single व्यवस्था नहीं बनाते हैं, तो Single संगठन बनाते हैं। वे Single संस्था के चारों ओर संगठित हैं जो (संस्था) उस क्षेत्र की प्रबल जाति है। जजमान और कमीनों के कर्तव्यों, अधिकारों, भुगतानों And लाभों के सम्बन्ध में भी प्रतिमान है। जजमान को अपने कमीन के प्रति पितृ भाव रखना चाहिये और उनकी मांगें पूरी करनी चाहिये। कमीन को भी पिता के लिए फत्र की तरह व्यवहार करना चाहिये। उसे अपने जजमान का उसके गुट सम्बन्धी विवादों में समर्थन करना चाहिए।

जजमानी व्यवस्था का सांस्छतिक मूल्य यह है कि दान और उदारता धार्मिक कर्तव्य हैं तथा असमानता ईश्वर की देन है। पवित्र, अर्द्ध पवित्र तथा निरपेक्ष हिन्दू साहित्य And मौखिक परम्पराएं भी जजमान कमीन सम्बन्धों को उचित And अधिकारिक मानते हैं। ग़ल्ति करने वाले जजमानों और कमीनों को दण्ड देने का अधिकार जाति पंचायत को है। साथ-साथ उपरोक्त अनुज्ञाएं (sanctions) यह भी अनुमति देती हैं कि चाहे तो कमीन वांछनीय सेवाएं न करें और जजमान चाहे तो कमीन को दी हुई भूमि वापस ले ले।

उदाहरणार्थ, यदि Single कुम्हार परिवार Second कुम्हार के जजमानों को लेना चाहता है तो प्रभावित कुम्हार परिवार घुसपैठिये को रोकने के लिये अपनी जाति पंचायत से निवेदन करता है और यदि गांव के कुम्हार यह विश्वास कर ले कि उनके जजमान (क्ृषक) उनके साथ अनुचित व्यवहार कर रहे हैं तो वे गांव के किसान जजमानों का बहिष्कार तब तक करने का प्रयत्न कर सकते हैं जब तक कि वे अपने अनुचित व्यवहार को छोड़ न दें।

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