आद्रता क्या है?

वायुमण्डल में उपस्थित जलवाष्प को आद्रता कहते है। वायुमण्डल के संगठन में जलवाष्प का योग 2 प्रतिशत होता है। परन्तु यह मात्रा स्थान, स्थान पर बदलती रहती है जो शून्य से लेकर 5 प्रतिशत तक हो सकती है। समस्त जलवाष्प का 50 प्रतिशत भाग वायुमण्डल के निचले 2000 मीटर (6500 फीट) तक वाले भाग में विद्यमान रहता है वायु में जल पदार्थ के तीनों Resellerो-ठोस (हिमकण) द्रव (जलबिन्दू) तथा गैस (जलवाष्प) में विद्यमान रह सकता है।जल, सामान्यतया वायु में स्वादरहित, गंध रहित And पारदश्री गैस के Reseller में विद्यमान रहता है। इस गैस को ही ‘‘जलवाष्प’’ कहते है। वायुमण्डल में जलवाष्प के विद्यमान रहने के कारण ही Earth पर जीवन संभव हुआ है। वायुमंड में जलवाष्प की मात्रा, स्थान और समय के According बड़ी ही परिवर्तनशील होती हैं जीवन के लिए जलवाष्प अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं जलवाष्प इन कारणों से महत्वपूर्ण है –

  1. वायुमण्डल में जलवाष्प विकिरण को सोखती है। इसलिए यह Earth द्वारा उष्मा विकिरण का Single सक्रिय नियंत्रक है।
  2. यह गुप्तताप को छोड़कर मौसम में परिवर्तन लाती है
  3. यह वर्षण की क्षमता को निर्धारित करती है
  4. वायुमण्डलीय हवा में मौजूद जलवाष्प की मात्रा Human शरीर के ठंडा होने की दर को प्रभावित करती हैं।

    वायुमण्डल में जलवाष्प महासागरों, झीलों, नदियों, हिमक्षेत्रों तथा हिमानियों से होने वाली वाष्पीकरण के द्वारा आता है। इन स्त्रोतो के अतिरिक्त नम धरातल से वाष्पीकरण, पौधों से वाष्पोत्सर्जन तथा जानवरों के श्वसन भी वायुमण्डल को जलवाष्प प्रदान करते हैं। पवन तथा अन्य वायुमण्डलीय संचरणो के द्वारा विभिन्न स्त्रोतो से वाष्पीकृत जल Single स्थान से Second स्थान तक पहुँचता है। अनुकूल परिस्थितियों में यह जलवाष्प संघनित होकर वर्षा, बर्फ तथा ओलो के Reseller में Earth के धरातल पर गिरता है। यदि वृष्टि महासागर पर होती है तो Single चक्र पूरा होता है और दूसरा चक्र प्रारंभ होता है। किन्तु जो वृष्टि स्थल खण्डो पर होती है। उसे चक्र पूरा करने में देर लगती है स्थल पर होने वाली वृष्टि के Single भाग को धरती सोख लेती है इसके कुछ अशं को पौधे भी अवशोषित करते हैं। जिसे वे बाद में वाष्पोत्सर्जन के द्वारा पुन: वायुमण्डल में छोड़ देते हैं। बाकी जल जो भूमि मे प्रवेश कर जाता भूमिगत जल के Reseller मे धरातल के नीचे बहता है और अंत में झरनों, झीलों या नदियों के Reseller में निकल जाता है। जब वृष्टि की मात्रा धरती की अवशोषण क्षमता से अधिक होती है तो अतिरिक्त जल धरातल पर बहता हुआ नदियों या झीलों मे पहुच जाता है अंतत: जो जल धरती में प्रवेश करता है या धरातल पर बहता है। वह भी या तो महासागर में वापस पहुँचकर वाष्पीकरण द्वारा फिर वायुमण्डल में जाता है या स्थल से ही वाष्पित होकर सीधा वायुमंडल में पहॅुच जाता है। महासागरों, वायुमण्डल और महाद्वीपों के बीच जल का आदान-प्रदान वाष्पीकरण, वाष्पोत्सर्जन संघनन और वर्षण के द्वारा निरंतर होता रहता है। Earth पर जल के अनंत संचरण को ‘‘जलीय चक्र’’ कहते हैं।

    आद्रता के प्रकार

    हम जानते है किसी स्थान पर किसी समय वायु मंडल में गैस के Reseller में विद्यमान इस अदृश्य जलवाष्प को वायु की आद्रता कहते हैं वायु में विद्यमान आद्रता को निम्न लिखित दो प्रकार से व्यक्त Reseller जाता हैं-

    (1) निरपेक्ष आद्रता –

    हवा के प्रति इकार्इ आयतन में विद्यमान जलवाष्प की मात्रा को निरपेक्ष आद्रता कहते हैं सामान्यत: इसे ग्राम प्रतिघन मीटर में व्यक्त Reseller जाता है।वायुमंडल की जलवाष्प धारण करने की क्षमता पूर्णत: तापमान पर निर्भर होती है ।हवा की आद्रता स्थान-स्थान पर और समय-समय पर बदलती रहती है ठंडी हवा की अपेक्षा गर्म हवा अधिक जलवाष्प धारण कर सकती है।उदाहरण के लिए 100 सेल्सियस के तापमान पर Single घनमीटर हवा 11.4 ग्राम जलवाष्प के Reseller में धारण कर सकती है। यदि तापमान बढ़कर 210 सेल्सियस हो जाए तो हवा का वही आयतन (Single घनमीटर) 22.2 गा्रम जलवाष्प ग्रहण कर सकेगा।अत: तापमान में वृद्धि हवा की जल धारण क्षमता को बढ़ाती है, जबकि तापमान में गिरावट जलधारण की क्षमता को घटाती है।फिर भी यह Single अटल सिद्धांत के Reseller मे पूरी तरह विश्वसनीय नहीं है, क्योंकि तापमान और वायुदाब मे परिवर्तन के साथ ही हवा के इस प्रकार आयतन में भी परिवर्तन होता रहता है और इस प्रकार निरपेक्ष आद्रता भी बदल जाती है।

    (2) सापेक्ष आद्रता –

    किसी निश्चित आयतन की वायु में वास्तविक जलवाष्प की मात्रा तथा उसी वायु के किसी दिए गए तापमान पर अधिकतम आद्रता धारण करने की क्षमता का अनुपात हैं। इसे प्रतिशत में व्यक्त Reseller जाता है –

           वायु में वाष्प दबाव सापेक्ष 
    आद्रता = —————————-X 100 
    संतप्त वाष्प दबाव

    यदि हवा किसी तापमान पर जितनी आद्रता धारण कर सकती है, उतनी आद्रता धारण कर लेती है तो उसे ‘संतृप्त वायु’ कहते है।इसके बाद उस हवा में आद्रता धारण करने की क्षमता नही रह पाती।इस बिन्दू पर किसी वायु की सापेक्ष आद्रताशत-प्रतिशत होती है।सरल Wordों में हम कह सकते हैं कि वह तापमान जिस पर Single दी गयी वायु पूर्णतया संतृप्त हो जाती हैं, उसे संतृप्त बिन्दू या ओसांक कहते है।

    सापेक्ष आद्रता

    सापेक्षिक आद्रता का महत्व 

    सापेक्षिक आद्रता का जलवायु में अधिक महत्व होता है इसी की मात्रा पर वर्षा की संभावना होती हैं ऊॅंचे प्रतिशत पर वर्षा की संभावना तथा कम प्रतिशत पर शुष्क मौसम की भविष्यवाणी की जाती है सापेक्षिक आद्रता पर ही वाष्पीकरण की मात्रा निर्भर करती है।अधिक सापेक्षिक आद्रता होने पर वाष्पीकरण कम तथा कम होने पर वाष्पीकरण अधिक होता हैं।

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