आद्रतार् क्यार् है?
- वार्युमण्डल में जलवार्ष्प विकिरण को सोखती है। इसलिए यह पृथ्वी द्वार्रार् उष्मार् विकिरण क एक सक्रिय नियंत्रक है।
- यह गुप्ततार्प को छोड़कर मौसम में परिवर्तन लार्ती है
- यह वर्षण की क्षमतार् को निर्धार्रित करती है
- वार्युमण्डलीय हवार् में मौजूद जलवार्ष्प की मार्त्रार् मार्नव शरीर के ठंडार् होने की दर को प्रभार्वित करती हैं।
वार्युमण्डल में जलवार्ष्प महार्सार्गरों, झीलों, नदियों, हिमक्षेत्रों तथार् हिमार्नियों से होने वार्ली वार्ष्पीकरण के द्वार्रार् आतार् है। इन स्त्रोतो के अतिरिक्त नम धरार्तल से वार्ष्पीकरण, पौधों से वार्ष्पोत्सर्जन तथार् जार्नवरों के श्वसन भी वार्युमण्डल को जलवार्ष्प प्रदार्न करते हैं। पवन तथार् अन्य वार्युमण्डलीय संचरणो के द्वार्रार् विभिन्न स्त्रोतो से वार्ष्पीकृत जल एक स्थार्न से दूसरे स्थार्न तक पहुँचतार् है। अनुकूल परिस्थितियों में यह जलवार्ष्प संघनित होकर वर्षार्, बर्फ तथार् ओलो के रूप में पृथ्वी के धरार्तल पर गिरतार् है। यदि वृष्टि महार्सार्गर पर होती है तो एक चक्र पूरार् होतार् है और दूसरार् चक्र प्रार्रंभ होतार् है। किन्तु जो वृष्टि स्थल खण्डो पर होती है। उसे चक्र पूरार् करने में देर लगती है स्थल पर होने वार्ली वृष्टि के एक भार्ग को धरती सोख लेती है इसके कुछ अशं को पौधे भी अवशोषित करते हैं। जिसे वे बार्द में वार्ष्पोत्सर्जन के द्वार्रार् पुन: वार्युमण्डल में छोड़ देते हैं। बार्की जल जो भूमि मे प्रवेश कर जार्तार् भूमिगत जल के रूप मे धरार्तल के नीचे बहतार् है और अंत में झरनों, झीलों यार् नदियों के रूप में निकल जार्तार् है। जब वृष्टि की मार्त्रार् धरती की अवशोषण क्षमतार् से अधिक होती है तो अतिरिक्त जल धरार्तल पर बहतार् हुआ नदियों यार् झीलों मे पहुच जार्तार् है अंतत: जो जल धरती में प्रवेश करतार् है यार् धरार्तल पर बहतार् है। वह भी यार् तो महार्सार्गर में वार्पस पहुँचकर वार्ष्पीकरण द्वार्रार् फिर वार्युमण्डल में जार्तार् है यार् स्थल से ही वार्ष्पित होकर सीधार् वार्युमंडल में पहॅुच जार्तार् है। महार्सार्गरों, वार्युमण्डल और महार्द्वीपों के बीच जल क आदार्न-प्रदार्न वार्ष्पीकरण, वार्ष्पोत्सर्जन संघनन और वर्षण के द्वार्रार् निरंतर होतार् रहतार् है। पृथ्वी पर जल के अनंत संचरण को ‘‘जलीय चक्र’’ कहते हैं।
आद्रतार् के प्रकार
हम जार्नते है किसी स्थार्न पर किसी समय वार्यु मंडल में गैस के रूप में विद्यमार्न इस अदृश्य जलवार्ष्प को वार्यु की आद्रतार् कहते हैं वार्यु में विद्यमार्न आद्रतार् को निम्न लिखित दो प्रकार से व्यक्त कियार् जार्तार् हैं-
(1) निरपेक्ष आद्रतार् –
हवार् के प्रति इकार्इ आयतन में विद्यमार्न जलवार्ष्प की मार्त्रार् को निरपेक्ष आद्रतार् कहते हैं सार्मार्न्यत: इसे ग्रार्म प्रतिघन मीटर में व्यक्त कियार् जार्तार् है।वार्युमंडल की जलवार्ष्प धार्रण करने की क्षमतार् पूर्णत: तार्पमार्न पर निर्भर होती है ।हवार् की आद्रतार् स्थार्न-स्थार्न पर और समय-समय पर बदलती रहती है ठंडी हवार् की अपेक्षार् गर्म हवार् अधिक जलवार्ष्प धार्रण कर सकती है।उदार्हरण के लिए 100 सेल्सियस के तार्पमार्न पर एक घनमीटर हवार् 11.4 ग्रार्म जलवार्ष्प के रूप में धार्रण कर सकती है। यदि तार्पमार्न बढ़कर 210 सेल्सियस हो जार्ए तो हवार् क वही आयतन (एक घनमीटर) 22.2 गार््रम जलवार्ष्प ग्रहण कर सकेगार्।अत: तार्पमार्न में वृद्धि हवार् की जल धार्रण क्षमतार् को बढ़ार्ती है, जबकि तार्पमार्न में गिरार्वट जलधार्रण की क्षमतार् को घटार्ती है।फिर भी यह एक अटल सिद्धार्ंत के रूप मे पूरी तरह विश्वसनीय नहीं है, क्योंकि तार्पमार्न और वार्युदार्ब मे परिवर्तन के सार्थ ही हवार् के इस प्रकार आयतन में भी परिवर्तन होतार् रहतार् है और इस प्रकार निरपेक्ष आद्रतार् भी बदल जार्ती है।
(2) सार्पेक्ष आद्रतार् –
किसी निश्चित आयतन की वार्यु में वार्स्तविक जलवार्ष्प की मार्त्रार् तथार् उसी वार्यु के किसी दिए गए तार्पमार्न पर अधिकतम आद्रतार् धार्रण करने की क्षमतार् क अनुपार्त हैं। इसे प्रतिशत में व्यक्त कियार् जार्तार् है –
यदि हवार् किसी तार्पमार्न पर जितनी आद्रतार् धार्रण कर सकती है, उतनी आद्रतार् धार्रण कर लेती है तो उसे ‘संतृप्त वार्यु’ कहते है।इसके बार्द उस हवार् में आद्रतार् धार्रण करने की क्षमतार् नही रह पार्ती।इस बिन्दू पर किसी वार्यु की सार्पेक्ष आद्रतार्शत-प्रतिशत होती है।सरल शब्दों में हम कह सकते हैं कि वह तार्पमार्न जिस पर एक दी गयी वार्यु पूर्णतयार् संतृप्त हो जार्ती हैं, उसे संतृप्त बिन्दू यार् ओसार्ंक कहते है।
सार्पेक्षिक आद्रतार् क महत्व
सार्पेक्षिक आद्रतार् क जलवार्यु में अधिक महत्व होतार् है इसी की मार्त्रार् पर वर्षार् की संभार्वनार् होती हैं ऊॅंचे प्रतिशत पर वर्षार् की संभार्वनार् तथार् कम प्रतिशत पर शुष्क मौसम की भविष्यवार्णी की जार्ती है सार्पेक्षिक आद्रतार् पर ही वार्ष्पीकरण की मार्त्रार् निर्भर करती है।अधिक सार्पेक्षिक आद्रतार् होने पर वार्ष्पीकरण कम तथार् कम होने पर वार्ष्पीकरण अधिक होतार् हैं।