कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923 क्या है ?

अस्थायी आंशिक अशक्तता- अस्थायी आंशिक अशक्तता वह अषक्कतता है, जिससे कर्मकार की उस नियोजन में उपार्जन क्षमता अस्थायी अवधि के लिए कम हो जाती है, जिसमें वह दुर्घटना के समय लगा हुआ था।

स्थायी आंशिक अशक्तता – स्थायी आंशिक अशक्तता वह अशक्तता है, जिससे कर्मकार की हर ऐसे नियोजन में उपार्जन-क्षमता स्थायी Reseller में कम हो जाती है, जिसे वह दुर्घटना के समय करने में समर्थ था। अधिनियम की अनुसूची 1 के भाग 2 में उन क्षतियों के इस भाग में विभिन्न प्रकार के विच्छेदन तथा अन्य क्षतियों से होने वाली उपार्जन-क्षमता की प्रतिशत हानि का भी History Reseller गया है।

अस्थायी पूर्ण अशक्तता – अस्थायी पूर्ण अशक्तता ऐसी अशक्तता है, जो कर्मार को ऐसे All कामों के लिए अस्थायी तौर पर असमर्थ कर देती है, जिसे वह दुर्घटना के समय करने में समर्थ था। 
स्थायी पूर्ण अशक्तता – स्थायी पूर्ण अशक्तता वह अशक्तता है, जो कर्मकार को ऐसे All कामों के लिए स्थायी Reseller से असमर्थ कर देती है, जिसे वह दुर्घटना के समय करने में असमर्थ था। अधिनियम की अनुसूची 1 के भाग 1 में उल्लखित निम्नलिखित क्षतियों से उत्पन्न अशक्तता को स्थायी पूर्ण अशक्तता समझा जाता है –

  1. दोनों हाथों की हानि या उच्चतर स्थानों पर विच्छेदन; 
  2. Single हाथ और Single पांव की हानि; 
  3. टाँग या जंघा से दोहरा विच्छेदन या Single टँाग या जघा से विच्छेदन और Second पाँव की हानि; 
  4. आँखों की रोषनी की इस मात्रा तक हानि कि कर्मकार ऐसा कोर्इ काम करने में असमर्थ हो जाता है जिसके लिए आँखों की रोषनी आवश्यक है; 
  5. चेहरे की बहुत गंभीर विद्Resellerता; या 
  6. पूर्ण बधिरता। अधिनियम की अनुसूची 1 के भाग 2 में उन क्षतियों का History Reseller गया है, जिनके परिणामस्वReseller स्थायी आंशिक अशक्तता उत्पन्न समझी जाती है। अनुसूची के इस भाग में विभिन्न प्रकार के विच्छेदनों तथा अन्य क्षतियों से होने वाली उपार्जन-क्षमता की प्रतिशत हानि का भी History Reseller गया है। अगर किसी दुर्घटना के कारण कर्इ प्रकार की आंशिक अशक्ताएं Single साथ उत्पन्न होती है और उनके कारण उपार्जन-क्षमता की हानि 100 प्रतिशत या इससे अधिक होती है तो उसे भी स्थायी पूर्ण अशक्तता का मामला समझा जाता है। 

मजदूरी – अधिनियम के प्रयोजन के लिए ‘मजदूरी’ से ऐसी सुविधा या लाभ का बोध होता है, जिसे धन के Reseller में प्राक्कलित Reseller जा सकता है, लेकिन इसके अंतर्गत निम्नलिखित सम्मिलित नही होते –

  1. यात्रा-भत्ता; 
  2. यात्रा-संबंधी रियायत का मूल्य; 
  3. कर्मकार के लिए नियोजक द्वारा पेंशन या भविष्य-निधि में दिया गया अंशदान; या 
  4. कर्मकार के नियोजन की प्रकृति के कारण उस पर हुए विशेष खर्च के लिए उसे दी गर्इ राशि। 

 आश्रित – आश्रित से मृत कर्मकार के निम्नलिखित नातेदारों में किसी का बोध होता है –

  1. विधवा, नाबालिग धर्मज पुत्र, अविवाहिता धर्मज पुत्री या विधवा माता; 
  2. अठारह वर्ष से अधिक उम्र का विकलांग पुत्र या पुत्री अगर वह कर्मकार की मृत्यु के समय उसके उपार्जनों पर पूरी तरह आश्रित था या थी; 
  3. कर्मकार की मृत्यु के समय उसके उपार्जनों पर पूरी तरह या आंशिक Reseller से यथानिर्दिष्ट आश्रित- 1. विधुर, 2. विधवा माता को छोड़कर माता-पिता, 3. नाबालिग अधर्मज पुत्र, अविवाहिता अधर्मज पुत्री, नाबालिग विवाहिता धर्मज या अधर्मज पुत्री, या नाबालिग विधवा पुत्री चाहे वह धर्मज हो या अधर्मज, 4. नाबालिग भार्इ या अविवाहिता बहन या नाबालिग विधवा बहन, 5. विधवा पुत्रवधू, 6. पूर्वमृत पुत्र की नाबालिग संतान, 7. पूर्वमृत पुत्री की नाबालिग संतान अगर उस संतान के माता-पिता में से कोर्इ भी जीवित नही है, या 8. जहां कर्मकार के माता-पिता में से कोर्इ भी जीवित नही है, वहाँ पितामह और पितामही। 

    क्षतिपूर्ति के लिए नियोजक का दायित्व 

      दायित्व के लिए आवश्यक शर्ते – 

      अगर किसी कर्मकार की नियोजन के दौरान तथा नियोजन से उत्पन्न होनेवाली दुर्घटना से व्यक्तिगत क्षति होती हो, तो उसका नियोजक क्षतिपूर्ति के लिए दायी होता है। इस तरह, क्षतिपूर्ति के दायी होने के लिए निम्नलिखित दशाओं का होना आवश्यक है –

      1. दुर्घटना का नियोजन के दौरान होना; 
      2. दुर्घटना का नियोजन के कारण या उससे उत्पन्न होना; तथा 
      3. दुर्घटना के फलस्वReseller कर्मकार का व्यक्तिगत Reseller से क्षतिग्रस्त होना। उपर्युक्त तीनों दशाओं के बारे में प्राय: विवाद उठ खड़े होते हैं। इस कारण इनकी व्याख्या आवश्यक है।

      नियोजन के दौरान दुर्घटना का होना –

      नियोजन के दौरान से दुर्घटना होने के समय का बोध होता है। नियोजक दुर्घटना के लिए तभी जिम्मेदार होता है, जब वह कार्यस्थल में समुचित समय और स्थान की सीमाओं में हुर्इ हो। साधारणत:, 166 जब दुर्घटना कर्मकार की निर्धारित कार्यविधियों के अंदर कार्यस्थल या नियोजक के परिसर में हुर्इ हो, तो उसे नियोजन के दौरान समझा जाता है। लेकिन, कुछ स्थितियों में यह साबित करना कठिन होता है कि दुर्घटना नियोजन के दौरान हुर्इ है। पहला, काम में अस्थायी व्यतिरेक की अवधियों को नियोजन के दौरान तभी सम्मिलित समझा जाता है, जब व्यतिरेक नियोजक के लिए समुचित Reseller से आवश्यक या आनुवांगिक हो। अगर कर्मकार अपने व्यक्तिगत काम के लिए काम छोड़ता है, तो उसे नियोजन के दौरान नहीं समझा जाता। मान्यता प्राप्त अंतरालों, जैसे विश्राम-अंतराल को नियोजन के दौरान समझा जाता है। उपर्युक्त All अवधियों में अगर कर्मकार नियोजक या उसके प्रतिनिधि के आदेशानुसार काम करता है, तो उसे नियोजन के दौरान समझा जाता है।

      दुर्घटना का नियोजन से उत्पन्न होना – 

      अगर कोर्इ दुर्घटना नियोजन की प्रकृति, दशाओं, दायित्वों या घटनाओं में निहित किसी खतरे के कारण होती है, तो उसे नियोजन से उत्पन्न समझा जाता है। साधारणत:, अगर यह साबित हो जाता है कि दुर्घटना नियोजन के दौरान उत्पन्न होता हुर्इ है, तो उसे नियोजन से उत्पन्न भी समझा जाता है। निम्नलिखित स्थितियों में दुर्घटना नियोजन से उत्पन्न नही समझी जाती – पद्ध अगर कर्मकार उसे सुपुर्द किए हुए काम छोड़कर कोर्इ दूसरा काम करता है, तो उसे नियोजन से उत्पन्न नही समझा जाता। लेकिन, अगर वह नियोजक के आदेश से Second कामगार का काम करता है, तो उसे नियोजन से उत्पन्न समझा जाता है;

      1. अगर कर्मकार अपने नियोजन से प्रत्यक्ष या परोक्ष Reseller से संबद्ध कार्यो को छोड़कर अपना व्यक्तिगत काम करता हो; 
      2. अगर कर्मकार अपना काम असावधानी से ही नही, बल्कि उतावलेपन से करता हो; 
      3. अगर कर्मकार को अन्य कामगारों के साथ बाहरी खतरों का सामना करना पड़ा हो; जैसे – बिजली गिरना भूकंप आदि; 
      4. अगर कर्मकार को अपनी शारीरिक दशा, जैसे मिरगी के आक्रमण के कारण दुर्घटना का सामना करना पड़ा हो; 
      5. घातक दुर्घटनाओं को छोड़कर अन्य दुर्घटनाओं की स्थिति में अगर कर्मकार को उसकी मतावस्था के कारण दुर्घटना का सामना करना पड़ा हो; 
      6. अगर कर्मकार को ऐसी जगह दुर्घटना का सामना करना पड़ा हो, जहाँ उसकी उपस्थिति आवश्यक नही थी; या 
      7. अगर काम पर लगा कर्मकार Second के First से दुर्घटनाग्रस्त हो जाता हो। 

      दुर्घटना से कर्मकार का व्यक्तिगत Reseller से क्षतिगस्त होना – 

      दुर्घटना के फलस्वReseller कर्मकार का व्यक्तिगत Reseller से क्षतिग्रस्त होना आवश्यक है। अगर दुर्घटना से उसे किसी तरह की व्यक्तिगत क्षति नहीं पहुंचती हो तो वह क्षतिपूर्ति होना आवश्यक है। अगर दुर्घटना से उसे किसी तरह की व्यक्तिगत क्षति नहीं पहंचु ती हो तो वह क्षतिपूर्ति के लिए दावेदार नही हो सकता। अधिनियम के अंतर्गत क्षतिपूर्ति कर्मकार की मृत्यु, उसकी अस्थायी आंशिक और पूर्ण अशक्तता तथा स्थायी आंशिक और पूर्ण अशक्तता की स्थितियों में ही देय होती है।

      क्षतिपूर्ति के लिए नियोजक के दायी नहीं होने की दशाएं-

      नियोजक दशाओं में क्षतिपूर्ति के लिए दायी नही होता –

      1. ऐसी क्षति की स्थिति में, जिसके परिणामस्वReseller कर्मकार की अशक्तता पूर्ण या आंशिक Reseller से तीन दिनों से अधिक अवधि के लिए नही होती; 
      2. कर्मकार की मृत्यु या उसकी स्थायी पूर्ण अशक्तता की स्थिति को छोड़कर दुर्घटना द्वारा ऐसी क्षति के लिए, जो कर्मकार पर मदिरा या औशधियों के असर के कारण हुर्इ हो; 
      3.  कर्मकार की मृत्यु या उसकी स्थायी पूर्ण अशक्तता की स्थिति को छोड़कर दुर्घटना द्वारा ऐसी क्षति के लिए, जो कर्मकार पर मदिरा या औशधियों के असर के कारण हुर्इ हो; 
      4. कर्मकार की मृत्यु या उसकी स्थायी पूर्ण अशक्तता की स्थिति को छोड़कर दुर्घटना द्वारा ऐसी क्षति के लिए जो कर्मकार को Safty के लिए उपाय या युक्ति को उसके द्वारा जान-बूझकर हटाए जाने या उसकी अवहेलना के कारण हुर्इ हो। 

      व्यावसायिक रोगों के लिए क्षतिपूर्ति का दायित्व –

      अधिनियम की अनुसूची III में कर्इ ऐसे व्यावसायिक रोगों का History Reseller गया है, जिन्हें नियोजन के दौरान और नियोजन से उत्पन्न दुर्घटना के फलस्वReseller हुर्इ क्षति समझा जाता है और नियोजक के लिए इन रोगों के शिकार कर्मकारों को क्षतिपूर्ति देना आवश्यक है। अधिनियम में इन व्यावसायिक रोगों को तीन श्रेणियों में रखा गया है –

      1. अनुसूची ‘III’ के भाग ‘A’ में कुछ विशेष प्रकार के नियोजनों में हो सकने वाले व्यावसायिक रोगों का History Reseller गया है। अगर कोर्इ कर्मकार ऐसे किसी नियोजन में काम करते रहने के फलस्वReseller उससे संबद्ध व्यावसायिक रोग से ग्रस्त हो जाता है, तो उसे नियोजन के दौरान और नियोजन से उत्पन्न दुर्घटना से होने वाली क्षति समझा जाता है, और नियोजक के लिए इन रोगों से ग्रस्त कर्मकारों को क्षतिपूर्ति देना आवश्यक है।
      2. अनुसूची ‘III’ के भाग ‘B’ में कुछ ऐसे व्यावसायिक रोगों का History Reseller गया है, जो कुछ विशेष नियोजनों में कर्मकार के लगातार 6 महीने से अधिक अवधि तक काम करते रहने के कारण हो सकते है। अगर कर्मकार ऐसे किसी नियोजन में लगातार 6 महीने से अधिक अवधि तक काम करने के बाद उससे संबद्ध व्यावसायिक रोग से ग्रस्त हो जाता है, तो उसे भी नियोजन के दौरान और नियोजन से उत्पन्न दुर्घटना के फलस्वReseller होने वाली क्षति समझा जाता है और उसके लिए क्षतिपूर्ण देय होती है। 
      3. अनुसूची ‘III’ के भाग ‘C’ में ऐसे व्यावसायिक रोगों का History Reseller गया है, जिनसे कर्मकार Single या अधिक नियोजकों के यहां केन्द्र सरकार द्वारा विहित अवधि तक उल्लिखित नियोजनों में काम कर चुकने के बाद ग्रस्त हो सकते हैं। केन्द्र सरकार द्वारा निर्धारित अवधि से कम अवधि तक काम करने पर भी कर्मकार क्षतिपूर्ति का दावेदार हो सकता है, यदि यह सिद्ध हो जाए कि रोग नियोजन के दौरान और नियोजन से उत्पन्न हुआ है। केन्द्र And राज्य सरकारों को अनुसूची अनुसूची ‘III’ में अन्य व्यावसायिक रोगों को जोड़ने या शामिल करने की शक्ति प्राप्त है।

      वे स्थितियाँ जिनमें कर्मकार को दावे का अधिकार नही होता- यदि कर्मकार ने नियोजक या किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध किसी सिविल न्यायालय में किसी क्षति के लिए नुकसानी का कोर्इ वाद चला दिया है, तो उसे इस अधिनियम क अंतर्गत क्षतिपूर्ति पाने का अधिकार नहीं होता। इसी तरह, अगर किसी क्षति के बारे में क्षतिपूर्ति का कोर्इ दावा कर्मकार क्षतिपूर्ति आयुक्त के समक्ष रखा गया हो या इस अधिनियम के According क्षतिपूर्ति के लिए कर्मकार और नियोजक के बीच कोर्इ समझौता हो चुका हो, तो कर्मकार द्वारा नुकसानी के लिए किसी न्यायालय में वाद नही चलाया जा सकता। 

      क्षतिपूर्ति की रकम –

      अधिनियम में अलग-अलग प्रकार की क्षतियों के लिए क्षतिपूर्ति की अलग-अलग रकम और दरें निर्धारित की गर्इ है। First, विभिन्न मजदूरी-श्रेणियों के लिए मृत्यु, स्थायी And अशक्तता तथा अस्थायी अशक्तता के लिए क्षतिपूर्ति की वास्तविक राशि अधिनियम में ही विहित कर दी गर्इ थी। लेकिन 1984 के Single संशोधन के According क्षतिपूर्ति की गणना के तरीकों का नए ढंग से History Reseller गया है। विभिन्न प्रकार की क्षतियों के लिए क्षतिपूर्ति की राशि और उसके निर्धारण के तरीके निम्नांकित प्रकार है –

      1. मृत्यु की स्थिति में क्षतिपूर्ति की रकम- दुर्घटना के फलस्वReseller होने वाले मृत्यु की स्थिति में क्षतिपूर्ति की रकम मृत कर्मकार की मजदूरी के 50 प्रतिशत को तालिका 5 में दिए गए सुसंगत कारक से गुणा करने पर आने वाली राशि या 80000 रुपये, जो भी अधिक है, होती है, अगर किसी कर्मकार की मजदूरी 4000 रुपये प्रतिमाह से अधिक है, तो क्षतिपूर्ति की राशि की गणना 4000 रुपये की मजदूरी पर ही की जाएगी। 
      2. स्थायी पूर्ण अशक्तता की स्थिति में क्षतिपूर्ति की रकम- दुर्घटना के फलस्वReseller होने वाली स्थायी पूर्ण अशक्तता की स्थिति में क्षतिपूर्ति की रकम कर्मकार की मजदूरी के 60 प्रतिशत को तालिका 5 में दिए गए सुसंगत कारक से गुणा करने पर आने वाली राशि या 90000 रुपये, जो भी अधिक है, होती है। अगर किसी कर्मकार की मजदूरी 4000 रुपये प्रतिमाह से अधिक है तो क्षतिपूर्ति की गणना 4000 रुपये की मजदूरी पर ही की जाएगी। 
      3. स्थायी पूर्ण अशक्तता की स्थिति में क्षतिपूर्ति की रकम – स्थायी आंशिक अशक्तता की स्थिति में क्षतिपूर्ति की राशि स्थायी पूर्ण अशक्तता के लिए देय राशि का वह अनुपात होती है, जिस अनुपात में कर्मकार की उपार्जन क्षमता की हानि होती है। उदाहरणार्थ, अगर किसी कर्मकार को देय स्थायी पूर्ण अशक्तता के लिए क्षतिपूर्ति की राशि 30000 रुपये है और स्थायी आंशिक अशक्तता से उसकी उपार्जन-क्षमता में 50 प्रतिशत की हानि हुर्इ है, तो स्थायी आंशिक अशक्तता के लिए क्षतिपूर्ति की राशि 15000 रुपये होगी। 
      4. अस्थायी आंशिक या पूर्ण अशक्तता के लिए क्षतिपूर्ति की रकम – अस्थायी आंशिक या पूर्ण अशक्तता के लिए क्षतिपूर्ति की अधिकतम राशि कर्मकार की मजदूरी का 25 प्रतिशत अर्द्धमासिक भुगतान के Reseller में दी जाने वाली राशि होती है। जहाँ अशक्तता 28 दिनों से अधिक अवधि के लिए होती है, वहाँ अस्थायी अशक्तता के लिए अर्द्धमासिक भुगतान दुर्घटना के दिन के सोलहवें दिन प्रारंभ हो जाता है। जहां अशक्तता 28 दिनों से कम अवधि के लिए होती है, वहाँ अर्द्धमासिक भुगतान 3 दिनों की प्रतीक्षा-अवधि की समाप्ति के बाद सोलहवें दिन प्रारंभ होता है। अर्द्धमासिक भुगतान अशक्तता की अवधि तक या पाँच वर्षो के लिए, जो भी अधिक हो, Reseller जाता है। 

      अगर कोर्इ दुर्घटनाग्रस्त कामगार अस्थायी अशक्तता की अवधि में कुछ अर्जित करता है, तो अर्द्धमासिक भुगतान की रकम उसके द्वारा दुर्घटना के First और बाद में उस अवधि के लिए अर्जित मजदूरी के अंतर से अधिक नहीं हो सकती। उदाहरणार्थ, अगर कामगार के अर्द्धमासिक भुगतान की रकम 1000 रुपये है और वह दुर्घटना के बाद 400 रुपये अर्द्धमासिक मजदूरी अर्जित कर लेता है, तो उसे क्षतिपूर्ति के Reseller में 60 रू0 अर्द्धमासिक से अधिक का भुगतान नहीं Reseller जाएगा। अगर कामगार नियोजक से क्षतिपूर्ति के Reseller में कोर्इ भुगतान या भत्ता प्राप्त करता है, तो उस राशि को अधिनियम के अंतर्गत देय क्षतिपूर्ति की रकम से काट लिया जाएगा। अगर अर्द्धमासिक भुगतान की किसी अवधि के पूरा होने के First ही दुर्घटनाग्रस्त कामगार की अशक्तता समाप्त हो जाती है, तो क्षतिपूर्ति की राशि उसी अनुपात में कम कर दी जाएगी।
      जब किसी कर्मकार की दुर्घटना भारत के बाहर हुर्इ हो, तो कर्मकार क्षतिपूर्ति आयुक्त क्षतिपूर्ति की राशि निर्धारित करते समय उस देश के कानून के अंतर्गत उसे मिली हुर्इ क्षतिपूर्ति की राशि को ध्यान में रखेगा और इस अधिनियम के अधीन उसे मिलने वाली राशि में विदेश में मिली राशि को घटा देगा।

      क्षतिपूर्ति का भुगतान और वितरण 

      क्षतिपूर्ति के भुगतान का समय – 

      नियोजक के लिए क्षतिपूर्ति का भुगतान उस समय करना आवश्यक है, जिस समय वह देय हो जाती है। अगर नियोजक क्षतिपूर्ति की पूरी राशि का दायित्व स्वीकार नही करता, तो वह कामगार को उस रकम का भुगतान कर देगा, जिसका दायित्व वह स्वीकार करता है। इस रकम को कामगार को दे दिया जा सकता है या उसे कर्मकार क्षतिपूर्ति आयुक्त के पास जमा Reseller जा सकता है। अगर नियोजक क्षतिपूर्ति की राशि का भुगतान उसके बकाए होने के Single महीने के अन्दर नहीं करता, तो आयुक्त बकाए की राशि को 12 प्रतिशत के साधारण ब्याज के साथ देने का आदेश दे सकता है। अगर आयुक्त नियोजक द्वारा क्षतिपूर्ति की राशि देने में देरी को अनुचित समझता है, तो वह उस राशि का 50 प्रतिशत जुर्माने के Reseller में 170 जमा करने का आदेश दे सकता है। ब्याज या जुर्माने की राशि कर्मकार या उसके आश्रित को देय होती है।

      अर्द्धमासिक भुगतान का पुनर्विलोन और Resellerान्तरण-

      अधिनियम के अंतर्गत किसी भी अर्द्धमासिक भुगतानको,  चाहे वह किसी समझौते के According हो या आयुक्त के निदेशानुसार, नियोजक या कर्मकार के आवेदन पत्र आयुक्त द्वारा पुनर्विलोकित Reseller जा सकता है। पुनर्विलोकन के बाद अर्द्धमासिक भुगतान को चालू रखा जा सकता है या उसे बढ़ाया, घटाया या समाप्त Reseller जा सकता है। अगर कर्मकार की अस्थायी अशक्तता स्थायी अशक्तता में बदल गर्इ हो, तो अर्द्धमासिक भुगतान को Singleमुश्त राशि से बदल दिया जा सकता है, लेकिन इस Singleमुश्त राशि से अर्द्धमासिक भुगतान के Reseller में दी गर्इ राशि को काट लिया जाएगा। अर्द्धमासिक भुगतान की राशि को पक्षकारों के बीच समझौते या आयुक्त के आदेश से Singleमुश्त राशि में बदला जा सकता है। अर्द्धमासिक भुगतान को Singleमुश्त राशि में तभी बदला जा सकता है, जब उसका भुगतान कम-से-कम 6 महीने तक हो चुका हो। इस Resellerान्तरण के लिए दोनों पक्षकारों में किसी Single द्वारा आवेदन देना आवश्यक है। 

      क्षतिपूर्ति का वितरण- 

      दुर्घटना के फलस्वReseller कर्मकार की मृत्यु की स्थिति में तथा किसी स्त्री या विधिक निर्योग्यता वाले व्यक्ति को देय Singleमुश्त राशि को कर्मकार क्षतिपूर्ति आयुक्त के पास जमा करना आवश्यक है। इन स्थितियों में नियोजक द्वारा सीधे भुगतान की जाने वाली राशि को क्षतिपूर्ति नही समझा जाएगा। केवल कर्मकार की मृत्यु की स्थिति में नियोजक उसके किसी आश्रित को अधिकतम तीन महीने की मजदूरी (देय क्षतिपूर्ति की राशि से अधिक नही) अग्रिम दे सकता है, लेकिन अंतिम भुगतान करते समय इस राशि को आयुक्त के आदेश पर काट दिया जाएगा। अगर भुगतान पाने वाला व्यक्ति क्षतिपूर्ति का अधिकारी नही है, तो उसे अग्रिम की राशि लौटानी पड़ेगी। अगर मृत कामगार का कोर्इ आश्रित नही है, तो आयुक्त के आदेश से क्षतिपूर्ति के Reseller में जमा की गर्इ राशि नियोजक को लौटा दी जाएगी। अन्य स्थितियों में आयुक्त क्षतिपूर्ति की राशि को आश्रितों के बीच या केवल Single ही आश्रित को अपने विवके से वितरित कर सकता है। इस अधिनियम के अधीन देय किसी Singleमुश्त राशि या अर्द्धमासिक भुगतान को कर्मकार को छोड़कर अन्य व्यक्ति को सांपै ा या हस्तांतरित नही Reseller जा सकता और न ही उसकी कुर्की की जा सकती है।

      कर्मकार क्षतिपूर्ति आयुक्त –

      राज्य सरकार कर्मकार क्षतिपूर्ति आयुक्तों को Appointment कर सकती है। जहां Single से अधिक आयुक्तों की Appointment की गर्इ है, वहां उनके कार्यो का वितरण करना आवश्यक है। आयुक्त Indian Customer दंडसंहिता के Means में लोकसेवक होता है। उसे सिविल प्रक्रिया-संहिता के अंतर्गत गवाही लेने, गवाहों को हाजिर करने, दस्तावेजों और वस्तुओं को पेश करने के लिए विवश करने के संबंध में सिविल न्यायालय की शक्ति प्राप्त रहती है। उसे दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत सिविल न्यायालय की शक्तियां भी प्राप्त है। आयुक्त क्षतिपूर्ति से संबद्ध किसी कानून के प्रश्न को विनिश्चित करने के लिए उच्च न्यायालय में भेज सकता है। अगर आयुक्त के निर्णय के विरुद्ध कोर्इ अपील उच्च न्यायालय में की गर्इ हो, तो वह अपने पास जमा की गर्इ राशि को उच्च न्यायालय के निर्णय होने तक रोक रख सकता है। आयुक्त अधिनियम या उसके अधीन किए गए किसी समझौते के According देय क्षतिपूर्ति की राशि को भू-राजस्व के बकाए के Reseller से वसूल कर सकता है।

      संविदाएं और समझौते 

        1. संविदा करना- अगर कोर्इ दुर्घटनाग्रस्त कामगार क्षतिपूर्ति के लिए विधिक Reseller से दायी व्यक्ति की जगह किसी अन्य व्यक्ति से क्षतिपूर्ति प्राप्त करता है, तो क्षतिपूर्ति देने वाले व्यक्ति को उसके विधिक Reseller से दायी व्यक्ति से क्षतिपूर्ति की राशि वसूल करने का अधिकार होता है। 
        2. संविदा द्वारा त्याग – इस अधिनियम के प्रारंभ होने के First या बाद में Reseller गया कोर्इ भी करार या समझौता, जिसके According दुर्घटना के फलस्वReseller होने वाली व्यक्तिगत क्षति के लिए नियोजक से मिलने वाली क्षतिपूर्ति का अधिकार त्याग देता है या जिससे अधिनियम के अधीन क्षतिपूर्ति का दायित्व हटाया जाता है या कम Reseller जाता है, तो वह वालित या शून्य या प्रभावहीन होता है। 
        3. समझौतों का पंजीकरण – अगर क्षतिपूर्ति के Reseller में देय किसी Singleमुश्त रकम या अर्द्धमासिक भुगतान के बारे में कोर्इ समझौता हुआ हो, तो नियोजक उसके ज्ञापन को आयुक्त के पास पंजीकरण के लिए भेजेगा। अगर आयुक्त इस बात से संतुश्ठ है कि समझौता असली है, तो वह उसे विहित तरीके से पंजीकृत कर देगा। जहाँ आयुक्त समझता है कि किसी स्त्री या विधिक निर्योग्यता के अधीन किसी व्यक्ति को देय रकम अपर्याप्त है या समझौता कपट, दबाव या अन्य अनुचित तरीके से कराया गया है, तो वह उसे पंजीकृत करने से इन्कार कर देगा। पंजीकृत समझौता अधिनियम के अंतर्गत कानूनी Reseller से मान्य समझा जाता है। 

          जहाँ नियोजक किसी समझौते के ज्ञापन को आयुक्त के पास नही भेजता है, वहाँ नियोजक अधिनियम के अधीन निर्धारित क्षतिपूर्ति की पूरी रकम के भुगतान का दायी होता है।

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