खिलजी वंश की स्थापना And अन्त

खिलजी वंश (1290-1320 ई.)

जलालुदुद्दीन फिरोज खलजी (1290-1296 र्इ)

मलिक फिराज खलजी कबीले का तुर्क था । उसके वंश तुर्किस्तान से आये थे । उसके परिवार ने दिल्ली के तुर्की सुल्तान की नौकरी कर ली थी । बलबन के शासन काल में फिरोज उत्तर पश्चिमी सीमा का रक्षक था । वह मंगोलों के विरूद्ध कर्इ Fight सफलतापूर्वक लड़ चुका था । वह समाना का हाकिम नियुक्त Reseller गया । वह Single सफल यौद्धा और प्रKing के Reseller में प्रसिद्ध था । इसी कारण उसे शाइस्ताखां की उपाधि दी गर्इ थी ।

कुछ समय बाद फिरोज को दिल्ली में आरिज-ए-मामलुक (Fight मंत्री) बना दिया गया । तुर्की सरदार उनसे र्इष्र्या करने लगे । उन्होंने उससे छुटकारा पाने और तुर्की Singleाधिकार को पुन: स्थापित करने के लिए षड्यंत्र रचा । परन्तु All षड्यंत्रअसफल रहे और वह अल्प वयस्क सुल्तान कैमूर का संरक्षक बन गया । फिरोज ने 1290 र्इ. में कैमूर और उसके पिता पक्षाघात रोगी कैकुवाद की हत्या कर गद्दी प्राप्त की । कुछ विद्वान इस घटना को 1290 र्इ. की खलजी वंश की क्रान्ती कहते हैं । इस प्रकार दास वंश का अंत हुआ और फिरोज जलालुद्दीन खलजी के नाम से गद्दी पर बैठा ।

जिस समय जलालुद्दीन खलजी सुल्तान बना वह 70 वर्ष का बुढ़ा था । इसलिए उसने दया और उदारता की नीति अपनार्इ । यद्यपि उसने तुर्की सरदारों को प्रशासन में उच्च पदों पर रखा फिर भी उसने उनका Singleाधिकार समाप्त कर दिया । तुर्की सरदार खलजियों को तुर्क नहीं मानते थे । इसलिये उन्होंने जलालुद्दीन को सहयोग नहीं दिया । इसके अतिरिक्त जलाउद्दीन के नेतृत्व में खलजी नवयुवक बहुत महत्वकांक्षी थे । इसलिए तुर्की सरदार उन्हें सन्देह की दृष्टि से देखते थे । इन All कारणों से जलालुद्दीन का शासन अस्थिर रहा ।

जलालुद्दीन ने सरदारों की सद्भावना व सहयोग प्राप्त करने के लिए सहनशीलता की नीति अपनार्इ उसने किसी को भी कठोर दण्ड नहीं दिया । उनका सहयोग प्राप्त करने के लिए उसने उन्हें केवल नया होल. Reseller वरन कइर् बार इनाम भी दिये ।

मलिक छज्जू के प्रति सुल्तान का व्यवहार उदार नीति का Single उदाहरण है । मलिक छज्जू ने 1290 र्इ. में विद्रोह Reseller था । वह कड़ा का हाकिम था । वह विद्रोह कर सुल्तान बन बैठा । जलालुद्दीन की सेना ने उसे पराजित कर बदायू में बन्दी बनाया । उसे दिल्ली लाया गया । यहां उसे केवल मुक्त ही नहीं Reseller गया वरन् उसका स्वागत कर उपहार दिये गये और फिर उसे मुल्तान भेज दिया गया । जलालुद्दीन की उदार नीति की अलोचना की गर्इ क्योंकि इससे विद्रोह को प्रोत्साहन मिला था ।

सीदी मौला का विद्रोह ही Only ऐसी घटना है जिसके प्रति सुल्तान जलालुद्दीन ने कठोर नीति अपनार्इ थी सीदी मौला Single दरवेश था जो बलबन के समय में दिल्ली आया था । बड़े-बड़े लोग उसके अनुयायी थे । उसने First सुल्तान नासिरूद्दीन मुहम्मद की पुत्री से विवाह Reseller और अव वह भी गद्दी का दावेदार बन रहा था । इस षड्यंत्र में कुछ सरदार भी शामिल थे । सीदी मौला और उसके साथियों को बन्दी बना लिया गया । सुल्तान ने सीदी मौला को मृत्यु दण्ड दिया ।

जलालुद्दीन ने अनके Fight नहीं किये । उसने 1290 र्इ. में Single अभियान रणथम्भोर के विरूद्ध छेडा । वह हमीर देव की गतिविधियों को समाप्त कर देना चाहता था परन्तु उसने कड़ा मुकाबला Reseller । जलालुद्दीन ने झेन विजय Reseller । यहां उसने अनेक मंदिर और मूर्तियों को Destroy Reseller । परन्तु बाद में वह कह कर पीछे हट गया कि वह बेकार में मुसलमानों का रक्त नहीं बहाना चाहता । उसका पीछे हटना अपमानजनक था । उसका अन्य अभियान मन्दौर (मन्दाबट) के विरूद्ध था जो कभी दिल्ली सल्तनत के अधीन था परन्तु अब उस पर राजपूतों का अधिकार था । जलालुद्दीन से इसे 1292 र्इ. में पुन: विजय Reseller ।

जलालुद्दीन के शासन काल में दो और अभियान छेड ़े गए थे । ये अभियान उसके भतीजे अलाउद्दीन ने छेड़े थे । अलाउद्दीन ने 1292 र्इ. में मालवा पर आक्रमण कर भेलसा (विदिशा) विजय Reseller । यहीं पर उसे दक्षिण में देवगिरि की सम्पन्नता के विषय में सुनने को मिला । महत्वकांक्षी अलाउद्दीन ने 1294 र्इ. में देवगिरि के King रामचन्द्र देव पर आक्रमण Reseller । अलाउद्दीन विजयी रहा और उसने देवगिरी को खूब लूटा । लूट में अपार धन मिला । इस लूट में कर्इ हजार पौंड, सोना-चांदी, हीरे-मोती के अतिरिक्त Single हजार गज सिल्क का कपड़ा मिला था ।

1292 र्इ. में मंगोलों ने पंजाब पर आक्रमण Reseller । हलाकू के पौत्र के नेतृत्व में मंगोल सुनाम तक आए । जलालुद्दीन ने आगे बढ़कर उनका मुकाबला कर उन्हें पराजित Reseller । मंगोंले को विवश हो सन्धि करनी पड़ी । चंगेजखां के वंशज उलग खां ने सुल्तान की नौकरी कर ली । उसने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया । इन्हें सुल्तान ने सुविधायें और भत्ते भी दिए । वे गयासपुर और नीलोखेड़ी में बस गए । वे लोग ही नव-मुसलमान कहलाये । सुल्तान जलालुद्दीन ने अपनी पुत्री का विवाह उलग खां से कर दिया ।

आप पढ़ चुके है कि सुल्तान जलालुद्दीन उदार सहनशील और नम्र था । इसी कारण सरदारों ने उसके विरूद्ध विद्रोह किए यद्यपि उस समय की दिल्ली की स्थिति को देखते हुए विद्रोह उपयुक्त नहीं थे । आन्तरिक और बाहरी शत्रुओं के कारण सल्तनत की जनता में अSafty की भावना उत्पन्न हुर्इ । इससे सुल्तान की प्रतिष्ठा भी गिरी ।

अलाउद्द्दीन खलजी (1296-1216 ई.)

अलाउद्दीन जलालुद्दीन का महत्वाकांक्षी भतीजा और दामाद था । वह Fight कला में भली-भांति प्रशिक्षित था । उसने सत्ता प्राप्त करने में अपने चाचा की सहायता की थी । अलाउद्दीन को अमीर-ए-तुबुक (समारोह मंत्री) नियुक्त Reseller गया था । मलिक छज्जू के विरूद्ध छेडे गए अभियान की सफलता के बाद उसे बड़ा हाकिम बना दिया गया । आप अलाउद्दीन के दो सफल अभियानों के संबंध में पिछले खण्ड में अध्ययन कर चुके है, जिन्हें उसने जलालुद्दीन के शासन काल में आरम्भ Reseller था । 1298 र्इ. में भेलसा (विदिशा) अभियान के बाद उसे कड़ा के अतिरिक्त अरब का अकता दिया गया । उसे आरिज-ए-मामलिक (Fight मंत्री) नियुक्त Reseller गया था । उसने अपने चाचा के आज्ञा प्राप्त कर अपनी सेना बढ़ाएं उसने 1294 र्इ. में दक्षिण भारत में तुर्की अभियान प्रारम्भ Reseller और देवगिरी को लूटा । इस सफल अभियान ने सिद्ध कर दिया कि वह उत्साही, वीर और असाधारण सेनानायक तथा योग्य संगठन कर्ता था । इस विजन ने उसे इतना उत्साही बना दिया वह शीघ्र ही गद्दी प्राप्त करने का स्वप्न देखने लगा ।

1296 र्इ. में अलाउद्दीन ने धोखे से अपने चाचा जलालुद्दीन की हत्या कर दी और वह स्वयं सुल्तान बन गया ।
अलाउद्दीन खलजी ने बहुत ही चतुरार्इ से अपने प्रतिद्विन्द्वयों और उनके सहयोगियों से छुटकारा पाया और इस प्रकार उसने अपनी गद्दी सुदृढ़ की । उसने अपने विरोधियों को अपने पक्ष में करन े के लिए दवे गिरि की तट के धन को उदारता पूवर्क उसनें बांटा । जनता उसके धोखे को भूलकर उसकी उदारता की Discussion करने लगी तथापि उसने उन लोगों के प्रति कठोर कदम उठाए जो उसका विरोध करते रहे । लगभग All सरदार और अधिकारी पिछली बातों को भूलकर उसके समर्थक हो गये ।

अलाउद्दीन ने बलबन के राजस्व सिद्धान्त को अपनाने का निश्चय Reseller । उसका विश्वास था कि सुल्तान Earth पर र्इश्वर का प्रतिनिधि है । उसे पूर्ण विश्वास था कि सुल्तान ओरों की अपेक्षा अधिक बुद्धिमान होता है । इसीलिए उसकी इच्छा ही कानून होती है । उसका आदर्श था कि सुल्तान कोर्इ संबंधी नही होता । देश के All लोग उसके कर्मचारी है या उसकी प्रजा है । उसने राज्य के मामलों में उलेमाओं और सरदारों को हस्तक्षेप नहीं करने दिया । उसने स्वयं को खलीफा का सहायक माना । इसका Means यह नहीं था कि राजनीति में खलीफा का स्थान ऊंचा है । उसने खलीफा को मान्यता केवल इसलिए दी कि परम्परागत Singleता बनी रही ।

अलाउद्दीन के शासनकाल के प्रारंभिक वर्षो में थोड़े-थोड़े अन्तराल में चार विद्रोह हुए । First विद्रोह मंगोलों ने Reseller जो जलालुद्दीन के शासनकाल में भारत में बस गए थे । वे 1299 र्इ. में गुजरात अभियान में उसके साथ गए थे । वापिस आते समय लूट के बंटवारे को लेकर उनमें असन्तोष फैल गया । उन्होंने विद्रोह कर अलाउद्दीन के भतीजे और सेना नायक नुसरत खां के भार्इ की हत्या कर दी । उनमें से बहुत से नुसरत खां द्वारा मारे गए । उनमें से जो रणथम्भौर भाग गए थे उनकी पत्नियों और बच्चों की हत्या कर दी गर्इ । अकत खां, मलिक उमर और मंगू खां, और हाजी मौला के तीनों विद्रोह कठोरता पूर्वक दबा दिए गए ।

तारीख-ए-फिरोजशाही के लेखक बरनी का कथन है कि अलाउद्दीन के According विद्रोह के चार कारण थे : –

  1. गुप्तचर व्यवस्था की अकुशलता 
  2. शराब का प्रयोग
  3. सरदारों का परस्पर मिलना जुलना और विवाह और 
  4. कुछ सरदारों के पास धन की अधिकता । 

भाषी विद्रोह रोकने के लिए अलाउद्दीन ने चार अध्यादेश जारी किए : –

  1. जिन्हें जीवन निर्वाह के लिए कर मुक्त भूमि मिली हुर्इ थी उन्हें कहा कि वे भूमि-कर दें । इससे उनके अधिकार में अतिरिक्त धन पर प्रतिबन्ध लग गया । Meansात् अधिक धन की संभावना समाप्त हो गर्इ ।
  2.  गुप्तचर व्यवस्था का पुनर्गठन Reseller गया जिससे वह अधिक प्रभावी ढंग से कार्य कर सकें ।
  3. शराब और अन्य नशों के प्रयोग पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया । 
  4. सामाजिक समारोह तथा परस्पर वैवाहिक संबंध पूर्व आज्ञा प्राप्त कर ही स्थापित किए जा सकते थे । 

उपरोक्त-अध्यादेशों को लागू करने, अपने राजस्व सिद्धान्त को मूर्तReseller देने, विजय और मंगोलों के आक्रमणों से अपने देश की Safty की महत्वकांक्षा को फलीभूत करने के लिए अलाउद्दीन को स्वयं शक्तिशाली बनाना था । इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने Single विशाल स्थायी सेना बनार्इ । सेना की वित्तीय Needएं पूरी करने के लिए उसने अनेक राजस्व सुधार आरम्भ किए । उसने बाजार नियंत्रण भी लागू Reseller ।

1296 र्इ. में अलाउद्दीन खलजी गद्दी पर बैठा । उसने अपनी अपार शक्ति और धन के बल पर अपने विरोधियों का दमन Reseller । उसके नेतृत्व में सल्तनत का विस्तार कार्य आरम्भ हुआ।

दिल्ली सल्तनत का विस्तार

अलाउद्दीन खलजी को भारत में First तुर्की राज्य निर्माता कहा जाता है । उसके ही शासन काल में राज्य विकास के चरमोत्कर्ष पर पहुंचा था । उसे अपने कार्यो और सफलतओं के कारण दिल्ली के Kingों में उच्च स्थान प्राप्त है । नि:सन्देह वह दिल्ली सल्तनत का सबसे योग्य और शक्तिशाली King था । अलाउद्दीन विद्रोह दमन और आक्रमणों में मिली सफलता के कारण विश्व विजय की महत्वाकांक्षा करने लगा था । तथापि उसके र्इमानदार और अनुभवी सलाहकार कोतबाल अला-उल-मुल्क ने उसे परामर्श दिया कि वह विश्व विजय से पूर्व समस्त भारत को विजय करें । उसके ही परामर्श से अलाउद्दीन ने भारत के स्वतंत्र राज्यों को अपनी अध् ाीन करने का निश्चय Reseller । उसने अधिकांश Fight उत्साह की अपेक्षा अपनी नीति के परिणाम स्वReseller लड़े थे । वह उत्तर और दक्षिण दोनों ही ओर के राज्य विजय करने के लिए निकल पड़ा । उत्तर में उसके गुजरात, मालवा, रणथम्भौर तथा राजपूताने के चित्तौड़, सबाना और जालौर अभियान सफल रहे । उसने दक्षिण भारत में देवगिरि, होयसल, पाण्डय, बांरगल, भाबार और द्वारसमुद्र विजय किए।

अलाउद्दीन ने राज्य विस्तार का शुभारंभ गुजरात अभियान से Reseller । उससे पूर्व All . दुश्मन अपनी स्थिति सुदृढ करने में लगे रहे, इसलिए वे पश्चिम की ओर नहीं बढ़ सके थे । गुजरात विजय की प्रेरणा अलाउद्दीन की अपनी महत्वकांक्षा के साथ-साथ गुजरात की अपार सम्पत्ति थी । गुजरात Single उपजाऊ प्रदेश था और उसके तट पर अनेक बन्दरगाह थे । इनके द्वारा पश्चिम से व्यापार होता था । व्यापार से प्राप्त होने वाले सोने-चांदी से यह प्रदेश सुखी सम्पन्न बन गया था । आपको याद होगा कि मंगोल उत्तर पश्चिमी क्षेत्र में फैल गए थे जिसके कारण स्थल मार्ग अWindows Hosting हो गए थे । अलाउद्दीन खलजी ने धन लुटा जिससे भाषा अभियानों का संचालन Reseller गया । साथ ही उसने बन्दरगाह अपने अधिकार में लिए जिससे उसे सेना के लिए अरब से घोड़े मिलते रहें ।

1299 र्इ. में अलाउद्दीन खलजी के गुजरात आक्रमण के लिए उलग खां और नुसरत खां की सामूहिक सेना भेजी । गुजरात का King अलाउद्दीन शीघ्र देवगिरि मे भाग गया । गुजरात के सम्पन्न नगर लुटे गए और सोमनाथ का मन्दिर Destroy कर दिया गया । यहां तक कि मुसलमान व्यापारियों (ख्वाजा) की सम्पत्ति लुट ली गर्इ । लूट में अपार धन मिला । उसके अतिरिक्त बहुत से दास भी मिले । इससे ही Single मलिक काफूर था जो आगे चलकर खलजी सेना का विश्वनीय सेनानायक बना । उसने ही अलाउद्दीन के दक्षिण अभियानों का नेतृत्व Reseller । गुजरात के बाद अलाउद्दीन खलजी ने राजपूताने की ओर ध्यान दिया । राजपूताने में पहला शिकार हुआ रणथम्भौर । रणथम्भौर का किला राजपूताने का सबसे दृढ़ किला था और वह सदा से ही दिल्ली सुल्तानों की अवहेलना करता रहा था । राजपूतों की शक्ति समाप्त करने और उनके नैतिक पतन के लिए इस किले को विजय करना आवश्यक हो गया था ।

रणथम्भौर के King हमीर देव ने अलाउद्दीन खलजी के विद्रोही मंगोल सैनिकों को शरण दी थी । रणथम्भौर पर आक्रमण का तात्कालिक कारण यह ही बना । गुजरात की लूट को लेकर मंगोल सैनिकों ने विद्रोह Reseller था । अलाउद्दीन खलजी ने हमीर देव को कहा कि वह विद्रोहियों को वापिस कर दें, परन्तु हमीर देव ने विद्रोही वापिस नहीं किए । इसलिए अलाउद्दीन ने हमीर देव (रणथम्भौर) पर आक्रमण कर दिया । रणथम्भौर राजपूताने का सबसे दृढ़ किला था । इस कारण प्रारम्भ में खलजी सेना को हानि ही नहीं उठानी पड़ी वरन् नुसरत खां जैसा सेनानायक भी मारा गया । विवश हो अलाउद्दीन खलजी को Fight भूमि में आना पड़ा । नियोजित घेराबन्दी के बाद 1301 र्इ. में अलाउद्दीन रणथम्भौर का किला विजय कर सका ।

राजपूताने का अन्य शक्तिशाली गढ़ था चित्तौड़ । यह गुजरात मार्ग पर था । इसलिए इसे विजय करना आवश्यक था । अलाउद्दीन खलजी ने 1303 में चित्तौड़ घेरा । कुछ लोगों का कहना है कि चित्तौड़ आक्रमण का कारण King रतन सिंह की सुन्दर पत्नी पद्यिनी को प्राप्त करना था । आधुनिक Historyकार इस विचार को स्वीकार नहीं करते क्योंकि उसका History लगभग 100 वर्ष बाद First जायसी ने अपने पदमावत में Reseller । प्रत्यक्षदश्र्ाी अमीर खूसरों ने चित्तौड Fight का वर्णन Reseller है । राजपूतों ने वीरता से मुकाबला Reseller परन्तु वे खलजी सेना को पराजित नहीं कर सके । राजपूत स्त्रियों ने जौहर कर अपने प्राण त्याग दिए । अमीर खुसरों के According सुल्तान ने जनसाधारण के नरसंहार का आदेश दिया था । सुल्तान के पुत्र खिज्र खां के नाम पर चित्तोड का नाम खिज्राबाद रखा । मंगोल सेना दिल्ली की ओर बढ़ रही थी इसलिए अलाउद्दीन खलजी शीघ्र ही चित्तौड़ से वापिस हो गया ।

1305 र्इ. में खलजी सेना ने अमी-उल-मुल्क के नेतृत्व में मालवा विजय Reseller । उज्जैन, मोड़, धार और चन्देरी जैसे अन्य राज्य भी विजय किए गए । अमी-उल-मुल्क को उसकी सेवा के बदले हाकिम (गवर्नर) बनाया गया ।

मालवा विजय के बाद अलाउद्दीन खलजी ने मलिक काफूर को दक्षिण भेजा और उसने स्वयं सिवाना पर आक्रमण Reseller । सिवाना के King ने बड़ी वीरता से किले को बचाने का प्रयत्न Reseller परन्तु अन्त में पराजित हुआ । इसी प्रकार 1311 र्इ. में जालौर भी विजय कर लिया गया । इस प्रकार 1311 र्इ. तक सुल्तान अलाउद्दीन खलजी समस्त राजपूताना विजय कर उत्तर भारत का स्वामी बन चुका था तथापि उसकी यह विजय स्थायी सिद्ध नहीं हुर्इ । राजपूत निरन्तर स्वतन्त्र होने के अवसर खोलते रहे थे रणथम्भौर चित्तौड़ और जालौर सल्तनत के हाथ से निकल गए । राजपूतों के स्वतंत्रता प्रेम और उस क्षेत्र की प्राकृतिक कठिनाइयों के कारण अलाउद्दीन खलजी राजपूताने को पूर्णReseller से दमन कर अपने अधीन नही रख सका ।

दारसमुद्र और माबार (आधुनिक कर्नाटक और तमिल क्षेत्र) अभियान में मलिक काफूर को सफलता और असफलता दोनों ही देखनी पड़ी । यद्यपि जमकर बहुत कम Fight हुआ तथापि आर्थिक Reseller से बहुत लाभ हुआ । द्वारसमुद्र के King वीर वल्लभ ने अनुभव कर लिया था कि मलिक काफूर को पराजित करना कोर्इ सरल कार्य नहीं होगा इसलिए उसने वार्षिक कर देना स्वीकार कर लिया । माबार पांड्य राज्य के संबंध में यह कहा जा सकता है कि न तो पांडय King वीर पांडय पकड़ा जा सका और न शर्त मनवार्इ जा सकी जा सकी फिर भी मलिक काफूर को बहुत सा धन मिला । अमीर खुसरो के According मलिक काफूर अपने साथ 512 हाथी, 500 घोड़े और 500 मन कीमती पत्थर लाया था । सुल्तान अलाउद्दीन खलजी ने उसे नायब-मलिक के पद पर नियुक्त कर सम्मानित Reseller ।

मलिक काफूर के नेतृत्व में खलजी सेना दक्षिण में अपना नियंत्रण बना रही । रामचन्द्र का पुत्र और देवगिरि का King शंकर देव दिल्ली से संबंध विच्छेद कर लेना चाहता था इसलिए उसने वार्षिक कर नहीं भेजा, सुल्तान अलाउद्दीन ने Single बार फिर 1313 र्इ. में मलिक काफूर को दक्षिण भेजा इस बार देवगिरि के King शंकर देव को दण्ड देना था । मलिक काफूर ने विद्रोह दमन कर देवगिरि को दिल्ली सल्तनत का प्रत्यक्ष अधिकार स्थापित Reseller ।

यद्यपि अलाउद्दीन खलजी के शासन काल में अनेक अभियान छेड़े गए थे तथापि इन All क्षत्रे ों को दिल्ली सल्तनत के पत््र यक्ष नियंत्रण में नहीं लाया गया था । केवल कुछ महत्वपूर्ण स्थानों में सैि नक शिविर बनाए गए आरै उनमें दिल्ली सल्तनत के सैि नक रखे गए । ये शिविर ऐसे महत्वपूर्ण स्थानों पर बनाए गए थे जहां से दिल्ली के सैनिक इन राज्यों में नियंत्रण बनाए रख सकते । सुल्तान मोहम्मद तुगलक के शासन काल में ही दिल्ली सल्तनत की सीमाएं दक्षिण तक बढ़ी थी । आप इस संबंध में अगले खंड में अध्ययन करेंगे ।

सारांश- 

अलाउदद् ीन खलजी ने सामा्र ज्यवादी नीति का अनुकरण Reseller था । उसने साम्राज्य की प्रतिष्ठा बढ़ाने, प्रदेश विजय करने और धन प्राप्त करने के उद्देश्य से अनेक अभियान छेड़े थे । उसने गुजरात और राजपूताने के Single बड़े भाग को विजय Reseller । उस ने अपने सेना नायक मलिक काफूर को दक्षिण में लूटमार के लिए भेजा था ।

1303 र्इ. में मंगोलों का चौथा आक्रमण उस समय हुआ जब सुल्तान अलाउद्दीन के चित्तौड के विरूद्ध Fight में व्यस्त था तररार्इ के अधनी 1200 मंगोल सैनिक दिल्ली के निकट आए और उन्होंने डेरा डाल दिया । उनका आक्रमण इतना आकस्मिक था कि प्रान्तीय हाकिम अपनी सेनाएं लेकर दिल्ली नहीं जा सके और अलाउद्दीन को सोरी के किले में शरण लेनी पड़ी । मंगोलों ने किले को दो मास तक घेर रखा । मंगोलों ने दिल्ली और आस-पास के क्षेत्र को खूब लूटा । उन्हें अधिक समय तक जमकर Fight करने का अनुभव नहीं था इसलिए वे तीन मास बाद वापिस चले गए ।

सुल्तान अलाउद्दीन ने अपनी राजधानी दिल्ली को मंगोल आक्रमणों से बचाने के लिए सीमा Safty के लिए कदम उठाए । उसने पंजाब, मुल्तान और सिंध के पुराने किलों की मरम्मत करवार्इ और नए किले भी बनवाए । उसने सीमा Safty के लिए अतिरिक्त सैनिक भी रखे । उसने सीमान्त प्रदेश में विशेष हाकिम नियुक्त Reseller उसे Safty अधिकारी (वार्डन आफ मार्चिने) कहा गया ।

फिर भी चंगेज खां के वंशज अली बेग के नेतृत्व में मंगोल सेना ने पंजाब पर आक्रमण Reseller। वह अमरोह तक पहुंचा । उसने मार्ग में आने वाले नगरों को लूटा और आग लगवा दी । सुल्तान अलाउद्दीन ने मंगोलों की गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए मलिक नायक को भेजा। लूट के माल को लेकर भागते हुए मंगोल पकड़े गए । उन्हें हाथी के पैरों के नीचे कुचलवा दिया गया ।

मंगोल 1306 र्इ. में Single बार फिर आए । ये मुल्तान के समीप सिंधु नदी पार कर लूटमार करते हुए हिमालय की ओर बढ़े । गाजी मलिक (ग्यासुद्दीन तुगलक) ने उन्हें रोका । बहुत से मंगोल मारे गए । उनके नेता सहित 50,000 सैनिक बन्दी बनाए गए । उनकी हत्या कर दी गर्इ और उनकी स्त्रियों और बच्चों को दास के Reseller मे बेच दिया गया ।

इस आक्रमण के बाद मंगोलों ने अलाउद्दीन के शासन काल में आक्रमण नहीं Reseller । उन्होंने अगले 20 वर्ष तक भारत आने का साहस नहीं Reseller । इसका कारण था कि 1306र्इ. दाऊद खां की मृत्यु के बाद उत्तराधिकारी के लिए Fight शुरू हो गया था । इसके अतिरिक्त मंगोल अपने आंतरिक झगड़ों के कारण आक्रमण नहीं कर सके ।

आपने देखा कि किस प्रकार मंगोल निरंतर अलाउद्दीन को परेशान करते रहे । उनके सेनानायक उनसे लड़ते रहे जिससे वे आगे न बढ़ सके । मंगोलों के अनेक आक्रमण विफल किए गए । इसीलिए सुल्तान अलाउद्दीन Single विशाल सेना बनाने के लिए विवश हुआ था । इतना ही नहीं, इसी कारण उसने शासन व्यवस्था, राजस्व और आर्थिक नीति में अनेक सुधार किए ।

अलाउदद् ीन के शासन काल में मंगाले आक्रमण Single समस्या बने रहे । सुल्तान अलाउद्दीन के योग्य सेनानायक और सैनिक मंगोलों से लड़ते रहे । मंगोल आक्रमणों के कारण सुल्तान अलाउद्दीन ने राजस्व और आर्थिक सुधार लाए ।

खलजी वंश का अन्त

1316 र्इ. में सुल्तान अलाउद्दीन खलजी की मृत्यु के बाद खलजी सल्तनत में अराजकता फैल गर्इ । मलिक काफूर कुछ समय के लिए गद्दी पर बैठा । उसे कुतुबुद्दीन मुबारक शाह ने गद्दी से उतार कर अपना अधिकार कर लिया । इस काल में देवगिरि में विद्रोह हुए परन्तु दबा दिये गये । मुबारक शाह की हत्या कर खुसरो गद्दी पर बैठा । वह भी अधिक समय शासन न कर सका । ग्यासुद्दीन के नेतृत्व में असन्तुष्ट अमीरों ने Single Fight में उसकी हत्या कर दी । इस प्रकार अलाउद्दीन की मृत्यु के चार वर्ष बाद खलजी वंश का अन्त हो गया और सत्ता तुगलक वंश के हाथ आर्इ ।

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