कराधान के सिद्धांत –

कराधान के सिद्धांत

By Bandey

अनुक्रम

वर्तमान समय में सरकार के कार्यों में वृद्धि होने के साथ ही साथ सरकारी खर्च में भी निरन्तर वृद्धि हो रही है। आजकल प्रत्येक सरकार के सामने Single महत्त्वपूर्ण समस्या यह होती है कि वह अपने खर्चों की वित्तीय व्यवस्था के लिए पर्याप्त मात्रा में आय केसे प्राप्त करें। सरकार अस्थायी Reseller से तो उधार द्वारा भी आय प्राप्त कर सकती है, परन्तु कुछ समय बाद तो उन्हें भी वापिस ही करनी होती है। कुछ सरकारी आय सरकारी उद्यमों, प्रशासनिक And न्यायिक कार्यों तथा ऐसे ही अन्य स्रोतों से भी प्राप्त की जाती है, परन्तु सरकारी आय का Single बड़ा भाग कराधान (taxation) से ही प्राप्त होता है।

कराधान का विकास

प्राचीन समुदायों में लोग सरकार की सहायता के लिए अपनी ऐच्छिक सेवाएँ दिया करते थे। किन्तु राज्य के उदय के साथ-साथ ही सरकार के संचालन के लिए कर या उपहार तथा खानों व अन्य उद्यमों की आय प्राप्त की जाने लगी। प्राचीन राज्य सम्पत्ति कर, आय कर, वस्तु कर तथा उत्तराधिकार करों का संग्रह कभी-कभी ही करते थे और वह भी थोड़ी मात्रा में और केवल संकटकालीन आय के Reseller में। प्राचीन राज्यों को लघु व्यय के लिए कराधान की किसी विस्तृत पद्धति की Need नहीं होती थी।


यदि आधुनिक राज्यों की कर-पद्धतियों के उद्गम का लगाना है तो, जैसे कि प्लेन (Plehn) ने कहा है, वह प्राचीन राजकोषीय व्यवस्था की बजाय सामन्तवादी व्यवस्था (feudal system) में अधिक अच्छी तरह ढूंढ़ा जा सकता है। रोम के पतन के बाद काफी लम्बे समय तक King (rulers) अपने खर्चों की पूर्ति अपनी स्वयं की भूमि की आय से तथा अपनी प्रजा के अनिवार्य अंशदानों से Reseller करते थे उस समय सामन्तवादी बाजारों के शुल्क, Safty के शुल्क, सड़कों पुछों व घाटों के उपयोग का शुल्क, भूमि के किराये आदि की अदायगियाँ, जो कि वस्तुओं और सेवाओं के Reseller में की जाती थीं, धीरे-धीरे मौद्रिक अदायगियों (money payments) में बदल गर्इं और आगे चलकर जब मौद्रिक Meansव्यवस्था (money economy) नें जन्म लिया तो इन्हीं अदायगियों ने करों  का Reseller धारण कर लिया।

दस्तकारी के युग में जैसे-जैसे नई-नई वस्तुएँ बनने लगीं और नये-नये प्रकार के उद्योग स्थापित होने लगे, वैसे-वैसे ही व्यक्तिगत पदार्थों पर भूमि-कर, उत्पादन-कर, सीमा शुल्क, बाजार कर, पथ कर तथा अन्य कर लगाये जाने लगे। यह बात स्मरणीय है कि प्राचीन देय राशियों का करों के Reseller में परिवर्तन Singleदम नहीं, बल्कि व्रफमिक Reseller से शनै-शनै: हुआ।

सन् 1500 के बाद जब आधुनिक राज्य का उदय हुआ, तो शनै: शनै: कराधान (Taxation) ने अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया। सरकारी खर्च की वृद्धि के साथ ही आय के नये-नये स्रोत ढूँढ़ने आवश्यक हो गये और वे ढूँढे़ गये नई-नई सम्पत्तियों पर, नई-नई व्यावसायिक क्रियाओं पर तथा उपभोग की नई-नई वस्तुओं पर कर लगाकर 19वीं और 20वीं शताब्दी में आय कर तथा उत्तराधिकार कर का महत्त्व बढ़ा। First विश्वFight तो अपने साथ मानो भारी खर्चों की बाढ़ ही ले आया जिसकी पूर्ति के लिए भारी कष्टदायी कराधान की व्यवस्था की गई। Fight में फंसे राष्ट्रों ने अपने पुराने करों को चरम सीमा तक बढ़ा दिया और नये-नये सामान्य बिव्रफी कर तथा अनावर्ती पूँजी कर (capital levies) लागू कर दिये। Fightकाल के बाद का समय तो उँचे कराधान दृष्टि से और भी Historyनीय रहा। सन् 1929 के अन्त में आरम्भ होने वाली और लम्बी अवधि तक ¯खचने वाली मन्दी (depression) ने कुछ प्रचलित करों की उपयोगिता को समाप्त कर दिया और सामाजिक सहायता पर सरकारी व्यय में होने वाली वृद्धि ने नये-नये करों की माँग उत्पन्न कर दी। पर इसके बावजूद, मन्दी अवधि में कराधान सम्पूर्ण Meansव्यवस्था के लिए कोई अधिक लाभकारी सिद्ध नहीं हुआ। आजकल तो बदलती हुई आर्थिक, राजनैतिक और सामाजिक दशाओं के कारण पुनर्निर्माण की प्रक्रिया में राजकोषीय कार्यवाहियाँ ही सहायक होती हैं। अत: इस बात को समझना बहुत आवश्यक है कि Single अच्छी कर पद्धति के निर्धारक तत्व क्या हैं, जिससे कि वह पद्धति विभिन्न परिस्थितियों में Meansव्यवस्था की Needओं को पूरा कर सके।

अत: इस प्रश्न पर जब सम्पूर्ण Reseller में And व्यापक दृष्टिकोण से विचार Reseller जाता है तो प्रश्न उठता है कि अच्छी कर-पद्धति में कौन-कौन-सी विशेषताएँ होनी चाहिए। First तो, उसमें अच्छे करों का समावेश होना चाहिए क्योंकि करों से ही कर-पद्धति का निर्माण होता है। एडम स्मिथ सम्भवत: सबसे First Meansशास्त्री थे जिन्होंने कराधान के सिद्धांतो का अथवा कराधान के नियमों का प्रतिपादन Reseller। तत्बाद अन्य Meansशास्त्रियों जिनमें पिफण्डले शिराज, बेस्टेबिल प्रमुख हैं, ने करारोपण के अन्य सिद्धांतो का प्रतिपादन Reseller।

एडम स्मिथ के कराधान सिद्धांत

एडम स्मिथ द्वारा प्रस्तुत कराधान के सिद्धांत या नियम हैं-

समानता का सिद्धांत

समानता या समन्याय का सिद्धांत (Canon of equality or equity) एडम स्मिथ द्वारा प्रतिपादित सबसे पहला सिद्धांत है। इसके According, फ्प्रत्येक राज्य के नागरिकों को यथासम्भव अपनी-अपनी योग्यता के अनुपात में सरकार की सहायता के लिए अंशदान करना चाहिए, Meansात् उस आय के अनुपात में जिसका आनन्द वे राज्य के संरक्षण में प्राप्त करते हैं…। इस सिद्धांत का अनुकरण करने से कराधान की समानता प्राप्त की जा सकती है और इसकी उपेक्षा करने से कराधान की असमानता यह सिद्धांत यह स्पष्ट बताता है कि सरकार को अपने व्यय की पूर्ति के लिए प्रत्येक नागरिक से उसकी योग्यतानुसार कर वसूल करना चाहिए।

आलोचना (Criticism)-इसका Means यह है कि व्यक्ति राज्य की Safty में जो आय प्राप्त करता है, उस पर अनुपाती दरों से कर लगाया जाना चाहिए। यद्यपि Single स्थान पर स्मिथ ने यह भी कहा कि धनी लोगों को अपने धन के अनुपात में नहीं बल्कि उससे भी अधिक कर अदा करना चाहिए, जिसका Means है आरोही कराधान (progressive taxation)। किन्तु आधुनिक Meansशास्त्री एडम स्मिथ की इस बात से Agree नहीं हैं कि अनुपात कर (proportional taxes) समन्यायपूर्ण होते हैं। अत: समानता के सिद्धांत को लागू करने के लिए उन्होंने आरोही कराधान की वकालत की। इस प्रकार आधुनिक Meansशास्त्रियों का एडम स्मिथ के कराधान के साधनों Meansात् कराधान की दरों के बारे में ही मतभेद है, कराधान के लक्ष्यों के बारे में नहीं।

निश्चितता का सिद्धांत

एडम स्मिथ का दूसरा सिद्धांत निश्चितता का सिद्धांत है। इसके According, फ्प्रत्येक व्यक्ति को जो कर देता है, वह निश्चित होना चाहिए, मनमाना नहीं। कर के भुगतान का समय, भुगतान की विधि तथा भुगतान की राशि आदि करदाता तथा प्रत्येक अन्य व्यक्ति को स्पष्ट होनी चाहिए। कर के मामले में, किसी व्यक्ति को जो रकम अदा करती है उसकी निश्चितता (certainty) इतने महत्त्व की बात है कि समस्त देशों के अनुभव के आधार पर मेरा विचार है कि काफी मात्रा की असमानता भी इतनी भयानक नहीं है जितनी कि बहुत थोड़ी मात्रा की अनिश्चितता। हैडले ने इस सिद्धांत का समर्थन Reseller है। उसका कहना है कि इससे व्यक्ति तथा सरकार दोनों को लाभ है क्योंकि व्यक्ति को अनिश्चितता रहती है कि उसे कितना कर और किस समय देना है। इसके विपरीत सरकार को अपने बजट संतुलित करने में सहायता मिलती है।

आलोचना (Criticism)-यह कहा जाता है कि कर का भुगतान अनिवार्य होता है अत: वह Single प्रकार से निश्चित-सा ही होता है। इस स्थिति में इस सिद्धांत का कोई महत्त्व नहीं है। परन्तु यह बात सैद्धान्तिक Reseller से ही सत्य हो सकती है। जहाँ तक व्यवहार का प्रश्न है, इस सिद्धांत की उपयोगिता किसी प्रकार भी कम नहीं होती। उदाहरण के लिए, आयकर का भुगतान, भुगतान की दर तथा भुगतान का समय आदि All बातें करदाताओं व कर-अधिकारियों को अच्छी तरह मालूम होती हैं परन्तु पिफर भी उन के बीच विवाद उत्पन्न होते हैं और वे अदालतों में जाते हैं। ऐसे अनेक मामले देखने को मिलते हैं जिनमें कर-अधिकारियों द्वारा करदाताओं को परेशान Reseller जाता है। वास्तव में बात यह है कि कर का निर्धारण करने में अनेक व्यावहारिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है और निश्चितता के सिद्धांत का उद्देश्य इन्हीं कठिनाइयों को दूर करना है ताकि सरकार को प्राप्त होने वाली आय निश्चित हो जाए।

सुविधा का सिद्धांत

एडम स्मिथ का तीसरा सिद्धांत सुविधा का सिद्धांत है। इस सिद्धांत के According, फ्प्रत्येक कर ऐसे समय तथा ऐसी रीति से वसूल Reseller जाना चाहिए कि उसको अदा करना करदाता के लिए सबसे अधिक सुविधाजनक हो। इसका Means है कि कर ऐसे तरी के से लगाया जाना चाहिए और ऐसे समय लगाया जाना चाहिए जबकि करदाता उसका अत्यन्त सुविधा के साथ भुगतान कर सके। उदाहरण के लिए, भू-राजस्व या मालगुजारी ;संदक तमअमदनमद्ध को वसूल करने का सर्वोत्तम समय वह होता है जबकि फसल काटी जाती है। इसी प्रकार, मकानों के किराये पर लगाया जाने वाला कर उस समय वसूल Reseller जाना चाहिए जबकि करदाता को उसे देने में सबसे अधिक सुविधा हो। परोक्ष कर इतने सुविधाजनक होते हैं कि व्यक्ति कर के भुगतान की तुलना में वस्तुओं की कीमतों के Reseller में अधिक सुविधाजनक मानते हैं। उपयोगी वस्तुओं की तुलना में विलासिताओं की वस्तुओं पर लगाये गये कर अधिक सुविधाजनक होते हैं।

आलोचना (Criticism)-स्मिथ ने उन करों का भी कारणों सहित History Reseller जिनको कि बड़ी सुविधा के साथ Singleत्र Reseller जा सकता है। यह हैं विलासिता की वस्तुओं पर कर। फ्उपभोगी वस्तुओं ;बवदेनउंइसम हववकेद्ध जैसे कि विलासिता की व ऐश की वस्तुओं पर लगाये गये कर बहुत सुविधापूर्ण होते हैं क्योंकि उपभोक्ताओं को जिस Reseller में उन्हें देना पडता है वह बहुत सुविधाजनक होता है। इन करों का भुगतान उपभोक्ता के लिए सुिधाजनक होता है क्योंकि वह धीरे-धीरे जब-जब वस्तुएँ खरीदता है तो वैसे-वैसे ही वह थोड़ा-थोड़ा कर अदा करता रहता है और वह जब चाहता है तभी अदा करता है, क्योंकि उन वस्तुओं को सर्वाधिक सुविधाजनक समय पर खरीदना या बिल्कुल न खरीदना उसकी इच्छा पर निर्भर होता है।

मितव्ययिता का सिद्धांत

स्मिथ का चौथा और अन्तिम सिद्धांत है मितव्ययिता या किपफायत का सिद्धांत। इसके According, फ्प्रत्येक कर इस प्रकार लगाया तथा वसूल Reseller जाना चाहिए कि उसके द्वारा राज्य के कोष में जितना धन आये, लोगों की जेब से उसके अलावा फालतू धन कम से कम मात्रा में निकले। इस सिद्धांत का उद्देश्य है कि कर-वसूली की प्रशासनिक लागत कम से कम रखी जाये, Meansात् लोगों की जेब से बाहर आने वाले धन तथा राजकोष में जमा किये जाने वाले धन में कम से कम अन्तर हो। एडम स्मिथ ने यह भी कहा कि जनता द्वारा दिये जाने वाले कर का सहकारी कोष से आने वाली रकम में आधिक्य चार दशाओं में हो सकता है-

(i) First, कर लगाने तथा वसूल करने के लिए भारी संख्या में अधिकारियों की जरूरत पड़ सकती है जिनका वेतन ही इतना होगा कि कर के Reseller में प्राप्त धनराशि का काफी बड़ा भाग तो उसमें तो खर्च हो जायेगा और पिफर राज्य-कार्य के लिए करदाताओं को First से अधिक कर देना पड़ेगा। अत: यह आवश्यक है कि कर वसूल करने की प्रशासनिक लागत कम से कम होनी चाहिए।

(ii) Second, कर लोगों के उद्योग व व्यापार में बाधा डाल सकते हैं और लोगों को व्यवसाय की कुछ ऐसी शाखाएँ चालू करने के विषय में हतोत्साहित कर सकते हैं जो बहुसंख्यक लोगों के लिए जीविका तथा निर्वाह का साधन बन सकती थीं।

(iii) Third, कुछ दुर्भाग्यशाली व्यत्तिफ करों से बचने का असफल प्रयास करते हैं और पकड़े जाने पर जब उन पर जुर्माना होता है अथवा उनकी सम्पत्ति आदि जब्त की जाती है तो उससे उनका व्यापार भी चौपट हो जाता है और ऐसा होने से समुदाय को उस व्यवसाय से मिलने वाले लाभ भी समाप्त हो जाते हैं। इसके अतिरित्तफ, Single अविवेकी कर अधिकारी करों की चोरी व तस्करी के लिए स्वयं ही Single बड़ा आकर्षण बना रहता है। अत: कर इतने भारी नहीं होने चाहिए कि उससे करों को छिपाने का प्रलोभन मिले और करदाता पर अनावश्यक अतिरित्तफ बोझ पड़े।

(iv) Fourth, कर अधिकारियों के बार-बार के दौरों से तथा खातों आदि की अनावश्यक जाँच-पड़ताल से भी करदाताओं पर अनावश्यक परेशानी, घबराहट तथा दबाव पड़ सकता है। अत: कर-पद्धति बहुत सरल होनी चाहिए ताकि वह कर अधिकारियों द्वारा परेशानी तथा उत्तेजना पैदा करने का कारण न बने।

एडम स्मिथ के सिद्धांत की आलोचना

एडम स्मिथ के करारोपण के सिद्धांतो के अध्ययन के उपरान्त यह ज्ञात होता है कि समानता के सिद्धांत को छोड़कर अन्य All सिद्धांत कर-नीति का कोई निश्चित आधार निर्मित नहीं करते। इन्हें सिद्धांत न कहकर कर-अधिकारियों के प्रशासन सम्बन्धी निर्देश कह सकते हैं। समानता अथवा न्यायशीलता का सिद्धांत भी करदेय क्षमता की कोई निश्चित माप नहीं बतलाता। एडम स्मिथ के सिद्धांतो के उपर्युत्तफ दोष होने पर भी Meansशास्त्रियों ने इन सिद्धांतो को करारोपण के लिए पर्याप्त महत्त्वपूर्ण माना है। प्रोपेफसर शिराज के मतानुसार, एडम स्मिथ के बाद फ्कोई भी विद्वान करों के नियमों को इतने सरल तथा स्पष्ट Reseller में नहीं रख सका जैसा कि एडम स्मिथ ने। प्रो. बी. आर. मिश्रा के Wordों में-फ्योग्यता का नियम करारोपण का Single सिद्धांत है, अन्य तीन करों से सम्बन्धित प्रKingीय नियम हैं।

कराधान के अन्य सिद्धांत

बेस्टेबिल जैसे कई लेखकों ने एडम स्मिथ के अलावा कुछ अन्य सिद्धांतो का भी प्रतिपादन Reseller है। ये सिद्धांत हैं-

उत्पादकता का सिद्धांत

बेस्टेबिल (Bastable) ने अपने कराधान के सिद्धांतो को महत्त्व के व्रफम में रखा। इस व्रफम में उन्होंने सबसे पहला स्थान उत्पादकता अथवा उत्पादिता के सिद्धांत को दिया। अन्य Wordों में, First कराधान को उत्पादक होना चाहिए। स्पष्ट है कि बेस्टेबिल ने कर की उत्पादकता को सर्वोच्च महत्त्व प्रदान Reseller। कर की उत्पादकता दो प्रकार से प्राप्त की जा सकती है। First, कर ऐसी होना चाहिए जो सरकार के संचालन के लिए यथेष्ट मात्रा में धन दे सके। बेस्टेबिल के Wordों में, फ्राजस्व व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य राज्य के खर्चों के लिए आय प्राप्त करना होता है, अत: वित्त मन्त्री स्वभावत: ही कर द्वारा प्राप्त होने वाली रकम से ही उसके गुणों का अनुमान लगाता है। Second, कर ऐसा होना चाहिए जो अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन, दोनों ही दृष्टिकोणों से न तो उत्पादन को हतोत्साहित करे और न उसमें बाधा डालें।

लोच का सिद्धांत

कर-प्रणाली में लोच का होना भी अत्यन्त आवश्यक है। बेस्टेबिल ने लोच के सिद्धांत को काफी महत्त्वपूर्ण बतलाया। उन्होंने कहा कि कर ऐसे होने चाहिए कि सरकार की Needओं के According उनमें घटा-बढ़ी की जा सके। सरकार को अकाल या बाढ़ का सामना करने के लिए तथा Fight, विकास कार्यों And अन्य सम्भावित कारणों के लिए अधिक धन की Need हो सकती है। इस स्थिति में सरकार के साधनों में तेजी से वृद्धि केवल तभी की जा सकती है जबकि उसकी कर पद्धति लोचदार (elastic) हो। उदाहरण के लिए, सम्पत्ति तथा वस्तुओं पर लगाये जाने वाले कर उतने लोचदार नहीं होते, जितना कि आय-कर होता है।

विविधता का सिद्धांत

Single कर-पद्धति (single tax system) तथा बहु कर-पद्धति (multiple tax system) में तुलनात्मक लाभों के बारे में First से ही काफी विवाद बना रहा है। Single-कर लगाने के सम्बन्ध में विचारकों द्वारा समय-समय पर अनेक प्रस्ताव किये जाते रहे हैं। उदाहरण के लिए फिजियोव्रेफट्स (physiocrates) ने भूमि के आर्थिक लगान पर ही Single-कर लगाने का सुझाव दिया। इसी प्रकार, केवल आय पर ही Single-कर लगाने के सम्बन्ध में अनेक तर्वफ दिये जाते हैं। Single-कर में अनेक कमियाँ पाई जाती है-(i) हो सकता है कि चह पर्याप्त आय न प्रदान करे, (ii) हो सकता है कि इसके द्वारा कराधान के भार का वितरण सन्तोषजनक न हो, (iii) इसवफो वसूल करना कठिन तथा खर्चीला हो सकता है, (iv) इसमें कर से बचने का प्रलोभन भी काफी हो सकता है।

इसके विपरीत बहु-विध कराधान (multiple taxation) में इन सब दोषों के पाये जाने की बहुत कम सम्भावना है। जहाँ तक तर्कों का प्रश्न है, तराजू का पलड़ा Single-कर के विरुद्ध जाता है। इसी कारण कुछ लेखकों ने कराधान की अनेकता या विविधता पर भारी जोर दिया ।

करों की अनेकता का Means कि प्रत्यक्ष, तथा परोक्ष अनेक प्रकार के कर होने चाहिएँ ताकि नागरिकों का प्रत्येक वर्ग राज्य की आय में अपना योगदान कर सके। Single-कर पद्धति की तुलना में सामान्यत: बहु-कर पद्धति को प्रमुखता दी जाती है। परन्तु करों में अत्यधिक विविधता (multiplicity) का होना भी उचित नहीं माना जाता, क्योंकि अत्यधिक विविधता मितव्ययिता तथा उत्पादकता के सिद्धांतो के विरुद्ध पड़ती है। यदि करों की संख्या बहुत अधिक हुई तो उसका परिणाम यह होगा कि उनमें प्रत्येक कर थोड़ी-थोड़ी ही आय प्रदान करेगा जिससे उन के संग्रह की लागत बढ़ जायेगी।

डाल्टन का सुझाव था कि बहुत अधिक की बजाय थोड़े से ठोस करों पर ही निर्भर रहा जाये। यह अच्छा होगा कि सरकारी आय के अधिकाँश भाग के लिए थोड़े से करों पर ही निर्भर रहा जाये। डाल्टन का विचार था कि यदि बहुत अधिक मात्रा में कर लगाये गये तो प्रशासनिक व्यवस्था की कार्यकुशलता Destroy हो जायेगी। अत: प्रशासन की कार्यकुशलता बनाये रखने के लिए यह आवश्यक है कि कर सीमित मात्रा में लगाये जाएँ किन्तु प्रो. आर्थर यंग का कहना है कि, यदि मुझसे Single अच्छी कर-पद्धति की व्याख्या करने को कहा जाये तो मैं कहूँगा कि अच्छी कर-पद्धति वह है जो लोगों की अपरिमित संख्या पर बहुत हल्का दबाव डाले और भारी दबाव किसी पर भी नहीं। परन्तु यह ध्यान रहे कि ऐसे करों के अवरोही प्रभाव (regressive effects) न पड़ें।

इस प्रकार, उचित यह है कि कराधान के भार को सम्पूर्ण Meansव्यवस्था पर विस्तृत Reseller से पैफला दिया जाये, ताकि उसके किसी Single भाग को अधिक क्षति न पहँुचे। अत: निष्कर्ष Reseller में कहा जा सकता है कि Single अच्छी कर-पद्धति बहुविध कराधान (multiple taxation) के सिद्धांतो पर आधारित होनी चाहिए, किन्तु ऐसा करने में उत्पादक तथा मितव्ययिता के प्रयासों को किसी प्रकार की क्षति न पहुँचे।

सरलता का सिद्धांत

कर ऐसा होना चाहिए कि करदाता उसे सरलता से समझ सके। Second Wordों में, कर की प्रवृति उसका उद्देश्य, भुगतान का समय, कर-निर्धारण का तरीका तथा आधार आदि All ऐसे होने चाहिएँ कि प्रत्येक करदाता उनको आसानी से समझ सके तथा उनका पालन कर सके। स्पष्ट है कि यह सिद्धांत करदाता की अनेक कठिनाइयों को दूर करता है परन्तु आधुनिक कर-व्यवस्था में, जिनकी प्रकृति काफी जटिल हो गई है, इस सिद्धांत का पालन करना कठिन है। तथापि यह कहा जा सकता है कि प्रशासनिक कार्य-कुशलता (administrative efficiency) अच्छी कर-पद्धति का Single महत्त्वपूर्ण निर्धारक तत्व है और वह कुशलता आसानी से तभी लाई ला सकती है जबकि कर-पद्धति काफी सरल हो। जब कर-पद्धति होगी और उसे समझने में कोई कठिनाई नहीं होगी तो करदाता को हिसाब-किताब सम्बन्धी या प्रशासनिक अथवा अन्य किसी प्रकार की कठिनाई का भी सामना नहीं करना पडे़गा। फलस्वReseller, सरकार के लिए कर-आय की वसूली भी आसान हो जायेगी। अत: कराधान के इस सिद्धांत को अपनाने से ही कर-पद्धति की कुशलता बढ़ाई जा सकती है।

वांछनीयता का सिद्धांत

इसका अभिप्राय यह है कि सरकार को केवल वे ही कर लगाने चाहिए जो उचित व वांछनीय हों। इस दृष्टि से सरकार जब भी कोई नया कर लगाये या पुराने करों में वृद्धि करे तो यह देखा जाना चाहिए कि करदाताओं पर उसकी क्या प्रतिक्रिया होती है। कभी-कभी ऐसा प्रतीत होता है कि कोई कर वाँछनीय भी है और उसमें Single अच्छे कर की अधिकांश विशेषताएँ भी पाई जाती हैं परन्तु सरकार उस कर को लगाना समयानुकूल न माने। उदाहरण के लिए, भारत में Single आरोही वृफषि आयकर को अत्यन्त वाँछनीय माना जाता है परन्तु इसे आज तक उस Reseller में लागू नहीं Reseller गया जिस Reseller में लागू Reseller जाना चाहिए। अत: लोकतन्त्रीय देशों में, जहाँ कि जनता की इच्छाओं का आदर Reseller जाता है, इस सिद्धांत को बड़ा महत्त्व प्रदान Reseller जाता है।

समन्वय का सिद्धांत

लोकतन्त्रीय देशों में केन्द्र, राज्य तथा स्थानीय सरकारों द्वारा लगाये जाते हैं। अत: यह वाँछनीय है कि विभिन्न सरकारों द्वारा लगाये जाने वाले करों के बीच समन्वय बना रहे। करदाता और सरकार दोनों के ही हितों की दृष्टि से ऐसा होना अत्यन्त आवश्यक है, विशेष Reseller से लोकतन्त्रीय देशों में।

उपभोक्ता बचत का सिद्धांत

मार्शल के According सरकार को कर लगाते समय निम्नलिखित दो तथ्यों को ध्यान में रखना चाहिए-(i) कर उन्हीं वस्तुओं पर लगाया जाना चाहिए जिनसे उपभोत्तफाओं को बचत प्राप्त हो रही हो ताकि उन वस्तुओं पर कर लगाने के बाद भी उपभोत्तफाओं का आकर्षण बना रहे। (ii) सरकार को उन्हीं वस्तुओं पर कर लगाना चाहिए जिन पर कर के कारण से उपभोक्ता बचत के त्याग से अधिक सरकार को आय प्राप्त हो तभी अधिकतम कल्याण प्राप्त होगा।

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