कार्यशील पूंजी का Means, Need, महत्व, प्रकार And स्रोत

इसका अभिप्राय चालू सम्पत्तियों के कुल योग से होता है। रोकड़ बैंक, शेष, देनदार, प्राप्य विपत्र, पूर्ववत भुगतान, आदि जैसी चालू सम्पत्तियों का योग सकल कार्यशील पूँजी कहा जाता है।

2. शुद्ध कार्यशील पूंजी  – 

यह चालू सम्पत्तियों And चालू दायित्वों का अन्तर होता है। शुद्ध कार्यशील पूंजी की मात्रा सकल कार्यशील पूंजी का वह भाग होती है जिसका वित्तीयन दीर्घकालीन कोषों से Reseller जाता है। इसकी गणना दीर्घकालीन पूंजी में से स्थायी सम्पत्तियों को घटाकर की जा सकती है।

3. स्थायी कार्यशील पूंजी- 

कार्यशील पूंजी की वह मात्रा जो व्यवसाय के सामान्य संचालन के लिए नियमित Reseller से सदैव रखी जानी चाहिए, स्थायी कार्यशील पूंजी कही जाती है। इसकी प्रकृति स्थायी And दीर्घकालीन होती है जिसका वित्तीयन भी दीर्घकालीन वित्तीय स्रोतों से Reseller जाता है।

4. परिवर्तनशील कार्यशील पूंजी  – 

स्थायी कार्यशील पूंजी के अतिरिक्त वर्ष के कुछ महीनों में व्यापार की अत्तिाकता के कारण परिवर्तनशील कार्यशील पूंजी की Need भी पड़ सकती है। चीनी उद्योग, ऊनी वस्त्र उद्योग, फ्रीज, कूलर, आदि मौसमी वस्तुओं को उत्पादित करने वाली संस्थाओं को मौसम के खास महीनों में इस प्रकार की अतिरिक्त पूंजी की Need होती है मौसमी प्रकृति के कारण इसकी मात्रा घटती बढ़ती रहती है। जिसकी व्यवस्था अल्पकालीन स्रोतों से की जाती हैं।

    कार्यशील पूंजी को निधार्रित करने वाले तत्व 

    1. व्यवसाय का स्वReseller – 

    कार्यशील पूंजी की मात्रा को प्रभावित करने वाला सर्वाधिक प्रमुख कारक व्यवसाय का स्वReseller है। रेलवे, सड़क, गैस, आदि जनोपयोगी व सेवा संस्थाओं में निरन्तर मांग और नकद विक्रय होने से कम कार्यशील पूँजी की Need होती है। इनकी माँग सदैव रहने से रोकड़ प्रवाह अनवरत होता रहता है। इसके विपरीत, विलासिता व सौन्दर्य प्रसाधन उत्पन्न करने वाली संस्थाओं And व्यापारिक संस्थाओं में अधिक कार्यशील पूँजी की Need होती है। इनकी परिवर्तनशील माँग होने के कारण रहतिया में बहुत विनियोजन करना पड़ता है।

2. व्यवसाय का आकार – 

Single संस्था की कार्यशील पूँजी की मात्रा उसके व्यवसाय के आकार से प्रत्यक्षत: जुड़ी होती है। Single छोटे आकार के व्यवसाय के लिए नकद रोकड़, प्राप्य बिल तथा रहतिया के लिये अपेक्षाकृत कम पूँजी की Need होती है। बड़े आकार के व्यवसाय के लिए अधिक कार्यशील पूंजी की आवयकता होती हैं।

3. उत्पादन प्रक्रिया की अवधि  – 

यदि उत्पादन प्रक्रिया अधिक समय लेने वाली होती है तो स्वाभाविक तौर पर कच्चे माल को निर्मित माल का Reseller देने में अधिक समय, लागत और श्रम लगता है जिसके परिणामस्वReseller अधिक कार्यशील पूंजी चाहिए। किन्तु यदि उत्पादन प्रक्रिया की अवधि अपेक्षाकृत छोटी होती है तो कम मात्रा में कार्यशील पूँजी चाहिए।

4. कार्यशील पूंजी चक्र – 

कार्यशील पूंजी चक्र कच्ची सामग्री के क्रय से प्रारम्भ होता है तथा निर्मित माल के Resellerान्तरण व निर्मित माल के विक्रय से रोकड़ की वसूली के साथ समान होता है। कार्यशील पूंजी चक्र की अवधि जितनी लम्बी होगी, उसकी Need भी उतनी ही अधिक होगी।

5. क्रय की शर्ते एव रीतियाँ – 

कच्चा माल व अन्य सामान किन महीनों व शर्तों पर क्रय Reseller जाता है का सीधा प्रभाव कार्यशील पूंजी की मात्रा पर पड़ता है। यदि कच्चे माल की समस्त वार्षिक जरूरत को फसल के ही समय Single साथ खरीद कर रख लिया जाता है तो कार्यशील पूॅंजी की अधिक Need होगी, परन्तु वर्ष पर्यन्त स्थानीय बाजार से कच्चा माल क्रय Reseller जाता है तो कम कार्यशील पूंजी की Need होगी। इसी प्रकार यदि कच्चा माल विक्रेता से लम्बी अवधि के उधार पर आपूर्ति Reseller जाता है तो उसे निर्मित करने के बाद बेचकर कच्चे माल का भुगतान Reseller जा सकता है। परन्तु यदि कच्चा माल नकद खरीदना पड़ता है तो फिर अधिक कार्यशील पूंजी की व्यवस्था करनी पड़ती होगी।

6. विक्रय की शर्ते –

माल का विक्रय नकद And उधार Reseller जा सकता है। यदि निर्मित माल नकद बेचा जाता हो तो कम कार्यशील पूंजी की Need होगी। यदि माल उधार बेचा जाता है तो उसके भुगतान में अधिक समय लगता है तो निश्चित तौर पर अधिक कार्यशील पूंजी की Need होगी।

7. व्यवसाय चक्र – 

व्यवसाय चक्र भी कार्यशील पूंजी की मात्रा को प्रभावित करते हैं। तेजी काल में विक्रय में वृद्धि, कीमतों में बढ़ोत्तरी व व्यवसाय के आशावादी विस्तार, आदि के कारण अधिक कार्यशील पूंजी की Need पड़ती है। मन्दी के समय मांग कम होने के कारण विक्रय में गिरावट आती है, व्यापार में संकुचन होता है व देनदारों से धन वसूली में दिक्कत आती है। ऐसी स्थिति में कार्यशील पूंजी का Single बड़ा भाग निष्क्रिय पड़ा रह सकता है।

8. बैंकिंग सम्बन्ध – 

ऐसी संस्थाएं जो बैंकों से अच्छे व मधुर सम्बन्ध विकसित करने में सक्षम होती है तथा बैंक की दृष्टि से जिनकी साख उत्तम होती है वे कम कार्यशील पूंजी से भी व्यवसाय संचालित कर सकती हैं। Need होने पर बैंक उन्हें शीघ्रता से वित्त प्रदान कर सकता है।

9. लाभांश नीति – 

अगर कम्पनी उदार लाभांश नीति अपनाती है तो लाभांश वितरित करने के लिए अधिक कार्यशील पूंजी की Need होगी। दूसरी ओर, यदि कम्पनी नकद लाभांश न वितरित करके बोनस अंशों का निर्गमन करती है तो यह कार्यशील पूँजी की मात्रा में कमी लाएगा।

10. व्यवसाय के विकास की दर – 

Single संस्था की कार्यशील पूँजी की Needएं इसकी व्यावसायिक क्रियाओं के विस्तार और विकास के साथ-साथ बढ़ती है । यदि व्यापार विस्तार व विकास की दर धीमी है तो कम कार्यशील पूंजी की Need होगी जिसकी व्यवस्था लाभों के पुर्नविनियोग (Ploughing Back of Profits) से की जा सकती है। किन्तु यदि व्यापार का विस्तार बड़े पैमाने पर Reseller जाता है तो तीव्र विकास हेतु अधिक कार्यशील पूँजी की Need पड़ती है।

11. अन्य कारक – 

कुछ अन्य तत्व जैसे, मूल्य स्तर परिवर्तन, प्रबन्धकीय योग्यता, राजनीतिक स्थायित्व, Fight आशंका, आयात नीति, परिवहन व संचार की सुविधा, आदि भी कार्यशील पूँजी की Need प्रभावित करती हैं ।

    कार्यशील पूंजी के स्रोत  – 

    कार्यशील पूंजी दो प्रकार के साधनों (अ) दीर्घकालीन साधन, तथा (ब) अल्पकालीन साधन से प्राप्त की जा सकती है।

    1. दीर्घकालीन साधन – 

    स्थायी कार्यशील पूंजी का वित्त पोषण करने के लिए उपक्रम को दीर्घकालीन साधनों को ही अपनाना चाहिए। दीर्घकालीन साधनों से ही लम्बे समय तक के लिए, वित्त प्राप्त हो सकता है। कार्यशील पूंजी के दीर्घकालीन साधन निम्नलिखित हो सकते हैं –

    (i) अंश  – 

    नये अंशों का निर्गमन कार्यशील पूँजी का मुख्य साधन है। Single कम्पनी समता और पूर्णाधिकार अंशों का निर्गमन कर सकती है। First स्थगित अंशों के निर्गमन का अधिकार कम्पनियों को प्राप्त था जिसे Indian Customer कम्पनी अधिनियम 1956 के द्वारा रोक दिया गया है। पूर्वाधिकार अंशों को Single निश्चित दर से लाभांश प्राप्ति के सम्बन्ध में और कम्पनी समापन के समय पूंजी के पुनर्भुगतान के लिए प्राथमिकता प्राप्त होती है। समता अंशों को लाभ की उपलब्धता के आधार पर लाभांश प्रदान Reseller जाता है। कम्पनी को अंशों के निर्गमन से स्थायी कार्यशील पूंजी की अधिकतम राशि की व्यवस्था करनी चाहिए।

    (ii) ऋणपत्र – 

    ऋण पत्र निर्गमन भी अंशों की ही भांति कार्यशील पूंजी का महत्वपूर्ण साधन है। ऋणपत्र किसी भी धारक को ऋण की स्वीकृति का कम्पनी द्वारा निर्गमित प्रपत्र होता है। ऋणपत्र धारक कम्पनी के लेनदार होते हैं और निश्चित दर से ब्याज प्राप्त करने के हकदार होते हैं।

    (iii) प्रतिपादित लाभ –

    यह वित्त का Single आन्तरिक साधन है जो सर्वाधिक सस्ता और वस्तुत: लागतविहीन स्रोत होता है। यह साधन पूर्व स्थापित संस्थाओं द्वारा अपने विस्तार, आधुनिकीकरण और प्रतिस्थापन आदि के लिये प्रयोग Reseller जाता है।

    (iv) प्राचीन सम्पत्तियों का विक्रय – 

    बेकार के अप्रयुक्त स्थायी सम्पत्तियों को बेचकर भी कार्यशील पूंजी की व्यवस्था की जा सकती है।प्रबन्धन इस साधन पर कम ही निर्भर रह सकता है। क्योंकि यह सामयिक, अनियमित और अविश्वसनीय होता है।

    (v) दीर्घकालीन ऋण – 

    बैंकों, विनियोग कम्पनियों व विशिष्ट वित्तीय संस्थाओं से दीर्घकालीन ऋण प्राप्त करके भी कार्यशील पूंजी का वित्तीयन Reseller जा सकता है। Indian Customer औद्योगिक वित्त निगम (IFCI), राज्य वित्त निगमों (SFCs), Indian Customer औद्योगिक विकास बैंक (IDBI), नाबार्ड (NABARD) आदि इसके उदाहरण है।

        2. अल्पकालीन साधन- 

      अल्पकालीन साधनों से अस्थायी कार्यशील पूंजी की व्यवस्था की जाती है। जिसकी लागत भी अपेक्षाकृत कम होती है। प्रमुख अल्पकालीन साधन है

      (i) वाणिज्यिक बैंकं – 

      अल्पकालीन कार्यशील पूंजी के सबसे महत्वपूर्ण स्रोत वाणिज्यिक बैक होते हैं। बैंक सामान्यतया अग्र चार Resellerों में ऋण प्रदान करते हैं।

      (ii) नकद साख  – 

      इस व्यवस्था के अन्तर्गत बैंक तथा ग्राहक के मध्य Single औपचारिक समझौता होता है जिसमें साख की अधिकतम सीमा निर्धारित कर दी जाती है। ग्राहक निर्दिष्ट सीमा के भीतर Needनुसार राशि का आहरण कर सकता है। ब्याज आहरित किए गये ऋण पर ही लगता है न कि सम्पूर्ण अधिकतम सीमा पर ।

      (iii) बैंक अधिविकर्ष – 

      अधिविकर्ष बैंक के साथ की गर्इ ऐसी व्यवस्था है जिसमें चालू खाता के ग्राहक अपने खाते में जमा शेष के अतिरिक्त Single निर्धारित सीमा तक धन के आहरण की स्वीकृति बैंक से लेता है। इससे ग्राहक चेक अनादृत होने पर उत्पन्न विषम स्थिति से बच जाता है और कुछ समय के लिए ऋण सुविधा भी मिल जाती है। व्यवहार में नकद साख और बैंक अधिविकर्ष में कोर्इ खास अन्तर नहीं होता है लेकिन इतना अवश्य है कि अधिविकर्ष अति अल्पकाल के लिए स्वीकृत Reseller जाता है और यह Single अस्थायी व्यवस्था (Short-gap arrangement) होती है जबकि नकद साख अपेक्षाकृत अधिक अवधि के लिए स्वीकृत होता है।

      (iv) Windows Hosting ऋण  – 

      बैंक जब सम्पत्तियों की जमानत के आधार पर Singleमुश्त अग्रिम देता है तो उसे Windows Hosting ऋण कहते हैं। प्राय: बैंक बॉण्डस, रहतिया व व्यक्तिगत जमानत के आधार पर इस प्रकार का अल्पकालीन ऋण देती है। ऋण की वापसी Singleमुश्त या किस्तों में की जा सकती है।

      (v) बिलो की कटौती – 

      इसमें ग्राहक बैंक को अपने प्राप्य बिलों की अपेक्षाकृत कम मूल्य पर बेच देते हैं अथवा वर्तमान ब्याज की दर पर कटौती करा लेता है। परिपक्वता की तिथि पर बैंक सम्बद्ध पक्ष से बिल का पूर्ण अंकित मूल्य प्राप्य कर लेता है। इस प्रकार ग्राहक कटौती की धनराशि की हानि उठाकर Needनुसार वित्त प्राप्त कर लेता है।

      (vi) व्यापार साख – 

      प्राय: All व्यावसायिक इकाइयों को माल विक्रेता से अल्पकाल के लिए अपनी ख्याति के According उधार मिल जाता है जिसका भुगतान बाद में Singleमुश्त या किश्तों में Reseller जाता है। कभी-कभी इस उधार माल के लिए विपत्र, प्रतिज्ञा-पत्र, हुण्डी, आदि लिख दिए जाते हैं। इस विधि में उधार पर ब्याज नहीं दिया जाता है परन्तु बहुधा विक्रेता माल की कीमत बढ़ा करके ही बेचता है। इस प्रकार अधिक कीमत लेकर ब्याज की पूर्ति कर ली जाती है। व्यापार साख की अवधि प्राय: 15 दिन से 3 माह तक की होती है।

      (vii) देशी साहूकार – 

      छोटे तथा मध्यम आकार के उपक्रम अपनी कार्यशील पूँजी का महत्वपूर्ण हिस्सा देशी साहूकारों से प्राप्त करते हैं। ये लोग ब्याज की दर अधिक वसूल करते हैं अत: इनकी शरण में व्यावसायिक गृह अन्त में ही जाते हैं। आजकल वाणिज्यिक बैकों का प्रचलन बढ़ने से देशी साहूकारों की महत्ता दिन प्रतिदिन घट रही है।

      (viii) जन निक्षेप – 

      मुम्बर्इ And अहमदाबाद की सूती वस्त्र मिलों में जन निक्षेप कार्यशील पूंजी का प्रचलित स्रोत रहे हैं। वर्तमान में निजी व सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियां इस साधन का प्रयोग निरन्तर कर रही हैं। इसमें जनता अपना धन तब तक कम्पनियों के पास जमा रखती है जब कि उन्हें ब्याज मिलता है। यह साधन कम्पनियों के लिए सुखद समय का साथी (Fair Weather Friend) सिद्ध होता है और संकट की स्थिति में जमाकर्ता वापसी की मांग कर सकते हैं।

      (ix) ग्राहको से अग्रिम  – 

      कुछ व्यावसायिक गृह अपने ग्राहकों से माल के आदेश के साथ सम्पूर्ण या आंशिक भुगतान अग्रिम में प्राप्त कर लेते हैं जो कार्यशील पूंजी का अल्पकालीन साधन होता है । यह पूँजी प्राप्त करने का लागत विहीन साधन है क्योंकि इस पर कोर्इ ब्याज नहीं देना पड़ता है। परन्तु प्राय: Singleाधिकारी संस्थाएँ ही इस साध् ान को प्रयोग करने की स्थिति में होती है जहाँ पर ग्राहक कोर्इ भी शर्त स्वीकार करने का बाध्य होता है। प्रतिस्पध्री वातावरण में और जिस संस्था की साख निर्बल हो, इस साधन का सहारा नहीं ले सकती है।

      (x) आन्तरिक साधन – 

      कार्यशील पूँजी के लिए ह्रास कोष, करों के लिए प्रावधान व उपार्जित व्यय जैसे आन्तरिक साधनों का भी उपयोग Reseller जा सकता है। लाभ में से कुछ भाग निकालकर बनाए गये ह्रास कोष उस समय तक कार्यशील पूँजी प्रदान करते हैं जब तक कि कोर्इ स्थायी सम्पत्ति न क्रय की जाए अथवा लाभांश के Reseller में वितरित न Reseller जाये। इसी तरह करों के लिए जो प्रावधान Reseller जाता है वह Single निश्चित अन्तराल पर भुगतान Reseller जाता है। इस बीच की अवधि में यह अल्पकालीन कार्यशील पूंजी के Reseller में प्रयुक्त होता है। उपार्जित व्ययों की राशि भी भुगतान होने तक अल्पकालीन साधन होते हैं।

      (xi) अन्य साधन – 

      कुछ अन्य साधन हैं – (अ)- सरकारी सहायता, (ब)- प्रबंधकों व संचालकों के ऋण (स)- कर्मचारियों की प्रतिभूतियाँ।

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