कंप्यूटर का History, पीढ़ियां And प्रकार

विकास के लंबे अनुक्रम में मनुष्य ने जीवन के नये पहलुओं की खोज अपने अनुभवों के आधार पर की। इन्हीं खोजों में शामिल थी गणनाएं। यूं तो Human मस्तिष्क स्वयं में सूचनाओं को Windows Hosting रखने का अथाह भंडार है, किन्तु जब प्रश्न गणनाओं और गणनाओं में भी त्वरित गणनाओं का आता है तो मस्तिष्क कुछ पीछे रह जाता है। शायद यही वह कारण रहा होगा, जिसने प्राचीन काल से ही मनुष्य को ऐसे तरीके ईजाद करने के लिए प्रेरित Reseller हो, जो गणनाओं को चुटकियों में हल कर सकें। प्राचीन गणना पद्धतियों अबेकस से लेकर कैलकुलेटर और फिर कंप्यूटर तक की यात्रा भी इसी प्रेरणा का परिणाम है।

कम्प्यूटर क्या है?

कंप्यूटर Word की उत्पत्ति अंग्रेजी Word कंप्यूट (Compute) से हुई है, जिसका Means गणना करना है। यही वजह है कि हिन्दी में इस उपकरण को गणक या संगणक भी कहा जाता है। अपने विकास की शुरूआत में कंप्यूटर का इस्तेमाल मुख्यत: जटिल गणनाओं में ही Reseller जाता रहा, लेकिन कालान्तर में ज्यों-ज्यों Humanीय Needएं बढ़ती गईं, कंप्यूटर का स्वReseller भी बहुआयामी (Multitasking) होता चला गया। आज हम कंप्यूटर पर गाने सुन सकते हैं, वीडियो देख सकते हैं, इसके जरिये इंटरनेट पर दुनियाभर की खबरें Single चुटकी में हासिल कर सकते हैं, चिकित्सकीय सुविधाएं हासिल कर सकते हैं, शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं और हर वो काम कर सकते हैं जो हम चाहते हैं। यानी कंप्यूटर वह मशीन है, जो वर्तमान दौर में हमारे जीवन को सरल और अधिक सक्षम बनाती है।

कंप्यूटर का विकास

यद्यपि Human सभ्यता के विकास के साथ ही गणनाओं के भी प्रमाण मिलते रहे हैं। हजारों वषर् First अंगुलियों की मदद से गणनाओं की जानकारी मध्यपूर्व एशिया, यूरोप की कई सभ्यताओं में मिलती है, लेकिन उपकरणों की मदद से कंप्यूटर के विकास की या़त्रा को जानने-समझने के लिए हमें करीब तीन हजार साल पीछे लौटना होगा। Human जीवन में गणनाओं का विशेष महत्व रहा है, लेकिन यह First ही स्पष्ट हो चुका है कि Human मस्तिष्क जटिल गणनाओं का त्वरित हल निकाल पाने में सक्षम नहीं है। ऐसे में गणनाओं के लिए किसी उपकरण की Need महसूस की जाने लगी। ऐतिहासिक साक्ष्यों के According चीनी वैज्ञानिकों ने करीब तीन हजार साल पूर्व पहला ऐसा उपकरण बनाया, जो गणनाओं को Human के लिए सुगम और सरल बनाने में सफल रहा। यह उपकरण था अबेकस (Abacus), इसे हम निम्न चित्र के जरिये जान सकेंगे। अबेकस में लकड़ी या लोहे के फ्रेम में कुछ लोहे की छड़ें होती हैं, जिनमें लकड़ी की बनी गोलियां लगाई जाती थीं। इन गोलियों को इसे इस्तेमाल करने वाला व्यक्ति उपर-नीचे करके आसानी से गणनाएं कर सकता था। आज भी नन्हे स्कूली बच्चों को गणनाओं का प्रारंभिक पाठ पढ़ाने में अबेकस की मदद ली जाती है। हालांकि, इसकी मदद से सिर्फ छोटी गणनाएं ही कर पाना संभव है। फिर भी यही वह उपकरण था, जो मौजूदा कंप्यूटर के आविष्कार की बुनियाद बना। इस लिहाज से अबेकस को पहला कंप्यूटर का दर्जा दिया जाता है।

कंप्यूटर का विकास
प्राचीन अबेकस जिसकी मदद से गणनाएं की जाती थी

अबेकस के बाद गणनाओं के लिए Single नया उपकरण ईजाद हुआ सन 1617 में। स्कॉटलैंड के गणितज्ञ नेपियर ने Single गणितीय उपकरण बनाया, जो दिखने में अबेकस की तरह ही था। अंतर सिर्फ यह था कि इसमें गोलियों के बजाय छड़ें ही फ्रेम में लगी होती थीं। खासियत यह थी कि इन छड़ों पर अंक लिखे होते थे, जिनकी मदद से गणनाएं की जा सकती थीं। इसके कुछ ही समय बाद 1642 में Single और नये उपकरण का आविष्कार अपने दौर के महान फ्रांसीसी गणितज्ञ ब्लेज पास्कल ने Reseller। इस उपकरण का नाम पास्कल के नाम पर ही पास्कलाइन (Pascaline) रखा गया। यह अबेकस और नेपियर बोन से अधिक तेजी से गणना करने में सक्षम था। हालांकि, अब भी गुणा और भाग की गणनाएं करना संभव नहीं हो सका था। ऐसे में सन 1671 में जर्मन वैज्ञानिक गॉडफ्रिट लेन्ज ने पास्कलाइन को ही परिष्कृत (Modified) Reseller, जिसका परिणाम लेन्ज कैल्कुलेटर के Reseller में सामने आया। इसकी खासियत यह थी कि इसमें जोड़ और घटाने के अलावा गुणा-भाग जैसी जटिल गणनाएं भी आसानी से कर पाना संभव हुआ।

हालांकि, समय के साथ जिस तेजी से Human सभ्यताएं विकसित होती गईं और हर रोज नई खोजों के लिए जटिलतम गणनाएं सामने आती रहीं, अबेकस की तरह पास्कलाइन भी अनुपयोगी लगने लगा। ऐसे में सन सर चाल्र्स बैबेज एनालिटिकल इंजन (Analytical Engine) नाम का उपकरण सामने लाए। यह कहीं अधिक तेजी से और त्रुटिरहित गणनाएं करने में सक्षम था।

सबसे बड़ी बात यह थी कि इस मशीन में गणनाओं को Windows Hosting भी रखा जा सकता था। स्टोरेज के लिए इसमें पंचकार्ड का इस्तेमाल Reseller जाता था। यह 25 हजार छोटे पुर्जों से बना करीब 15 टन वजनी और आठ फीट उंचा उपकरण था। भारीभरकम स्वReseller की वजह से हर किसी के लिए इसका इस्तेमाल करना न तो सरल था, न ही संभव, लेकिन एनालिटिकल इंजन ही वह रास्ता बना, जो आगे चलकर कंप्यूटर पर खत्म हुआ। यही कारण है कि सर चाल्र्स बैबेज को ही कंप्यूटर के जनक के तौर पर जाना जाता है। कालान्तर में सर बैबेज के ही डिजाइन किए उपकरण में निरन्तर सुधार किए जाते रहे और आज का कंप्यूटर विकसित होता गया। अब भी कंप्यूटर की दुनिया में लगातार खोज और सुधार जारी हैं।

कंप्यूटर की पीढ़ियां

सर चाल्र्स बैबेज ने जो एनालिटिकल इंजन पेश Reseller था, वह गणनाओं में खासा सहायक साबित हुआ, लेकिन चूंकि समय के साथ परिवर्तन आवश्यक है, निरन्तर गणनाओं का दायरा और सूचनाओं को Windows Hosting रखने की जरूरत महसूस की जाने लगी। सर बैबेज के एनालिटिकल इंजन से आधुनिक कंप्यूटर के विकास का सफर शुरू हुआ। इस लिहाज से सामान्यत: कंप्यूटर के विकास को पीढ़ियों में भी बांटकर देखा जाता है। पहली पीढ़ी से लेकर आज के दौर के कंप्यूटर यानी पांचवीं पीढ़ी तक।

पहली पीढ़ी

सन 1946 में दुनिया का पहला इलेक्ट्रॉनिक कंप्यूटर अस्तित्व में आया। दो वैज्ञानिकों जेपी Singleर्ट और जेडब्ल्यू मॉशी इस कंप्यूटर के आविष्कर्ता थे। दोनों ने अपने इस कंप्यूटर को नाम दिया ENIAC (Electronic Numerical Integrated and Calculator) लेकिन यह कंप्यूटर बहुत अधिक भारी था। उस वक्त इस कंप्यूटर का वनज करीब 30 टन था। दोनों वैज्ञानिकों ने इस कंप्यूटर में आंकड़ों के संग्रहण के लिए वैक्यूम ट्यूबों का इस्तेमाल Reseller, लेकिन कमी यह थी कि वैक्यूम ट्यूब की कार्यक्षमता बहुत अधिक नहीं थी। इसके अलावा इस कंप्यूटर को ठंडा रखने के लिए काफी बड़े कूलिंग सिस्टम (Cooling System) की भी जरूरत पड़ती थी। पहली पीढ़ी के कंप्यूटर के कालखंड को 1946 से 1959 तक बांटकर देखा जा सकता है।

पहली पीढ़ी का कम्प्युटर अनियाक
पहली पीढ़ी का कम्प्युटर अनियाक

दूसरी पीढी

समय के साथ आते गए बदलावों के फलस्वReseller दसू री पीढ़ी के कंप्यूटर अस्तित्व में आए। इस पीढी़ के कंप्यूटरों का कालखंड 1959 से 1964 रहा। इस पीढ़ी के कंप्यूटरों की खासियत यह थी कि इसमें आंकड़ों के संग्रहण के लिए भारीभरकम वैक्यमू ट्यूबों के स्थान पर ट्रांजिस्टर (Transistors) का उपयोग Reseller गया। ट्रांजिस्टर वैक्यूम ट्यूब के मुकाबले आकार में भी काफी छोटे थे, लिहाजा कंप्यूटर का स्वReseller और वजन पूर्ववर्ती पीढ़ी के सापेक्ष काफी कम हो गया। दूसरी ओर, ट्रांजिस्टर की गणनात्मक कार्यक्षमता और आंकड़ों को Windows Hosting रखने की क्षमता भी एनिआक के मुकाबले काफी बेहतर थी।

तीसरी पीढ़ी

सन 1964 में तीसरी पीढ़ी के कंप्यूटरों की खोज हुई। इस पीढ़ी के कंप्यूटरों की विशेषता यह थी कि इसमें इंटीगे्रटेड सर्किट (Integrated Circuit: IC) का इस्तेमाल कंप्यूटर के प्रमुख इलक्ेट्रॉनिक घटक के Reseller में Reseller गया था। आईसी की खोज और कंप्यूटर में इसका इस्तेमाल आगे चलकर माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स (Micro Electronics) का जरिया बना। वैज्ञानिक टीएस बिल्की की खोज आईसी की सबसे बड़ी खासियत इसका बेहद छोटा आकार, लेकिन संग्रहण की अकूत क्षमता थी। इसके अलावा इसमें First के मुकाबले कई गुना अधिक और कहीं ज्यादा तेजी से गणनाएं करने की क्षमता भी थी। तीसरी पीढ़ी के कंप्यूटरों का कालखंड (Time Period) 1965 से 1971 रहा।

चौथी पीढ़ी

चौथी पीढ़ी के कंप्यूटर वह हैं, जिनका इस्तेमाल हम आज करते हैं। इस पीढ़ी के कंप्यूटरों की खासियत इनमें इस्तेमाल Reseller जाने वाला माइक्रो प्रोसेसर (Micro Processor) है। 1971 में अमेरिका के वैज्ञानिक टडे हॉफ (Tedd Hoff) को माइक्रो प्रोसेसर की ईजाद का श्रेय जाता है। टेड तब कंप्यूटर निर्माता कंपनी इनटेल में काम करते थे और उन्होंने अपने माइक्रोप्रोसेसर को इनटेल-4004 नाम दिया। माइक्रोप्रोसेसर दरअसल Single सिंगल चिप है, जिसमें आंकड़ों को Windows Hosting रखा जा सकता है। इसके इस्तेमाल से कंप्यूटरों का न सिर्फ आकार छोटा हुआ, बल्कि इनकी कार्यक्षमता भी बढी़ । इस पीढ़ी का कालखंड 1971 से 1980 रहा।

पांचवीं पीढ़ी

1980 से आज के दौर तक इस्तेमाल किए जाने वाले कंप्यूटरों को पांचवीं पीढ़ी में शामिल Reseller जाता रहा है। कुछ विद्वान आज के कंप्यूटरों को भी चौथी पीढ़ी का ही कंप्यूटर मानते हैं तो कुछ ने इन्हें पांचवीं पीढ़ी में रखा है। कंप्यूटरों को चौथी पीढ़ी का ही मानने की बड़ी वजह यह है कि मौजूदा कंप्यूटरों का मूलाधार माइक्रोप्रोसेसर ही है, लेकिन इन्हें पांचवीं पीढ़ी में रखने वाले यह मानते हैं कि माइक्रोप्रोसेसर की क्षमताओं और आकार में भी लगातार बदलाव आते रहे हैं।

इसके अलावा प्रोसेसर अब सिर्फ कंप्यूटर तक ही सीमित नहीं रह गया है, बल्कि मोबाइल स्मार्टफोन के जरिये ये मनुष्य के हाथों में समाहित हो जाने वाला उपकरण बन चुका है। कंप्यूटर की भावी पीढ़ी की बात करें तो वैज्ञानिक इस तरह के कंप्यूटर बनाने की दिशा में प्रयास कर रहे हैं जो कृत्रिम बुद्धि (Artificial Intelligence) से लेस हो। इस दिशा में निरन्तर शोध किए जा रहे हैं। रोबोट को कुछ हद तक इस श्रेणी में रखा जा सकता है, लेकिन वह भी उतने ही काम करता है, जितने का उसे निर्देश दिया जाता है।

वैज्ञानिकों की सोच यह है कि ऐसे कंप्यूटर बनाए जाएं जो Need के अनुReseller स्वत: निर्णय ले सके और आंकड़ों-सूचनाओं का इस्तेमाल कर खुद ही अपेक्षित परिणाम दे सके। हालांकि, यह बिन्दु इस लिहाज से विवाद का विषय भी बनता रहा है कि यदि कंप्यूटर स्वत: बुद्धि-विवेक से काम करने लगेगा तो मनुष्य उस पर नियंत्रण कैसे रख सकेगा। और यदि अनहोनीवश कृत्रिम बुद्धि-विवेकयुक्त कंप्यूटर नकारात्मक दिशा में चलने लगा तो यह विनाशकारी साबित हो सकता है।

कंप्यूटर के प्रकार

कंप्यूटर का मुख्य कार्य उन आंकड़ों को Windows Hosting रखना है, जो इसे इस्तेमाल करने वाला व्यक्ति (User) कंप्यूटर को उपलब्ध कराता है। कंप्यूटर उपयोगकर्ता के निर्देशों के आधार पर इन आंकड़ों का उपयोग कर परिणाम देता है। कार्यक्षमता के आधार पर कंप्यूटर को इन श्रेणियों में बांटा गया है: सुपर कंप्यूटर, मेनफ्रेम कंप्यूटर, मिनी कंप्यूटर और माइक्रो कंप्यूटर (Micro Computer)। इन All श्रेणियों पर नजर डालें तो सुपर कंप्यूटर सर्वोच्च श्रेणी का माना जाता है, जबकि माइक्रो कंप्यूटर सबसे छोटी। आइए अब हर श्रेणी को कुछ विस्तार से समझते हैं।

सुपर कंप्यूटर

सुपर कंप्यूटर, कंप्यूटरों की लंबी श्रृंखला में सबसे तेज गति से काम करने वाले कंप्यूटर हैं। कल्पनातीत डाटा को यह न्यनू तम समय में सूचनाओं में बदलने में सक्षम हैं। इनका इस्तेमाल सामान्यत: बेहद बड़ी गणनाओं में ही Reseller जाता है। कंप्यूटर का प्रयोग मौसम की भविष्यवाणी, मिसाइलों के डिजाइन जैसे जटिल कार्यों में Reseller जाता है। सुपर कंप्यूटरो मे कई माइक्रो प्रोसेसर (Micro Processors) लगे होते हैं। यह Single प्रकार की बेहद छोटी मशीन है जो कम्प्यूटिंग यानी गणना के कार्य को बेहद कम समय में कर पाने में सक्षम है। भारत में विकसित सुपर कंप्यूटर का नाम परम है। निम्नवत चित्र से समझा जा सकता है कि सुपर कंप्यूटर दरअसल, कई सारे प्रोसेसर का Single सामूहिक स्वReseller है। यहां यह सवाल उठना लाजिमी है कि प्रोसेसर किस तरह गणना में मदद करते हैं।

सुपर कंप्यूटर
सुपर कंप्यूटर

दरअसल, किसी जटिल गणना को कम समय में पूरा करने के लिये बहुत से प्रोसेसर Single साथ काम करते हैं। इस प्रक्रिया को समान्तर प्रोसेसिंग (Parallal Processing) कहा जाता है। इसके तहत कंप्यूटर को मिलने वाले डाटा अलग-अलग काम के लिए अलग-अलग प्रोसेसर को बांट दिए जाते हैं। हर प्रोसेसर अपने हिस्से की गणना करने के बाद कंप्यूटर को सूचना उपलब्ध कराता है और कंप्यूटर All प्रोसेसर से मिलने वाली सूचनाओं को Singleत्र कर लेने के बाद सटीक अंतिम परिणाम उपलब्ध करा देता है।

मेनफ्रेम कंप्यूटर

मेनफ्रेम कंप्यूटर कार्यक्षमता के लिहाज से सुपर कंप्यूटर से कुछ कमतर, लेकिन फिर भी काफी अधिक क्षमतावान होते हैं। इसकी कार्यक्षमता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मेनफ्रेम कंप्यूटरों पर Single ही समय में 250 से अधिक लोग Singleसाथ काम कर सकते हैं। इन कंप्यूटरों का इस्तेमाल बल्क डाटा (Bulk Data) की प्रोसेसिंग में Reseller जाता है। यानी ऐसी जगहों पर ये कंप्यूटर प्रयुक्त होते हैं, जहां Single ही समय में भारी मात्रा में और निरन्तर गणनाओं की जरूरत होती है। मुख्यत: इस तरह के कंप्यूटर बड़ी कंपनियों में उपभोक्ताओं की जानकारी Windows Hosting रखने मे जनगणना और इसी तरह के अन्य ऐसे कार्यों में इस्तेमाल किए जाते हैं, जहां भारी डाटा आता है।

मिनी कंप्यूटर

मिनी कंप्यूटर, मेनफ्रेम कंप्यूटरों से छोटे लेकिन माइक्रो कंप्यूटरों से बड़े होते हैं। माइक्रो कंप्यूटरों को पर्सनल कंप्यूटर (Personal Computers, PC) भी कहा जाता है। पर्सनल कंप्यूटर कंप्यूटरों की श्रृंखला में आकार के लिहाज से सबसे छोटे होते हैं। पर्सनल कंप्यूटर का विकास सबसे First 1981 में हुआ था। आगे हम इसे विस्तार से समझेंगे। माइक्रो या पर्सनल कंप्यूटर के अन्य प्रकारों को इस तरह समझ सकते हैं।

  1. डेस्कटॉप: वह कंप्यूटर जिसे मेज पर रखकर काम Reseller जा सके
  2. लैपटॉप: ऐसा कंप्यूटर, जिसे उपयोगकर्ता गोद में रखकर काम कर)
  3. पामटॉप: वह कंप्यूटर जो उपयोगकर्ता की हथेली में समा सके, इस श्रेणी में स्मार्टफोन (Smartphones), म्यूजिक प्लेयर, वीडियो प्लेयर, टैबलेट रखे जा सकते हैं

पर्सनल कंप्यूटर का विकास

कंप्यूटर की शुरूआत के साथ ही इनका आकार बेहद बड़ा था, जो कालान्तर में जरूरत के हिसाब से छोटा होता गया। समय के साथ कंप्यूटर में आते गए इन बदलावों ने कंप्यूटर को सिर्फ गणनाएं करने वाली मशीन के बजाय Single समय में Singleसाथ कई काम करने वाला उपकरण बना दिया। इससे यह मनुष्य के दैनिक जीवन के लिए लगातार उपयोगी बनता गया, लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह थी कि आम आदमी कैसे करोड़ों का सुपर कंप्यूटर इस्तेमाल करे। इस जवाब के तलाश में 1970 में माइक्रो प्रोसेसर का आविष्कार हुआ। यही माइक्रो प्रोसेसर आगे चलकर माइक्रो कंप्यूटरों की खोज का जरिया बने। कंप्यूटर निर्माता कंपनी आईबीएम ने वर्ष 1981 में पहला पर्सनल कंप्यूटर बनाने की घोषणा की, जिसे आईबीएम-पीसी नाम दिया गया। यह कंप्यूटर प्रारंिभक Reseller से मुख्यत: शौReseller बनाया गया था, लेकिन यह इस कदर लोकप्रिय हुआ कि बाद में All कंप्यूटर निर्माता कंपनियों का ध्यान पीसी की ओर गया।

खास बात यह है कि अब दुनियाभर में सैकड़ों कंपनियों के पर्सनल कंप्यूटर बाजार में हैं, लेकिन वे All आईबीएम-पीसी कंपेटीबल (IBM-PC Compatible) ही होते हैं। इसका Means यह है कि ये All पर्सनल कंप्यूटर आकार, संCreation, हार्डवेयर आदि में आईबीएम-पीसी के समान ही होते हैं। इस तरह आईबीएम-पीसी स्वत: कंप्यूटर निर्माता कंपनियों के लिए Single मानक (Standard) बन गया है। समय के साथ पर्सनल कंप्यूटरों की क्षमताओं में भी लगातार बदलाव होते आए हैं। 1981 में First पर्सनल कंप्यूटर के जन्म के बाद से अब तक पीसी की कई पीढ़ियां सामने आ चुकी हैं। इनमें पीसी-पेंटियम, पीसी-कोर 2, इंटेल आई सीरीज प्रमुख हैं। All कंप्यूटर सामान्यत: Singleसमान होते हैं, लेकिन हर श्रेणी और पीढ़ी में अंतर सिर्फ इसकी संग्रहण क्षमता (Storage Power) और प्रोसेसर (Processor) का होता है।

कंप्यूटर के गुण/उपयोग

कंप्यूटर आज के प्रतिस्पध्री और वैज्ञानिक युग में सिर्फ गणनाओं को चुटकी में हल कर देने भर का साधन नहीं रह गया है वरन यह आज मनोरंजन, शिक्षा, चिकित्सा, Safty का भी बड़ा माध्यम बन चुका है। कंप्यूटर के गुणों की बात करें तो यह किसी भी काम को बहुत तेज गति से करने वाला, उपयोगकर्ता की ओर से मिलने वाले निर्देशों का अपेक्षित पालन करने वाला, जितना निर्देश दिया जाए, उतना ही काम करने वाला, हर काम को त्रुटिरहित करने वाला, आंकड़ों के आंकड़ों के असीमित भंडार को कम से कम जगह में संग्रह करके रखने वाला और जरूरत पड़ने पर अभीष्ट आंकड़ों को तुरंत उपलब्ध कराने वाला उपकरण है। इस लिहाज से यह मौजूदा Human जीवनशैली में Human का सबसे बड़ा सहायक उपकरण बन जाता है। दसू री ओर, यदि कंप्यूटर के उपयोगों की बात की जाए तो इस लिहाज से भी यह अपने पूर्ववर्ती उपकरणों से कहीं आगे निकल चुका है। इसके दैनन्दिन के कार्यों में होने वाले उपयोग हैं:

ईमेल – इलेक्ट्रॉनिक मेल (Electronic Mail) का संक्षिप्त Reseller है। ईमेल का तात्पर्य उस मेल यानी पत्र से है, जिसे हम कंप्यूटर पर लिखकर इंटरनेट के माध्यम से किसी को भेजते हैं। सामान्य डाक प्रक्रिया से इतर यह पूरी प्रक्रिया चंद सेकंडों की होती है। इसके लिए उपयोगकर्ता को Single ईमेल पते की Need होती है जो उपयोगकर्ता (User) और मेल सुविधा देने वाली कंपनी के डोमेन नेम (Domain Name) का संयुक्त स्वReseller होता है। उदाहरण के लिए- xyz123@gmail.com

जानकारी संजोना And सहयोग – कंप्यूटर उपयोगकर्ता (User) के लिए सहयोगी की तरह काम करता है। वह उपयोगकर्ता की ओर से मिलने वाले निर्देशों का पालन करने के साथ ही जरूरत के अनुReseller जानकारी, सूचनाएं, आंकड़े उपलब्ध कराता है। इस तरह यह उपयोगकर्ता के लिए Single चुटकी में दुनियाभर की जानकारी देने का जरिया बन जाता है।

शिक्षा And संचार सुविधा – शिक्षा के क्षेत्र में कंप्यूटर आज के दौर में अति आवश्यक तत्व बन गया है। स्कूल से लेकर विश्वविद्यालयी शिक्षा तक शायद ही शिक्षा का कोई हिस्सा हो, जहां कंप्यूटर का इस्तेमाल नहीं होता हो। दूरस्थ शिक्षा के क्षेत्र में तो कंप्यूटर के सहयोग से क्रान्ति आई है। दुनिया के किसी भी कोने में बैठा शिक्षक आज इंटरनेट के जरिये छात्रों को पढ़ाने में सक्षम हो सका है। दूसरी ओर, संचार सुविधाएं भी कंप्यूटर की मदद से तेजी से विकसित हुई और बढ़ी हैं। वह चाहे ईमेल हो या स्मार्टफोन, सबका विकास कंप्यूटर सिस्टम के जरिये ही हो पाना संभव हो सका है। इससे कुछ पीछे जाएं तो टेलीफोन के दौर में एसटीडी और आईएसडी कॉल की शुरूआत का श्रेय भी कंप्यूटर क्रान्ति को ही जाता है।

शोध – कंप्यूटर शोधार्थियों के लिए अहम उपकरण है। वस्तुत: शोध कार्यों में Singleत्र होने वाले डाटा, आंकड़ों को संग्रहित कर सूचनाओं का संकलन करने में यह शोधाथ्री का सबसे बड़ा सहायक बन जाता है। दूसरी ओर, स्वास्थ्य सुविधाओं के क्षेत्र में भी कंप्यूटर मददगार साबित हुआ है। सीटी स्कैन हो या अल्ट्रासाउंड या एमआरआई चिकित्सा क्षेत्र में निरन्तर नये बदलावों के जरिये कंप्यूटर Human जीवन को स्वस्थ बनाने में सहायक बना है। और अब तो टेलीमेडिसिन चिकित्सा विधा की समग्र शाखा के तौर पर सामने आई है। इसके तहत डॉक्टर दुनिया के किसी भी कोने में रहकर मरीज का इलाज कर पाने में सक्षम हुए हैं।

Safty And अन्य सुविधाए – कंप्यूटर मनुष्य जीवन के अहम बिन्दु Safty के लिहाज से खासे मददगार साबित हुए हैं। आम जनजीवन में क्लोज सर्किट कैमरे (Close Circuit Cameras) हों या सैन्य जीवन में अत्याधुनिक उपकरण, रडार और स्वचालित हथियार, All कुछ कंप्यूटरीकृत तकनीक पर आधारित हैं। इसके अलावा सड़कों पर यातायात व्यवस्था को सुगम-सुचारू बनाए रखने वाली ट्रैफिक लाइटें हों या Single कॉल पर घायलों को अस्पताल पहुंचाने वाली 108 एंबुलेंस या फिर आपराधिक वारदातों की त्वरित सूचनाएं पुलिस तक पहुंचाने वाला 100 नंबर, All जगह कंप्यूटर ही मूल तकनीकी बुनियाद के तौर पर नजर आता है।

कंप्यूटर के बुनियादी अवयव

कंप्यूटर चाहे सुपर हो या माइक्रो यानी पर्सनल, हर कोई पांच प्रमुख भागों से मिलकर तैयार होता है, इन भागों को हम कंप्यूटर के बुनियादी अवयव भी कह सकते हैं। ये पांचों हैं: इनपुट (Input), आउटपुट (Output), प्रोसेसर (Processor), मेमोरी (Memory) और प्रोग्राम (Program), कंप्यूटर की संCreation में इन पांचों का विशेष महत्व है। निम्नवत ग्राफ की मदद से हम इनके कार्य को समझ सकते हैं:

प्रोसेसर (Processor)

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट हो रहा है कि प्रोसेसर कंप्यूटर का वह हिस्सा होगा, जहां प्रोसेसिंग (Processing) यानी पूरी प्रक्रिया चलती होगी। इस लिहाज से प्रोसेसर को कंप्यूटर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाग माना जा सकता है, या इसे यूं भी कहा जा सकता है कि प्रोसेसर ही दरअसल असल कंप्यूटर है, बाकि के All भाग तो प्रोसेसर की ओर से किए जा रहे कार्यों को सफलतापूर्वक पूर्ण करने में सहायक हैं। ग्राफ से भी यह आसानी से समझ में आता है कि कंप्यूटर के All भाग सीधे तौर पर प्रोसेसर से ही जुड़े हुए हैं। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि प्रोसेसर कंप्यूटर का दिमाग है, जिस तरह मनुष्य का दिमाग उसे सोचने-समझन,े तर्क करने या किसी समस्या का हल निकालने की क्षमता प्रदान करता है, ठीक उसी तरह प्रोसेसर भी कंप्यूटर को मिलने वाले निर्देशों का सही हल निकालने का काम करता है। इस लिहाज से यह साफ है कि प्रोसेसर कंप्यूटर का वह हिस्सा है जो उपयोगकर्ता (User) की ओर से दिए जाने वाले आदेशों को ठीक से समझकर उनका ठीक से पालन करने, गणितीय क्रियाएं करने, किसी विशेष लक्ष्य या कार्य की जांच आदि करने का काम करता है।

कंप्यूटर के प्रोसेसर वाले हिस्से को सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (Central Processing Unit) कहा जाता है, जिसे आमतौर पर संक्षिप्त Reseller में हम CPU भी कह लेते हैं। अब सीपीयू के भी तीन अहम हिस्से होते हैं, जिनके जुड़ने से प्रोसेसिंग यूनिट अपना सही आकार लेती है और ठीक से कार्य कर पाती है। ये तीन भाग हैं: मेमोरी (Memory), Meansमेटिक लॉजिक यूनिट (Arithmatic Logic Unit) यानी एएलयू और कंट्रोल (Control), प्रोसेसर के इन तीनों हिस्सों के जिम्मे अलग-अलग तरह के निर्देशों का ठीक से पालन करना और परिणामों को बिल्कुल सही प्राप्त करना है। सबसे First बात करते हैं Meansमेटिक लॉजिक यूनिट की। Meansमेटिक का हिन्दी Means ही अंक गणित है, यानी इस यूनिट के जिम्मे All तरह की गणनाएं और तुलनाएं हैं। अब लॉजिक पर आएं तो इसके तहत गणितीय प्रक्रियाओं से इतर मिलने वाले All तरह के निर्देश शामिल हैं। कंट्रोल यूनिट का काम कंप्यूटर के All भागों की निगरानी करना और उपयोगकर्ता की ओर से मिलने वाले निर्देशों को अभीष्ट यूनिट तक पहुंचाना होता है। तीसरी और सबसे अहम यूनिट है मेमोरी, चूंकि यह वृहद् विषय है, इसे हम आगे विस्तार से जानेंगे।

मेमोरी (Memory)

मेमोरी, यानी याददाश्त। हम First ही जान चुके हैं कि Human विकास के अनुक्रम में जिस तेजी से गणितीय गणनाएं लगातार बढ़ती गईं, उसी तेजी से यह जरूरत भी बढ़ती चली गई कि हम जो भी गणना कर रहे हैं, उनके परिणाम स्मृति में लबने समय तक संजोकर रखे। अबेकस से लेकर कंप्यूटर तक के विकास की सैकड़ों सालों की यात्रा का परिणाम है मेमोरी। कंप्यूटर पर उपयोगकर्ता जो भी जानकारी, सूचना, आंकड़ा, परिणाम बाद के इस्तेमाल के लिए Windows Hosting रखना चाहता है, वह मेमोरी में ही जाकर संग्रहीत (Stored) होता है।

Human मस्तिष्क में जिस तरह चेतन और अवचेतन मस्तिष्क की अवधारणा है और अब तो यह विभिन्न शोधों से पता भी चला है कि मस्तिष्क के अलग-अलग हिस्से अलग-अलग तरह की सूचनाओं को संग्रहीत कर स्मृति में बनाए रखते हैं, ठीक उसी तरह कंप्यूटर की मेमोरी भी काम करती है। कंप्यूटर की मेमोरी भी Human मस्तिष्क के अलग-अलग हिस्सों की तरह कई छोटे टुकड़ों (Blocks) में बंटी होती है। इन ब्लॉक को सामान्यत: बाइट (Byte) कहा जाता है। कंप्यूटर मेमोरी में हर ब्लॉक की अपनी Single खास लोकेशन (Location) होती है, जो मनुष्य की पहचान के लिए दिए जाने वाले नामों की तरह इन पर दर्ज नंबरों से तय मानी जाती है। इन नबंरों को बाइट या ब्लॉक का पता (Addresss) माना जा सकता है।

हर बाइट अपने से भी छोटी इकाई बिट (Bit) से बनती है। बिट को कंप्यूटर मेमोरी का सबसे छोटा हिस्सा माना जा सकता है और हर आठ बिट की श्रृंखला (Chain) मिलकर Single बाइट का निर्माण करती है। बिट किस तरह काम करती है, इसे हम ‘हां’ या ‘ना’ के उदाहरण से समझते हैं। हमें कुछ काम करना है तो हमारे उसे करने या नहीं करने की दो ही स्थितियां हो सकती हैं, हां या ना। या इसे किसी स्विच के ऑन या ऑफ होने से भी समझ सकते हैं। यानी किसी बाइट में मौजूद बिटों की श्रृंखला में कुछ बिट हां या ऑन हैं तो कुछ ना या ऑफ। इस आधार पर ऑन बिट को 0 और ऑफ को 1 माना जाता है। कंप्यूटर पर हम जो भी काम करते हैं या सूचनाएं संग्रहीत रखते हैं, वह सब 0 और 1 के Reseller में ही दर्ज होता है, इन्हें बाइनरी संख्या कहा जाता है, जिसे हम इसी यूनिट के अगले हिस्से में जानेंगे। किसी भी कंप्यूटर की संग्रहण क्षमता यानी उसकी मेमोरी को बाइट में ही मापा जाता है। जिस कंप्यूटर की बाइट जितनी अधिक होगी, वह आंकड़ों के संग्रहण, गणनाओं और सूचनाओं तथा परिणाम के निष्पादन में उतना ही सक्षम होगा। बाइट से लेकर गीगा बाइट और इससे भी कहीं आगे Single्साबाइट तक मेमोरी की क्षमता की यह श्रृंखला जाती है। इस लिहाज से जितनी अधिक बाइट वाला कंप्यूटर होगा, उसकी मेमोरी उतनी ही अधिक होगी।

  • 8 बिट = 1 बाइट
  • 1024 बाइट = 1 किलोबाइट
  • 1024 किलोबाइट = 1 मेगाबाइट
  • 1024 मेगाबाइट = 1 गीगाबाइट

इनटर्नल मेमोरी (Internal Memory)

कंप्यूटर की मेमोरी दो तरह की होती है, भीतरी और बाहरी। भीतरी यानी इनटर्नल मेमोरी को कंप्यूटर की मुख्य मेमोरी (Main Memory) माना जाता है। कंप्यूटर की इनटर्नल यानी मेन मेमोरी को भी दो भागों में बांटा जा सकता है। पहला है रैम (RAM) और दूसरा रॉम (ROM) ये दोनों मेमोरी सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट में ही मौजूद होती हैं, लेकिन दोनों के काम करने का तरीका अलग होता है जो कंप्यूटर को आंकड़ों को संग्रहीत करके रखने में मददगार बनता है।

  1. रैम (RAM): First बात करते हैं रैम की। रैम का पूरा नाम है रैंडम Single्सेस मेमोरी (Random Access Memory) यानी मेमोरी का वह हिस्सा या वह प्रकार, जिसे उपयोगकर्ता अपनी इच्छा के According इस्तेमाल कर सकता है। इस मेमोरी में कोई भी जानकारी, आंकड़ा या सूचना कम समय के लिए ही संग्रहीत हो सकती है। कोई नया या दूसरा डाटा आने की स्थिति में पिछला डाटा Windows Hosting नहीं रह पाता है।
  2. रॉम (ROM): रॉम यानी रीड ओनली मेमोरी (Read Only Memory), जैसा कि नाम से ही स्पष्ट हो रहा है कि इसमें संग्रहीत आंकड़ों को उपयोगकर्ता पढ़ यानी इस्तेमाल तो कर सकता है, लेकिन इसमें बदलाव नहीं Reseller जा सकता। रॉम कंप्यूटर निर्माता कंपनी की ओर से उपलब्धऐसा डाटा है, जिनकी उपयोगकर्ता को निरन्तर Need होती है। इसमें संग्रहीत डाटा कभी मिटता या खत्म नहीं होता है।
  3. कैश मेमोरी (Cache Memory): कैश भी रैंडम Single्सेस मेमोरी के समान है, लेकिन इन दोनों में मुख्य अंतर यह है कि रैम जहां कंप्यूटर सिस्टम में स्टोर रहती है, कैश मेमोरी गतिशील होती है और इसे सर्वर में स्टोर Reseller जाता है। दोनों का उपयोग और कार्यशैली समान ही होते हैं, लेकिन कंप्यूटर इस मेमोरी का उपयोग अधिकतर हाल में देखे गए वेब पेजों को याद रखने में करता है।

बाहरी मेमोरी (External Memory)

कंप्यूटर की भीतरी या मुख्य मेमोरी की अपनी कुछ सीमाएं होती हैं। हर कंप्यूटर को अलग मेमोरी क्षमता से डिजाइन Reseller जाता है। लेकिन अकसर यह होता है कि डाटा या आंकड़े इतने अधिक हो जाते हैं कि उन्हें कंप्यूटर में ही संग्रहीत रख पाना संभव नहीं हो पाता। या कई बार जरूरत यह होती है कि कंप्यूटर में दर्ज परिणामों का इस्तेमाल कहीं और करना होता है। ऐसे में बाहरी मेमोरी (External Memory) मददगार साबित होती है। शायद यही वजह है कि इस मेमोरी को सहायक मेमोरी (Auxilliary Memory) भी कहा जाता है। हम All लोग इस तरह की मेमोरी का अकसर दैनन्दिन जीवन में उपयोग करते हैं। फ्लॉपी, पेनड्राइव, सीडी, डीवीडी, हार्ड डिस्क आदि कंप्यूटर की सहायक मेमोरी ही हैं। इनमें सैकड़ों-हजारों गीगाबाइट तक आंकड़े, सूचनाएं, गणनाएं, परिणाम आदि संग्रहीत कर रखे जा सकते हैं।

इनपुट (Input)

यह तो हम स्पष्ट Reseller से जानते हैं कि कंप्यूटर कोई भी कार्य उपयोगकर्ता की ओर से दिए जाने वाले निर्देशों के पालन के अनुक्रम में करता है। ऐसे में इनपुट कंप्यूटर की वह इकाई है, जिसकी मदद से उपयोगकर्ता सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट यानी सीपीयू तक अभीष्ट निर्देश पहुंचा पाता है। उपयोगकर्ता की ओर से कंप्यूटर को निर्देश देने की इस प्रक्रिया को ही इनपुट कहा जाता है। कंप्यूटर को इनपुट देने के लिए उपयोगकर्ता कुछ उपकरणों (Devices) का इस्तेमाल करता है, जिन्हें इनपुट डिवाइस भी कहा जाता है। मसलन, हम जब कंप्यूटर पर टाइपिंग करते हैं तो हम उसके लिए की-बोर्ड (Key Board) पर टाइप करते हैं। इस तरह की-बोर्ड कंप्यूटर के लिए Single इनपुट डिवाइस है, क्योंकि यह उपयोगकर्ता की ओर से टाइप किए जाने वाले अक्षर-अंक की जानकारी कंप्यूटर के सीपीयू को पहुंचाता है। की-बोर्ड के अलावा माउस, जॉयस्टिक, लाइट पेन, माइक, स्कैनर आदि भी इनपुट डिवाइस हैं।

आउटपुट (Output)

उपयोगकर्ता जो भी इनपुट कंप्यूटर को देता है वह सीपीयू में जाकर प्रोसेस Reseller जाता है। जो परिणाम कंप्यूटर उपयोगकर्ता तक पहुंचाता है, उसे आउटपुट कहा जाता है। आउटपुट पाने में कुछ मशीनें या उपकरण कंप्यूटर के सहायक होते हैं। इन मशीनों या उपकरणों पर उपयोगकर्ता अपनी ओर से दिए गए निर्देशों के परिणाम कंप्यूटर के स्तर पर की जाने वाली डाटा प्रोसेसिंग के बाद हासिल कर पाता है। इनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण और सर्वाधिक इस्तेमाल की जाने वाली डिवाइस है मॉनीटर (Monitor) मॉनीटर पर ही हम हर परिणाम देख-सुन सकते हैं। इसके अलावा प्रिंटर, स्पीकर आदि भी आउटपुट डिवाइस हैं। इनपुट-आउटपुट डिवाइस और कंप्यूटर अन्य प्रमुख घटक यानी सिस्टम यूनिट को हम उपरोक्त चित्र की मदद से आसानी से समझ सकते हैं।

प्रोग्राम (Program)

दैनिक जीवन में हम जो भी काम करते हैं, उनके लिए निश्चित और पूर्वनियत प्रक्रियाओं के Single समूह से गुजरते हैं। मसलन हमें नहाना है तो यह निश्चित है कि हम सबसे First बाथरूम तक पहुंचेंगे, नल खोलेंगे, बाल्टी लगाकर पानी भरेंगे और फिर नहाना शुरू करेंगे। ठीक इसी तरह कंप्यूटर भी उपयोगकर्ता के लिए जो भी काम करता है, वह दरअसल आदेशों का Single ऐसे समूह के जरिये तय हो पाता है, जो First से कंप्यूटर के सीपीयू में दर्ज हैं।

कंप्यूटर पर हर कार्य के लिए अलग आदेश समूह व्यवस्थित रहता है। उदाहरण के लिए हम जब भी कंप्यूटर पर कुछ काम करते हैं तो देखने में तो वह माउस के Single क्लिक पर चुटकी में हो जाता है, लेकिन दरअसल, प्रोसेसर तक माउस की वह Single क्लिक अभीश्ट काम से जुड़े आदेशों का समूह पहुंचाती है। ये आदेश चरणबद्ध तरीके से कंप्यूटर की भीतरी मेमोरी में दर्ज रहते हैं और प्रोसेसिंग यूनिट उस पर बेहद तेजी से काम (Execution) करती है, जिससे सेकंड से भी कम समय के भीतर जरूरी परिणाम हमारे सामने आउटपुट डिवाइस यानी मॉनीटर या प्रिंटर पर उपलब्ध हो जाता है। किसी अभीष्ट कार्य को सफलतापूर्वक निष्पादित करने के लिए जरूरी आदेशों के समूह को कंप्यूटर के लिए प्रोग्राम कहा जाता है।

कंप्यूटर की कार्य प्रक्रिया

कंप्यूटर के All भागों के बारे में जानकारी मिल जाने के बाद यह जानना जरूरी लगता है कि कंप्यूटर इन सबकी मदद से काम करता कैसे है। इससे First हम यह जान लेते हैं कि कंप्यूटर की कार्यपद्धति में किन तत्वों की सबसे अधिक Need होती है। ये तत्व हैं: डाटा (Data), सूचना (Information), हार्डवेयर (Hardware) और सॉफ्टवेयर (Softwares)

हम जानते हैं कि कंप्यूटर पर उपयोगकर्ता की ओर से कुछ निर्देश दिए जाते हैं, ये निर्देश सूचनात्मक होते हैं, यानी हम कंप्यूटर के सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट Meansात् सीपीयू को कुछ डाटा उपलब्ध कराते हैं, जिसके आधार पर वह हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर की मदद से परिणाम हासिल करता है। सामान्यत: दैनिक जीवन में भी हम कई तरह के डाटा का इस्तेमाल कर किसी परिणाम पर पहुंचते हैं, इस प्रक्रिया को डाटा प्रोसेसिंग (Data Processing) कहते हैं। कंप्यूटर पर यही कार्य इलेक्ट्रॉनिक डाटा प्रोसेसिंग (Electronic Data Processing) बन जाता है, क्योंकि कंप्यूटर Single इलेक्ट्रॉनिक मशीन है।

कंप्यूटर लैंग्वेज 

हम यह भली-भांति जानते हैं कि कंप्यूटर Human जीवन के लिए बहुधा उपयोगी मशीन है जो गणनाओं के जरिये Human जीवन को सरल-सुगम बना रही है। लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि कंप्यूटर स्वयं कोई परिणाम मनुष्य को नहीं देता, बल्कि यह उपयोगकर्ता के निर्देशों के पालन के अनुक्रम में ही काम करता है। कंप्यूटर पर किस निर्देश के आधार पर डाटा प्रोसेसिंग का क्या परिणाम निकलेगा, यह तय करते हैं प्रोग्राम और ये प्रोग्राम आदेशों का Single समूह होते हैं, यह हम First ही जान चुके हैं।

इस लिहाज से कंप्यूटर के लिए हर काम के लिए आदेशों का Single ऐसा समूह यानी प्रोग्राम तैयार Reseller जाता है, जिसे कप्ंयूटर समझ सके।कंप्यूटर के लिए प्रोग्राम जिन भाषाओं में लिखे जाते हैं, उन्हें कंप्यूटर प्रोग्रामिंग लैंग्वेज कहा जाता है। कंप्यूटर बस इतना करता है कि जो भी प्रोग्राम उसके सीपीयू में इंस्टॉल हो जाए, उसके आदेशों के क्रम को वह मेमोरी में सेव कर लेता है। इसके बाद जब भी कभी उपयोगकर्ता को Need होती है, कंप्यूटर का प्रोसेसर मेमोरी से अभीश्ट आदेशों के प्रोग्राम का चयन कर लेता है और इसके आधार पर परिणाम उपयोगकर्ता को उपलब्ध करा देता है। कंप्यूटर के लिए प्रोग्राम बनाने वाली भाषाओं में मुख्यत: अंग्रेजी के कुछ Word और चिह्न प्रयुक्त किए जाते हैं।

हर प्रोग्रामिंग भाषा का अपना Single अलग व्याकरण (Grammar orsyntax) होता है। ऐसे में यह जरूरी होता है कि जिस भाषा में प्रोग्राम तैयार Reseller जा रहा हो, उसके व्याकरण का पूरा पालन Reseller जाए, ऐसा नहीं करने पर कंप्यूटर प्रोग्राम को ठीक से समझ नहीं सकेगा और आदेशों का ठीक पालन नहीं कर पाने से वह परिणाम नहीं दे सकेगा। कंप्यूटरों के लिए प्रयुक्त होने वाली प्रमुख भाषाएं हैं:

  1. बेसिक (BASIC)
  2. सी (C)
  3. सी++ (C++)
  4. जावा (JAVA)
  5. डॉटनेट (DOTNET)

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