Means विज्ञान की अवधारणा और Word-Means संबंध

Means विज्ञान की अवधारणा और Word-Means संबंध

By Bandey

भाषा की लघुतम, स्वतंत्रत सार्थक इकाई Word है, इसलिए Means-अध्ययन के समय Word पर विचार करना आवश्यक है। भतरृहरि ने Word के विषय में लिखा है कि संसार में ऐसा कोई ज्ञान नहीं है जो Word-ज्ञान के बिना संभव हो। समस्त ज्ञान Word के ही माध्यम से अनुभव होता है।

न सोSस्ति प्रत्ययो लोके: य: Wordानुगमादृते।

अनुविद्धमिव ज्ञान सर्व Wordेन भासते।।

Word-शक्ति जहाँ बाह्य जगत के व्यवहार का साधन है, वहीं आंतरिक हर्ष-विषाद आदि भावों का ज्ञान Reseller है। संसार का कोई प्राणी ऐसा न होगा जिसमें Word शक्तिResellerी चैतन्यता न हो। गूँगा भले ही Wordों का उच्चारण नहीं कर सकता, किंतु उसके अंतराल में उठने वाले भावों में कितने Single Word Single साथ पंक्तिबद्ध होकर उसे चेतना-शक्ति प्रदान करते हैं, इसे कौन अस्वीकार करेगा? Human-समाज में Word के महत्त्व का मुख्य आधार उसका आत्मा Resellerी Means है। महर्षि पतंजलि ने Means को Word की आंतरिक शक्ति के Reseller में स्वीकार Reseller है। पाश्चात्य विद्वान डॉ. शिलर ने Means को वैयक्तिक बताते हुए कहा है कि Means उस व्यक्ति पर आधरित होता है जो कि कुछ ग्रहण करना चहता है। डॉ. रसाल ने संबंध विशेष की संज्ञा दी है।

Indian Customer विद्वान प्रतीति को Means मानते हैं, तो पाश्चात्य विद्वान संदर्भ या संबंध को Means के Reseller में स्वीकार करते हैं। Means के बिना Word का अस्तित्व संदिग्ध् हो जाएगा। इस प्रकार कह सकते हैं कि Means के बिना भाषा का कोई मूल्य नहीं है। Word को यदि शरीर कहें तो Means इसकी आत्मा है। Word के उच्चारण से श्रोता को जो प्रतीति होती है, उस प्रतीति को Means की संज्ञा दी जाती है। यह प्रतीति हमें ज्ञानेंद्रिय और मन के द्वारा होती है। इस प्रकार स्पष्ट Reseller से कह सकते हैं कि Means भाषा का अभ्यंतर Reseller है और Word बाह्य Reseller।

Word-Means संबंध

कवि कुल गुरु कालिदास ने शिव-पार्वती की अर्चना संदर्भ से Word-Means के संबंध के स्पष्ट करते हुए कहा है-

वागर्थाविव सम्पृक्तौ वागर्थ प्रतिपत्तये।

जगत: पितरौ वन्दे पार्वती परमेश्वरौ।

यदि ‘कलम’ Word का विचार करें, तो कलम Word और ‘कलम’ वस्तु में अभेद्य संबंध दिखाई देता है यथा-’यह कलम है’, ‘कलम काली है।’

यहाँ ‘कलम’ Word और ‘कलम’ वस्तु के पृथक Reseller का आभास नहीं होता है। कभी-कभी तो यह भेद करना कठिन हो जाता है कि Wordों पर विचार हो रहा है अथवा Word के द्वारा किसी वस्तु पर। वास्तव में Word द्वारा निर्दिष्ट वस्तु का ज्ञान होता है, किंतु Word वस्तु आदि से भिन्न है। विचारणीय है कि क्या काले रंग वाली निब से युक्त, सुनहरी टोपी वाली कलम ही ‘कलम’ Word है? उक्त निर्दिष्ट वस्तु कलम है। यहाँ काला रंग भी कलम Word से पूर्ण भिन्न, उस वस्तु (कलम) का गुण है।

Word-Means पर सूक्ष्म चिंतन करने से यह ज्ञात होता है कि Word के द्वारा First उसका निजी भाषायी स्वReseller प्रकट होता है और उसके पश्चात उसका Means बोध होता है। इस प्रकार Word और Means का अभिन्न संबंध स्पष्ट होता है। यहाँ पर यह भी ज्ञातव्य है कि ‘कलम’ कहने से ‘कागज’, ‘पुस्तक’ या अन्य किसी वस्तु का बोध नहीं होता है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि प्रत्येक Word से विशिष्ट Means की प्रतीति होती है। यही कारण है कि वक्ता और श्रोता प्राय: Single Word से Single ही Means ग्रहण करते हैं।

Wordों का Means जन सामान्य द्वारा स्वीकृत होता है। यदि जन सामान्य द्वारा ‘फूल’ या अन्य किसी Word का कोई भिन्न Means मान लिया जाए, तो वही Means प्रकट होगा।

Word का उच्चरित स्वReseller और Means-अभिव्यक्ति-जब Single Word का उच्चारण दो या दो से अिधाक व्यक्ति करते हैं, तो उनके उच्चारण में आपसी अंतर स्पष्ट होता है। यह उच्चारण-भिन्नता ही वक्ता की जानकारी देती है। Single Word का चाहे जितने आदमियों द्वारा प्रयोग Reseller जाए, किंतु उनका समान ही Means निकलता है।

Word-Means संबंध: चिंतन-परंपरा-प्राचीनकाल से ही Word और Means के संबंध पर विचार होता रहा है। पतंजलि ने Means को Word की आंतरिक शक्ति बताते हुए Word और Means के संबंध को नित्य कहा है, तो भर्तृहरि ने दोनों को Single ही आत्मा के दो Resellerों में स्वीकार Reseller है। Word-Means के विभिन्न चिंतन को निम्नलिखित वर्गों में रख सकते हैं-

  1. उत्पनिवाद-ऋग्वेद में प्रस्तुत प्राचीन मतानुसार Human-मन में Means विद्यमान होते हैं, जिनसे Word की उत्पत्ति होती है, Meansात् Word उत्पाद है और Means उत्पादक।
  2. अभिव्यक्ति-यह विचार महर्षि पतंजलि की देन-स्वReseller है। उसके According Word-प्रयोग से Means की अभिव्यक्ति होती है-फ्श्रोत्रोपलिब्ध्र्बुद्धिनिगर््राह्य: प्रयोगेणाभिज्वलित: आकाशदेश: Word:।
  3. प्रतीकवाद-भर्तृहरि के According Word के प्रतीक Reseller से विभिन्न वस्तुओं या पदार्थों की प्रतीति होती है। इस प्रकार Word और Means में प्रतीकात्मक संबंध की बात सामने आती है।
  4. ज्ञाप्तिवाद-किशेरी दास वाजसनेयी के According Word से Means की ज्ञाप्ति होती है। जिस प्रकार बहुत ठंडेपन से बर्क का आभास होता है, उसी प्रकार Word से Means का आभास होता है। इसके According Word ज्ञापक और Means ज्ञाप्य है।

Means-प्रतीति-Means-प्रतीति के दो आधार हैं-आत्मानुभव और परानुभव।

  1. आत्मानुभव में अपने अनुभव के द्वारा Word के Means की प्रतीति होती है यथा-’रसगुल्ला’ Word से Single मीठे स्वादिष्ट खाद्य-पदार्थ का ज्ञान होता है।
  2. परानुभव में Single-Second के अनुभव पर विश्वास कर Word का Means निश्चित करते हैं यथा-’जहर’ के विषय में लगभग All को पता होता है कि इसके खाने से प्रणांत हो जाता है, जबकि अनेक व्यक्ति ऐसे मिल जाएँगे जिन्होंने जहर देखा भी नहीं होगा। इस प्रकार जहर की अनुभूति परानुभव पर आधरित है।
  3. Wordार्थ-बोध के साधन-Indian Customer परिवेश में Wordार्थ-बोध के साधनों में परंपरा, कोश, व्याकरण, प्रकरण, व्याख्या, आप्त-वाक्य, सान्निध्य और सुर-लहर का विशेष महत्त्व है। जब सामान्य Reseller से किसी Word के Means का ज्ञान नहीं होता, तो इनमें से Single या अिधाक आधारों का सहारा लेते हैं। यदि ‘उन्मेष’ Word का Means व्यवहार से नहीं होता तो परंपरा के अतिरिक्त कोश, व्याकरण आदि का सहारा लेते हैं। Wordकोश से ‘खिला हुआ’, ‘विस्तृत’ आदि Meansों का बोध होता है।

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